राज्यपाल के बाद राष्ट्रपति के लिए भी समय सीमा तय, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- तीन महीने में हो बिल पर फैसला
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अब राष्ट्रपति को राज्यपालों द्वारा भेजे गए विधेयकों पर तीन महीने के भीतर फैसला करना होगा। अपनी तरह के पहले फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने देश के राष्ट्रपति के लिए भी समय सीमा तय की है। दरअसल, 8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल के मामले में ऐतिहासिक फैसला लिया था। अदालत ने कहा था कि राज्यपाल को विधानसभा की ओर से भेजे गए बिल पर एक महीने के भीतर फैसला लेना होगा। इसी फैसले के दौरान अदालत ने राज्यपालों की ओर से राष्ट्रपति को भेजे गए बिल पर भी स्थिति स्पष्ट की।
सुप्रीम कोर्ट का राज्यपाल के मामले में फैसला शुक्रवार को ऑनलाइन अपलोड हो गया है। शीर्ष अदालत की तरफ से तमिलनाडु के राज्यपाल आर एन रवि की तरफ से राष्ट्रपति के विचार के लिए रोके गए और आरक्षित किए गए 10 विधेयकों को मंजूरी देने और राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर कार्रवाई करने के लिए सभी राज्यपालों के लिए समयसीमा निर्धारित की थी। फैसला करने के चार दिन बाद, 415 पृष्ठों का निर्णय शुक्रवार को रात 10.54 बजे शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड किया गया।
फैसले की न्यायिक समीक्षा
शुक्रवार रात वेबसाइट पर अपलोड किए गए ऑर्डर में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 201 का हवाला दिया। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने कहा कि अनुच्छेद, 201 के तहत राज्यपालों की ओर से भेजे गए बिल के मामले में राष्ट्रपति के पास पूर्ण वीटो या पॉकेट वीटो का अधिकार नहीं है। उनके फैसले की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है और न्यायपालिका बिल की संवैधानिकता का फैसला न्यायपालिका करेगी।
फैसले में देरी के लिए वजह बताना होगा
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, कानून की स्थिति यह है कि जहां किसी कानून के तहत किसी शक्ति के प्रयोग के लिए कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं है, वहां भी उसे उचित समय के भीतर प्रयोग किया जाना चाहिए। अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति द्वारा शक्तियों का प्रयोग कानून के इस सामान्य सिद्धांत से अछूता नहीं कहा जा सकता। सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने फैसला सुनाया कि अगर राष्ट्रपति किसी विधेयक पर फैसला लेने में तीन महीने से अधिक समय लेते हैं, तो उन्हें देरी के लिए वैलिड वजह बताना चाहिए।
बार-बार लैटा नहीं सकते बिल
अदालत ने कहा कि राष्ट्रपति किसी बिल को राज्य विधानसभा को संशोधन या पुनर्विचार के लिए वापस भेजते हैं। विधानसभा उसे फिर से पास करती है, तो राष्ट्रपति को उस बिल पर फाइनल डिसीजन लेना होगा और बार-बार बिल को लौटाने की प्रक्रिया रोकनी होगी।
तमिलनाडु सरकार की याचिका के फैसले पर टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार की याचिका पर दिए गए अपने फैसले में यह टिप्पणी की। सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि के पास लंबित 10 विधेयकों को पारित करने का आदेश दिया। ये विधेयक राज्यपाल ने राष्ट्रपति के पास विचारार्थ भेजने के चलते लंबित किए हुए थे। जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने 8 अप्रैल को राष्ट्रपति के विचार के लिए दूसरे चरण में 10 विधेयकों को आरक्षित करने के फैसले को अवैध और कानून की दृष्टि से त्रुटिपूर्ण करार देते हुए खारिज कर दिया। कोर्ट ने बिना किसी लाग-लपेट के कहा था कि जहां राज्यपाल किसी विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखता है और राष्ट्रपति उस पर अपनी सहमति नहीं देते हैं, तो राज्य सरकार के लिए इस न्यायालय के समक्ष ऐसी कार्रवाई करने का अधिकार खुला रहेगा। संविधान का अनुच्छेद 200 राज्यपाल को अपने समक्ष प्रस्तुत विधेयकों पर अपनी सहमति देने, सहमति नहीं देने या राष्ट्रपति के विचार के लिए उसे आरक्षित रखने का अधिकार देता है।
Apr 14 2025, 10:34