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भारत के इन 5 मंदिरों में मिलता मांसाहारी प्रसाद,कही मटन तो कही चिकन मछली मिलता हैं प्रसाद


नयी दिल्ली : एक तरफ जहां हिंदू धर्म में मांस और शराब को अपवित्र माना जाता है. दूसरी ओर, कुछ हिंदू मंदिरों में यही मांस और शराब प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है और भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में वितरित भी किया जाता है।

भारत में ऐसे कई मंदिर हैं जहां प्रसाद के रूप में मटन, चिकन और मछली बांटी जाती है, जिसके बारे में आज हम बात करेंगे.

कालीघाट मंदिर पश्चिम बंगाल

कालीघाट मंदिर कोलकाता में स्थित है. इस मंदिर में भक्तों द्वारा देवी काली को प्रसाद के रूप में बकरे चढ़ाए जाते हैं. बकरे की बलि देने के बाद उसका मांस भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है. मान्यता है कि बकरे का प्रसाद खाने से भक्तों पर मां काली की कृपा बनी रहती है.

 कोलकाता का दक्षिणेश्वर काली मंदिर

कोलकाता का दक्षिणेश्वर काली मंदिर पूरे देश में प्रसिद्ध है. हर साल यहां हजारों भक्त देवी मां के दर्शन के लिए आते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 1854 में रानी रासमणि ने करवाया था. कुछ लोग कहते हैं कि एक समय स्वामी रामकृष्ण दक्षिणेश्वर काली मंदिर के मुख्य पुजारी हुआ करते थे. इस मंदिर में भक्तों को प्रसाद के रूप में मछली दी जाती है.

कामाख्या देवी मंदिर असम

कामाख्या मंदिर असम की राजधानी दिसपुर के पास गुवाहाटी से 8 किमी दूर कामाख्या में है. इस मंदिर को 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है. मान्यता है कि यहां माता सती की योनि गिरी थी. यह मंदिर दुनिया भर में तंत्र विद्या के केंद्र के रूप में भी जाना जाता है. यहां भक्तों द्वारा देवी को मांस और मछली का भोग लगाया जाता है. 

भक्तों का मानना है कि मांस और मछली चढ़ाने से देवी प्रसन्न होती हैं और उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं. भोग लगाने के बाद इसे प्रसाद के रूप में कुछ भक्तों के बीच वितरित किया जाता है.

तमिलनाडु मुनियांदी स्वामी मंदिर

मुनियांदी स्वामी मंदिर तमिलनाडु के मदुरै में स्थित है. यह मंदिर भगवान मुनियांदी को समर्पित है. सबसे खास बात यह है कि इस वार्षिक मेले में हजारों श्रद्धालु भाग लेते हैं और यह प्रसाद सभी भक्तों को मंदिर ट्रस्ट की ओर से दिया जाता है।

पुजारियों का मानना है कि ऐसा करने से मुनियांदी देवता साल भर अपने भक्तों पर आशीर्वाद बनाए रखते हैं. यहां हर साल तीन दिवसीय वार्षिक कार्यक्रम आयोजित किया जाता है जिसमें भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में बिरयानी और चिकन दिया जाता है.

गोरखपुर तरकुलहा देवी मंदिर

गोरखपुर स्थित तरकुलहा देवी मंदिर का इतिहास स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा है. ऐसा कहा जाता है कि यह एरिया पहले घना जंगल हुआ करता था. उस समय राजा बाबू बंधू सिंह ताड़ के पेड़ के नीचे देवी की पिंडी रखकर उनकी पूजा करते थे. जब भी वह किसी अंग्रेज को मंदिर के आसपास देखता तो अपना सिर काटकर देवी के चरणों में चढ़ा देता था. लेकिन देश की आजादी के बाद देवी को बकरे की बलि दी जाने लगी. तभी से इस मंदिर में भक्तों को प्रसाद के रूप में मटन दिया जाता हैं।

अगर आपके बच्चे को भी है स्मार्ट फोन की लत तो आईए जानते हैं स्मार्ट फोन की लत से छुटकारा पाने के सरल और प्रभावी उपाय


आजकल के डिजिटल युग में स्मार्टफोन बच्चों की जीवनशैली का हिस्सा बन चुके हैं। जहां स्मार्टफोन से शिक्षा, मनोरंजन और जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

वहीं इसका अत्यधिक उपयोग बच्चों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। अगर आपके बच्चे भी स्मार्टफोन की लत का शिकार हो गए हैं, तो चिंता की बात नहीं है। कुछ आसान उपायों से आप उन्हें इस आदत से छुटकारा दिला सकते हैं।

1. नियमित समय निर्धारित करें

बच्चों के लिए स्मार्टफोन इस्तेमाल करने का समय तय करना बेहद जरूरी है। उनके लिए दिन का एक विशेष समय तय करें जिसमें वे स्मार्टफोन का उपयोग कर सकते हैं। उदाहरण के तौर पर, पढ़ाई के बाद या सप्ताहांत में कुछ घंटों के लिए। इससे बच्चों में अनुशासन की भावना आएगी और वे बिना किसी बाधा के अन्य गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित कर पाएंगे।

2. बदलाव के लिए वैकल्पिक गतिविधियां प्रस्तुत करें

स्मार्टफोन की जगह बच्चों को आकर्षक और शारीरिक रूप से सक्रिय बनाने वाली गतिविधियों में शामिल करें। जैसे कि आउटडोर गेम्स, किताबें पढ़ना, पेंटिंग, संगीत सीखना, या अन्य शौक। ये गतिविधियां बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास के लिए बेहतर होती हैं और उनके स्क्रीन टाइम को कम करने में मदद करती हैं।

3. स्मार्टफोन के उपयोग पर माता-पिता के नियंत्रण वाले ऐप्स का उपयोग करें

आजकल कई ऐसे ऐप्स उपलब्ध हैं जो माता-पिता को बच्चों के स्मार्टफोन उपयोग को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। ये ऐप्स न केवल स्क्रीन टाइम को सीमित करते हैं, बल्कि यह भी सुनिश्चित करते हैं कि बच्चे किस प्रकार की सामग्री देख रहे हैं। इससे बच्चों पर नजर रखना आसान हो जाता है और उनके स्मार्टफोन उपयोग को सीमित किया जा सकता है।

4. खुद उदाहरण बनें

बच्चे अक्सर अपने माता-पिता की आदतों से सीखते हैं। अगर आप खुद दिनभर स्मार्टफोन का उपयोग करते रहते हैं, तो बच्चों से उम्मीद नहीं कर सकते कि वे इसका उपयोग कम करेंगे। इसलिए, खुद को भी स्मार्टफोन से दूर रखें और बच्चों को दिखाएं कि आप भी इस लत से बचने की कोशिश कर रहे हैं।

5. बातचीत और संचार का महत्व समझाएं

बच्चों को यह समझाना जरूरी है कि व्यक्तिगत संचार और सामाजिक संपर्क कितने महत्वपूर्ण हैं। उन्हें स्मार्टफोन के बजाय दोस्तों और परिवार के साथ समय बिताने के महत्व को समझाएं। इससे वे सामाजिक रूप से सक्रिय होंगे और स्मार्टफोन की लत से दूरी बनाएंगे।

6. समय-समय पर ब्रेक लेने की आदत डालें

स्मार्टफोन का उपयोग करते समय बीच-बीच में ब्रेक लेने की आदत डालें। उन्हें हर 30 मिनट के बाद उठकर टहलने या कुछ शारीरिक गतिविधि करने के लिए कहें। इससे उनकी आंखों और दिमाग को आराम मिलेगा और वे स्मार्टफोन से बहुत अधिक जुड़े नहीं रहेंगे।

7. स्मार्टफोन का उपयोग

सकारात्मक उद्देश्यों के लिए करें

बच्चों को स्मार्टफोन का सही उपयोग सिखाएं। उन्हें यह बताएं कि स्मार्टफोन सिर्फ गेम खेलने या सोशल मीडिया पर समय बिताने के लिए नहीं है, बल्कि इसे जानकारी प्राप्त करने, कुछ नया सीखने और शिक्षा के लिए भी उपयोग किया जा सकता है। आप उनके लिए शैक्षिक ऐप्स और वेबसाइट्स की एक सूची बना सकते हैं, जिससे वे कुछ उपयोगी सीख सकें।

8. परिवार के साथ समय बिताने पर जोर दें

बच्चों के साथ परिवार के समय को प्राथमिकता दें। शाम के समय सभी को एकत्रित कर खेल खेलना, चर्चा करना, या साथ में कोई गतिविधि करना उनके स्मार्टफोन के उपयोग को कम कर सकता है। जब बच्चे परिवार के साथ अधिक समय बिताते हैं, तो वे डिजिटल उपकरणों से दूर रहेंगे।

निष्कर्ष

स्मार्टफोन की लत बच्चों के लिए एक गंभीर समस्या हो सकती है, लेकिन माता-पिता के सही दिशा-निर्देशन और प्रयास से इसे नियंत्रित किया जा सकता है। इन सुझावों को अपनाकर आप अपने बच्चों को एक स्वस्थ और संतुलित जीवनशैली की ओर मार्गदर्शन कर सकते हैं, जहां वे तकनीक का सही और सीमित उपयोग कर सकें।

आज का इतिहास:1994 में आज ही के दिन हुई थी ‘विश्व अल्जाइमर दिवस’ मनाने की शुरुआत


नयी दिल्ली : 21 सितंबर का इतिहास महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि वर्ल्ड अल्ज़ाइमर्स डे का आयोजन पहली बार 21 सितंबर 1994 को किया गया था। अल्‍जाइमर का इलाज पहली बार साल 1901 में एक जर्मन महिला का किया गया था।

2004 में आज ही के दिन अमेरिका ने लीबिया से आर्थिक प्रतिबंध हटाया था। 2007 में आज ही के दिन तंजानियाई वैज्ञानिकों ने दुर्लभ प्रजाति की मछली की खोज करने का दावा किया था।

2008 में 21 सितंबर को ही रिलायंस के कृष्णा गोदावरी बेसिन में तेल उत्पाद शुरू हुआ था।

2009 में आज ही के दिन भाजपा ने महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा के लिए उम्मीदवारों की दूसरी सूची जारी की थी।

2008 में 21 सितंबर को ही रिलायंस के कृष्णा गोदावरी बेसिन में तेल उत्पाद शुरू हुआ था।

2007 में आज ही के दिन तंजानियाई वैज्ञानिकों ने दुर्लभ प्रजाति की मछली की खोज करने का दावा किया था।

2004 में 21 सितंबर को ही अमेरिका ने लीबिया से आर्थिक प्रतिबंध हटाया था।

2003 में आज ही के दिन संवैधानिक संशोधनों के नए ड्राॅफ्ट को भी पाकिस्तान के विपक्ष ने नामंजूर किया था।

2000 में 21 सितंबर के दिन ही भारत और ब्रिटेन के बीच बेहतर संबंध के लिए ‘लिबरल डेमोक्रेटिक फ़्रेंड्स आफ़ इंडिया सोसायटी’ की स्थापना हुई थी।

1991 में आज ही के दिन अर्मेनिया को सोवियत संघ से स्वतंत्रता मिली थी।

1984 में 21 सितंबर को ही ब्रुनेई संयुक्त राष्ट्र में शामिल हुआ था।

1966 में आज ही के दिन प्रसिद्ध भारतीय तैराक मिहिर सेन ने बास्फोरस की खाड़ी को पार करके एक और कीर्तिमान अपने नाम किया था।

1964 में 21 सितंबर को ही माल्टा ने ब्रिटेन से स्वतंत्रता हासिल की थी।

1949 में आज ही के दिन चीन में कम्युनिस्ट नेताओं ने ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ पार्टी की घोषणा की थी।

1942 में 21 सितंबर को ही बोइंग बी-29 सुपरफोट्रेस ने अपनी पहली उड़ान भरी थी।

1928 में आज ही के दिन ‘माय विकली रीडर’ मैगज़ीन की शुरुआत हुई थी।

1905 में 21 सितंबर को ही ‘अटलांटा लाइफ इंश्योरेंस’ कंपनी गठित हुई थी।

1857 में आज ही के दिन बहादुर शाह द्वितीय ने अंग्रेजों के सामने आत्मसमर्पण किया था।

1815 में 21 सितंबर को ही किंग विलियम प्रथम ने ब्रुसेल्स में शपथ ली थी।

साइकिल से यूरोप तक का सफर: आइए जानते है 1975 की प्रद्युम्न और शार्लोट की दिल छू लेने वाली प्रेम कहानी।


डेस्क:- प्यार एक ऐसी भावना है, जो सीमाओं, भाषाओं और भौगोलिक दूरियों से परे होती है। यह दिलों के बीच का वो बंधन है, जिसे न कोई सरहद रोक सकती है और न ही कोई कठिनाई। सच्चा प्यार हर चुनौती को पार कर, अपने गंतव्य तक पहुंच ही जाता है। बदलते वक्त में प्यार की परिभाषा भी बदलती जा रही है, अब शायद पहले वाली बात भी नहीं होगी। क्या कोई प्रेमी आज के समय में साइकिल से यूरोप जा सकता है दूसरे देश की बात छोड़िये दिल्ली से मुंबई का सफर भी तय कर सकता है शायद नहीं। लेकिन आपको यह जानकार हैरानी होगी कि एक प्रेमी ने अपनी प्रेमिका से मिलने के लिए भारत से स्वीडन तक की यात्रा साइकिल से की थी।

लगभग 6 हजार किलोमीटर तक साइकिल चलाने वाले इस शख्स का नाम प्रद्युम्न कुमार महानंदिया हैं। ओडिशा के देनकनाल के रहने वाले महानंदिया पोट्रेट आर्टिस्ट हैं। इनकी कला और सरल व्यवहार पर ही रॉयल स्वीडिश फैमिली की लड़की अपना दिल हार बैठी थी। साल 1975 से शुरू हुआ सफर आज भी जारी है। इनकी प्रेम कहानी प्यार का असली मतलब भी बताती है।

बात है साल 1975 की जब स्वीडन की शार्लोट वॉन शेडविन दिल्ली में भारतीय कलाकार पीके महानंदिया से मिलीं। महानंदिया की कला के बारे में स्वीडन ने काफी सुन रखा था, इसलिए अपना चित्र बनवाने के लिए वह भारत पहुंच गईं। वो दिल्ली की एक सर्द शाम थी जब शार्लोट वॉन शेडविन ने पीके महानंदिया से अपनी तस्वीर बनाने के लिए कहा था।

जहां शार्लोट का स्केच बनाते-बनाते प्रद्युम्न को उनसे मोहब्बत हो गई। स्वीडन भी प्रद्युम्न को अपना दिल दे बैंठी। महानंदिया को शार्लोट की सुंदरता से प्यार हो गया और शार्लोट को उनकी सादगी भा गई।

शादी...फिर किस्मत ने लिया मोड़

एक-दूसरे की मोहब्बत में गिरफ्तार पीके महानंदिया और शार्लोट का प्यार वक्त के साथ बढ़ गया। इस बीच शार्लोट महानंदिया के साथ ओडिशा जाने को तैयार भी हुईं। कुछ दिन महानंदिया के गांव में बिताने के बाद वो दिल्ली लौट आए। लेकिन फिर महानंदिया से स्वीडन में उनके शहर बोरास आने का वादा लेकर शार्लोट वापस लौट गईं। एक साल से ज्यादा का वक्त बीत गया, इस दौरान दोनों के बीच प्रेमपत्रों के जरिए संपर्क हुआ। लेकिन महानंदिया के पास हवाई जहाज की टिकट के लिए पैसे नहीं थे।

साइकिल से भारत से यूरोप का सफर

1977 में प्रद्युम्न कुमार महानंदिया ने शार्लोट वॉन शेडविन से मिलने की योजना बनाई। फ्लाइट टिकट के लिए पैसे ना होने पर प्रद्युम्न ने फैसला किया कि वह कैसे भी अपने प्यार के पास जा कर रहेंगे। प्रद्युम्न के पास जो कुछ भी था उन्होंने वह सबकुछ बेचकर एक साइकिल खरीदी और स्वीडन जाने का फैसला लिया। प्रद्युम्न अगले 4 महीने और 3 हफ्ते तक लगातार साइकिल चलाते रहें, इस दौरान हर रोज 70 किलोमिटर साइकिल चलाते थे।

मुश्किलें आईं..हार नहीं मानी

स्वीडन का सफर तय करने के लिए प्रद्युम्न ने पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान और तुर्की को पार किया। इस्तांबुल और वियना होते हुए यूरोप पहुंचे और फिर ट्रेन से गोथेनबर्ग की यात्रा की। इस बीच बहुत सारी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। इतना ही नहीं कई बार उनके पास खाने के लिए पैसे भी नहीं होते थे, हालांकि यहां उनकी कला काम आईं। उन्होंने लोगों का स्केच बनाकर अपना गुजारा किया।

स्वीडन में की शादी

प्रद्युम्न जब यूरोप पहुंचे तब उन्हें वहां के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। हालांकि शॉर्लोट ने उनका हर कदम पर साथ दिया। जहां दोनों ने शादी की और प्रद्युम्न हमेशा के लिए स्वीडन में ही अपनी पत्नी के साथ रहने लगे। सालों से एक साल रह रहे इस कपल के दो बच्चे हैं। प्रद्युम्न आज भी एक कलाकार की तरह काम कर रहे हैं।

आज का इतिहास:संयुक्त राज्य महासभा का 50वां अधिवेशन हुआ था शुरू,जाने 20 सितंबर से जुड़े महत्वपूर्ण घटनाएं


 

नयी दिल्ली : 20 सितंबर का इतिहास महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि 1995 में आज ही के दिन संयुक्त राज्य महासभा का 50वां अधिवेशन शुरू हुआ था। 

2003 में 20 सितंबर को ही संयुक्त राष्ट्र महासभा ने एक प्रस्ताव पारित कर इस्रायल से यासिर अराफात की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कहा था। 

2004 में आज ही के दिन इंडोनेशिया में राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए मतदान हुआ था। 

2009 में आज ही के दिन मराठी फिल्म ‘हरिशचन्द्राची फैक्ट्री’ को ऑस्कर अवार्ड्स की विदेशी फिल्म कैटेगरी में भारत की एंट्री के तौर पर चुना गया था।

2006 में 20 सितंबर को ही ब्रिटेन के रॉयल बॉटैनिक गार्डन्स के वैज्ञानिकों को 200 वर्ष पुराने बीज उगाने में कामयाबी मिली थी।

2004 में आज ही के दिन इंडोनेशिया में राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए मतदान हुआ था।

2003 में 20 सितंबर को ही संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रस्ताव पारित कर इस्रायल से यासिर अराफात की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कहा था।

2001 में आज ही के दिन अमेरिका ने 150 लड़ाकू विमान खाड़ी में उतारे थे।

2000 में 20 सितंबर को ही क्लिंटन दम्पत्ति ‘व्हाइट वाटर कांड’ के आरोपों से मुक्त हुए थे।

1995 में आज ही के दिन संयुक्त राज्य महासभा का 50वां अधिवेशन शुरू हुआ था।

1984 में 20 सितंबर को ही लेबनान की राजधानी बेरूत में स्थित अमेरिकी दूतावास पर आत्मघाती हमला किया था।

1983 में आज ही के दिन एप्पल उपग्रह ने कार्य करना बंद किया था।

1970 में 20 सितंबर को ही रूसी प्रोब ने चांद के सतह से कुछ चट्टानें एकत्र की थीं।

1946 में आज ही के दिन पहला कांत फिल्म समारोह आयोजित हुआ था।

1878 में 20 सितंबर को ही मद्रास का अखबार द हिंदू पहली बार जीएसएस अय्यर के संपादन में सप्ताहिकी के रूप में प्रकाशित हुआ था।

1831 में आज ही के दिन भाप से चलने वाली पहली बस बनाई गई थी।

 

20 सितंबर को जन्में प्रसिद्ध व्यक्ति

1856 में 20 सितंबर को ही भारत के महान संत एवं समाजसुधारक श्री नारायण गुरु का जन्म हुआ था।

1897 में आज ही के दिन मराठी पत्रकार नाना साहब परुलेकर का जन्म हुआ था।

1897 में 20 सितंबर को ही प्रसिद्ध अभिनेत्री सोफिया लोरेन का जन्म हुआ था।

1911 में आज ही के दिन भारतीय आध्यात्मिक नेता श्रीराम शर्मा आचार्य का जन्म हुआ था।

1924 में 20 सितंबर के दिन ही तेलुगु फिल्म अभिनेता और फ़िल्म निर्माता ए. नागेश्वर राव का जन्म हुआ था।

20 सितंबर को हुए निधन 

1942 में आज ही के दिन भारतीय महिला स्वतंत्रता सेनानी कनकलता बरुआ का निधन हुआ था।

1996 में 20 सितंबर को ही प्रसिद्ध साहित्यकार दया पवार का निधन हुआ था।

1999 में आज ही के दिन तमिल सिनेमा की स्वप्न सुंदरी नाम से विख्यात अभिनेत्री राजकुमारी का निधन हुआ था।

2017 में 20 सितंबर को ही हिंदी सिनेमा में सन 1950-60 की प्रसिद्ध अभिनेत्री शकीला का निधन हुआ था।

2012 में आज ही के दिन रंगमंच के प्रसिद्ध कलाकार और निर्देशक दिनेश ठाकुर का निधन हुआ था।

चार दिन पहले जन्मी बच्ची के पेट में दिख रही भ्रूण जैसी आकृति, डॉक्टर भी हैरान

मध्य प्रदेश के सागर से एक अचंभित कर देने वाला मामला सामने आया है। यहां नवजात शिशु के पेट में एक भ्रूण जैसी आकृति दिख रही है। हालांकि डॉक्टर ने इसे भ्रूण कहने पर संदेश जताया है। 

उन्होंने कहा कि यह टेराटोमा ट्यूमर हो सकता है, लेकिन चिकित्सा जगत ने इसे दुर्लभ मामला बताया है। फिलहाल जच्चा और बच्चा दोनों जिला अस्पताल में भर्ती हैं, जहां दोनों स्वस्थ हैं। नवजात का सीटी स्कैन और एक्स-रे मेडिकल कॉलेज में की जा रही है।

केसली निवासी एक महिला ने करीब पांच दिन पहले स्थानीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में एक शिशु को जन्म दिया था। इसके पहले महिला जब बीएमसी में आई थी, तभी यहां के डॉक्टरों ने जांच में गर्भस्थ शिशु के पेट में भ्रूण या ट्यूमर जैसा कुछ देखा था। उसके बाद प्रसव का इंतजार किया गया।

सामान्य प्रसव के बाद महिला ने बच्चे को जन्म दिया। उसके बाद डॉक्टरों ने उसे जिला अस्पताल बुला लिया। बुधवार को मेडिकल कॉलेज के रेडियालाजी विभाग ने नवजात की जांच की। इसमें भी उसके पेट में भ्रूण या ट्यूमर जैसा कुछ पाया गया, जिसकी जांच की जा रही है। 

डॉक्टरों ने बताया कि बच्चे के पेट में या तो टेराटोमा ट्यूमर है या फिर फीटस इन फीटू अर्थात भ्रूण हो सकता है। उसके पेट में एक रीढ़ जैसी आकृति भी दिख रही है।

शिशु के विकास के समय बनती है यह स्थिति

बीएमसी के रेडियोलाजी विभाग के अध्यक्ष डॉ पुण्य प्रताप सिंह ने बताया कि कभी-कभी मां के पेट में एक भ्रूण के अंदर ही दूसरा भ्रूण बनने लगता है। इस दौरान बड़ा वाला गर्भस्थ शिशु तो विकसित हो जाता है, लेकिन उसके अंदर के भ्रूण का विकास नहीं हो पाता है।

उन्होंने बताया कि टेराटोमा ट्यूमर की स्थिति 5 से 10 लाख बच्चों में से एक में पाई जाती है। अब तक भारत में ऐसे करीब 10 मामले देखे गए हैं।

कुछ साल पहले ही बिहार के मोतीहारी और देहरादून में ऐसे मामले देखे गए थे एम्स भोपाल के पीडियाट्रिक्स डॉ. प्रमोद शर्मा ने बताया कि एम्स भोपाल में एक साल पहले ही ऐसा मामला आया था। इसमें बच्ची के पेट में फिटीफार्म टेरोटोमा मिला था, जिसे ऑपरेशन के बाद सफलतापूर्वक निकाल दिया था।

डाक्टरों की टीम कर रही रिसर्च

डॉ. सिंह ने बताया कि ऐसी स्थिति में बच्चे के पेट दिख रहे भ्रूण या ट्यूमर को निकालना ही उचित होता है।

सर्जरी कर टेराटोमा को सुरक्षित निकालने के लिए डॉक्टरों की टीम बनाकर आगे की योजना बनाई जा रही है। इसमें नवजात शिशु को खतरा भी हो सकता है।

35 वर्षीय पूजा जैन,जैन परंपरा के अनुसार संलेखना विधि द्वारा क्यों लिया प्राण त्यागने का निर्णय ,क्या हैं मामला जानने के लिए पढ़े पूरी खबर।

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में एक अनोखी और भावुक घटना घटित हो रही है। 35 वर्षीय पूजा जैन ने अन्न और जल का पूर्ण त्याग करते हुए जैन धर्म की उच्चतम साधना, सल्लेखना व्रत, को अपनाया है।इस निर्णय ने न केवल उनके परिवार बल्कि पूरे जैन समुदाय को गहरे प्रभाव में डाल दिया है।

पूजा जैन ने अपने जीवन की इस अंतिम यात्रा के लिए पूरी तरह से संकल्पित हैं। उन्होंने अपने परिवार और सांसारिक जीवन को त्यागकर केवल साधना में ध्यान केंद्रित करने का निर्णय लिया है। वर्तमान में वह भोपाल के चौक जैन मंदिर में स्थित संत निवास में तपस्वियों की तरह ध्यानमग्न हैं।

पूजा जैन की साधना की प्रक्रिया

पूजा जैन की साधना की प्रक्रिया में उनके परिवार के सदस्य और जैन विद्वान लगातार उनकी सहायता कर रहे हैं। संत निवास के एक कक्ष में पूजा जैन लेटी हुई हैं और उनके आसपास के लोग उन्हें नमोकार मंत्र का जाप कर रहे हैं। यह मंत्र उनकी साधना को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

ब्रहमचारिणी दीदी और उनके परिवार के सदस्य पूजा को समर्थन देने के लिए वहां मौजूद हैं। आर्यिका दृणमति लगातार पूजा जैन को संबोधित कर रही हैं और उनकी साधना को सही दिशा में आगे बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं।

बीमारी और उपचार की कठिनाइयां

पूजा जैन की कहानी की शुरुआत उस समय हुई जब उन्हें पता चला कि उन्हें लीवर का कैंसर है, और वह भी चौथे स्टेज का। उनकी बीमारी का पता लगने के बाद, परिवार ने उनका हर संभव इलाज करवाने का प्रयास किया। खबरों के मुताबिक, पूजा को 70 से 80 कीमोथेरेपी सत्र दिए गए और टाटा मेमोरियल अस्पताल में उनका इलाज जारी रहा।

जब डॉक्टरों ने बताया कि इलाज अब संभव नहीं है, तो पूजा ने 10 सितंबर को अपने जीवन की दिशा को बदलने का निर्णय लिया। उन्होंने सोचा कि मृत्यु की प्रतीक्षा करने की बजाय, क्यों न साधना के माध्यम से अपने जीवन का अंत किया जाए।

सल्लेखना व्रत का निर्णय

पूजा जैन ने अपने परिवार, ससुराल वालों और मायके वालों को अपने इस निर्णय के बारे में बताया और उन्हें अपनी इस अंतिम यात्रा के लिए सहमत किया। उन्होंने अपने पति सुधीर जैन और परिवार के अन्य सदस्यों को मनाया कि जब मृत्यु अवश्य आनी ही है, तो क्यों न इसे साधना के साथ शांति और संतोष के साथ स्वीकार किया जाए।

10 सितंबर को, पूजा जैन ने आचार्य विद्यासागर जी महाराज की उपस्थिति में भोपाल के चौक जैन मंदिर में अपनी साधना की शुरुआत की। यहां उनकी साधना में दो प्रमुख गुरु मति माताजी और द्रौपदी माताजी उनकी मार्गदर्शक बनकर उन्हें इस पथ पर आगे बढ़ा रहे हैं।

पूजा जैन का यह अद्वितीय और प्रेरणादायक निर्णय उनके अडिग विश्वास और संकल्प को दर्शाता है। यह घटना न केवल उनके परिवार बल्कि जैन धर्म और समाज के लिए भी एक गहरा संदेश प्रस्तुत करती है, जिसमें जीवन के अंतिम क्षणों को भी आध्यात्मिक साधना के माध्यम से पूर्णता की ओर ले जाने का प्रयास किया गया है।

सल्लेखना विधि : जैन धर्म में समाधि लेने की प्रथा

जैन धर्म में, सल्लेखना (या संथारा) एक महत्वपूर्ण और दिव्य प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से व्यक्ति अपने जीवन के अंत को आध्यात्मिक रूप से शांतिपूर्ण ढंग से स्वीकार करता है। इस प्रथा को 'सल्लेखना' कहा जाता है, जिसका अर्थ है 'अच्छाई का लेखा-जोखा'। 

यह विधि उन लोगों के लिए है जिनके पास अकाल मृत्यु, बुढ़ापा, या गंभीर बीमारी जैसी परिस्थितियाँ होती हैं, और जिनके लिए कोई चिकित्सा या उपचार संभव नहीं है।

सल्लेखना विधि का संक्षिप्त विवरण

सल्लेखना क्या है?

 सल्लेखना एक जैन परंपरा है जिसमें व्यक्ति मृत्यु के समय को सुखपूर्वक और बिना किसी शारीरिक या मानसिक कष्ट के स्वीकार करने की प्रक्रिया में अन्न-जल का पूर्ण त्याग कर देता है। इस दौरान, व्यक्ति अपना पूरा ध्यान ईश्वर की उपासना और ध्यान में केंद्रित करता है, जिससे वह आत्मा की शुद्धता की ओर बढ़ता है और मोक्ष की प्राप्ति करता है।

ऐतिहासिक दृष्टिकोण से, मौर्य वंश के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य ने भी सल्लेखना विधि द्वारा अपने प्राण त्यागे थे। यह विधि व्यक्ति को मृत्यु के अंतिम क्षणों में शांति और संतोष का अनुभव कराती है।

सल्लेखना का महत्व जैन धर्म के अनुसार, जब किसी व्यक्ति को बीमारी, बुढ़ापा, या अकाल मृत्यु जैसी स्थिति का सामना करना पड़ता है और कोई उपचार संभव नहीं होता, तो सल्लेखना विधि के माध्यम से शरीर त्यागना उचित माना जाता है। 

यह प्रक्रिया व्यक्ति को अपने कर्मों के बंधनों को कम करने और मोक्ष प्राप्त करने का एक अवसर प्रदान करती है। इसके साथ ही, यह एक आत्म-स्वीकृति और आत्म-मूल्यांकन का भी तरीका है, जिसमें व्यक्ति अपने जीवन के किए गए कर्मों के लिए ईश्वर से क्षमा मांगता है।

सल्लेखना के अन्य नामों में संथारा, संन्यास-मरण, समाधि-मरण, और इच्छा-मरण शामिल हैं। इन सभी नामों से यह प्रक्रिया शांतचित्त होकर मृत्यु को स्वीकार करने की एक प्रक्रिया को दर्शाती है।

सल्लेखना विधि के नियम

गुरु से अनुमति: सल्लेखना विधि अपनाने से पहले व्यक्ति को अपने गुरु से अनुमति प्राप्त करनी होती है। यदि गुरु जीवित नहीं हैं, तो सांकेतिक रूप से अनुमति ली जाती है।

सेवा और समर्थन: इस प्रक्रिया के दौरान, व्यक्ति की सेवा के लिए 4 या अधिक लोग नियुक्त किए जाते हैं। ये लोग व्यक्ति को योग-ध्यान, जप-तप आदि के माध्यम से सहायता प्रदान करते हैं और अंतिम क्षणों तक उसकी सेवा में रहते हैं।

अन्न-जल का त्याग :

सल्लेखना विधि के तहत व्यक्ति अन्न और जल का पूर्ण त्याग कर देता है, जिससे उसकी मृत्यु शांतिपूर्वक और बिना किसी शारीरिक कष्ट के होती है।

आध्यात्मिक ध्यान: इस विधि के दौरान, व्यक्ति अपने ध्यान और साधना में पूरी तरह लीन रहता है, जिससे उसकी आत्मा को शांति और मोक्ष प्राप्त होता है।

सल्लेखना विधि जैन धर्म में मृत्यु को एक आध्यात्मिक अवसर मानते हुए उसे शांति और संतोष के साथ स्वीकार करने की प्रक्रिया है। यह विधि न केवल मृत्यु के प्रति एक सम्मानजनक दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है, बल्कि यह जीवन और मृत्यु के बीच के आध्यात्मिक संबंध को भी स्पष्ट करती है।

हमारे जीवन में सोशल मीडिया के क्या है महत्व,सोशल मीडिया से हमारे जीवन को कितना नुकसान और क्या फायदा हैं आइए जानते है इस लेख में...

आज के दौर में सोशल मीडिया का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। यह न केवल संवाद का माध्यम है बल्कि सूचनाओं के आदान-प्रदान, ज्ञानवर्धन, और मनोरंजन का भी साधन बन चुका है। चाहे वह फेसबुक हो, इंस्टाग्राम, ट्विटर या व्हाट्सएप, सोशल मीडिया ने हमारे दैनिक जीवन को बदलकर रख दिया है। आइए जानते हैं कि सोशल मीडिया का हमारे जीवन में क्या महत्व है और इसके फायदे और नुकसान क्या हैं।

1.सोशल मीडिया के फायदे:

सूचनाओं का आदान-प्रदान:

 सोशल मीडिया ने दुनिया को एक छोटे से गाँव में तब्दील कर दिया है। हम आसानी से दुनियाभर की खबरें, घटनाएं, और जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। हमें किसी भी विषय पर ताजा जानकारी मिल जाती है, जो हमारे ज्ञान को बढ़ाती है।

नेटवर्किंग और कनेक्टिविटी:

सोशल मीडिया के जरिए हम अपने दोस्तों, परिवार और काम के साथियों से जुड़ सकते हैं, चाहे वे दुनिया के किसी भी कोने में हों। यह लोगों के बीच के फासलों को कम करता है और भावनात्मक संबंधों को मजबूत बनाता है।

व्यवसाय और मार्केटिंग:

सोशल मीडिया छोटे और बड़े व्यवसायों के लिए एक बेहतरीन मार्केटिंग प्लेटफॉर्म है। इससे व्यापारी अपने उत्पादों और सेवाओं को लाखों लोगों तक पहुंचा सकते हैं, जिससे उनके व्यापार का विस्तार होता है।

शिक्षा और ज्ञानवर्धन:

 सोशल मीडिया पर कई ऐसे समूह और प्लेटफॉर्म हैं जो शिक्षा से जुड़े होते हैं। ऑनलाइन कोर्स, वेबिनार, और शैक्षिक वीडियो के माध्यम से लोग अपनी स्किल्स को सुधार सकते हैं और नई जानकारी हासिल कर सकते हैं।

मनोरंजन:

सोशल मीडिया मनोरंजन का भी बड़ा स्रोत है। हम विभिन्न प्रकार के वीडियो, मेम्स, और मनोरंजक सामग्री देखकर अपना समय बिता सकते हैं।

2. सोशल मीडिया के नुकसान:

आसक्ति और समय की बर्बादी: सोशल मीडिया पर अधिक समय बिताने से लोगों में इसकी लत लग जाती है। इससे हमारी कार्यक्षमता और उत्पादकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। लोग अपनी पढ़ाई, काम और व्यक्तिगत जिम्मेदारियों से भटक जाते हैं।

मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव:

सोशल मीडिया पर लगातार समय बिताने से मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है। फेक न्यूज, साइबर बुलिंग, और दूसरों से तुलना करने की प्रवृत्ति से डिप्रेशन, तनाव और आत्म-संदेह की समस्या बढ़ जाती है।

निजता का उल्लंघन:

सोशल मीडिया पर लोग अपनी निजी जानकारी साझा करते हैं, जिससे उनकी गोपनीयता को खतरा होता है। कई बार यह जानकारी गलत हाथों में जा सकती है, जिससे साइबर क्राइम जैसी घटनाओं का सामना करना पड़ सकता है।

फेक न्यूज और अफवाहें:

सोशल मीडिया पर फेक न्यूज और गलत जानकारी का प्रसार बहुत तेजी से होता है। लोग बिना तथ्य जांचे जानकारी साझा कर देते हैं, जिससे समाज में भ्रम और तनाव फैलता है।

शारीरिक स्वास्थ्य पर असर:

 लंबे समय तक स्क्रीन के सामने बैठे रहने से आंखों, पीठ, और शरीर के अन्य हिस्सों में समस्याएं हो सकती हैं। इसके साथ ही, शारीरिक गतिविधियों की कमी से मोटापा और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं भी बढ़ सकती हैं।

निष्कर्ष:

सोशल मीडिया हमारे जीवन का एक अहम हिस्सा बन चुका है, जिसके फायदे और नुकसान दोनों हैं। यह हमें सूचनाओं, संवाद और मनोरंजन के लिए एक विशाल प्लेटफॉर्म प्रदान करता है, लेकिन इसका अत्यधिक और गलत उपयोग हमारे मानसिक, शारीरिक और सामाजिक जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। इसलिए, सोशल मीडिया का संतुलित और सावधानीपूर्वक उपयोग ही हमारे लिए फायदेमंद हो सकता है।

राजस्थान का अद्वितीय मंदिर जिसे बनाने में पानी नहीं घी का किया गया इस्तेमाल,इसे बनाने में कई अरब हुए थे खर्च


भारतीय मंदिरों के निर्माण में हमेशा से ही अनोखे और अद्भुत तरीकों का उपयोग किया जाता रहा है. लेकिन एक मंदिर ऐसा है जिसकी निर्माण प्रक्रिया को जानकर आप आश्चर्यचकित हो जाएंगे. हम बात कर रहे हैं राजस्थान के भांडासर मंदिर की, जिसे बनाने के लिए पानी की जगह घी का इस्तेमाल किया गया है.

घी से बना है ये मंदिर

राजस्थान में स्थित भांडासर मंदिर का निर्माण 15वीं शताब्दी के आसपास बंदा शाह ओसवाल नामक एक धनी व्यापारी द्वारा करवाया गया है. यह मंदिर जैन धर्म के पांचवें तीर्थंकर सुमतिनाथ को समर्पित है.

तीन मंजिला है मंदिर

यह मंदिर सिर्फ घी से बनाए जाने से ही नहीं बल्कि अंदरूनी हिस्से और वास्तुकला के लिए भी जानी जाती है. कई जैन मंदिरों की तरह, इसमें भी नक्काशी, रंगीन चित्र बने हुए हैं. यह मंदिर तीन मंजिलों में बना है, जिसमें हर मंजिल पर जैन संस्कृति का एक अलग पहलू दिखाई देता है।

घी से क्यों बनाया गया मंदिर

इस मंदिर का निर्माण पानी की जगह घी से क्यों किया गया, इस बारे में सबसे प्रचलित कहानियों में से एक यह है कि एक बार जब बंदा शाह ने गांव वालों से जमीन पर मंदिर बनाने के लिए कहा तो उन्होंने इसका विरोध किया. जब उनसे इसका कारण पूछा गया तो गांव वालों ने कहा कि इलाके में पहले से ही पानी की बहुत कमी है, जो उनके जीने के लिए मुश्किल से ही पर्याप्त है. और अब अगर मंदिर बनाया गया तो पानी खत्म हो जाएगा और लोग भूखे मर जाएंगे. लेकिन बंदा शाह ने दृढ़ निश्चय किया और पानी की जगह घी से मंदिर का निर्माण करने का फैसला किया।

क्या सच में मंदिर घी से बना है

हालांकि यह पता लगाने के लिए खुदाई नहीं की जा सकती कि नींव वास्तव में पानी की बजाय घी की है या नहीं. लेकिन ऐसा कहा जाता है कि चूंकि निर्माण में घी का उपयोग किया गया था, इसलिए बहुत गर्मी के दिनों में मंदिर के फर्श फिसलन भरे हो जाते हैं और स्तंभों और फर्श से घी रिसता हुआ देखा जा सकता है।

शनि देव से नाराज युवक ने मंदिर में मचाया हंगामा,कारण जानकर पुलिस ने भी पकड़ लिया सर, जानिए क्या है पूरा मामला...?


इंदौर: घटना मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर की है,जहां से दिलचस्प घटना सामने आई है. 

जिले के बाणगंगा थाना क्षेत्र स्थित शनि मंदिर में एक युवक ने तोड़फोड़ की । इस मामले में पुलिस ने शख्स को गिरफ्तार कर लिया है. इसके बाद जब युवक से पूछताछ की तो, उसने तोड़ फोड़ का जो कारण बताया तो पुलिस ने भी सर पकर लिया ।

 उसने पुलिस को बताया कि मैं शनि मंदिर में पिछले डेढ़ साल से पूजा कर रहा था, लेकिन इस दौरान भगवान ने मेरी मनोकामना पूरी नहीं की. उसने पुलिस को बताया कि ना तो शनि महाराज मुझ से बात करते और नही मेरी शादी करा रहे हैं।यहाँ तक कि नॉकरी भी नही दिलाया।

 युवक ने बताया कि, "उसने मंदिर में पूजा-पाठ और प्रसाद पर पैसे खर्च किए, साथ ही ढाई लाख रुपए का दान भी दिया था. दान देने के बाद मैं शनि भगवान से बात करने की कोशिश की."लेकिन उन्होंने बात भी नही की।

जिसके कारण मुझे गुस्सा आ गया और इसी दौरान मैंने उनके वाहन गरुड़ को तोड़ दिया. इसके बाद उनसे मैंने पूछा अब बताओ घर कैसे जाओगे.' बता दें तोड़फोड़ की घटना करने के बाद युवक मंदिर से घर चला गया था.

पुलिस को उसकी मानसिक स्थिति पर संदेह, कराया मेडिकल

बाणगंगा थाना प्रभारी लोकेंद्र सिंह भदोरिया को 'परिजनों ने युवक का मानसिक स्थिति ठीक नही होने की जानकारी दी है।

 पुलिस ने पकड़े गए युवक से पूछताछ की जा रही है। साथ ही उसका मेडिकल भी करवाया जा रहा है। पुलिस ने परिवार वालों को भी समझाया है।