खैराबाद मदरसा जामिया इस्लामिया व अंजुमन खुद्दाम ए सहाबा की वैनर तले प्रांगण में जलसा शुहादा-ए-इस्लाम का का दूसरा सत्र संपन्न*
सुल्तानपुर,खैराबाद स्थित मदरसा जामिया इस्लामिया व अंजुमन खुद्दाम ए सहाबा की वैनर तले मदरसा जामिया इस्लामिया खैराबाद के प्रांगण में जलसा शुहादा-ए-इस्लाम का दूसरा सत्र संपन्न हो हुआ। जामिया इस्लामिया सुल्तानपुर में देर रात दस दिवसीय शहीदे इस्लाम के जलसे का दूसरा सत्र आयोजित किया गया।
जिसकी अध्यक्षता जामिया के नाज़िम-ए-आला हज़रत मौलाना मुहम्मद उस्मान कासमी ने की और संचालन की ज़िम्मेदारी हज़रत मौलाना मुहम्मद उसामा साहब सुल्तानपुरी ने निभाई। समारोह की शुरुआत जामिया के छात्र मुहम्मद आबिद के कुरआन के पाठ से की और मुहम्मद अजमल सलमा ने मनकबत की कविताएं सुनाईं।
बीवियां मस्जिद के इमाम मौलाना मुहम्मद कसीम साहब ने अपना मुख्य भाषण देते हुए कहा कि सहाबा सच्चाई और ईमानदारी का मानक हैं, सहाबा सच्चाई की कसौटी हैं। उनके बाद हजरत मौलाना ने हजरत अब्दुल रहमान बिन औफ की जीवनी पर विस्तार से प्रकाश डाला, यहां तक कि मौलाना ने कहा कि हजरत अब्दुल रहमान बिन औफ ने खुदा की राह में बहुत पैसा खर्च किया।
यहां तक कि तबूक की लड़ाई के अवसर पर उन्होंने खुदा के पैगंबर को दो सौ औंस सोना भेंट किया, जिसकी मात्रा आधुनिक समय में दो किलोग्राम से कुछ अधिक होगी। इसी तरह मौलाना ने उपरोक्त सहाबा का जिक्र करते हुए कहा कि एक अवसर पर उन्होंने अपनी एक जमीन 40,000 दीनार में बेची और सारा पैसा मदीना के गरीबों और जरूरतमंदों में बांट दिया।
इसी तरह एक बार उनके सात सौ ऊंट व्यापार के लिए मदीना आए और सारा व्यापार का सामान मदीना के लोगों और पैगंबर की पत्नियों में बांट दिया गया। संक्षेप में, हज़रत अब्दुर रहमान बिन औफ़ ने हर महत्वपूर्ण मोड़ पर अपनी आत्मा से इस्लाम धर्म को पोषित किया है, और उनके कार्य प्रमुख रहेंगे!
मुख्य वक्ता के रूप में लखनऊ से आए हजरत मौलाना अब्दुल अली फारूकी ने अपने भाषण की शुरुआत में कहा कि सुल्तानपुर के लोगों से मुझे जो प्यार मिलता है, उसे शब्दों में बयां करना संभव नहीं है, लेकिन हां, यह हजरत इमाम अहल-ए-सुन्नत के रिश्ते से है, अन्यथा हमारे पास यह फूल कहां और कहां होता? मौलाना ने अपने भाषण को जारी रखते हुए कहा कि यह इस्लाम के शहीदों की दुआओं का फल है, जो कई वर्षों से यहां और हमारे लखनऊ में और देश के विभिन्न और असंख्य हिस्सों में आयोजित किए जाते हैं। मौलाना ने कहा कि इस्लाम के शहीदों की कुर्बानी के ऐसे जलसा का सबसे बड़ा लाभ यह है कि लोगों ने यह समझ लिया है कि मुहर्रम का यह महीना केवल हजरत इमाम हुसैन रजी.की शहादत के लिए ही जाना जाता है, बल्कि इसकी पवित्रता और उत्कृष्टता पहले दिन से ही है और यह महीना गम का महीना नहीं है, बल्कि आम महीनों की तरह एक महीना है जिसमें गम मनाने की कोई वजह नहीं है। इसी तरह इस्लाम के दूसरे खलीफा हज़रत उमर फारूक रजी. द्वारा इस्लाम धर्म के लिए किए गए कार्यों का उल्लेख किया और बताया कि कैसे हज़रत उमर के इस्लाम धर्म अपनाने से इस्लाम धर्म की उन्नति में योगदान मिला। सभी साथी पैगंबर (PBUH) के अनुयायी थे, लेकिन हजरत उमर पैगंबर (PBUH) के दूत थे। मौलाना ने कहा कि हज़रत हुसैन की शहादत के कारण इस महीने को ग़म का महीना कहना न तो शाब्दिक है और न ही तर्कसंगत। शहादत एक सम्मान है, शहादत एक सम्मान है और शहादत एक लक्ष्य है और मोमिन की चाहत है। मौलाना ने एक अजीब बात कही कि जिसे जिंदगी और लंबी उम्र प्यारी न हो, फिर साथियों की शहादत की चाहत का क्या मतलब? अगर हम कुरान पर गौर करें तो पाएंगे कि शहीद जिंदा होते हैं, इसीलिए साथियों ने भी शहादत की दुआ की और कहा कि जब शहादत ही जिंदगी है तो फिर हजरत हुसैन की शहादत पर मातम मनाना और छाती पीटना कैसे जायज हो सकता है!? मौलाना ने धार्मिक जोश और देशभक्ति के आधार पर मुसलमानों को सलाह दी कि वे अपने बच्चों का नाम हजरत उमर के हत्यारे अबू लुलु फिरोज नामक मगियान और पैगम्बर (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) के मुबारक खत को अपने पैरों तले कुचलने वाले खुसरो परवेज नामक बादशाह के नाम पर न रखें! अंत में मौलाना द्वारा स्वयं एक छोटी सी प्रार्थना के साथ जलसा का समापन किया। कार्यक्रम में शहर और आस-पास के क्षेत्रों के बुजुर्ग,विश्वविद्यालय के प्रोफेसर,विश्वविद्यालय के छात्र और बड़ी संख्या में श्रोतागण उपस्थित थे। जामिया इस्लामिया के नाज़िम-ए-आला हज़रत मौलाना मुहम्मद उस्मान कासमी ने सभी श्रोताओं अतिथियों का तहे दिल से शुक्रिया अदा किया! 28-6-2025
Jun 30 2025, 07:58