*मानवता के अभ्युत्थान एवं मानवीयता के संवेदात्मक पल्लवन हेतु डॉ कलाम जन्में- डॉ शिल्पी सिंह*
( विश्व विद्यार्थी दिवस पर डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम के शैक्षिक विचारों की उपादेयता विषयक संगोष्ठी )
सुलतानपुर। राणा प्रताप पी जी कॉलेज के एजुकेशन डिपार्टमेंट में डॉ ए पी जे अब्दुल के जन्मदिन जो विश्व विद्यार्थी दिवस के रूप में मनाया जाता है पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसका विषय डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम के शैक्षिक विचारों की उपादेयता रखा गया था। इस संगोष्ठी को संबोधित करते हुए शिक्षाशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ शिल्पी सिंह ने कहा कि डॉ कलाम का मानना था कि मानवता के अभ्युत्थान के लिए, मानवीयता के संवेदात्मक पल्लवन के लिए तथा स्वात्मा को सर्वात्मा की दिशा दिखाने के लिए समय-समय पर मनीषी अवतरित होते रहते हैं।
जो प्रचलित संकीर्णताओं की श्रंखला को विछिन्न कर जाति, धर्म, देश, काल आदि की सीमाओं को नकारकर अशेष विश्व के अपने हो जाते है, विराट विश्मात्मा का रूप बन जाते है। प्रत्येक प्राणी की पीड़ा उनके अपने प्राणों का स्वन्दन बन जाती है, परोपकार का पथ उनका अपना पथ बन जाता है तथा अपने देश की उन्नति अपनी उन्नति बन जाती है। डॉ० कलाम जी स्वयं अल्पसंख्यक समाज में उत्पन्न हुए थे। उन्होंने सामाजिक बुराइयों को बचपन से देखा और महसूस किया कि भारत में आज भी बहुत ज्यादा गरीबी और भुखमरी है। इनके हृदय में यही प्रश्न बार-बार उठता है कि क्या गरीब परिवार में जन्म लेना अभिशाप है? डॉ० कलाम के जीवन की अन्तर्वेदना इस बात से उपजी थी कि भारत में एकात्म दर्शन को विस्तृत कर दिया गया है। उन्होंने भारत को विज्ञान तथा शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी देशों की पंक्ति में लाने के लिए अपने जीवन का कार्य क्षेत्र चुना। डॉ० ए०पी० जे० अब्दुल कलाम का महत्व वैज्ञानिक क्षेत्रों में बहुमूल्य योगदान, सामाजिक उत्थान का आहह्नवान एवं सन्देश, ज्ञान की नई अवधारणा एवं उद्धारक के रूप में जाना जाता है। निष्कर्ष- इस प्रकार डॉ० कलाम शिक्षा के क्षेत्र में भारत के प्राचीन गौरव को पुनः प्राप्त करना चाहते है तथा भारत को पूर्व काल की भाँति विश्वमंच पर जगदगुरु के रूप में प्रतिष्ठित करना चाहते हैं वो ज्ञान की असीमितता में विश्वास करते हुए कहते है कि पृथ्वी पर मनुष्य ही एकमात्र ज्ञानी बुद्धिमान प्राणी है जो तीन साधनों यथामन, अनुभव और बुद्धि द्वारा जान प्राप्त करता है। डॉ० कलाम शिक्षा को मानव की अनिवार्य आवश्यकता मानते है जो मनुष्य में छिपी हुई सृजनात्मकता को बाहर निकालती है है। शिक्षा का स्वरूप ऐसा होना चाहिए जिससे भौतिकता, रचनाशीलता नवीनता तथा उधमशीलता का विकास होता है। तथा प्रौधोगिकी आधारित शिक्षण के प्रमुखता दी जाये तथा जो विज्ञान, कला, विधि, साहित्य तथा राजनीति आदि विभिन्न क्षेत्रों में अग्रणी रहे और हमारे महान नेताओं के अनुभवो का बखान करती हो। इस संगोष्ठी में नैना वर्मा, सृष्टि सिंह,नीलाक्षी, शबनम,देवेंद्र तिवारी,जिगर अहमद ने विचार व्यक्त किये। इस अवसर पर एजुकेशन डिपार्टमेंट के स्टूडेंट्स उपस्थित रहे।
Oct 15 2024, 16:17