*सम्पादकीय को मिलनी चाहिए स्वतंत्र विधा की मान्यता : वर्षा सिंह*
गोण्डा। लाल बहादुर शास्त्री महाविद्यालय के शोध केंद्र के तत्वावधान में रविवार को पत्र पत्रिकाओं में संपादकीय में व्यक्त विचार को स्वतंत्र विधा के रूप में मान्यता देने के संकल्प के साथ संगोष्ठी का आयोजन शोध निदेशक शैलेन्द्र मिश्र के संयोजन में किया गया।
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए महाविद्यालय की उपाध्यक्ष वर्षा सिंह ने कहा कि पत्र पत्रिकाओं का संपादकीय गद्य का उत्कृष्ट रूप होता है, वह लेखन की कसौटी है। संपादकीय में व्यक्त विचारों को स्वतंत्र विधा के रूप में मान्यता मिलनी चाहिए।
हिन्दी विभाग के प्रो. जयशंकर तिवारी के संचालन में आयोजित संगोष्ठी में बोलते हुए लखनऊ के कवि लेखक विजय मिश्र ने कहा कि सामयिक सन्दर्भों में नीति का मार्गदर्शन करने वाली संपादकीय को स्वतंत्र गद्य रूप की तरह प्रतिष्ठित होना आवश्यक है।
वरिष्ठ मीडियाकर्मी और एसोसिएट एडीटर आशीष मिश्र ने कहा कि इस व्यवसायिकता के दौर में एक संपादक के सम्मुख संपादकीय एक बड़ी चुनौती है। संपादक इस चुनौती का निर्वहन कर तलवार की धार पर चलने के समान सम्पादन करता है।
मीडियाकर्मी पारुल शुक्ला ने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक समाचार चैनलों की बढ़ती लोकप्रियता के इस दौर में भी समाचार पत्रों की विश्वसनीयता बढ़ी है। अखबार की अपनी संपादकीय के बल पर ही पाठक को जोड़ता है।
आईआईटी बीएचयू के शोधकर्ता शुभम पाठक ने संपादकीय का विश्लेषण करते हुए उसके महत्व और उसके स्थापत्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि किसी भी समाचार पत्र, पत्रिका और पुस्तक का संपादकीय उसकी गुणवत्ता का आईना होता है।
साकेत महाविद्यालय, अयोध्या के अंग्रेजी के प्रोफेसर डॉ. जनमेजय तिवारी ने कहा कि संपादकीय पत्र-पत्रिकाओं की विचारधारा और नीति का संकेतक और पहचान होती है।
अंग्रेजी विभाग के अध्यक्ष प्रो. वी. सीएच. एन. के. श्रीनिवास राव ने इस अवसर पर संपादकीय के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि संपादकीय भाषा का मधुराक्षर है, वह विचारों का सार है।
उन्होंने कहा कि मै केवल संपादकीय पढ़ने के लिए ही अखबार मँगाता हूं।
संस्कृत विभाग के अध्यक्ष प्रो. मंशाराम वर्मा ने संपादकीय को प्राचीन भारत साहित्य से जोड़ते हुए कहा कि संपादकीय की महत्ता निर्विवादित है।
श्री रामकृष्ण डिग्री कॉलेज, आजमगढ़ के प्राचार्य प्रो. ऋषिकेश सिंह ने कहा कि संपादक भी स्वतंत्र नहीं है। उसके ऊपर दबाव होता है।
शोध केंद्र के निदेशक प्रो. शैलेंद्र नाथ मिश्र ने संपादकीय को स्वतंत्र विधा बनाए जाने के लिए घोषणा पत्र हिंदी, अंग्रेजी और संस्कृत संस्करण में जारी किया। 'पुस्तकें जिंदा रहेंगी' अभियान के अंतर्गत शोध केंद्र द्वारा महा विद्यालय प्रबंध समिति की उपाध्यक्ष वर्षा सिंह को ब्रांड एंबेसडर घोषित किया गया।
संगोष्ठी के निष्कर्ष में श्री मिश्र ने कहा कि नीत्से के ईश्वर की मृत्यु की घोषणा, फ्रांसिस फुकुयामा के इतिहास के अंत की घोषणा के साथ ज्ञान के स्रोत को बचाने की आवश्यकता है।
इस अवसर पर एनसीसी की सीनियर अंडर ऑफिसर निधि सोनी को चेक प्रदान कर सम्मानित भी किया गया।
महाविद्यालय के कार्यवाहक प्राचार्य प्रोफेसर दीनानाथ तिवारी ने समस्त अतिथियों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया।
इस अवसर पर महाविद्यालय प्रबंध समिति के सचिव उमेश शाह, महेंद्र सिंह छाबड़ा, रवि चंद्र त्रिपाठी, डॉ. ओंकार पाठक, प्रो. जितेंद्र सिंह, प्रो. बी.पी. सिंह, प्रो. संजय पांडे, अच्युत शुक्ल, डॉ. मुक्ता टंडन, अमित शुक्ल, अंकित मौर्य की उपस्थिति रही।

Aug 01 2023, 17:50