सोचऊ कइसे अंगना दुआर जौ बेदर्दी होइ गये पहरेदार: कुमार तरल
अमेठी। डगर से अगहर के लिए पहर रबि के पुत्रो की जमात पंडित राम बरन पाण्डेय के निलयम् मे लगी। रविवार को अवधी मधुरस की अवधी साहित्य संस्थान का अद्भुत प्राकृतिक मिलन हुआ। जिसमे अवधी के कवि का ओज,धुरंधर लाल ने मकान के दुआर मे नजर पहरेदार पर टिकी। जिले के तहसील अमेठी के गांव अगहर मे अवधी मधुरस - अवधी साहित्य संस्थान अमेठी के संयुक्त तत्वावधान कवि गोष्ठी का शुभारंभ अतिथियों ने "मां सरस्वती , गोस्वामी तुलसीदास, मालिक मोहम्मद जायसी "के चित्र पर माल्यार्पण के साथ पूजा- अर्चना के साथ हुआ।
काव्य गोष्ठी का प्रारम्भ कवि जगदम्बा तिवारी मधुर की सरस्वती वंदना से हुआ। कवि गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए पं विश्वनाथ मिश्र स्नेही ने पढ़ा मत बांधो गला हिमालय का अन्यथा वर्फ गल जायेगी, पर्वत पर सागर बनने से सम्पूर्ण धरा हिल जाएगी, मुख्य अतिथि कुमार तरल ने पढ़ा सोचउ कइसे बची अंगना दुआर जौ बेदर्दी पहरेदार होइ गये,ए बाबू बेंचि देइहैं बगिया बहार मलीवै चिड़ीमार होइ गये, कवि ललित ने पढ़ा लौट आयी यह फिजा क्यों दुर्दिन निकल जाने के बाद क्या जरूरत थी चमन की दिल उजड़ जाने के बाद, रामेश्वर सिंह निवासी ने पढ़ा कतौ न देखाई परै छानी कै ओसार हो आवैं गौरैया नाहीं हमरे दुआर हो। वेदप्रकाश सिंह ने पढ़ा कोई मेरी बात को मानें न माने मैं समय हूं कालगति समवेत स्वर में, कृष्ण कुमार अवस्थी श्याम ने पढ़ा संसार अधूरा है बिन तेरे जग का व्यापार अधूरा है, डॉ अर्जुन पाण्डेय ने पढ़ा जीवन उदास बा अवसर की तलास बा इ कइसा विस्वास बा गुरू की बगिया म तऊउ प्रकास ही प्रकास बाद, शव्वीर अहमद सूरी ने पढ़ा इश्क मुश्किल जहां में पग सम्भाल के रखिए राह में पत्थर बहुत हैं दिल है शीश याद रखिए, रविशंकर मिश्र ने पढ़ा माई तुम्हरव बहुत बेराम चले आवव दुलारू, डॉ केसरी शुक्ला ने पढ़ा - नहीं था पहले ऐसा अब तू जैसा हो गया है , तुम्हारे पास लगता है कि पैसा हो गया है ।
युवा कवि तेजभान सिंह ने पढ़ा की -मेरे इन आंसुओं का तुम बस इतना सिला देना , मेरी दुनिया के सब लोगों मुझे तुम ना भुला देना । कवि अनिरुद्ध मिश्रा ने पढ़ा की - भारत मां की पावन छवि सदा मन में बसा कर ही , सभी बलिदानी वीरों का अमर संदेश लिखता हूं । प्रतापगढ़ के ओज कवि यज्ञ कुमार सिंघम ने पढ़ा की - करि हारि थके जेहि लोग सबै , वहु फागुन में करि जात है होली । कार्यक्रम का संचालन कर रहे ज्ञानेंद्र पांडे अवधी मधुरस ने पढ़ा की - मानव बनना सरल नहीं है , मीठा जैसा गरल नहीं है । वरिष्ठ कवि राम बदन शुक्ला पथिक ने पढ़ा की - जहां भी रहेंगे चले आएंगे वह , पथिक दिल से जब तुम बुलाया करोगे । राजेंद्र शुक्ला अमरेश जी ने पढ़ा - मन गुरु चरण में लागा । दिवस प्रताप सिंह ने पढ़ा - सर पर पगड़ी खानदानी रखता हूं , परिंदों के लिए प्याले में पानी रखता हूं ।
सुरेश शुक्ला नवीन जी ने पढ़ा की - हुस्न की मल्लिका चश्मे बद्दूर हो , पास रहकर भी लगता बड़ी दूर हो । कवयित्री राम कुमारी संसृति ने पढ़ा - प्रेम बिना जीवन यह हम सब का अधूरा है , भक्त बिना देखो यह भगवान भी अधूरा है ।इस अवसर पर सुशील चंद्र पांडे , वेद प्रकाश सिंह ,रवि शंकर मिश्रा शिवकुमार सिंह ,भगवती प्रसाद मिश्रा बेधड़क ,इंद्रजीत सिंह ,सत्येंद्र प्रताप सिंह सजल ,शब्बीर अहमद , पप्पू सिंह कसक , के के मिश्रा इश्क सुल्तानपुरी, जगदंबा तिवारी मधुर अनुज कुमार तिवारी, राम कुमारी संस्कृति ,शत्रुघ्न लाल वर्मा रायबरेली, हेमंत शुक्ला ,प्रदीप तिवारी , तेजभान सिंह , रामेश्वर सिंह निराश ,डॉ केसरी शुक्ला , अनिरुद्ध मिश्र,उदय राज वर्मा, राम शंकर सिंह तिलोई , राधेश्याम पांडे दीन प्रतापगढ़ ,यज्ञ कुमार पांडे सिंघम , एडवोकेट गिरजा शंकर शुक्ला , एडवोकेट त्रियुगी नारायण शुक्ला , रामबरन पांडे , विजय कुमार मिश्रा , अजय कुमार तिवारी , पूर्व स्टेशन मास्टर कैलाश नाथ शर्मा आदि लोगों की उपस्थिति रही । कवि मंच के बाद गांव- गांव अवधी बोली घर घर कूहक रही। सुर सुन सब अवाक रह गए।
Apr 06 2024, 19:49