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पनामा नहर की क्या है अहमियत, अमेरिका के कंट्रोल की दी धमकी, ट्रंप के बयान से मची खलबली

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अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की पनामा नहर पर नियंत्रण वापस लेने के बयान से विवाद खड़ा हो गया है। ट्रंप ने रविवार को कहा कि उनका प्रशासन पनामा नहर पर नियंत्रण हासिल करने का प्रयास कर सकता है। अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पनामा से कहा है कि वह पनामा नहर की फीस कम करे या तो उस पर नियंत्रण अमेरिका को वापस कर दे। ट्रंप ने आरोप लगाया कि मध्य अमेरिकी देश पनामा अमेरिकी मालवाहक जहाज़ों से ज़्यादा क़ीमत वसूल रहा है। वहीं पनामा के राष्ट्रपति जोस राउल मुलिनो ने इस धारणा को अपने देश की संप्रभुता का अपमान बताते हुए इसे सिरे से खारिज कर दिया।

ट्रंप के पास अगले महीने अमेरिका की कमान आने वाली है।इससे पहले ट्रंप ने रविवार को कहा कि उनका प्रशासन पनामा नहर पर नियंत्रण हासिल करने का प्रयास कर सकता है जिसे अमेरिका ने ‘मूर्खतापूर्ण’ तरीके से अपने मध्य अमेरिकी सहयोगी को सौंप दिया था। ट्रंप ने अपनी इस बात के पीछे तर्क दिया कि अटलांटिक और प्रशांत महासागरों को जोड़ने वाली इस अहम नहर से गुजरने के लिए जहाजों से ‘बेवजह’ शुल्क वसूला जाता है।

एरिजोना में ‘टर्निंग प्वाइंट यूएसए अमेरिकाफेस्ट’ में समर्थकों को संबोधित करते हुए ट्रंप ने ये बातें कहीं। पनामा के राष्ट्रपति जोस राउल मुलिनो ने इस धारणा को अपने देश की संप्रभुता का अपमान बताते हुए इसे सिरे से खारिज कर दिया। साथ ही कहा कि पनामा कभी भी सौदेबाजी का विषय नहीं होगा। पनामा के राष्ट्रपति मुलिनो ने ट्रंप के बयान को खारिज कर कहा, 'नहर और उसके आसपास का हर वर्ग मीटर पनामा का है और पनामा का ही रहेगा। पनामा के लोगों के कई मुद्दों पर अलग-अलग विचार हो सकते हैं, लेकिन जब हमारी नहर और हमारी संप्रभुता की बात आती है तो हम सभी एकजुट हैं। इसलिए नहर का नियंत्रण पनामा का है और यह कभी भी सौदेबाजी का विषय नहीं होगा।'

पनामा नहर अहम क्यों?

82 किलोमीटर लंबी पनामा नहर अटलांटिक और प्रशांत महासागर को जोड़ती है। हर साल पनामा नहर से क़रीब 14 हज़ार पोतों की आवाजाही होती है। इनमें कार ले जाने वाले कंटेनर शिप के अलावा तेल, गैस और अन्य उत्पाद ले जाने वाले पोत भी शामिल हैं। पनामा की तरक़्क़ी का इंजन उसकी यही नहर है। पनामा के पास जब से नहर का नियंत्रण आया है, तब से उसके संचालन की तारीफ़ होती रही है। पनामा की सरकार को इस नहर से हर साल एक अरब डॉलर से ज़्यादा की ट्रांजिट फीस मिलती है। हालांकि पनामा नहर रूट से कुल वैश्विक ट्रेड का महज पाँच फ़ीसदी करोबार ही होता है।

अमेरिका ने पनामा को क्यों सौंपी थी नहर

अमेरिका ने 1900 के दशक की शुरुआत में इस नहर का निर्माण किया था। उसका मकसद अपने तटों के बीच वाणिज्यिक और सैन्य जहाजों के आवागमन को सुविधाजनक बनाना था। 1977 तक इस पर अमेरिका का नियंत्रण था। इसके बाद पनामा और अमेरिका का संयुक्त नियंत्रण हुआ लेकिन 1999 में इस पर पूरा नियंत्रण पनामा का हो गया था। अमेरिका ने 1977 में राष्ट्रपति जिमी कार्टर द्वारा हस्ताक्षरित एक संधि के तहत 31 दिसंबर 1999 को जलमार्ग का नियंत्रण पनामा को सौंप दिया था।

पनामा नहर विवादों में क्यों?

यह नहर जलाशयों पर निर्भर है और 2023 में पड़े सूखे से यह काफी प्रभावित हुई थी, जिसके कारण देश को इससे गुजरने वाले जहाजों की संख्या को सीमित करना पड़ा था। इसके अलावा नौकाओं से लिया जाने वाला शुल्क भी बढ़ा दिया गया था। इस वर्ष के बाद के महीनों में मौसम सामान्य होने के साथ नहर पर पारगमन सामान्य हो गया है लेकिन शुल्क में वृद्धि अगले वर्ष भी कायम रहने की उम्मीद है।

पाकिस्तान को बड़ा झटकाः ब्रिक्स के पार्टनर कंट्रीज की लिस्ट में भी नहीं मिली जगह, भारत के वीटो के आगे हुआ पस्त

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ब्रिक्स में सदस्यता पाने का ख्वाब देखने वाले पाकिस्तान का सपना चूर हो गया है। पाकिस्तान की ब्रिक्स की सदस्यता पाने की उम्मीदों को भारत के सख्त विरोध ने चकनाचूर कर दिया है। भारत के कड़े विरोध की वजह से पाकिस्तान न सिर्फ ब्रिक्स की सदस्यता से वंचित हुआ, बल्कि उसे पार्टनर कंट्रीज की सूची में भी जगह नहीं मिल पाई। इस बीच, तुर्किए ने खुद को ब्रिक्स पार्टनर कंट्रीज की सूची में शामिल कराकर महत्वपूर्ण लाभ प्राप्त किया है।

रूस ने हाल ही में 13 नए पार्टनर कंट्रीज की घोषणा की है। रूस ने इन 13 देशों को ब्रिक्‍स में पार्टनर कंट्री बनने का न्‍योता भेजा है जिसमें से 9 ने इसकी पुष्टि कर दी है। ये नौ देश हैं- बेलारूस, बोलविया, इंडोनेशिया, कजाखस्‍तान, क्‍यूबा, मलेशिया, थाइलैंड, यूगांडा, उज्‍बेकिस्‍तान। ये पार्टनर कंट्रीज आगे चलकर ब्रिक्‍स के सदस्‍य बनेंगे। ये देश 1 जनवरी 2025 से ब्रिक्स के पार्टनर कंट्रीज बनेंगे

चीन-रूस का समर्थन भी नहीं आया काम

हालांकि, इन 13 देशों में पाकिस्‍तान का नाम नहीं है। पाकिस्तान, जो चीन और रूस के समर्थन से ब्रिक्स में प्रवेश की कोशिश कर रहा था, इस सूची में अपनी जगह बनाने में असफल रहा।

ब्रिक्स में भारत का सख्त रुख

भारत का विरोध पाकिस्तान की ब्रिक्स में सदस्यता के प्रयासों के लिए सबसे बड़ा अवरोध साबित हुआ। पाकिस्तान ने ब्रिक्स में शामिल होने के लिए चीन और रूस से समर्थन प्राप्त किया था, लेकिन भारत ने साफ तौर पर इसका विरोध किया। ब्रिक्स के नए सदस्य देशों को शामिल करने के लिए सभी संस्थापक सदस्यों की सहमति जरूरी होती है। भारत ने पाकिस्तान की दावेदारी का कड़ा विरोध किया, जिससे उसके लिए दरवाजे बंद हो गए। भारत का यह विरोध पाकिस्तान की विदेश नीति के कमजोर पक्ष को उजागर करता है। भारत के सख्त रुख के कारण पाकिस्तान के लिए ब्रिक्स का दरवाजा बंद हो गया।

कश्‍मीर को लेकर तुर्की के बदले रूख का असर?

ब्रिक्‍स के 13 नए पार्टनर कंट्रीज का ऐलान हो गया है जिसमें सबसे बड़ा फायदा तुर्की को हुआ है। इन दिनों कश्‍मीर मुद्दे को अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर उठाने से परहेज कर रहे तुर्की को पार्टनर कंट्रीज में जगह मिल गई है। माना जा रहा है कि कश्‍मीर को लेकर तुर्की के राष्‍ट्रपति एर्दोगन के रुख में आए बदलाव की वजह से भारत ने ब्रिक्‍स में उसकी दावेदारी का विरोध नहीं किया।

राजनयिक लचीलापन और रणनीतिक समायोजन

विशेषज्ञों का मानना है कि तुर्की की ब्रिक्‍स में भागीदारी इस बात का प्रमाण है कि कूटनीतिक लचीलापन और रणनीतिक समायोजन के माध्यम से देशों को महत्वपूर्ण कूटनीतिक लाभ मिल सकता है। तुर्की ने अपने कूटनीतिक रिश्तों में लचीलापन दिखाते हुए भारत के साथ अपने पुराने मतभेदों को सुलझाने की कोशिश की, जिसके परिणामस्वरूप भारत ने तुर्की के पक्ष में सहमति जताई। दूसरी ओर, पाकिस्तान ने अपने राजनयिक प्रयासों में उस लचीलापन और समायोजन का इस्तेमाल नहीं किया, जिससे उसे इस अवसर का लाभ मिल सकता था। पाकिस्तान को अब अपनी कूटनीतिक रणनीतियों पर पुनर्विचार करना होगा।

ब्रिक्‍स में पाकिस्‍तान की बड़ी व‍िफलता

ब्रिक्स के पार्टनर कंट्रीज में भी पाकिस्तान को जगह नहीं मिलने की बड़ी वजह उसकी विदेश नीति है। कुछ पाकिस्‍तानी विश्लेषकों भी ये बात मानते हैं। पाकिस्‍तान की विदेश मामलों की जानकार और चर्चित पत्रकार मरियाना बाबर ने एक्‍स पर लिखा', ' यह पाकिस्‍तान के विदेश मंत्रालय की पूरी तरह से विफलता है। वह भी तब जब इशाक डार विदेश मंत्री हैं जिनकी विदेशी मामलों में सबसे कम रुच‍ि है। यहां तक कि नाइजीरिया ने पाकिस्‍तान से बेहतर किया है। पाकिस्‍तान को रूस, चीन और भारत ने ब्रिक्‍स से बाहर रखा।' बता दें कि इशाक डार नवाज शरीफ के समधी और मरियम नवाज के ससुर हैं। इशाक डार पहले वित्‍त मंत्री हुआ करते थे लेकिन अब उन्‍हें शहबाज शरीफ के विरोध के बाद मजबूरन विदेश मंत्रालय से संतोष करना पड़ रहा है।

पाकिस्तान के लिए क्यों जरूरी थी ब्रिक्स की सदस्यता

विश्लेषकों का मानना है कि पाकिस्तान को अगर ब्रिक्स में सदस्यता मिल जाती, तो इसके माध्यम से उसे कई लाभ मिल सकते थे। ब्रिक्स के सदस्य देशों के साथ पाकिस्तान को व्यापार और निवेश के क्षेत्र में नए अवसर मिल सकते थे। ब्रिक्स का सदस्य बनने से पाकिस्तान को विभिन्न वैश्विक मंचों पर भी अधिक प्रभाव मिल सकता था। इसके अलावा, ब्रिक्स के सदस्य देशों से आर्थिक सहायता और सहयोग पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में मदद कर सकता था।

विशेषज्ञों के अनुसार, पाकिस्तान को अपनी कूटनीतिक रणनीति में बदलाव लाने की जरूरत है। इसे अपनी विदेश नीति को अधिक लचीला और समायोजनीय बनाना होगा, ताकि भविष्य में इसे इस तरह के अवसरों से वंचित नहीं होना पड़े।

मोहम्मद यूनुस सार्क को फिर जिंदा करना चाहते हैं, पाकिस्तान बना मददगार, लेकिन भारत क्यों नहीं चाहता?

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बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने एक बार फिर दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) को पुनर्जीवित करने की जरूरत पर जोर दिया।संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के साथ मीटिंग में उन्होंने सार्क को पुनर्जीवित करने को लेकर अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया है कि दक्षिण एशिया के नेताओं को क्षेत्रीय लाभ के लिए सार्क को सक्रिय बनाना चाहिए, भले ही भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से चली आ रही शत्रुता जैसी चुनौतियां मौजूद हों।उन्होंने कहा है कि इन दोनों देशों के बीच की समस्याओं का असर दक्षिण एशिया के अन्य देशों पर नहीं पड़ना चाहिए और क्षेत्र में एकता और सहयोग का आह्वान किया।

सार्क संगठन की शिखर बैठक वर्ष 2016 में होने वाली थी लेकिन भारत समेत इसके अन्य सभी देशों ने पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के खिलाफ इसका विरोध किया और बैठक नहीं हो सकी। उसके बाद सार्क की बात भी कोई देश नहीं कर रहा था लेकिन पूर्व पीएम शेख हसीना को सत्ता से बाहर करने के बाद बांग्लादेश की अंतरिम सरकार इसको हवा देने में जुटी है

19 दिसंबर को मिस्त्र में बांग्लादेश के सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ के बीच एक महत्वपूर्ण मुलाकात हुई थी। इस बैठक में सार्क को फिर से सक्रिय करने की बात कही गई। पाकिस्तानी पीएम ने बांग्लादेश को सुझाव दिया कि वह सार्क सम्मेलन की मेजबानी करे। इस पर मोहम्मद यूनुस ने भी सहमति जताई और दोनों नेताओं ने इस योजना को आगे बढ़ाने की बात कही। पाकिस्तान की मंशा थी कि इस मंच के बहाने अलग थलग पड़े पाकिस्तान को दक्षिण एशियाई क्षेत्र में अपनी भूमिका मजबूत करने का मौका मिल सके।

बांग्लादेश के अंतरिम सरकार के मुखिया (मुख्य सलाहकार) प्रोफेसर मोहम्मद युनूस की तरफ से दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) को ठंडे बस्ते से निकालने की कोशिश पर भारत ने बेहद ठंडी प्रतिक्रिया जताई है।भारत ने इस मुद्दे पर अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि वर्तमान में सार्क को पुनर्जीवित करने का कोई औचित्य नहीं है।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल से पूछा गया तो उनका जवाब था कि, “जहां तक क्षेत्रीय सहयोग की बात है तो भारत इसके लिए लगातार कोशिश करता रहा है। इसके लिए हम कई प्लेटफॉर्म के जरिए आगे बढ़ना चाहते हैं। इसमें बिम्सटेक (भारत, भूटान, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, म्यांमार और थाइलैंड का संगठन) है जिसमें कई हमारे पड़ोसी देश जुड़े हुए हैं। सार्क भी ऐसा ही एक संगठन है लेकिन यह लंबे समय से ठंडा पड़ा हुआ है और क्यों ठंडा पड़ा हुआ है, इसके बारे में सब जानते हैं।'

भारत ने इसलिए सार्क से बनाई दूरी

दक्षिण एशिया में सार्क का महत्व यूरोपीय संघ (EU), आसियान और इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) जैसे वैश्विक संगठनों की सफलता के उदाहरणों से प्रेरित है। हालांकि पाकिस्तान के साथ तनाव के कारण भारत ने धीरे-धीरे इसमें दिलचस्पी कम कर दी। 2016 में पाकिस्तान में हुए शिखर सम्मेलन में भारत ने हिस्सा नहीं लिया था। भारत ने 2016 में जम्मू-कश्मीर के उरी में सेना के शिविर पर हुए हमले के बाद पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को समर्थन दिए जाने पर चिंता जताई थी। उस हमले में उन्नीस भारतीय सैनिक मारे गए थे। हमले के बाद भारत ने शिखर सम्मेलन से अपना नाम वापस ले लिया। भारत जैसे बड़े देश की ओर से दूरी बनाने के बाद नेपाल, श्रीलंका, भूटान, अफगानिस्तान, मालदीव और शेख हसीना के नेतृत्व वाले बांग्लादेश ने भी सार्क में अपनी दिलचस्पी कम कर दी।

पाकिस्तान ने पहले भी सार्क को पुनर्जीवित करने का आह्वान किया है

यह पहली बार नहीं है कि पाकिस्तान ने सार्क को पुनर्जीवित करने की इच्छा व्यक्त की है।डॉन के अनुसार, दिसंबर 2023 में तत्कालीन कार्यवाहक प्रधान मंत्री अनवारुल हक काकर ने भी सार्क के पुनरुद्धार की आशा व्यक्त की थी। काकर ने कहा, "मैं इस अवसर पर सार्क प्रक्रिया के प्रति पाकिस्तान की प्रतिबद्धता को दोहराना चाहूंगा। मुझे विश्वास है कि संगठन के सुचारू संचालन में मौजूदा बाधाएं दूर हो जाएंगी, जिससे सार्क सदस्य देश पारस्परिक रूप से लाभकारी क्षेत्रीय सहयोग के मार्ग पर आगे बढ़ सकेंगे।" लेकिन भारत सार्क के पुनरुद्धार के खिलाफ रहा है।

बांग्लादेश और पाकिस्तान सार्क को पुनर्जीवित क्यों करना चाहते हैं?

यह व्यापार और अर्थव्यवस्था ही है जिसके कारण बांग्लादेश और पाकिस्तान सार्क के पुनरुद्धार के पक्ष में हैं। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था खस्ताहाल है और वह अपने दैनिक खर्चों को पूरा करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से कर्ज ले रहा है। उसने खाड़ी देशों से भी कर्ज लिया है।शेख हसीना के नेतृत्व में बांग्लादेश ने अच्छी आर्थिक वृद्धि देखी थी, लेकिन पिछले कुछ सालों में यह बुरी तरह से विफल हो गया है। इसकी आर्थिक दुर्दशा के लिए भ्रष्टाचार को दोषी ठहराया जाता है। अपनी अर्थव्यवस्थाओं को पुनर्जीवित करने के लिए नोबेल पुरस्कार विजेता यूनुस और शरीफ दोनों ही सार्क पर नज़र गड़ाए हुए हैं। ढाका ट्रिब्यून की रिपोर्ट से यह स्पष्ट है कि सार्क की बात करते समय उनके दिमाग में व्यापार का मुद्दा था।इसमें कहा गया, "शरीफ ने बांग्लादेश के कपड़ा और चमड़ा क्षेत्र में निवेश करने में पाकिस्तान की रुचि व्यक्त की।"

क्यों नहीं है भारत को सार्क की जरूरत?

हमें यह याद रखना होगा कि इस समूह में सबसे बड़ा खिलाड़ी भारत है, जो एक आर्थिक महाशक्ति है। भारत उन प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक है जो अभी भी उच्च दर से बढ़ रही है जबकि बड़ी अर्थव्यवस्थाएं लड़खड़ा रही हैं। एसएंडपी का अनुमान है कि सालाना 7% से अधिक की दर से बढ़ते हुए भारत 2030-31 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। भारत जी-20 और ब्रिक्स सहित कई समूहों का भी हिस्सा है। व्यापार और व्यवसाय के मामले में, सार्क को भारत की जरूरत है, न कि इसके विपरीत। भारत को अपने सदस्यों के साथ संबंध बनाए रखने के लिए, यदि आवश्यक हो, तो समूह की जरूरत है। यह काम नई दिल्ली द्विपक्षीय रूप से भी कर सकता है, बिना किसी बहुपक्षीय मंच के।

दाऊद के भाई इकबाल कास्कर के खिलाफ ईडी का एक्शन, ठाणे में जब्त किया फ्लैट

#ed_takes_action_against_dawood_ibrahims_brother

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने भगोड़े अंडरवर्ल्ड गैंगस्टर दाऊद इब्राहिम के भाई इकबाल कास्कर और उसके साथियों से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ठाणे में एक फ्लैट को अपने कब्जे में ले लिया है।यह कार्रवाई उसके और उसके भाई दाऊद इब्राहिम के खिलाफ चल रही मनी लॉन्ड्रिंग जांच का हिस्सा है। ईडी ने आरोप लगाया कि कास्कर और उसके साथियों ने ठाणे के एक बिल्डर को डरा-धमका कर फ्लैट सरेंडर करने के लिए मजबूर किया और संपत्ति को अपने सहयोगी मुमताज शेख के नाम पर पंजीकृत करा दिया।

न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, ईडी के सूत्रों ने बताया कि ठाणे पश्चिम में नियोपोलिस बिल्डिंग में स्थित आवासीय इकाई को उसके मालिक मुमताज एजाज शेख के खिलाफ 2022 में पीएमएलए के तहत जारी एक अनंतिम आदेश के तहत कुर्क किया गया है। धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के न्यायाधिकरण ने इस अनंतिम कुर्की आदेश को मंजूरी दी थी, जिससे ईडी के लिए इसे अपने कब्जे में लेने का रास्ता साफ हो गया। सूत्रों ने बताया कि फ्लैट को कब्जे में लेने की प्रक्रिया हाल ही में पूरी हुई है।

लगभग 75 लाख रुपये की कीमत का यह प्लैट मुमताज शेख के नाम पर था। कथित तौर पर इसे बिल्डर सुरेश मेहता और उनकी फर्म दर्शन एंटरप्राइजेज को निशाना बनाकर जबरन वसूली की योजना के तहत हासिल किया गया था। कथित तौर पर आरोपियों ने फर्जी चेक के जरिए फ्लैट और 10 लाख रुपये नकद मांगे, जिन्हें बाद में वापस ले लिया गया। ईडी की जांच में पाया गया कि ये वित्तीय लेन-देन जबरन वसूली गई रकम के लाभार्थियों को छिपाने के लिए किए गए थे।

ईडी ने दो एफआईआर के आधार पर मनी लॉन्ड्रिंग के लिए कास्कर की जांच की। पहला मामला एनआईए ने दाऊद इब्राहिम, अनीस इब्राहिम, छोटा शकील, टाइगर मेमन और अन्य के खिलाफ दर्ज किया था। दूसरा मामला इकबाल कासकर, मुमताज शेख और इसरार अली जमील सैय्यद के खिलाफ ठाणे के कासरवडवली पुलिस स्टेशन में जबरन वसूली का था। ठाणे पुलिस के मामले में बिल्डर से जबरन एक फ्लैट और 90 लाख रुपये की सुरक्षा राशि लेने का आरोप लगाया गया था। ईडी ने कहा कि उन्हें कई गवाह मिले जिन्होंने इकबाल मिर्ची, दाऊद इब्राहिम, टाइगर मेमन और आईएसआई अधिकारियों के बीच संबंधों की पुष्टि की। ईडी ने कहा कि 2003 में भारत में निर्वासित होने के बाद कासकर ने कथित तौर पर बिल्डरों और मशहूर हस्तियों से धन उगाही शुरू कर दी। ईडी ने कहा कि उसने अपने सहयोगियों का इस्तेमाल पीड़ितों को डराने और दाऊद के लिए धन इकट्ठा करने के लिए किया।

चुनाव आयोग के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची कांग्रेस, नियमों में बदलाव की मांग

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कांग्रेस चुनाव आयोग के नियमों में बदलाव को लेकर केंद्र सरकार के हालिया फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची है। दरअसल, केन्द्र की मोदी सरकार ने सीसीटीवी कैमरे और वेबकास्टिंग फुटेज के साथ-साथ उम्मीदवारों की वीडियो रिकॉर्डिंग जैसे कुछ इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों के सार्वजनिक निरीक्षण को रोकने के लिए चुनाव से संबंधित नियम में बदलाव किया है, ताकि उनका दुरुपयोग रोका जा सके। अब कांग्रेस ने हाल ही में किए गए इन संशोधनों को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की है।

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने इस संबंध में मंगलवार को एक याचिका दायर की। जयराम रमेश ने याचिका दायर करने की जानकारी एक्स पर दी। जयराम रमेश ने याचिका दायर करने के बाद एक्स पर लिखा, "निर्वाचनों का संचालन नियम 1961 में हाल के संशोधनों को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक रिट दायर की गई है। चुनाव आयोग एक संवैधानिक निकाय है। इस पर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की जिम्मेदारी है, इसलिए इसे एकतरफा और सार्वजनिक विचार-विमर्श के बिना इतने महत्वपूर्ण नियम में इतनी निर्लज्जता से संशोधन करने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। उस परिस्थिति में तो विशेष रूप से नहीं जब वह संशोधन चुनावी प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाने वाली आवश्यक जानकारी तक सार्वजनिक पहुंच को समाप्त करता है। चुनावी प्रक्रिया में सत्यनिष्ठा तेजी से कम हो रही है। उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट इसे बहाल करने में मदद करेगा।"

सरकार ने किन नियमों को बदला?

चुनाव संचालन नियम, 1961 के नियम 93 अनुबंधों के मुताबिक, चुनाव से संबंधित सभी 'कागजात' सार्वजनिक निरीक्षण के लिए रखे जाएंगे। यानी ये सार्वजनिक स्तर पर उपलब्ध होंगे। अब केंद्र सरकार ने इस नियम में संशोधन किया है। इसके तहत अब नियम 93 की शब्दावली में 'कागजातों' के बाद 'जैसा कि इन नियमों में निर्दिष्ट है' शब्द जोड़े गए हैं।

चुनाव आयोग से मशवरे के बाद केंद्रीय कानून और विधि मंत्रालय की तरफ से किएगए बदलावों के बाद अब चुनाव संबंधी सभी दस्तावेजों को सार्वजनिक निरीक्षण के लिए नहीं रखा जाएगा। अब आम जनता सिर्फ उन्हीं चुनाव संबंधी दस्तावेजों को देख सकेगी, जिनका जिक्र चुनाव कराने से जुड़े नियमों में पहले से तय होगा।

इसका क्या असर होने वाला है?

चूंकि नामांकन फार्म, चुनाव एजेंट की नियुक्ति, परिणाम और चुनाव खाता विवरण जैसे दस्तावेजों का जिक्र चुनाव संचालन नियमों में किया गया है, इसलिए इन्हें सार्वजनिक निरीक्षण के लिए बरकरार रखा जाएगा। हालांकि, आदर्श आचार संहिता अवधि के दौरान सीसीटीवी कैमरा फुटेज, वेबकास्टिंग फुटेज और उम्मीदवारों की वीडियो रिकॉर्डिंग जैसे इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज चुनाव संचालन नियमों के दायरे में नहीं आते हैं। ऐसे में यह दस्तावेज जनता की पहुंच से दूर हो जाएंगे।

अब कांग्रेस ने मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष के चयन पर उठाया सवाल, कहा-नियुक्तियां पहले से तय थीं, नहीं ली गई राय

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राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का नया अध्यक्ष सु्प्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस वी. रामासुब्रमण्यम को नियुक्त किया गया है। एनएचआरसी के पूर्व अध्यक्ष रिटायर्ड जस्टिस अरुण कुमार मिश्रा जून में रिटायर हो गए थे। इसक बाद से ही ये पद खाली था। मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 के तहत राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने जस्टिस वी. रामासुब्रमण्यम को एनएचआरसी का अध्यक्ष नियुक्त किया है। हालांकि, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों के चुनाव पर कांग्रेस ने सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने डिसेंट नोट जारी कर चुनाव की इस पूरी प्रक्रिया को गलत कहा है।

कांग्रेस की ओर से जारी किए गए नोट में कहा गया है कि एनएचआरसी के चेरयपर्सन की सिलेक्शन कमेटी में लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे भी थे, लेकिन उनकी राय को गंभीरता से नहीं लिया गया।कांग्रेस ने कहा कि चयन समिति की बैठक बुधवार को हुई थी, लेकिन यह पहले से निर्धारित एक्सरसाइज थी। इसमें एक-दूसरे की सहमति लेने की परंपरा को नजरअंदाज कर दिया गया। ऐसे मामलों में यह आवश्यक होता है।

यह निष्पक्षता के प्रिंसिपल को कमजोर करता है, जो चयन समिति की विश्वसनीयता के लिए महत्वपूर्ण है। सभी की राय लेने विचार करने को बढ़ावा देने के बजाय समिति ने बहुमत पर भरोसा किया। इस मीटिंग में कई वाजिब चिंताएं उठाई गई थीं, लेकिन उसे दरकिनार कर दिया गया।

कांग्रेस ने इन नामों पर जताई थी सहमति

राहुल और खड़गे ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन और जस्टिस केएम जोसेफ के नाम पर सहमति जताई थी। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज वी. रामसुब्रमण्यन को मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष चुना गया है। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष चुनते समय क्षेत्र, धर्म और जाति के संतुलन को ध्यान में नहीं रखा गया। उन्होंने आरोप लगाया कि यह चयन प्रक्रिया सरकार के दृष्टिकोण को दर्शाती है।

कांग्रेस ने उठाए ये मुद्दे

राहुल और खड़गे ने कहा था कि एनएचआरसी एक महत्वपूर्ण संस्था है। इसका काम समाज के हाशिए पर पड़े वर्गों के लोगों के लोगों के मौलिक मानवाधिकारों की रक्षा करना है। जरूरी है कि एनएचआरसी अलग-अलग समुदायों की चिंताओं पर ध्यान दे। उनके मानवाधिकारों के उल्लंघन के प्रति संवेदनशीलता बने रहे। जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन अल्पसंख्यक पारसी समुदाय से आते हैं। वे संविधान के प्रति अपने कमिटमेंट के लिए जाने जाते हैं। अगर उन्हें चेयरमैन बनाया जाता तो एनएचआरसी का देश के लिए समर्पण का मजबूत संदेश जाता। इसी तरह, एक और अल्पसंख्यक ईसाई समुदाय से आने वाले जस्टिस कुट्टियिल मैथ्यू जोसेफ ने भी ऐसे कई फैसले देते हैं, जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता और हाशिए पर पड़े वर्गों की सुरक्षा पर जोर देता है।

ये चुने गए आयोग के सदस्य

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने सोमवार को पैनल की नियुक्ति की जानकारी दी। आयोग ने एक पोस्ट में लिखा- 'राष्ट्रपति ने जस्टिस वी. रामसुब्रमण्यन को अध्यक्ष, प्रियांक कानूनगो और जस्टिस विद्युत रंजन सारंगी को सदस्य के रूप में नियुक्त किया है।'

आपको बता दें कि प्रियांक कानूनगो इसके पहले राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष रह चुके हैं। कांग्रेस ने जिन जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन के नाम पर सहमति दी थी, वह पारसी समुदाय से आते हैं। वहीं जस्टिस कुट्टियिल मैथ्यू जोसेफ ईसाई समुदाय से आते हैं।

कैसे होती है एनएचआरसी प्रमुख की नियुक्ति

एनएचआरसी अध्यक्ष की नियुक्ति राष्ट्रपति एक चयन समिति की सिफारिश पर करते हैं। इस चयन समिति की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं, जबकि इसमें लोकसभा अध्यक्ष, गृह मंत्री, लोकसभा और राज्यसभा में विपक्ष के नेता और राज्यसभा के उप सभापति भी सदस्य होते हैं। जस्टिस मिश्रा के सेवानिवृत्त होने के बाद एनएचआरसी की सदस्य विजया भारती को कार्यवाहक अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। 18 दिसंबर को हुई बैठक के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) वी. रामासुब्रमण्यन को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) का अध्यक्ष नियुक्त किया। साथ ही, प्रियांक कानूनगो और न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) बिद्युत रंजन सारंगी को आयोग का सदस्य नियुक्त किया।

लहसुन 40 से 400 पहुंच गया...जब राहुल गांधी निकले सब्जी खरीदने, शेयर किया वीडियो

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कांग्रेस सांसद और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने बढ़ती महंगाई को लेकर मोदी सरकार पर एक बार फिर हमला बोला है। उन्होंने एक्स पर एक वीडियो शेयर किया है। राहुल ने जो वीडियो शेयर किया है वो एक सब्जी मंडी का है। राहुल गांधी ने वीडियो शेयर करते हुए एक्स पर लिखा, लहसुन कभी 40 रुपए था, आज 40 रुपए किलो हो गया है।

राहुल ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर वीडियो शेयर किया है, जिसमें वह एक सब्जी मंडी में सब्जीवाले से अलग-अलग सब्जियों के रेट पूछ रहे हैं। राहुल के साथ महिलाएं भी हैं। इसमें एक महिला कहती हैं कि इस लहसुन से ज्यादा तो सोना सस्ता होगा। साथ ही एक महिला कर रही हैं कि शलजम 30-40 रुपये किलो में मिल जाते हैं लेकिन आज ये 60 रुपये किलो बता रहे हैं।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जो वीडियो शेयर किया है, वह गिरी नगर का बताया जा रहा है। इस वीडियो में कांग्रेस सांसद राहुल गांधी एक महिला से सवाल करते हैं कि आज आप क्या खरीद रहे हो। वह कहती हैं कि वह थोड़े से टमाटर, थोड़ी सी प्याज खरीद रही हैं। वह महिला सब्जी वाले से कहती हैं कि इस बार इतनी महंगाई क्यों हैं। कुछ भी कम ही नहीं हो रहा है। वह सब्जी विक्रेता कहते हैं कि इस बार बहुत ज्यादा मंहगाई है और इससे पहले कभी भी इतनी महंगाई नहीं हुई है।

वीडियो में महिलाओं को कहते हुए देखे जा सकता है, आज उन्होंने राहुल गांधी को चाय पर बुलाया है। ताकि वो देखें कि कितनी मंहगाई है। महिला आगे कहती है, हमारा बजट बहुत ज्यादा बिगड़ गया है, सैलरी किसी की नहीं बढ़ी है लेकिन दाम बढ़ गया है और वो घटने का नाम नहीं ले रहा है।

बता दें कि दिल्ली में अगले साल फरवरी में विधानसभा का चुनाव होना है। उससे पहले राहुल एक्टिव मोड में है। वह आंबेडकर के मुद्दे पर सरकार को घेर रहे हैं। अब उन्होंने महंगाई पर सरकार को घेरा है।

राहुल और प्रियंका गांधी पर क्यों भड़के मायावती के भतीजे आकाश आनंद, कहा-हमारी क्रांति को फैशन शो बनाया

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संसद में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के बीआर आंबेडकर पर दिए गए बयान पर हंगामा थमने का नाम नहीं ले रहा है। अमित शाह के बयान के विरोध में कांग्रेस आज देशभर में प्रोटेस्ट कर रही है।इस बीच बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की अध्यक्ष मायावती के भतीजे और बसपा नेशनल कॉर्डिनेटर आकाश आनंद ने कांग्रेस सासद राहुल गांधी और प्रियंका गांधी पर निशाना साधा है। आकाश आनंद ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर कांग्रेस नेता राहुल और प्रियंका गांधी के खिलाफ हमला बोला है।

मंगलवार को सोशल मीडिया साइट एक्स पर आकाश आनंद ने कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी पर जमकर निशाना साधा है। आकाश आनंद ने राहुल-प्रियंका द्वारा नीले रंग में कपड़े पहनने और अरविंद केजरीवाल के उस वीडियो पर प्रतिक्रिया दी है जिसमें एक एआई वीडियो के जरिए बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर उन्हें आशीर्वाद देते दिख रहे थे।

आकाश आनंद ने कहा कि करोड़ों शोषितों, वंचितों और गरीबों के लिए बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर ही भगवान हैं। आजकल वोट बैंक के लिए उनके नाम का इस्तेमाल करना एक फैशन हो गया है। पहले देश के गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में उनका अपमान किया, फिर राहुल गांधी व प्रियंका गांधी ने हमारी नीली क्रांति को फैशन शो बनाया और उसके बाद अरविंद केजरीवाल ने बाबा साहेब की छवि के साथ छेड़छाड़ की। देश के दलित, शोषित, वंचित उपेक्षितों के आत्म-सम्मान के लिए बीएसपी का मिशन जारी रहेगा। गृहमंत्री अमित शाह को पश्चाताप करना ही पड़ेगा।

17 दिसंबर को गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में बयान दिया था। राज्यसभा में उन्होंने नेहरू कैबिनेट से आंबेडकर के रिजाइन करने को लेकर बात की थी। शाह के कहा था कि आंबेडकर का नाम लेना अभी एक फैशन हो गया है। इतना नाम अगर भगवान का ले लेते तो स्वर्ग मिल जाता। आंबेडकर का नाम आप लेते हैं तो हमें आनंद आता है। अब उनका नाम 100 बार ज्यादा लें। इसके बाद अमित शाह ने आंबेडकर के देश की पहली कैबिनेट से रिजाइन करने को लेकर सवाल उठाए थे। गृह मंत्री ने कहा था कि बाबा साहेब निम्न वर्गों के साथ सरकार के व्यवहार से अंसतुष्ट थे। वे सरकार की विदेश नीतियों का समर्थन भी नहीं करते थे। कश्मीर में धारा-370 लगाने के पक्ष में भी नहीं थे। आंबेडकर को जो आश्वासन दिए गए, वे पूरे नहीं किए गए थे। इसलिए उन्होंने कैबिनेट से रिजाइन किया था।

ट्रांसजेंडर को लेकर क्या है ट्रंप का रूख? बोले- कार्यकाल संभालते ही सबसे पहले सेना और स्कूलों से हटाऊंगा

#trump_clarified_his_stance_on_transgenders

अमेरिका में राष्‍ट्रपति पद की शपथ लेने से पहले डोनाल्‍ड ट्रंप अपने इरादे साफ कर रहे हैं। ट्रंप ने लगभग हर क्षेत्र में अपनी नीतियों को लेकर खुलासा कर दिया है। ब अमेरिका के राष्ट्रपति निर्वाचित डोनाल्ड ट्रंप ने ट्रांसजेंडरों को लेकर बड़ा ऐलान किया है। उन्होंने कहा कि वह अपने कार्यकाल के पहले ही दिन ट्रांसजेंडरों का पागलपन रोकने का काम करेंगे। ट्रंप ने कहा है कि वह पद संभालते ही अमेरिकी सेना से ट्रांसजेंडरों को बाहर करेंगे। ट्रंप ने कहा कि अमेरिका में सिर्फ दो ही जेंडर हैं।

एरिजोना में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि "मैं बाल यौन उत्पीड़न को समाप्त करने, ट्रांसजेंडर को सेना और हमारे प्राथमिक विद्यालयों, माध्यमिक विद्यालयों और उच्च विद्यालयों से बाहर करने के लिए कार्यकारी आदेशों पर हस्ताक्षर करूंगा।"

इसके अलावा उन्होंने कहा कि महिलाओं के खेलों से पुरुषों को भी दूर किया जाएगा। यूएसए सरकार की नीति के तहत यहां केवल दो ही लिंग होंगे। इसके अलावा ट्रंप ने प्रवासी अपराधों के खिलाफ भी कार्रवाई करने का वादा दोहराया। साथ ही ड्रग्स तस्करी करने वाले गिरोहों को आतंकी संगठन घोषित करने और पनामा नहर पर अमेरिकी नियंत्रण की बात भी कही।

डोनाल्ड ट्रंप लंबे समय से ट्रांसजेंडर समुदाय के सेना में शामिल किए जाने का विरोध करते रहे हैं। अपने पहले कार्यकाल के दौरान ट्रंप ने कहा था कि वह इस बारे में बच्चों के सामने नस्लीय सिद्धांत या किसी तरह के लैंगिक-राजनीतिक सामग्री को आगे बढ़ाने वाले स्कूलों की आर्थिक मदद रोक देंगे। इतना ही नहीं ट्रंप खेलों से भी ट्रांसजेंडर्स एथलीट्स को बाहर रखने पर मुखर रहे हैं।

डोनाल्ड ट्रंप ने नशीली दवाओं के उपयोग पर लगाम लगाने की तैयारी की है। उन्होंने कहा कि पदभार ग्रहण करते ही सबसे पहले लैटिन अमेरिकियों के खिलाफ सबसे बड़ा निर्वासन अभियान शुरू किया जाएगा। साथ ही ड्रग तस्करों के समूहों को आतंकी संगठन घोषित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि अमेरिकी धरती पर सक्रिय आपराधिक नेटवर्क को ध्वस्त कर दिया जाएगा, निर्वासित कर दिया जाएगा और खत्म कर दिया जाएगा।

आरएसएस चीफ़ मोहन भागवत ने क्या बोला की हो रहा विवाद? साधु संत कर रहे आलोचना

#saints_are_angry_over_mohan_bhagwat_statement 

मंदिर-मस्जिद के रोज नए विवाद निकालकर कोई नेता बनना चाहता है तो ऐसा नहीं होना चाहिए, हमें दुनिया को दिखाना है कि हम एक साथ रह सकते हैं। ये बातें राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने गुरुवार को पुणे में 'हिंदू सेवा महोत्सव' के उद्घाटन के दौरान कहीं। इससे पहले संघ प्रमुख ने कहा था कि हर मस्जिद के नीचे मंदिर खोजने की जरूरत नहीं है। संभल में मुस्लिम इलाकों में मंदिर और कुआं मिलने के विवाद के बीच आरएसएस प्रमुख के बयान पर इस बार हंगामा मचा हुआ है। आरएसएस चीफ के इस बयान का साधु संतों ने आलोचना की है। भागवत के भाषण की चर्चा इसलिए भी हो रही है क्योंकि इस वक्त देश में संभल, मथुरा, काशी जैसे कई जगहों की मस्जिदों के प्राचीन समय में मंदिर होने के दावे किए गए हैं। इनके सर्वे की मांग हो रही है और कुछ मामले अदालतों में लंबित हैं।

संघ प्रमुख के बयान को लेकर आमतौर पर भगवा धड़े के साथ ही साधु-संत हमेशा से समर्थन करते रहे हैं। राम मंदिर से लेकर हिंदू संस्कृति को लेकर संघ की तरफ से बयान को पूरा समर्थन मिलता है। हालांकि, इस बार तस्वीर बिल्कुल उलट नजर आ रही है। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान के बाद हिंदू समुदाय में ही उनका विरोध होने लगा है। सांधु-संतों से लेकर भगवा धड़ा भी संघ प्रमुख की आलोचना कर रहा है।उनके इस बयान पर देशभर में अलग-अलग प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। इन प्रतिक्रियाओं में सबसे तीखी प्रतिक्रिया स्वामी रामभद्राचार्य ने दी है, जिन्होंने कहा कि मोहन भागवत का बयान उनका व्यक्तिगत विचार हो सकता है, लेकिन वह संघ के संचालक हो सकते हैं, हिंदू धर्म के नहीं।

स्वामी रामभद्राचार्य ने यह भी कहा कि उनका ध्यान हमेशा धर्म के अनुशासन और सत्य पर रहता है, और वह अपनी धर्मिक जिम्मेदारियों को किसी भी राजनीतिक एजेंडे से परे रखते हैं। स्वामी रामभद्राचार्य ने अपने बयान में यह भी स्पष्ट किया कि उनका उद्देश्य केवल मंदिर-मस्जिद जैसे मुद्दों पर बयानबाजी करना नहीं है। उनका मानना है कि हिंदू धर्म की रक्षा करना और उसके प्रमाणित धार्मिक स्थलों की पुनर्स्थापना करना ही उनका मुख्य उद्देश्य है। "हम जहां भी प्राचीन मंदिरों के प्रमाण पाएंगे, उन्हें पुनः स्थापित करने का प्रयास करेंगे। यह कोई नई कल्पना नहीं है, बल्कि यह हमारे धर्म और संस्कृति का संरक्षण है।"

अखिल भारतीय संत समिति (एकेएसएस) की तरफ से उनके बयान पर टिप्पणी आई है। एकेएसएस के महासचिव स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि ऐसे धार्मिक मामलों का फैसला आरएसएस के बजाय 'धर्माचार्यों' (धार्मिक नेताओं) के ज़रिए किया जाना चाहिए। सरस्वती ने कहा,'जब धर्म का मुद्दा उठता है तो धार्मिक गुरुओं को फैसला लेना होता है और वे जो भी फैसला लेंगे, उसे संघ और विहिप स्वीकार करेंगे।' उन्होंने कहा कि भागवत की अतीत में इसी तरह की टिप्पणियों के बावजूद, 56 नए स्थलों पर मंदिर संरचनाओं की पहचान की गई है, जो इन विवादों में जारी रुचि को रेखांकित करता है। उन्होंने कहा कि धार्मिक संगठन अक्सर राजनीतिक एजेंडे की तुलना में जनता की भावनाओं के जवाब में काम करते हैं।