संपादकीय:-नीतीश जी बिहार को जनसंख्यां नियत्रण पर आपके दर्शन की नही,राज्य के विकास के लिए ठोस नीति की जरूरत है...?
(विनोद आनंद)
कुछ दिन पहले बिहार विधानसभा में नीतीश जी द्वारा जनसंख्यां नियंत्रण पर जिन शब्दों और जिस लहजे में माननीय सदस्यों को समझाने का प्रयास किया गया वह आश्चर्यजनक था।
उसकी आलोचना हो रही है,लोग दो पाटों में बंट गए हैं। उनके शब्दों को तो हर कोई गलत बता रहा है लेकिन कुछ लोग ये भी कह रहे हैं कि उनका इंटेंशन गलत नही था, बल्कि गवई भाषा में थोड़ी शब्दो में ब्लागरता आ गयी थी।
लेकिन फिर उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी को लेकर भी विधानसभा में आपा खोया और जो कुछ कहा वह भी सही नही था।
पता नही नीतीश जी ऐसे तो थे नही।गंभीर और संयम भाषाओं का प्रयोग करते रहे।ऐसा भी नही है कि वे पढ़े लिखे नही हैं। उन्होंने इंजीनियरिंग की डिग्री ली है। कई संवैधानिक पदों पर भी रहे । इतने लंबे राजनीतिक जीवन में वे आज इस तरह मर्यादाहीन शब्दों के कारण बिहार के लोगों का छवि तो खराब किया हीं खुद का छवि भी खराब कर लिया।
आज महिलाएं नाराज ,दलित नाराज, साथ हीं जातीय जनगणना में ,आंकड़े को लेकर उनके समुदाय के करीब, या यूं कहें धानुक जाति जिनके वोट बैंक से अब तक वे सत्ता में काबिज रहने में सफल रहे वे नाराज।
इन सब का प्रभाव उनके राजनीतिक कैरियर पर क्या असर पड़ेगा यह तो बक्त बतायेगा लेकिन उन्हें इस विषय पर चिंतन करने की जरूरत है।
आज बिहार का दुर्भाग्य रहा है कि आजादी के बाद से बिहार में सरकार का नेतृत्व किसी ऐसे हाथ में नही आया जो बिहार को विकास के उस आयाम तक पहुंचा सके कि राज्य की जनता खुशहाल हो।यहां युवाओं को रोजगार मिले। राज्य की जनता के लिए ऐसी नीति बने कि उन्हें बाहर जाने की जरूरत नही हो।
चार दशक पहले यहां के लोगो को रोजगार की तालाश में कोलकाता, असम, दिल्ली और मुम्बई जाना पड़ता था ,और आज बिहारी मज़दूर और युवा आप को देश विदेश भर में फैले मिलेंगे।
ऐसा नही है कि बिहारी युवाओं में प्रतिभा नही है । वे हर क्षेत्र में अपनी क्षमता और प्रतिभा सिद्ध किया है। बिहार के लोग भारत के शीर्ष प्रशासनिक पद हो, पत्रकारिता हो, साहित्य हो, इंजीनियरिंग हो, चिकित्सा हो या वैज्ञानिक हर जगह अपनी योग्यता को साबित किया है।
इसके साथ ही देश भर में मज़दूर और कारीगर के रुप मे बिहारी लोगों ने अपनी क्षमताओं से भारत के तकदीर को गढ़ने में अपना योगदान दिया। लेकिन दुख इस बात की है कि इन प्रतिभाशाली बिहारियों की क्षमता और योग्यता से बिहार का तकदीर बिहार के भाग्यविधाता गढ़ने में नाकामयाब रहे।
इसका कारण है कि बिहार के राजनीति में आने वाले लोगों का मकसद ही रहा राजसुख का भोग करना, धन और एश्वर्य कमाना।
बिहार में जिस तरह बाहुबलियों ने खून खराबा कर अपहरण, हत्या,सरकारी ठीका पर कब्ज़ा को एक उधोग का रूप दिया।अपराध और राजनीति के बीच एक प्रगाढ़ रिश्ता बनाकर बिहार का नाम देश ही नही दुनिया भर में बदनाम किया। इसका भी कारण रहा राजनीतिक नेतृत्वकर्ताओं की कमियां।
यहां ना तो उधोग लगे और नही व्यापार फला -फुला,सरकारी तंत्र में भष्ट्राचार,अधिकारी कर्मचारी बेलगाम, और हताश-निराश युवाओं में आक्रोश और अपराध की ओर प्रवृत्त होना यह सब बिहार सरकार की विफलता है।
ऐसे हालात में बिहार के राजनेताओं को अपना पूरा ध्यान इस पर केंद्रित करना चाहिए कि बिहार के विकास के लिए क्या ठोस नीति बने जिस से यहां उधोग पनपे, रोजगार बढ़े, युवाओं का पलायन रुके। ना कि विधान सभा में यह कहने की जरूरत है कि हमने उसे मुख्यमंत्री बनाया,या जनसंख्यां पर रोक के लिए सेक्स एजुकेशन के लिए क्लास देने की जरूरत है।
नेताओं को अपने शब्दों की मर्यादा, अपने कार्यों के प्रति गंभीरता और अपने अंदर के अहंकार को त्यागने की जरुरत है।
और जनता को भी यह समझने की जरूरत है कि हम जात, धर्म और समुदाय के नाम पर ऐसे लोगो का अपना सेवक चुनकर नही भेजें जो वहां जाकर यह समझने लगे कि हम जनता का सेवक नही मालिक हैं।
Nov 20 2023, 12:03