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बिहार में भी अब राम राज संदर्भ : नीतीश कुमार बनेंगे नौंवी बार सीएम
राजनीति एक ऐसी काजल की कोठरी है, जिसमें से निकलने के बाद भी कपड़े पर दाग नहीं लगता है। अर्थात कोई किसी का पर्मानेंट दुश्मन नहीं होता। परिस्थितियां दलों के इधर-उधर होने का कारण बनती हैं।
राजद के साथ साझा सरकार जब तक चल रही थी, सब कुछ ठीक था। मगर जैसे ही नीतीश को लगा कि उनकी पार्टी पर ही खतरा उत्पन्न हो रहा है, उन्होंने राजद से अलग होने का निर्णय  ले लिया।
दूसरी ओर राजद के साथ आने के बाद बिहार में फिर जंगल राज वाली स्थिति दिखायी पड़ रही थी। आम जनता भी ला एंड आर्डर में फर्क महसूस कर रही थी। बड़े भाई लालू प्रसाद भी जानते थे कि छोटे भाई के सहारे ही उनके पुत्र मोह की लालसा पूरी हो सकती थी। मगर रोहिणी आचार्य प्रकरण ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया।
राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंपने के बाद नीतीश ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि इंडिया गठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा था। उनके खिलाफ साजिश रची जा रही थी।
28 जनवरी,  2024 को बिहार में नीतीश कुमार एनडीए के साथ सरकार बनायेंगे। आज नीतीश कुमार एनडीए विधायक दल के नेता चुने जायेंगे और शाम सात बजे वे अपने मंत्रिमंडल के साथ शपथ ग्रहण करेंगे। सम्राट चौधरी बीजेपी विधायक दल के नेता चुने गये। नीतीश कुमार के साथ ही सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा डिप्टी सीएम पद की शपथ लेंगे।
और अंत में बिहार में हुए सियासी परिवर्तन के लिए कांग्रेस पर आरोप लगाया जा रहा है।
आज की रात बड़ी भारी है संदर्भ : संयोजक नहीं बनना नीतीश के लिए रहा फायदेमंद
बिहार में चल रही सियासी हलचल का पटाक्षेप कुछ घंटों में हो जायेगा। इसका फायदा केवल और केवल दो पार्टियों को होगा। पहला भाजपा को, वह बिहार को साधना चाहती थी, जो हो गया। दूसरा जदयू, नीतीश कुमार अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब हो गये। लेकिन भाजपा इस बार फूंक - फूंक कर और सोच-समझकर ही कदम उठा रही है।
दूसरी ओर राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद की बेचैनी उनके पुत्र मोह को उजागर कर रही है। वे अब दबाव की राजनीति पर उतर आये हैं। लेकिन लगता है अब बाजी उनके हाथों से निकल चुकी है।
वहीं कांग्रेस को कुछ समझ नहीं आ रहा है कि वह बिहार के इस हालात पर क्या करे। कांग्रेस के बड़े नेता और लालू प्रसाद फोन पर एक बार बात करने को लालायित हैं लेकिन नीतीश कोई भाव नहीं दे रहे। इससे सारा मामला साफ है कि नीतीश कुमार भाजपा के साथ सरकार  बनायेंगे और नौवीं बार बिहार के सीएम बनेंगे।
भाजपा एक सोची-समझी रणनीति पर काम कर रही है। जिन राज्यों में भाजपा की सरकार नहीं है वहां एनडीए की सरकार बनाना चाहती है। उदाहरण महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान है। अब इसमें बिहार का नाम और जुड़ गया है।
बीजेपी लोकसभा चुनाव से पहले बिहार में एनडीए की सरकार चाहती थी। भानुमती के कुनबे को एकजुट करने वाले नीतीश जब गठबंधन में पीएम का चेहरा नहीं बन पाने से नाराज दिखे, तभी बीजेपी ने उनके लिए अपने दरवाजे खोल दिये।
और अंत में 2024  की शुरुआत बीजेपी के लिए बहुत ही शुभ साबित हो रही है। पहले 22 जनवरी को अयोध्या में भव्य और अलौकिक मंदिर में राम लला की प्राण-प्रतिष्ठा, 24 जनवरी को जन नायक कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न देने की घोषणा और अब 28 जनवरी को बिहार में एनडीए की सरकार ( संभावित) ।
तेजस्वी का सीएम का सपना भी टूटा संदर्भ : खंड-खंड इंडिया गठबंधन
कांग्रेस खुद तो डूबेगी औरों को भी ले डूबेगी। कांग्रेस की सीटों की शेयरिंग में की जा रही लेट लतीफी के कारण इंडिया गठबंधन आखिर खंड - खंड हो ही गया। पहले तृणमूल कांग्रेस, फिर आप और अब जदयू। गठबंधन में बचे दल इस राजनीतिक हलचल का आरोप कांग्रेस पर लगा रहे हैं। कहा जाता है कि राजनीति में एक सप्ताह बहुत लंबा समय माना जाता है अर्थात माननीय कभी इधर तो कभी उधर।
आज पुराने सारे गिले-शिकवे भुलाकर नीतीश कुमार बीजेपी के साथ गलबहियां डालेंगे ।
इधर राजद भी अपनी सारी कोशिशों को अंजाम दे रहा है। लग रहा है कि राजद प्रमुख लालू प्रसाद का दिली सपना  ( पुत्र को सीएम देखना ) मुंगेरीलाल के हसीन सपने के समान हो गया।  राजद और कांग्रेस दोनों परिवारवाद की पोषक पार्टियां रही हैं । राजद को उसका परिवारवाद ले डूबा।जिस प्रकार कांग्रेस आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है, उसी प्रकार राजद भी कांग्रेस के नक्शे कदम पर चल रहा है।
वही इंडिया गठबंधन में नीतीश कंफर्ट महसूस नहीं कर रहे थे। गठबंधन का पीएम का चेहरा नहीं बन पाने के बाद नीतीश को कुर्सी बचाने की चिंता होने लगी। लालू प्रसाद की चाल सफल होती इससे पहले नीतीश कुमार ने भाजपा का दामन थामना श्रेयस्कर समझा। ये बाद की बात है कि उन्हें इस बार कुर्सी मिलेगी या नहीं। नीतीश कुमार इस घटनाक्रम की पटकथा पहले ही लिख चुके थे। वे  राम लला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह को लेकर रुके हुए थे। 
दूसरी और बीजेपी इस इसी शर्त पर एनडीए में उनको वापस ले सकती है जब 2024 का लोकसभा चुनाव और 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव तक नीतीश कोई खेल नहीं करेंगे।  साथ ही यह भी हो सकता है कि इस बार यानी बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को ध्यान में रखकर भाजपा का मुख्यमंत्री बने और जदयू  का डिप्टी सीएम हो। यह राजनीति है। कभी भी,कहीं भी, कुछ भी हो सकता है। भाजपा की नजर अब बिहार पर है।

राम लला की लहर, विपक्ष होगा किधर संदर्भ : बिहार में सियासी पारा हाई
नीतीश कुमार अपने ऊपर आने वाले किसी भी खतरे को भांपने में माहिर हैं। पार्टी में टूट की आशंका देख वे ललन सिंह से इस्तीफा लेकर स्वयं जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गये। वहीं दूसरी ओर अयोध्या में भव्य और अलौकिक मंदिर में राम लला के विराजमान होने के बाद इंडी गठबंधन में शामिल नीतीश कुमार समझ चुके हैं कि इस बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा राम लहर पर सवार होकर 415 का आंकड़ा पार कर सकती है। राम मंदिर निर्माण का भाजपा का वादा था, जिसे उसने पूरा कर दिया। इसलिए राम लहर के आगे कोई भी गठबंधन सफल नहीं हो पायेगा।
बिहार में जारी उठा - पटक के पीछे सिर्फ कुर्सी का ही खेल है। नीतीश कुमार कुर्सी मोह के कारण पलटू कुमार बन गये। वहीं लालू प्रसाद भी पुत्र मोह से ग्रस्त हैं। पर इस बार भी तेजस्वी के सामने आ रही कुर्सी में उनकी बहन रोहिणी ने लात मारकर दूर कर दिया।
बिहार में राजनीतिक हलचल काफी बढ़ गयी है। सर्द मौसम में सियासी पारा हाई है। राजद प्रमुख लालू प्रसाद अपने पुत्र को ऐन केन प्रकारेण मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं। इसलिए राजद की ओर से हम और ओवैसी की पार्टी को चारा फेंका जा रहा है।
लेकिन राजद के पास बहुमत का आंकड़ा नहीं है। वहीं अगर नीतीश एनडीए में शामिल होते हैं तो उनकी कुर्सी बच सकती है।  भाजपा के 78, नीतीश कुमार के 45,  हम के चार और एक निर्दलीय को मिलाकर नीतीश के पास कुल विधायकों की संख्या 128 होती है। यानी बहुमत के लिए 122 के जादुई आंकड़े से 6 ज्यादा। वहीं राजद के पास 79 , कांग्रेस 19,वाम दल 16 । इस तरह राजद के पास जादुई आंकड़ा 114 पर ही अटक जा रहा है । इसलिए राजद द्वारा अब ओवैसी की पार्टी और हम को डिप्टी सीएम का प्रलोभन भी दिया जा रहा है। लेकिन राजद की दाल गलती नजर नहीं आ रही है। कारण राजद की प्रवृत्ति परिवारवाद की है।
और अंत में शनिवार को नीतीश कुमार राज्यपाल से मिलने वाले हैं। क्या वे विधानसभा भंग करने की अनुशंसा करेंगे या अपना इस्तीफा देंगे। वहीं शुक्रवार को राजभवन में हुई टी पार्टी में तेजस्वी यादव शामिल नहीं हुए।
लोकसभा चुनाव के साथ बिहार में विधानसभा चुनाव की आहट संदर्भ : घर में आग लगी घर के चिराग से
लालू प्रसाद की पुत्री रोहिणी आचार्य के पोस्ट से नाराज होने के कारण इंडिया गठबंधन से अलग हो सकते हैं नीतीश कुमार। ताजा प्रकरण में  जिस तरह का सियासी पारा पटना और दिल्ली में चढ़ा हुआ दिखायी दे रहा है उससे लोकसभा चुनाव के साथ ही बिहार विधानसभा चुनाव होने की आहट भी सुनायी पड़ ‌रही है। भाजपा भली भांति जानती है कि उसके पास ऐसा कोई चेहरा नहीं है जो बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा को विजय दिला सके। इसलिए बिहार में सरकार बनाने के लिए नीतीश कुमार का साथ जरूरी है।
दूसरी ओर लालू प्रसाद यादव की दिली इच्छा ( तेजस्वी यादव को बिहार का मुख्यमंत्री बनते देखना) लगता है उनके जीवनकाल में पूरी नहीं हो पायेगी। ऐसा नहीं है कि तेजस्वी यादव को मौका नहीं मिला। मौके मिले, दो- दो बार। मगर वो उसका फायदा नहीं उठा पाये। इस बार बहन रोहिणी ने उनकी ओर आती कुर्सी को दूर कर दिया है।
कर्पूरी ठाकुर जन्म शताब्दी समारोह में नीतीश कुमार के परिवारवाद पर दिये गये बयान के जवाब में लालू प्रसाद की पुत्री रोहिणी आचार्य के किये गये तीन पोस्ट ने बिहार की राजनीति में हलचल पैदा कर दी है। पोस्ट से तिलमिलाये मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इंडी गठबंधन से दूरी बनानी शुरू कर दी है। उन्होंने राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा में शामिल होने से इंकार कर दिया है।
क्या फिर पलटी मारेंगे : इंडी गठबंधन के सूत्रधार नीतीश अपनी पूरी ताकत लगा कर सभी को एकजुट करने में सफल हुए। मगर घटक दलों की कारस्तानी से इंडी गठबंधन में बिखराव शुरू हो गया। पहले मायावती ने साफ कह दिया कि वह गठबंधन में शामिल नहीं होंगी। इसके बाद पं बंगाल में ममता बनर्जी ने भी एकला चलो की घोषणा कर दी। फिर पंजाब में आप भी अकेले चुनाव लड़ेगा।  बसपा, तृणमूल कांग्रेस, आप तो गठबंधन से अलग हो गये। अब रोहिणी आचार्य प्रकरण के बाद नीतीश कुमार का मन अब राजद के साथ नहीं मिल पा रहा है। इस बीच बिहार से लेकर दिल्ली तक सियासी हलचल तेज हो गयी है। बिहार के सर्द मौसम में सियासी हलचल तेज होने से माहौल बहुत ही गरम हो गया है। दूसरी ओर इतनी सारी कवायद हो रही है मगर न तो जदयू और न राजद की ओर से किसी तरह का कोई बयान सामने नहीं आया है।
और अंत में जिस तरह का घटनाक्रम बिहार में घट रहा है उससे तो नीतीश कुमार के भाजपा के साथ जाने की उम्मीद दिखने लगी है। वहीं दूसरी ओर लोकसभा चुनाव के साथ ही बिहार में विधानसभा चुनाव भी हो तो कोई ताज्जुब नहीं।
इंडी गठबंधन को न माया मिली न ममता संदर्भ : पं बंगाल में लोकसभा चुनाव अकेले लड़ेगी तृणमूल कांग्रेस
यूपीए का नया अवतार इंडिया गठबंधन जब से अस्तित्व में आया है, तभी से कुछ न कुछ होता आ रहा है। कांग्रेस और राजद को गठबंधन में सीटों की शेयरिंग में हो रही देरी की कोई चिंता नहीं है। लगता है गठबंधन में शामिल घटक दल एक - दूसरे से धीरे-धीरे छिटक रहे हैं। इंडिया गठबंधन खंड-खंड होता दिख रहा है।
यूपी में मायावती की एकला चलो के बाद आज पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने इंडी गठबंधन को तगड़ा झटका देते हुए अकेले ही लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया है। वहीं पंजाब में आप कांग्रेस के साथ समझौता न कर अकेले चुनाव लड़ेगा।
ममता ने यह फैसला कांग्रेस द्वारा पश्चिम बंगाल में 10 से ज्यादा सीटों की मांग को देखते हुए किया है, जबकि ममता केवल दो सीटें ही कांग्रेस को देने को तैयार हैं।  हाल के दिनों में जो घटनाक्रम घट रहे हैं, उससे तो लगता है कि ममता पश्चिम बंगाल को बांग्लादेश बनाना चाहती हैं। क्योंकि बांग्लादेश से बड़ी संख्या में बांग्लादेशी मुसलमान पं बंगाल में शरणार्थी के रूप में आ कर बस रहे हैं। और तृणमूल कांग्रेस के ये स्थायी वोटर बन गये हैं। ममता ने बाकायदा उन्हें आधार कार्ड, वोटर कार्ड आदि सब कुछ उपलब्ध करा दिया है। ये ममता के इशारे पर कुछ भी करने को तैयार रहते हैं।
तृणमूल कांग्रेस का स्वरूप धीरे-धीरे राजद वाला ही बनता जा रहा है।  लालू प्रसाद के 15 साल के शासन में बिहार में जंगल राज कायम हो गया था, उसी प्रकार पं बंगाल में भी एक तरह से जंगल राज ही कायम होता जा रहा है। इडी के अधिकारियों पर टीएमसी समर्थकों का हमला इसका ताजा उदाहरण है।
इंडिया गठबंधन में जितनी भी पर्टियां शामिल हैं उनके प्रमुखों के खिलाफ भ्रष्टाचार का कोई ना कोई केस जरूर चल रहा है। आप के केजरीवाल हों या राजद के लालू प्रसाद,  तृणमूल की ममता हों या यूपी के अखिलेश यादव सभी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा चुके हैं। इंडिया गठबंधन में शामिल दल अपने - अपने स्वार्थ के कारण ही इकट्ठे दिख रहे हैं। गोस्वामी तुलसीदास जी ने ऐसे ही अवसरवादी लोगों के लिए श्री रामचरितमानस में लिखा है-
      स्वारथ लागि करहिं सब प्रीति । सुर,नर , मुनि सबकी यहि रीति।।
इंडी गठबंधन जो कुछ भी हो रहा है, उससे भाजपा को ही फायदा होता दिख रहा है।  गठबंधन में हो रही उठा - पटक का ठिकरा कांग्रेस पर ही फूटेगा। क्योंकि कांग्रेस के युवा नेता राहुल बाबा को सीटों की शेयरिंग पर चिंता ही नहीं है।  ममता के गठबंधन से हटने का असर बिहार और यूपी पर भी पड़ सकता है। इंडी गठबंधन से धीरे-धीरे पार्टियां छिटकना शुरू कर रही हैं।  सबसे पहले नीतीश कुमार गठबंधन का चेहरा नहीं बन पाने के कारण संयोजक नहीं बने। उनका मन डोल रहा है। और अब ममता का भी मोह भंग हो गया, क्योंकि उनके मन में भी इंडी गठबंधन का चेहरा बनने की ललक थी,  मगर जब उनके नाम का प्रस्ताव किसी ने नहीं किया तो उन्होंने एकला चलने का फैसला ले लिया। इसके बाद नीतीश क्या करवट लेंगे यह तो समय ही बतायेगा। कर्पूरी ठाकुर शताब्दी समारोह के अवसर पर नीतीश कुमार की परिवार वाद पर की गयी टिप्पणी के माध्यम से राजद पर कटाक्ष किया है। जदयू और राजद दोनों पसोपेश में हैं । उन्हें अपने विधायकों को एकजुट रखना होगा क्योंकि सत्ता का नशा सिर पर चढ़कर बोलता है।
और अंत में ममता के अकेले चुनाव लड़ने का फायदा भाजपा को मिल सकता है। पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के साथ तृणमूल कांग्रेस का संबंध नहीं रहेगा यानी सभी पार्टियां अकेले चुनाव लड़ेंगी।
भाजपा की बिहार को साधने की कोशिश संदर्भ : कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न
जन्म शताब्दी की पूर्व संध्या पर भारत सरकार की तरफ से बिहार के जन नायक कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का ऐलान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का मास्टर स्ट्रोक कहा जा सकता है। इसका बिहार की सियासत पर बड़ा और दूरगामी प्रभाव पड़ता दिख रहा है। भाजपा ने एक तीर से दो शिकार किये हैं। पहला बिहार की एक चिरप्रतीक्षित मांग पूरी हुई और दूसरा बिहार की पिछड़ी जाति को प्रभावित करने में भाजपा सफल होगी।
अब विपक्ष करे भी तो क्या करे। किसी फिल्म का एक डायलॉग है " अगर कोई किसी भी चीज को शिद्दत से करना चाहता है तो सारी कायनात उसकी सहायता करने लगती है।
22 जनवरी , 2024 को लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा की एक घोषणा पूरी हो रही थी । जब अयोध्या में अद्भुत और अलौकिक मंदिर में भगवान श्री राम लला की प्राण प्रतिष्ठा हो रही थी ठीक उसी वक्त कायनात ने भाजपा को बिहार में पिछड़ी जाति को साधने वाला एक और मौका दे दिया।
राम मंदिर निर्माण के बाद मोदी सरकार ने सामाजिक न्याय के पुरोधा और संपूर्ण क्रांति आंदोलन के बड़े नेता कर्पूरी ठाकुर को उनकी 100वीं जयंती की पूर्व संध्या पर 23 जनवरी, 2024 को उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न देने का ऐलान कर दिया। ऐसा कर मोदी सरकार ने विपक्ष की रही-सही उम्मीदों पर भी पानी फेर दिया है।
इसे संयोग ही कहेंगे कि एक दिन पहले सूर्य वंश में जन्मे राम लला पांच सौ वर्षों बाद अपने मंदिर में विराजित हुए वहीं इसके दूसरे दिन बिहार के समस्तीपुर के एक गांव पितौझिया ( अब कर्पूरी ग्राम) में 24 जनवरी, 1924 में नाई परिवार ( पिछड़ी जाति) में जन्मे कर्पूरी ठाकुर भारत रत्न से सम्मानित किये गये। जिस वंचित समाज के उत्थान के लिए आजीवन कर्पूरी ठाकुर जी-जान से लगे रहे, वह समाज आज भी शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के लिए आज भी उसी तरह मोहताज है,जैसा आज से दशकों वर्ष पहले था।
लालू प्रसाद यादव और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार , स्व राम विलास पासवान समेत कई लोगों ने कर्पूरी ठाकुर की छत्रछाया में ही अपना राजनीतिक सफर शुरू किया था। पर आज ये नेता उनका नाम लेकर उनके दिखाये वंचित समाज के उत्थान के सपनों को चकनाचूर कर रहे हैं। आज सामाजिक न्याय के नाम पर नेता अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं। किसी को सामाजिक न्याय से कुछ लेना-देना नहीं है। इनके  लिए यह समाज मात्र वोट बैंक की तरह ही है।
और अंत में आज क‌र्पूरी ठाकुर की जयंती बड़े पैमाने पर सभी दल मनाते हैं। वंचित समाज के एक आदमी को सम्मानित कर सामाजिक समरसता का कोरम पूरा कर लिया जाता है। पर इस समाज के उत्थान के लिए कोई कुछ नहीं करता। कर्पूरी ठाकुर ने नारा दिया था " अधिकार चाहो तो लड़ना सीखो,पग- पग पर अड़ना सीखो, जीना है तो मरना सीखो। उन्होंने समाज में कई चुनौतियों का सामना कर कई उपलब्धियां हासिल कीं और जीवन के अंत तक अपने समाज के उत्थान के लिए काम करते रहे।
राम लला की लहर 400 के पार न ले जाये संदर्भ : घट सकती हैं विपक्ष की सीटों की संख्या
घटक दलों के नेताओं के सनातन , श्री रामचरित मानस और भगवान राम के विरुद्ध की गयी अपमानजनक टिप्पणियों के कारण इंडी गठबंधन में शामिल पार्टियां एक - दूसरे से खुद को असहज महसूस कर रही हैं।
दूसरी और भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियां विपक्ष की सीटों की शेयरिंग पर हो रही नूरा कुश्ती को देख कर निश्चिंत होकर बैठी हैं। कांग्रेस और राजद को सीटों की शेयरिंग हो रही देरी की कोई चिंता नहीं है। बैठक पर बैठक हो रही हैं मगर अब तक उनके बीच सीटों पर कोई सहमति नहीं बन पा रही। उधर नीतीश कुमार का मन डोल रहा है।
वे समझ चुके हैं कि कि राजद के साथ अब ज्यादा दिन तक गलबहियां नहीं रह पायेंगी। इंडी गठबंधन का चेहरा नहीं बन पाने के बाद वे अब अपनी कुर्सी बचाने में लग गये। वे यह भी जानते हैं कि कुर्सी मोदी की शरण में जाने से ही संभव है। मगर लगता है भाजपा इस बार कुछ कड़ा कदम उठा सकती है। हो सकता है इस बार मुख्यमंत्री बीजेपी का हो ।
भव्य, अद्भुत और अलौकिक मंदिर में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा की गूंज भारत  ही नहीं सारी दुनिया में हो रही है । विपक्षी पार्टियों की समझ में नहीं आ रहा है कि वह क्या करें । पीएम मोदी के सामने किसी की दाल नहीं गल पा रही है । जो कहा वो कर के दिखाया का नया नारा सामने आ सकता है। राम मंदिर की लहर भाजपा को  400 के पार न धकेल दे।
बिहार में शिक्षा का स्तर सुधरने की उम्मीद संदर्भ : चंद्रशेखर से शिक्षा विभाग छिना
बड़े बे आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले। शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक के साथ खटास पूर्ण संबंध और श्री रामचरितमानस व भगवान राम पर विवादित टिप्पणी के कारण चर्चा में रहे शिक्षा मंत्री प्रोफेसर चंद्रशेखर को आखिर पद से हटा ही दिया गया। अब उनको गन्ना उद्योग मंत्री बनाया गया है।
उनके विभाग की अदला-बदली 22 जनवरी को अयोध्या में होने वाले राम लला के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम की ऐन मौके पर हुई है। शिक्षा मंत्री के भगवान राम और श्री रामचरित मानस पर विवादित बयान देने के कारण भाजपा और उसके सहयोगी बिहार में सत्ताधारी महा गठबंधन के खिलाफ माहौल तैयार करने में सफल रहे। शिक्षा मंत्री के बड़बोलेपन के कारण जदयू की तो बात ही छोड़ दीजिए, राजद भी खुद को असहज महसूस कर रहा था।
         जाको प्रभु दारुण दुख देही। ताकी मति पहले हर लेही।
अर्थात भगवान प्रारब्ध के अनुसार जिसको दुख देते हैं उसकी मति ( बुद्धि ) को पहले हर लेते हैं। इस कारण वह इंसान उल्टे - सीधे काम बिना विचारे करने लगता है।
मालूम हो कि गत शुक्रवार को राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिले थे। लगता है कि इस बैठक में शिक्षा मंत्री और विभाग के अपर मुख्य सचिव के बीच विवाद पर गहन विचार - विमर्श किया गया। इसके बाद ही यह घटनाक्रम हुआ।
मालूम हो कि शिक्षा मंत्री और अपर मुख्य सचिव के बीच कभी बनी ही नहीं। दोनों तरफ से पत्र युद्ध चला। खटास इतनी बढ़ गयी थी कि श्री पाठक स्वास्थ्य का हवाला देकर छुट्टी पर चले गये। उनको 18 जनवरी को ज्वाइन करना था लेकिन उन्होंने 19 तारीख को ज्वाइन किया। केके पाठक के छुट्टी पर जाने से यह अफवाह फैली कि उन्होंने इस्तीफा दे दिया है। वहीं शिक्षा मंत्री ने भी अस्पष्ट रूप से कहा कि काम करने का मन नहीं होगा, इसलिए उन्होंने इस्तीफा दे दिया है।
अपर मुख्य सचिव को उच्च पदस्थ स्तर पर समझाया गया और आश्वासन दिया गया था। प्रो चंद्रशेखर को शिक्षा मंत्री पद से हटाया जाना इस बात को पुष्ट करता है।
और अंत में बिहार में शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए बात - बात में स्कूलों को बंद करने की परंपरा पर रोक लगानी होगी। बिहार में प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक में शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव ने हड़कंप मचा दिया है। उनके फरमान से स्कूल समय पर खुलने और बंद होने लगे हैं।  शिक्षक समय पर स्कूल आने लगे हैं। अब उच्च शिक्षा में भी सुधार की उम्मीद दिखने लगी है।



अनुदान की राशि से कैसे होगा काम संदर्भ : होल्डिंग टैक्स -19 नगर निगमों में पटना 17वें स्थान पर
होल्डिंग टैक्स या संपत्ति कर वह वार्षिक शुल्क है जो आप अपने क्षेत्र में पंचायत, नगर पालिका या नगर निगम जैसे निकाय को देते हैं। नगर निगम द्वारा होल्डिंग टैक्स वसूलकर अर्जित राशि का उपयोग बुनियादी ढांचे और क्षेत्र में  सीवरेज सिस्टम, प्रकाश व्यवस्था, पार्क समेत अन्य सुविधाओं के रखरखाव के लिए किया जाता है।
होल्डिंग टैक्स का भुगतान उस स्थानीय नगर निगम को किया जाता है जहां संपत्ति स्थित है।  होल्डिंग टैक्स समाज के कल्याण और विकास के लिए एकत्रित किया जाता है।  पहले होल्डिंग टैक्स का भुगतान करने के लिए जिला कार्यालय जाना पड़ता था पर आधुनिकीकरण कार्यक्रम के बाद होल्डिंग टैक्स का भुगतान अब ऑनलाइन किया जाने लगा है।
इससे विडंबना ही कहा जायेगा कि आम नागरिक अगर समय पर टैक्स जमा नहीं कर पाता है तो उसे नोटिस पर नोटिस दी जाती है। वहीं सरकारी विभागों पर करोड़ों-करोड़ बकाया रहने के बावजूद नगर निगम में कान में तेल डालकर सोया रहता है।
होल्डिंग टैक्स की वसूली सही ढंग से नहीं हो पाने के कारण नगर निगम को केन्द्र या राज्य सरकार  के अनुदान पर निर्भर रहना पड़ता है। इससे विकास कार्यों पर असर पड़ता है।
नगर निगम में ऐसी इकाई है जो राज्य सरकार को आर्थिक रूप से लाभ पहुंचाने का काम करती है। नगर निगम बड़े स्तर पर शहरीकरण करके लोगों को आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध कराता है।  इसके एवज में वह शहरी आबादी से टैक्स के रूप में राजस्व की वसूली करता है।  एक ऐसा उपक्रम है जो अगर अपनी टैक्स वसूली प्रणाली में सुधार ले आये तो यह राजस्व उगाही के मामले में अन्य उपक्रमों को पीछे छोड़ देगा।
मगर आज इसकी टैक्स वसूली की व्यवस्था बिल्कुल ही चरमरा गयी है।  राज्य के 19 नगर निगमों में पटना को टैक्स वसूली के मामले में 17वां स्थान मिला है। वहीं राजस्व वसूली में पटना को पीछे छोड़ते हुए मुंगेर नगर निगम ने पहला स्थान प्राप्त किया है।
दरअसल पटना नगर निगम और राजस्व वसूल करने वाली एजेंसियों के बीच कुछ मुद्दों को लेकर बात नहीं बन पा रही है। इसलिए 6 बार टेंडर होने के बावजूद कोई भी एजेंसी नहीं मिली। निगम को इस समस्या का समाधान कर जल्द से जल्द एजेंसी नियुक्त कर डोर-टू-डोर टैक्स वसूली करने के साथ-साथ बड़े बकायेदारों पर नकेल कसनी होगी।
और अंत में बड़े बकायेदारों ( सरकारी या निजी ) पर बकाया करोड़ों रुपयों की वसूली के लिए एक तंत्र विकसित करना होगा। कुछ ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि सभी सरकारी और निजी उपक्रमों में ऐसी आधुनिक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाये जिससे आटोमेटिक मंथली, त्रैमासिक, अर्धवार्षिक या वार्षिक सरकारी टैक्स नगर निगम के खाते में चला जाये।