साउथ कोरिया में 2 लाख मासूमों को अनाथ बताकर विदेशों में “बांट” दिया गए, एडॉप्शन का ये शर्मनाक घालमेल
#southkoreainternationaladoptionfraud
साउथ कोरिया में अजीबोगरीब घोटाला सामने आया है। आप जानकर हैरान रह जाएंगे की अपने ही बच्चों को गलत तरीके से पूरी दुनिया में बांट दिया गया। यहां करीब 2 लाख मासूम बच्चों को अनाथ बताकर, उनकी पहचान छिपाकर विदेशियों को गोद दिया गया। साउथ कोरिया की सरकारी एजेंसियों पर भी घोटाले में शामिल होने के आरोप लगे हैं। वहां की सरकार ने मामले की जांच के लिए एक आयोग भी बनाया है जिसका नाम ट्रुथ एंड रिकंसिलेशन कमिशन रखा गया है। जो उन कई सौ बच्चों के रिकॉर्ड खंगाल रही है, जिन्हें धोखे से विदेशियों को गोद दिया गया था।
ट्रुथ एंड रिकंसिलेशन कमिशन ने जब खंगालना शुरू किया तो जो बातें सामने आईं, वो हैरान कर देने वाली हैं। पता चला कि देश की एजेंसियों ने बच्चों को गोद लेने के लिए विदेश भेजने में जबरदस्त जल्दबाजी दिखाई। इसमें उनकी हेल्थ और मानवाधिकार का भी ख्याल नहीं रखा गया। कई बच्चों के बर्थ रिकॉर्ड में हेराफेरी की गई, बच्चों को अनाथ बताया जबकि उनके माता-पिता पहले से ही थे। जिन्हें बच्चे सौंपे गए, उनके बारे में भी पूरी जांच नहीं की गई। बच्चों को जबरन गोद देने के लिए मजबूर किया गया।
फर्जी दस्तावेजों के आधार पर गोद दिए गए बच्चे
जांच में सामने आया कि गोद लेने की प्रक्रिया में शामिल एजेंसियों और अधिकारियों ने कई मामलों में बच्चों को अनाथ के रूप में दर्ज किया गया, जबकि उनके माता-पिता जीवित थे। वे नहीं चाहते थे कि उनका बच्चा देश छोड़कर जाए, इसके बावजूद उनसे लेकर लालच देकर बच्चों को छीन लिया गया। कई पेरेंट्स को ये तक बता दिया गया कि उनका बच्चा मर गया है। जबकि वह बच्चा जिंदा था। कुछ को ये कहा गया कि बच्चे को बेहतर देखभाल के लिए भेजा जा रहा है। लेकिन फर्जी दस्तावेजों के आधार पर बच्चों को विदेशी परिवारों को सौंप दिया गया। इस प्रक्रिया में बच्चों की पहचान, जन्म तिथि और पारिवारिक इतिहास को बदल दिया गया, जिससे उनकी मूल जड़ों का पता लगाना असंभव हो गया।
बच्चों को विदेश भेजने में मानवाधिकारों का उल्लंघन
कमीशन ने दो साल और सात महीने की जांच की। इसके बाद एक ऐतिहासिक घोषणा में उसने कहा कि साउथ कोरिया के बच्चों के अंतरराष्ट्रीय गोद लेने में मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ। ट्रुथ एंड रिकॉन्सिलिएशन कमीशन ने एक बयान में कहा, यह पाया गया है कि सरकार ने अपना कर्तव्य नहीं निभाया। जिसके परिणामस्वरूप बहुत सारे बच्चों को विदेश भेजने की प्रक्रिया के दौरान संविधान और अंतरराष्ट्रीय समझौतों द्वारा संरक्षित गोद लेने वालों के मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ।
कैसे शुरू हुआ था गोद लेने का रिवाज
दक्षिण कोरिया ने 1950 और 1960 के दशक में कोरियाई युद्ध के बाद विदेशी गोद लेने को बढ़ावा देना शुरू किया था। उस समय देश आर्थिक रूप से कमजोर था और सामाजिक कल्याण प्रणाली सीमित थी। इस दौरान हजारों बच्चों को विदेशों, खासकर अमेरिका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में गोद लेने के लिए भेजा गया।
साल 1954 में अमेरिका के ओरेगन इलाके से बर्था और हैरी हॉल्ट नाम का दंपत्ति कोरियन युद्ध में अनाथ हुए बच्चों पर एक प्रेजेंटेशन देखने के लिए गए थे। प्रेजेंटेशन में बच्चों को देखकर बर्था का दिल भर आया। द न्यूयार्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक उसने एक जगह लिखा था कि उन छोटे बच्चों के गोल उदास चेहरे देखकर लग रहा था मानो वो अपनी देखभाल के लिए किसी को खोज रहे हों। उस समय अमेरिका में विदेश से दो से अधिक बच्चों को गोद लेने पर रोक थी, लेकिन 1955 में ओरेगन के दो सीनेटरों ने कोरियाई युद्ध में अनाथ हुए बच्चों के लिए एक विधेयक पेश किया, ताकि होल्ट और उसकी पत्नी कोरिया के अनाथ हुए बच्चों को गोद ले सकें।
कांग्रेस से बिल पास होने के बाद होल्ट ने कोरिया से चार लड़के और चार लड़कियों को गोद लिया। जब यह खबर अगले दिन अखबारों में छपी तो होल्ट को कई सारे खत मिले। इनमें कई सारे दंपत्तियों ने इच्छा जाहिर की थी कि वो भी कोरियन युद्ध में अनाथ हुए बच्चों को गोद लेना चाहते हैं।
एक साल में होल्ट दंपत्ति ने एक एडॉप्शन कार्यक्रम की शुरूआत की। इसके बाद साउथ कोरिया में भी होल्ट एजेंसी बनाई गई। धीरे-धीरे इस एजेंसी से न सिर्फ अमेरिका बल्कि कई यूरोपीय देश के लोगों ने भी बच्चे गोद लिए। यह एजेंसी आज के समय में भी विदेश की सबसे बड़ी बच्चे गोद दिलाने वाली एजेंसियों में से एक है।
Mar 27 2025, 16:30