आजादी की लड़ाई से जुड़ा है बिल्थरा रोड का महावीरी झंडा जुलूस, 2 कमेटी निकालती हैं परम्परागत जलूस
बलिया शहर के अंदर निकलने वाला ऐतिहासिक महावीरी झंडा जुलूस आजादी से जुड़ा हुआ है। इस जुलूस का इतिहास 128 साल पुराना है। यह महावीरी झंडा जुलूस 1910 ई. में जार्ज पंचम की ताजपोशी के विरोध में जिले के क्रांतिकारी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ठाकुर जगन्नाथ ¨सह के नेतृत्व में गठित विद्यार्थी परिषद ने निकाला था पहला महावीरी झंडा जुलूस। श्रावण पूर्णिमा रक्षाबंधन के दिन बलिया नगर में निकलने वाले ऐतिहासिक महावीरी झंडा जुलूस के 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की असफलता के बाद 1887 ई. तीस वर्षों तक आजादी की आग ठंडी पड़ी थी किन्तु देश धीरे-धीरे जाग रहा था। बंगाल में महर्षि अर¨वद घोष और उनके छोटे भाई वीरेन्द्र घोष, बिहार के मुजफ्फरपुर में खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चन्द्र का उत्सर्ग युवाओं को उद्वेलित कर रहा था। ऐसे ही विप्लवी मानसिकता के गवर्नमेंट स्कूल में पढ़ने वाले युवा ठाकुर जगन्नाथ ¨सह को मुंबई से निकलने वाले साप्ताहिक अखबार जमशेद के माध्यम से पता चला कि जार्ज पंचम की दिल्ली में होने वाली ताजपोशी की खुशी में लोकमान्य तिलक, जी मांडले जेल से छोड़ दिए जाएंगे। गवर्नमेंट स्कूल में सभी विद्यार्थियों को बताया गया कि सभी लोग आठ-आठ आना पैसा जमा कर देंगे। इसके एवज में उन्हें जार्ज पंचम की ताजपोशी का तगमा दिया जाएगा और मिठाई खाने को मिलेगी। ठाकुर साहब ने अठन्नी तो जमा कर दिया किन्तु उनके दिलों दिमाग में विद्रोह की आग जल रही थी
शहर के आदित्य राम मंदिर में विद्यार्थी परिषद की बैठक हुई। इसमें पं. हृदय नारायण तिवारी, मुनीश्वर मिश्र, केदारनाथ उपाध्याय, शिवदत्त तिवारी, नंदकिशोर चौबे और पं. परशुराम चतुर्वेदी ( जो बाद में ख्यातलब्ध साहित्यकार हुए) सहित कुल 35 छात्र शामिल हुए। यहीं जार्ज पंचम की ताजपोशी का विरोध करने और महावीरी झण्डा जुलूस निकालने की योजना बनाई गई। अगले दिन सभी स्कूलों के छात्र सीने पर जार्ज पंचम की तस्वीर लगे तगमे को लगाकर पहुंचे लेकिन ठाकुर जगन्नाथ ¨सह उस तगमे को अपने जूते के फीते में बांध कर स्कूल पहुंचे थे। इससे गवर्नमेंट स्कूल में हड़कंप मच गया।
उस दिन बलिया नगर में अजीब नजारा देखने को मिल रहा था। अगस्त का ही महीना था, एक ओर जार्ज पंचम की ताजपोशी की खुशी में सरकारी स्कूलों के बच्चे छोटी- छोटी झंडियां लेकर सड़क पर निकले। इस जुलूस में जार्ज पंचम के जयकारे लग रहे थे। दूसरी ओर एक लम्बे बांस में लाल रंग के कपड़े पर बड़े-बड़े अक्षरों में वंदे मातरम तिलक महाराज की जय लिखे झण्डे के साथ वंदेमातरम, भारत माता की जय और तिलक महाराज की जय के नारे लगाते हुए। आजादी के दीवानों का जुलूस शहर में घूम रहा था। आदित्य राम मंदिर से निकला यह जुलूस चौक लोहापट्टी, गुदरीबाजार, बालेश्वरघाट गंगा पूजन कर बाबा बालेश्वरनाथ मंदिर, भृग जी मंदिर से होकर जब यह जुलूस जापलिनगंज पुलिस चौकी के पास पहुंचा तो एक सिपाही ने जुलूस को रोकने का प्रयास किया। किन्तु ठाकुर साहब ने जब उसे बलिया की भाषा में समझा दिया तो वह चुपचाप चला गया। यही बलिया जिले के सिकन्दरपुर, रसड़ा, सुखपुरा, गड़वार, बिल्थरारोड, रेवती , बैरिया,आदि कस्बों गांवों में निकलने वाले महावीरी झण्डा जुलूस का पहला महावीरी झण्डा जुलूस था। इसकी परम्परा आज भी कायम है। सिकंदरपुर में सबसे पहले और बिल्थरा रोड में सबसे आखिरी में निकला जाता है यह जलूस
बलिया में तीन बार माहौल बिगाड़ने का हुआ प्रयास
सन् 1968 में षडयंत्र के तहत कुछ अराजक तत्वों ने विष्णु धर्मशाला चौराहे पर पथराव शुरु कर दिया। जुलूस में शामिल भीड़ के जवाबी पथराव के बाद पुलिस ने फाय¨रग की जिसमें सिनेमा रोड निवासी केदार नोनिया मारे गए और सैकड़ों लोग घायल हो गए थे। सन् 1990 में तब एक अवरोध पैदा हो गया था जब तत्कालीन एसडीएम राजीव कपूर ने जगदीशपुर अखाड़े का जुलूस को रोक दिया था। तब सात दिनों तक यह जुलूस सड़कों पर ही खड़ा रहा, वहीं पूजा चलती रही। सन् 2005 में फिर एक बार अराजकतत्वों ने चमन¨सह बाग चौराहे पर टाऊन हाल अखाड़े के जुलूस पर हमला करके अवरोध उत्पन्न किया था। इसके कारण तीन दिनों तक यह जुलूस सड़कों पर ही रुका रहा। --
महावीरी झंडा जुलूस में झांकियों की परम्परा 1927 ई. में शुरु हुई थीं। पहली बार मिट्टी की बनी महावीर जी की मूर्ति को बांस की बनी पालकी पर निकाला गया था। जिसे आठ लोग कंधे पर लेकर चल रहे थे। समय के साथ जुलूस में अनेकों झांकियों को शामिल किया जाने लगा। बताया कि सन् 1930 ई. में ब्रिटिश सरकार ने जंग ए आजादी की कोख से निकले इस जुलूस को बंद कराने की साजिश रची। तत्कालीन एसपी मि. हिक ने तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर मु. निजामुद्दीन के माध्यम से हिन्दू- मुसलमान को लड़ाई करने के लिए उकसाने का षडयंत्र किए किन्तु देशभक्त डिप्टी कलेक्टर मु. निजामुद्दीन ने ठाकुर जगन्नाथ ¨सह को बलिया से बाहर भेज दिया। समुदाय विशेष के कुछ लोगों ने ब्रितानी मूल के मि. हिक की साजिश में महावीरी झण्डा जुलूस के मार्ग को लेकर अदालत में मुकदमा कर दिया। इसे बलिया के ख्यातिनाम अधिवक्ता बाबू मुरली मनोहर ने नि:शुल्क लड़कर जीत दिलाई थी। यह जलूस निकलने की परंपरा को आज भी जीवित रखा गया है और हर बलिया के लोग इस जलूस में बढ़ चढ़ के हिस्सा लेते है और स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान को याद करते हैं
किशन जायसवाल
Oct 30 2025, 22:50
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