छात्र-छात्राओं की संख्या के विरुद्ध शिक्षकों के लाखों पद रिक्त, कैसे मिले गुणवत्तापूर्ण शिक्षा : डाॅ अभिराम सिंह
गया। शिक्षक राष्ट्र निर्माता हैं। उनके कंधे पर देश के भविष्य को गढ़ने की जिम्मेवारी है, लेकिन इतने महत्वपूर्ण कार्य को करने वाले शिक्षकों की सुध सरकार नहीं ले रही है। उनसे बच्चों के पठन-पाठन से ज्यादा गैर शैक्षणिक कार्य लिए जा रहे हैं, जिसे किसी तरह उचित नहीं ठहराया जा सकता। ये बातें पीपी एजुकेशनल ग्रुप, जहानाबाद के चेयरमैन व शिक्षाविद डॉ. अभिराम सिंह ने शुक्रवार को गया में कॉलेजों और कई सरकारी हाई स्कूलों में शिक्षकों से संवाद करते हुए कही।
डॉ. अभिराम सिंह ने कहा है कि प्रदेश में अंगीभूत कॉलेजों में शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए यह जरूरी है कि सरकार विषयवार शिक्षकों की बहाली करे। अंगीभूत कॉलेजों में शिक्षकों के अधिसंख्य पद रिक्त हैं। विश्वविद्यालय में भी शिक्षकों के अधिकांश पद रिक्त हैं। आबादी के अनुरूप छात्र-छात्राओं की संख्या बढ़ती जा रह है, लेकिन शिक्षण संस्थानों में पद नहीं बढ़ाये जा रहे हैं। आश्चर्य तो यह कि जो सृजित पद हैं, वे भी खाली हैं। उच्च शिक्षण संस्थान केवल बच्चों के रजिस्ट्रेशन करने, फॉर्म भरने और परीक्षा लेने के केंद्र बन गए हैं। प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था बहुत ही बुरे दौर से गुजर रही है, जिसकी तरफ न तो सरकार का ध्यान जा रहा है और ना ही शिक्षकों के वोट से जीतकर विधान परिषद में जाने वाले विधान पार्षद का। इस हालात को बदलने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि राज्य में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का घोर अभाव है। छात्र-छात्राएं दूसरे राज्यों की ओर पलायन कर रहे हैं। बिहार में सरकारी शिक्षण संस्थानों में अतिथि शिक्षकों से काम चलाया जा रहा है। शिक्षकों के वोट से विधान परिषद में जाने वाले एमएलसी कभी भी शिक्षकों की आवाज बनकर इन समस्याओं का निदान निकालने के लिए गंभीर नहीं हैं। वे सरकार पर दबाव बना ही नहीं पाते। डॉ. सिंह ने आगे कहा कि सरकार को चाहिए कि राज्य में गिरती जा रही शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए सबसे पहले विषयवार शिक्षकों के पद सृजित करे और शिक्षकों से केवल शिक्षण कार्य कराए। उन्होंने कहा कि सरकारी स्कूलों के शिक्षक अपनी विभिन्न मांगों को लेकर अक्सर आंदोलनरत रहते हैं, लेकिन सरकार उनकी समस्याओं को दूर नहीं कर रही।
वर्षों से समस्याएं लटका कर रखी जा रही हैं। शिक्षकों के वेतन भुगतान का मामला हो या फिर एरियर भुगतान का, वेतन निर्धारण में गड़बड़ी को दूर करने की बात हो या उनके तबादले की, किसी भी समस्या के निदान के प्रति न तो राज्य सरकार गंभीर है और ना ही शिक्षकों का प्रतिनिधित्व करने वाले एमएलसी। डॉ. सिंह ने संवाद के दौरान कहा कि जिस बिहार के नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए दूसरे देशों से छात्र आते थे, उसी बिहार में शिक्षा की यह बदहाली यहां के लोगों को कचोटती है। आज अगर की शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर लाना है तो सरकार को कड़े कदम उठाने होंगे, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में विषयवार शिक्षकों की नियुक्ति करनी होगी, सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्यों से दूर रखना होगा, तभी हालात सुधरेंगे। शिक्षा में सुधार के लिए सबसे पहले शिक्षकों की दशा को सुधारने की जरूरत है।
डॉ. अभिराम सिंह ने कहा कि शिक्षक समाज की भावी पीढ़ी को गढ़ते हैं। उनको केवल उसी काम की जिम्मेवारी देनी होगी। सरकार को चाहिए कि शिक्षकों को हाशिये से पठन-पाठन की मुख्य धारा में लाये। राज्य में वर्तमान शिक्षा नीति के विभिन्न प्रावधान वक्त के साथ अप्रासंगिक हो गए हैं। उनमें सुधार लाने की जरूरत है। शिक्षकों के वोट से जीतकर जाने वाले जनप्रतिनिधि व धान परिषद में शिक्षा और शिक्षक समाज के हित को लेकर आवाज बुलंद करें। लेकिन आज दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि अधिसंख्य शिक्षक अपने प्रतिनिधि को पहचानते तक नहीं। राज्य में लगातार गिरती शिक्षा व्यवस्था के प्रति इन प्रतिनिधियों और सरकार की जिम्मेवारी तय की जानी चाहिए।
जब तक माध्यमिक, उच्च माध्यमिक विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में विषयवार शिक्षकों, व्याख्याताओं की कमी दूर नहीं की जाएगी तब तक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की बात करना लफ्फाजी के सिवा और कुछ नहीं। राज्य सरकार शिक्षकों को नियोजित, अतिथि शिक्षक, वित्त रहित शिक्षक आदि कोटियों में बांटना बंद करे। यह स्थिति शिक्षक समाज के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है। अलग- अलग मानदेय निर्धारित किया जाना भी न्याय संगत नहीं है।
एरियर भुगतान का मामला, वेतन निर्धारन में गड़बड़ी आदि को प्राथमिकता के आधार पर तुरंत दूर किये जाने की जरूरत है। लेकिन किसी का इस ओर ध्यान नहीं है। ऐसी व्यवस्था से शिक्षक समाज कुंठित हो रहा है, जिसका दुष्प्रभाव शिक्षा पर अभिराम सिंह ने कहा कि जब सरकारी एवं गैर सरकारी शिक्षण संस्थान में पठन-पठान की व्यवस्था समान है तो फिर शिक्षकों को समान काम के बदले समान वेतन का प्रावधान क्यों नहीं हो सकता ? शिक्षा व्यवस्था में लगातार गिरावट हो रही है निजी शिक्षण संस्थान में अच्छे शिक्षकों द्वारा शिक्षा दी जा रही है जिससे प्रतिवर्ष मेडिकल, इंजीनियरिंग एवं यूपीएससी जैसी परीक्षाओं में अच्छा कर रहे हैं। अभी स्नातक जैसा कोर्स भी तीन वर्षों की बजाय पांच वर्षों में भी पूरा नहीं हो पाता। शिक्षक भी इन हालातों से काफी परेशान हैं। डॉ. सिंह ने शिक्षकों को भरोसा दिया कि अगर उनलोगों ने विधान परिषद के चुनाव में मौका दिया तो इन समस्याओं को सदन में पुरजोर तरीके से उठाएंगे और उसे दूर कराएंगे.
Mar 18 2023, 18:20