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उच्च प्राथमिक विद्यालय नगरा में समर कैम्प में बच्चों ने बढ़चढ़ कर ले रहे भाग: समर कैंप में छात्र-छात्राओं को बनाया जा रहा हुनरमंद
संजीव सिंह बलिया! जिले के परिषदीय इस बार गर्मियों की छुट्टी में भी गुलजार रह रहे हैं। बच्चों की मौजमस्ती के लिए प्राईवेट विद्यालयों की तरह ही बलिया जिले सभी उच्च प्राथमिक व कंपोजिट विद्यालयों में समर कैम्प  चल रहा है।  विद्यालयों में शुरू हुए समर कैम्प में पहली बार बच्चे बिना बस्ते के ही पढ़ने के लिए विद्यालय पहुंचें रहे हैं और तीन घंटे तक खूब मौजमस्ती कर रहे है।  विद्यालयों में प्रात: बच्चों का रोली टीका लगाकर वेलकम कॉर्ड देकर स्वागत किया जा  रहा है। इसके बाद योग के साथ ही साथ आर्ट नृत्य गीत संगीत व खेल प्रतियोगिताएं आयोजित की जा रही है। उच्च प्राथमिक विद्यालय व कंपोजिट विद्यालयों में प्रथम सप्ताह में प्रातः कालीन सत्र में योग सिखाने के साथ विद्यार्थियों को सांस्कृतिक विरासत से परिचित कराते हुए लोक नृत्य का भी अभ्यास कराया जा रहा है। विद्यालय  के समर कैंप के शिक्षक  बच्चालाल  व सुनील कुमार  ने संयुक्तरूप से बताया  कि विद्यालय  आकर बच्चों को अच्छा लग रहा है। कैंप में योग कराया गया। फिट रहने की जानकारी बताया कि समर कैंप बहुत उपयोगी है, इसमें पूरे मनोयोग जीवन कौशल का विकास और रचनात्मक गतिविधियों का आनंद ले रहे हैं। ब्लॉक नगरा के बीईओ  रामप्रताप सिंह ने बच्चों के  साथ खेल खेला और संगीत भी सुना।  विद्यालय के छात्रो  की तरफ से बनाया गया समर कैम्प के पोस्टर की खूब तारीफ की। बच्चों की मेंहदी देखकर बहुत ही प्रसन्न हुए। अभिभावकों से बात करते हुए उन्होंने कहा कि समर कैंप का उद्देश्य पढ़ाई के साथ साथ में बच्चों को पारंपरिक लोकनृत्य और कलाओं में पारंगत किया जाए। इसके साथ ही उनके अंदर छिपी हुई प्रतिभा को भी तराशा जाएं। उन्होंने कहा कि ब्लॉक के सभी उच्च प्राथमिक और कम्पोजिट विद्यालयों में समर कैम्प का आयोजन किया जा रहा है। अभिभावक नियमित रूप से तीन घंटे के लिए अपने बच्चों को बिना कागज कलम के विद्यालय में भेजें। बच्चों को मौसमी फल खीरा ग्लूकोज रसना बिस्किट मूंगफली दाना वाली नमकीन भी दी जाएगी। इस मौके पर प्रधानाध्यापक  दयाशंकर राम,  बच्चा लाल, सुनील कुमार, वीरेंद्र यादव ,  वीरेश् कुमार, निर्मल कुमार आदि लोग मौजूद रहे। ब्लॉक के   सभी विद्यालयों में समर कैम्प का आयोजन किया  जा रहा है।
समर कैंप में निखर रहा नौनिहालो का हुनर, खेल-खेल में दिया जा रहा ज्ञान
संजीव सिंह बलिया।शासन के मनसानुसार बैरिया ब्लॉक के कम्पोजिट विद्यालय भिखाछपरा पर संचालित समर कैंप में बच्चों की प्रतिभा निखर रही है। अनुशासन के साथ जीवन कौशल सिखाने के उद्देश्य से आयोजित इस शिविर में बड़ी उत्साह के साथ बच्चे भाग लेकर चित्रकला, संगीत, नृत्य, योग, खेलकूद, कंप्यूटर शिक्षा, सामान्य ज्ञान व व्यक्तित्व विकास का प्रशिक्षण ले रहे हैं। खण्ड शिक्षा अधिकारी बैरिया के निर्देशन में कैम्प का संचालन कर रहे श्यामनन्दन मिश्र एवं पंकज सिंहने अपने संदेश में कहा कि उनका उद्देश्य बल्कि बच्चों को एक सकारात्मक और रचनात्मक वातावरण देना है। प्रयास कर रहे हैं कि प्रत्येक बच्चा कुछ नया सीखे, आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़े और अपने भविष्य की नींव मजबूत करे।कैम्प में छात्र-छात्राओं द्वारा अपनी प्रतिभा का हुनर भी समर कैम्प में दिखाया जा रहा है।
मानसिक स्वास्थ्य शिविर का पीएचसी नगरा पर आयोजन सम्पन्न
ओमप्रकाश वर्मा नगरा(बलिया)। स्थानीय पीएचसी पर चिकित्सा स्वास्थ्य कल्याण विभाग द्वारा आयोजित स्वास्थ्य शिविर में 150 रोगियों का परिक्षण किया गया। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र प्रभारी डा. राहुल कुमार सिंह ने बताया कि महिला पुरुष दोनों मिलाकर 150 आने वाले लोगों का रजिस्ट्रेशन किया गया जिसमें परिक्षणोपरान्त 35 लोगों का ओपीडी हुआ। जिन्हें आवश्यकतानुसार सलाह के साथ दवा की खुराक लेने के लिए प्रेरित किया गया। इस मौके पर डा. अनुष्का सिंह पैथालॉजिस्ट पिसीकोलाजी, डा. अमर कुमार पाल राम ध्यान आदि रहे।
विभिन्न मामलों के दो वारण्टी अभियुक्त को पुलिस ने किया गिरफतार
ओमप्रकाश वर्मा नगरा(बलिया)। स्थानीय थाना क्षेत्र की पुलिस ने न्यायालय सी.जे.एम. बलिया द्वारा निर्गत गिरफ्तारी वारण्ट के क्रम में कुल 02 नफर वारन्टी अभियुक्त को गिरफ्तार कर न्यायालय भेज दिया है। पुलिस अधीक्षक ओमवीर सिंह के कुशल निर्देशन में अपराध एवं अपराधियों के विरुद्ध चलाये जा रहे अभियान के क्रम में अपर पुलिस अधीक्षक (उत्तरी) अनिल कुमार झा के सफल पर्यवेक्षण व क्षेत्राधिकारी रसड़ा आलोक कुमार गुप्ता व थानाध्यक्ष कौशल पाठक थाना नगरा बलिया के कुशल निर्देशन में आज दिनांक बृहस्पतिवार को 02 वारण्टी अभियुक्तगण क्रमशः 1. मु0 सं0 5568/2012 धारा 401भादवि थाना नगरा जनपद बलिया से सम्बन्धित एक वारण्टी हिरा मुसहर पुत्र ढोढ़ा मुसहर सा0 भीमपुरा नं0 2 थाना नगरा जनपद बलिया उम्र करीब 64 वर्ष व 2. वाद संख्या 831/2014 धारा 125(3) सीआरपीसी नुसरत बनाम परवेज आलम थाना सैदपुर जनपद गाजीपुर से सम्बन्धित एक वारण्टी परवेज आलम पुत्र सब्बीर अहमद निवासी कस्बा नगरा थाना नगरा जनपद बलिया उम्र करीब 55 वर्ष को गिरफ्तार किया गया। उपरोक्त गिरफ्तार शुदा वारन्टी को पुलिस ने सम्बन्धित न्यायालय को भेज दिया।
थाना नगरा पर 21 लावारिस वाहनों की हुई नीलामी
ओमप्रकाश वर्मा नगरा(बलिया)। थाना नगरा में पूर्व निर्धारित लावारिस वाहनों की नीलामी घोषणा प्रक्रिया में 21 लावारिस वाहनों नीलामी में कुल 1 लाख 25 हजार एक सौ रुपये के राजस्व का लाभ सरकार के खाते में जमा हुआ। पुलिस महानिदेशक लखनऊ द्वारा चलाये जा रहे “आपरेशन क्लीन” विशेष अभियान के तहत पुलिस अधीक्षक ओमवीर सिंह के निर्देश के क्रम में आज दिनांक बृहस्पतिवार को थाना नगरा पर अपर जिलाधिकारी (वि0रा0) बलिया के आदेश संख्या 93/न्याय सहा0 दिनांक 15 अप्रैल, 2025 के अनुपालन में 21 लावारिस वाहनो की निलामी की प्रकिया उपजिलाधिकारी रसडा, क्षेत्राधिकारी रसडा, वरिष्ठ कोषाधिकारी बलिया, सहायक सम्भागीय परिवहन अधिकारी बलिया व थानाध्यक्ष नगरा की मौजूदगी में कुल 8 बोलीकर्ता उपस्थित हुए जिनकी बोली लागत प्रथम चक्र 125000/- रुपये से प्रारम्भ होकर सप्तम चक्र तक 1,25,100/- रुपये तक समाप्त हुई। अधिकत्तम बोलीकर्ता अशोक तिवारी पुत्र स्व. विश्वनाथ तिवारी ग्राम अम्बेडकर नगर थाना चितबड़ा गाँव जनपद बलिया पर समाप्त हुई । लावारिस वाहनों की नीलामी की प्रक्रिया सकुशल सम्पन्न करायी गयी ।
टीचर्स सेल्फ केयर टीम (TSCT-UP) ने दिवंगत शिक्षामित्र परिवार को यू बढ़ाया मदद का हाथ, दी आर्थिकदिवंगत शिक्षामित्र केपरिवार को मिला 48.35लाख
संजीव सिंह बलिया!प्रदेश के तीन लाख 11 हजार 238 लोगों ने किया 15 रुपये 50 पैसे का अंशदान प्रदेश के शिक्षकों, शिक्षा मित्रों, अनुदेशकों व शिक्षणेत्तर कर्मचारियों क ल्याण के लिए समर्पित संस्था टीचर्स सेल्फ केयर टीम (टीएससीटी) ने जिले के पंदह ब्लाक के संदवापुर की दिवंगत शिक्षामित्र रिंटू राय के परिवार को 48 लाख से अधिक की सहायता उपलब्ध करायी। इसमें प्रदेश के तीन लाख 11 हजार 238 सदस्यों (जिले के 6182) में से प्रत्येक ने 15 रुपये 50 पैसे का अंशदान किया। यह धनराशि सीधे मृतका के भाई बलराम राय के बैंक खाते में पहुंची है। टीएससीटी के जिला संयोजक सतीश सिंह ने बताया कि टीम अपने वैध सदस्यों की मृत्यु पर उनके परिजन को आर्थिक सहायता उपलब्ध कराती है। 15 से 28 मई तक प्रदेश के 20 परिवारों को मदद उपलब्ध कराई गई जिसमें जिले की शिक्षामित्र रिंटू राय का परिवार भी शामिल था। उन्हें 48 लाख से अधिक का आर्थिक सहयोग मिला है। बताया कि टीएससीटी अबतक प्रदेश के 336 परिजनों का सहयोग करा चुकी है। इसमें जिले के छह शिक्षक/शिक्षामित्र क्रमशः सत्येन्द्रनाथ त्रिपाठी (सरयां डीहू भगत, बिल्थरारोड), अशोक यादव (जिगड़ीसर, मनियर), लालजी राम (छितौना मालीपुर, नगरा), दिनेश कुमार दूबे (निपनिया, मनियर), राजकुमार पांडे (बांसडीह) व रिंटू राय (संदवापुर, पंदह) के परिजन शामिल हैं।
अंतर्राष्ट्रीय शैक्षिक समागम में बलिया की महिला शिक्षिकाएं सम्माननित
संजीव सिंह बलिया। बीते सोमवार श्री राम ऑडिटोरियम अयोध्या मे शैक्षिक समागम , सम्मानसमारोह का आयोजन किया गया ,जिसमे बलिया जनपद से माया राय प्रधानाध्यापक प्रा०वि० कंपोजिट सुरही, रंजना पाण्डेय प्रधानाध्यापक प्रा०वि० सवन राजभर बस्ती, और रीता देवी शिक्षामित्र प्रा० वि० भरथीपुर के साथ ही 240 से अधिक शिक्षकों, कवियों, लेखकों और शोधार्थियों को उनके लेखन प्रतिभा के लिए सम्माननित करने के साथ ही 10 पुस्तकों का विमोचन का कार्य भी संम्पन्न हुआ । कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती और प्रभु श्री राम के चरणों में पुष्प अर्पित कर और दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। इस अवसर पर कमलनयन दास, ब्रह्मर्षि डॉ रामविलास वेदांती, नगर विधायक वेद प्रकाश गुप्ता, रुदौली विधायक राम चंद्र यादव, सदस्य विधान परिषद गोपाल अंजान, जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी संतोष कुमार राय, सदस्य शिक्षा सेवा चयन आयोग प्रयागराज डॉ कृष्ण चंद्र वर्मा, पद्मश्री डॉ श्याम बिहारी अग्रवाल, प्राचार्य प्रोफेसर दानपति तिवारी साकेत महाविद्यालय, कृष्ण कुमार मिश्रा प्राचार्य जवाहर नवोदय विद्यालय अयोध्या, रवि शंकर फाउंडर लाइफ साइनिफाई (सेवानिवृत आईएएस) अरुण कुमार आजाद, सहायक आयुक्त भरत चंद्र गुप्ता सहित अन्य अतिथियों केसाथ साथ देश-विदेश से पधारे 240 से अधिक शिक्षकों, कवियों लेखकों की उपस्थिति रही। इस समागम का आयोजन "काब्य सुधा" के सम्पादक मनीष कुमार गुप्ता एवं रीना गुप्ता के द्वारा किया गया।
राशन कार्ड धारकों के लिए बड़ी राहत: केंद्र सरकार ने ₹1000 मासिक सहायता देने की योजना की घोषणा की
अमर बहादुर सिंह बलिया शहर! नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने देश के करोड़ों राशन कार्ड धारकों के लिए एक बड़ी राहत की घोषणा की है। अब राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) के तहत आने वाले सभी लाभार्थियों को हर महीने ₹1000 की सीधी नकद सहायता प्रदान की जाएगी। यह घोषणा आगामी वित्तीय वर्ष 2025 से लागू की जाएगी और इसका उद्देश्य गरीब और निम्न आय वर्ग के नागरिकों को महंगाई के दौर में आर्थिक संबल देना है। योजना का उद्देश्य और पृष्ठभूमि: राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 के तहत पहले से ही देश की बड़ी आबादी को सस्ता अनाज उपलब्ध कराया जा रहा है। इस योजना के तहत पात्र परिवारों को प्रति व्यक्ति प्रति माह 5 किलो अनाज (चावल, गेहूं) ₹1-₹3 प्रति किलो की दर से दिया जाता है। लेकिन अब सरकार ने यह महसूस किया कि केवल खाद्य सहायता ही पर्याप्त नहीं है, और गरीब परिवारों की आवश्यकताएं अनाज से कहीं अधिक हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए सरकार ने ₹1000 की मासिक नकद सहायता देने का निर्णय लिया है ताकि राशन कार्ड धारक अपनी अन्य घरेलू आवश्यकताओं जैसे दवा, शिक्षा, परिवहन आदि में इस धन का उपयोग कर सकें। योजना का लाभ किसे मिलेगा? इस योजना का लाभ उन्हीं लोगों को मिलेगा जो NFSA के तहत पात्र राशन कार्ड धारक हैं। इसमें अंत्योदय अन्न योजना (AAY) और प्राथमिकता श्रेणी (PHH) के लाभार्थी शामिल होंगे। भारत में लगभग 80 करोड़ लोग NFSA के तहत लाभ उठा रहे हैं, जिनमें से करोड़ों परिवार इस नकद सहायता योजना से लाभान्वित होंगे। पात्रता शर्तें: 1. लाभार्थी के पास वैध NFSA राशन कार्ड होना चाहिए। 2. लाभार्थी का बैंक खाता आधार से जुड़ा होना अनिवार्य है। 3. एक परिवार में केवल एक ही सदस्य को ₹1000 की सहायता मिलेगी। राशि का वितरण कैसे होगा? सरकार ने इस योजना को ‘डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर’ (DBT) प्रणाली के अंतर्गत लागू करने का निर्णय लिया है। यानी लाभार्थियों के आधार से जुड़े बैंक खातों में यह राशि हर महीने की निश्चित तारीख को स्वतः ट्रांसफर कर दी जाएगी। इससे भ्रष्टाचार पर रोक लगेगी और पारदर्शिता बनी रहेगी। राज्यों की भूमिका: हालांकि यह एक केंद्र प्रायोजित योजना होगी, लेकिन राज्य सरकारों की भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका होगी। लाभार्थियों की पहचान, खाता सत्यापन, और जन जागरूकता अभियान की जिम्मेदारी राज्य सरकारों को दी जाएगी। सरकार का बयान: केंद्रीय खाद्य मंत्री ने प्रेस वार्ता में कहा, “यह योजना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘गरीब कल्याण’ संकल्प का हिस्सा है। हमारा लक्ष्य है कि कोई भी गरीब खाली पेट न सोए और उसे सम्मानपूर्वक जीवन यापन के लिए आर्थिक सहारा मिल सके।” सार्वजनिक प्रतिक्रिया: इस योजना को लेकर जनता में सकारात्मक प्रतिक्रिया देखी जा रही है। कई सामाजिक संगठनों और अर्थशास्त्रियों ने इसे एक स्वागत योग्य कदम बताया है। उनका मानना है कि इससे न केवल गरीबी कम करने में मदद मिलेगी, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था में नकदी प्रवाह भी बढ़ेगा।
पुण्य श्लोक अर्थात मंत्र की भांति पवित्र देवी अहिल्याबाई होल्कर - डॉ विद्यासागर उपाध्याय त्रिशताब्दी ( 1725 से 2025 ) जन्मोत्सव पर विशेष लेख
संजीव सिंह बलिया! पिछले दिनो होल्कर रजवाड़ा जाने का अवसर प्राप्त हुआ।माता अहिल्याबाई के कक्ष में उनकी प्रतिमा आसान पर विराजमान थी और उनके हाथों में शिवलिंग सुशोभित हो रहा था। मराठा इतिहास का गहन अध्ययन करने के कारण इस भूमि की महत्ता ने मुझे वहीं आसन के सम्मुख बैठ जाने को विवश कर दिया। माता अहिल्याबाई होल्कर को पुण्यश्लोक कहा गया, जिसका अर्थ है "पवित्र मंत्रों की तरह शुद्ध' । माता अहिल्याबाई होल्कर के व्यक्तित्व और कृतित्व पर चर्चा करने से पूर्व थोड़ा उनकी पृष्ठभूमि पर चर्चा कर लें। आपमें से कुछ लोग हो सकता है पानीपत मूवी देखें हों।कुछ लोग खिचड़ी पर्व (मकर संक्रांति ) १४ जनवरी १७६१ के दिन हुए इतिहास के सर्वाधिक भीषण रक्तपात को पढ़े भी हों जिसमें प्रत्येक मराठा परिवार ने अपने किसी ना किसी संबंधी को खोया था।युद्ध आरम्भ होने से पूर्व मराठा सेना कई दिनों से भोजन नहीं कर पाई थी।उस दिन बस गुड बचा था, जिसे पीकर और कड़कती ठंड में केवल साधारण धोती पहनकर मराठों ने प्रातः ठीक नौ बजे युद्ध का बिगुल फूंक दिया।ठीक उसी समय सेना का नेतृत्व कर रहे श्रीमंत सदाशिव राव भाऊ पेशवा ने अपने सहयोगी मल्हार राव होल्कर को गुप्त रूप से निर्देशित किया कि यदि युद्ध में अनहोनी हो जाय तो आप महिलाओं को अवश्य बचा लीजिएगा। भीषण युद्ध प्रारंभ हुआ।अहमद शाह अब्दाली की स्थिति खराब हो गई।इब्राहिम खान गार्दी की तोपों ने अब्दाली का दायां मोर्चा तोड़ दिया।बंदूक दल ने अफगान मोर्चा तहस - नहस कर दिया। महादजी सिंधिया,जानकोजी सिंधिया,पेशवा बाजीराव बल्लाल भट्ट के सुपुत्र शमशेर बहादुर आदि की बहादुरी ने छः फ़ूटे अफगानों के दांत खट्टे कर दिए। अहमद शाह अब्दाली की सेना का प्रमुख सरदार नजाबत खान और फौजदार अब्दुस समद खान मारे गए।मराठा सेना शत्रु दल को गाजर मूली की तरह काटते हुए अपनी योजना के अनुरूप यमुना किनारे होकर दिल्ली की ओर बढ़ने लगी। लेकिन पानीपत में पिछले दो बार के युद्धों की तरह इतिहास ने स्वयं को दुहराया। हाथी पर सवार श्रीमंत विश्वासराव भट्ट पेशवा जो मराठा साम्राज्य के पुणे के पेशवा बालाजी बाजी राव के सबसे बड़े पुत्र और मराठा साम्राज्य की पेशवा की उपाधि के उत्तराधिकारी भी थे को गोली लगी और वो रणभूमि में अपना सर्वोच्च बलिदान दिए।विश्वास राव को आंखों के सामने मरते देख सदाशिव राव विछिप्त होकर अपने हाथी से नीचे उतर गए।हाथी को सेनापति विहीन देख मराठा सेना में भगदड़ मच गई।उसी दौरान मराठों की ओर से लड़ रहे आराधक सिंह अपनी पांच हजार की सेना लेकर अब्दाली से मिल गए। भारत की ओर से लड़ रहे गुलाम अफगानों ने महिलाओं को लूटना शुरू कर दिया।अवध के नवाब शुजाउद्दौला और रुहेला सरदार नजीब पहले से ही गद्दारी कर चुके थे।तीसरे प्रहर तक युद्ध का पासा पलट चुका था।इब्राहिम शहीद हो चुके थे,भारतीय तोपें खामोश थीं।अब्दाली की ऊंटों पर लदी छोटी जंबूरक तोपें आग उगल रही थीं। मराठों का चौकोर व्यूह दुर्रानी तुलगामा व्यूह में चारों ओर से बुरी तरह फंस चुका था।सारे सरदार मातृभूमि की बलिवेदी पर शहीद हो चुके थे। अब मल्हार राव होल्कर के परीक्षा की घड़ी थी।अपने शहीद सेनापति के निर्देशानुसार महिलाओं को सुरक्षित घेरे के अंदर लेकर आगे बढ़े।भीषण रक्तपात हुआ।लेकिन अदम्य शौर्य का परिचय देते हुए वैरी दल को मात देकर सब स्त्री समूह सहित सुरक्षित भरतपुर तक पहुंच गए।आगे जाट राजा सूरजमल की सहायता से पार्वती बाई और अन्य महिलाओं को पूर्णतः सुरक्षा में पुणे तक पहुंचाया।बहुत से इतिहासकार मल्हार राव होल्कर पर पानीपत के युद्ध से भागने का भी आरोप लगाते हैं।लेकिन मैं डॉ विद्यासागर अनेक मंचों से तर्क और तथ्य से इसे गलत सिद्ध कर चुका हूँ। इस संक्षिप्त पृष्ठभूमि के उपरान्त एक दृष्टि डालते हैं माता अहिल्याबाई होल्कर के जीवन वृत्त पर।अहिल्याबाई होल्कर का जन्म ३१ मई १७२५ को महाराष्ट्र के अहमदनगर के छौंड़ी गांव में हुआ था। उनके पिता मंकोजी राव शिंदे, अपने गांव के पाटिल थे। उस दौर में महिलाओं को स्कूल नहीं भेजा जाता था, लेकिन अहिल्याबाई के पिता ने उन्हें लिखने-पढ़ने लायक पढ़ाया।यह वो दौर था जब औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल साम्राज्य पतन की ओर था और मराठा अपने साम्राज्य का विस्तार करने में जुटे हुए थे। पेशवा बाजीराव ने मल्हार राव होल्कर को मालवा की जागीर सौंपी, जिन्होंने अपने बाहुबल से इंदौर राज्य बसाया। उपरोक्त वर्णित इंदौर राज्य व होल्कर साम्राज्य के संस्थापक परम वीर श्रीमंत महाराज मल्हार राव होल्कर और रानी गौतमाबाई के पुत्र थे खंडेराव होल्कर जिन्होंने दिल्ली के भरे दरबार में मुग़ल बादशाह को झुकने पर विवश कर दिया था। वह बचपन से ही राज काज में काफी रुचि लेते थे, जिसके कारण उन्होंने अपने पिता के साथ मिलकर छोटी सी आयु में स्वतंत्र होकर लड़ाई लड़ी थी। उनका स्वभाव भले ही क्रोध भरा रहा था, लेकिन वो वीर और साहसी व्यक्ति थे।खंडेराव होल्कर ने अपने पिता से युद्ध कला की शिक्षा ली। जिसमें वो काफी निपुण हो गए थे।उनका विवाह देवी अहिल्याबाई के साथ हुआ।उनके एक पुत्र मालेराव और पुत्री थीं मुक्ता।निजाम और मराठों के बीच युद्ध की शुरूआत हुई तो खंडेराव ने उस युद्ध में बेहतरीन प्रदर्शन दिखाते हुए युद्ध जीता और निजाम पर विजय हासिल की। इसके बाद मालवा में मुगलों की ओर से शाजापुर के कमाविसदार को लूटा गया, बस्तियों को जलाया गया, और कई लोगों को जान से मार दिया गया। इसकी खबर जैसे ही होल्कर सैनिकों को लगी तो खंडेराव होलकर ने मीरमानी खान पर हमला कर उसे मार गिराया। मराठो का पुर्तगालियों के साथ युद्ध चल रहा था, तभी खंडेराव ने संताजी वाघ के साथ मिलकर तारापुर के किले के नीचे बारूदी सुरंगे बिछाकर धमाका कराया,जिसके कारण किले की दीवारें ध्वस्त हो गईं और मराठों ने घमासान युद्ध कर किले को हासिल कर लिया। आगे चल कर खण्डेराव ने चार हजार मराठा सेना के साथ मिलकर जाटों पर धावा बोला।मराठा सैनिकों ने पहाड़ और जंगलों में छिपकर जाटों पर आक्रमण किया और अपना अधिकार हासिल किया। जिस समय मराठा सैनिकों ने हमला किया उस समय महाराजा सूरजमल जाट के पुत्र जवाहर सिंह बरसाना में मौजूद थे। डर इतना ज्यादा बढ़ गया कि उन्होंने बरसाना छोड़ने का फैसला लिया और डींग पहुंच गए। वहीं उन्होंने पनाह ली। जिसके बाद खंडेराव ने जाटों के शहरों पर अपना हक जमाना शुरू कर दिया। साथ ही अपने राज्य को वहां स्थापित भी किया।खंडेराव होल्कर का खौफ इतना ज्यादा हो गया था कि उनसे मुगल बादशाह भी डरने लगे थे। एक बार जब खंडेराव होलकर दिल्ली पहुंचे तो दिल्ली में भगदड़ मच गई। कुछ लोग उस समय अपने घर छोड़कर ही भाग खड़े हुए। मुगल बादशाह भी उनके आने से खौफ में थे। लेकिन खंडेराव सिर्फ बातों को सुलझाने दिल्ली पहुंचे थे, युद्ध के लिए नहीं। दिल्ली के बादशाह ने खंडेराव को खुश करने की काफी कोशिश की।उन्होंने अशर्फियां, छ: वस्त्रों की खिलअत, जड़ाऊ सरपेच, तलवार और हाथी उनको भेंट स्वरूप दिया,लेकिन खंडेराव ने उन सभी उपहारो को लेने से मना कर दिया। वो उस समय सिर्फ मीरबख्शी के पास आए थे, उनसे विशेष विषय पर चर्चा करने ना कि कोई सरोकार या उपहार लेने। खंडेराव ने ऐसा ही किया उन्होंने मीरबख्शी के साथ युद्ध से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की और उसके बाद दिल्ली से रवाना हो गए और अपने शहर आ गए। १७ मार्च १७५४ ई० को खण्डेराव होल्कर युद्ध का संचालन कर रहे थे उसी समय घात लगाये बैठे जाट सैनिकों ने किले में घुसकर उनपर गोलियों से हमला कर दिया। हमले में एक गोली खण्डेराव होलकर को भी लगी,जिसके बाद उनकी मृत्यृ हो गई। उस समय खंडेराव होल्कर की उम्र ३१ साल थी।खंडेराव होल्कर की मृत्यु के बाद उनके पिता मल्हार राव होल्कर ने सती प्रथा को खत्म करते हुए देवी अहिल्याबाई को सती होने से रोका । वो अपने पति की मृत्यृ के बाद भी अपने हक की लड़ाई लड़ती रही। खंडेराव की मृत्यु के बाद, मल्हार राव की भी मृत्यु हो गई। जिसके बाद खंडेराव होल्कर के इकलौते बेटे ने अपनी मां अहिल्याबाई होल्कर के संरक्षण में कम उम्र में ही इंदौर की गद्दी संभाली और अपना शासन शुरू कर दिया। मानसिक बीमारी से माता अहिल्याबाई होल्कर के अपने पुत्र की मृत्यु के उपरान्त उन्होंने मल्हार राव के दत्तक पुत्र तुकोजी राव होल्कर को सेना का सेनापति नियुक्त किया।उन्होंने १७९२ ईस्वी में चार बटालियन बनाकर अपनी सेना को आधुनिक बनाने में मदद करने के लिए फ्रांसीसी शेवेलियर डुड्रेनेक को नियुक्त किया। उस समय के एक और नियम को तोड़ते हुए देवी अहिल्याबाई ने पर्दा प्रथा (महिलाओं का एकांतवास) का पालन नहीं किया। वह सभी प्रजा के लिए सुलभ होने के लिए जानी जाती थीं और रोज़ाना सभाएँ आयोजित करती थीं जहाँ लोग उनसे संपर्क कर सकते थे। उन्होंने नागरिकों के विवादों में न्याय और मध्यस्थता के लिए अदालतें स्थापित कीं। उस समय के लिए असामान्य रूप से अहिल्याबाई ने अपनी बेटी की शादी एक आम आदमी से कर दी जिसने युद्ध के मैदान में अद्भुत वीरता दिखाई।अहिल्याबाई ने अपने शासनकाल में लोगों के रहने के लिए बहुत सी धर्मशालाएं भी बनवाईं।ये सभी धर्मशालाएं उन्होंने मुख्य तीर्थस्थान जैसे गुजरात के द्वारका, काशी विश्वनाथ, वाराणसी का गंगा घाट, उज्जैन, नाशिक, विष्णुपद मंदिर और बैजनाथ के आस-पास ही बनवाईं।मुगल आक्रमणकारियों के द्वारा तोड़े हुए मंदिरों को देखकर ही उन्होंने सोमनाथ में शिवजी का मंदिर बनवाया,जो आज भी हिन्दुओं द्वारा पूजा जाता है। महारानी अहिल्याबाई ने अपने साम्राज्य महेश्वर और इंदौर में काफी मंदिरों का निर्माण भी किया था। इसके अलावा उन्होंने लोगों के लिए घाट बंधवाए, कुओं और बावड़ियों का निर्माण किया, मार्ग बनवाए-सुधरवाए, भूखों के लिए अन्नसत्र (अन्न क्षेत्र) खोले, प्यासों के लिए प्याऊ बनाईं, मंदिरों में विद्वानों की नियुक्ति की।अपने जीवनकाल में ही इन्हें जनता ‘देवी’ समझने और कहने लगी थी। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर बनने से पूर्व और वर्तमान में भी मै हमेशा बलिया से बनारस बाबा विश्वनाथ के दर्शन हेतु जाता रहता हूं।उम्मीद है आप भी गए होंगे। गंगा मईया में स्नान के उपरान्त हम जब सीढ़ियों से ऊपर चढ़कर मंदिर परिसर में प्रवेश करते है तो सर्वप्रथम आदि शंकराचार्य और भारत माता के साथ ही माता अहिल्याबाई के भी दर्शन होते हैं।मूल विश्वनाथ मन्दिर को मुस्लिम आक्रांताओं ने ध्वस्त कर दिया। ज्ञान की वापी पर ज्ञानवापी मस्जिद खड़ी कर दी गई जिसकी दीवारें आज भी चीख - चीख कर उसे हिन्दू मंदिर प्रमाणित करती हैं। नंदी भगवान का मुंह आज भी अपने विश्वनाथ जी की ओर उद्धार हेतु प्रतीक्षारत है।उस समय जन भावना का सम्मान और अपनी उदारता का परिचय देते हुए माता अहिल्याबाई होल्कर ने मूल विश्वनाथ मन्दिर के बगल में भूमि खरीदकर भव्य शिव मंदिर का निर्माण कराया, जहां आज हम पूजन अर्चन और अभिषेक कर रहे हैं।राज्य की अतिशय चिन्ता और प्यारे लोगों के मृत्यु के शोक-भार को देवी अहिल्याबाई का शरीर अधिक नहीं संभाल सका और १३ अगस्त सन् १७९५ ईस्वी को उनकी जीवन-लीला समाप्त हो गई। भारतवर्ष ने एक महान समाज सुधारक, कुशल प्रजापालक और दूरदर्शी देवी को सदैव के लिए खो दिया। आगामी ३१ मई २०२५ ईस्वी को माता अहिल्याबाई होल्कर का त्रिशताब्दी जन्मोत्सव है जिसे मनाने हेतु हम सब उत्सुक और आह्लादित है। हे देवी यह भारतवर्ष आपके व्यक्तित्व और कृतित्व का सदैव ऋणी रहेगा। ©डॉ विद्यासागर उपाध्याय
पुण्य श्लोक अर्थात मंत्र की भांति पवित्र देवी अहिल्याबाई होल्कर - डॉ विद्यासागर उपाध्याय त्रिशताब्दी ( 1725 से 2025 ) जन्मोत्सव पर विशेष लेख
संजीव सिंह बलिया! पिछले दिनो होल्कर रजवाड़ा जाने का अवसर प्राप्त हुआ।माता अहिल्याबाई के कक्ष में उनकी प्रतिमा आसान पर विराजमान थी और उनके हाथों में शिवलिंग सुशोभित हो रहा था। मराठा इतिहास का गहन अध्ययन करने के कारण इस भूमि की महत्ता ने मुझे वहीं आसन के सम्मुख बैठ जाने को विवश कर दिया। माता अहिल्याबाई होल्कर को पुण्यश्लोक कहा गया, जिसका अर्थ है "पवित्र मंत्रों की तरह शुद्ध' । माता अहिल्याबाई होल्कर के व्यक्तित्व और कृतित्व पर चर्चा करने से पूर्व थोड़ा उनकी पृष्ठभूमि पर चर्चा कर लें। आपमें से कुछ लोग हो सकता है पानीपत मूवी देखें हों।कुछ लोग खिचड़ी पर्व (मकर संक्रांति ) १४ जनवरी १७६१ के दिन हुए इतिहास के सर्वाधिक भीषण रक्तपात को पढ़े भी हों जिसमें प्रत्येक मराठा परिवार ने अपने किसी ना किसी संबंधी को खोया था।युद्ध आरम्भ होने से पूर्व मराठा सेना कई दिनों से भोजन नहीं कर पाई थी।उस दिन बस गुड बचा था, जिसे पीकर और कड़कती ठंड में केवल साधारण धोती पहनकर मराठों ने प्रातः ठीक नौ बजे युद्ध का बिगुल फूंक दिया।ठीक उसी समय सेना का नेतृत्व कर रहे श्रीमंत सदाशिव राव भाऊ पेशवा ने अपने सहयोगी मल्हार राव होल्कर को गुप्त रूप से निर्देशित किया कि यदि युद्ध में अनहोनी हो जाय तो आप महिलाओं को अवश्य बचा लीजिएगा। भीषण युद्ध प्रारंभ हुआ।अहमद शाह अब्दाली की स्थिति खराब हो गई।इब्राहिम खान गार्दी की तोपों ने अब्दाली का दायां मोर्चा तोड़ दिया।बंदूक दल ने अफगान मोर्चा तहस - नहस कर दिया। महादजी सिंधिया,जानकोजी सिंधिया,पेशवा बाजीराव बल्लाल भट्ट के सुपुत्र शमशेर बहादुर आदि की बहादुरी ने छः फ़ूटे अफगानों के दांत खट्टे कर दिए। अहमद शाह अब्दाली की सेना का प्रमुख सरदार नजाबत खान और फौजदार अब्दुस समद खान मारे गए।मराठा सेना शत्रु दल को गाजर मूली की तरह काटते हुए अपनी योजना के अनुरूप यमुना किनारे होकर दिल्ली की ओर बढ़ने लगी। लेकिन पानीपत में पिछले दो बार के युद्धों की तरह इतिहास ने स्वयं को दुहराया। हाथी पर सवार श्रीमंत विश्वासराव भट्ट पेशवा जो मराठा साम्राज्य के पुणे के पेशवा बालाजी बाजी राव के सबसे बड़े पुत्र और मराठा साम्राज्य की पेशवा की उपाधि के उत्तराधिकारी भी थे को गोली लगी और वो रणभूमि में अपना सर्वोच्च बलिदान दिए।विश्वास राव को आंखों के सामने मरते देख सदाशिव राव विछिप्त होकर अपने हाथी से नीचे उतर गए।हाथी को सेनापति विहीन देख मराठा सेना में भगदड़ मच गई।उसी दौरान मराठों की ओर से लड़ रहे आराधक सिंह अपनी पांच हजार की सेना लेकर अब्दाली से मिल गए। भारत की ओर से लड़ रहे गुलाम अफगानों ने महिलाओं को लूटना शुरू कर दिया।अवध के नवाब शुजाउद्दौला और रुहेला सरदार नजीब पहले से ही गद्दारी कर चुके थे।तीसरे प्रहर तक युद्ध का पासा पलट चुका था।इब्राहिम शहीद हो चुके थे,भारतीय तोपें खामोश थीं।अब्दाली की ऊंटों पर लदी छोटी जंबूरक तोपें आग उगल रही थीं। मराठों का चौकोर व्यूह दुर्रानी तुलगामा व्यूह में चारों ओर से बुरी तरह फंस चुका था।सारे सरदार मातृभूमि की बलिवेदी पर शहीद हो चुके थे। अब मल्हार राव होल्कर के परीक्षा की घड़ी थी।अपने शहीद सेनापति के निर्देशानुसार महिलाओं को सुरक्षित घेरे के अंदर लेकर आगे बढ़े।भीषण रक्तपात हुआ।लेकिन अदम्य शौर्य का परिचय देते हुए वैरी दल को मात देकर सब स्त्री समूह सहित सुरक्षित भरतपुर तक पहुंच गए।आगे जाट राजा सूरजमल की सहायता से पार्वती बाई और अन्य महिलाओं को पूर्णतः सुरक्षा में पुणे तक पहुंचाया।बहुत से इतिहासकार मल्हार राव होल्कर पर पानीपत के युद्ध से भागने का भी आरोप लगाते हैं।लेकिन मैं डॉ विद्यासागर अनेक मंचों से तर्क और तथ्य से इसे गलत सिद्ध कर चुका हूँ। इस संक्षिप्त पृष्ठभूमि के उपरान्त एक दृष्टि डालते हैं माता अहिल्याबाई होल्कर के जीवन वृत्त पर।अहिल्याबाई होल्कर का जन्म ३१ मई १७२५ को महाराष्ट्र के अहमदनगर के छौंड़ी गांव में हुआ था। उनके पिता मंकोजी राव शिंदे, अपने गांव के पाटिल थे। उस दौर में महिलाओं को स्कूल नहीं भेजा जाता था, लेकिन अहिल्याबाई के पिता ने उन्हें लिखने-पढ़ने लायक पढ़ाया।यह वो दौर था जब औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल साम्राज्य पतन की ओर था और मराठा अपने साम्राज्य का विस्तार करने में जुटे हुए थे। पेशवा बाजीराव ने मल्हार राव होल्कर को मालवा की जागीर सौंपी, जिन्होंने अपने बाहुबल से इंदौर राज्य बसाया। उपरोक्त वर्णित इंदौर राज्य व होल्कर साम्राज्य के संस्थापक परम वीर श्रीमंत महाराज मल्हार राव होल्कर और रानी गौतमाबाई के पुत्र थे खंडेराव होल्कर जिन्होंने दिल्ली के भरे दरबार में मुग़ल बादशाह को झुकने पर विवश कर दिया था। वह बचपन से ही राज काज में काफी रुचि लेते थे, जिसके कारण उन्होंने अपने पिता के साथ मिलकर छोटी सी आयु में स्वतंत्र होकर लड़ाई लड़ी थी। उनका स्वभाव भले ही क्रोध भरा रहा था, लेकिन वो वीर और साहसी व्यक्ति थे।खंडेराव होल्कर ने अपने पिता से युद्ध कला की शिक्षा ली। जिसमें वो काफी निपुण हो गए थे।उनका विवाह देवी अहिल्याबाई के साथ हुआ।उनके एक पुत्र मालेराव और पुत्री थीं मुक्ता।निजाम और मराठों के बीच युद्ध की शुरूआत हुई तो खंडेराव ने उस युद्ध में बेहतरीन प्रदर्शन दिखाते हुए युद्ध जीता और निजाम पर विजय हासिल की। इसके बाद मालवा में मुगलों की ओर से शाजापुर के कमाविसदार को लूटा गया, बस्तियों को जलाया गया, और कई लोगों को जान से मार दिया गया। इसकी खबर जैसे ही होल्कर सैनिकों को लगी तो खंडेराव होलकर ने मीरमानी खान पर हमला कर उसे मार गिराया। मराठो का पुर्तगालियों के साथ युद्ध चल रहा था, तभी खंडेराव ने संताजी वाघ के साथ मिलकर तारापुर के किले के नीचे बारूदी सुरंगे बिछाकर धमाका कराया,जिसके कारण किले की दीवारें ध्वस्त हो गईं और मराठों ने घमासान युद्ध कर किले को हासिल कर लिया। आगे चल कर खण्डेराव ने चार हजार मराठा सेना के साथ मिलकर जाटों पर धावा बोला।मराठा सैनिकों ने पहाड़ और जंगलों में छिपकर जाटों पर आक्रमण किया और अपना अधिकार हासिल किया। जिस समय मराठा सैनिकों ने हमला किया उस समय महाराजा सूरजमल जाट के पुत्र जवाहर सिंह बरसाना में मौजूद थे। डर इतना ज्यादा बढ़ गया कि उन्होंने बरसाना छोड़ने का फैसला लिया और डींग पहुंच गए। वहीं उन्होंने पनाह ली। जिसके बाद खंडेराव ने जाटों के शहरों पर अपना हक जमाना शुरू कर दिया। साथ ही अपने राज्य को वहां स्थापित भी किया।खंडेराव होल्कर का खौफ इतना ज्यादा हो गया था कि उनसे मुगल बादशाह भी डरने लगे थे। एक बार जब खंडेराव होलकर दिल्ली पहुंचे तो दिल्ली में भगदड़ मच गई। कुछ लोग उस समय अपने घर छोड़कर ही भाग खड़े हुए। मुगल बादशाह भी उनके आने से खौफ में थे। लेकिन खंडेराव सिर्फ बातों को सुलझाने दिल्ली पहुंचे थे, युद्ध के लिए नहीं। दिल्ली के बादशाह ने खंडेराव को खुश करने की काफी कोशिश की।उन्होंने अशर्फियां, छ: वस्त्रों की खिलअत, जड़ाऊ सरपेच, तलवार और हाथी उनको भेंट स्वरूप दिया,लेकिन खंडेराव ने उन सभी उपहारो को लेने से मना कर दिया। वो उस समय सिर्फ मीरबख्शी के पास आए थे, उनसे विशेष विषय पर चर्चा करने ना कि कोई सरोकार या उपहार लेने। खंडेराव ने ऐसा ही किया उन्होंने मीरबख्शी के साथ युद्ध से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की और उसके बाद दिल्ली से रवाना हो गए और अपने शहर आ गए। १७ मार्च १७५४ ई० को खण्डेराव होल्कर युद्ध का संचालन कर रहे थे उसी समय घात लगाये बैठे जाट सैनिकों ने किले में घुसकर उनपर गोलियों से हमला कर दिया। हमले में एक गोली खण्डेराव होलकर को भी लगी,जिसके बाद उनकी मृत्यृ हो गई। उस समय खंडेराव होल्कर की उम्र ३१ साल थी।खंडेराव होल्कर की मृत्यु के बाद उनके पिता मल्हार राव होल्कर ने सती प्रथा को खत्म करते हुए देवी अहिल्याबाई को सती होने से रोका । वो अपने पति की मृत्यृ के बाद भी अपने हक की लड़ाई लड़ती रही। खंडेराव की मृत्यु के बाद, मल्हार राव की भी मृत्यु हो गई। जिसके बाद खंडेराव होल्कर के इकलौते बेटे ने अपनी मां अहिल्याबाई होल्कर के संरक्षण में कम उम्र में ही इंदौर की गद्दी संभाली और अपना शासन शुरू कर दिया। मानसिक बीमारी से माता अहिल्याबाई होल्कर के अपने पुत्र की मृत्यु के उपरान्त उन्होंने मल्हार राव के दत्तक पुत्र तुकोजी राव होल्कर को सेना का सेनापति नियुक्त किया।उन्होंने १७९२ ईस्वी में चार बटालियन बनाकर अपनी सेना को आधुनिक बनाने में मदद करने के लिए फ्रांसीसी शेवेलियर डुड्रेनेक को नियुक्त किया। उस समय के एक और नियम को तोड़ते हुए देवी अहिल्याबाई ने पर्दा प्रथा (महिलाओं का एकांतवास) का पालन नहीं किया। वह सभी प्रजा के लिए सुलभ होने के लिए जानी जाती थीं और रोज़ाना सभाएँ आयोजित करती थीं जहाँ लोग उनसे संपर्क कर सकते थे। उन्होंने नागरिकों के विवादों में न्याय और मध्यस्थता के लिए अदालतें स्थापित कीं। उस समय के लिए असामान्य रूप से अहिल्याबाई ने अपनी बेटी की शादी एक आम आदमी से कर दी जिसने युद्ध के मैदान में अद्भुत वीरता दिखाई।अहिल्याबाई ने अपने शासनकाल में लोगों के रहने के लिए बहुत सी धर्मशालाएं भी बनवाईं।ये सभी धर्मशालाएं उन्होंने मुख्य तीर्थस्थान जैसे गुजरात के द्वारका, काशी विश्वनाथ, वाराणसी का गंगा घाट, उज्जैन, नाशिक, विष्णुपद मंदिर और बैजनाथ के आस-पास ही बनवाईं।मुगल आक्रमणकारियों के द्वारा तोड़े हुए मंदिरों को देखकर ही उन्होंने सोमनाथ में शिवजी का मंदिर बनवाया,जो आज भी हिन्दुओं द्वारा पूजा जाता है। महारानी अहिल्याबाई ने अपने साम्राज्य महेश्वर और इंदौर में काफी मंदिरों का निर्माण भी किया था। इसके अलावा उन्होंने लोगों के लिए घाट बंधवाए, कुओं और बावड़ियों का निर्माण किया, मार्ग बनवाए-सुधरवाए, भूखों के लिए अन्नसत्र (अन्न क्षेत्र) खोले, प्यासों के लिए प्याऊ बनाईं, मंदिरों में विद्वानों की नियुक्ति की।अपने जीवनकाल में ही इन्हें जनता ‘देवी’ समझने और कहने लगी थी। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर बनने से पूर्व और वर्तमान में भी मै हमेशा बलिया से बनारस बाबा विश्वनाथ के दर्शन हेतु जाता रहता हूं।उम्मीद है आप भी गए होंगे। गंगा मईया में स्नान के उपरान्त हम जब सीढ़ियों से ऊपर चढ़कर मंदिर परिसर में प्रवेश करते है तो सर्वप्रथम आदि शंकराचार्य और भारत माता के साथ ही माता अहिल्याबाई के भी दर्शन होते हैं।मूल विश्वनाथ मन्दिर को मुस्लिम आक्रांताओं ने ध्वस्त कर दिया। ज्ञान की वापी पर ज्ञानवापी मस्जिद खड़ी कर दी गई जिसकी दीवारें आज भी चीख - चीख कर उसे हिन्दू मंदिर प्रमाणित करती हैं। नंदी भगवान का मुंह आज भी अपने विश्वनाथ जी की ओर उद्धार हेतु प्रतीक्षारत है।उस समय जन भावना का सम्मान और अपनी उदारता का परिचय देते हुए माता अहिल्याबाई होल्कर ने मूल विश्वनाथ मन्दिर के बगल में भूमि खरीदकर भव्य शिव मंदिर का निर्माण कराया, जहां आज हम पूजन अर्चन और अभिषेक कर रहे हैं।राज्य की अतिशय चिन्ता और प्यारे लोगों के मृत्यु के शोक-भार को देवी अहिल्याबाई का शरीर अधिक नहीं संभाल सका और १३ अगस्त सन् १७९५ ईस्वी को उनकी जीवन-लीला समाप्त हो गई। भारतवर्ष ने एक महान समाज सुधारक, कुशल प्रजापालक और दूरदर्शी देवी को सदैव के लिए खो दिया। आगामी ३१ मई २०२५ ईस्वी को माता अहिल्याबाई होल्कर का त्रिशताब्दी जन्मोत्सव है जिसे मनाने हेतु हम सब उत्सुक और आह्लादित है। हे देवी यह भारतवर्ष आपके व्यक्तित्व और कृतित्व का सदैव ऋणी रहेगा। ©डॉ विद्यासागर उपाध्याय