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दिल्ली सीएम ऑफिस से आंबेडकर-भगत सिंह की तस्वीर हटाने पर भड़की आप, जानें क्या कहा

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दिल्ली में आज से विधानसभा सत्र शुरू है। राजधानी में 27 साल बाद बीजेपी की सरकार बनने के बाद यह पहला सत्र है। इस बीच सदन में विपक्ष की नेता आतिशी ने बीजेपी सरकार के ऊपर बड़ा आरोप लगाया है। उन्होंने दावा किया है कि विधानसभा में मुख्यमंत्री कार्यालय से बाबा साहेब और भगत सिंह की तस्वीर को हटा दिया गया है। वहीं, आम आदमी पार्टी ने बीजेपी को दलित विरोधी करार दिया है।

नेता प्रतिपक्ष आतिशी ने कहा, दिल्ली सरकार में अरविंद केजरीवाल के बतौर मुख्यमंत्री रहते हुए उनके कार्यकाल के दौरान हर सरकारी दफ्तर में आंबेडकर और शहीद भगत सिंह की फोटो लगती थी। लेकिन आज जब हम दिल्ली की सीएम रेखा गुप्ता से मिलने विधानसभा में स्थित उनके दफ़्तर में गए तो देखा कि दोनों ही फ़ोटो सीएम कार्यालय से हटा दी गई है, विधानसभा में आप इसका पुरज़ोर विरोध करती है।

आप ने दावा किया कि सीएम के दफ्तर में अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और महात्मा गांधी की तस्वीर लगी है।

बीजेपी की दलित विरोधी मानसिकता-आतिशी

आप नेता आतिशी ने कहा कि बीजेपी की दलित विरोधी मानसिकता जगजाहिर है। आज बीजेपी ने अपनी असली मानसिकता का प्रमाण देश के सामने रख दिया है। दिल्ली सरकार ने हर कार्यालय में बाबा साहेब और भगत सिंह की फोटो लगाने का फैसला किया था। 3 महीने पहले बाबा साहेब और भगत सिंह की फोटो को लगाया गया था। उन्होंने विधानसभा में सीएम दफ्तर से बाबा साहेब और भगत सिंह की फोटो को हटा दिया है।

केजरीवाल ने भी जताया ऐतराज

दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने भी फोटो हटाने को लेकर ऐतराज जताया है। उन्होंने कहा, दिल्ली की नई बीजेपी सरकार ने बाबा साहेब की फोटो हटाकर प्रधान मंत्री मोदी जी की फोटो लगा दी। ये सही नहीं है। उन्होंने कहा, इससे बाबा साहेब के करोड़ो अनुयायियों को ठेस पहुंची है। मेरी बीजेपी से प्रार्थना है। आप प्रधानमंत्री की फोटो लगा लीजिए लेकिन बाबा साहिब की फोटो तो मत हटाइए. उनकी फोटो लगी रहने दीजिए।

क्या कांग्रेस में नजर चल रहे हैं शशि थरूर? कहीं बढ़ा ने दें पार्टी की मुश्किलें

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कांग्रेस मुश्किलों के दौरा से गुजर रही है। कभी देश की सियासत का सबसे मजबूत स्तम्भ रही कांग्रेस आज अपना जनाधार खोते-खोते बेहद कमजोर हो गई है। पिछले कुछ सालों से कई बड़े चेहरे पार्टी को अलविदा कह चुके हैं। इस बीच कांग्रेस के सीनियर लीडर और केरल के तिरुवनंतपुरम से सांसद शशि थरूर ने पार्टी नेतृत्व से अपनी भूमिका स्पष्ट करने की मांग की है। उन्होंने राहुल गांधी से पूछा, "कांग्रेस में मेरा क्या रोल है।"

शशि थरूर की ओर से किए गे इस सवाल के बाद सियासी गलियारों में चर्चा जोरों पर है। असल में कांग्रेस के सीनियर नेता और तिरुवनंतपुरम से चार बार के सांसद शशि थरूर की नाराजगी अब खुलकर सामने आ रही है। हाल ही में उन्होंने पार्टी में अपनी उपेक्षा का मुद्दा उठाया है। इसके बाद से राजनीतिक हलकों में अटकलें तेज हो गई हैं कि क्या थरूर पार्टी से दूरी बना रहे हैं या अपनी भूमिका को और मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं। राहुल से उनकी मुलाकात भी हुई है।

शशि थरूर ने 18 फरवरी को दिल्ली में राहुल गांधी से मुलाकात की थी। इस दौरान उन्होंने पार्टी में किनारे किए जाने पर गहरी नाराजगी जताई। उन्होंने कहा कि उन्हें संसद के महत्वपूर्ण बहसों में बोलने का मौका नहीं मिलता और पार्टी में उन्हें इग्नोर किया जा रहा है। थरूर ने कहा कि वह पार्टी में अपनी स्थिति को लेकर असमंजस में हैं और चाहते हैं कि राहुल गांधी उन्हें उनकी भूमिका के बारे में स्पष्ट रूप से बताएं।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, राहुल गांधी ने थरूर की शिकायतों का कोई खास जवाब नहीं दिया और न ही उनकी कोई गंभीर समस्याओं को सुलझाया। थरूर को यह महसूस हुआ कि राहुल गांधी इस मामले में कोई भी खास वादा करने को तैयार नहीं थे। टाइम्स ऑफ इंडिया ने खबर छापी कि केरल के कांग्रेस नेताओं में थरूर के खिलाफ नाराजगी बढ़ रही है। अखबार ने सूत्रों के हवाले से यह भी बताया कि कांग्रेस आलाकमान भी अब थरूर के प्रति नरमी नहीं दिखाना चाहता।

दरअसल, शशि थरूर ने पीएम मोदी के अमेरिका दौरे और केरल के सीएम पिनाराई विजयन की तारीफ कर पार्टी के अंदर विवाद खड़ा कर दिया है। केरल के तिरुवनंतपुरम से लगातार चार बार के लोकसभा सांसद शशि थरूर ने हाल ही में केरल की वामपंथी विजयन सरकार की नीतियों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप से मुलाकात की तारीफ की थी। इतना ही नहीं उन्होंने केरल में कांग्रेस नेतृत्व को लेकर भी सवाल उठाए थे। शशि थरूर के बयान से कांग्रेस कश्मकश में पड़ गई थी। इसके बाद कांग्रेस की केरल इकाई के मुखपत्र ने शशि थरूर को नसीहत देते हुए लेख छापा था। मुखपत्र वीक्षणम डेली के द्वारा लिखा गया था कि थरूर को स्थानीय निकाय चुनाव से पहले पार्टी की उम्मीद को ठेस नहीं पहुंचाना चाहिए। हजारों पार्टी कार्यकर्ताओं की उम्मीदों को धोखा न दें।

थरूर पर पार्टी लाइन से हटकर बयान देने का आरोप लगा तो जवाब में थरूर ने कहा कि वो कांग्रेस के साथ हैं, लेकिन पार्टी को मेरी जरूरत नहीं है तो मेरे पास भी विकल्प मौजूद है।

भगोड़े ललित मोदी को भारत लाना हुआ मुश्किल, ले ली इस देश की नागरिकता

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भारत सरकार की ओर से भगोड़ा घोषित ललित मोदी को भारत लाना और भी मुश्किल हो गया है। ललित मोदी ने भारत लौटने से बचने के लिए एक बड़ी चाल चली है। खबर आ रही है कि आईपीएल के पूर्व चेयरमैन ललित मोदी ने प्रशांत महासागर में स्थित छोटे द्वीपीय देश वनुआतु की नागरिकता ले ली है। बताया जा रहा है कि भारतीय कानून से बचने के लिए उसने यह कदम उठाया है। दरअसल, वनुआतु का भारत या किसी भी देश के साथ प्रत्यर्पण संधि नहीं है।

टीवी9 ने सूत्रों के हवाले से ये जानकारी दी है। रिपोर्ट के मुताबिक, ललित मोदी ने करोड़ों रूपये खर्च करके वनुआतु की नागरिकता ली है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि ललित मोदी को वनुआतु से नया पासपोर्ट 30 दिसंबर 2024 को जारी किया गया है। भारत और वनुआतु के बीच कोई प्रत्यर्पण समझौता नहीं है और इसलिए भारत सरकार के लिए पूर्व क्रिकेट प्रशासक को वापस लाना बहुत मुश्किल हो सकता है।

125 करोड़ के घोटाले का आरोप है

ललित मोदी को भारत सरकार ने भगोड़ा घोषित किया है और उस पर 125 करोड़ के घोटालों का आरोप है। मोदी पर आईपीएल मीडिया राइट्स और फ्रेंचाइजी डील के जरिए करोड़ों रुपये के घोटाले का आरोप है। ललित मोदी साल 2010 में भारत छोड़कर लंदन भाग गया था। उस पर वित्तीय अनियमितताओं, मनी लॉन्ड्रिंग और भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं। भारत की प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने उनके खिलाफ कई मामलों की जांच शुरू की थी और भारतीय अदालतों ने उन्हें पेश होने के आदेश भी दिए थे।

कितना आसान है वनुआतु की नागरिकता लेना

बता दें कि वनुआतु की सरकार गोल्डन वीजा प्रोग्राम चलाती है। गोल्डन वीजा प्रोग्राम के तहत रुपये देकर आसानी से नागरिकता हासिल कर ली जाती है। वनुआतु की नागरिकता के लिए करोड़ों रुपये देने पड़ते हैं। साथ ही वनुआतु का भारत या किसी भी देश के साथ प्रत्यर्पण संधि नहीं है। यही वजह है कि वनुआतु फर्जीवाड़े और घोटालों में शामिल लोगों के लिए सुरक्षित ठिकाना है।

पाकिस्तान में मंदिरों और गुरुद्वारों को लेकर बड़ा फैसला, जानें क्या है पड़ोसी देश की सरकार का प्लान?

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अब पाकिस्तान में भी हिंदुओं और पंजाबियों के धार्मिक स्थलों को संवारा जाएगा। पाकिस्तान सरकार ने मंदिरों और गुरुद्वारों के जीर्णोद्धार के लिए मास्टर प्लान तैयार किया है। इस के तहत 1 अरब पाकिस्तानी रुपये से इन धार्मिक स्थलों को सजाया और संवारा जाएगा। यह निर्णय यहां ‘इवैक्यूई ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड’ की बैठक में शनिवार को इसके प्रमुख सैयद अतउर रहमान की अध्यक्षता में लिया गया।

इवैक्यूई ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड की बैठक की अध्यक्षता करने वाले सैयद अताउर रहमान ने जानकारी देते हुए बताया कि मास्टर प्लान के तहत मंदिरों और गुरुद्वारों को सजाया जाएगा और विकास कार्य कराए जाएंगे। इस पर 1 अरब पाकिस्तानी रुपया खर्च किया जाएगा। इस योजना के अंतर्गत अल्पसंख्यक समुदायों के पूजा स्थलों का विशेष ध्यान दिया जाएगा। रहमान ने बताया कि इस साल ईटीपीबी को 1 अरब रुपये का राजस्व मिला था। इस बैठक में देशभर से हिंदू और सिख प्रतिनिधि शामिल हुए।

बैठक में मौजूद बोर्ड सचिव फरीद इकबाल ने इस योजना में कुछ बदलावों का भी सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि वर्षों से अनुपयोगी पड़ी ट्रस्ट की संपत्तियों को विकास कार्यों में लगाने से राजस्व में कई गुना वृद्धि होगी। इसके अलावा बोर्ड ने मंदिरों और गुरुद्वारों में चल रहे निर्माण कार्यों की समीक्षा की और परियोजना प्रबंधन इकाई करतारपुर कॉरिडोर के संचालन के लिए एक परियोजना निदेशक की नियुक्ति का भी निर्णय लिया।

इस फैसले के पीछे की मजबूरी

पाकिस्तान में मंदिरों के संरक्षण को लेकर यह फैसला काफी अहम माना जा रहा है। जानकारों का मानना है कि पाकिस्तान सरकार का यह कदम वास्तव में अल्पसंख्यकों की भलाई से ज्यादा आर्थिक लाभ और वैश्विक छवि सुधारने की रणनीति का हिस्सा है। लंबे समय से पाकिस्तान पर धार्मिक असहिष्णुता और अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न के आरोप लगते रहे हैं जिससे उसकी अंतरराष्ट्रीय साख प्रभावित हुई है। ऐसे में मंदिरों और गुरुद्वारों के जीर्णोद्धार की घोषणा कर सरकार निवेश और पर्यटन को बढ़ावा देना चाहती है।

जयशंकर ने यूनुस सरकार को सुनाई खरी-खरी, बोले- तय कर लो करना क्या है

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बीते साल अगस्त से भारत और बांग्लादेश के रिश्तों में तल्खी देखी जा रही है। मतलब साफ है शेख हसीने के सत्ता से बेदखल होन के बाद और अंतरिम सरकार के चीफ के तौर पर मोहम्‍मद यूनुस के आने के बाद हालात काफी बदल गए हैं। एक तरफ बांग्लादेश की मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार भारत विरोध के सारे पैतरे आजमाने में लगी है। वहीं, दूसरी तरफ यूनुस भारत से अच्‍छे रिश्‍तों की बात भी करते हैं। इस बीच भारत की बातों को विश्व पटल पर बेबाकी से रखने वाले विदेश एस जयशंकर बड़ा बयान दिया है। एस जयशंकर ने कहा है कि बांग्लादेश को तय करना होगा कि वह भारत के साथ कैसा रिश्ता चाहते है?

जयशंकर ने शनिवार को एक सार्वजनिक प्रोग्राम में कहा कि बांग्लादेश एक तरफ तो भारत से अच्छे रिश्तों की बात करता है, लेकिन दूसरी तरफ हर समस्या के लिए भारत को दोषी ठहराता है। उन्होंने कहा,'अगर हर दिन बांग्लादेश की अंतरिम सरकार का कोई न कोई व्यक्ति भारत को हर समस्या के लिए जिम्मेदार ठहराता है, तो यह सही नहीं है। कुछ आरोप तो इतने बेबुनियाद होते हैं कि वे हास्यास्पद लगते हैं।

एस जयशंकर ने बांग्लादेश को लेकर कहा, आप यह नहीं कह सकते कि आप भारत से अच्छे संबंध चाहते हैं, लेकिन हर सुबह उठकर भारत को दोष देते हैं। उन्हें खुद तय करना होगा कि वे हमसे कैसे रिश्ते रखना चाहते हैं। जयशंकर ने कहा कि दोनों देशों के रिश्तों में दो बड़े मुद्दे सामने आ रहे हैं। पहला, बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमले, जो भारत के लिए चिंता का विषय हैं। यह एक गंभीर मसला है और हम इस पर अपनी बात रखेंगे।

बता दें कि मस्कट में अपने बांग्लादेशी समकक्ष तौहीद हुसैन से मुलाकात के एक हफ्ते बाद एस जयशंकर ने ये बातें कही हैं। दरअसल, युनूस प्रशासन के आने के बाद बांग्लादेश से भारत के संबंधों में तेजी से बदलाव आया है। शेख हसीना के प्रत्यर्पण से लेकर बॉर्डर पर फेंसिंग के मसले तक बांग्लादेश और भारत असहज डिप्लोमेसी में उलझे हैं। वहीं दूसरीतरफ बांग्लादेश और पाकिस्तान जिस तेजी से संबंध बेहतर कर रहे हैं, वो भारत के लिए सिरदर्द साबित हो सकता है।

पाकिस्तान-बांग्लादेश के बीच सीधे व्यापार शुरू, 1971 के बाद पहली बार हुआ ऐसा, भारत पर होगा असर?

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शेख हसीना के तख्तापलट के बाद पाकिस्तान और बांग्लादेश के रिश्तों में गरमाहट आई है। भारत के दोनों पड़ोसी देशों के बीच सुधरते रिश्ते नया आयाम गढ़ रहे हैं। अब पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच सीधा व्यापार शुरू हो चुका है।पाकिस्तान और बांग्लादेश ने 1971 के विभाजन के बाद पहली बार प्रत्यक्ष व्यापारिक संबंधों की बहाली की है। इस ऐतिहासिक कदम के तहत,पाकिस्तान के कासिम बंदरगाह से सरकारी स्वीकृति मिलने के बाद पहला मालवाहक जहाज बांग्लादेश के लिए रवाना हुआ है। 

पाकिस्तानी मीडिया आउटलेट एक्सप्रेस न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान के कासिम बंदरगाह से पहली बार सरकार से मंजूरी मिला हुआ माल रवाना किया गया है। बांग्लादेश ने ट्रेडिंग कॉरपोरेशन ऑफ पाकिस्तान के माध्यम से 50,000 टन पाकिस्तानी चावल खरीदने पर सहमति व्यक्त की है। इस समझौते को फरवरी की शुरुआत में अंतिम रूप दिया गया था। चावल की खेप को दो चरणों में पहुंचाया जाएगा, जिसमें 25000 टन की पहली खेप बांग्लादेश के रास्ते में है। दूसरी खेप मार्च की शुरुआत में रवाना होने वाली है।

हसीना के बाद द्विपक्षीय संबंधों में आई नरमी

पाकिस्तानी अखबार एक्सप्रेस ट्रिब्यून के मुताबिक, पिछले वर्ष शेख हसीना को बांग्लादेश की प्रधानमंत्री पद से अपदस्थ होने के बाद दोनों देशों के बीच उच्च स्तरीय आदान-प्रदान के साथ द्विपक्षीय संबंधों में नरमी आई। अखबार ने कहा कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने शांति प्रस्ताव पेश किया, जिस पर पाकिस्तान ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी।

यह पहली बार होगा जब सरकारी माल ले जाने वाला पाकिस्तान नेशनल शिपिंग कॉरपोरेशन का जहाज बांग्लादेश के बंदरगाह पर डॉक करेगा। हालांकि, दोनों देशों के बीच पहला सीधा समुद्री संपर्क बीते साल ही हुआ था, जब पाकिस्तानी जहाज माल लेकर बांग्लादेश पहुंचा था, लेकिन वह निजी कंपनी का जहाज था।

क्षेत्रीय राजनीति होगी प्रभावित

पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच हालिया घटनाक्रम को आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने और दशकों से निष्क्रिय व्यापार मार्गों को दोबारा सक्रिय करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम के रूप में देखा जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस नवीनतम व्यापार समझौते से दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंध मजबूत होंगे और प्रत्यक्ष नौवहन मार्ग सुगम होंगे। हालांकि, इस घटनाक्रम का क्षेत्रीय राजनीति पर भी प्रभाव पड़ सकता है।

भारत-बांग्लादेश व्यापार पर असर

बांग्लादेश में हालिया राजनीतिक परिवर्तन और पाकिस्तान के साथ बढ़ते संबंधों के कारण भारत जरूर प्रभावित होगा। पाकिस्तान के साथ कारोबार बढ़ने की दशा में भारत से बांग्लादेश का व्यापार कमजोर होने की आशंका है। बड़ी मात्रा में खाद्य पदार्थों का आयात बांग्लादेश भारत से करता रहा है, लेकिन अब वह पाकिस्तान के ज्यादा करीब जा रहा है। ऐसे में भारत के नजरिए से क्षेत्रीय व्यापारिक संबंधों में महत्वपूर्ण बदलाव आ सकता है। इस कदम का भारत पर कई प्रकार से प्रभाव पड़ेगा।

बांग्लादेश में “करवट” ले रहा आईएसआई

बांग्लादेश की मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार भारत विरोध के सारे पैतरे आजमाने में लगी है। इसमें पाकिस्तान से दोस्ती बढ़ाना भी शामिल है। इसी साल की शुरुआत में बांग्लादेश की सेना के एक टॉप रैंकिंग जनरल ने पाकिस्तान का दौरान किया था, जहां पाकिस्तानी आर्मी चीफ सैयद आसिफ मुनीर समेत अन्य शीर्ष सैन्य अधिकारियों से मुलाकात की थी। इसके ठीक बाद पाकिस्तान की आईएसआई के अधिकारियों ने बांग्लादेश का दौरा किया था।

रिपोर्ट बताती है कि पाकिस्तानी आईएसआई एक बार फिर से बांग्लादेश में 1971 के पहले के रणनीतिक ठिकानों का एक्टिव करना चाहती है। पाकिस्तान का उद्येश्य बांग्लादेश के पड़ोसी भारतीय राज्यों में उग्रवादियों को मदद पहुंचाकर दिल्ली को चोट देना है। मोहम्मद यूनुस को समर्थन देने वाली कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी इसमें पूरा साथ देने के लिए तैयार है।

एमसीडी के 12000 संविदा कर्मचारी होंगे स्थायी, जानें क्या है दिल्ली हारने के बाद आप का प्लान

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दिल्ली विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद आम आदमी पार्टी (आप) चुप नहीं बैठी है। विधानसभा चुनाव में शिकस्त के बाद आप दिल्ली नगर निगम यानी एमसीडी के जरिये बीजेपी सरकार को ताकत दिखान की कोशिश में है। पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष बनाई गईं आतिशी के ताजा बयान से तो ऐसे ही संकेत मिल रहे हैं। दरअसल, आतिशी ने रविवार को घोषणा की कि दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) मंगलवार को होने वाली अपनी सदन की बैठक में 12,000 संविदा कर्मचारियों को नियमित करने की तैयारी में है।

आम आदमी पार्टी की नेता आतिशी ने रविवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान इस फैसले की घोषणा करते हुए कहा कि ‘आप’ के नेतृत्व वाली एमसीडी अस्थायी कर्मचारियों को नियमित करने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा, पिछले दो वर्षों में हमने 4,500 (संविदा) कर्मचारियों को स्थायी किया है। अब 25 फरवरी को एमसीडी सदन की बैठक में हम सफाई कर्मचारियों, कनिष्ठ अभियंताओं, वरिष्ठ अभियंताओं, माली और अन्य संविदा कर्मचारियों सहित सभी विभागों में 12,000 से अधिक कर्मचारियों को नियमित करने जा रहे हैं।

आतिशी ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर इस बारे में जानकारी देते हुए एक पोस्ट किया है। अपनी पोस्ट में आतिशी ने लिखा है, दिल्ली एमसीडी में आप सरकार ने ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए सभी विभागों के 12,000 अस्थाई कर्मचारियों को पक्का करने का फैसला किया है। 25 फरवरी को होने वाली एमसीडी सदन की बैठक में इस प्रस्ताव पर मुहर लगेगी। हमने एमसीडी के कच्चे कर्मचारियों से जो वादा किया था, उसे पूरा करने जा रहे हैं। देश के इतिहास में किसी भी सरकार ने इतना बड़ा फैसला नहीं लिया, जो आज अरविंद केजरीवाल जी के मार्गदर्शन में एमसीडी की "आप" सरकार लेने जा रही है।

वहीं आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने एक्स पर लिखा, एमसीडी के सभी 12,000 अस्थायी कर्मचारियों को बहुत-बहुत शुभकामनाएं। आम आदमी पार्टी ने अपना वादा निभाते हुए निगम के इन अस्थायी कर्मचारियों को स्थायी करने का ऐतिहासिक फैसला कर लिया है। 25 फरवरी को एमसीडी सदन की बैठक में ये प्रस्ताव पारित होगा।

दिल्ली विधानसभा में पहली बार बना खास संयोग, पक्ष-विपक्ष में शीर्ष पदों पर दो महिलाएं विराजमान

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दिल्ली विधानसभा में अब पक्ष और विपक्ष की ओर से दो महिलाएं आमने-सामने होंगी। एक ओर भारतीय जनता पार्टी ने जहां शालीमार बाग से विधायक रेखा गुप्ता को मुख्यमंत्री बनाया है। वहीं, आम आदमी पार्टी की विधायक दल की बैठक में नेता विपक्ष के लिए पूर्व सीएम आतिशी के नाम पर मुहर लग गई।यह पहली बार है कि एक साथ नेता सदन और नेता प्रतिपक्ष दोनों पदों पर महिलाएं ही होंगी।

दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद रविवार को आम आदमी पार्टी के विधायकों की बैठक हुई। बैठक में पूर्व सीएम आतिशी को नेता प्रतिपक्ष बनाने को लेकर आम राय बनी। आतिशी ने इस बार कालकाजी सीट से पूर्व सांसद और बीजेपी नेता रमेश बिधूड़ी को हराया था।

पार्टी की तरफ से सदन में नेता चुने को लेकर आतिशी ने जाने कहा कि आम आदमी पार्टी के विधायक दल की नेता की जिम्मेदारी सौंपने के लिए 'आप' के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल और विधायक दल का आभार। उन्होंने एक्स पर ट्वीट में लिखा, दिल्ली की जनता ने हमें विपक्ष की भूमिका सौंपी है, और हम एक मजबूत विपक्ष के रूप में यह सुनिश्चित करेंगे कि भाजपा सरकार दिल्लीवालों से किए अपने सभी वादे पूरे करें।

इससे पहले केवल मुख्यमंत्री पद पर महिला रही थी, लेकिन नेता प्रतिपक्ष पर पहली बार महिला की नियुक्ति हुई है। विधानसभा में वर्ष 1993 से 1998 तक भाजपा ने मदनलाल खुराना, साहिब सिंह और चुनाव से कुछ माह पहले सुषमा स्वराज को मुख्यमंत्री बनाया था। सुषमा स्वराज दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी थी। इस दौरान नेता प्रतिपक्ष कांग्रेस विधायक जगप्रवेश चंद्र रहे थे।

वहीं वर्ष 1998 में सत्ता परिवर्तन होने के बाद कांग्र्रेस ने शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री बनाया और वह वर्ष 2013 तक मुख्यमंत्री रही। इस दौरान विधानसभा के तीन कार्यकाल में वर्ष 1998 से 2008 तक भाजपा के प्रो. जगदीश मुखी नेता प्रतिपक्ष रहे और वर्ष 2008 से 2013 तक भाजपा ने अपने वरिष्ठ नेता प्रो. विजय कुमार मल्होत्रा को नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी दी।

वर्ष 2013 में आम आदमी पार्टी के सत्ता में आने पर उसके नेता अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बने और वह वर्ष 2024 के मध्य तक मुख्यमंत्री रहे और आप के शासन के तीसरे कार्यकाल में आप ने आतिशी को मुख्यमंत्री बनाया।

वहीं भाजपा ने वर्ष 2013 में डा. हर्षवर्धन, 2015 से 2020 तक विजेंद्र गुप्ता और वर्ष 2020 से 2024 तक रामवीर सिंह बिधूड़ी को नेता प्रतिपक्ष बनाया। वर्ष 2024 में उनके सांसद बनने के बाद विजेंद्र गुप्ता को नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी दी गई

मोटापे के खिलाफ पीएम मोदी की जंगः10 लोगों को दिया चैलेंज, आनंद महिंद्रा से लेकर उमर अब्दुल्ला को टास्क

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'मन की बात' कार्यक्रम को संबोधित करते हुए रविवार को देश में बढ़ते मोटापे की समस्या के मुद्दे को उठाया था। उन्होंने कहा कि खाने के तेल में 10% कमी करने जैसे छोटे-छोटे प्रयासों से इस चुनौती से निपटा जा सकता है। पीएम ने कहा कि इसके लिए वह एक चैलेंज शुरू करेंगे।इसके बाद उन्होंने कहा कि इस एपीसोड के बाद वे 10 लोगों को अपील कर नॉमिनेट करेंगे कि क्या वो अपने खाने में तेल को 10 फीसदी कम कर सकते हैं? इस अपील के अगले दिन ही यानी आज पीएम ने ट्वीट कर 10 लोगों को नॉमिनेट किया है।

पीएम मोदी ने नामित 10 लोगों से की ये अपील

सोमवार को प्रधानमंत्री मोदी ने इसके लिए जम्मू-कश्मीर के सीएम उमर अब्दुल्ला और महिंद्रा समूह के चेयरमैन आनंद महिंद्रा सहित 10 लोगों को चैलेंज किया है। प्रधानमंत्री मोदी ने एक्स पर पोस्ट करते हुए कहा, "जैसा कि कल 'मन की बात' में बताया गया था, मैं मोटापे के खिलाफ लड़ाई को मजबूत करने और भोजन में खाद्य तेल की खपत को कम करने के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए इन 10 लोगों को नॉमिनेट करना चाहता हूं। मैं उनसे यह भी अपील करता हूं कि वे भी 10-10 लोगों को नॉमिनेट करें ताकि हमारा आंदोलन और बड़ा हो।"

इन 10 लोगों को दिया चैलेंज

पीएम मोदी ने ने जिन 10 लोगों का नामित किया है उनमें, आनंद महिंद्रा, दिनेश लाल यादव निरहुआ, मनु भाकर, मीराबाई चानू, मोहनलाल, नंदन नीलेकणी, उमर अबदुल्ला, आर माधवन, श्रेया घोषाल और सुधा मूर्ति का नाम शामिल है।

उमर अब्दुल्ला ने भी दस लोगों को किया नॉमिनेट

पीएम मोदी के ओर से नॉमिनेट किए जाने के बाद उमर अब्दुल्ला ने खुशी जाहिर की है। उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा, ‘मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा मोटापे के खिलाफ शुरू किए गए अभियान में शामिल होकर बहुत खुश हूं। मोटापे के कारण कई तरह की जीवनशैली से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं, जैसे हृदय रोग, टाइप 2 मधुमेह, स्ट्रोक और सांस लेने की समस्याएं, साथ ही चिंता और अवसाद जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं भी होती हैं। आज मैं मोटापे के खिलाफ प्रधानमंत्री के अभियान में शामिल होने के लिए इन 10 लोगों को नामांकित कर रहा हूं और उनसे अनुरोध करता हूं कि वे इस लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए 10-10 लोगों को नामांकित करें।’ उमर ने किरण मजूमदार-शॉ, सज्जन जिंदल, दीपिका पादुकोण, सानिया मिर्जा, इरफान पठान, सुप्रिया सुले समेत 10 लोगों को नॉमिनेट किया है।

मन की बात कार्यक्रम में उठाया था मुद्दा

बता दें कि पीएम मोदी ने मन की बात में कहा था कि एक स्टडी के मुताबिक हर 8 में से एक व्यक्ति ओबेसिटी की समस्या से परेशान है। ज्यादा चिंता की बात है कि बच्चों में भी मोटापे की समस्या चार गुना बढ़ गई है। डब्ल्यूएचओ का डेटा बताता है कि 2022 में दुनियाभर में करीब ढाई सौ करोड़ लोग ओवरवेट थे। पीएम ने कहा, ‘हम सब मिलकर छोटे-छोटे प्रयासों से इस चुनौती से निपट सकते हैं। जैसे एक तरीका मैंने सुझाया था, खाने के तेल में 10 पर्सेंट की कमी करना।पीएम ने कहा, मैं आज ‘मन की बात’ के इस एपिसोड के बाद 10 लोगों को आग्रह करूंगा, चैलेंज करूंगा कि क्या वे अपने खाने में ऑयल को 10% कम कर सकते हैं? साथ ही उनसे यह आग्रह भी करूंगा कि वे आगे नए 10 लोगों को ऐसा ही चैलेंज दें। मुझे विश्वास है, इससे ओबेसिटी से लड़ने में बहुत मदद मिलेगी।

USAID ने भारत में बढ़ाने के लिए नहीं किस काम के लिए दिया फंड, वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट में खुलासा

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भारतीय चुनावों को प्रभावित करने में यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) की भूमिका इन दिनों काफी चर्चा में है। देश की सियासत में यूएसएड को लेकर विवाद बढ़ा हा है। इस विवाद के बीच वित्त मंत्रालय ने एक रिपोर्ट जारी किया है। इसमें फंडिंग को लेकर कई खुलाए किए गए हैं। रिपोर्ट में फंड से जुड़ी सारी डिटेल्स की जानकारी दी गई है कि यूएसएड ने कितनी फंडिंग और उस फंड का इस्तेमाल कहां कहां हुआ? वित्त मंत्रालय की 2023-24 की वार्षिक रिपोर्ट में बताया गया है कि यूएसएड ने भारत में सात प्रमुख परियोजनाओं को 750 मिलियन डॉलर यानी करीब 65 अरब की फंडिंग की। हालांकि, इस दौरान वोटिंग प्रतिशत बढ़ाने के कोई फंडिंग नहीं की गई।

वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक, यूएसएड की फंडिंग कृषि और खाद्य सुरक्षा, जल, स्वच्छता और साफ-सफाई, नवीकरणीय ऊर्जा, डिजास्टर मैनेजमेंट और हेल्थ से संबंधित प्रोजेक्ट्स के लिए थी। रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि यूएसएड ने वन एवं जलवायु अनुकूल कार्यक्रम और ऊर्जा दक्षता प्रौद्योगिकी व्यवसायीकरण और नवाचार परियोजना के लिए भी फंडिंग करने का वादा किया है।

भारत को अमेरिका से 1951 में मदद मिल रही

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत को अमेरिका से 1951 में मदद मिलनी शुरू हुई थी। यूएसएड की ओर से अब तक भारत को 555 प्रोजेक्ट के लिए 1700 करोड़ रुपये की आर्थिक मदद मिल चुकी है। इस बीच वॉशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार 2008 के बाद से भारत को यूएसऐड से चुनाव संबंधी किसी मदद का रिकॉर्ड नहीं है।

ट्रंप ने बाइडन प्रशासन पर लगाया आरोप

इसी महीने देश में राजनीतिक विवाद तब शुरू हो गया था जब अरबपति उद्योगपति एलन मस्क के नेतृत्व वाले डीओजीई ने दावा किया था कि उसने ‘मतदाता को प्रभावित करने’ के लिए भारत को दिए जाने वाले 2.1 करोड़ डॉलर के अनुदान को रद्द कर दिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी बार-बार दावा किया कि जो बाइडन के नेतृत्व वाले पिछले प्रशासन के तहत यूएसएड ने भारत को ‘मतदाता को प्रभावित' करने के लिए 2.1 करोड़ डॉलर का वित्त पोषण आवंटित किया था।

ट्रंप ने चार दिन में चौथी बार फंडिंग का सवाल उठाया

ट्रंप पिछले चार दिनों में चौथी बार भारत चुनाव में अमेरिकी फंडिंग पर सवाल उठाया है। इस बार उन्होंने कहा कि मेरे दोस्त मोदी को 182 करोड़ रुपए भेजे गए हैं। ये दूसरी बार है जब ट्रंप ने इस मामले में मोदी का नाम लिया है। ट्रम्प ने 21 फरवरी को कहा था कि ये फंड भारत में वोटर टर्नआउट बढ़ाने के लिए दिए गए। और हमारा क्या? हमें भी अमेरिका में वोटर टर्नआउट बढ़ाने के लिए पैसा चाहिए। इसके अलावा ट्रंप ने बांग्लादेश में भेजे गए 250 करोड़ रुपए का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश में राजनीतिक माहौल को मजबूत करने के लिए ये फंड एक ऐसी संस्था को भेजा गया, जिसका नाम भी किसी ने नहीं सुना।