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श्रीलंका को झटका, आईसीसी ने छीनी वर्ल्ड कप की मेजबानी, जानें क्या है इसकी वजह

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आईसीसी ने 2024 अंडर-19 विश्व कप की मेजबानी श्रीलंका से छीन ली है।श्रीलंका क्रिकेट बोर्ड में चल रही उठा-पटक को देखते हुए यह फैसला लिया गया है।आईसीसी ने अब मेजबानी की जिम्मेदारी दक्षिण अफ्रीका को सौंपी है।हाल ही में आईसीसी ने श्रीलंका क्रिकेट बोर्ड को सस्पेंड कर दिया था, इसके बाद विश्व कप की मेजबान टीम को एक और झटका लगा है।10 नवंबर को आईसीसी ने श्रीलंका क्रिकेट बोर्ड पर प्रतिबंध लगा दिया था। अब अंडर-19 विश्व कप की मेजबानी दक्षिण अफ्रीका को सौंप दी है।

आईसीसी ने इस फैसले को लेकर लंबी बैठक की और अंत में यह तय किया कि टूर्नामेंट को श्रीलंका से हटाकर दक्षिण अफ्रीका में आयोजित किया जाएगा। अंडर-19 विश्व कप का आयोजन श्रीलंका में 14 जनवरी से 15 फरवरी के बीच होने वाला था। आईसीसी ने दक्षिण अफ्रीका को मेजबानी तो सौंपी है, लेकिन उसने तारीखों में बदलाव नहीं किया है। दक्षिण अफ्रीका में 10 जनवरी से 10 फरवरी एसए टी20 (SA20) टूर्नामेंट का आयोजन भी होना है।

श्रीलंका क्रिकेट बुरे दौर से गुजर रहा है। श्रीलंकाई टीम को विश्व कप 2023 में बुरी तरह हार का सामना करके बाहर हुई थी।श्रीलंका के खेल मंत्री ने विश्व कप 2023 में खराब प्रदर्शन की वजह से पूरे बोर्ड को बर्खास्त कर दिया था। आईसीसी ने इसे बोर्ड में सरकार का दखल माना और श्रीलंका बोर्ड को सस्पेंड कर दिया था। अब श्रीलंका को आईसीसी से दूसरा झटका लगा है। वहीं आईसीसी ने श्रीलंका क्रिकेट बोर्ड को निलंबित करने का अपना निर्णय बरकरार रखा है। बोर्ड को 10 नवंबर को निलंबित किया गया था।

बता दें कि यश ढुल की कप्तानी ने भारत में पिछले साल अंडर-19 वर्ल्ड कप का खिताब अपने नाम किया था। इस बार भी टीम इंडिया ये वर्ल्ड कप जीतना चाहेगी जो अगले साल खेला जाना है।भारतीय क्रिकेट टीम अंडर-19 वर्ल्ड कप की सबसे सफल टीम है। भारत ने खिताब पांच बार जीता है। मोहम्मद कैफ की कप्तानी में भारत ने सबसे पहले 2000 में ये खिताब जीता था। इसके बाद 2008 में विराट कोहली की कप्तानी में भारत दूसरी बार अंडर-19 वर्ल्ड कप का चैंपियन बना। 2012 में उन्मुक्त चंद की कप्तानी में भारत ने फिर खिताब जीता। 2018 में फिर भारत पृथ्वी शॉ की कप्तानी में चैंपियन बना और 2022 में यश ढुल की कप्तानी में ये खिताब जीता।

अब काशी की तरह 'मथुरा' में भी बनेगा बांके बिहारी कॉरिडोर ! योगी सरकार को इलाहबाद HC की हरी झंडी, कहा- धर्मस्थल देश की धरोहर


इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा शुरू की गई बांके बिहारी कॉरिडोर परियोजना को मंजूरी दे दी है। इस परियोजना का लक्ष्य भगवान श्री कृष्णा की नगरी मथुरा के प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर के चारों ओर एक गलियारा बनाना है। अदालत के फैसले से गलियारे की प्रगति में बाधक बन रहे अतिक्रमणों को हटाने का मार्ग प्रशस्त हो गया है।

परियोजना

बता दें कि, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की याद दिलाने वाली बांके बिहारी कॉरिडोर परियोजना, उत्तर प्रदेश सरकार की एक रणनीतिक पहल है। अदालत ने सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि परियोजना के क्रियान्वयन के दौरान आगंतुकों को असुविधा का सामना न करना पड़े।

कानूनी पृष्ठभूमि

अनंत शर्मा और मधुमंगल दास सहित पुजारियों ने गलियारे को अनावश्यक बताते हुए इसका विरोध करते हुए एक जनहित याचिका (PIL) दायर की थी। उन्होंने आग्रह किया कि चढ़ावे और दान से प्राप्त धनराशि को कॉरिडोर परियोजना में नहीं लगाया जाना चाहिए। इस याचिका के जवाब में हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को नोटिस जारी किया था। जिसके बाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर और जस्टिस आशुतोष श्रीवास्तव की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई की। सरकार ने श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए कॉरिडोर को जरूरी बताया। कोर्ट ने 8 नवंबर 2023 को अपने आदेश में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था और अब इस प्रोजेक्ट को हरी झंडी दे दी है। उच्च न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि उत्तर प्रदेश सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि गलियारे के पूरा होने के दौरान आगंतुकों को कोई असुविधा न हो। इस मामले में अगली सुनवाई 31 जनवरी, 2024 को होनी है।

हाई कोर्ट ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि मंदिरों और तीर्थस्थलों का उचित प्रबंधन जनता से संबंधित विषय हैं। कोर्ट ने धार्मिक और ऐतिहासिक स्थलों को देश की धरोहर के बराबर बताया, जहां जाने के बाद लोगों के भीतर अच्छे मनोभाव उत्पन्न होते हैं। हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी की आपत्ति के कारण मानव जीवन को प्रभावित नहीं किया जा सकता है। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से कॉरिडोर के निर्माण में टेक्निकल एक्सपर्ट की सहयता लेने की भी सलाह दी है, ताकि काम और बेहतर तरीके से पूर्ण हो।

हेलीकाप्टर से दागेंगे मिसाइल, 500 किमी दूर बैठा दुश्मन होगा नष्ट, भारतीय नौसेना ने किया सफल परिक्षण


'आत्मनिर्भर भारत' की दिशा में आगे बढ़ते हुए, भारतीय नौसेना ने रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के साथ मिलकर 21 नवंबर को सीकिंग 42बी हेलीकॉप्टर से पहली स्वदेशी रूप से विकसित नौसेना एंटी-शिप मिसाइल का निर्देशित उड़ान परीक्षण सफलतापूर्वक कर लिया है। इससे पहले अक्टूबर में, रिपोर्ट आई थी कि DRDO बहुप्रतीक्षित लंबी दूरी की एंटी-शिप मिसाइल (LRASM) का परीक्षण करने के लिए पूरी तरह तैयार है, जो नौसेना की क्षमताओं को बढ़ाएगी, खासकर विस्तारित रेंज के साथ जहाज-आधारित मिसाइल प्रणालियों के क्षेत्र में ये मार्क सिद्ध होगी।

रिपोर्ट में कहा कि मिसाइल की मारक क्षमता 500 किलोमीटर हो सकती है, जो सुपरसोनिक इंडो-रूसी क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस द्वारा दी गई 350-400 किलोमीटर की रेंज से अधिक है। इससे पहले मई 2022 में भी, भारत ने कम दूरी की श्रेणी में आने वाली अपनी पहली स्वदेश निर्मित एंटी-शिप मिसाइल का परीक्षण किया, जिसका वजन लगभग 380 किलोग्राम था और इसकी मारक क्षमता 55 किलोमीटर थी। इन्हें 'नेवल एंटी-शिप मिसाइल-शॉर्ट रेंज' (NASM-SR) नाम दिया गया है, इन्हें हमलावर हेलीकॉप्टरों से लॉन्च किया जा सकता है।

MRSAM परीक्षण

बता दें कि, इस साल मार्च में, भारतीय नौसेना ने 'एंटी शिप मिसाइलों' को मार गिराने की क्षमता को प्रमाणित करते हुए INS विशाखापत्तनम से सफलतापूर्वक MRSAM (मध्यम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल) फायरिंग की थी। मध्यम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल, भारत डायनेमिक्स लिमिटेड (BDL) में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) और इजरायली एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज (IAI) द्वारा संयुक्त रूप से विकसित की गई थी।

लाइवमिंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सेना ने फरवरी में एक प्रेस बयान जारी कर कहा था, 'MRSAM हथियार प्रणाली जिसे 'अभ्र' हथियार प्रणाली भी कहा जाता है, एक अत्याधुनिक मध्यम दूरी की वायु रक्षा हथियार प्रणाली है। MSME सहित भारतीय सार्वजनिक और निजी रक्षा उद्योग भागीदारों की सक्रिय भागीदारी के साथ DRDO और इज़राइली एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज (IAI) का संयुक्त उद्यम।"

MRSAM

बता दें कि, MRSAM 70 किलोमीटर की दूरी तक कई लक्ष्यों को भेद सकता है। कॉम्बैट मैनेजमेंट सिस्टम (CMS), मोबाइल लॉन्चर सिस्टम (MLS), एडवांस्ड लॉन्ग रेंज रडार, मोबाइल पावर सिस्टम (MPS), रडार पावर सिस्टम (RPS), रीलोडर व्हीकल (RV), और फील्ड सर्विस व्हीकल में मिसाइल सिस्टम शामिल है, जो स्वदेशी रूप से विकसित रॉकेट मोटर और नियंत्रण प्रणाली (FSV) द्वारा संचालित है।

इजराइल का पाकिस्तान को झटका, लश्कर ए तैयबा को घोषित किया आतंकी संगठन, जानें कैसे है भारत के लिए बड़ा संदेश

#israel_declared_lashkar_e_taiba_a_terrorist_organization

इजरायल पर 7 अक्टूबर को हमास ने आतंकी हमला किया था। तब से हमास और इजरायल के बीच युद्ध जारी है। हमास के साथ इस जंग में अमेरिका समेत कई बड़े देश इजराइल का समर्थन कर रहे हैं। भारत में उन्हीं देशों में से एक है, जिसने इजराइल पर हमास के हमले को आतंकी कृत्य करार दिया है। इजराइल ने एक बड़ा कदम उठाया है। पाकिस्तान को एक बड़ा झटका देते हुए इजराइल ने लश्कर-ए-तैयबा को आतंकी संगठन घोषित कर दिया है।

इजरायल ने यह कदम ऐसे समय उठाया है, जब मुंबई हमलों को करीब 5 दिन बाद 15 साल पूरे होने वाले हैं। इजराइल का कदम भारत को भेजा गया एक बड़ा संदेश माना जा रहा है। दरअसल, इजरायल भारत से हमास को आतंकी संगठन घोषित करने की मांग कर चुका है। ऐसे में यह आतंक को लेकर भारत के रुख का समर्थन कहा जा रहा है।

इजराइल ने आतंक को लेकर भारत की दृढ़ता का समर्थन करते हुए पाकिस्तान के आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा को अपनी आतंकी संगठनों की सूची में शामिल कर लिया है। भारत में इजराइली दूतावास ने मंगलवार को यह जानकारी दी। इजराइली दूतावास की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि 26/11 के मुंबई हमलों की 15वीं बरसी के मद्देनजर इजराइल ने लश्कर-ए-तैयबा को आतंकी संगठन घोषित करने का फैसला किया है। इस बारे में भारत सरकार की तरफ से इजराइल से कोई अपील नहीं की गई, इसके बावजूद देश की तरफ से खुद यह कदम उठाया गया है। 

बता दें कि भारत ने हमास को अभी तक आतंकी संगठन नहीं घोषित किया है। हमास को इस समय अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, यूरोपियन यूनियन समेत कई देश आतंकवादी संगठन मानते हैं। अब इजराइल ने साफ तौर पर कह दिया है लश्कर ए तैयबा भारतीयों की हत्या के लिए जिम्मेदार है और इसी वजह से वह उसे आतंकी संगठन मानता है। बता दें कि जैश ए मोहम्मद को इजराइल ने अभी तक आतंकी संगठन नहीं माना है।

इजरायल ज्यादातर उन आतंकी संगठनों को लिस्ट में डालता है जो उसकी सीमाओं के अंदर या उसके आसपास या उसके खिलाफ सक्रिय तरीके से काम कर रहे हैं। वैश्विक स्तर पर यूएमएससी या अमेरिकी विदेश विभाग की ओर से मान्यता प्राप्त आतंकियों को भी इजरायल लिस्ट में डालता है।लश्कर-ए-तैयबा को आतंकी घोषित करना इजरायल का एक बड़ा डिप्लोमैटिक कदम है। दरअसल, इजरायल से अच्छे संबंध होने के बावजूद हमास को अभी तक भारत ने आतंकी संगठन घोषित नहीं किया है। 26 अक्टूबर को इजरायल के राजदूत नाओर गिलोन ने कहा था, मुझे लगता है यह हमास को दुनिया और भारत में एक आतंकी संगठन घोषित करने का एकदम सही समय है। यूरोपीय यूनियन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, यूएस पहले ही यह कर चुके हैं।लश्कर को आतंकी घोषित कर इजरायल चाहता है कि भारत हमास के खिलाफ भी कोई ऐसा ही कदम उठाए

जेल की सजा काट रहे राम-रहीम को राहत, फिर आया जेल से बाहर, राजस्थान चुनाव से पहले 21 दिन की परोल

#ram_rahim_came_out_of_jail_got_21_days_parole

डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख के रूप में अपनी पहचान बनाने वाला राम रहीम जेल कि सजा काट रहा है। रेप और हत्या के मामलों में उम्र कैद की सजा काट रहा डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सुनारिया जेल में बंद है। जेल में बंद राम रहीम को एक बार फिर फरलो दी गई है। राम रहीम को 21 दिन की फरलो मिली है। राम रहीम मंगलवार दोपहर को 1 बजकर 45 मिनट पर कड़ी सुरक्षा के बीच सुनारियां जेल से बाहर निकला। इस बार भी वह उत्तर प्रदेश के बरनावा आश्रम में रहेगा।

इससे पहले राम रहीम 7 बार जेल से बाहर आ चुका है। अब 8वीं उसे 21 दिन परोल मिली है।वहीं, 2023 में राम रहीम तीसरी बार जेल से बाहर आया है। इस साल की शुरुआत ही में डेरा सच्चा सौदा प्रमुख को एक लंबी परोल दी गई। राम रहीम को 22 जनवरी, 2023 को 40 दिन के परोल की हरियाणा सरकार ने मंजूरी दी। इसके बाद फिर 19 जुलाई को 30 दिन की परोल और राम रहीम को मिल गई। वहीं हालिया 21 दिन के फरलो के बाद इस साल 91 दिन राम रहीम को जेल से बाहर रहने की इजाजत दे दी गई।

 राम रहीम को परोल मिलना राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है। लोगों का कहना है कि मध्य प्रदेश और राजस्थान के चुनाव को देखते हुए उसे परोल दी गई है। दरअसल, राजस्थान में 25 नवंबर, शनिवार को वोटिंग होनी है और हरियाणा बॉर्डर से सटे श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़ और दूसरे कई जिलों में गुरमीत का अच्छा खासा प्रभाव माना जाता है।

2017 के अगस्त महीने में राम रहीम को 20 साल की सजा सुनाई गई थी। दो शिष्याओं के साथ बलात्कार मामले में गुरमीत को ये सजा सुनाई गई थी। इसके अलावा, अपने डेरा के ही एक कर्मचारी की हत्या मामले में दोषी पाए जाने पर राम रहीम को अक्टूबर 2021 में उम्र कैद की सजा अदालत ने सुनाई थी।

आरआरटीएस प्रोजेक्ट फंड को लेकर सुप्रीम कोर्ट की केजरीवाल सरकार को फटकार, एक हफ्ते के भीतर 415 करोड़ रुपये देने का अल्टीमेटम

#supreme_court_cautions_delhi_aap_govt_for_not_giving_funds_to_rrts_project

सुप्रीम कोर्ट ने रीजनल रैपिड रेल ट्रांजिट सिस्टम (आरआरटीएस) प्रोजेक्ट के लिए फंड ट्रांसफर नहीं करने पर दिल्ली सरकार को कड़ी फटकार लगाई है।कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा कि दिल्ली सरकार कोर्ट के आदेश का पालन क्यों नहीं कर रही है? हम आपको विज्ञापन के बजट पर रोक लगा देंगे और इसे आरआरटीएस परियोजना के लिए डायवर्ट कर देंगे। कोर्ट ने सरकार को एक हफ्ते का समय दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार को फटकार लगाते हुए कहा है क‍ि पानीपत कॉरिडोर के तहत बन रही आरआरटीएस परियोजना में दिल्ली सरकार द्वारा अपने हिस्से का धन मुहैया नहीं करा सका है। सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए दिल्ली सरकार को कहा कि अगर आप अपने हिस्से का पैसा मुहैया नहीं कराते हैं तो हमें आपके विज्ञापन बजट पर रोक लगानी होगी और उस बजट को जब्त करना होगा।

जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस सुधांशु धुलिया ने माना कि दिल्ली सरकार अपने ही वादे का उल्लंघन कर रही है। कोर्ट ने दिल्ली सरकार के स्टैंड पर नाराजगी जाहिर करते हुए कोर्ट ने दिल्ली सरकार के विज्ञापन के खर्च को परियोजना के लिए ट्रांसफर करने का आदेश दिया। हालांकि कोर्ट ने कहा कि उनका यह आदेश एक हफ्ते तक लंबित रहेगा और अगर इस दौरान सरकार ने बजट आवंटित नहीं किया तो उनका यह आदेश लागू हो जाएगा। ऐसे में अदालत ने साफ कर दिया है कि अगर फंडिंग नहीं हुई, तो दिल्ली सरकार को विज्ञापन बजट से हाथ धोना पड़ सकता है।

कोर्ट ने कहा कि दिल्ली सरकार का विज्ञापन पर तीन सालों का बजट 1100 करोड़ रुपए है और इस साल का बजट 550 करोड़ है, लेकिन सरकार इस जनहित परियोजना के बकाया 415 करोड़ रुपए नहीं दे रही है। इस परियोजना में संबंधित राज्य सरकारों को भी इसमें अपनी हिस्सेदारी चुकानी है। कोर्ट ने दिल्ली सरकार से कहा कि एक हफ्ते में 415 करोड़ रुपए ट्रांसफर करें।

जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली बेंच ने इससे पहले भी इस मसले पर दिल्ली सरकार को फटकार लगाई थी। जुलाई में हुई सुनवाई में कोर्ट ने दिल्ली सरकार से पूछा था कि वह अपने प्रचार के लिए कितना खर्च करती है। कोर्ट ने विज्ञापन बजट को जब्त करने की चेतावनी दी थी। इस पर दिल्ली सरकार ने 2 हफ्ते में बकाया धनराशि के भुगतान का भरोसा दिया था। आज जब जजों को जानकारी मिली कि दिल्ली सरकार ने भुगतान नहीं किया है, तो उन्होंने सख्त आदेश पारित कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, छात्र आत्महत्या के बढ़ते मामलों के लिए माता-पिता जिम्मेदार, हम कोचिंग संस्थानों को निर्देश नहीं दे सकते

 सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि देश में आत्महत्याओं की बढ़ती संख्या, मुख्य रूप से "गहन प्रतिस्पर्धा" और प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे बच्चों पर माता-पिता द्वारा डाले जाने वाले "दबाव" के कारण है। सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए की, जिसमें तेजी से बढ़ते छात्र आत्महत्याओं के मामलों का हवाला देते हुए कोचिंग संस्थानों के विनियमन की मांग की गई थी। जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ ने इस मांग पर असहायता व्यक्त की और कहा कि न्यायपालिका ऐसे परिदृश्य में निर्देश पारित नहीं कर सकती है।

कोर्ट ने याचिकाकर्ता - मुंबई स्थित डॉक्टर अनिरुद्ध नारायण मालपानी की ओर से पेश वकील मोहिनी प्रिया से कहा कि, 'ये आसान चीजें नहीं हैं। इन सभी घटनाओं के पीछे माता-पिता का दबाव है। बच्चों से ज्यादा उनके माता-पिता ही उन पर दबाव डाल रहे हैं। ऐसे परिदृश्य में अदालत कैसे निर्देश पारित कर सकती है।' जस्टिस खन्ना ने कहा कि, 'हालांकि, हममें से ज्यादातर लोग नहीं चाहेंगे कि वहां कोई कोचिंग संस्थान हो, लेकिन स्कूलों की स्थिति को देखें। यहां कड़ी प्रतिस्पर्धा है और छात्रों के पास इन कोचिंग संस्थानों में जाने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है।' राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के 2020 के आंकड़ों का जिक्र करते हुए प्रिया ने कहा कि यह इस बात पर प्रकाश डालता है कि देश में लगभग 8.2 प्रतिशत छात्र आत्महत्या से मर जाते हैं।

इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह स्थिति के बारे में जानती है, लेकिन अदालत निर्देश पारित नहीं कर सकती और सुझाव दिया कि याचिकाकर्ता अपने सुझावों के साथ सरकार से संपर्क करे। प्रिया ने उचित मंच पर जाने के लिए याचिका वापस लेने की मांग की, जिसे अदालत ने अनुमति दे दी। वकील प्रिया के माध्यम से मालपानी द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि यह पूरे भारत में तेजी से बढ़ रहे लाभ के भूखे निजी कोचिंग संस्थानों के संचालन को विनियमित करने के लिए उचित दिशा-निर्देश चाहते हैं ,जो IIT-JEE (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान संयुक्त प्रवेश परीक्षा) और NEET (राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा) जैसी विभिन्न प्रतिस्पर्धी प्रवेश परीक्षाओं के लिए कोचिंग प्रदान करते हैं।''

इसमें कहा गया है कि याचिकाकर्ता को कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर होना पड़ा है, क्योंकि हाल के वर्षों में कई छात्रों ने आत्महत्या की है, जो “प्रतिवादियों (केंद्र और राज्य सरकारों) द्वारा विनियमन और निरीक्षण की पूर्ण कमी के कारण संभव हुआ है। 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चे अक्सर अपने घरों से दूर इन कोचिंग फैक्ट्रियों में प्रवेश करते हैं और एक अच्छे मेडिकल या इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश पाने की प्रत्याशा में कठोर तैयारी से गुजरते हैं। याचिका में कहा गया है कि, 'एक संरक्षित घर के माहौल में रहने के बाद, बच्चा मानसिक रूप से सक्षम हुए बिना अचानक कठोर प्रतिस्पर्धी दुनिया के संपर्क में आ जाता है। हालाँकि, ये लाभ के भूखे कोचिंग संस्थान, छात्रों की भलाई की परवाह नहीं करते हैं और केवल पैसा कमाने पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जिससे भारत के युवाओं पर अपनी जान लेने के लिए दबाव डाला जाता है।' इसमें कहा गया है कि इन कोचिंग फैक्ट्रियों में बच्चों को घटिया और असामान्य परिस्थितियों में रहना और पढ़ाई करनी पड़ रही है, जिससे उनके मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ रहा है।

याचिका में कहा गया था कि, 'मानसिक स्वास्थ्य के बारे में सबसे खतरनाक बात यह है कि यह हमारे शरीर में अन्य बीमारियों के विपरीत अदृश्य है। हालांकि, अन्य शारीरिक बीमारियों की तरह, मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं भी बाहरी ताकतों, आसपास के वातावरण और दबावों के कारण उत्पन्न होती हैं।' याचिका में कहा गया है कि छात्रों की आत्महत्या एक गंभीर मानवाधिकार चिंता का विषय है। याचिका में सुप्रीम कोर्ट को बताया गया था कि, "आत्महत्याओं की बढ़ती संख्या के बावजूद कानून बनाने में केंद्र का ढुलमुल रवैया स्पष्ट रूप से इन युवा दिमागों की रक्षा के प्रति राज्य की उदासीनता को दर्शाता है जो हमारे देश का भविष्य हैं और अनुच्छेद 21 के तहत गारंटी के साथ जीने का उनका संवैधानिक अधिकार है।" हालाँकि, कोर्ट ने यह कहकर याचिका वापस लेने के लिए कहा कि, ''आत्महत्या की घटनाओं के लिए माता-पिता जिम्मेदार हैं, वो दबाव डालते हैं, हम कोचिंग संस्थानों को निर्देश नहीं दे सकते।''

सामान बेचने की आड़ में क्या कर रह था Amway ? 4000 करोड़ की मनी लॉन्डरिंग मामले में ED ने शुरू की जांच

केंद्रीय जांच एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने एमवे इंडिया एंटरप्राइज प्राइवेट लिमिटेड (Amway) के खिलाफ धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA), 2002 के तहत अभियोजन शिकायत दर्ज करके एक कदम उठाया है। शिकायत हैदराबाद में माननीय मेट्रोपॉलिटन सत्र न्यायाधीश सह विशेष न्यायालय (PMLA) की अदालत में दायर की गई है, जिसने उसी दिन मामले का संज्ञान लिया। 

ED की जांच भारतीय दंड संहिता (IPC) की विभिन्न धाराओं के तहत एमवे और उसके निदेशकों के खिलाफ तेलंगाना पुलिस द्वारा दर्ज की गई विभिन्न FIR से जुड़ी है। आरोपों से पता चलता है कि Amway सामान बेचने की आड़ में एक अवैध 'मनी सर्कुलेशन स्कीम' को बढ़ावा देने में लगा हुआ है, नए सदस्यों के सरल नामांकन के माध्यम से उच्च कमीशन और प्रोत्साहन का वादा करके जनता को धोखा दे रहा है। ED के निष्कर्षों के अनुसार, Amway प्रत्यक्ष बिक्री के रूप में एक पिरामिड योजना चला रहा है। अंतिम उपभोक्ताओं को माल की सीधी बिक्री पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, Amway ने वितरकों के रूप में कई मध्यस्थों के साथ एक बहु-स्तरीय विपणन योजना शुरू की।

योजना का अस्तित्व काफी हद तक नए सदस्यों को नामांकित करने पर निर्भर करता है, साथ ही पदानुक्रम में ऊपर वालों के लिए कमीशन और प्रोत्साहन भी बढ़ते हैं। ED का तर्क है कि Amway की गतिविधियां एक मल्टी-लेवल मार्केटिंग स्कीम और मनी सर्कुलेशन स्कीम का गठन करती हैं, जिससे धोखाधड़ी के अनुसूचित अपराध के माध्यम से 4050.21 करोड़ रुपये की आय उत्पन्न होती है। इसके अलावा, जांच से पता चला है कि सदस्यों से एकत्र किए गए 2859 करोड़ रुपये से अधिक की राशि कथित तौर पर लाभांश, रॉयल्टी और अन्य खर्चों के रूप में छिपाकर विदेशी निवेशकों के बैंक खातों में स्थानांतरित कर दी गई थी।

प्रवर्तन उपायों के हिस्से के रूप में, ED ने इस मामले के संबंध में 757.77 करोड़ रुपये मूल्य की चल और अचल संपत्तियां कुर्क की हैं। जांच जारी है और ईडी जटिल वित्तीय लेन-देन की जांच जारी रखे हुए है। ED के अभियोजन के जवाब में, एमवे इंडिया ने अपने प्रवक्ता के माध्यम से एक बयान जारी किया, जिसमें 2011 की जांच को संबोधित किया गया था। Amway इंडिया के प्रवक्ता ने कहा है कि, "वर्तमान में प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा दायर अभियोजन शिकायत 2011 की जांच से संबंधित है और तब से हम विभाग के साथ सहयोग कर रहे हैं और समय-समय पर मांगी गई सभी जानकारी साझा की है। 

जब से Amway ने 25 साल पहले भारत में अपना परिचालन शुरू किया था, तब से यह कानूनी और नियामक अनुपालन के लिए प्रतिबद्ध है और आज तक अनुपालन और अखंडता की संस्कृति को परिश्रमपूर्वक बनाए रखा है। हम अपने कानूनी अधिकारों का पालन करते हुए कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करते हुए भारतीय कानूनी और न्यायिक प्रणाली में अपने निरंतर विश्वास को दोहराना चाहते हैं। Amway को भारत में अपने समृद्ध इतिहास पर गर्व है और वह दृढ़ता से अपना बचाव करेगा, साथ ही 2,500 से अधिक कर्मचारियों और 5.5 लाख से अधिक स्वतंत्र वितरकों का भी बचाव करेगा जो लोगों को स्वस्थ, बेहतर जीवन जीने में मदद करने के उसके मिशन के लिए महत्वपूर्ण हैं।''

कंपनी ने पूरी प्रक्रिया के दौरान सभी आवश्यक जानकारी साझा करते हुए विभाग के साथ अपने सहयोग का दावा किया है। प्रवक्ता ने 25 साल पहले भारत में अपनी स्थापना के बाद से अखंडता और अनुपालन की संस्कृति पर जोर देते हुए कानूनी और नियामक अनुपालन के प्रति एमवे की प्रतिबद्धता दोहराई। Amway ने भारतीय कानूनी और न्यायिक प्रणाली में विश्वास व्यक्त किया, उचित प्रक्रिया का पालन करने और खुद का सख्ती से बचाव करने का वादा किया।

प्रवक्ता ने कहा कि, कानूनी चुनौतियों के बावजूद, Amway को भारत में अपने इतिहास पर गर्व है और वह 2,500 से अधिक कर्मचारियों और 5.5 लाख से अधिक स्वतंत्र वितरकों को समर्थन देने के अपने मिशन पर दृढ़ है, जिसका लक्ष्य देश भर में लोगों के लिए स्वस्थ और बेहतर जीवन में योगदान करना है। कंपनी कानूनी कार्यवाही के दौरान कानूनी अधिकारों को आगे बढ़ाने के प्रति अपने समर्पण की पुष्टि करती है।

श्रीलंका ने पकड़ लिए थे 22 भारतीय मछुआरे, केंद्रीय मंत्री सीतारमण के एक फोन पर हुए रिहा, लौटे तमिलनाडु

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के हस्तक्षेप के बाद श्रीलंकाई अधिकारियों ने अपने क्षेत्रीय जल में अवैध शिकार के आरोप में दिन में हिरासत में लिए गए तमिलनाडु के 22 ढो (देशी नाव) मछुआरों को शनिवार रात रिहा कर दिया। श्रीलंकाई पक्ष द्वारा जब्त किए गए दो देशी नाव को भी छोड़ दिया गया और मछुआरों को अपने जहाजों पर वापस जाने की अनुमति दी गई।

बता दें कि, सीतारमण अगले दिन प्रधानमंत्री की स्वनिधि (पीएम स्ट्रीट वेंडर्स आत्मनिर्भरनिधि) के तहत कल्याणकारी उपायों को वितरित करने के लिए शनिवार रात को रामेश्वरम आई थीं। इसकी जानकारी होने पर कंट्री बोट फिशरमेन वेलफेयर एसोसिएशन के जिला अध्यक्ष एसपी रायप्पन के नेतृत्व में मछुआरा नेताओं ने उनसे मुलाकात की और मामले में हस्तक्षेप करने का आग्रह किया। जिसके बाद केंद्रीय मंत्री सीतारमण ने विदेश मंत्रालय के अधिकारियों से संपर्क किया और उनसे हस्तक्षेप करने का आग्रह किया।

रयप्पन ने बताया कि, 'उन्होंने (सीतारमण) शनिवार रात ही श्रीलंका के कुछ लोगों सहित महत्वपूर्ण लोगों को फोन किया और हमें आश्वासन दिया कि गिरफ्तार मछुआरों को रिहा कर दिया जाएगा। हम शुरुआत में सशंकित थे, लेकिन हमारे मछुआरों ने आधी रात के आसपास श्रीलंका से फोन करके हमें बताया कि उन्हें रिहा कर दिया गया है। हम उन्हें (सीतारमण को) पर्याप्त धन्यवाद नहीं दे सकते।''

वहीं, श्रीलंकाई पक्ष, जो आमतौर पर मन्नार की खाड़ी और पाक खाड़ी में अपने पारंपरिक मछली पकड़ने के मैदान में मछली पकड़ने वाले देशी नाव मछुआरों को परेशान नहीं करता है, ने सीतारमण के हस्तक्षेप पर सद्भावना संकेत के रूप में उन्हें रिहा करने का फैसला किया। श्रीलंकाई नौसेना रिहा किए गए मछुआरों को अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा (IMBL) पर ले आई और उन्हें भारतीय तटरक्षक बल को सौंप दिया।

मछली पकड़ने वाली नावें रविवार दोपहर पंबन पहुंचीं, जिससे नाव मालिकों फ्रांसिस कैसियर और के राज के साथ-साथ मछुआरों के परिवारों को भी राहत मिली। तट पर स्थानीय भाजपा पदाधिकारियों ने उनका स्वागत किया। इससे पहले, MDMK के मुख्य सचिव दुरई वाइको ने 22 मछुआरों को गिरफ्तार करने के लिए लंका की निंदा की थी और उन्हें रिहा करने के साथ-साथ बार-बार की गिरफ्तारियों को रोकने के लिए केंद्र सरकार के हस्तक्षेप की मांग की थी।

'राजस्थान में कांग्रेस एकजुट, बिखरी हुई तो भाजपा है..', अजमेर में चुनावी रैली में प्रियंका गांधी का बड़ा दावा

 कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने राजस्थान में भाजपा की आलोचना करते हुए कहा कि भगवा पार्टी राज्य में ''विखंडित'' है, जबकि उनकी पार्टी ने एकजुट मोर्चा बनाया है। उन्होंने कहा कि जो लोग धर्म या जाति के नाम पर वोट मांगते हैं, वे अपने काम के आधार पर वोट मांगने की स्थिति में नहीं हैं। वह चुनावी राज्य राजस्थान के अजमेर के केकड़ी में एक रैली को संबोधित कर रही थीं।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने लोगों से विभिन्न दलों द्वारा किए गए कार्यों का आकलन करने के बाद वोट करने का आग्रह किया। कांग्रेस नेत्री ने कहा कि, "अगर कोई धर्म या जाति के नाम पर वोट मांगता है, तो इसका मतलब है कि वह काम के आधार पर वोट नहीं मांग सकता।" प्रियंका गांधी ने कहा कि, ''राजस्थान में कांग्रेस के सभी नेता और कार्यकर्ता एकजुट होकर चुनावी मैदान में उतरे हैं, जबकि भाजपा पूरी तरह से बिखरी हुई है।'' उन्होंने दावा किया कि भाजपा ने राज्य में अपने नेताओं को दरकिनार कर दिया है और किसी नये की तलाश कर रही है।

प्रियंका ने कहा कि भाजपा की नीति बड़े उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने की है और वह ''गरीबों और मध्यम वर्ग के बारे में नहीं सोचती।'' उन्होंने कहा कि भाजपा सत्ता में आने पर कांग्रेस सरकार द्वारा शुरू की गई सभी जनकल्याणकारी योजनाओं को बंद कर देगी। बता दें कि, 200 सदस्यीय राजस्थान विधानसभा के लिए 25 नवंबर को मतदान होगा और मतगणना 3 दिसंबर को होगी।