हजारीबाग में इस बार कौन..? चलेगा मोदी का जादू या , काम कर जाएगा यशवंत सिन्हा फैक्टर,पढ़िए पुरी खबर...?
झारखंड डेस्क
झारखंड में हज़ारीबाग लोकसभा सीट इस बार भाजपा बचा पायेगी या कोंग्रेस का इसपर होगा कब्ज़ा यह सियासी हलकों में चर्चा का विषय है। वैसे हज़ारीबाग लोकसभा सीट को अब तक भाजपा का में मना जाता रहा है।
अस्सी के दशक से यहां भाजपा का व्यापक प्रभाव रहा है। राम मंदिर आंदोलन शुरू होने से पहले भी यहां बीजेपी का जनाधार मौजूद था। तब बिहार (राज्य के बंटवारे से पहले) की इस सीट पर सीपीआई की पकड़ भी काफी मजबूत थी।
1998 में पहली बार यहां से नौकरशाह से नेता बने यशवंत सिन्हा बीजेपी से जीते और तब से हजारीबाग लोकसभा सीट पार्टी के लिए उनके परिवार के नाम होकर रह गई। वे 1999 में भी जीते, लेकिन 2004 में सीपीआई के दिग्गज भुवनेश्वर प्रसाद मेहता के हाथों हार गए।
वैसे हजारीबाग का तीन बार यशवंत सिन्हा प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। सिन्हा अटल सरकार के में वित्त और विदेश मंत्री जैसी जिम्मेदारियां भी संभाल चुके हैं।
लेकिन, 2014 में पार्टी ने उनके बेटे जयंत सिन्हा को टिकट दिया। वे मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में वित्त और नागरिक उड्डयन राज्यमंत्री भी बनाए गए। 2019 में मोदी की दूसरी लहर में उनकी जीत का मार्जिन बढ़कर 4.79 लाख हो गया।
इस बार भाजपा ने मौजूदा सांसद का टिकट काट कर मनीष जायसाल पर दांव लगाया है।
इससे एक साल पहले ही यशवंत सिन्हा बीजेपी से निकल गये और पार्टी और खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों के कटु आलोचक बन गए। 2022 में राष्ट्रपति चुनाव हारने के बाद से वे टीएमसी में चले गए। बहरहाल, इस बार बीजेपी ने जयंत सिन्हा को टिकट नहीं दिया है।
भाजपा द्वारा मनीष जयसवाल को टिकट दिये जाने के बाद भाजपा से तीन टर्म बिधायक रहे जय प्रकाश भाई पटेल ने भाजपा को वाय-वाय कह दिया।और कोंग्रेस में शामिल हो गये।
कोंग्रेस ने हज़ारीबाग लोकसभा पर इसबार विधायक मनीष जायसवाल के खिलाफ ओबीसी नेता और मांडु के तीन बार के विधायक जय प्रकाश भाई पटेल को टिकट दिया है। ये मार्च में ही बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए हैं। कोंग्रेस के पक्ष में यशवंत सिन्हा ने खुलकर कैम्पैनिंग की।अब यशवंत फैक्टर के बाद यह देखा जा रहा है की इस बार हज़ारीबाग के लिए कौन मज़बूत कैंडिडेट है।और जानता किसे चुन रही है ।इसके लिए हम जातीय आधार पर भी विश्लेषण करके निष्कर्ष निकाल सकते हैँ।
हजारीबाग लोकसभा सीट का जातीय समीकरण
हज़ारीबाग में कूल मतदाता 16,,64,,464 है।इसमें कुर्मी वोटर 15 प्रतिशत है।वहीं मुस्लिम और अन्य भाजपा विरोधी वोट का कुल प्रतिशत मिला दिया जाय
और अगर इन समीकरण को देखा जाय तो हजारीबाग लोकसभा जेपी पटेल की दावेदारी मजबूत लगती है। क्योंकि, जायसवाल वैश्य समुदाय से आते हैं।
लेकिन, तथ्य यह है कि इस क्षेत्र में भाजपा का संगठन काफी मजबूत है और यहां बीते करीब ढाई दशकों में जीतने वाले प्रत्याशी को सिर्फ जाति के आधार पर वोट पड़े हों, ऐसा नजर नहीं आता है।
कितना असरदार होगा यशवंत सिन्हा फैक्टर?
इस बार चर्चा का विषय यही है कि यहां यशवंत सिन्हा फैक्टर कितना असरदार साबित होगा? वैसे 3 अप्रैल को उन्होंने इंडिया ब्लॉक के प्रत्याशी को समर्थन देने का ऐलान किया था। उन्होंने कहा, 'मैं हजारीबाग की जनता की भावनाओं के हिसाब से अभिभावक की भूमिका में आगे आया हूं। मैंने 40 वर्ष हजारीबाग में बिताए और सार्वजनिक जीवन में प्रवेश किया। मेरा एक ही लक्ष्य है कि क्षेत्र का विकास हो और मैं अपनी बची हुई ऊर्जा जेपी पटेल को जिताने में लगा दूंगा।'
जयंत बागी नहीं हुए हैं, लेकिन बीजेपी के लिए सक्रिय भी नहीं हैं जयंत सिन्हा को टिकट नहीं मिलने पर उन्होंने कहा, 'मुझे निजी तौर पर मालूम नहीं कि जयंत को टिकट क्यों नहीं मिला, लेकिन अगर यह मेरी वजह से हुआ तो इसका मुझे अफसोस है।' वैसे एक्स पर जयंत सिन्हा ने बीजेपी के आधिकारिक उम्मीदवार को समर्थन किया है, लेकिन वह उनके लिए चुनाव अभियान से दूरी बनाकर रह रहे हैं।
इस बीच जयंत के बेटे और यशवंत के पोते आशिर सिन्हा कांग्रेस की एक रैली में नजर आए तो हल्ला मच गया कि वह पार्टी ज्वाइन कर सकते हैं। हालांकि, बाद में इस तरह की खबरों को नकार दिया गया और कहा गया कि वह दादा के टीएमसी में होने की वजह से वहां इंडिया ब्लॉक के समर्थन के लिए पहुंचे थे।
दोनो कैंडिडेट की क्या है स्थिति..?
वैसे देखा जाय तो दोनो उम्मीदवार इस बार मज़बूत हैँ इस लिए होगा तो कांटे का संघर्ष।जेपी भाई पटेल दिग्गज नेता स्वर्गीय टेकलाल महतो के पुत्र हैं कुर्मी वोटरों के बीच उनका दबदबा है। मांडू से पिछले तीन टर्म से विधायक हैं।अगर ये सरे फैक्टर काम कर गया तो पेटल की स्थिति मज़बूत दिखती है।
लेकिन मनीष जयसवाल की छवि भी अच्छा है।वे सक्रिय विधायक रहे ।जनता के दुखदर्द् में शामिल होते रहे हैं।साथ ही उनके साथ मोदी फैक्टर है।मोदी के प्रभाव,भाजपा का वोट बैंक और उनका व्यक्तिगत प्रभाव के बीच अगर जातीय समीकरण आड़े नही आये तो मनीष जयसवाल भी जीत सकते हैं। वैसे टककर दिलचस्प है।लेकिन वोटरों के मिजाज कब किस धारा में बह जाय यह कहाना मुश्किल है।इस लिए इंतज़ार 4 जून का करना होगा।
May 19 2024, 11:53