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मिलिए वित्त मंत्री सीतारमण की टीम से, बजट तैयार करने में इनकी भूमिका है अहम*
#team_behind_of_budget_2024
संसद में आज आम बजट 2024 पेश किया जाएगा। देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण वित्त वर्ष 2025-26 के लिए बजट पेश करने के लिए वित्त मंत्रालय से निकल चुकी है। इससे पहले वित्त मंत्री का बजट बनाने वाली टीम के साथ फोटो सेशन हुआ। यही टीम निर्मला है जिसने बजट तैयार किया है। इस टीम के कंधों पर आम चुनावों के बाद देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती के साथ चलाने के लिए बजट तैयार करने का जिम्मा था, जिसे अंजाम दे दिया गया है। अब से थोड़ी देर में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण बजट पेश करेंगी। बजट बनाने की प्रक्रिया आम तौर पर बजट पेश किए जाने से छह महीने पहले शुरू हो जाती है, लेकिन दस्तावेज़ के संकलन और इसको पब्लिश करने की प्रक्रिया हलवा समारोह से शुरू होती है। दरअसल यह वह अवधि होती है जब बजट बनाने के लिए जिम्मेदार टीम खुद को नॉर्थ ब्लॉक के अंदर ही रहती है। इस अवधि के दौरान, टीम को बाहरी दुनिया से, यहां तक कि अपने परिवारों से भी, बहुत सीमित संवाद करने की इजाजत होती है। बजट बनाने में कई भरोसेमंद और उच्च पदस्थ अधिकारियों की एक टीम होती है। बजट 2024-25 को तैयार करने में वित्त मंत्री के अलावे उनकी टीम के सात लोगों की लोगों की भूमिका सबसे अहम रही है। आइए उनके बारे में जानते हैं। *टीवी सोमनाथन* केंद्रीय बजट 2024 तैयार करने में सबसे बड़ी भूमिका में वित्त मंत्रालय के सचिव टीवी सोमनाथन शामिल हैं। वो फाइनेंस सेक्रेटरी और डिपार्टमेंट ऑफ एक्सपेंडिचर का काम देखते हैं। उन्हें पीएम मोदी का खास माना जाता है। वो पहले भी कई बजट में अहम भूमिका निभा चुके हैं। *अरविंद श्रीवास्तव* कर्नाटक के 1994 बैच के आईएएस अधिकारी श्रीवास्तव पीएमओ में वित्त और अर्थव्यवस्था अधिकारी हैं। वह वित्त और कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालयों के कामकाज को देखते हैं। जो कि इस बार का बजट बनाने वाली टीम में शामिल हैं। *हरि रंजन राव* 1994 बैच के आईएएस अधिकारी राव पीएमओ के प्रौद्योगिकी और शासन अनुभागों के कामकाज देखते हैं। इससे पहले वे मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान के सचिव रह चुके हैं। इसके अलावा उन्होंने दूरसंचार विभाग में भी काम किया है। इस बजट को बनाने में उन्होंने भी अपना योगदान दिया है। *वी अनंत नागेश्वरण, मुख्य आर्थिक सलाहकार* वी अनंत नागेश्वरण को वर्ष 2022 के बजट के पहले मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) चुना गया था। इस बार बजट तैयार करने की पूरी प्रक्रिया में नागेश्वरण भी अहम भूमिका अहम रही है। देश का आर्थिक सर्वे भी उनके मार्गदर्शन में ही तैयार किया गया। जिसे सोमवार को वित्त मंत्री ने संसद में पेश किया। *अजय सेठ, सचिव, आर्थिक मामले* बजट तैयार करने वालों में एक अहम नाम वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग के प्रभारी सचिव अजय सेठ का है। मंत्रालय के बजट डिविजन का जिम्मा वही देखते हैं। बजट से जुड़े इनपुट्स और अलग-अलग तरह के वित्तीय विवरण तैयार करने में उनकी बड़ी भूमिका अहम होती है। *तुहिन कांत पांडेय सचिव, डीआईपीएएम (निवेश और लोक प्रबंधन विभाग)* तुहीन कांत पांडेय वित्त मंत्रालय के तहत आने वाले विनिवेश और सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग (डीआईपीएम) के सचिव हैं। हाल के दिनों में सरकार ने विनिवेश के क्षेत्र में जो उपलब्धि हासिल की है उनमें तुहीन का बहुत अहम योगदान रहा है। एलआईसी का आईपीओ लाने और एयर इंडिया के निजीकरण में भी उनकी अहम भूमिका रही है। *अरविंद श्रीवास्तव* इसके अलावा 1994 बैच के आईएएस अधिकारी अरविंद श्रीवास्तव भी टीम सीतारमण में शामिल हैं। वो वित्त और कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालयों का काम देखते हैं। बजट 2024 को तैयार करने में श्रीवास्तव की बड़ी भूमिका है।
निर्मला सीतारमण का लगातार 7वां बजट आज, कर सकती हैं बड़े ऐलान, इन सेक्टर्स पर रह सकता है फोकस*
#budget_2024_what_are_key_expectation
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आज यानी 23 जुलाई को संसद में बजट पेश करेंगी।यह मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का पहला बजट होगा। इससे पहले वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार को आर्थिक सर्वेक्षण 2024 संसद में पेश किया था। इस बजट में करदाताओं को वित्त मंत्री से किसी बड़े राहत के एलान की उम्मीद है। बजट को लेकर खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा कि आम बजट अमृतकाल का महत्वपूर्ण बजट होगा। यह पांच साल के लिए हमारी दिशा तय करने के साथ ही 2047 तक विकसित भारत की आधारशिला रखेगा। माना जा रहा है कि यह बजट 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का रोड मैप होगा। जो भारत को पांच ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनाने का ब्लू प्रिंट होगा। बजट में कुछ सेक्टर के लिए बड़े ऐलान हो सकते हैं। जानते हैं मोदी 3.0 के पहले पूर्ण बजट में किन सेक्टर्स पर फोकस होगा। *बढ़ सकती है इनकम टैक्स से छूट की न्यूनतम सीमा* केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2020 के बजट में नई टैक्स रिजीम लागू की था। यह नई टैक्स रिजीम उन लोगों के फायदेमंद थी, जो कई तरीके के निवेश या इंश्योरेंस पर टैक्स में छूट का दावा नहीं करते हैं। हालांकि आज मिडिल क्लास के लगभग हर व्यक्ति की आय का एक बड़ा हिस्सा होम लोन या कई तरह के इंश्योरेंस के प्रीमियम आदि में खर्च होता है। वहीं पुरानी टैक्स रिजीम में आखिरी बार बदलाव 2014-15 में किया गया था। इस बार माना जा रहा है कि सरकार दोनों तरह के टैक्स रिजीम के लिए इनकम टैक्स से छूट की न्यूनतम सीमा को बढ़ाकर 5 लाख रुपये कर सकती है। *रोजगार पर फोकस* बजट में रोजगार पर फोकस रह सकता है। बीते दिन पेश किए गए इकोनॉमिक सर्वे में भी कहा गया है कि बढ़ती वर्कफोर्स की जरूरतों को पूरा करने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था को नॉन-एग्रीकल्चर सेक्टर में 2030 तक सालाना औसतन लगभग 78.5 लाख नौकरियां पैदा करने की जरूरत है। मतलब ये कि अगर इकोनॉमी की ग्रोथ बनाए रखनी है तो हर साल औसतन 78 लाख लोगों को रोजगार के मौके देने होंगे, जिससे डिमांड एंड सप्लाई में कमी नहीं आएगी और संतुलन बना रहेगा। इसके अलावा सरकार विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए नीतिगत पहल कर सकती है। मैन्यूफैक्चरिंग, बुनियादी ढांचा और MSME को लेकर बजट में बड़े ऐलान होने के आसार हैं। *इंफ़्रा और कृषि पर रह सकता है फोकस* माना जा रहा है कि बजट में सरकार का फोकस पूंजीगत खर्च पर हो सकता है। यानी सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर और कृषि पर खास ऐलान कर सकती है। उम्मीद की जा रही है कि मोदी सरकार इस बार के बजट में किसानों की सम्मान निधि, पीएम किसान योजना को लेकर कुछ बड़ा ऐलान भी कर सकती है। इस दौरान कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर को तेज करने के लिए उपायों की घोषणा हो सकती है।
निर्मला सीतारमण का लगातार 7वां बजट आज, कर सकती हैं बड़े ऐलान, इन सेक्टर्स पर रह सकता है फोकस

#budget2024whatarekey_expectation 

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आज यानी 23 जुलाई को संसद में बजट पेश करेंगी।यह मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का पहला बजट होगा। इससे पहले वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार को आर्थिक सर्वेक्षण 2024 संसद में पेश किया था। इस बजट में करदाताओं को वित्त मंत्री से किसी बड़े राहत के एलान की उम्मीद है। बजट को लेकर खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा कि आम बजट अमृतकाल का महत्वपूर्ण बजट होगा। यह पांच साल के लिए हमारी दिशा तय करने के साथ ही 2047 तक विकसित भारत की आधारशिला रखेगा।

माना जा रहा है कि यह बजट 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का रोड मैप होगा। जो भारत को पांच ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनाने का ब्लू प्रिंट होगा। बजट में कुछ सेक्टर के लिए बड़े ऐलान हो सकते हैं। जानते हैं मोदी 3.0 के पहले पूर्ण बजट में किन सेक्टर्स पर फोकस होगा।

बढ़ सकती है इनकम टैक्स से छूट की न्यूनतम सीमा

केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2020 के बजट में नई टैक्स रिजीम लागू की था। यह नई टैक्स रिजीम उन लोगों के फायदेमंद थी, जो कई तरीके के निवेश या इंश्योरेंस पर टैक्स में छूट का दावा नहीं करते हैं। हालांकि आज मिडिल क्लास के लगभग हर व्यक्ति की आय का एक बड़ा हिस्सा होम लोन या कई तरह के इंश्योरेंस के प्रीमियम आदि में खर्च होता है। वहीं पुरानी टैक्स रिजीम में आखिरी बार बदलाव 2014-15 में किया गया था। इस बार माना जा रहा है कि सरकार दोनों तरह के टैक्स रिजीम के लिए इनकम टैक्स से छूट की न्यूनतम सीमा को बढ़ाकर 5 लाख रुपये कर सकती है।

रोजगार पर फोकस

बजट में रोजगार पर फोकस रह सकता है। बीते दिन पेश किए गए इकोनॉमिक सर्वे में भी कहा गया है कि बढ़ती वर्कफोर्स की जरूरतों को पूरा करने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था को नॉन-एग्रीकल्चर सेक्टर में 2030 तक सालाना औसतन लगभग 78.5 लाख नौकरियां पैदा करने की जरूरत है। मतलब ये कि अगर इकोनॉमी की ग्रोथ बनाए रखनी है तो हर साल औसतन 78 लाख लोगों को रोजगार के मौके देने होंगे, जिससे डिमांड एंड सप्लाई में कमी नहीं आएगी और संतुलन बना रहेगा। इसके अलावा सरकार विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए नीतिगत पहल कर सकती है। मैन्यूफैक्चरिंग, बुनियादी ढांचा और MSME को लेकर बजट में बड़े ऐलान होने के आसार हैं।

इंफ़्रा और कृषि पर रह सकता है फोकस

माना जा रहा है कि बजट में सरकार का फोकस पूंजीगत खर्च पर हो सकता है। यानी सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर और कृषि पर खास ऐलान कर सकती है। उम्मीद की जा रही है कि मोदी सरकार इस बार के बजट में किसानों की सम्मान निधि, पीएम किसान योजना को लेकर कुछ बड़ा ऐलान भी कर सकती है। इस दौरान कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर को तेज करने के लिए उपायों की घोषणा हो सकती है।

आंध्र प्रदेश के उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण की जान को खतरा, सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी ने दी चेतावनी


डेस्क: केंद्र ने उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण की जान को खतरे की चेतावनी दी है। हाल ही में मीडिया में आई खबरों के अनुसार, आंध्र प्रदेश की राजनीति में एक प्रमुख व्यक्ति, उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण कथित तौर पर सुरक्षा खतरे का सामना कर रहे हैं।

केंद्रीय एजेंसियों ने कथित तौर पर पवन कल्याण को राजनीतिक हलकों में उनकी भागीदारी से जुड़े संभावित खतरों के बारे में सचेत किया है। एजेंसियों ने कथित तौर पर जनसेना पार्टी के प्रमुख को सावधान रहने की चेतावनी दी है, उनके नाम और असामाजिक तत्वों से जुड़े व्यक्तियों के बीच संबंधों का हवाला देते हुए।


रिपोर्ट्स में कहा गया है कि पवन कल्याण की जान को खतरा हो सकता है, जिसके चलते एजेंसियों ने सुरक्षा अलर्ट जारी किया है। इस खबर ने व्यापक चिंता पैदा कर दी है और यह गहन चर्चा का विषय बन गया है।

राज्य सरकार में कई महत्वपूर्ण विभागों को संभाल रहे और सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन का हिस्सा पवन कल्याण को हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से प्रशंसा मिली थी, जिन्होंने उन्हें "तूफ़ान" कहा था।

इससे पहले पवन कल्याण ने आरोप लगाया था कि बैठकों के दौरान उन पर ब्लेड से हमला करने की साजिश की जा रही है और पार्टी समर्थकों से सतर्क रहने को कहा था। यह ताजा सुरक्षा अलर्ट उनके पहले से ही हाई-प्रोफाइल राजनीतिक करियर में चिंता का एक और स्तर जोड़ता है।
हिंद महासागर में चीन के मंसूबों पर पानी फेरने की तैयारी में भारत, मालदीव पर भी होगी पैनी नजर*
#two_military_air_bases_in_lakshadweep_ strategic_to_counter_china


लक्षद्वीप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा के बाद अब भारत सरकार ने तय किया है कि अगाती और मिनिकॉय आइलैंड्स पर दो नए एयरफील्ड्स बनाए जाएंगे। अगाती पर मौजूद पुराने रनवे को सुधारा जाएगा, बढ़ाया जाएगा। जबकि मिनिकॉय आइलैंड पर नया रनवे बनाया जाएगा। केन्द्र की मोदी सरकार ने भारत की सीमा सुरक्षा को और भी ज्यादा मजबूत बनाने के लिए ये कदम उठाया है। इस बेस और रनवे से भारतीय सेना, वायुसेना और नौसेना मालदीव और चीन की हरकतों पर सीधी नजर रख पाएंगे। साथ ही मालदीव के चीन परस्त राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू का टेंशन में आना भी तय है। इस योजना से भारतीय सैनिकों को देश से बाहर निकालने वाले मुइज्जू को करारा जवाब मिलेगा। दरअसल, इनमें से एक हवाई क्षेत्र लक्षद्वीप के मिनिकॉय द्वीप पर बनाया जाएगा, जो मालदीव से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। योजना काफी ज्यादा अहम मानी जा रही है क्योंकि समुद्री सीमा के आस-पास के क्षेत्रों में चीन की सेना की गतिविधियां काफी तेजी से बढ़ रही हैं।अगाती आइलैंड की एयरस्ट्रिप को अपग्रेड किया जा रहा है। ताकि भारतीय सेनाएं हिंद और अरब महासागर में शांति स्थापित कर सकें। इसके अलावा इंडो-पैसिफिक रीजन में समुद्री सुरक्षा को बरकरार रख सके. पूर्व में अंडमान और पश्चिम में लक्षद्वीप पर मजबूत तैनाती से भारत की समुद्री सीमा सुरक्षित रहेगी। मिनिकॉय द्वीप जो कि मालदीव से लगभग 80 किमी की दूरी पर स्थित है, वहां पर तैयार होने वाले दोहरे उद्देश्य वाले इन एयरफील्ड को कमर्शियल एयरलाइंस के लिए खोल दिया जाएगा। इसके अलावा इस एयरफील्ड पर हर तरह के जेट फाइटर प्लेन और ट्रांसपोर्टेशन के लिए इस्तेमाल होने वाले प्लेन के साथ लंबी दूरी के ड्रोन को तैनात किया जाएगा। इन सभी विमानों को तैनाती से इस क्षेत्र में भारतीय बलों को बढ़त मिलेगी। इस प्रोजेक्ट को इंडियन एयरफोर्स लीड करेगी, लेकिन इसका इस्तेमाल तीनों डिफेंस फोर्स और कोस्ट गार्ड कर सकेंगे। *चीनी गतिविधियों होगी हमेशा नजर* इस प्रोजेक्ट के तैयार होने के कुछ समय बाद इन जगहों पर लड़ाकू जेट और विमानों की तैनाती की जाएगी। केंद्र सरकार की इस मंजूरी का उद्देश्य चीनी गतिविधियों पर बराबर नजर रखना है। कुछ समय पहले डिपार्टमेंट ऑफ मिलिट्रीअफेयर्स (DMA) ने तीनों सेनाओं की तरफ से मिनिकॉय द्वीप में एक नया एयरबेस बनाने और भारत के पश्चिमी हिस्से में अरब सागर में अगत्ती द्वीप पर मौजूदा हवाई क्षेत्र को बढ़ाने और अपग्रेड करने का प्रस्ताव सरकार के सामने रखा था, जिससे भारत की रक्षा क्षमताओं को बढ़ावा मिल सके। *मालदीव में चीन की उपस्थिति पर होगी नजर* राष्ट्रपति बनने के बाद से ही मुइज्जू ने चीन के साथ अपनी नजदीकियां बढ़ाई हैं और रक्षा संबंधों को भी नया रूप दिया है। मुइज्जू की सरकार बनने के बाद चीन के जासूसी जहाज को मालदीव के बंदरगाह पर रुकने की मंजूरी भी मिली है। इस कदम ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय में संदेह पैदा कर दिया है। इस बात को लेकर आशंकाएं बढ़ रही हैं कि चीन हिंद महासागर में अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए मालदीव और पाकिस्तान का इस्तेमाल कर सकता है। मालदीव के करीब सैन्य ढांचे के निर्माण से भारत को इस क्षेत्र में बढ़ती चीनी गतिविधियों पर कड़ी नजर रखने में मदद मिलेगी। भारत ने पहले ही संकेत दे दिया है कि मालदीव में चीन की किसी भी सैन्य उपस्थिति को नई दिल्ली अपने करीब में एक खतरे के रूप में देखेगा।
संघ पर लगा बैन हटा, क्या रिश्तों के बीच आई दरारों को भरने की है कोशिश?
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भारतीय जनता पार्टी का बैकबोन यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) इन दिनों सुर्खियों में है। कभी बीजेपी के लिए नींव का काम करने वाले संघ से ही उसके रिश्ते तल्ख होते जा रहे हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान और बाद में हुई बयानबाजी के बाद सवाल उठने लगा है कि क्या आरएसएस और बीजेपी के रिश्ते खत्म होने के कगार पर हैं? क्या अब भाजपा को संघ की जरूरत नहीं है? हालांकि इन सवालों और आरएसएस और बीजेपी में चल रही तनातनी की खबरों के बीच केंद्र सरकार का बड़ा फैसला सामने आया है। 58 साल बाद सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ (आरएसएस) में शामिल होने पर लगा प्रतिबंध हटा लिया है। अब ऐसे में अहम सवाल ये उठ रहा है कि क्या संघ की नाराजगी दूर करने के लिए केन्द्र की मोदी सरकार ने ये फैसला लिया है?

केंद्र सरकार ने 1966, 1970 और 1980 में तत्कालीन सरकारों द्वारा जारी उन आदेशों में संशोधन किया गया है, जिनमें सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस की शाखाओं और उसकी अन्य गतिविधियों से दूर रखने के लिए रोक लगाई थी। आरोप है कि पूर्व सरकारों ने सरकारी कर्मचारियों के संघ के कार्यक्रमों में शामिल होने पर रोक लगा दी थी। आरएसएस की गतिविधियों में शामिल होने पर कर्मचारियों को सजा देने तक का प्रावधान भी लागू किया गया। सरकारी सेवाओं से जुड़े लाभ लेने के लिए कर्मचारी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों से दूर रहते थे। हालांकि अब केन्द्र की बीजेपी की अगुवाई वाली सरकार ने इस फैसले को पलट दिया है।

आरएसएस ने सरकारी कर्मचारियों के संघ की गतिविधियों में शामिल होने पर लगी रोक हटाने के केंद्र सरकार के फैसले का स्वागत किया। आरएसएस ने कहा कि फैसले से देश की लोकतांत्रिक प्रणाली मजबूत होगी। उसने पूर्ववर्ती सरकारों पर अपने राजनीतिक हितों के कारण सरकारी कर्मचारियों को संघ की गतिविधियों में हिस्सा लेने से प्रतिबंधित करने का आरोप भी लगाया। प्रतिबंध हटाने संबंधी सरकारी आदेश के सार्वजनिक होने के एक दिन बाद आरएसएस प्रवक्ता सुनील आंबेकर ने एक बयान में कहा, “सरकार का ताजा फैसला उचित है और यह भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली को मजबूत करेगा।”
वहीं, विपक्ष के कई नेताओं ने सरकारी कर्मचारियों पर संघ की गतिविधियों में हिस्सा लेने पर लगा प्रतिबंध हटाने के केंद्र के फैसले की आलोचना की है।

बता दें कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) दुनिया का सबसे बड़ा स्वैच्छिक संगठन माना जाता है और इसके स्वयंसेवक देश भर में सक्रिय हैं। आरएसएस बीजेपी का एक अहम अंग माना जाता है। आरएसएस को कई लोग भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का वैचारिक संरक्षक भी मानते हैं, जो कि इस वक्त दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टियों में से एक है, और वर्तमान में लगातार एनडीए के सहयोगी दलों के साथ तीसरी बार सरकार बना चुकी है। मौजूदा दौर में भी देश के कई राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं और वह देश की सबसे ताकतवर राजनीतिक पार्टी बन चुकी है। बीजेपी पार्टी के ज्यादातर बड़े नेता मूलत: संघ से जुड़े हुए हैं जिनमें स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हैं, जिन्होंने संघ में लंबे समय तक कार्य किया है।

*संघ पर तीन बार लगा बैन*
संघ पर तीन बार प्रतिबंध लगाया जा चुका है। आजादी मिले एक साल भी नहीं हुआ था कि आरएसएस को प्रतिंबध का सामना करना पड़ा। सबसे पहले 30 जनवरी, 1948 को महात्मा गांधी की हत्या के बाद आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इसके पीछे की वजह ये है कि महात्मा गांधी की हत्या को संघ से जोड़कर देखा गया। 18 महीने तक संघ पर प्रतिबंध लगा रहा। ये प्रतिबंध 11 जुलाई, 1949 को तब हटा जब देश के उस वक्त के गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल की शर्तें तत्कालीन संघ प्रमुख माधवराव सदाशिव गोलवलकर ने मान लीं। लेकिन ये प्रतिबंध इन शर्तों के साथ हटा कि संघ अपना संविधान बनाए और उसे प्रकाशित करे, जिसमें चुनाव की खास अहमियत होगी और लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत चुनाव होगा। इसके साथ ही आरएसएस की देश की राजनीतिक गतिविधियों से पूरी तरह से दूरी बनाकर रखेगा।

*आरएसएस पर दूसरी बार क्यों लगा बैन*
आरएसएस को दूसरी बार प्रतिबंध का समाना इमरजेंसी के दौर में करना पड़ा। इंदिरा गांधी ने साल 1975 जब देश में इमरजेंसी लगाई तो आरएसएस ने इसका जमकर विरोध किया था। इतने जोरदार विरोध के चलते बड़ी संख्या में आरएसएस के लोगों को बड़ी संख्या में जेल जाना पड़ा। इस दौरान आरएसएस पर 2 साल तक पाबंदी लगी रही। इमरजेंसी के बाद जब चुनाव की घोषणा हुई तो जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हो गया। इसके बाद साल 1977 में जनता पार्टी सत्ता में आई तब जाकर संघ पर लगा प्रतिबंध हटाया गया।

*आरएसएस पर तीसरी बार बैन लगने की वजह*
आरएसएस पर तीसरी बार प्रतिबंध साल 1992 में लगा। दरअसल पहली बार बीजेपी ने 1984 का लोकसभा चुनाव लड़ा इस चुनाव में पार्टी महज 2 सीटों पर सिमट गई।लेकिन बाबरी मस्जिद ने राजनीतिक परिदृश्य बिल्कुल पूरी तरह बदल दिया। 1986 में अयोध्या के विवादित परिसर का ताला खोल दिया गया और वहां से मंदिर-मस्जिद की राजनीति गर्मा गई। इसी मौके को भाजपा और आरएसएस ने भुना लिया। नतीजतन इसको लेकर 1986 से 1992 के बीच खूब टकराव हुआ। जगह-जगह हिंसा हुई, लोगों की जानें गई। साल 1992 में अयोध्या में भीड़ ने विवादित ढांचे का गुंबद गिरा दिया।
इससे देश के कई हिंसों में तनाव पसर गया. हिंसा होने लगी और माहौल खराब होने लगा। देश की स्थिति देख तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने आरएसएस पर भी प्रतिबंध लगा दिया।इसके बाद एक बार फिर जांच चली। लेकिन जांच में आरएसएस के खिलाफ कुछ नहीं मिला। नतीजतन आखिर में तीसरी बार भी 4 जून 1993 को सरकार को आरएसएस पर से प्रतिबंध हटाना पड़ा।
'शर्म से सिर झुका लें': जानें टीएमसी ने एमपी के सीएम मोहन यादव पर क्यों किया ये कटाक्ष

तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने सोमवार को मध्य प्रदेश में मोहन यादव के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी सरकार की आलोचना की, जिसमें राज्य के रीवा जिले में एक ट्रक द्वारा दो महिलाओं पर बजरी गिराने की घटना शामिल है। सोशल मीडिया पर कथित वीडियो शेयर करते हुए टीएमसी ने कहा, "आई एनडीए की यह सरकार लाई महिलाओं पर तीन गुना अत्याचार। भाजपा समर्थित अराजकता के तहत महिलाओं के खिलाफ अत्याचार एक महामारी बन गए हैं। एमपी के रीवा में, सड़क निर्माण का विरोध करने पर दो महिलाओं को लगभग जिंदा दफना दिया गया। सीएम को शर्म से सिर झुका लेना चाहिए।"


पुलिस ने रविवार को  बताया कि मध्य प्रदेश के रीवा जिले में एक ट्रक से दो महिलाओं पर मुरम गिराए जाने की चौंकाने वाली घटना शाम में आई जिसके के लिए एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया है। पुलिस अधीक्षक (एसपी) विवेक सिंह ने कहा कि डंपर ट्रक को जब्त कर लिया गया है। पुलिस के अनुसार, यह घटना पारिवारिक विवाद का नतीजा थी और शनिवार को मंगावा पुलिस थाने के अंतर्गत हिनोता जोरोट गांव में हुई। अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक विवेक लाल ने बताया कि ममता पांडे और आशा पांडे नामक महिलाएं सड़क निर्माण का विरोध कर रही थीं और लाल मिट्टी के पदार्थ के नीचे आंशिक रूप से दब गईं। शिकायतकर्ता आशा पांडे ने आरोप लगाया कि विवाद उनके रिश्तेदार गोकरण पांडे के साथ संयुक्त स्वामित्व वाली जमीन के एक टुकड़े से संबंधित था और जब वहां सड़क बनाई जा रही थी, तो उन्होंने अपनी भाभी के साथ मिलकर इसका विरोध किया। उन्होंने पुलिस से शिकायत की कि सड़क निर्माण के लिए मुरुम ले जा रहे ट्रक के चालक ने उन पर सामग्री उतार दी। उन्होंने बताया कि बाद में ग्रामीणों ने उन्हें बाहर निकाला।

घटना पर मध्य प्रदेश के सीएम ने क्या कहा
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने एक्स पर कहा, "रीवा जिले में महिलाओं के खिलाफ अपराध का मामला सोशल मीडिया के माध्यम से प्राप्त एक वीडियो से मेरे संज्ञान में आया है, जिसमें मैंने जिला प्रशासन और पुलिस को तत्काल कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं।" यह एक पारिवारिक विवाद था और पुलिस ने एक आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है। दो अन्य की तलाश जारी है, सीएम ने कहा।

यादव ने बताया कि महिलाओं को उपचार के बाद अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है। उन्होंने कहा, "मध्य प्रदेश के नागरिकों, विशेषकर महिलाओं की सुरक्षा सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है। उनके खिलाफ किसी भी अपराध में आरोपियों को बख्शा नहीं जाएगा। उन्हें कड़ी से कड़ी सजा दी जाएगी।"
मोदी सरकार ने पलटा 58 साल पुराना फैसला, सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस के कार्यक्रमों में शामिल होने पर लगी रोक हटी?

केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की गतिविधियों में सरकारी कर्मचारियों के भाग लेने पर लगे 58 साल पुराने ‘‘प्रतिबंध’’ को हटा लिया है। सरकार के इस फैसलै के बाद अब सरकारी कर्मी आरएसएस की गतिविधियों में शामिल हो सकेंगे। आरएसएस और बीजेपी में चल रही तनातनी की खबरों के बीच केंद्र सरकार का बड़ा फैसला सामने आया है। 

डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल और ट्रेनिंग ने एक आदेश जारी करते हुए सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस की तमाम गतिविधियों में शामिल होने पर लगा प्रतिबंध हटा लिया है।जानकारी के मुताबिक पूर्व की केंद्र सरकारों के द्वारा 1966, 1970 और 1980 के उन आदेशों में संशोधन किया गया है, जिनमें कुछ अन्य संस्थाओं के साथ-साथ आरएसएस की शाखाओं और अन्य गतिविधियों में शामिल होने पर सरकारी कर्मचारियों पर कड़े दंडात्मक प्रावधान लागू किए गए थे।

कांग्रेस ने बोला तीखा हमला

सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस की गतिविधियों में शामिल होने पर बैन को हटाने के आदेश को लेकर देशभर में बवाल मचा हुआ है।सरकार के इस आदेश के बाद से अलग-अलग राजनीतिक दलों ने सरकार पर जमकर हमला बोला है।कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने अपने पोस्ट में एक ऑफिस मेमोरेंडम का हवाला दिया था। यह मेमोरेंडम 9 जुलाई का बताया जा रहा है। जयराम रमेश ने एक्स पर कहा, 'फरवरी 1948 में गांधीजी की हत्या के बाद सरदार पटेल ने RSS पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके बाद अच्छे आचरण के आश्वासन पर प्रतिबंध को हटाया गया। इसके बाद भी RSS ने नागपुर में कभी तिरंगा नहीं फहराया। 1966 में, RSS की गतिविधियों में भाग लेने वाले सरकारी कर्मचारियों पर प्रतिबंध लगाया गया था - और यह सही निर्णय भी था। यह 1966 में बैन लगाने के लिए जारी किया गया आधिकारिक आदेश है। 4 जून 2024 के बाद, स्वयंभू नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री और RSS के बीच संबंधों में कड़वाहट आई है। 9 जुलाई 2024 को, 58 साल का प्रतिबंध हटा दिया गया जो अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री के कार्यकाल के दौरान भी लागू था। मेरा मानना है कि नौकरशाही अब निक्कर में भी आ सकती है।'

क्या है 58 साल पुराना आदेश, सरकार ने क्यों लगाया था बैन?

दरअसल, साल 1965 में देश में गोहत्या पर रोक लगाने और गोरक्षा को लेकर सख्त कानून बनाने की मांग हो रही थी। इसको लेकर देशभर में विशाल आंदोलन शुरू हो गया और काफी लंबे समय तक चलता रहा। साल 1966 में संत गोहत्या पर रोक और गोरक्षा को लेकर सख्त कानून की मांग को लेकर दिल्ली कूच किया। 7 नवंबर 1966 को साधु-संत इस मांग को लकेर संसद के बाहर पहुंच गए और धरने के साथ आमरण अनशन का ऐलान कर दिया। दावा किया जाता है कि इस दौरान पुलिस ने फायरिंग की और साधु-संतों और गोरक्षकों के अलावा कई कार्यकर्ता मारे भी गए थे। हालांकि, मारे गए लोगों की संख्या को लेकर स्थिति साफ नहीं है और कई जगहों संख्या अलग-अलग बताई गई है। इस दौरान दिल्ली में कर्फ्यू लगाने की नौबत आ गई थी और कई संतों को जेल में बंद कर दिया गया था। इस प्रदर्शन के बाद 30 नवंबर 1966 को केंद्र सरकार ने आरएसएस के कार्यक्रमों में सरकारी कर्मचारियों के शामिल होने पर प्रतिबंध लगा दिया था।

इस वजह से सेवानिवृत होने के बाद पेंशन लाभ इत्यादि को ध्यान में रखते हुए भी अनेक सरकारी कर्मचारी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों में शामिल होने से बचते रहे थे। हालांकि, इस बीच मध्य प्रदेश सहित कई राज्य सरकारों ने इस आदेश को निरस्त कर दिया था। लेकिन इसके बाद भी केंद्र सरकार के स्तर पर यह वैध बना हुआ था। इस मामले में एक केस इंदौर की अदालत में चल रहा था, जिस पर अदालत ने केंद्र सरकार से उसका नजरिया भी मांगा था।

नीट पेपर लीक विवादः सीजेआई बोले- शक है कि पेपर स्ट्रॉन्ग रूम से पहले लीक हुआ, ट्रांसपोर्टेशन के दौरान नहीं

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सुप्रीम कोर्ट ने विवादों से घिरी नीट-यूजी परीक्षा से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की।सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के दौरान कई बातें सामने आ रही हैं। नीट विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में 40 से ज्यादा याचिकाओं पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच के सामने सुनवाई जारी है। यह चौथी सुनवाई है। आज रीएग्जाम पर फैसला आ सकता है।

याचिकाकर्ताओं के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि एनटीए ने पेपर लीक होने और वॉट्सऐप के जरिए लीक हुए प्रश्नपत्रों के प्रसार की बात स्वीकार की है। याचिकाकर्ताओं-छात्रों के वकील की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता नरेंद्र हुड्डा ने कोर्ट को बताया कि बिहार पुलिस की जांच के बयानों में कहा गया है कि लीक 4 मई को हुआ था और संबंधित बैंकों में प्रश्नपत्र जमा करने से पहले हुआ।

सॉलिसिटर जनरल ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि अमित आनंद जो कि नीट पेपर लीक मामले की अहम कडी है दरअसल वह एक बिचौलिया है। वह 4 मई की रात को छात्रों को इकट्ठा कर रहे थे, ताकि उन्हें 5 तारीख को पेपर मिले। इसी तरह एक अन्‍य नीतेश कुमार उस जगह पर थे, जहां उन्हें सुबह पेपर मिलता था और छात्रों को इसे याद करना था। 

कोर्ट में सुनवाई के दौरान सीजीआई ने कहा कि अमित आनंद के बयान अलग-अलग हैं। एक बयान में कहा गया है कि नीट का पेपर 4 तारीख की रात को लीक हुआ था, दूसरे बयान में कहा गया है कि यह 5 तारीख की सुबह व्हाट्सएप पर प्राप्त हुआ था। उसका पहला बयान बताता है कि नीट का पेपर 4 की रात को लीक हुआ था। अगर पेपर 4 मई की रात को लीक हुआ है, तो जाहिर है कि लीक परिवहन की प्रक्रिया में नहीं हुआ था और यह स्ट्रॉन्ग रूम वॉल्ट से पहले हुआ था।

सीजेआई कहा, हमारे पास अभी तक कोई ऐसा सबूत नहीं है, जिससे य़ह पता चले कि नीट-यूजी पेपर लीक इतना व्यापक था कि पूरे देश में फैल गया। हमें यह देखना होगा कि क्या लीक स्थानीय स्तर पर है और यह भी देखना होगा कि पेपर सुबह 9 बजे लीक हुआ और 10:30 बजे तक हल हो गया। अगर हम इस पर विश्वास नहीं करते हैं, तो आपको हमें यह दिखाना होगा कि लीक हजारीबाग और पटना से भी आगे हुआ था। हमें बताएं कि यह कितना व्यापक है। सीबीआई की तीसरी रिपोर्ट से हमें पता चला है कि प्रिंटिंग प्रेस कहां स्थित थी। इस पर याचिकाकर्ता वकील हुड्डा ने कहा, "झज्जर के हरदयाल स्कूल की प्रिंसिपल का वीडियो है, जिसमें उन्होंने कहा है कि केनरा बैंक का पेपर दिया गया था। कोई देरी नहीं हुई थी। इस पर सीजेआई ने कहा पूछा कि क्या सेंटर इंचार्ज को दोनों बैंकों से पेपर मिलते हैं? जवाब में सॉलिसिटर जनरल ने कहा, "किसी सिटी इंचार्ज को यह नहीं बताया जाता कि किस बैंक से पेपर लेना है।" फिर सीजेई पूछा, "क्या बैंकों को इस बारे में जानकारी नहीं है। जब एसबीआई को पेपर बांटने थे, तो झज्जर इंचार्ज केनरा बैंक कैसे गए और पेपर कैसे लाए? 

दरअसल, कोर्ट मामले में 40 से अधिक याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। याचिकाओं में एनटीए की अर्जियां भी शामिल हैं। एनटीए ने विभिन्न हाइकोर्ट में उसके खिलाफ लंबित मामलों को सुप्रीम कोर्ट स्थानांतरित करने की मांग की है। बता दें कि मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट-यूजी 2024 पांच मई को आयोजित की गई थी। इससे पहले राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (एनटीए) ने शनिवार को मेडिकल प्रवेश परीक्षा के शहर और केंद्रवार परिणाम जारी किए थे।

कल पेश होगा बजट, हो सकते है कई बड़े ऐलान, समझिए किस करवट बैठेगा शेयर बाजार? देखें बीते 10 सालों का हाल

देश का आम बजट आने वाला है और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण कल 23 जुलाई 2024 को संसद में इसे पेश करेंगी. बजट पेश होने से पहले शेयर बाजार में हमेशा की तरह खासी उथल-पुथल देखने को मिल रही है. ऐसे में बजट वाले दिन Stock Market कैसा कैसा परफॉर्मेंस करेगा, ये कहना अभी जल्दबाजी होगी. लेकिन बजट वाले दिन शेयर मार्केट के इतिहास पर नजर करें, तो बीते 10 साल में ये 6 बार चढ़ा है, जबकि चार बार धराशायी हुआ है. 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल का पहला बजट कल संसद के पटल पर रखा जाएगा. निर्मला सीतारमण का ये लगातार सातवां बजट होगा और इसे पेश करने के साथ ही वित्त मंत्री मोरारजी देसाई का रिकॉर्ड तोड़ देंगी, जिन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान लगातार छह बार बजट पेश किया था. पिछले एक दशक में Budget Day पर शेयर मार्केट की चाल बदली बदली रही है. छह बार सेंसेक्स ने जोरदार छलांग लगाई है, तो वहीं चार बार ये भरभराकर टूटा है. इस बीच बता दें कि साल 2021 में शेयर बाजार सबसे ज्यादा 2021 में 5 फीसदी चढ़ा था, जबकि इससे पहले 2020 में ये 2.43 फीसदी गिरा था, जो इसकी बजट वाले दिन सबसे बड़ी गिरावट थी.

बीते साल 2023 में Budget को लेकर शेयर बाजार के उत्साह पर अमेरिकी शॉर्ट सेलर कंपनी हिंडनबर्ग (Hindenburg) का असर दिखा था. भारतीय अरबपति गौतम अडानी (Gautam Adani) के अडानी ग्रुप को लेकर जारी की गई हिंडनबर्ग की रिपोर्ट का असर बजट वाले दिन शेयर बाजार पर दिखा था. हालांकि, 1 फरवरी 2023 को BSE Sensex 1223 अंक की उछाल के साथ 60,773 के स्तर तक पहुंचा था, लेकिन अंत में ये शुरुआती बढ़त को गंवाते हुए 158 अंक की बढ़त के साथ 59,708 पर बंद हुआ था. जबकि NSE Nifty 46 अंक फिसलकर 17,616.30 पर क्लोज हुआ था. 

इससे पहले साल 2022 में शेयर बाजार ने बजट वाले दिन जोरदार उड़ान भरी थी और BSE Sensex कारोबार के दौरान 1000 अंक से ज्यादा उछल गया था, हालांकि मार्केट क्लोज होने पर ये 848 अंक चढ़कर 58,862 के लेवल पर बंद हुआ था. वहीं NSE Nifty 237 अंक की तेजी लेकर 17,577 के स्तर पर क्लोज हुआ था. बात 2021 की करें, तो ये साल बजट-डे पर शेयर बाजार के लिए बेहतरीन साबित हुआ था. सेंसेक्स 2300 अंक या 5 फीसदी की ताबड़तोड़ तेजी के साथ 48,600 पर, जबकि निफ्टी 647 अंक उछलकर 14,281 पर बंद हुआ था. 

2015-2020 तक बजट के दिन ऐसी रही चाल

साल सेंसेक्स निफ्टी

2020 988 अंक टूटा 300 अंक फिसला

2019 212 अंक चढ़ा 62.7 अंक उछला

2018 839 अंक टूटा 256 अंक फिसला

2017 486 अंक चढ़ा 155 अंक उछला

2016 152 अंक टूटा 42.7 अंक फिसला

वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा साल 2015 में देश का आम बजट पेश किया गया था और बेंचमार्क इंडेक्स सेंसेक्स Budget वाले दिन 0.48% बढ़कर 29,361 अंक पर बंद हुआ था. वहीं निफ्टी भी तेजी के साथ क्लोज हुआ था. इससे पहले साल 2014 में बजट पेश होने पर शेयर बाजार में कारोबार के दौरान BSE Sensex 800 अंकों की गिरावट के साथ बंद हुआ था. ताजा हालात की बात करें तो 23 जुलाई 2024 को पेश होने वाले बजट से पहले शेयर बाजार में खासी-उथल पुथल देखने को मिल रही है. शुक्रवार को सेंसेक्स जोरदार 738.81 अंक की गिरावट के साथ बंद हुआ. वहीं 269 अंक फिसलकर क्लोज हुआ.