कालकाजी मंदिर: जानें इस प्राचीन मंदिर से जुड़े रोचक तथ्य और इतिहास
नयी दिल्ली : देश की राजधानी दिल्ली में वैसे तो बहुत से प्राचीन मंदिर हैं, लेकिन उनमें से एक मंदिर है कालकाजी मंदिर। जिसके बारे में शायद आप में से सभी ने सुना होगा और दर्शन भी जरूर किए होंगे। इस मंदिर में रोजाना भक्तों दर्शन के लिए लंबी कतार देखने को मिलती है।
नवरात्रि के दिनों में तो यहां दर्शन करने वालों का तांता लगा रहता है। यह दिल्ली के कालकाजी एरिया में ही स्थित है।
मान्यता है कि इस मंदिर में देवी कालका मां से जो भी भक्त सच्चे दिल से जो भी मांगते हैं। उनकी मनोकामना जरूर पूरी होती है। वहीं इस मंदिर से जुड़े और भी कई रोचक किस्से और हजारों साल पुराना इतिहास भी है।
आज हम आपको इस आर्टिकल में कालकाजी मंदिर से जुड़े रोचक तथ्य और इससे जुड़े इतिहास के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं। जिसके बारे में शायद आप में से बहुत से लोग नहीं जानते होंगे।
किस देवी का स्वरूप है
मान्यता है कि यहां कई बार माता के स्वरूप में परिवर्तन देखने को मिला है। यह एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। कहा जाता है इस जगह पर माता आदिशक्ति 'महाकाली' के रूप में प्रकट हुई थी। जिसके बाद उन्होंने असुरों का संहार किया था। इसके बाद से ही यह एक सिद्ध पीठ के रूप में पूजा जाने लगा। यह भी कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना बाबा बालकनाथ ने की थी। जबकि जीर्णोद्धार मुगल साम्राज्य के सरदार अकबर शाह ने कराया था।
आज इस मंदिर में कालका मां के रूप में देवी शक्ति दुर्गा के स्वरूप को पूजा जाता है। आज यह देश के प्रसिद्ध सिद्धपीठों में से एक है।
कालकाजी मंदिर का इतिहास
इस प्राचीन मंदिर का इतिहास 3000 साल से भी अधिक पुराना बताया जाता है। यानि इस मंदिर का इतिहास महाभारत के समय से जुड़ा हुआ है। बताया जाता है, महाभारत युद्द के दौरान कौरव और पांडवों ने इसी मंदिर में जाकर देवी काली के दर्शन किए थे। ऐसे में यह मंदिर भारतीय संस्कृति और इतिहास का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
इस मंदिर का कई बार निर्माण और तोड़-फोड़ हो चुकी है। ऐसा कहा जा है कि सबसे पहले इसका हिस्सा 1764 ईस्वी के पास बनाया गया था। वर्तमान में जो मंदिर की संरचना है उसका निर्माण 18वीं और 19वीं शताब्दी का बताया जाता है।
कालकाजी मंदिर से जुड़े रोचक किस्से
मान्यता है कि नवरात्रि के दिनों में जो यहां मेला लगता है। इस दौरान होने वाली अष्टमी और नवमी के दौरान माता यहां घूमती हैं।
कहा जाता है अष्टमी वाले दिन सुबह की आरती के बाद मंदिर के कपाट खोल दिए जाते है।
और उस दिन शाम को और अगले पूरे दिन आरती नहीं होती है और फिर दशमी वाले दिन मंदिर आरती की जाती है।
आमतौर पर ग्रहण के काल में मंदिर सूतक काल से ही बंद कर दिए जाते हैं, लेकिन कालकाजी उन मंदिरों में से है, जो कि सूर्यग्रहण के दौरान भी खुला रहता है।इस दौरान भक्तों को भी अंदर जाकर पूजा-पाठ करने की अनुमति होती है।
कैसे पहुंचे कालकाजी मंदिर
इस मंदिर में पहुंचने का सबसे अच्छा साधन मेट्रो है। यह मंदिर दिल्ली मेट्रो की वायलेट लाइन पर पड़ता है। मेट्रो स्टेशन का नाम भी कालकाजी है। यहीं आप उतरकर आसानी से मंदिर वाक करते हुए जा सकते हैं। इसके अलावा आप सड़क मार्ग से अपनी पर्सनल कार, बस, टैक्सी, बाइक और स्कूटी से भी पहुंच सकते हैं। मंदिर तक आप ई-रिक्शा के जरिए भी जा सकती हैं। मंदिर से दर्शन करने के बाद आप नेहरू प्लेस, ओखला बर्ड सेंचुरी, लॉट्स टेंपल और इंडिया गेट जैसी आसपास जगहों को घूम सकती हैं।
Jan 07 2025, 13:43