युवाओं द्वारा सोशल मीडिया का किया जा रहा गलत इस्तेमाल

आलेख- अजय कुमार तिवारी

आपकी जिम्मेदारी आपका दायित्व, समाज आपका है और आप समाज के हैं। दोनों स्थितियों में व्यक्ति की जिम्मेदारी है कि वह अपने दायित्वों को इस तरह निभाये कि दायित्व भी पूरे हों और परिणाम भी अपेक्षित हो। ऐसा किसी भी स्थिति में नहीं होना चाहिए कि जरा सी लापरवाही में समाज के बंधनों में विचलन आये। वर्तमान में मीडिया के साथ सोशल मीडिया का चरित्र भी तेजी से बदल रहा है। आगे बढ़ने की होड़, सबसे पहले ब्रेकिंग चलाने अंधी दौड़ मानकों के साथ खिलावाड़ करती नजर आ रही है। सरगुजा के सन्दर्भ में देखें तो एक स्कूल की फेयरवेल पार्टी के बाद विद्यार्थियों द्वारा की गयी स्टंटबाजी निराशाजनक रही है। निश्चित ही इससे विद्यार्थियों की छवि धूमिल हुई है, साथ ही विद्यालय और अभिभावकों पर प्रश्न चिह्न लगा। एक ओर जहां अभिभावक अपने लाडलों की परवरिश देने में नाकाम दिखे तो दूसरी ओर स्कूलों के शिक्षक भी परिसर के बाहर का मामला होने की स्थिति में किंकर्तव्यविमूढ़ रहे। परिसर के भीतर शिक्षक का दायित्व है कि वह अनुशासन कायम रखे लेकिन अनुशासन कायम रखना तो विद्यार्थी को है। विद्यार्थी अनुशासित नहीं रहेगा तो शिक्षक लाचार साबित होगा। सच तो यह है कि अभिभावक को पहले अपने लाडले को सही मार्गदर्शन, परवरिश देना होगा। शिक्षक के साथ तो विद्यार्थी पांच से छह घंटे होता है और विद्यार्थी घर में १५ घंटे है। यहां सिर्फ अभिभावक, शिक्षक तथा विद्यार्थी को दोषी ठहराया जाना लक्ष्य नहीं है, बल्कि इस प्रवृति को रोकना जरूरी है। स्टंटबाजी का जिस तरह से वीडियो बना और उसे सोशल मीडिया पर प्रसारित किया गया है, वह भी गलत है। सोशल मीडिया के मंच पर सभी सम्पादक की भूमिका में आ चुके हैं। गेटकीपर का सिद्धांत, चेकिंग प्वाइंर्ट काम नहीं कर रहा है। सभी अपने कंटेंट, डाटा, न्यूज प्रसारित करने के लिए स्वतंत्र ही नहीं स्वच्छंद हैं। ऐसी स्थिति में सोशल मीडिया के साथ प्रिंट मीडिया की जवाबदेही है। सोशल मीडिया को यह कतई नहीं दिखाना चाहिए कि स्टंटबाजी का तरीका क्या रहा ? स्टंटबाजी के दौरान उन तथाकथित लाडलों के हाथों में क्या था? इसका दोनों पक्ष है कि एक ओर पोर्टल और चैनलों ने स्टंट का वीडियो दिखा कर अपनी खबर की सत्यता कामय की तो दूसरी ओर दर्शकों यह भी बता दिया कि स्टंटबाजी कैसे की जा सकती है? स्टंटबाजी में क्या-क्या उपयोग किया जा सकता है। वीडियो के माध्यम से सचाई तो दिखायी गयी लेकिन कुछ नकारात्मक लोगों लिये यह नकारात्मक प्रशिक्षण साबित हो गया। बिलासपुर के एक निजी स्कूल के बाथरूम में विस्फोट हो गया जिससे एक बच्ची झुलस गयी। इसकी रिपोर्टिंग चैनल, पोर्टल के साथ अखबारों में भी हुई। यहां सभी ने उस केमिकल, पदार्थ का नाम प्रकाशित कर दिया जो पानी के सम्पर्क में आने के बाद विस्फोटक बन जाता है। रिपोर्टिंग के दौरान यह ध्यान रखा जाना था कि उस केमिकल, पदार्थ का नाम नहीं बताया जाना था। यह भी नहीं बताया जाना था कि इसका पानी के साथ संयोग होने पर विस्फोट हो सकता है। खबरों की आगे बढ़ने और अत्यधिक तथ्यों को प्रस्तुत करने की दौड़ में जो नहीं बताना था, उसे भी प्रकाशित, प्रसारित कर दिये। जहर के सेवन से जब किसी की मौत हो जाती है तो रिपोर्टर द्वारा यह नहीं लिखा जाना चाहिए कि जहर का नाम निम्न है। इससे यह ज्ञात हो जाता है कि निम्र पदार्थ के सेवन से आत्महत्या की जाती है। अनजाने में यह प्रसारित, प्रकाशित हो जाता है जिसका नाम नहीं बताना है। कभी-कभी ऐसा ही दृश्य, वीडियो अखबार और पोर्टलों में देखा जाता है कि फांसी के फंदे से लटकते शव, लाश की तस्वीर छाप दी जाती है, जबकि ऐसा नहीं किया जाना चाहिए। इन तस्वीर और वीडियो का नकारात्मक पक्ष यह है कि फांसी लगाने का तरीका प्रसारित, प्रकाशित हो जाता है। यहां प्रिंट और सोशल मीडिया से आग्रह है कि वह अपनी जिम्मेदारियों के साथ तथ्यों को उपयोग करें।
Mar 18 2025, 16:59