लंबी क़ानूनी लड़ाई के बाद सशत्र-बल अधिकरण लखनऊ ने सुनाया फेमिली पेंशन देने का फैसला
लखनऊ। गाजीपुर निवासिनी अम्बिया खातून को लगभग पांच वर्ष के कानूनी संघर्ष के बाद सशत्र-बल अधिकरण लखनऊ ने फेमिली पेंशन दिए जाने का फैसला सुनाया l प्रकरण यह था कि, पीड़िता के पति स्व० नईमउल्ला खां आर्मर्ड कार्प्स से सेवानिवृत्त सैनिक थे, उन्होंने पेंशन का अधिकार अपनी पहली पत्नी जाहिदा खातून के निधन के बाद वादिनी से नवंबर, 2013 में मुस्लिम रीति-रिवाज से विवाह किया लेकिन, मई 2019 में उनका भी निधन हो गया लेकिन, निधन के पूर्व ही उन्होंने अपने सर्विस रिकार्ड में पीड़िता का नाम दर्ज करा दिया था l
निधन के बाद पीड़िता ने सितंबर, 2019 में अपने पक्ष में फेमिली पेंशन जारी करने के लिए पत्र लिखा, जिसके जवाब में रिकार्ड आफिस, अहमदनगर ने 26 सितंबर, 2019 को पीड़िता को यह कहते हुए फेमिली पेंशन देने से इंकार कर दिया कि, पहली पत्नी के पुत्र मो० सुहैल खां ने 21 जून, 2019 को, जामिया अरेबिया, मखजानुल उलूम, दिलदार नगर द्वारा जारी तलाकनामा 27 जुलाई, 2015 के साथ शिकायत की है कि, पीड़िता को मृत्यु के पूर्व ही उसके पति ने तलाक दे दिया था इसलिए, वह फेमिली पेंशन सहित कोई भी लाभ प्राप्त करने की हकदार नहीं है l
वर्ष 2021 में प्रार्थिनी ने पहली पत्नी के पुत्रों सुहेल खान, जुनैद खान और परवेज खान को पक्षकार बनाते हुए सशत्र-बल अधिकरण, लखनऊ में वाद दायर किया, जिसकी सुनवाई के दौरान पीड़िता के अधिवक्ता विजय कुमार पाण्डेय ने कहा कि, सुहैल खान द्वारा दिया गया तलाकनामा फर्जी है, जिसे कई बार नोटिस जारी करके कोर्ट ने बुलाया लेकिन, वह उपस्थित नहीं हुआ। तलाकनामे को साबित करने का भार उसी पर है, सेना को फर्जी साबित करने का अधिकार नहीं है l विजय पाण्डेय ने आगे कहा कि, सैनिक कल्याण बोर्ड और जिलाधिकारी, गाजीपुर को कई बार आदेशित किया गया कि, तलाकनामे की सत्यता पर जांच करके रिपोर्ट प्रस्तुत करें लेकिन, आज तक कोई रिपोर्ट सेना नहीं ला सकी और, इसके बावजूद पेंशन रोंक रखी है, उन्होंने आगे दलील दी कि, पेंशन का संबंध जीवन जीने के अधिकार से है इसलिए, विपक्षी किसी विधवा के जीवन को प्रभावित नहीं कर सकते, जिसे उच्चतम न्यायालय ने झारखंड राज्य के मामले में कहा है। दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने, दस्तावेजों का गहनता से अनुशीलन करने के बाद न्यायमूर्ति अनिल कुमार (रि.) एवं मेजर जनरल संजय सिंह (रि.) की खण्डपीठ ने पीड़िता के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि, पीड़िता फेमिली पेंशन की हकदार है उसे चार महीने के अंदर पेंशन दी जाए अन्यथा सेना को आठ प्रतिशत ब्याज भी देना होगा।
Apr 24 2024, 18:12