रतन टाटा का टाटा ग्रुप के साथ नहीं था कोई खून का रिश्ता, जानें कैसे मिला ये टाइटल?
#father_of_ratan_tata_how_he_became_the_part_of_tata_group
भारत के मशहूर उद्योगपति रतन टाटा अब हमारे बीच नहीं रहे। बुधवार देर रात उन्होंने मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में अंतिम सांस ली। 86 वर्षीय रतन टाटा ने अपने जीवनकाल में सफलता के शिखर को छुआ। देश का हर बड़ा करोबारी उनके जैसे सफल इंसान बनने की कल्पना करता है।उद्योग के क्षेत्र में रतन टाटा का नाम बड़े ही सम्मान से लिया जाता है। लेकिन क्या आपको पता है रतन टाटा का टाटा ग्रुप से खून का रिश्ता नहीं था। दरअसल, रतन टाटा के पिता नवल होर्मुसजी जब 13 साल के हुए तो एक दिन उनके नाम के साथ 'टाटा' सरनेम जुड़ गया।
रतन टाटा के पिता का नाम नवल टाटा था, जिनका जन्म 30 अगस्त 1904 को एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता यानी रतन टाटा के दादा होर्मुसजी, टाटा समूह की अहमदाबाद स्थित एडवांस मिल्स में स्पिनिंग मास्टर थे। नवल जब 4 साल के थे, तब उनके पिता होर्मुसजी का 1908 में निधन हो गया। पिता के गुजर जाने के बाद परिवार पर आर्थिक संकट आन खड़ा हुआ।
इसके बाद नवल और उनकी मां मुंबई से गुजरात के नवासारी में आ गईं। यहां रोजगार का कोई मजबूत साधन नहीं था। उनकी मां ने कपड़े की कढ़ाई का खुद का छोटा सा काम शुरू कर दिया। इस काम से होने वाली इंकम से परिवार का सिर्फ गुजारा चल रहा था। जैसे-जैसे नवल की उम्र बढ़ती जा रही थी वैसे-वैसे मां को उनके भविष्य की चिंता सता रही थी।
उनके परिवार को जानने वालों ने नवल की पढ़ाई और मदद के लिए उन्हें जेएन पेटिट पारसी अनाथालय भिजवा दिया। वहां वह अपनी पढ़ाई-लिखाई करने लगे। शुरूआती पढाई उन्होंने यहीं से की। जब 13 साल के हुए तब 1917 में सर रतन टाटा (सुविख्यात पारसी उद्योगपति और जनसेवी जमशेदजी नासरवान जी टाटा के पुत्र) की पत्नी नवाजबाई जेएन पेटिट पारसी अनाथालय पहुंची। वहां उन्हें नवल दिखाई दिए। नवाजबाई को नवल बहुत पसंद आए और उन्हें अपना बेटा बनाकर गोद ले लिया। जिसके बाद ‘नवल’ टाटा परिवार से जुड़कर ‘नवल टाटा’ बन गए।
जब नवल को गोद लिया गया, तब उनकी उम्र केवल 13 साल थी। इसके बाद नवल को बेहतरीन शिक्षा मिली और उन्होंने बॉम्बे यूनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स में ग्रेजुएशन किया। इसके बाद वे लंदन जाकर अकाउंटिंग से संबंधित कोर्स करने लगे।
1930 में नवल ने टाटा सन्स जॉइन किया, जहां उन्होंने क्लर्क-कम-असिस्टेंट सेक्रेटरी के रूप में शुरुआत की. उनकी मेहनत और योग्यता के चलते उन्हें जल्दी ही तरक्की मिलती गई। 1933 में उन्हें एविएशन डिपार्टमेंट का सेक्रेटरी बनाया गया, और इसके बाद उन्होंने टाटा मिल्स और अन्य यूनिट्स में अपनी भूमिका निभाई।
28 दिसंबर, 1937 को रतन टाटा ने टाटा सन्स ग्रुप के एविएशन डिपार्टमेंट के सेक्रेटरी नवल टाटा के घर जन्म लिया. उनके जन्म के ठीक 2 साल बाद नवल टाटा, टाटा मिल्स के जॉइन्ट मैनेजिंग डायरेक्टर बन गए। 1941 में वे टाटा सन्स के डायरेक्टर बने, और 1961 में टाटा पावर (तब टाटा इलेक्ट्रिक कंपनीज़) के चेयरमैन के पद पर पहुंचे। 1962 में उन्हें टाटा सन्स के डिप्टी चेयरमैन का पद भी मिला। 1965 में नवल टाटा ने सर रतन टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन बने और अपने आखिरी समय तक वह इससे जुड़कर समाजसेवा का काम किया।
नवल टाटा ने दो शादियां की थीं। पहली पत्नी सूनी कॉमिस्सैरिएट और दूसरी सिमोन डुनोयर थीं। सूनी कॉमिस्सैरिएट से उनके दो बच्चे रतन टाटा और जिमी टाटा हुए। 1940 में नवल टाटा का सूनी कॉमिस्सैरिएट से तलाक हो गया था। 1955 में नवल टाटा ने स्विट्जरलैंड की बिजनेसवूमन सिमोन से शादी की। जिनसे नियोल टाटा का जन्म हुआ। नवल टाटा कैंसर की बीमारी से ग्रस्त हो गए। 5 मई 1989 को मुंबई (बॉम्बे) में उनका निधन हो गया।
Oct 10 2024, 10:49