सरायकेला : चांडिल अनुमंडल सुवर्ण रेखा बहुउद्देशीय परियोजना के रख रखाव के नाम पर हो रहे लूट,पर विस्थापितों के उत्थान के लिए नही हुआ कोई काम
चांडिल अनुमंडल के सुवर्णरेखा बहुउद्देशीय परियोजना के तहत रख-रखाव में प्रतिवर्ष करोड़ों रूपए खर्च किये जाते हैं। परियोजना द्वारा हर साल जलस्तर बढ़ाने की बात भी कही जा रही है। इस बार आपदा बैठक में जलस्तर 183.22 मीटर रखने की बात कही गई। जबकि 179 मीटर से अधिक जलस्तर होने पर डैम के विस्थापित प्रभावित क्षेत्र में विस्थापितों के घर में डैम का पानी घुसने लगता है।
पिछले साल 180 मीटर जलस्तर रखने का प्रस्ताव लिया गया था। जिसमें ईचागढ , पातकुम के आस पास में पानी घुस गया था।
प्रत्येक वर्ष चांडिल डैम के लिए अनुमंडल परिसर में बरसात के समय आपदा को लेकर बैठक की जाती है। चांडिल डैम के 180 मीटर से अधिक पानी भंडारण होने पर स्थानीय प्रशासन और जनप्रतिनिधियों द्वारा डैम के सुईस गेट खुल जाता है।डैम के सुईस गेट से अधिक पानी छोड़े जाने पर डेम के निचले हिस्से पूर्वी सिंहभूम जिला के साथ सरायकेला जिला के कपाली के डोबो गांव में बाढ़ की समस्या उत्पन्न होती है ।
स्थानीय प्रशासन का कहना है की गांव के लोग को मरने नहीं दी जाएगी, इसके लिए हर साल राहत कार्यक्रम चलाया जाता है।इस बार के आपदा बैठक में 183=मीटर जलस्तर रखने की बात कही गई।जिस पर पंचायत जनप्रतिनिधियों, विधायको ने कहा कि कई गांव में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी।
स्थानीय प्रशासन के द्वारा हर साल सुइस गेट और रेडियल गेट खोला जाता है। चांडिल डैम का जलस्तर रांची क्षेत्र में अधिक बारिश होने पर भी बढ़ता है।
चांडिल डेम से विस्थापित नारायण गोप ने कहा हर साल डैम के जलस्तर बढ़ाने की बात कही जाती है, लेकिन विस्थापित के हित में कभी भी पदाधिकारी बात नहीं करते हैं।चालीस साल डैम बने हुए हो गए, लेकिन विस्थापित की समस्या हल नहीं हुई, विस्थापित आयोग का भी गठन नहीं हुआ।
विस्थापित समस्या के हल एवं अधिकार की रक्षा हेतु कई बार नेताओं ने विस्थापित आयोग की बात कही । लेकिन आज तक विस्थापित आयोग का गठन नहीं हुआ ना ही विस्थापित की समस्याओं का हल हुआ।
परियोजना के पुर्नवास स्थल कई जगह बेकार पड़ा हुआ।जहा विस्थापितों को बसाने का कार्य करना चाहिए लेकिन प्रशासन द्वारा उल्टा कार्य किया जा रहा । प्रत्येक वर्ष डैम के मेंटेनेस के टेंडर भरा जाता हे।ओर लूटने का कार्य होता है। डेम की मरम्मती का कार्य आड़ी पर मिट्टी फीलिंग का काम चल रहा है।स्थानीय मजदूरों को ठिकेदार द्वारा सरकारी मजदूरी से कम दिया जा रहा 250 रुपया मजदूरी रेट मिल रहा है। जबकि सरकारी रेट 375=रुपया की दर मिलना चाहिए ।
प्रति वर्ष विभिन्न प्रकार की योजना का टेंडर होता है।ओर लूट मार किया जा रहा ।जिसे विस्थापित कर हितों में बिहार सरकार से अबतक के राज्य सरकार में विस्थापितों के पुनर्वास नीति के तहत विस्तापितो को मुआवजा राशि नही मिला है।जिसके कारण ना जाने कितने परिवार दो जून रोटी के लिए झारखंड राज्य छोड़ कर विस्थापित लोग पलायन कर रहे हैंम
चांडिल अनुमंडल के सुवर्णरेखा बहुउद्देशीय परियोजना के तहत रख-रखाव में प्रतिवर्ष करोड़ों रूपए खर्च किये जाते हैं। परियोजना द्वारा हर साल जलस्तर बढ़ाने की बात भी कही जा रही है। इस बार आपदा बैठक में जलस्तर 183.22 मीटर रखने की बात कही गई। जबकि 179 मीटर से अधिक जलस्तर होने पर डैम के विस्थापित प्रभावित क्षेत्र में विस्थापितों के घर में डैम का पानी घुसने लगता है।
पिछले साल 180 मीटर जलस्तर रखने का प्रस्ताव लिया गया था। जिसमें ईचागढ , पातकुम के आस पास में पानी घुस गया था।
प्रत्येक वर्ष चांडिल डैम के लिए अनुमंडल परिसर में बरसात के समय आपदा को लेकर बैठक की जाती है। चांडिल डैम के 180 मीटर से अधिक पानी भंडारण होने पर स्थानीय प्रशासन और जनप्रतिनिधियों द्वारा डैम के सुईस गेट खुल जाता है।डैम के सुईस गेट से अधिक पानी छोड़े जाने पर डेम के निचले हिस्से पूर्वी सिंहभूम जिला के साथ सरायकेला जिला के कपाली के डोबो गांव में बाढ़ की समस्या उत्पन्न होती है ।
स्थानीय प्रशासन का कहना है की गांव के लोग को मरने नहीं दी जाएगी, इसके लिए हर साल राहत कार्यक्रम चलाया जाता है।इस बार के आपदा बैठक में 183=मीटर जलस्तर रखने की बात कही गई।जिस पर पंचायत जनप्रतिनिधियों, विधायको ने कहा कि कई गांव में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी।
स्थानीय प्रशासन के द्वारा हर साल सुइस गेट और रेडियल गेट खोला जाता है। चांडिल डैम का जलस्तर रांची क्षेत्र में अधिक बारिश होने पर भी बढ़ता है।
चांडिल डेम से विस्थापित नारायण गोप ने कहा हर साल डैम के जलस्तर बढ़ाने की बात कही जाती है, लेकिन विस्थापित के हित में कभी भी पदाधिकारी बात नहीं करते हैं।चालीस साल डैम बने हुए हो गए, लेकिन विस्थापित की समस्या हल नहीं हुई, विस्थापित आयोग का भी गठन नहीं हुआ।
विस्थापित समस्या के हल एवं अधिकार की रक्षा हेतु कई बार नेताओं ने विस्थापित आयोग की बात कही । लेकिन आज तक विस्थापित आयोग का गठन नहीं हुआ ना ही विस्थापित की समस्याओं का हल हुआ।
परियोजना के पुर्नवास स्थल कई जगह बेकार पड़ा हुआ।जहा विस्थापितों को बसाने का कार्य करना चाहिए लेकिन प्रशासन द्वारा उल्टा कार्य किया जा रहा । प्रत्येक वर्ष डैम के मेंटेनेस के टेंडर भरा जाता हे।ओर लूटने का कार्य होता है। डेम की मरम्मती का कार्य आड़ी पर मिट्टी फीलिंग का काम चल रहा है।स्थानीय मजदूरों को ठिकेदार द्वारा सरकारी मजदूरी से कम दिया जा रहा 250 रुपया मजदूरी रेट मिल रहा है। जबकि सरकारी रेट 375=रुपया की दर मिलना चाहिए ।
प्रति वर्ष विभिन्न प्रकार की योजना का टेंडर होता है।ओर लूट मार किया जा रहा ।जिसे विस्थापित कर हितों में बिहार सरकार से अबतक के राज्य सरकार में विस्थापितों के पुनर्वास नीति के तहत विस्तापितो को मुआवजा राशि नही मिला है।जिसके कारण ना जाने कितने परिवार दो जून रोटी के लिए झारखंड राज्य छोड़ कर विस्थापित लोग पलायन कर रहे हैं।
Jun 15 2023, 17:48