बलिया में शहीद छात्रनेता स्व. चंद्रभानु पाण्डेय की 34वीं पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि समारोह, आयोजित होगी संगोष्ठी और युवा सम्मान:5 दिसम्बर को
संजीव सिंह बलिया। शहीद छात्रनेता स्व. चंद्रभानु पाण्डेय की 34वीं पुण्यतिथि 5 दिसम्बर शुक्रवार को टीडी कालेज के राजेंद्र प्रसाद सभागार में मनायी जाएगी। इस श्रद्धांजलि कार्यक्रम की जानकारी देते हुए स्व. चंद्रभानु पाण्डेय के अनुज एवं पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष सुशील कुमार पाण्डेय कान्हजी ने बताया कि इस मौके पर जिले भर से छात्रसंघ अध्यक्ष, छात्रनेता, अधिवक्ता, सामाजिक कार्यकर्ता, अध्यापक, कर्मचारी, व्यापारी और राजनैतिक दलों के गणमान्य लोग उपस्थित रहेंगे।कार्यक्रम में एक संगोष्ठी का भी आयोजन होगा, जिसमें समाज सेवा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान करने वाले युवाओं को सम्मानित किया जाएगा। यह आयोजन स्व. चंद्रभानु पाण्डेय की जयंती पर उनकी याद को सम्मानित करने और युवा नेतृत्व को प्रोत्साहित करने का माध्यम होगा।
बलिया का गौरव: डॉ. विद्यासागर उपाध्याय को पंजाब कला साहित्य अकादमी का सर्वोच्च सम्मान
संजीव  सिंह बलिया, 3 दिसंबर 2025 – भारतीय दर्शन के प्रसिद्ध विद्वान, लेखक और शिक्षाविद डॉ. विद्यासागर उपाध्याय को पंजाब कला साहित्य अकादमी, जालन्धर, पंजाब द्वारा अपने सर्वोच्च अकादमी सम्मान के लिए चुना गया है। यह प्रतिष्ठित पुरस्कार उनके गहरे वैश्विक योगदान और भारतीय ज्ञान परंपरा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने के प्रयासों का सम्मान है। 29वें वार्षिक पुरस्कार वितरण समारोह 7 दिसम्बर को जालन्धर प्रेस क्लब में आयोजित किया जाएगा, जहाँ डॉ. उपाध्याय को माननीय अतिथियों की उपस्थिति में यह सम्मान प्रदान किया जाएगा।जिले के साहित्यकारों, शिक्षाविदों, बुद्धिजीवियों और विद्यार्थियों में इस खबर को लेकर अत्यंत गर्व का माहौल है। अनेक वरिष्ठ विशिष्ट व्यक्तियों ने डॉ. उपाध्याय की इस उपलब्धि को बलिया की परंपरानुसार "साहित्य, दर्शन और भारतीय ज्ञान-परंपरा का गौरव" बताया है। इस सम्मान को बलिया की बौद्धिक एवं सांस्कृतिक विरासत का पर्व माना जा रहा है, जो जिले के प्रेरणास्पद और आदर्श व्यक्तित्व को सम्मानित करता है।पंजाब कला साहित्य अकादमी चार दशक से अधिक समय से कला, संस्कृति, साहित्य, दर्शन, समाजसेवा व संगीत जैसे क्षेत्रों में देश-विदेश की विशिष्ट हस्तियों को सम्मानित कर रही है, जो इसकी प्रतिष्ठा का प्रमाण है। बलिया में इस पुरस्कार की घोषणा से विद्वता, साहित्य और संस्कृति का मेल है, जिससे जिले का नाम न केवल उत्तर भारत में बल्कि पूरे देश विदेश में गर्व से झूम उठा है।
घोसी विधानसभा के दिवंगत विधायक स्वर्गीय सुधाकर सिंह के ब्रह्मभोज में पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और सांसद राजीव राय ने दी श्रद्धांजलि
घोसी विधानसभा के पूर्व विधायक स्वर्गीय सुधाकर सिंह के ब्रह्मभोज कार्यक्रम में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव तथा घोसी लोकसभा से सांसद श्री राजीव राय ने ग्राम दादनपुर अहिरौली पहुंचकर दिवंगत विधायक के चित्र पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि अर्पित की। इस कार्यक्रम में स्थानीय नेता, कार्यकर्ता और जनप्रतिनिधि भी उपस्थित रहे, जिन्होंने सुधाकर सिंह के समाज और क्षेत्र के प्रति योगदान को याद किया.सुधाकर सिंह का राजनीतिक योगदानसुधाकर सिंह घोसी विधानसभा के तीन बार के विधायक रहे। उन्होंने 1996 में पहली बार सपा के टिकट पर नत्थूपुर (घोसी) विधानसभा सीट से विधायक का पद प्राप्त किया था । 2012 में भी वे घोसी से सपा प्रत्याशी के रूप में भाजपा के फागू चौहान को हराकर विधायक बने। हाल ही में, 2023 के उपचुनाव में उन्होंने भाजपा के दारा सिंह चौहान को 42,759 वोटों से हराकर तीसरी बार विधायक का पद प्राप्त किया था। उनका जन्म 11 नवंबर 1958 को घोसी में हुआ था और वे धर्म से हिंदू व जाति से राजपूत थे।जनसेवा और व्यक्तिगत जीवनसुधाकर सिंह छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय थे। आपातकाल के दौरान मात्र 17 वर्ष की उम्र में जयप्रकाश नारायण के समग्र क्रांति आंदोलन में भाग लेने के कारण वे जेल भी गए थे। उनका मुख्य व्यवसाय कृषि था और वे जरूरतमंदों की सेवा, समाज सेवा, यात्रा और पुस्तकें पढ़ने में विशेष रुचि रखते थे। वे डॉ. राम मनोहर लोहिया अम्बेडकर शिक्षा संस्थान कौड़ीपुर दुबारी के प्रबंधक भी रहे।श्रद्धांजलि अर्पण के दौरान उपस्थित नेताओं की प्रतिक्रियाकार्यक्रम में अखिलेश यादव ने सुधाकर सिंह के जमीनी संघर्ष, आम जनता के प्रति समर्पण और समाजवादी विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए उनके योगदान को श्रद्धापूर्वक याद किया। सांसद राजीव राय ने भी उनकी सादगी, नेक नियत और जनता के बीच लोकप्रियता की चर्चा की। इस दौरान दादनपुर अहिरौली के लोगों ने भी उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया
बलिया में कैबिनेट मंत्री संजय निषाद की टिप्पणी पर भारी विरोध, समाजवादी पार्टी ने बर्खास्तगी की मांग की
संजीव सिंह बलिया। उत्तर प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री संजय निषाद द्वारा बलिया जनपद को लेकर की गई अशोभनीय टिप्पणी पर बलिया के लोगों में गहरा आक्रोश फैल गया है। इस मामले पर समाजवादी पार्टी के जिला प्रवक्ता सुशील कुमार पाण्डेय कान्हजी ने प्रेस को बयान जारी कर कहा कि यह टिप्पणी न केवल मंत्री की गलत फहमियों का परिचायक है, बल्कि बलिया के सभी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और जनपदवासियों का अपमान है।कान्हजी ने कहा कि यह विवाद किसी राजनीतिक दल या व्यक्ति के खिलाफ नहीं, बल्कि बलिया की गरिमा को प्रभावित करने वाला मामला है। उन्होंने BJP सरकार पर आरोप लगाया कि गलत बयानबाजी उनकी आदत बन गई है और ऐसे मंत्रियों को संवैधानिक पद पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं है। कान्हजी ने स्थानीय BJP नेताओं से भी अपील की कि वे संजय निषाद की आलोचना में मुखर हों, अन्यथा बलिया के लोगों से वोट मांगने का कोई अधिकार नहीं रखें।समाजवादी पार्टी ने महामहिम राज्यपाल से संजय निषाद को मंत्रिमंडल से तत् काल बर्खास्त करने की मांग भी की है।
शिक्षकों को प्रथम स्तर के परामर्शदाता के रूप में विकसित करने का काम कर रहा है एकीकृत प्रशिक्षण*:*मनीष कुमार सिंह
संजीव सिंह बलिया !जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान पकवाइनार बलिया पर गतिमान एकीकृत संपूर्ण प्रशिक्षण के माध्यम से प्राथमिक विद्यालय में कार्य कर रहे हैं शिक्षकों को एक परामर्शदाता के रूप में विकसित किया जा रहा है ताकि बच्चों के सर्वांगीण विकास में प्राथमिक विद्यालय में कार्य कर रहे शिक्षक बच्चों के स्तर के अनुरूप उनका विकास कर सकें।यह बातें जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान पकवाइनार बलिया के उप शिक्षा निदेशक / प्राचार्य एवं जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी मनीष कुमार द्वारा प्रशिक्षण के 13 वे बैच के पांचवें दिन समापन के अवसर पर प्रेषित की गई।अपने उद्बोधन में प्राचार्य ने बताया कि इस प्रशिक्षण का उद्वेश्य शिक्षकों के अंदर संपूर्णता का विकास करना है ताकि बच्चों के प्रत्येक पहलू को राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप ढाला जा सके। जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान के प्रशिक्षण कार्यक्रम के संयोजक डॉक्टर मृत्युंजय सिंह तथा इस प्रशिक्षण के नोडल से रवि रंजन खरे द्वारा संयुक्त रूप से प्रयास करते हुए इस प्रशिक्षण को रोचक तरीके से संपन्न कराया जा रहा है। प्रशिक्षण में समय से सहभागिता, प्रस्तुतीकरण तथा अनुशासन हेतु विभिन्न शिक्षकों को पुरस्कृत किए जाने की व्यवस्था है जिसके अंतर्गत इस बैच के प्रशिक्षण की समाप्ति पर प्राथमिक विद्यालय भरपूरवा रसड़ा के सुभाष, पीएम श्री कंपोजिट विद्यालय रसड़ा की सुमन यादव ,कंपोजिट उच्च प्राथमिक विद्यालय नूरपुर गड़वार की श्वेता सिंह ,कंपोजिट विद्यालय करमपुर बेरूआरबारी की पुनीता पाठक ,कन्या प्राथमिक विद्यालय चकिया नंबर दो बैरिया की अनुराधा मिश्रा, कंपोजिट उच्च प्राथमिक विद्यालय नवानगर के ऋषि राजकुमार गोल्डन, कंपोजिट विद्यालय आशापुर के विनय कुमार सिंह ,प्राथमिक विद्यालय जगदेवा बैरिया के विशंभर कुमार, कंपोजिट विद्यालय खारिका रेवती के अनूप कुमार वर्मा ,प्राथमिक विद्यालय आसमानपुर रेवती के अमिताभ बच्चन ,कंपोजिट विद्यालय चौकनी बांसडीह के अग्निवेश तिवारी, कन्या प्राथमिक विद्यालय नागपुर रसड़ा के घनश्याम कुमार को विशेष पुरस्कार से सम्मानित किया गया।संस्थान के प्रवक्ता डॉक्टर जितेंद्र गुप्ता, अविनाश सिंह, राम प्रकाश ,देवेंद्र सिंह, जानू राम , भानु प्रताप सिंह,राम यश योगी,डा अशफ़ाक ,हलचल चौधरी, किरण सिंह तथा डॉक्टर शाइस्ता अंजुम द्वारा प्रशिक्षण को रोचक बनाते हुए गतिविधियों के माध्यम से शिक्षकों को पूर्ण मनोयोग से प्रशिक्षित किया जा रहा है। प्रशिक्षण में तकनीकी सहयोग हेतु पूर्व एकेडमिक पर्सन डॉक्टर शशि भूषण मिश्र, संतोष कुमार तथा शिक्षक चंदन मिश्रा की भूमिका की भी प्राचार्य द्वारा प्रशंसा की गई।
गृहस्थ आश्रम : जीवन-दर्शन का स्वर्णिम मध्यस्थ
संजीव सिंह बलिया! गृहस्थ आश्रम : भारतीय जीवन-दर्शन का केंद्रबिंदु भारतीय ज्ञान परम्परा का प्रवाह हजारों वर्षों से ऐसे चलता आया है, मानो हिमालय की शाश्वत शृंखलाओं से निकली कोई दिव्य नदी हो—कभी शांत, कभी प्रचण्ड, परन्तु सदैव जीवनदायिनी। इस परम्परा में गृहस्थ आश्रम कभी न तो उपेक्षा का विषय रहा है, न ही निन्दा का। भारतीय मानस समझता रहा है कि जीवन केवल संन्यास की पथरीली कंदराओं में ही नहीं, बल्कि गृहस्थी के दीप-स्तंभों में भी वैसे ही प्रकाशित होता है जैसे किसी मन्दिर की ज्योति में ईश्वर का तेज। भारत के ऋषि-कुल को देखें तो प्रतीत होगा कि हमारा समाज वास्तव में “ऋषियों की संतान” है। लगभग प्रत्येक ऋषि—अत्रि, वशिष्ठ, कश्यप, याज्ञवल्क्य—सभी गृहस्थ थे; उनकी ऋचाएँ, ब्रह्मज्ञान और अध्यात्म की ऊँचाइयाँ गृहस्थ जीवन की गोद में ही पलकर विराटता प्राप्त कर सकीं। सोलह संस्कारों में विवाह को प्रमुख इसलिए कहा गया कि यह न केवल एक वैयक्तिक संस्कार था, बल्कि सम्पूर्ण समाज के संतुलन का आधार-स्तंभ था—मानो मनुष्य-जीवन का वह द्वार जहाँ से कर्तव्य, प्रेम, त्याग और सृजन सब मिलकर प्रवेश करते हों। सनातन वैदिक धर्म ने मनुष्य-जीवन को सौ वर्ष का पूर्ण वृत्त मानकर उसे चार आश्रमों में विभाजित किया—ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास। यह विभाजन मात्र आयु-क्रम नहीं था; यह जीवन का एक चतुर्ऋतु-चक्र था—ब्रह्मचर्य वसंत की तरह ज्ञान और उत्साह का; गृहस्थ ग्रीष्म की भाँति कर्म, तप और दायित्व का; वानप्रस्थ शरद की तरह मन्द, उज्ज्वल और अनुभवों का; और संन्यास हेमंत की तरह निर्मल, शांत और मोक्षमार्ग का। सबको इन चारों से होकर गुजरना था ताकि व्यक्ति जीवन को सम्पूर्ण रूप में जी सके और अन्ततः समाज को अपनी परिपक्व प्रतिभा अर्पित कर सके। जो पंथ जीवन के प्रारम्भिक वर्षों में ही संन्यास अनिवार्य कर बैठे—वे एक ओर सूखे हुए वृक्षों की तरह खड़े रहे, जिनकी जड़ें समाज की मिट्टी से कट गईं; और जब जड़ों का रस ही समाप्त हो जाए, तो वृक्ष कितने दिन टिक सकता है? फलतः ऐसे पंथ काल के थपेड़ों में विलीन हो गए। भारतीय इतिहास पर दृष्टि डालें तो ऐसा प्रतीत होता है मानो प्रवृत्ति और निवृत्ति किसी विशाल समुद्र में उठती-गिरती लहरों की तरह हैं—कभी प्रवृत्ति की ज्वार, तो कभी निवृत्ति का भाटा। वैदिक काल कर्म, यज्ञ और सामाजिक सक्रियता का युग था; उपनिषदकाल में निवृत्ति के बीज अंकुरित हुए—मौन, ध्यान, आत्मबोध शिखर की ओर बढ़े; बौद्ध काल में निवृत्ति ने वटवृक्ष का रूप ले लिया—विस्तार, गहराई और व्यापकता के साथ; और पुनः मुगल व आधुनिक युग में प्रवृत्ति ने अपनी जमीन वापस पा ली—कर्म, समाज, कुटुम्ब और राष्ट्र की चेतना उन्नत हुई। इस प्रकार भारत में प्रवृत्ति से निवृत्ति और निवृत्ति से प्रवृत्ति का आवागमन निरंतर चलता रहा—मानो सूर्य दिन में चमके और रात में चन्द्रमा; दोनों आवश्यक, दोनों पूरक। समाज ने मनुष्य को सामाजिक बनाया है; इसलिए समाज का ऋण चुकाए बिना संन्यास लेकर पलायन कर जाना भारतीय मनस्विता का मार्ग नहीं रहा। वन ही सत्य का एकमात्र द्वार नहीं—गृहस्थ का अन्न, गृहस्थ की अग्नि और गृहस्थ की करुणा से ही ऋषियों का वन-जीवन पोषित हुआ। गृहस्थ आश्रम बिना पानी के वह नदी होता, जिसमें न तो प्रवाह होता न जीवन। अतः संन्यास को भी वही व्यक्ति ग्रहण करता था जिसने गृहस्थ-धर्म को पूर्ण निष्ठा से निभाया हो—तभी उसका संन्यास समाज के लिए प्रकाश-दीप होता था, पलायन नहीं। भारतीय जीवन-दर्शन कभी एकांगी नहीं रहा। उसने प्रवृत्ति और निवृत्ति, गृहस्थ और संन्यास, कर्म और ध्यान—सबको एक ही सूत्र में पिरोया। इससे सम्बंधित दृष्टांत महाभारत के वन पर्व में वर्णित है, जिसमें ऋषि माकंदव्य ने युधिष्ठिर को यह कहानी सुनाई थी। इसे कपोतोपाख्यान (कबूतर की कहानी) के नाम से जाना जाता है। यह कहानी धर्म, वैराग्य, और गृहस्थ धर्म के श्रेष्ठ आदर्शों को दर्शाती है -एक समय की बात है, एक अति सुंदर और गुणवान ऋषिकुमार थे, जो बचपन से ही विरक्त (दुनिया से मोह रहित) और तपस्वी स्वभाव के थे। वह ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए वन में वास करते थे। उसी राज्य में एक राजकुमारी थी, जो अत्यंत रूपवती और धर्मात्मा थी। जब वह विवाह योग्य हुई, तो राजा ने उसका स्वयंवर आयोजित किया। देश-विदेश के अनेक राजकुमार और प्रतिष्ठित व्यक्ति उस स्वयंवर में उपस्थित हुए। राजकुमारी ने जब सभा में उपस्थित सभी लोगों को देखा, तो उसे कोई भी अपने योग्य नहीं लगा। तभी उसकी दृष्टि उस ऋषिकुमार पर पड़ी जो किसी कारणवश सभा में मौजूद थे। ऋषिकुमार का तेजस्वी रूप, शांत स्वभाव और वैराग्य से भरा व्यक्तित्व राजकुमारी को इतना भाया कि उसने लेशमात्र भी विचार किए बिना, उन ऋषिकुमार के गले में वरमाला डाल दी। यह देखकर पूरी सभा चकित रह गई, क्योंकि ऋषिकुमार तो वैरागी थे और विवाह के बंधन से दूर रहना चाहते थे। जैसे ही राजकुमारी ने ऋषिकुमार को वरमाला पहनाई, तो ऋषिकुमार को लगा कि उनका ब्रह्मचर्य भंग हो रहा है और वह सांसारिक मोह-माया के बंधन में फंस रहे हैं। राजकुमारी के चयन को स्वीकार न करते हुए, वह तत्काल उस स्वयंवर सभा से उठकर गहन वन की ओर भाग गए। राजकुमारी भी उनके पीछे भागी, लेकिन ऋषिकुमार वैराग्य की धुन में तेजी से आगे निकल गए और घने जंगल में अदृश्य हो गए। राजकुमारी ने जब ऋषिकुमार को भागते हुए देखा, तो वह अत्यंत दुखी हुई और राजा से कहा कि वह उसी ऋषिकुमार को पति के रूप में स्वीकार करेंगी। राजा अपनी बेटी के हठ के कारण चिंतित हुए और अपने मंत्री के साथ उस ऋषिकुमार को ढूंढने के लिए जंगल की ओर निकल पड़े। काफी देर तक भटकने के बाद भी वे ऋषिकुमार को नहीं ढूंढ पाए। राजा और मंत्री दोनों ही जंगल में रास्ता भटक गए और दिन ढलने लगा। वे भूख-प्यास से व्याकुल हो गए और थककर एक विशाल वृक्ष के नीचे बैठ गए। जिस पेड़ के नीचे राजा और मंत्री बैठे थे, उसी पर एक कबूतर (कपोत) अपनी पत्नी कबूतरी (कपोती) के साथ एक घोंसले में रहता था। जब कबूतरी ने नीचे राजा और मंत्री को ठंड से ठिठुरते और भूख से पीड़ित देखा, तो वह अपने पति कबूतर से बोली - "हे नाथ! ये दोनों अतिथि हैं और भूख-प्यास से व्याकुल हैं। अतिथि का सत्कार करना गृहस्थ का परम धर्म है। हमारे पास इन्हें देने के लिए कुछ नहीं है, लेकिन हमें किसी भी प्रकार से इनकी सेवा करनी चाहिए।" कबूतर, जो धर्मात्मा और परम ज्ञानी था, अपनी पत्नी के धर्मनिष्ठ विचार से अत्यंत प्रसन्न हुआ और बोला -"तुम धन्य हो प्रिये! आज तुमने मुझे गृहस्थ धर्म का सच्चा महत्व समझा दिया।" सबसे पहले, कबूतर पास से सूखी टहनियाँ और घास लाकर लाया और एक जगह पर आग जलाई, ताकि राजा और मंत्री ठंड से बच सकें। फिर कबूतर ने राजा से कहा - "हे अतिथि! मैं आपका सत्कार कैसे करूँ? मेरे पास आपको खिलाने के लिए कोई अन्न नहीं है। इसलिए, मैं स्वयं ही आपकी क्षुधा शांत करने के लिए अपने शरीर की आहुति देता हूँ। आप मुझे पकाकर अपनी भूख मिटाइए।" यह कहकर, वह धर्मात्मा कबूतर बिना किसी संकोच के धधकती आग में कूद गया और अपने प्राणों का त्याग कर दिया। राजा और मंत्री यह देखकर बहुत दुखी और शर्मिंदा हुए। अभी उनकी भूख पूरी तरह शांत नहीं हुई थी। तब कबूतरी ने अपने पति के पदचिह्नों पर चलते हुए राजा से कहा - "महाराज! मेरे पति ने अतिथि धर्म का पालन किया है। मैं भी उनके मार्ग पर चलते हुए आपकी सेवा करना चाहती हूँ। मेरी देह भी आपकी क्षुधा शांत करने में सहायक हो।" और कबूतरी भी तुरंत उस आग में कूद गई और अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। कबूतर दम्पत्ति के इस अभूतपूर्व आत्म-त्याग और अतिथि सत्कार को देखकर राजा और मंत्री की आँखें खुल गईं। उनकी भूख तो शांत हुई या नहीं, लेकिन उनका अहंकार और मोह पूरी तरह शांत हो गया। उन्होंने कबूतर दम्पत्ति के चरणों में सिर नवाया और उस स्थान को छोड़कर वापस लौट गए। ऋषि माकंदव्य ने युधिष्ठिर से कहा - सन्यासी हो तो उस ऋषिकुमार की तरह जिसने राज्य-वैभव और राजकुमारी के प्रेम को ठुकराकर वैराग्य को सर्वोपरि माना और मोह से बचने के लिए जंगल में भाग गया। गृहस्थ हो तो कबूतर दम्पत्ति की तरह जिन्होंने अपने जीवन का मोह त्यागकर, केवल 'अतिथि सत्कार' और 'गृहस्थ धर्म' के पालन को ही अपना परम कर्तव्य समझा। यह कथा सिखाती है कि सच्चा त्याग वैराग्य में भी है और निःस्वार्थ सेवा भाव से युक्त गृहस्थ जीवन में भी है। ऋषिकुमार का त्याग विरक्ति का प्रतीक है, जबकि कबूतर दम्पत्ति का त्याग परमार्थ (दूसरों के हित) का प्रतीक है। यह वह भूमि है जहाँ कृषक हल चलाते समय भी ऋग्वेद की ऋचाएँ गाता है, और संन्यासी गहन समाधि में भी “सर्वभूतहिते रतः” का संकल्प लेता है। अतः भारत की आत्मा का सन्देश स्पष्ट है—जीवन को सम्पूर्णता में जियो, प्रत्येक आश्रम का सम्मान करो, और समाज को कुछ दिए बिना किसी एक मार्ग को श्रेष्ठ कहकर दूसरे को तुच्छ मत समझो। गृहस्थ हो या संन्यासी—दोनों भारतीय संस्कृति के दो पंख हैं; एक भी टूट जाए तो उड़ान अधूरी रह जाती है। ©® डॉ. विद्यासागर उपाध्याय
ब्लॉक स्तरीय परिषदीय बाल क्रीड़ा प्रतियोगिता का हुआ भव्य शुभारंभ


संजीव सिंह बलिया। नगरा:ब्लॉक स्तरीय परिषदीय बाल क्रीड़ा प्रतियोगिता 2025 का शुभारंभ छात्र शक्ति इंफ्रा कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड के प्रबंध निदेशक रमेश सिंह द्वारा मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण, पुष्पार्चन एवं दीप प्रज्वलन के साथ किया गया। मुख्य अतिथि रमेश सिंह ने गुब्बारा प्रेषण कर खेलों की शुरुआत की घोषणा की।इस अवसर पर जनता इंटर कॉलेज नगरा के प्रधानाचार्य उमेश कुमार पांडेय, नगरा नगर पंचायत अध्यक्ष प्रतिनिधि उमाशंकर एवं प्रभारी निरीक्षक नगरा संजय मिश्रा ने 16 न्याय पंचायतों के प्रतिभागी खिलाड़ियों के मार्च पास्ट की सलामी ली। प्राथमिक विद्यालय बराइच के बच्चों ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की, वहीं प्राथमिक विद्यालय छित्तूपाली के बच्चों ने स्वागत गीत गाकर अतिथियों का अभिनंदन किया।खंड शिक्षा अधिकारी नगरा राम प्रताप सिंह ने मुख्य अतिथि रमेश सिंह, जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी बलिया मनीष कुमार सिंह, प्रधानाचार्य उमेश कुमार पांडेय, अध्यक्ष प्रतिनिधि उमाशंकर एवं प्रभारी निरीक्षक संजय मिश्रा को बुके, अंगवस्त्र, स्मृति चिह्न व माल्यार्पण कर सम्मानित किया।इस अवसर पर जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी बलिया ने कहा कि स्वस्थ एवं समृद्ध भारत निर्माण में खेलों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। महबूब आलम की टीम ने बैंड बाजे के साथ आए अतिथियों की अगवानी की।खेल प्रतियोगिता में 400 मीटर बालिका (उच्च प्राथमिक स्तर) में कम्पोजिट विद्यालय डिहवा की रंजना ने प्रथम स्थान प्राप्त किया, जबकि 400 मीटर बालिका (प्राथमिक स्तर) में कम्पोजिट विद्यालय नरही की सलोनी ने अव्वल स्थान हासिल किया। 600 मीटर दौड़ में बालिका वर्ग की सुष्मिता तथा बालक वर्ग के रामबाबू विजेता रहे। कबड्डी प्राथमिक स्तर पर डिहवा विजेता तथा अंवराईकला उपविजेता रही।विजेता बालक-बालिकाओं को खंड शिक्षा अधिकारी नगरा राम प्रताप सिंह ने मेडल, प्रमाणपत्र व माल्यार्पण कर सम्मानित किया। इस अवसर पर दयाशंकर, रजनीश दूबे, वीरेंद्र यादव, विसुनदेव, मनोज गुप्ता, बच्चा लाल सहित सभी खेल अनुदेशकों एवं शिक्षकों-शिक्षा मित्रों ने सक्रिय सहयोग प्रदान किया। प्रथम दिन के खेलों का समापन खंड शिक्षा अधिकारी राम प्रताप सिंह ने घोषणा कर किया।
ब्लॉक स्तरीय परिषदीय बाल क्रीड़ा प्रतियोगिता का हुआ भव्य शुभारंभ


संजीव सिंह बलिया। नगरा:ब्लॉक स्तरीय परिषदीय बाल क्रीड़ा प्रतियोगिता 2025 का शुभारंभ छात्र शक्ति इंफ्रा कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड के प्रबंध निदेशक रमेश सिंह द्वारा मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण, पुष्पार्चन एवं दीप प्रज्वलन के साथ किया गया। मुख्य अतिथि रमेश सिंह ने गुब्बारा प्रेषण कर खेलों की शुरुआत की घोषणा की।इस अवसर पर जनता इंटर कॉलेज नगरा के प्रधानाचार्य उमेश कुमार पांडेय, नगरा नगर पंचायत अध्यक्ष प्रतिनिधि उमाशंकर एवं प्रभारी निरीक्षक नगरा संजय मिश्रा ने 16 न्याय पंचायतों के प्रतिभागी खिलाड़ियों के मार्च पास्ट की सलामी ली। प्राथमिक विद्यालय बराइच के बच्चों ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की, वहीं प्राथमिक विद्यालय छित्तूपाली के बच्चों ने स्वागत गीत गाकर अतिथियों का अभिनंदन किया।खंड शिक्षा अधिकारी नगरा राम प्रताप सिंह ने मुख्य अतिथि रमेश सिंह, जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी बलिया मनीष कुमार सिंह, प्रधानाचार्य उमेश कुमार पांडेय, अध्यक्ष प्रतिनिधि उमाशंकर एवं प्रभारी निरीक्षक संजय मिश्रा को बुके, अंगवस्त्र, स्मृति चिह्न व माल्यार्पण कर सम्मानित किया।इस अवसर पर जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी बलिया ने कहा कि स्वस्थ एवं समृद्ध भारत निर्माण में खेलों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। महबूब आलम की टीम ने बैंड बाजे के साथ आए अतिथियों की अगवानी की।खेल प्रतियोगिता में 400 मीटर बालिका (उच्च प्राथमिक स्तर) में कम्पोजिट विद्यालय डिहवा की रंजना ने प्रथम स्थान प्राप्त किया, जबकि 400 मीटर बालिका (प्राथमिक स्तर) में कम्पोजिट विद्यालय नरही की सलोनी ने अव्वल स्थान हासिल किया। 600 मीटर दौड़ में बालिका वर्ग की सुष्मिता तथा बालक वर्ग के रामबाबू विजेता रहे। कबड्डी प्राथमिक स्तर पर डिहवा विजेता तथा अंवराईकला उपविजेता रही।विजेता बालक-बालिकाओं को खंड शिक्षा अधिकारी नगरा राम प्रताप सिंह ने मेडल, प्रमाणपत्र व माल्यार्पण कर सम्मानित किया। इस अवसर पर दयाशंकर, रजनीश दूबे, वीरेंद्र यादव, विसुनदेव, मनोज गुप्ता, बच्चा लाल सहित सभी खेल अनुदेशकों एवं शिक्षकों-शिक्षा मित्रों ने सक्रिय सहयोग प्रदान किया। प्रथम दिन के खेलों का समापन खंड शिक्षा अधिकारी राम प्रताप सिंह ने घोषणा कर किया।
जंतर-मंतर पर अटेवा का विशाल राष्ट्रीय धरना: पुरानी पेंशन बहाली व थोपे गए टीईटी के विरोध में बलिया से शिक्षकों की बड़ी भागीदारी
संजीव सिंह बलिया !नई दिल्ली/बलिया, 25 नवंबर 2025। पुरानी पेंशन बहाली की मांग और 2011 से पूर्व नियुक्त शिक्षकों पर थोपे गए टीईटी की अनिवार्यता के विरोध में आज अटेवा के बैनर तले देश की राजधानी नई दिल्ली स्थित जंतर-मंतर पर एक ऐतिहासिक एवं विशाल राष्ट्रीय धरना-प्रदर्शन आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम का नेतृत्व अटेवा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री विजय कुमार बंधु द्वारा किया गया, जिसमें देश के विभिन्न प्रांतों से आए लाखों की संख्या में शिक्षक, कर्मचारी एवं अधिकारी शामिल हुए। धरना-प्रदर्शन में प्रतिभागी शिक्षकों व कर्मचारियों ने पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) की तत्काल बहाली, राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली से मुक्ति तथा सेवा में कार्यरत शिक्षकों पर टीईटी की नई अनिवार्यता को पूर्णतः वापस लेने की पुरजोर मांग उठाई। शांतिपूर्ण एवं अनुशासित तरीके से आयोजित इस आंदोलन के माध्यम से केंद्र एवं राज्य सरकारों को शिक्षकों-कर्मचारियों की भावनाओं से अवगत कराया गया। इस राष्ट्रीय कार्यक्रम में जनपद बलिया से भी अटेवा पदाधिकारियों एवं शिक्षकों-कर्मचारियों का एक बड़ा जत्था नई दिल्ली पहुंचा। अटेवा बलिया के जिला अध्यक्ष समीर कुमार पाण्डेय के नेतृत्व में जिला वरिष्ठ उपाध्यक्ष विनय राय, संगठन मंत्री मलय पाण्डेय, मीडिया प्रभारी संजीव सिंह, अटेवा नगरा अध्यक्ष राकेश कुमार सिंह, उपाध्यक्ष  राहुल उपाध्याय, राजीव नयन पाण्डेय, रामप्रवेश सहित हजारों की संख्या में अध्यापकों एवं अन्य विभागों के कर्मचारियों ने उत्साहपूर्वक प्रतिभाग कर पुरानी पेंशन बहाली एवं टीईटी विरोधी आंदोलन को मजबूती प्रदान की। वक्ताओं ने जोर देकर कहा कि पुरानी पेंशन बहाली एवं थोपे गए टीईटी के विरोध की यह लड़ाई कर्मचारी हितों, सामाजिक सुरक्षा एवं सम्मानजनक भविष्य के लिए है और जब तक मांगें पूरी नहीं होतीं, चरणबद्ध आंदोलन और तेज किया जाएगा।
निर्वाचक नामावली पुनरीक्षण में सहयोग हेतु 25 नवम्बर को सभी विद्यालय रहेंगे खुले: बीएसए मनीष सिंह
संजीव सिंह बलिया!जिलाधिकारी बलिया के निर्देश पर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों की निर्वाचक नामावलियों के विशेष प्रगाढ़ पुनरीक्षण (SIR) का वृहद अभियान जनपद में संचालित है, पर अब तक इसकी प्रगति संतोषजनक नहीं पाई गई है। अभियान में तेजी लाने एवं आवश्यक सुधार के लिए जिलाधिकारी द्वारा संबंधित अधिकारियों को दिशा-निर्देश दिए गए हैं।बेसिक शिक्षा अधिकारी मनीष कुमार सिंह ने बताया कि जिलाधिकारी बलिया द्वारा प्राप्त निर्देशों के क्रम में 25 नवम्बर 2025, दिन मंगलवार को जनपद के सभी विद्यालय केवल विद्यालयी कर्मियों के लिए खुले रहेंगे। इस दौरान शैक्षणिक कार्य स्थगित रहेगा। विद्यालयों में कार्यरत समस्त शिक्षक एवं कर्मचारी विद्यालय में उपस्थित रहकर निर्वाचक नामावली के विशेष प्रगाढ़ पुनरीक्षण (SIR) संबंधी कार्य में यथा-आवश्यक सहयोग प्रदान करेंगे।