कभी कतरन ही वह काम कर देती थी जो आज बड़ी खबरें नहीं कर पातीं
विश्वनाथ प्रताप सिंह,कोरांव प्रयागराज तहसील कोरांव मे चौथे स्तम्भ के पतन की शुरुआत यहां बखुबी देखी जा सकती है, जहां अखबार बेचने के लिए व विज्ञापन वशूलने के लिए संवाददाता नियुक्त कर दिया जाता है। जिसमें शिक्षा का कोई मानक नहीं होता पैसा दो एजेंसी लो और पत्रकार के नाम पर धौश जमाकर अपना समय ख़राब करों।इसे शौभाग्य कहें या दुर्भाग्य कि शिक्षा का कोई मानक नहीं होने के कारण किस अधिकारी से किस सम्बन्ध में क्या बात करने है।
क्या प्रश्न पूछने है स्वयं पता नहीं जिससे आज चौथा स्तंभ हंसी का पात्र बनकर रह गया है। और यदि कहीं कोई मामला फंस गया तो अखबार तुरन्त पल्ला झाड़ लिया करता है और उसे अपने संस्था का कार्य कर्ता तक नहीं मानता नहीं कोई कार्ड ही जारी करता है। चौथा स्तंभ में शिक्षा की अनदेखी ही आज पत्रकारिता नाम से लोग दूरी बना ली है। दुर्भाग्य देखिए सुबह से साम तक पत्रकार को क्षेत्र में खबर के लिए दौड़ाया जाता है, जबकि बदलें में पारिश्रमिक के नाम पर देना कुछ नहीं सिर्फ विज्ञापन का दबाव ही शेष। कभी कभी तो लगता है कि पत्रकारिता से अच्छा तो मनरेगा के लेबर ही है जो काम के बदले पारिश्रमिक तो पा जातें हैं, किन्तु पत्रकार घर से तेल, पेट्रोल पर निर्भर हो कर रह जाता है। वहीं कुछ लोग तो समझौता कर कुछ हासिल कर लेते हैं, जिससे पत्रकारिता का स्तर दिनों दिन गिरता जा रहा है।
इसके लिए जहां अखबार के मालिक पूरी तरह जिम्मेदार है जो न तो पत्रकारिता में योग्यता का निर्धारण करते हैं और नहीं मासिक सैलरी के साथ आपदा कोश का गठन करना चाहिए। क्योंकि आपके अखबार की रीढ़ यही है जो दिन रात मेहनत करके आपके अखबार में चार चांद लगाते हैं।
Apr 09 2024, 23:04