भारत-पाकिस्तान के बीच चल रहे तनाव के बीच यह जानना जरूरी है कि पाकिस्तान ने अपना आर्मी मुख्यालय रावलपिंडी को ही क्यों बनाया? ये हैं 5 बड़ी वजह
डेस्क:–पाकिस्तान का एक प्रमुख शहर है रावलपिंडी, जहां बैठकर पाकिस्तानी जनरल यह फैसले करते हैं कि कब और कहां जंग लड़ना है. यहीं पाकिस्तानी सेना का मुख्यालय है. यहीं से छद्म युद्ध भी लड़े जाते हैं. ऐसे में सवाल है कि रावलपिंडी को पाकिस्तानी सेना का हेडक्वार्टर क्यों चुना गया?
तनाव के बीच सबसे ज्यादा परेशानी में पाकिस्तान का एक प्रमुख शहर रावलपिंडी है. कारण यह है कि यही वह शहर है जहां बैठकर पाकिस्तानी जनरल यह फैसले करते हैं कि कब और कहां बम फोड़ना है? किस आतंकी को सिर चढ़ाना है? किसका कस तरीके से उपयोग करना है. यहीं पाकिस्तानी सेना का मुख्यालय है. यहीं से छद्म युद्ध भी लड़े जाते हैं. ऐतिहासिक शहर रावलपिंडी के संस्थापकों ने कभी सोच भी नहीं होगा कि उनकी धरती का इस तरह दुरुपयोग पाकिस्तानी सेना करेगी.
भारत-पाकिस्तान के बीच चल रहे तनाव के बीच यह जानना जरूरी है कि पाकिस्तान ने अपना आर्मी मुख्यालय रावलपिंडी को ही क्यों बनाया? जबकि उसके पास कराची, लाहौर जैसे महत्वपूर्ण, बड़े और हर तरह की सुविधाओं से सम्पन्न ऐतिहासिक महत्व के शहर थे. इसकी कई महत्वपूर्ण वजहें थीं.
1-ब्रिटिश सेना का उत्तरी कमान सेंटर था रावलपिंडी
पाकिस्तान नाम का नया देश जब दुनिया के नक्शे में जुड़ा तो रावलपिंडी ब्रिटिश सेना का उत्तरी कमान का हेडक्वार्टर हुआ करता था. यहां सेना से जुड़े बहुत सारे संसाधन मौजूद थे. नया देश होने की वजह से पाकिस्तान के सामने बहुत सारे दूसरी तरह के चैलेंजेज थे, ऐसे में पाकिस्तानी सेना ने खुद को रावलपिंडी में ही मजबूती दी.
साल 1947 में भारत से अलग बने देश पाकिस्तान के सेना प्रमुख ब्रिटिश जनरल सर डगलस ग्रेसी थे. अंग्रेज अफसर सुविधाओं में रहने के आदती थे. ब्रिटिश सेना का उत्तरी कमान का हेडक्वार्टर होने की वजह से यहां पर्याप्त सुविधाएं-संसाधन मौजूद थे. ऐसे में जनरल डगलस ने सेना मुख्यालय के रूप में रावलपिंडी को ही चुन लिया. समय बीतता गया और पाकिस्तानी सेना का प्रभाव देश के अंदर बढ़ता गया. अपने फैसले में सेना ने सरकार को बहुत तवज्जो कभी नहीं दी. उनका ध्यान लोकतंत्र को कमजोर करने में लगा रहा.
इसीलिए जब साल 1960 में पाकिस्तान ने इस्लामाबाद को देश की स्थाई राजधानी के रूप में स्थापित किया तब भी सेना ने अपना मुख्यालय शिफ्ट नहीं किया. सामान्य दशा में किसी भी देश में सेना और सरकार का मुख्यालय एक ही जगह होते हैं. पाकिस्तान में तख्तापलट का लंबा इतिहास है. ऐसे में सर डगलस ने जो नींव रख दी, पाकिस्तानी जनरल्स ने उसे हटाने की सोची भी नहीं, बल्कि रावलपिंडी को ही मजबूती देते गए. पाकिस्तान की स्थापना से लेकर साल 1960 तक रावलपिंडी में सेना के संसाधनों में पर्याप्त इजाफा कर लिया था.
2-ब्रिटिश काल में भी रावलपिंडी सेना के लिए महत्वपूर्ण था
जब अंग्रेज राज करते थे तब भी रावलपिंडी ब्रिटिश सेना के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र था. पाकिस्तान बनने के समय लाहौर, कराची और रावलपिंडी, यही तीन शहर थे, जहां पाकिस्तान कहीं अपनी राजधानी बना लेता. लाहौर और कराची अपेक्षाकृत ज्यादा विकसित और ऐतिहासिक शहर थे, इसलिए पाकिस्तान ने फौरी राजधानी के रूप में कराची का चुनाव किया. लेकिन जनरल डगलस ने सेना का मुख्यालय कराची ले जाना मुनासिब नहीं समझा और न ही पाकिस्तान के नीति-निर्धारकों ने सत्ता के केंद्र के रूप में रावलपिंडी को चुनने की जहमत उठाई. सर डगलस ने सेना का मुख्यालय कराची इसलिए भी नहीं शिफ्ट किया क्योंकि यह एक समुद्र तटीय, अधिक भीड़भाड़ वाला शहर था.
रणनीतिक दृष्टि से सेना ने इसे उपयुक्त नहीं पाया बल्कि माना गया कि रावलपिंडी पहले से ही सेना के लिए सक्रिय शहर है. उधर, कराची से स्थाई राजधानी इस्लामाबाद करने के फैसले के समय सेना ने खुद को रावलपिंडी में इतना मजबूत कर लिया कि सेना मुख्यालय को इस्लामाबाद शिफ्ट करने में बहुत बड़े बजट की जरूरत थी, जो पाकिस्तान के पास था नहीं. अगर सरकार और जनरल्स सेना का मुख्यालय इस्लामाबाद शिफ्ट करने का फैसला ले भी लेते तो रावलपिंडी में पहले से उपलब्ध इंफ्रा का उपयोग उस तरह नहीं हो पाता, जैसे आज हो रहा है.
3- इसलिए भी रावलपिंडी का महत्व बना रहा
रावलपिंडी पाकिस्तान के उत्तरी हिस्से में है. यह राजधानी इस्लामाबाद से ज्यादा दूर नहीं है. ऐसे में सेना और सरकार में समन्वय आसान माना गया. कहा जा सकता है कि भौगोलिक रूप से यह जगह सेना के संचालन और राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से एकदम अनुकूल है. ब्रिटिश सेना कि विरासत ने पाकिस्तानी सेना को इसे मुख्यालय बनाने में मदद की.
रावलपिंडी सड़क, रेल और हवाई मार्ग से देश के अन्य हिस्सों से जुड़ा हुआ है, जो किसी भी देश की सेना के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है. चूँकि, सेना की अनेक गतिविधियां शांति से संचालित होती हैं, ऐसे में लाहौर-कराची जैसे भीड़ वाले शहर में सैन्य गतिविधियां चलाना अपने आप में चुनौतीपूर्ण है. आबादी की दृष्टि से रावलपिंडी सेना के लिए उपयुक्त माना गया था.
4- पाकिस्तान की उम्र सिर्फ 78, रावलपिंडी का सैन्य इतिहास हजारों वर्ष पुराना
सेना के लिए रावलपिंडी तब भी महत्वपूर्ण था जब पाकिस्तान का नामों-निशान नहीं था. ब्रिटिश सेना की छावनियां यहां तब भी थीं. साल 1850 से ब्रिटिश सेना ने इसे अपनी छावनी के रूप में विकसित करना शुरू किया था, जो पाकिस्तान बनने तक जारी रहा क्योंकि धीरे-धीरे सुविधाएं बढ़ती रहीं और सेना ने इसका दर्जा भी बढ़ाया. पाकिस्तान के बनने के समय यह जगह ब्रिटिश सेना के उत्तरी कमान का मुख्यालय हुआ करता था.
5- कुछ यूं बनी सेना की एक चौकी सैन्य मुख्यालय
रावलपिंडी के ऐतिहासिक पक्ष को देखें तो पता चलता है कि राजस्थान के राजा बप्पा रावल ने पहली फौजी चौकी आठवीं सदी में यहां बनाई थी. बप्पा रावल ने 712 ईस्वी में मोहम्मद बिन कासिम को जंग में हराकर इस क्षेत्र से भागने पर मजबूर कर दिया था. युद्ध जीतने के बाद उन्होंने अनेक सैन्य चौकियां स्थापित की थीं, उसमें रावलपिंडी भी था. इस तरह मुगल हों या ब्रिटिश या फिर पाकिस्तानी शासक, सबने रावलपिंडी को सेना के केंद्र के रूप में मजबूती दी.
इतिहास बताता है कि रावलपिंडी शहर का नाम भी राजा बप्पा रावल के नाम पर पड़ा है। बप्पा रावल इतने बहादुर थे कि उन्होंने उस जमाने में युद्ध जीतते हुए अफगानिस्तान, ईरान, इराक तक क्षेत्र का विस्तार किया. बप्पा रावल की राजधानी आज का चित्तौड़गढ़ हुआ करती थी. इस तरह हम पाते हैं कि रावलपिंडी को पाकिस्तानी सेना का मुख्यालय बनाने में एक नहीं, अनेक कारण हैं. सबसे महत्वपूर्ण कारणों में से उसका सैन्य इतिहास है.
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