इस साल मुज़फ़्फ़रपुर की शाही लीची की स्वाद में पड़ रहा है महंगा, जानें क्यो
इसकी वजह लीची के उत्पादन में कमी आना है। प्रतिकूल मौसम के कारण इस साल खासकर शाही लीची का उत्पादन घटा है।
उपभोक्ताओं को भले ही लीची के ज्यादा दाम चुकाने पड़ रहे हैं। लेकिन बिहार के शाही लीची किसानों पर दोहरी मार पड़ रही है। एक तो उत्पादन कम होने से कुल आमदनी घटी है। दूसरा गुणवत्ता अच्छी न होने से बाहर माल भेजने पर काफी माल खराब होने से वाजिब दाम नहीं मिल पा रहे हैं। उद्यान रत्न भोलानाथ झा सरकार से खफा है। भोला नाथ झा जी विगत कई दशक से लीची फसल बीमा की मांग कर रहे है पर सरकार कभी ध्यान नहीं देती।
भोलानाथ झा की माने तो आजतक सरकार लीची किसानों के लिए एक बेहतर बाज़ार न दे सकी। शहर के बाजार पर व्यापारियों का कब्जा है।
किसान आखिर जाए तो कहां जाए।
कहते है भोला नाथ झा की प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री दोनोँ को शाही लीची की अहमियत पता है पर केंद्र और राज्य सरकार शाही लीची को और लीची किसानों को कभी बढ़ावा दिया ही नहीं। किसान नेता वीरेंद्र कुमार का कहना है कि लीची किसानों के साथ सरकार हमेशा सौतेला व्यवहार करती रही है। सरकार ने कभी किसानों का सुना ही नहीं। फसल बीमा के लिए किसान संघर्षरत रहे पर सरकार ने विश्व विख्यात शाही लीची उद्योग पर ध्यान ही नही दिया। मौसम की मार से पैदावार कम
उद्यान रत्न भोला नाथ झा की माने तो जिले में हर साल एक लाख टन की पैदावार होती है. लेकिन इस साल मौसम की मार से 20 टन ही लीची बचा है. इसमें भी फल का साइज छोटा होने के साथ मिठास भी कम है.
लीची में लाली भी कम है, जिस कारण किसानों को दूसरे राज्यों में शाही लीची की अधिक कीमत नहीं मिल रही है. किसान काफी नुकसान झेल रहे हैं. भारी नुकसान से सहमे किसान आधे पके और कमजोर क्वालिटी की लीची बेचने और दूसरे प्रदेश भेजने को मजबूर हैं.
इतना ही नहीं, मुजफ्फरपुर की तुलना में पश्चिम बंगाल की शाही लीची पुणे, मुंबई सहित अन्य राज्यों में अधिक कीमत पर बिक रही है. मुजफ्फरपुर की शाही लीची 1200-1300 रुपए और पश्चिम बंगाल की लीची 2000-2100 रुपए पेटी बिक रही है. कम कीमत मिलने से आर्थिक रुप से किसानों को काफी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है.
कहते है भोला नाथ झा "बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में उच्च तापमान और चिलचिलाती पश्चिमी हवाओं ने लीची की खेती के लिए अनुपयुक्त जलवायु पैदा कर दी है। इससे सैकड़ों लीची किसानों के लिए संकट खड़ा हो गया है, जो पहले से ही इस साल अनियमित मौसम के कारण कम फूल आने से चिंतित थे।"
भोला नाथ झा ने बताया कि शाखाओं पर लगे लाल फल पकने से पहले ही गिर रहे हैं। "गर्म पश्चिमी हवाओं के साथ लू जैसी स्थिति के कारण लीची में लगभग 40-50 प्रतिशत फल गिर गए हैं। यह हमारे लिए बहुत बड़ा झटका है।" कहते है भोला नाथ झा कि मुजफ्फरपुर स्थित राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र (एनआरसीएल) किसानों के किसी काम का नहीं। सरकार जितना पैसा खर्च करती है
उसका 10 प्रतिशत भी फायदा किसानों को नहीं होता है।
उन्होंने कहा, "पिछले अप्रैल में पश्चिमी हवाओं के बावजूद वातावरण में नमी थी, क्योंकि उसके बाद पूर्वी हवाएँ चल रही थीं। इससे लीची के फलों पर ज़्यादा असर नहीं पड़ा।"
उन्होंने बताया कि 10-30 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से चलने वाली तेज गर्म पश्चिमी हवाएं और दिन का तापमान 36-41.5 डिग्री के बीच रहने के कारण लीची के फलों में भारी गिरावट आई है। मुजफ्फरपुर की शाही लीची, जो सोपबेरी की एक भारतीय किस्म है, अपने आकार, अद्वितीय स्वाद, सुगंध और स्वाद के लिए प्रसिद्ध है।
इस क्षेत्र में लीची एक प्रमुख फसल है, लेकिन मुजफ्फरपुर और पड़ोसी जिलों के किसान हाल के वर्षों में इस स्थिति से निपटने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। लीची उत्पादक संघ से जुड़े एक बड़े लीची किसान भोला नाथ झा ने कहा कि पिछले साल लीची का उत्पादन 70,000 टन दर्ज किया गया था, लेकिन इस साल लीची का उत्पादन 40,000-50,000 टन के बीच होने की उम्मीद है।भारी फसल नुकसान के मद्देनजर लीची किसान सूखे और बाढ़ के बाद खरीफ और रबी के किसानों को दिए जाने वाले मुआवजे के समान मुआवजे की मांग कर रहे हैं।
वे जल्द ही राज्य और केंद्र सरकार को ज्ञापन सौंपकर इस मांग को पूरा करने की योजना बना रहे हैं। मुजफ्फरपुर में लीची के बाग करीब 12,000 हेक्टेयर और राज्य में 32,000 हेक्टेयर में फैले हुए हैं। यह भारत के लीची उत्पादन का करीब 40 प्रतिशत है।
उद्यान रत्न भोला नाथ झा के बागान का शाही लीची काफी मशहूर है।
इनकी बागान की लीची जापान,चाइना, नेपाल, अमेरिका सहित कई देशों में जाता है पर इस बार मौसम ने जहां शाही लीची का मिठास बिगाड़ दिया है वही फसल बीमा का लाभ न मिलने से लीची किसान टूट गए है।
Jun 01 2024, 09:45