भारत में पिछले पचास वर्षों में सबसे ज्यादा जंगली वनस्पतियों का विलोपन
भारत में पिछले पचास वर्षों में सबसे ज्यादा जंगली वनस्पतियों का विलोपन हुआ। इसकी एक बड़ी वजह पेड़-पौधों की अंधाधुंध कटाई रही है। लेकिन दूसरे भी कई कारण हैं। जैसे वनस्पतियों के संरक्षण के प्रति लोगों की घटती दिलचस्पी, सूखा या बाढ़ और वनस्पतियों को जीवन का हिस्सा मानने की प्रवृति का कम होते जाना भी है।
आने वाले दशकों में वनस्पतियों की प्रजातियों के लुप्त होने का सबसे बड़ा कारण कटिबंधी वनों का विनाश होगा। यह चेतावनी वाशिंगटन स्थित विश्व संसाधन संस्थान के अध्ययन में दी गई है। गौरतलब है कटिबंधीय वनों में ही संपूर्ण वनस्पतियों की पचास फीसद वनस्पतियां पाई जाती हैं। ये प्रकृति के संतुलन को बनाए रखती हैं। धरती के प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने में मानव से भी ज्यादा भूमिका वन्य प्राणियों और वनस्पतियों की है। इसलिए इनके विलुप्त होने से प्रकृति पर गहरा असर पड़ेगा। इस खतरे को देखते हुए ही पिछले तीन दशकों में ज्यादातर देशों ने वन्य जीवों और वनस्पतियों के संरक्षण के लिए गंभीर प्रयास शुरू तो किए हैं, लेकिन ये अभी तक कोई ठोस नतीजे सामने नहीं आए हैं।
भारत में पिछले पचास वर्षों में सबसे ज्यादा जंगली वनस्पतियों का विलोपन हुआ। इसकी एक बड़ी वजह पेड़-पौधों की अंधाधुंध कटाई रही है। लेकिन दूसरे भी कई कारण हैं। जैसे वनस्पतियों के संरक्षण के प्रति लोगों की घटती दिलचस्पी, सूखा या बाढ़ और वनस्पतियों को जीवन का हिस्सा मानने की प्रवृति का कम होते जाना भी है।
आने वाले दशकों में वनस्पतियों की प्रजातियों के लुप्त होने का सबसे बड़ा कारण कटिबंधी वनों का विनाश होगा। यह चेतावनी वाशिंगटन स्थित विश्व संसाधन संस्थान के अध्ययन में दी गई है। गौरतलब है कटिबंधीय वनों में ही संपूर्ण वनस्पतियों की पचास फीसद वनस्पतियां पाई जाती हैं। ये प्रकृति के संतुलन को बनाए रखती हैं। धरती के प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने में मानव से भी ज्यादा भूमिका वन्य प्राणियों और वनस्पतियों की है। इसलिए इनके विलुप्त होने से प्रकृति पर गहरा असर पड़ेगा। इस खतरे को देखते हुए ही पिछले तीन दशकों में ज्यादातर देशों ने वन्य जीवों और वनस्पतियों के संरक्षण के लिए गंभीर प्रयास शुरू तो किए हैं, लेकिन ये अभी तक कोई ठोस नतीजे सामने नहीं आए हैं।
आंकड़े बताते हैं कि धरती पर उन्नीस हजार से ज्यादा पेड़-पौधे विलुप्त होने के कगार पर आ गए हैं। विलुप्त हो रहे ये पेड़-पौधे जैव विविधता विलोपन के अंतर्गत आते हैं। इसके मुताबिक यदि किसी वन्य जीव के प्राकृतिक वास को सत्तर फीसद कम कर दिया जाए तो वहां निवास करने वाली पचास फीसद प्रजातियां लुप्त होने की स्थिति में पहुंच जाएंगी। इससे यह पता चलता है कि वन्य जीवों और वनस्पतियों में सहजीवन की पूरकता है। इसलिए जितना वनस्पतियों को विलुप्त होने से बचाना जरूरी है, उतना ही वन्य जीवों को भी। आंकड़े और शोध बताते हैं कि विश्व में जंगली पेड़ों की आधी प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर आ गई हैं। इससे वैश्विक स्तर पर जंगलों के पारिस्थितिकी तंत्र का चरमराने का खतरा बढ़ गया है। इस संबंध में पिछले दिनों ‘स्टेट आॅफ द वर्ल्ड्स ट्रीज रिपोर्ट’ भी जारी की गई। इसमें पांच साल पहले तक चले अंतरराष्ट्रीय अध्ययन में जंगली पेड़ों की सत्रह हजार पांच सौ दस प्रजातियों का अस्तित्व गंभीर खतरे में पाया गया है।
गौरतलब है यह आंकड़ा वैश्विक स्तर पर पेड़ों की कुल ज्ञात अट्ठावन हजार चार सौ सनतानवे प्रजातियों का 29.9 फीसद है। अध्ययन में 7.1 फीसद अन्य प्रजातियों का अस्तित्व भी खतरे में होने की बात सामने आई है। अध्ययन में बताया गया है कि 21.6 फीसद प्रजातियों की मौजूदा स्थिति का विस्तृत विश्लेषण नहीं किया जा सका है, जबकि 41.5 फीसद प्रजातियों का अस्तित्व शोधकर्ताओं को सुरक्षित मिला। अध्ययन में ब्राजील में विलुप्तप्राय प्रजातियों की संख्या सबसे अधिक एक हजार सात सौ अट्ठासी दर्ज की गई है। इसमें महोगनी, शीशम आदि प्रमुख हैं। वहीं पर वनस्पति विविधता के लिहाज से कम संपन्न माने जाने वाले यूरोप और उत्तर अमेरिका में भी पेड़ों की कई प्रजातियां खतरे में मिली हैं। कीटों का आतंक और कीटनाशकों का ज्यादा इस्तेमाल इसकी मुख्य वजह बताई गई है।
स्टेट आॅफ द वर्ल्डस ट्रीज रिपोर्ट के मुताबिक ब्राजील में सबसे ज्यादा जंगली वनस्पतियों के विलुप्त होने का खतरा है। अध्ययन के अनुसार ब्राजील में पाई जाने वालीं आठ हजार आठ सौ सैंतालीस प्रजातियों में से एक हजार सात सौ अट्ठासी यानी बीस फीसद जंगली वनस्पतियों के विलुप्त होने का खतरा बढ़ गया है। इसी तरह कोलंबिया में पाई जाने वाली पांच हजार आठ सौ अड़सठ जंगली वनस्पतियों में से आठ सौ चौंतीस यानी चौदह फीसद वनस्पतियां विलुप्ति के कगार पर हैं। इंडोनेशिया में पाई जाने वाली पांच हजार सात सौ सोलह जंगली वनस्पतियों में से एक हजार तीन सौ छह यानी तेईस फीसद वनस्पतियों पर विलुप्ति का खतरा मंडरा रहा है।
हरे-भरे मलेशिया की हालत भी लगभग ऐसी ही है। आंकड़े बताते हैं कि मलेशिया में पाई जाने वाली पांच हजार चार सौ बाईस जंगली वनस्पतियों में से एक हजार दो सौ पनचानवे यानी चौबीस फीसद इसी संकट से गुजर रही हैं। गौरतलब है कि मलेशिया ऐसा देश है जहां लोग वन और वनस्पतियों को लेकर काफी जागरूक हैं। छोटे से देश वेनेजुएला में चार हजार आठ सौ बारह जंगली वनस्पतियां पाई जाती है जिसमें छह सौ चौदह यानी तेरह फीसद समाप्ति की ओर हैं। और दुनिया के सबसे ज्यादा आबादी वाले देश चीन में पाई जाने वाली चार हजार छह सौ आठ वनस्पतियों में से आठ सौ नब्बे यानी उन्नीस फीसद जंगली वनस्पतियों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। इन आंकड़ों से एक बात तो साफ है कि वनस्पतियों की सुरक्षा और संरक्षण के प्रति तकरीबन सभी देशों में उदासीनता और लापरवाही की स्थिति है। गौरतलब है वन्य जीवों के प्रति भी लोगों की कमोवेश ऐसी ही असंवेदनशीलता देखने को मिल रही है।
भारत में पिछले पचास वर्षों में सबसे ज्यादा जंगली वनस्पतियों का विलोपन हुआ। इसकी एक बड़ी वजह पेड़-पौधों की अंधाधुंध कटाई रही है। लेकिन दूसरे भी कई कारण हैं। जैसे वनस्पतियों के संरक्षण के प्रति लोगों की घटती दिलचस्पी, सूखा या बाढ़ और वनस्पतियों को जीवन का हिस्सा मानने की प्रवृति का कम होते जाना भी है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों के फैलाव, उनके द्वारा उस इलाके की वनस्पतियों को उजाड़ने और पानी का अंधाधुंध दोहन की वजह से भी तमाम उपयोगी वनस्पतियां देखते ही देखते हमेशा के लिए विलुप्त हो गर्इं। सरकारी और गैरसरकारी प्रयास उन क्षेत्रों तक ही सीमित रहे जहां वनस्पतियों की सुरक्षा का दायित्व वन विभाग को सौंपा गया।
Jul 11 2024, 09:15