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मुर्शिदाबाद हिंसा के बाद यूसुफ पठान पर बढ़ा विवाद, क्यों नाखुश है तृणमूल?

#yusuf_pathan_absent_during_murshidabad_violence

वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के खिलाफ पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में हिंसा हुई थी। बीते दिनों हुई हिंसा के बाद हालात तनावपूर्ण है। भाजपा इस हिंसा के लिए लगातार सीएम ममता बनर्जी पर हमलावर है। वहीं, ममता बनर्जी समेत तृणमूल कांग्रेस के कई नेता भाजपा पर हिंसा को भड़काने का आरोप लगा रहे हैं। इस बीच मुर्शिदाबाद में हुई हिंसा को लेकर बहरामपुर सीट से सांसद यूसुफ पठान की भी काफी आलोचना हो रही है। दरअसल, सांसद यूसुफ पठान की अनुपस्थिति ने तृणमूल के भीतर नाराजगी पैदा की है। टीएमसी के अंदर ही उनका विरोध हो रहा है।

मुर्शिदाबाद हिंसा में तीन लोगों की जान चली गई है और 270 से ज्यादा लोग गिरफ्तार हुए हैं। वहीं यूसुफ पठान ने हिंसा के समय चाय पीते हुए तस्वीरें पोस्ट करके लोगों के गुस्से को बढ़ा दिया है। पठान ने इंस्टाग्राम पर चाय पीते हुए तस्वीरें पोस्ट की। उन्होंने लिखा कि आसान दोपहर अच्छी चाय और शांत वातावरण। बस पल का आनंद ले रहा हूं। उनकी इस पोस्ट से हंगामा मच गया। 42 वर्षीय क्रिकेटर से नेता बने पठान विपक्ष के निशाने पर आ गए।

बीजेपी के साथ टीएमसी में भी विरोध

बीजेपी ने मौके को भुनाते हुए सत्तारूढ़ टीएमसी पर तीखा हमला बोला। पश्चिम बंगाल बीजेपी अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री सुकांत मजूमदार ने कहा, टीएमसी नेताओं की शह में बंगाल जल रहा है, लेकिन टीएमसी सांसद यूसुफ पठान चाय पीते हुए व्यस्त हैं, जब हिंदू मारे जा रहे हैं। यही टीएमसी का असली चेहरा है।

इस पूरे मामले में बीजेपी जहां सवाल उठा रही है, वहीं टीएमसी के कुछ नेता सीधे पठान के विरोध में उतर आए हैं। टीएमसी नेताओं में गुस्से का आलम यह है कि एक विधायक ने पठान को अगले चुनाव में पार्टी से टिकट न देने की गुजारिश की है।

वह बाहरी हैं और राजनीति में नए हैं- अबू ताहिर

इधर, सत्तारूढ़ पार्टी ने दंगा प्रभावित इलाकों में कई शांति बैठकें की हैं। इन बैठकों में जिले के दो अन्य सांसद- मुर्शिदाबाद के सांसद अबू ताहिर खान और जंगीपुर के सांसद खलीलुर्रहमान और स्थानीय पार्टी के विधायक शामिल हुए। अबू ताहिर ने कहा कि वह (यूसुफ पठान) बाहरी हैं और राजनीति में नए हैं। उन्होंने अब तक दूर रहने का फैसला किया। लेकिन इससे लोगों को गलत संदेश जाता है। हमारे सांसद, विधायक और यहां तक कि बूथ कार्यकर्ता भी लोगों तक पहुंच रहे हैं। अबू ताहिर ने यह भी कहा कि शमशेरगंज में एक शांति बैठक थी। मैं वहां पहुंचने के लिए 100 किलोमीटर तक गया। सांसद खलीलुर्रहमान और कई टीएमसी विधायक भी वहां मौजूद थे। लेकिन वह अनुपस्थित थे। कोई यह नहीं कह सकता कि यह मेरा इलाका नहीं है और ये मेरे लोग नहीं हैं, इसलिए मैं नहीं जाऊंगा।

अगली बार पार्टी का टिकट नहीं देने की अपील

भरतपुर के टीएमसी विधायक हुमायूं कबीर ने पठान पर हमला करते हुए कहा कि वह एक प्रसिद्ध क्रिकेटर हैं, जो गुजरात में रहते हैं। उन्होंने लोगों के वोटों से कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी को लोकसभा चुनाव में हराया। यह सज्जन अब मतदाताओं के साथ खेल खेल रहे हैं। वह अपनी मर्जी से काम कर रहे हैं। विधायक हुमायूं कबीर ने यह भी कहा कि यूसुफ पठान को सांसद बने हुए लगभग एक साल हो गया है। अगर वह अपना व्यवहार नहीं बदलते हैं और लोगों तक पहुंचने की कोशिश नहीं करते हैं, तो मैं पार्टी के शीर्ष नेताओं से उनकी शिकायत करूंगा। मैं यह सुनिश्चित करने की कोशिश करूंगा कि अगली बार उन्हें पार्टी का टिकट न मिले।

अधीर रंजन चौधरी को हराकर सांसद बने पठान

बता दें कि बहरमपुर, मुर्शिदाबाद जिले की तीन लोकसभा सीटों में से एक है। बाकी दो सीटें जंगीपुर और मुर्शिदाबाद भी तृणमूल कांग्रेस के पास हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में टीएमसी के टिकट पर अपनी चुनावी शुरुआत करते हुए पठान ने कांग्रेस के दिग्गज नेता और पांच बार के बहरमपुर के सांसद अधीर रंजन चौधरी को 85,022 वोटों से हराकर सबको चौंका दिया था।

क्या है अनुच्छेद 142, जिसे उपराष्ट्रपति धनखड़ ने “न्यूक्लियर मिसाइल” बताया

#whatisarticle_142

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के न्यायपालिका पर दिए गए बयान पर चर्चा छिड़ गई है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका द्वारा कार्यपालिका और विधायिका में हस्तक्षेप को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने अनुच्छेद 142 को न्यायपालिका के लिए "न्यूक्लियर मिसाइल" बताते हुए कहा कि इसका उपयोग लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को दरकिनार करने के लिए किया जा रहा है।

अब सवाल ये है कि अनुच्छेद 142 क्या है? जिसे उपराष्ट्रपति ने 'न्यूक्लियर मिसाइल' करार दिया है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 एक ऐसा प्रावधान है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट को कुछ विशेषाधिकार मिले हुए हैं। इस अनुच्छेद के जरिए जिन मामलों में अभी तक कोई कानून नहीं बना है, उन मामलों में सुप्रीम कोर्ट फैसला सुना सकता है। हालांकि यह फैसला संविधान का उल्लंघन करने वाला ना हो। यह न्यायालय को कानून के अनुसार ऐसा कोई भी आदेश देने की अनुमति देता है जो न्याय के हित में हो। यह अनुच्छेद न्यायालय को विवेकाधीन शक्ति प्रदान करता है, जिसका अर्थ है कि न्यायालय किसी भी मामले में अपनी समझ के अनुसार फैसला ले सकता है। इस अनुच्छेद का मुख्य उद्देश्य पूर्ण न्याय सुनिश्चित करना है। यह अनुच्छेद न्यायालय को विभिन्न परिस्थितियों में लचीलापन प्रदान करता है।

संविधान में कैसे शामिल हुआ अनुच्छेद 142?

सुप्रीम कोर्ट ऑब्जर्बर की साई स्पंदना बताती हैं कि जब संविधान बन रहा था, तब अनुच्छेद 118 को बिना किसी बहस के मान लिया गया था। मतलब कोर्ट को ही यह तय करना था कि इस अनुच्छेद का इस्तेमाल कब और कैसे किया जाएगा।

साई स्पंदना ने आईआईएम अहमदाबाद के एक हालिया अध्ययन का हवाला दिया। इस स्टडी के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने 1950 से 2023 के बीच 1579 मामलों में अनुच्छेद 142 या 'पूरी तरह से न्याय' शब्द का उल्लेख किया है। इनमें से ज़्यादातर दीवानी मामले थे। स्टडी में यह भी पाया गया कि कोर्ट ने केवल 791 मामलों में ही अनुच्छेद 142 की शक्तियों का इस्तेमाल किया है।

आर्टिकल 142 से जुड़े कुछ ऐतिहासिक फैसले

बाबरी मस्जिद–राम जन्मभूमि केस (2019)

सुप्रीम कोर्ट ने 5 जजों की पीठ के फैसले में 142 का इस्तेमाल करते हुए रामलला को जमीन देने का आदेश दिया। साथ ही मुस्लिम पक्ष को वैकल्पिक 5 एकड़ जमीन देने का आदेश भी दिया गया। इस फैसले में अदालत ने साफ कहा कि वह “पूर्ण न्याय” कर रही है।

बोफोर्स घोटाले से जुड़े आदेश (1991)

सुप्रीम कोर्ट ने एक आरोपी को राहत दी, यह कहते हुए कि केस लंबा खिंच चुका है। ट्रायल में देरी से आरोपी का मौलिक अधिकार प्रभावित हो रहा है।

सहारा-सेबी केस

सुप्रीम कोर्ट ने अंडरट्रायल निवेशकों को पैसा वापस दिलवाने के लिए सहारा ग्रुप की संपत्तियों की बिक्री के आदेश दिए। ये कदम 142 के तहत उठाया गया।

यूनियन कार्बाइड मामले में सजा माफ (1989)

यूनियन कार्बाइड मामले में भी कोर्ट ने यही बात कही। कोर्ट ने आदेश दिया कि केमिकल कंपनी भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को 470 मिलियन डॉलर से ज़्यादा का मुआवज़ा दे। कुछ सालों बाद, 1995 में -विनय चंद्र मिश्रा- मामले में तीन जजों की बेंच ने कहा कि -प्रेम चंद गर्ग- मामले में दिया गया फैसला 'सही नहीं था।' बेंच ने कहा कि अनुच्छेद 142 एक 'संवैधानिक शक्ति' है जिसे किसी भी कानून द्वारा सीमित नहीं किया जा सकता है।

चीन के एक और दुश्मन को पाले में करने की भारत की कोशिश, ब्रह्मोस खरीदेगा वियतनाम, जानें स्ट्रैटजी

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दुनिया की सबसे घातक सुपरसोनिक मिसाइल ब्रह्मोस एक और बड़े समझौते के लिए तैयार है। फिलीपींस के बाद वियतनाम जल्द ही भारत से ब्रह्मोस मिसाइल खरीदने के लिए समझौता करने जा रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक वियतानम के साथ ब्रह्मोस की डील अपने एडवांस स्टेज पर है। इस साल इस डील की होने की संभावना जताई जा रही है। ब्रह्मोस मिसाइल वियतनाम को अपनी समुद्री सीमाओं की रक्षा करने में मदद करेगी, क्योंकि यह 300 किलोमीटर के दायरे में किसी भी चीनी युद्धपोत को निशाना बना सकती है।

ब्रह्मोस को चीन सागर में तैनात करेगा वियतनाम

वियतनाम के साथ भारत ने ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलों की बिक्री के लिए डील करीब करीब पूरी कर रही है। इस सौदे को बस अंतिम रुप दिया जाना बाकी है। दोनों देशों के बीच ब्रह्नोस मिसाइल को लेकर 700 मिलियन डॉलर का सौदा होने वाला है। भारतीय ब्रह्मोस को वियतनाम दक्षिण चीन सागर में तैनात करेगा, जहां उसे चीन से लगातार खतरा मिलता रहता है। रिपोर्ट के मुताबिक, वियतनाम कथित तौर पर ब्रह्मोस की तटीय बैटरी प्रणाली खरीद सकता है, जिसकी रेंज 300 किलोमीटर के करीब है। ये वियतनाम को अपनी समुद्री सीमाओं को सुरक्षित रखने में सक्षम बनाएगी।

ब्रह्मोस प्रणाली खरीदने वाला दूसरा देश होगा वियतनाम

अगर समझौता होता है तो फिलीपींस के बाद वियतनाम ब्रह्मोस मिसाइल खरीदने वाला दूसरा देश बन जाएगा। भारत ने 2022 में फिलीपींस के साथ करीब 2,700 करोड़ रुपये में 3 ब्रह्मोस मिसाइल बैटरी के लिए समझौता किया था। ये ब्रह्मोस की पहली अंतरराष्ट्रीय बिक्री थी। कुछ ही महीने पहले ही भारत ने फिलीपींस को सफलतापूर्वक इसकी डिलीवरी भी की थी। वियतमान भी फिलीपींस की तरह ही ब्रह्मोस की कोस्टल बैटरी खरीदना चाह रहा है।

चीनी युद्धपोतों से मुकबला करने में सक्षम

ब्रह्मोस कोस्टल बैटरी सिस्टम खरीदने के लिए सौदा कर रहा है। ये वही सिस्टम है, जिसे फिलीपींस ने भारत से खरीदा है। ये खासकर समुद्री हमलों के लिए डिजाइन किया गया है। इसकी रेंज 290 किलोमीटर है और इसे समुद्री सीमाओं के भीतर दुश्मनों पर सुपससोनिक स्पीड से हमला करने के लिए डिजाइन किया गया है। भारत ने खासकर चीन को ध्यान में रखकर ही इसे डिजाइन किया है, इसलिए दक्षिण चीन सागर में ये मिसाइल उन देशों के लिए काफी सटीक बन जाता है, जिन्हें चीन परेशान करता है। ये मिसाइल चीन को दक्षिण चीन सागर में चीनी युद्धपोतों से किसी भी संभावित खतरे का मुकाबला करने में वियतनाम सक्षम बनाएगी।

आसपास के देशों में चीन की धमक

बता दें कि साउथ चाइना सी और उसके आसपास के देशों को चीन धमकाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ता। उनके एक्सक्‍लूसिव इकॉनोमिक जोन में भी अपना कब्जा करता रहता है। फिलीपींस के साथ चीन के रिश्ते 2009 के बाद से और खराब हो गए। चीन ने नया नक्शा जारी किया जिसमें साउथ चाइना सी में 9 डैश लाइन लगाकर अपना इलाका बता दिया। इसके तहत फिलीपींस के द्वीपों और एक्सक्‍लूसिव इकॉनोमिक जोन का हिस्सा भी आता है। चीन के हिसाब से पर कब्जा जताने के लिए फिलीपींस, वियतनाम, ताइवान और मलेशिया के समुद्री क्षेत्र पर कब्जे का संकट बढ़ गया है। अब ब्रह्मोस कवच चीन के खतरे से इन देशों को बचा सकता है।

कपिल सिब्बल का उपराष्ट्रपति धनखड़ पर पलटवार, बोले- राष्ट्रपति नाम का मुखिया, कोई निजी अधिकार नहीं

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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रपति के निर्णय लेने के लिए समयसीमा निर्धारित करने के फैसले पर सवाल उठाया। अब राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर जगदीप धनखड़ की टिप्पणी की आलोचना की है। उन्होंने कहा है कि उपराष्ट्रपति को पता होना चाहिए कि राज्यपाल और राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की ‘सहायता और सलाह’ पर कार्य करते हैं। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति एक टिट्यूलर हेड हैं और गवर्नर का भी पद ऐसा है।

निष्पक्ष बात करने की सलाह

सिब्बल ने शुक्रवार को कहा, आज अखबारों में मुझे धनखड़ साहब का भाषण पढ़कर दुख और आश्चर्य हुआ। उनको किसी पार्टी के स्पोक्सपर्सन की तरह बात नहीं करनी चाहिए बल्कि निष्पक्ष बात करें। आज पूरे देश में अगर किसी संस्था पर भरोसा किया जाता है तो वह न्यायपालिका है। जब सरकार के कुछ लोगों को न्यायपालिका के फैसले पसंद नहीं आते तो वे आरोप लगाते हैं।जब अच्छी लगे तो वपक्ष से कहते हैं कि कोर्ट का फैसला है।

राष्ट्रपति एक टिट्यूलर हेड-सिब्बल

कपिल सिब्बल ने इस पर आगे कहा कि वह उपराष्ट्रपति का सम्मान करते हैं, लेकिन उन्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए। उन्होंने कहा, आर्टिकल 142 की शक्ति सुप्रीम कोर्ट को संविधान देता है। राष्ट्रपति एक टिट्यूलर हेड हैं। गवर्नर का भी पद ऐसा है। गवर्नर बिल नहीं रोक सकते, राष्ट्रपति को भेजते हैं। राष्ट्रपति कैबिनेट की सलाह और सहयोग से ही काम करते हैं, तो राष्ट्रपति के अधिकार पर सवाल उठाने की बात नहीं है।

सभापति पार्टी के प्रवक्ता की तरह काम नहीं कर सकते-सिब्बल

कपिल सिब्बल ने कहा, न्यायपालिका के अधिकारों पर ऐसे बयान हमला हैं। क्या राष्ट्रपति संसद से पास बिल को अनंत समय तक रोक सकते हैं? ऐसे काम कैसे चलेगा। सुप्रीम कोर्ट का फैसला 2 जज का हो या 5 जज का, सबको मानना होता है। सभापति सदन में पक्ष-विपक्ष के बीच बैठते हैं, निष्पक्ष होते हैं। किसी पार्टी के प्रवक्ता की तरह काम नहीं कर सकते।

मनी लॉन्ड्रिंग केस में ईडी की बड़ी कार्रवाई, आंध्र के पूर्व सीएम जगन मोहन की 27 करोड़ से अधिक की संपत्ति जब्त

#ed_seizes_rs_27_5_crore_jagan_reddy_shares_in_money_laundering_case

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने एक बड़ी कार्रवाई की है। ईडी ने आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी की 27.5 करोड़ रुपये की शेयर संपत्ति को अस्थायी रूप से जब्त कर लिया है। इसके साथ ही, डालमिया सीमेंट्स (भारत) लिमिटेड (डीसीबीएल) की 377.2 करोड़ रुपये की जमीन भी जब्त की गई है। यह कार्रवाई मनी लॉन्ड्रिंग मामले से जुड़ी है।

सीबीआई ने इस मामले में 2013 में चार्जशीट लगाई थी। इसके अनुसार जगन मोहन रेड्डी के साथ मिलकर डालमिया सीमेंट्स ने 417 हेक्टेयर के लाइम स्टोन अवैध तरीके से लीज में लिए थे। सीबीआई चार्जशीट के आधार पर मनी लॉर्डिंग के मामले को अब ईडी ने आगे बढ़ाया है।

जगन मोहन रेड्डी के कार्मेल एशिया होल्डिंग्स लिमिटेड, सरस्वती पावर एंड इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड और हर्षा फर्म में शेयर जब्त किए गए हैं। डीसीबीएल को यह जब्ती आदेश 15 अप्रैल, 2025 को मिला। जबकि यह आदेश 31 मार्च को ही जारी कर दिया गया था।

आरोप है आंध्र प्रदेश के कडपा जिले में 417 हेक्टेयर के लाइम स्टोन की खरीदारी में धांधली की गई थी। जगन ने अपने पिता और तत्कालीन मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी पर प्रभाव डालकर डीसीबीएल को कडप्पा जिले में 407 हेक्टेयर क्षेत्र में खनन पट्टा दिलाने में मदद की थी। यह सब 'क्विड प्रो क्वो' डील के तहत हुआ। 'क्विड प्रो क्वो' का मतलब होता है 'कुछ देना और कुछ लेना'।

इस घोटाले के जरिए जगन मोहन रेड्डी को करीब 150 करोड़ अवैध तरीके से लाभ मिलने का आरोप है। आरोप ही कि आंध्र प्रदेश के पूर्व सीएम जगन मोहन रेड्डी तक जो पैसे पहुंचे थे, उनमें से 95 करोड़ रघुराम सीमेंट के शेयर के जरिए मिले थे और 55 करोड़ रुपये हवाला के रूप में जगन तक पहुंचे थे। सीबीआई का कहना है कि जगन मोहन रेड्डी को जो 150 करोड़ रुपये मिले हैं, उनके अलावा उन्हें हावाला के जरिए 85 करोड़ रुपये और मिलने वाले थे, लेकिन सीबीआई ने मामला दर्ज कर लिया इस वजह से ये पैसे जगन मोहन रेड्डी तक नहीं पहुंचे।

ईडी और सीबीआई का आरोप है कि वाईएस जगन मोहन रेड्डी, ऑडिटर और पूर्व सांसद वी विजय साई रेड्डी और डीसीबीएल के पुनीत डालमिया के बीच एक समझौता हुआ था। इसके तहत, उन्होंने रघुराम सीमेंट्स लिमिटेड में अपने शेयर एक फ्रांसीसी कंपनी PARFICIM को 135 करोड़ रुपये में बेच दिए। इसमें से 55 करोड़ रुपये जगन को 16 मई, 2010 और 13 जून, 2011 के बीच हवाला चैनलों के माध्यम से नकद में दिए गए। इन भुगतानों की जानकारी आयकर विभाग, नई दिल्ली द्वारा जब्त किए गए दस्तावेजों में मिली।

नए वक्फ कानून पर क्या है बोहरा समुदाय की राय? विवाद के बीच पीएम मोदी से मुलाकात के मायने

#bohracommunitymetpmmodiexpressedgratitudeforwaqf_amendment

वक्फ संशोधन कानून को लेकर पूरे देश में राजनीति गरम है। कुछ लोग इस कानून के पक्ष में हैं, तो एक बड़ा समुदाय इसका विरोध कर रहा है। मोदी सरकार इस कानून को मुस्लिमों की भलाई के लिए जरूरी बता रही है तो वहीं कांग्रेस समेत अनेक विपक्षी पार्टियां और कई मुस्लिम संगठन वक्फ संशोधन कानून को मुसलमानों के खिलाफ बता रही है। इस बीच दाऊदी बोहरा समुदाय के प्रतिनिधिमंडल ने गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की और इस कानून की खूब तारीफ की।

नए वक्फ कानून को क्यो सपोर्ट कर रहा बोहरा समुदाय?

बोहरा समुदाय के प्रतिनिधिमंडल ने संसद से पारित वक्फ संशोधन का स्वागत किया और इस कानून को पारित करवाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी का आभार जताया। प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि उन्हें पीएम के सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास में भरोसा है। उन्होंने पीएम मोदी के नेतृत्व में देश में हो रहे सकारात्मक बदलावों की सराहना की। अब सवाल यह है कि दाऊदी बोहरा समुदाय वक्‍फ में संशोधन से क्‍यों खुश है और क्‍यों इसका सपोर्ट कर रहा है?

वक्फ कानून पर बोहरा समुदाय की राय

बोहरा सुमदाय के प्रतिनिधियों ने आगे नए वक्फ कानून की खासियत पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि यह संशोधन समुदाय के हितों की रक्षा करने के साथ-साथ वक्फ संपत्तियों से जुड़ी व्यवस्था में पारदर्शिता लाएगा। साथ ही न केवल दाऊदी बोहरा बल्कि पूरे मुस्लिम समुदाय के लिए लाभकारी साबित होगा।

102 साल पुरानी मांग पूरी

दाऊदी बोहरा समुदाय लंबे समय से वक्‍फ कानून में संशोधन की डिमांड कर रहा था। अब जाकर उनकी यह मांग पूरी हुई है। इस संशोधित कानून में दाऊदी बोहरा समुदाय की प्रमुख मांगों को शामिल किया गया है। समुदाय के लोगों का कहना है कि वह साल 1923 से ही वक्‍फ कानून के प्रावधानों से छूट देने की डिमांड कर रहे थे, लेकिन उनकी मांग अनसुनी कर दी जा रही थी। अब जाकर केंद्र सरकार ने इस कानून को और अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाने की कोशिश की है। यही वजह है कि बोहरा समुदाय इस कानून में संशोधन का पुरजोर समर्थन कर रहे हैं। साथ ही संशोधन होने से समुदाय के लोग खुश भी हैं।

सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा मामला

इधर, वक्फ संशोधन कानून का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है।सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल वक्फ कानून पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, जस्टिस पीवी संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने वक्फ कानून के खिलाफ याचिकाओं पर सुवनाई करते हुए गुरुवार को कहा कि अगले आदेश तक वक्फ में कोई नई नियुक्ति नहीं होगी। इसके साथ ही सरकार को जवाब देने के लिए 7 दिन का वक्त दिया गया है।

पीएम मोदी और एलन मस्क के बीच हुई बातचीत, टैरिफ वॉर के बीच किन मुद्दों पर हुई चर्चा?

#pmmodispoketeslaceoelonmusk

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टेस्ला के सीईओ एलन मस्क से फोन पर बात की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया प्‍लेटफॉर्म एक्स पर खुद मस्क के साथ हुई बातचीत की जानकारी दी है। इस बातचीत में दोनों ने भारत और अमेरिका के बीच तकनीक और इनोवेशन के क्षेत्रों में मिलकर काम करने की इच्छा जताई। इससे पहले पीएम मोदी और मास्क के बीच फरवरी में मुलाकात हुई थी। डोनाल्‍ड ट्रंप के दोबारा से अमेरिका के राष्‍ट्रपति बनने के बाद पीएम मोदी ने पहली बार वॉशिंगटन का दौरा किया था। इस दौरान उन्‍होंने एलन मस्‍क से भी मुलाकात की थी।

पीएम मोदी ने एक्‍स पर एक पोस्‍ट शेयर कर लिखा, एलन मस्‍क से बातचीत हुई। इस दौरान विभिन्‍न मुद्दों पर चर्चा हुई। इस साल के शुरुआत में वॉशिंगटन डीसी की यात्रा के दौरान जिन टॉपिक्‍स को हमने कवर किया था, बातचीत के दौरान उनपर भी चर्चा हुई। हमने टेक्‍नोलॉजी और इनोवेशन के क्षेत्र में व्‍यापक संभावनाओं को देखते हुए सहयोग पर चर्चा की। इन क्षेत्रों में अमेरिका के साथ सहयोग और साझेदारी बढ़ाने के प्रति भारत पूरी तरह से समर्पित है।

फरवरी में हुई थी दोनों की मुलाकात

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और एलन मस्क की पिछली मुलाकात फरवरी में हुई थी, जब पीएम मोदी अमेरिका दौरे पर गए थे। इस दो दिन की यात्रा के दौरान दोनों ने इलेक्ट्रिक वाहन, सौर ऊर्जा और अंतरिक्ष जैसे नए और उभरते क्षेत्रों में साथ मिलकर काम करने की संभावनाओं पर अच्छी बातचीत की थी।

इस मुलाकात में पीएम मोदी ने एलन मस्क के बच्चों को भारतीय साहित्य की कुछ खास किताबें तोहफे में दी थीं। इनमें रवींद्रनाथ टैगोर की "द क्रेसेंट मून", आर.के. नारायण की "द ग्रेट आर.के. नारायण कलेक्शन", और पंडित विष्णु शर्मा की "पंचतंत्र" शामिल थीं।

स्टार लिंक की टीम ने की थी पीयूष गोयल से मुलाकात

पीएम मोदी और मस्क के बीच हुई मुलाकात के एक दिन पहले केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल से स्टारलिंक की टीम ने मुलाकात की थी। इस मुलाकात की तस्वीरें सोशल मीडिया पर शेयर की गईं थीं, इस मुलाकात में स्टारलिंक की ओर से वाइस प्रेसिडेंट चैड गिब्स और सीनियर डायरेक्टर रायन गुडनाइट मौजूद थे। यह पहला मौका था जब स्टारलिंक के किसी प्रतिनिधिमंडल ने भारतीय सरकार से औपचारिक मुलाकात की हो, मुलाकात के दूसरे दिन ही पीएम मोदी और एलन मस्क के बीच हुई बातचीत से माना जा रहा है कि अब जल्द ही भारत में स्टारलिंक की एंट्री होने वाली है।

गीता और भरत मुनि का नाट्यशास्त्र यूनेस्को ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल, पीएम मोदी ने दी बधाई

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भगवद गीता और भरत मुनि के नाट्यशास्त्र को यूनेस्को के मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल किया गया। केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने इस बारे में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर जानकारी दी। इसे लेकर पीएम मोदी ने खुशी जताई। उन्होंने इसे दुनिया भर में हर भारतीय के लिए गर्व का क्षण कहा।

केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने इस बारे में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा कि भारत की सभ्यतागत विरासत के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है। श्रीमद्भगवद्गीता और भरत मुनि के नाट्यशास्त्र को अब यूनेस्को के मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में अंकित किया गया है। यह वैश्विक सम्मान भारत के शाश्वत ज्ञान और कलात्मक प्रतिभा का जश्न मनाता है। ये कालातीत रचनाएँ साहित्यिक खजाने से कहीं अधिक हैं, वे दार्शनिक और सौंदर्यवादी आधार हैं, जिन्होंने भारत के विश्व दृष्टिकोण और हमारे सोचने, महसूस करने, जीने और अभिव्यक्त करने के तरीके को आकार दिया है। उन्होंने आगे लिखा कि इसके साथ ही, अब हमारे देश के 14 अभिलेख इस अंतर्राष्ट्रीय रजिस्टर में शामिल हो गए हैं।

पीएम मोदी ने गजेंद्र सिंह शेखावत की पोस्ट पर कमेंट करते हुए लिखा कि दुनिया भर में हर भारतीय के लिए यह गर्व का क्षण है। यूनेस्को के मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में गीता और नाट्यशास्त्र को शामिल किया जाना हमारी शाश्वत बुद्धिमत्ता और समृद्ध संस्कृति की वैश्विक मान्यता है। गीता और नाट्यशास्त्र ने सदियों से सभ्यता और चेतना का पोषण किया है। उनकी अंतर्दृष्टि दुनिया को प्रेरित करती रहती है।

17 अप्रैल को यूनेस्को ने अपने मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में 74 नए दस्तावेजी विरासत संग्रह जोड़े। इससे कुल अंकित संग्रहों की संख्या 570 हो गयी। इस रजिस्टर में 72 देशों और चार अंतरराष्ट्रीय संगठनों की वैज्ञानिक क्रांति, इतिहास में महिलाओं का योगदान तथा बहुपक्षवाद की प्रमुख उपलब्धियों पर प्रविष्टियां शामिल की गईं।

यूनेस्को का मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर विश्व के कई महत्वपूर्ण दस्तावेज धरोहरों की सूची है। इसमें दस्तावेजी धरोहरों को अंतरराष्ट्रीय सलाहकार समिति की सिफारिश और कार्यकारी बोर्ड की स्वीकृति से चुना जाता है। इस सूची में शामिल होना दस्तावेज़ी धरोहर के वैश्विक महत्व और सर्वकालिक मूल्य को सार्वजनिक रूप से स्वीकार करता है। इससे शोध, शिक्षा, मनोरंजन और संरक्षण को बढ़ावा मिलता है।

बंगाल हिंसा पर बांग्लादेश की टिप्पणी से भड़का भारत, अल्पसंख्यकों को लेकर दो टूक

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पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में बीते दिनों भड़की हिंसा पर बांग्लादेश की टिप्पणी को लेकर विदेश मंत्रालय ने अपनी कड़ी प्रतिक्रिया दी है। विदेश मंत्रालय ने कहा है कि बांग्लादेश को इस घटना पर कोई टिप्पणी करने से पहले अपने गिरेबान में झांकना चाहिए। साथ ही बांग्लादेश को हमारे घरेलू मसलों पर गैर-जरूरी टिप्पणी करने से बचना चाहिए।

विदेश मंत्रालय ने आधिकारिक बयान में कहा, हम पश्चिम बंगाल की घटनाओं के संबंध में बांग्लादेश की टिप्पणियों को अस्वीकार करते हैं। यह बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर जारी उत्पीड़न पर भारत की चिंताओं के साथ तुलना करने का एक छिपा हुआ और कपटपूर्ण प्रयास है, जहां इस तरह के कृत्यों के अपराधी खुलेआम घूम रहे हैं। अनुचित टिप्पणियां करने और सद्गुणों का प्रदर्शन करने के बजाय, बांग्लादेश को अपने अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

भारत को मुस्लिमों पर दिया था ज्ञान

इससे पहले बांग्लादेश ने भारत के अल्पसंख्यक मुस्लिमों को लेकर बयान दिया है। मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस के प्रेस सेक्रेटरी शफीकुल आलम ने नई दिल्ली से अल्पसंख्यक मुस्लिम आबादी की पूरी तरह से सुरक्षा के लिए कदम उठाने का आग्रह किया था। बृहस्पतिवार को विदेश सेवा अकादमी में एक प्रेस वार्ता के दौरान आलम ने कहा, हम मुर्शिदाबाद सांप्रदायिक हिंसा में बांग्लादेश को शामिल करने के किसी भी प्रयास का दृढ़ता से खंडन करते हैं। आलम ने कहा कि बांग्लादेश सरकार ने मुसलमानों पर हमलों की निंदा की है, जिससे जान-माल का नुकसान हुआ है। उन्होंने कहा, हम भारत और पश्चिम बंगाल सरकार से अल्पसंख्यक मुस्लिम आबादी की पूरी तरह से सुरक्षा के लिए सभी कदम उठाने का आग्रह करते हैं।

मुर्शिदाबाद हिंसा में भूमिका

पिछले सप्ताह पश्चिम बंगाल के मुस्लिम बहुल मुर्शिदाबाद जिले में भारत सरकार के वक्फ संशोधन अधिनियम के विरोध में हिंसा भड़क उठी थी। हिंसा के बाद इलाकों में पुलिस बल की तैनाती की गई है। अब तक 150 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया है। भारतीय विदेश मंत्रालय की प्रारंभिक जांच में कथित तौर पर हिंसा में बांग्लादेशी कट्टरपंथियों की संलिप्तता का संकेत मिला है।

बदला लेने की कोशिश में बांग्लादेश ने अपने पैर में मारी कुल्हाड़ी, भारत से जमीनी मार्ग से कच्चे धागे के आयात पर रोक

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भारत और बांग्लादेश के रिश्ते में बीते कुछ समय से तनातनी देखी जा रही है। दोनों देशों के बीच का तनाव अब व्यापार को भी प्रभावित करता दिख रहा है। बांग्लादेश ने भारत के साथ लैंड बॉर्डर ट्रेड को प्रभावित करने वाले कई कदम उठाए हैं।बांग्लादेश ने भारत से लैंड पोर्ट रूट के ज़रिए सूत के आयात पर पाबंदी लगा दी है। यही नहीं, बांग्लादेश ने भारत के साथ तीन लैंड पोर्ट से व्‍यापार बंद करने का ऐलान कर दिया है और एक से ट्रेड से कुछ समय के लिए स्‍थगित कर दिया है।

बांग्‍लादेश में जब से सत्‍ता मोहम्‍मद यूनुस के हाथों में आई है, तब से ही उसका झुकाव पाकिस्‍तान और चीन की ओर बढ़ता ही जा रहा है।मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली सरकार ने जमीनी बंदरगाहों के माध्यम से भारत से होने वाले कच्चे धागे के आयात को निलंबित कर दिया है। बांग्लादेश के राष्ट्रीय राजस्व बोर्ड (NBR) के आदेश के बाद अब बेनापोल, भोमरा, सोनमस्जिद, बंग्लाबांदा और बुरीमारी भूमि बंदरगाहों के माध्यम से कच्चे धागे के आयात की अनुमति नहीं होगी। ये बंदरगाह भारत से कच्चे धागे के आयात के प्राथमिक प्रवेश बिंदु थे।

फैसले के पीछे बांग्लादेश ने बताई ये वजह

बांग्लादेशी मीडिया आउटलेट ढाका ट्रिब्यून ने एनबीआर के हवाले से बताया कि भूमि बंदरगाहों के माध्यम से अब धागे का आयात नहीं किया जा सकता है। हालांकि, समुद्र या अन्य मार्गों के माध्यम से आयात की अनुमति अभी भी दी जाएगी। इस साल फरवरी में बांग्लादेश टेक्सटाइल्स मिल्स एसोसिएशन ने सरकार के जमीनी रास्तों से भारत से धागे का आयात रोकने का आग्रह किया था।

आयात रोकने के लिए तर्क दिया गया था कि सस्ता भारतीय सूत स्थानीय उत्पादकों को नुकसान पहुंचा रहा है। इसके बाद मार्च में बांग्लादेश व्यापार और टैरिफ आयोग ने घरेलू कपड़ा उद्योग की रक्षा के लिए जमीनी बंदरगाह आयात को अस्थायी रूप से निलंबित करने की सिफारिश की।

टेक्‍सटाइल इंडस्‍ट्री में यूनूस को लेकर नाराजगी

वहीं, बांग्‍लादेश टेक्‍सटाइल इंडस्‍ट्री ने यूनूस के इन कदमों को ‘आत्‍मघाती’ बताया है और वे बांग्‍लादेश सरकार से खासे नाराज हैं। भारत से धागा की आपूर्ति बाधित होने से छोटे और मध्यम आकार की गारमेंट कंपनियों को भारी नुकसान हो सकता है, क्योंकि ये इकाइयां मुख्य रूप से भारतीय यार्न पर निर्भर रहती हैं। सूत्रों का कहना है कि बांग्लादेश ने भारतीय धागा पर बैन का फैसला इसलिए लिया है ताकि पाकिस्‍तान से ज्‍यादा यार्न बांग्‍लादेश आ सके। सरकार के इस फैसले से पाकिस्‍तान को तो भले ही फायदा हो जाए, बांग्‍लादेश को नुकसान ही नुकसान है क्‍योंकि भारतीय धागा के मुकाबले पाकिस्‍तानी धागा महंगा है। यूनूस का यह कदम भारत-बांग्लादेश व्यापारिक संबंधों में नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है, जो आखिरकार बांग्‍लादेश के लिए ही घातक साबित होगा।

भारत ने बांग्लादेश से ट्रांसशिपमेंट सुविधा वापस ली

पिछले कुछ महीनों से भारत और बांग्लादेश आमने-सामने हैं। हालांकि, थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में छठे बिम्सटेक समिट से अलग भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस की मुलाकात के बाद लग रहा था कि दोनों देशों के संबंधों में जमी बर्फ़ पिघल जाएगी।

लेकिन, इस बैठक के तीन दिन बाद ही भारत सरकार ने बांग्लादेश को 2020 से मिली ट्रांसशिपमेंट सुविधा वापस ले ली। इस सुविधा के कारण बांग्लादेश भारत के एयरपोर्ट और बंदरगाहों का इस्तेमाल तीसरे देश में अपने उत्पादों के निर्यात के लिए करता था।

मोहम्मद यूनुस ने पूर्वोत्तर को लेकर दिया था बयान

दरअसल, भारत ने ये फैसला मोहम्मद यूनुस के एक बयान के बाद लिया था। मोहम्मद यूनुस 26 से 29 मार्च तक चीन के दौरे पर थे। इसी दौरे में यूनुस ने ऐसा बयान दिया, जिससे भारत का नाराज़ होना लाजिमी था। मोहम्मद यूनुस ने पूर्वोत्तर भारत की लैंडलॉक्ड स्थिति का हवाला दिया था। यूनुस ने कहा था कि पूर्वोत्तर भारत का समंदर से कोई कनेक्शन नहीं है और बांग्लादेश ही इस इलाके का अभिभावक है। मोहम्मद यूनुस ने कहा था, भारत के सेवन सिस्टर्स राज्य लैंडलॉक्ड हैं। इनका समंदर से कोई संपर्क नहीं है। इस इलाके के अभिभावक हम हैं। चीन की अर्थव्यवस्था के लिए यहाँ पर्याप्त संभावनाएं हैं। चीन यहाँ कई चीजें बना सकता है और पूरी दुनिया में आपूर्ति कर सकता है।

बांग्लादेश की पूर्वोत्तर पर बुरी नजर

बता दें कि पूर्वोत्तर भारत दशकों से उग्रवाद ग्रस्त रहा है और बांग्लादेश पर इन राज्यों में उग्रवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगता रहा है। हालांकि, पूर्वोत्तर भारत में उग्रवाद अभी काबू में है लेकिन एक किस्म की बेचैनी अब भी देखने को मिलती है। भारत का यह इलाका काफी संवेदनशील माना जाता है।