बलिया की धरती पर गूँजी आजादी की हुंकार: बिल्थरा रोड क्षेत्र चरौवा के चार शहीदों की गाथा
बलिया। देश के स्वतंत्रता संग्राम में बलिया के बिल्थरा रोड विधानसभा क्षेत्र स्थित चरौवा गांव का नाम स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। 25 अगस्त, 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान इस गांव के वीर सपूतों ने अंग्रेजी हुकूमत से सीधा मोर्चा लिया और अपने प्राणों की आहुति दी। इस संघर्ष ने न केवल बलिया, बल्कि पूरे पूर्वी उत्तर प्रदेश में क्रांति की एक नई लहर पैदा कर दी।
अंग्रेजों का दमन और चरौवा का आक्रोश
उस दौर में, अंग्रेज शासक नेदर सोल और मार्क्स स्मिथ के नेतृत्व में फौज बलिया पहुंची थी। 25 अगस्त को कैप्टन मूर का दस्ता चरौवा पहुंचा और गांव के सरपंच रामलखन सिंह से क्रांतिकारियों को सौंपने की मांग की। जब चौकीदार यह संदेश लेकर पहुंचा तो सरपंच ने उसे जोरदार तमाचा मारा, जिससे उसके कान से खून बहने लगा। यह घटना अंग्रेजों के लिए चुनौती बन गई और उन्होंने पूरे गांव को घेर लिया।
ग्रामीणों ने भी हार मानने के बजाय अंग्रेजों को ललकारा: "गोरों के पास दो हाथ की मशीन है तो हमारे पास छह फुट की लाठी है।" इसके बाद चरौवा की धरती पर लाठी-डंडों और अंग्रेजों की गोलियों के बीच भीषण संघर्ष शुरू हो गया।
वीरांगना मकतुलिया और तीन शहीदों का बलिदान
इस संघर्ष में गांव की वीरांगना मकतुलिया मालिन ने अद्भुत साहस का परिचय दिया। उन्होंने कैप्टन मूर पर हांडी से वार किया, जिससे बौखलाए मूर ने उन्हें गोलियों से छलनी करवा दिया। मकतुलिया का शव घाघरा नदी में फेंकवा दिया गया। इस जंग में तीन और वीर सपूत- खर बियार, मंगला सिंह, और शिवशंकर सिंह ने भी मातृभूमि के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। इन क्रांतिकारियों ने रेलवे पटरी को उखाड़कर और व्यवस्था ठप करके अंग्रेजों को कड़ी चुनौती दी।
इस संघर्ष के बाद अंग्रेजी सेना ने गांव में भीषण दमनचक्र चलाया। लूटपाट और उत्पीड़न के बावजूद चरौवा के लोग पीछे नहीं हटे। कन्हैया सिंह, राधा किशुन सिंह, दशरथ सिंह, कपिलदेव सिंह, बृज बिहारी सिंह, मृगराज सिंह, शम्भू सिंह, श्रीराम तिवारी, कमला स्वर्णकार और हरिप्रसाद स्वर्णकार जैसे कई क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों का डटकर मुकाबला किया और बाद में जेल भी गए। अंग्रेजी हुकूमत की क्रूरता का शिकार होने के बाद भी उनका हौसला नहीं टूटा।
बेल्थरारोड में भड़की क्रांति की ज्वाला
चरौवा का यह बलिदान एकाकी नहीं था। इससे पहले, 14 अगस्त, 1942 को इलाहाबाद से 'आज़ाद हिंद' ट्रेन बेल्थरारोड पहुंची थी। यहां छात्र-छात्राओं और क्रांतिकारियों की टोली ने जनमानस में जोश भर दिया था। आक्रोशित क्रांतिकारियों ने रेलवे स्टेशन और मालगोदाम को आग के हवाले कर दिया, बिजली-टेलीफोन के तार काट डाले और सरकारी व्यवस्था को ध्वस्त कर दिया। इसी दौरान, डीएवी इंटर कॉलेज के अध्यापक चंद्रदीप सिंह ने रेलवे लाइन उखाड़ते समय अपनी शहादत दी। आज भी स्कूल में उनके नाम का एक स्तंभ इस महान क्रांतिकारी के संघर्ष की कहानी कहता है और हर साल 25 अगस्त को उन्हें याद किया जाता है।
फिरोज गांधी ने दी श्रद्धांजलि
इस भीषण घटना का जायजा लेने जब कांग्रेस ने फिरोज गांधी को बलिया भेजा तो वे शहीदों की कुर्बानी देखकर भावुक हो उठे थे।
आज भी 25 अगस्त को चरौवा गांव में इन शहीदों की याद में बलिदान दिवस और मेला आयोजित किया जाता है। इस पावन भूमि की हर मिट्टी स्वतंत्रता संग्राम की गाथा कहती है और हमें याद दिलाती है कि हमारी आजादी कितने बलिदानों के बाद मिली है।
Nov 05 2025, 15:48
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