दिल्ली चुनाव 2025: बीजेपी की बड़ी जीत, 40 साल में पहली बार NCR में एक ही पार्टी की सरकार

दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने का भारतीय जनता पार्टी (BJP) का करीब 3 दशक पुराना सपना कल शनिवार को तब पूरा हो गया जब पार्टी ने 70 में से 48 सीटों पर कब्जा जमा लिया. आम आदमी पार्टी (22 सीट) को समेटते हुए बीजेपी ने बड़ी जीत हासिल की है. यह जीत इस मायने में भी बेहद खास है क्योंकि 40 साल में पहली बार दिल्ली-NCR में आने वाले सभी राज्यों में किसी एक राजनीतिक दल की सरकार हो गई, साथ ही उत्तर भारत में आने वाले ज्यादातर राज्यों में डबल इंजन की सरकार आ गई है.

केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली में विधानसभा चुनावों में शानदार जीत हासिल करने के साथ ही 4 दशक बाद भारतीय जनता पार्टी केंद्र के साथ-साथ दिल्ली-NCR में शासन करने वाली पहली पार्टी बन गई है. बीजेपी साल 1985 के बाद पहली बार दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के सभी नेशनल कैपिटल रीजन (एनसीआर) राज्यों पर भी राज करेगी. उत्तर भारत के अन्य राज्यों उत्तराखंड में भी बीजेपी की सरकार है.

कितना बड़ा है दिल्ली-NCR

दिल्ली-NCR जो करीब 55,144 वर्ग किलोमीटर (Sq km) एरिया में फैला हुआ है. साल 2011 की जनगणना के अनुसार, इस क्षेत्र में 46 करोड़ से अधिक लोग रहते हैं. यह देश के सबसे अहम आर्थिक गलियारों में से एक है. दिल्ली-NCR क्षेत्र में दिल्ली के अलावा नोएडा, गुरुग्राम, गाजियाबाद और फरीदाबाद जैसे चर्चित औद्योगिक क्षेत्र आते हैं.

बीजेपी दिल्ली की सत्ता से 1998 से ही दूर थी, लेकिन अब उसकी सत्ता देश की राजधानी में हो गई है. दिल्ली के अलावा राजधानी से सटे अन्य राज्यों उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में पहले से ही बीजेपी की सरकार है. बीजेपी ने जहां दिल्ली में 10 साल से अधिक समय से सत्ता में रही AAP सरकार को हटाया वहीं सटे 3 राज्यों में भी उसकी 5 साल से अधिक समय से सरकार चल रही है.

40 सालों में पहली बार डबल इंजन सरकार

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ, राजस्थान में भजन लाल शर्मा और हरियाणा में नायब सिंह सैनी की अगुवाई में बीजेपी की सरकार चल रही है. अब दिल्ली में भी बीजेपी की सरकार बनने जा रही है. पिछले 40 सालों से यह पहली बार होगा जब कोई एक पार्टी केंद्र समेत इन 4 राज्यों में शासन करने जा रही है.

इससे पहले 1985 में ऐसा आखिरी बार हुआ था जब सत्तारुढ़ पार्टी का केंद्र के साथ-साथ दिल्ली से सटे राज्यों में भी सरकार थी. केंद्र की सत्ता पर कांग्रेस सबसे बड़ी जीत के साथ काबिज हुई थी. 1984 के दिसंबर में हुए चुनाव में इंदिरा गांधी की नृशंस हत्या के बाद पार्टी को सहानुभूति लहर का फायदा मिला और 400 से अधिक सीट जीतने में कामयाब रही.

1985 में क्या था माहौल

राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री बने. फिर नए साल 1985 में देश के 14 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश में विधानसभा चुनाव कराए गए थे. इसी साल यूपी में भी चुनाव कराए गए जिसमें कांग्रेस को पूर्ण बहुमत के साथ जीत हासिल हुई और नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री बने थे. इसी तरह राजस्थान में भी चुनाव हुए कांग्रेस को बड़ी जीत मिली. उसने तब बीजेपी को हराया. हरि देव जोशी मुख्यमंत्री बने.

इसी तरह हरियाणा में 1982 में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली थी और 1985 के वक्त भजन लाल ही मुख्यमंत्री थे. तब दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश जरूर था, लेकिन विधानसभा की व्यवस्था नहीं थी. 1992 में दिल्ली में पूर्ण विधानसभा की व्यवस्था बनी और 1993 में पहली बार चुनाव कराए गए थे.

किसलिए हुआ दिल्ली-NCR का गठन

1985 में यानी आज से 40 साल पहले उत्तराखंड अविभाजित उत्तर प्रदेश का हिस्सा हुआ करता था, और यहां पर कांग्रेस की सरकार थी. लेकिन 2025 में उत्तराखंड अलग राज्य के रूप में देश के नक्शे पर है और यहां बीजेपी का शासन है. बीजेपी उत्तराखंड में भी लगातार दूसरी जीत के साथ सत्ता पर काबिज है. इसी तरह उत्तर भारत के अन्य राज्यों पंजाब, जम्मू-कश्मीर और हिमाचल में गैर बीजपी पार्टी शासन कर रही है.

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र योजना बोर्ड (The National Capital Region Planning Board (NCRPB) की स्थापना 1985 में NCRPB एक्ट 1985 के तहत की गई थी. इसके गठन का मकसद राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के विकास के लिए प्लानिंग करना, योजना के कार्यान्वयन को लेकर समन्वय करना था. साथ ही निगरानी करने, अव्यवस्थित विकास से बचने के लिए भूमि उपयोग नियंत्रण और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए सामंजस्यपूर्ण नीति भी तैयार करना शामिल था.

1985 के बाद अब दिल्ली समेत उससे सटे राज्यों में केंद्र में सत्तारुढ़ पार्टी की सरकार आ गई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यों में विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान अपने भाषणों में अक्सर डबल इंजन वाली सरकार का जिक्र करते हैं. अब दिल्ली में भी बीजेपी की अगुवाई वाली डबल इंजन की सरकार आ गई है.

दिल्ली से 2400 किमी दूर भी हुआ एक चुनाव, जानें बीजेपी का कैसा रहा प्रदर्शन?

दिल्ली विधानसभा चुनाव और मिल्कीपुर के उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी के शानदार जीत के चर्चे हैं. जहां दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 48 सीटों पर 27 साल बाद प्रचंड वापसी की है, वहीं उत्तर प्रदेश के अयोध्या जिले की मिल्कीपुर विधानसभा सीट के उपचुनाव में भी अच्छा प्रदर्शन रहा. मिल्कीपुर विधानसभा सीट के उपचुनाव में बीजेपी के भानुचंद्र पासवान ने 61710 के बंपर वोटो के अंतर के साथ समाजवादी पार्टी के अजीत प्रसाद को चुनाव हराया है.

लेकिन दिल्ली से 2400 किमी दूर हुए एक चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की विरोधी पार्टी के नेता को जीत हासिल हुई है. तमिलनाडु की सत्तारूढ़ डीएमके ने मुख्यमंत्री एम के स्टालिन के नेतृत्व में ये जीत मिली है. मुख्य विपक्षी दल अन्नाद्रमुक और भाजपा के बहिष्कार के बीच इरोड (पूर्व) विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में चंदिराकुमार वी.सी. को शानदार जीत मिली है. इन्हें कुल 115709 वोट मिले हैं. दिल्ली और इरोड की दूरी 2400 किमी है.

किस पार्टी के नेता को हराया चुनाव?

2016 में दिवंगत विजयकांत की डीएमके से अलग हुए डीएमके के वी सी चंद्रकुमार ने एनटीके की एम के सीतालक्ष्मी को 91,558 मतों के बड़े अंतर से हराया है. जीत का अंतर 2023 के उपचुनावों में कांग्रेस के ई वी के एस एलंगोवन और उनके एआईएडीएमके प्रतिद्वंद्वी के एस थेन्नारासु के बीच मतों के अंतर से लगभग 24,000 वोट ज्यादा था. हालांकि वह जमानत राशि खो बैठीं. सीतालक्ष्मी को 23,810 वोट मिले, जो एनटीके के लिए काफी अच्छा माना जा रहा है.

इसके पीछे वजह है ये है कि 2023 के उपचुनाव में इनका वोट प्रतिशत 10 प्रतिशत से भी कम था. दिलचस्प बात यह है कि उपचुनाव में 6,079 मतदाताओं ने उपरोक्त में से नोटा का ऑप्शन चुना था.

यह दूसरी बार है जब इरोड (पूर्व) में दो साल में उपचुनाव का हुए हैं. 2023 में, कांग्रेस के मौजूदा थिरुमहान एवरा की मौत के कारण उनके पिता ई वी के एस एलंगोवन का चुनाव हुआ. उनका दिसंबर 2024 में निधन हो गया. चूंकि डीएमके ने उपचुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की थी, इसलिए कांग्रेस ने सीट छोड़ दी.

दिल्ली चुनाव में महिला उम्मीदवारों का कैसा रहा प्रदर्शन, जानें

दिल्ली चुनाव उलटफेर भरे परिणाम के साथ खत्म हो गया. भारतीय जनता पार्टी ने 27 साल के सूखे को खत्म करते हुए सत्ता पर कब्जा जमा लिया है. चुनाव में कई अप्रत्याशित परिणाम भी आए जिनका असर लंबे समय तक दिल्ली की राजनीति में दिख सकता है. 2025 के चुनाव में दिल्ली में रिकॉर्ड संख्या में महिला प्रत्याशियों ने अपनी किस्मत आजमाई थी, लेकिन जीत के मामले में उसकी किस्मत बहुत खास रही. चुनाव में खुद मुख्यमंत्री आतिशी को कालकाजी सीट से लगातार उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ रहा था, लेकिन अंत में उन्हें जीत मिली.

केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली में अब तक 3 महिला मुख्यमंत्री रह चुकी हैं, लेकिन जहां तक महिलाओं के प्रतिनिधित्व की बात है तो जमीनी हकीकत इसके उलट है. दिल्ली चुनाव में 70 विधानसभा सीटों पर 699 प्रत्याशियों ने अपनी किस्मत आजमाई थी, जिसमें महज 14 फीसदी उम्मीदवार महिलाएं थीं. दिल्ली में 96 महिलाओं ने अपनी दावेदारी पेश की थी. लेकिन सीएम आतिशी समेत महज 5 महिलाओं को ही जीत नसीब हो सकी.

AAP-कांग्रेस की सबसे अधिक महिला प्रत्याशी

दिल्ली के पूर्ण विधानसभा बनने के बाद इस चुनाव में सबसे अधिक महिला प्रत्याशियों ने अपनी किस्मत आजमाई थी. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने 8 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा, तो आम आदमी पार्टी (AAP) और कांग्रेस दोनों ने 9-9 महिलाओं को मौका दिया था.

AAP और कांग्रेस की तुलना में बीजेपी ने कम महिला प्रत्याशियों को टिकट दिया था. लेकिन सबसे अधिक जीत (4 सीट) उसी के खाते में आई. बीजेपी की ओर से 4 महिला तो AAP की ओर से एक महिला प्रत्याशी को जीत मिली है.

आतिशी-अरविंद के खिलाफ कई महिला प्रत्याशी

मौजूदा मुख्यमंत्री आतिशी ने कालकाजी सीट से कड़े मुकाबले में 3,521 मतों के अंतर से जीत हासिल की. यहां से 4 महिला प्रत्याशी मैदान में थीं. कांग्रेस की अलका लांबा, भारतीय राष्ट्रवादी पार्टी की तान्या सिंह और भीम सेना की संघमित्रा ने भी अपनी किस्मत आजमाई थी, लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिली. इसके अलावा चुनाव जीतने वाली अन्य 4 महिला प्रत्याशी बीजेपी की प्रत्याशी थीं. कांग्रेस का तो चुनाव में खाता तक नहीं खुला.

आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल नई दिल्ली सीट से विधायक चुने जाते रहे हैं. वह इस बार भी इस सीट पर मैदान में उतरे थे, उनके खिलाफ सबसे अधिक 23 प्रत्याशी मैदान में थे जिसमें 4 महिला प्रत्याशी भी शामिल थीं. अनुराधा राणा, अनिता, डॉक्टर अभिलाषा और भावना निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरीं लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा. इन 4 महिलाओं को कुल मिले वोटों को जोड़ दिया जाए तो इन्हें महज 169 वोट ही मिल सके थे. इन दोनों ही हाई प्रोफाइल सीटों पर 8 महिलाएं मैदान में उतरी थीं.

वजीरपुर सीट पर शीला को मिले महज 63 वोट

वजीरपुर सीट पर भी 3 महिला प्रत्याशियों ने अपनी किस्मत आजमाई थी, जिसमें महिला को ही जीत मिली. बीजेपी की पूनम शर्मा ने AAP के राजेश गुप्ता को 11 हजार से अधिक वोटों से हराया. कांग्रेस की रागिनी नायक तीसरे नंबर पर रहीं. गरीब एकता पार्टी की शीला देवी को महज 63 वोट मिले और सबसे नीचे रहीं.

इसी तरह ओखला से कांग्रेस की प्रत्याशी अरीबा खान को 12739 वोट मिले और वह चौथे स्थान पर रहीं. अरीबा कांग्रेस के पूर्व विधायक आसिफ मोहम्मद खान की बेटी हैं.

दिल्ली की 70 सदस्यीय विधानसभा में इस बार महज 5 महिलाएं ही पहुंच सकी हैं. यहां के सियासी इतिहास पर नजर डालें तो पिछले 3 दशकों में दिल्ली विधानसभा में थोड़ा बहुत उतार-चढ़ाव आया जरूर लेकिन महिलाओं का प्रतिनिधित्व लगातार कम ही रहा है. 1993 से लेकर अब तक हुए 8 चुनावों में महज 2 बार (1998 और 2020) ही विधानसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व दहाई के आंकड़े को पार कर सका है.

1998 में मिली थी सबसे अधिक जीत

साल 1993 में, सिर्फ 3 महिलाएं विधानसभा के लिए चुनी गई थीं, जो विधानसभा का महज 4.3 फीसदी हिस्सा थीं. जबकि दिल्ली के इतिहास में साल 1998 सबसे अच्छा रहा क्योंकि इस चुनाव में सबसे अधिक 9 महिला प्रत्याशियों को जीत नसीब हुई थी. जो कुल सीटों का 12.9 फीसदी हिस्सा थीं. फिर दिल्ली की महिलाएं इस नंबर के करीब कभी नहीं आ सकीं.

आगे के चुनावों में महिलाएं इस संख्या को कभी छू भी नहीं सकीं. 2003 के चुनाव में 7 महिलाएं चुनी गईं, जबकि 2008 और 2013 में इस संख्या में तेजी से कमी आई और महज 3 ही रह गई. हालांकि 2015 के चुनाव में इस मामले में मामूली सुधार हुआ, और छह महिलाएं जीत हासिल करने में कामयाब रहीं.

1998 के बाद 2020 में बेस्ट प्रदर्शन

दिल्ली में हुए 2020 के चुनाव में इस संख्या में थोड़ा सा बदलाव हुआ और 8 महिला प्रत्याशी चुनाव जीतने में कामयाब रहीं, और यह कुल प्रतिनिधित्व का 11.4 फीसदी हिस्सा था. अब 2025 के चुनाव में यह आंकड़ा फिर सिमट गया. महज 5 महिला प्रत्याशी ही चुनाव जीत सकीं. विधानसभा में यह संख्या महज 7.1 फीसदी ही रहा. यह हाल तब है जब दिल्ली की कमान एक महिला के हाथों में थीं.

दिल्ली देश का अकेला ऐसा राज्य या केंद्र शासित प्रदेश है जिसने रिकॉर्ड 3 महिला मुख्यमंत्री दिए. 1998 में बीजेपी की सुषमा स्वराज दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं. फिर कांग्रेस के चुनाव जीतने के बाद शीला दीक्षित 1998 में मुख्यमंत्री बनीं. वह लगातार 3 कार्यकाल यानी 15 साल तक मुख्यमंत्री बनीं रहीं.

मिल्कीपुर में सीएम योगी की रणनीति हुई हिट, ये फैक्टर जिसकी वजह से जीते BJP उम्मीदवार

लोकसभा चुनाव में अयोध्या की हार बीजेपी कभी पचा नही पाई थी. हार का ठीकरा सीएम योगी पर फोड़ा गया और पार्टी के दामन पर एक धब्बा लग गया था. मिल्कीपुर की साठ हजार से ज्यादा वोटों की जीत ने न सिर्फ उस धब्बे को धोया बल्कि सीएम योगी के नेतृत्व को और मजबूत भी किया. बता दें कि मिल्कीपुर विधानसभा उप चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी चंद्रभानु पासवान की ऐतिहासिक जीत की है. 61540 वोटों से बीजेपी प्रत्याशी चंद्रभानु पासवान ने दर्ज करते हुए सपा उम्मीदवार अजीत प्रसाद को पराजित किया.

मिल्कीपुर की सीट बीजेपी से ज्यादा सीएम योगी के लिए प्रतिष्ठा का विषय था. लिहाजा मोर्चा सीएम ने संभाला. सरकार और संगठन दोनों में संतुलन बनाते हुए सीएम ने ना सिर्फ बढ़िया शॉट खेला, बल्कि सपा के पीडीए फॉर्मूले और सांसद अवधेश प्रसाद के रणनीति की धज्जियां उड़ा दीं.

सपा के पीडीए फॉर्मूले पर सीएम योगी का स्ट्रेट ड्राइव

लोकसभा चुनाव में पीडीए फॉर्मूले ने बीजेपी का खासा नुकसान किया था. पासी समाज के अवधेश प्रसाद ने पिछड़ों का एकमुश्त वोट हासिल किया था. अयोध्या के वरिष्ठ पत्रकार त्रियुग नारायण तिवारी कहते हैं कि सुरक्षित सीट से अवधेश प्रसाद का रिकॉर्ड जबरदस्त रहा है. वो नौ बार यहां से चुनाव जीते. इस बात को सीएम योगी समझते थे. उन्होंने चंद्रभानु पासवान को उम्मीदवार बनाने की रणनीति बनाई, जिसे पार्टी ने मान लिया.

सीएम ने इसके साथ साथ बीजेपी के पिछड़े नेताओं और सरकार में पिछड़े जाति के मंत्रियों को मिल्कीपुर में उतार दिया. केशव मौर्या को पिछड़ों को पार्टी से जोड़ने की जिम्मेदारी दी गई. सपा के जातीय समीकरण को स्ट्रेट ड्राइव खेलकर उन्हीं के भाषा में जवाब देकर पिछड़ों में बीजेपी के प्रति जो दृष्टिकोण बदल रहा था. उसे वापस पार्टी से जोड़ने में कामयाबी हासिल की.

नाराज ब्राह्मणों-मतदाताओं को मनाने के लिए योगी का कवर ड्राइव

यूपी में लोकसभा चुनाव के परिणाम ये बता रहे थे कि मतदाता नाराज हैं. खास तौर पर साधु-संत और ब्राह्मण मतदाता. इनको मनाने के लिए सीएम योगी ने संतों से मुलाकात की और उनकी समस्याओं को समझने का प्रयास किया. अयोध्या में विकास कार्यों की वजह से जिनके मकान तोड़े गए या जिनको उचित मुआवजा नहीं मिला था, जिसकी वजह से वो नाराज थे. उनकी नाराजगी दूर करने की कोशिश हुई. बीजेपी के बिखरे वोट बैंक को सीएम ने फिर संवारा. महाकुंभ के आयोजन से भी संत समाज और ब्राह्मण मतदाता खासा उत्साहित दिखा. ये भी एक बड़ी वजह रही बीजेपी के जीतने की.

सपा के परिवारवाद पर सीएम योगी का हुक शॉट

अयोध्या से अवधेश प्रसाद सांसद और मिल्कीपुर से उनके बेटे अजीत प्रसाद विधायक बनने के लिए सपा ने उम्मीदवार बनाया था. इसको सीएम योगी ने परिवारवाद के उदाहरण के तौर पर ऐसा पेश किया कि सपा के इसकी कोई काट नही थी. सीएम मिल्कीपुर की जनता को ये समझाने में सफल रहे कि अवधेश प्रसाद अयोध्या को अखिलेश यादव की मदद से अपने लिए सैफई बनाना चाहते हैं. परिवारवाद के इस आरोप पर न तो सपा और न अवधेश प्रसाद कोई संतोषजनक जवाब दे पाएं. नतीजा ये हुआ कि अजीत प्रसाद अपना बूथ तक हार गए. अजीत प्रसाद को उम्मीदवार बनाकर सपा ने बाउंसर मारने का प्रयास किया था. इसपर सीएम योगी का हुक शॉट देखने लायक थाय

सीएम योगी का हेलीकाप्टर शॉट से खाए मात

अवधेश प्रसाद को आगे करना और उनको अयोध्या का राजा बताना सपा को भारी पड़ गया. समाजवादी पार्टी ने अयोध्या की जीत को बड़ा बनाने की कोशिश में अवधेश प्रसाद को आगे कर पीडीए फॉर्मूले की जीत और बीजेपी के हिंदुत्व पर सपा के जातीय समीकरण की श्रेष्ठता को स्थापित करने की कोशिश की. लेकिन इन दोनों नरेटिव पर सीएम योगी का हेलीकाप्टर शॉट भारी पड़ गया. सीएम ने अवधेश प्रसाद को राजा बताने की सपा की रणनीति को फेल कर दिया.

लगातार मिल्कीपुर का दौरा कर और अपने सभी मंत्रियों को उतारकर सीएम ने ये संदेश दिया कि लोकतंत्र में राजा का अस्तित्व स्वीकार्य नही है. अयोध्या के राजा सिर्फ प्रभु राम हैं और बाकी सभी उनके सेवक. मंत्रियों और बड़े नेताओं के जरिए सीएम ने ये संदेश दिया कि मिल्कीपुर की जनता सर्वोपरि है और जो भी उनकी शिकायतें हैं वो दूर की जाएंगी.हालांकि सांसद अवधेश प्रसाद ने स्थिति को संभालने के लिए मिल्कीपुर में हुए रेप एंड मर्डर केस को लेकर रोने तक की कोशिश किए, लेकिन तब तक सीएम का हेलीकाप्टर शॉट काम कर चुका था.

सपा-कांग्रेस गठबंधन पर सीएम योगी का स्क्वायर कट

उपचुनाव में सपा-कांग्रेस में समझौते का ना होना और अखिलेश यादव का दिल्ली के चुनाव में केजरीवाल के लिए वोट मांगना भी सपा उम्मीदवार अजीत प्रसाद को महंगा पड़ गया. सीएम योगी ने इसे अपने सहयोगी दलों के नेताओं के जरिए खूब भुनाया. ओमप्रकाश राजभर लगातार ये कहते नजर आएं कि सपा किसी के साथ सहयोग कर ही नहीं सकती.

इसका असर ये हुआ कि कांग्रेस के मतदाता अजीत प्रसाद से दूरी बना लिए, जबकि सपा के वोटरों में इस बात को लेकर निराशा दिखी कि अखिलेश मिल्कीपुर को जो समय देना चाहिए वो दिल्ली को दे रहे हैं. अखिलेश यादव के मिल्कीपुर को लेकर संजीदा होने पर ही प्रश्नचिन्ह लग गया! जबकि दूसरी तरफ, सीएम नाराज स्थानीय नेताओं से मुलाकात कर रहे थे और उनकी नाराजगी दूर करने की कोशिश में लगे थे. खब्बू तिवारी जैसे नेता से वो तीन बार मिले.

सीएम योगी के इन पांच शॉट्स का जवाब सपा के पास नहीं था. वो इस कोशिश में थे कि कब सीएम ग़लत शॉट खेलेंगे और कैच दे बैठेंगे जबकि सीएम के शॉट्स एक के बाद एक बॉउंड्री पार करते गया और बीजेपी के चंद्रभानु पासवान चुनाव जीत गए.

यमुना मैया की जय… जीत के बाद बीजेपी दफ्तर से बोले पीएम मोदी- दिल्ली अब आपदा मुक्त

दिल्ली विधानसभा चुनाव में विजय पताका फहराने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बीजेपी मुख्यालय पहुंचे हुए थे. जहां, कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने यमुना मैया की जय से अपना संबोधन शुरू किया. पीएम ने कहा कि आज दिल्ली में दिल्ली के लोगों में एक उत्साह भी है और एक सुकून भी है. मैं दिल्ली के हर परिवार को मोदी की गारंटी पर भरोसा करने के लिए दिल्लीवासियों को सिर झुकाकर नमन करता हूं. मैं दिल्ली वासियों का आभार व्यक्त करता हूं. साथियों दिल्ली ने दिल खोलकर प्यार दिया. मैं दिल्ली वालों को फिर से विश्वास दिलाता हूं कि हम आपके प्यार को विकास के रूप में लौटाएंगे. दिल्ली के लोगों का ये प्यार, विश्वास हम सभी पर एक कर्ज है. इसे अब दिल्ली की डबल इंजन सरकार, दिल्ली का तेजी से विकास करके चुकाएगी.

पीएम मोदी ने कहा कि आज की ये जीत ऐतिहासिक विजय है. ये सामान्य विजय नहीं है. दिल्ली के लोगों ने आपदा को बाहर कर दिया है. एक दशक की आपदा से दिल्ली मुक्त हुई है. साथियों आज आडंबर, अराजकता, अहंकार और दिल्ली पर छाई आपदा की हार हुई है. इस नतीजे ने बीजेपी के कार्यकर्ताओं की दिन रात की मेहनत और उनका परिश्रम विजय को चार चांद लगा देता है. आप सभी कार्यकर्ता इस विजय के हकदार हैं. मैं बीजेपी के प्रत्येक कार्यकर्ताओं को इस विजय की बहुत-बहुत बधाई देता हूं.

पीएम बोले- यमुना जी हमारी आस्था का केंद्र हैं

यमुना जी हमारी आस्था का केंद्र हैं. हम लोग सदा मंगल करने वाली यमुना देवी को नमस्कार करते हैं. लोग यमुना जी की पीड़ा देखकर कितना आहत होते रहे हैं, लेकिन दिल्ली की आपदा ने इन आस्था का अपमान किया है. दिल्ली की आपदा ने लोगों की भावनाओं को पैरों तले कुचल दिया है. हम यमुना जी को दिल्ली शहर की पहचान बनाएंगे. मैं ये भी जानता हूं कि ये बहुत कठिन है और यह काम बहुत लंबे समय का है, लेकिन अगर संकल्प मजबूत है तो काम होकर रहेगा. हम इसके लिए हर प्रयास करेंगे और पूरे सेवा भाव से काम करेंगे. ये आपदा वाले ये कहकर आए थे कि हम राजनीति बदल डालेंगे, लेकिन ये कट्टर बेईमान निकले.

दिल्ली की असली मालिक सिर्फ यहां की जनता है, बोले पीएम

अपने संबोधन में पीएम मोदी ने आगे कहा कि आज दिल्ली की जनता ने साफ कर दिया है कि दिल्ली की असली मालिक सिर्फ और सिर्फ दिल्ली की जनता है. इनको दिल्ली का मालिक होने का घमंड था उनका सत्य से सामना भी हो गया. दिल्ली के जनादेश से ये भी स्पष्ट है कि राजनीति में झूठ और फरेब के लिए कोई जगह नहीं है. जनता ने शॉर्ट कट वाली राजनीति का शार्ट सर्किट कर दिया. आजादी के बाद ये पहली बार हुआ है कि दिल्ली-एनसीआर के हर प्रदेश में बीजेपी का शासन आया है. आजादी के बाद ये पहली बार हुआ है. ये बहुत ही सुखद सहयोग है. इस एक संयोग से दिल्ली-एनसीआर में तरक्की के अनगिनत रास्ते खुलने जा रहे हैं. आने वाले समय में इस पूरे क्षेत्र में मोबिलिटी और इंफ्रास्ट्रक्चर पर ढेर सारे काम होंगे. पहले के समय की सरकारों ने शहरी करण को चुनौती समझा था. उन लोगों ने शहरों को सिर्फ पर्सनल वेल्थ कमाने का जरिया बना दिया.

पूर्वांचल के लोगों का विशेष आभार

पीएम ने आगे कहा कि मैं पूर्वांचल के लोगों का विशेष रूप से आभार व्यक्त करता हूं. सबका साथ और सबका विकास मेरी गारंटी है. मैं भी पूर्वांचल से सांसद हूं जिस पर मुझे गर्व है. अयोध्या के मिल्कीपुर में भी बीजेपी को भारी जीत मिली है. हमारे देश तुष्टीकरण के साथ नहीं बल्कि संतुष्टिकरण के साथ खड़ा है. इस बार दिल्ली में आ रही रुकावट को आपने दूर कर दिया है. दिल्ली ने पहले का जमाना देखा है. गवर्नेंस नौटंकी का मंच नहीं है. ये प्रचार का मंच नहीं है. गवर्नेंस प्रपंच का मंच नहीं है. अब जनता ने डबल इंजन की सरकार को चुनाव है. हम पूरी गंभीरता से धरातल पर रहकर काम करेंगे और लोगों की सेवा में दिन रात एक कर देंगे.

पूरा देश जानता है कि जहां एनडीए है वहां सुशासन है, विश्वास है और विकास है. इसलिए बीजेपी को लगातार जीत मिल रही है. लोग हमारी सरकारों को दूसरी बार, तीसरी बार चुन रहे हैं. इसमें कई राज्य शामिल हैं. कई राज्यों में हमें दोबारा सत्ता मिली है. यहां दिल्ली के बगल में यूपी है, एक जमाने में उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था कितनी बड़ी चुनौती थी और सबसे बड़ा चैलेंज नारी शक्ति के लिए होता था. यूपी में दिमागी बुखार का कहर बरपाया था, लेकिन हमने इसे खत्म करने के लिए संकल्पबद्ध काम किया. महाराष्ट्र में सूखे की वजह से हमारे अन्नदाताओं पर बड़ा संकट आता था. इसके लिए हमने अभियान चलाकर किसानों तक पानी पहुंचाया.

‘हमारी सरकार ने हरियाणा में बिना खर्ची और पर्ची सरकारी नौकरी दे रही’

उन्होंने आगे कहा कि हरियाणा में बिना खर्ची और पर्ची के सरकारी नौकरी नहीं मिलती थी, लेकिन आज बीजेपी वहां सुशासन का नया मॉडल स्थापित कर रही है. एक जमाना था जब गुजरात में पानी का इतना बड़ा संकट था, खेती किसानी मुश्किल थी, लेकिन आज वही गुजरात एग्रीकल्चर पावर हाउस बनकर उभरा है. नीतीश जी के पहले बिहार की क्या स्थिति थी सभी जानते हैं. एनडीए यानी विकास की गारंटी है. एनडीए यानी सुशासन की गारंटी. सुशासन का लाभ गरीब को भी होता है और मिडिल क्लास को भी होता है. इस बार दिल्ली में गरीब झुग्गी में रहने वाले मेरे भाई बहन, मिडिल क्लास ने बीजेपी को जबरदस्त समर्थन दिया है.

दिल्ली की जीत पर क्या बोले जेपी नड्डा?

पीएम के संबोधन से पहले बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि दिल्ली में जीत को लेकर मैं तमाम कार्यकर्ताओं जो कि घर-घर गए, पार्टी के लिए मेहनत की, दिन रात आप लगे रहे, ऐसे हमारे जुझारू कार्यकर्ताओं को मैं पार्टी की ओर से बहुत-बहुत बधाई और साधुवाद देता हूं. यह चुनाव और इससे पहले का लोकसभा का चुनाव, दोनों चुनाव में दिल्ली की जनता स्पष्ट बहुमत दिया. इस बार के विधानसभा में आपने 48 सीटों पर विजय दिलाई जो कि इस बात का साफ संदेश है कि दिल्ली के दिल के मोदी बसता है. पीएम ने पिछले 10 सालों में भारत की राजनीतिक संस्कृति में जो परिवर्तन लाए हैं उसे इस चुनाव के नतीजे मुहर लगाते हैं.

कौन बनेगा दिल्ली का अगला मुख्यमंत्री? CM पद की रेस में BJP के ये 5 नेता सबसे आगे

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) 27 साल के लंबे इंतजार के बाद दिल्ली में सत्ता में वापसी की और आम आदमी पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा है. दिल्ली की सत्ता में भाजपा की वापसी हो गयी है, लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा ने अभी तक अपने सीएम उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है और पीएम मोदी के नेतृत्व में प्रचार करने पर ध्यान केंद्रित किया है.

लेकिन दिल्ली चुनाव में जीत के बाद अब यह सवाल अहम हो गया है कि बीजेपी का सीएम चेहरा कौन हो सकता है? दिल्ली बीजेपी प्रमुख सचदेवा से जब शनिवार को सीएम चेहरे के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि यह फैसला पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व करेगा.

बीजेपी में सीएम पद के कई दावेदार हैं. बीजेपी जातीय और क्षेत्रीय संतुलन साधने का प्रयास करेगी. संतुलन साधने के लिए बीजेपी ने कई राज्यों में डिप्टी सीएम भी बनाए हैं. क्या दिल्ली में भी भाजपा ऐसा करेगी? यह सवाल अब उठ रहा है.

दिल्ली विधानसभा चुनाव में जीत के बाद पार्टी में सीएम पद के कई दावेदार माने जा रहे हैं. पार्टी के आला सूत्रों का कहना कि दिल्ली में मुख्यमंत्री पद की रेस में प्रवेश वर्मा, सतीश उपाध्याय, आशीष सूद, जितेंद्र महाजन और विजेंद्र गुप्ता आगे चल रहे हैं.

दिल्ली के सीएम पद की दौड़ में शामिल हैं ये नेता

प्रवेश वर्मा: दिल्ली में सीएम पद की दौड़ में शामिल होने वालों में सबसे पहला नाम प्रवेश वर्मा का है. पूर्व सांसद प्रवेश साहिब सिंह वर्मा नई दिल्ली सीट पर आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल को हराने के बाद भाजपा के लिए एक प्रमुख व्यक्ति बन गए. दिल्ली के पूर्व सीएम साहिब सिंह वर्मा के बेटे वर्मा ने इस जीत के साथ “विशालकाय हत्यारे” का खिताब हासिल किया है, क्योंकि वह केजरीवाल के गढ़ में सेंध लगाने में कामयाब रहे.

वह Giant Killer और जाट हैं. उन्होंने बाहरी दिल्ली के होने के बावजूद नई दिल्ली में दम दिखाया है. जाट सीएम बनाने से ग्रामीण दिल्ली, पश्चिम यूपी, हरियाणा और राजस्थान के जाट वोटरों तक मैसेज जाएगा. जीत के बाद वह केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से भी मिले हैं.

सतीश उपाध्याय: दिल्ली में सीएम पद की रेस में शामिल दूसरे बीजेपी नेता सतीश उपाध्याय हैं. वो बीजेपी का ब्राह्मण चेहरा हैं. वह बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं और दिल्ली युवा मोर्चा के अध्यक्ष भी रहे हैं. वह एनडीएमसी के वाइस चेयरमैन भी रह चुके हैं. इस लिहाज से उनके पास प्रशासनिक अनुभव भी हैं. उन्होंने संगठन में कई दायित्व संभाले थे. वह मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान मध्य प्रदेश के सह प्रभारी रह चुके हैं और आरएसएस के करीबी माने जाते हैं.

आशीष सूद: दिल्ली के सीएम पद की रेस में भाजपा नेता आशीष सूद शामिल माने जा रहे हैं. वो बीजेपी के पंजाबी चेहरा हैं. वह पार्षद रहे हैं. दिल्ली बीजेपी के महासचिव रह चुके हैं. अभी गोवा के प्रभारी और जम्मू कश्मीर के सह प्रभारी हैं. जम्मू कश्मी विधानसभा चुनाव में उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी. उनके केंद्रीय नेताओं के साथ करीबी संबंध है. वह डीयू के भी अध्यक्ष रह चुके हैं.

जितेंद्र महाजन: रोहतास नगर विधानसभा सीट से बीजेपी उम्मीदवार जितेंद्र महाजन ने जीत हासिल की है. यह उत्तर पूर्वी दिल्ली लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र का हिस्सा है. जीतेंद्र महाजन ने आप की सरिता सिंह को 27902 मतोंसे पराजित किया है. 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के जीतेंद्र महाजन ने 73,873 वोटों के साथ सीट जीती थी. उनकी निकटतम प्रतिद्वंद्वी आम आदमी पार्टी (आप) की सरिता सिंह को 60,632 वोट मिले, जबकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विपिन शर्मा को 5,572 वोट मिले. वो वैश्य समाज से आते हैं और आरएसएस के काफी करीबी हैं.

विजेंद्र गुप्ता: दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की रेस में विजेंद्र गुप्ता भी शामिल माने जा रहे हैं. दिल्ली विधानसभा में विपक्ष के नेता और भाजपा उम्मीदवार विजेंद्र गुप्ता ने रोहिणी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीता है. भाजपा उम्मीदवार ने 37816 वोटों के अंतर से जीत हासिल की, उन्हें कुल 70365 वोट मिले. आप उम्मीदवार प्रदीप मित्तल को 32549 वोट मिले, जबकि कांग्रेस के सुमेश गुप्ता को केवल 3765 वोट मिले. वह दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष रहे हैं. बीजेपी का वैश्य चेहरा हैं और आप की लहर की बावजूद पहले भी विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं

दिल्ली चुनाव परिणाम: कांग्रेस को हार में भी मिली जीत, जानें कैसे?

दिल्ली के सत्ता की तस्वीर अब पूरी तरह साफ हो चुकी है. बीजेपी प्रचंड बहुमत के साथ दिल्ली की सत्ता में वापसी करने में कामयाब रही तो आम आदमी पार्टी का सफाया हो गया है. कांग्रेस एक बार फिर से दिल्ली की सियासत में अपना खाता नहीं खोल सकी है. इस तरह कांग्रेस को चौथी बार दिल्ली में करारी मात खानी पड़ी है. इसके बाद भी कांग्रेस आखिर क्यों खुश है और केजरीवाल की हार में अपने लिए क्यों गुड न्यूज मान रही है.

दिल्ली में 15 साल तक सत्ता पर काबिज रहने वाली कांग्रेस तीसरी बार एक भी सीट नहीं जी सकी है. कांग्रेस के ज्यादातर उम्मीदवार अपनी जमानत तक नहीं बचा सके हैं. दिल्ली में हार के बाद भी कांग्रेस बाजीगर बनकर उभर रही है, इस बात को अलका लांबा से लेकर संदीप दीक्षित खुले तौर पर इजहार कर रहे हैं. सवाल ये उठता है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी की हार में कांग्रेस क्यों अपनी जीत देख रही है.

कांग्रेस के चलते क्या चुनाव हारी AAP

कांग्रेस के चलते आम आदमी पार्टी के दिग्गज नेताओं को चुनावी शिकस्त खानी पड़ी है. अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया को अपनी सीट पर जितने वोटों से हार मिली है, उससे ज्यादा वोट कांग्रेस के उम्मीदवार पाने में सफल रहे. ये सिर्फ दो सीटों पर नहीं हुआ है बल्कि एक दर्जन से भी भी ज्यादा सीटों पर AAP की हार की वजह कांग्रेस बनी है. कांग्रेस और आम आदमी पार्टी मिलकर लड़ती तो दिल्ली की तस्वीर दूसरी होती. आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच सिर्फ दो फीसदी वोटों का ही अंतर है जबकि कांग्रेस का वोट छह फीसदी से भी ज्यादा है.

AAP की हार कांग्रेस के लिए गुड न्यूज

दिल्ली में आम आदमी पार्टी की हार में कांग्रेस अपनी जीत देख रही है. दिल्ली में कांग्रेस के वोट प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है. 2020 में कांग्रेस को साढ़े चार फीसदी वोट मिले थे, लेकिन 2025 में उसे 6.38 फीसदी वोट मिले. दिल्ली में कांग्रेस का वोट दो फीसदी बढ़ा है, इसी दो फीसदी के अंतर से आम आदमी पार्टी कई सीटें गंवा दी है. दिल्ली में कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर आम आदमी पार्टी ने 2013 में अपनी जड़े जमाई थी और 11 साल तक राज किया. कांग्रेस की जमीन पर आम आदमी पार्टी सिर्फ दिल्ली ही नहीं बल्कि पंजाब और गुजरात में खड़ी हुई.

आम आदमी पार्टी के सियासी उभार के बाद से कांग्रेस दिल्ली की सियासत में कमजोर पड़ती गई, लेकिन केजरीवाल के सत्ता से बाहर होने के बाद कांग्रेस को दोबारा से अपने उभरने की संभावना जगा दी है. कांग्रेस नेताओं को यह लग रहा है कि विपक्ष में रहते हुए आम आदमी पार्टी कमजोर होगी, जिसका सीधा फायदा आने वाले समय में उसे होगा. दिल्ली में कांग्रेस का खिसका हुआ दलित और मुस्लिम वोट आम आदमी पार्टी के कमजोर होने के बाद फिर से वापसी करेंगे. मुस्लिम को पहली च्वाइस कांग्रेस रही है.

कांग्रेस की बार्गेनिंग पावर बढ़ेगी

दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी एक साथ मिलकर उतरती तो फिर बीजेपी को सत्ता में वापसी करना मुश्किल हो जाता. इसकी वजह यह है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी को 43.58 फीसदी वोट मिले हैं जबकि बीजेपी को 45.95 फीसदी वोट मिले हैं. कांग्रेस को 6.38 फीसदी वोट मिले हैं. कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के मिले वोट शेयर को अगर जोड़ देते हैं को फिर यह आंकड़ा 49.96 फीसदी वोट हो रहा है. इस तरह बीजेपी से करीब 4 फीसदी वोट आम आदमी पार्टी का ज्यादा बन रहा, जिसके चलते सीटों पर भी असर पड़ता. इस तरह कांग्रेस से गठबंधन नहीं करना आम आदमी पार्टी को महंगा पड़ा है.

कांग्रेस को इसका लाभ अब बिहार, उत्तर प्रदेश सहित दूसरे राज्यों में चुनाव होगा, जहां पर कांग्रेस कमजोर है और क्षेत्रीय पार्टियों की सहारे चुनाव लड़ती है. कांग्रेस को हल्के में न ही यूपी में सपा लेगी और न बिहार में आरजेडी लेगी. कांग्रेस अच्छे से सीटों की बार्गेनिंग करके चुनाव लड़ेगी, क्योंकि दोनों ही राज्यों में क्षेत्रीय दलों को कांग्रेस के सहयोगी जरूरत है न की कांग्रेस को, जिस तरह दिल्ली में आम आदमी पार्टी को जरूरत है.

कांग्रेस को कैसे मिलेगा सियासी लाभ

आम आदमी पार्टी अपना सियासी विस्तार जिन-जिन राज्यों में किया है, उन राज्यों में कांग्रेस के वोट बैंक अपने साथ जोड़कर किया है. दिल्ली में AAP ने कांग्रेस की जमीन पर खड़ी हुई है तो पंजाब में कांग्रेस को सत्ता से बेदखल किया. इसके अलावा गुजरात और गोवा में कांग्रेस की जमीन आम आदमी पार्टी छीनी. हरियाणा में कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया. इस तरह कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी से दिल्ली में हराकर हिसाब बराबर किया है, जिसके केजरीवाल को राष्ट्रीय फलक पर पहचान बनाने की उम्मीदों पर झटका लगेगा.

अरविंद केजरीवाल अपनी सीट हार गए हैं तो उनके मजबूत सारे सिपहसालार भी अपनी-अपनी सीट गंवा दी है, जिसके चलते आम आदमी पार्टी के लिए आगे की सियासी डगर काफी कठिन होने वाली है. केजरीवाल की क्लीन इमेज वाली छवि को डंक लगा है. भ्रष्टाचार के दाग अब उनके दामन पर लगे चुके हैं. जमानत पर जेल से बाहर हैं. ऐसे में केजरीवाल, सिसोदिया जैसे कई आम आदमी पार्टी के नेता हैं, जिन पर कानूनी शिकंजा फिर से कस कसता है.

केजरीवाल पर शिकंजा कसता है तो आम आदमी पार्टी के लिए अपनी जड़े मजबूती से बनाए रखना मुश्किल हो जाएगा. इसके अलावा दिल्ली के विकास मॉडल को लेकर भी केजरीवाल देश भर में अपनी जड़ें जमाने में लगे हुए थे, दिल्ली के चुनावी हार से उसकी भी हवा निकल गई है. ऐसे में कांग्रेस को फिर से अपनी जड़े जमाने में लाभ मिल सकता है.

कौन हैं प्रवेश वर्मा? जिन्होंने नई दिल्ली में अरविंद केजरीवाल से जीत छीनी

दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आ गए हैं. चुनाव में राज्य की सत्ताधारी आम आदमी पार्टी की जमानत जब्त हो गई है. राज्य की 70 सीटों में बीजेपी 48 सीटों पर जीत दर्ज करती हुई नजर आ रही है. चुनाव में सबसे बड़ा नई दिल्ली विधानसभा सीट पर देखने को मिली है जहां, आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल को हार झेलनी पड़ी है. इस सीट से बीजेपी नेता प्रवेश वर्मा को जीत मिली है. चुनाव में वर्मा को 30088 वोट मिले हैं जबकि अरविंद केजरीवाल को 25999 वोट मिले. हार और जीत के बीच अंतर 4089 वोट का रहा है. नई दिल्ली की सीट पर केजरीवाल की हार उनके साथ-साथ पार्टी के लिए भी बड़ी हार मानी जा रही है क्योंकि वो पिछले तीन बार से इस सीट से जीत हासिल कर रहे थे.

कौन हैं प्रवेश वर्मा?

प्रवेश वर्मा का सियासी से पुराना नाता है. वो दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री रहे साहिब सिंह वर्मा के बेटे हैं. उनकी मां का नाम रामप्यारी वर्मा है. उनकी शादी स्वाति सिंह से हुई है. प्रवेश वर्मा एक बेटे और दो बेटियों के पिता हैं. बेटे और दोनों बेटियां फिलहाल पढ़ाई कर रही है. प्रवेश वर्मा की बात करें तो उनका जन्म 1977 में हुआ. उनकी शिक्षा दीक्षा भी दिल्ली में ही हुई है. आरके पुरम में स्थिति दिल्ली पब्लिक स्कूल उन्होंने स्कूलिंग की है. इसके बाद किरोड़ीमल कॉलेज से आर्ट में ग्रेजुएट भी हैं. वहीं, हायर एजुकेशन की बात करें तो प्रवेश वर्मा ने 1999 में स्कूल ऑफ मैनेजमेंट, कुतुब इंस्टीट्यूशनल एरिया से इंटरनेशनल बिजनेस सब्जेक्ट में एमबीए किया हुआ है.

पिता की जीत पर क्या बोलीं बेटियां?

पिता की जीत पर प्रवेश वर्मा की बेटियां त्रिशा और सानिधी ने कहा कि हम नई दिल्ली से लोगों को उनके समर्थन के लिए धन्यवाद देते हैं. दिल्ली के लोग झूठ बोलकर सरकार चलाने वाले व्यक्ति को दूसरा मौका देने की गलती कभी नहीं करेंगे. हम जानते थए कि हमारी जीत होगी. हम बस सही समय का इंतजार कर रहे थे. इस बार दिल्ली के लोगों ने झूठ को जीतने नहीं दिया.

प्रवेश वर्मा का सियासी सफर

प्रवेश वर्मा के सियासी करियर की बात करें तो उन्होंने साल 2013 में मुख्यधारा की राजनीति में कदम रखा. उस समय उन्होंने दिल्ली की महरौली विधानसभा सीट से बीजेपी के टिकट पर पहली बार चुनाव लड़ा था और कांग्रेस के सीनियर नेता रहे योगानंद शास्त्री को हराया था. इसके बाद पार्टी ने उन्हें 2014 के लोकसभा चुनाव में पश्चिमी दिल्ली सीट से मैदान में उतारा और इस चुनाव में भी प्रवेश वर्मा हाईकमान के उम्मीदों पर खरा उतरे. इसके बाद पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने इसी सीट से कांग्रेस के महाबल मिश्रा को 5 लाख से अधिक वोटों से मात देते हुए ऐतिहासिक जीत दर्ज की.

बीजेपी ने लोकसभा में नहीं उतारा, अब केजरीवाल की दी मात

बीजेपी ने 2024 में हुए लोकसभा चुनाव में प्रवेश वर्मा को मैदान में नहीं उतारा था क्योंकि उनके विधानसभा चुनाव लड़ने को लेकर चर्चा तेज हो गई थी. अब दिल्ली चुनाव में बीजेपी ने प्रवेश वर्मा को नई दिल्ली विधानसभा सीट से मैदान में उतारा. इस सीट पर एक तरह आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल थे तो दूसरी ओर कांग्रेस ने पूर्व सीएम शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित को टिकट दिया था. चुनाव में प्रवेश वर्मा और केजरीवाल के बीच कांटे की टक्कर रही और अंत में बीजेपी यह सीट निकालने में सफल रही. प्रवेश वर्मा 4 हजार से अधिक वोटों से जीत हासिल करने में सफल रहे.

केजरीवाल के खिलाफ मुखर आवाज बनकर उभरे थे प्रवेश वर्मा

दिल्ली की सियासत में पिछले कुछ समय से अगर अरविंद केजरीवाल के खिलाफ अगर कोई नेता मुखर आवाज बनकर उभरा तो वो प्रवेश वर्मा ही हैं. दिल्ली की राजनीति में प्रवेश वर्मा की छवि एक हिंदूवादी नेता के रूप में भी रही है. 2025 के दिल्ली चुनाव से पहले, प्रवेश वर्मा ने ‘केजरीवाल हटाओ, देश बचाओ’ अभियान शुरू किया था. वर्मा ने AAP सरकार की आलोचना करते हुए दावा किया था कि यह पार्टी अपनी प्राथमिक प्रतिबद्धताओं को पूरा नहीं कर रही है.

कितनी है प्रवेश वर्मा की संपत्ति?

प्रवेश वर्मा ने जब विधानसभा चुनाव के लिए पर्चा दाखिल किया था तो उन्होंने अपनी संपत्ति के बारे में बताया था. उनके नॉमिनेशन में दी गई जानकारी के अनुसार उनके पास कुल 95 करोड़ रुपए की संपत्ति है. इसमें करीब 77 करोड़ 89 लाख रुपए चल संपत्ति है. वहीं, पत्नी की चल संपत्ति 17 करोड़ 53 लाख रुपए बताया था. अचल संपत्ति की बात करें तो प्रवेश वर्मा के पास 11 करोड़ 25 लाख है और उनकी पत्नी के पास 6 करोड़ 91 लाख रुपए की अचल संपत्ति है. नामांकन में उन्होंने यह भी बताया है कि उन पर 62 करोड़ रुपए का कर्ज भी है.

AAP की हार के बाद सील किया गया दिल्ली सचिवालय, सभी फाइल सुरक्षित रखने का आदेश

दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे आ रहे हैं. कई सीटों पर हार जीत का फैसला हो गया है. इस चुनाव में आम आदमी पार्टी की बुरी हार हुई है. बीजेपी दिल्ली में 27 साल बाद सत्ता में वापसी करने जा रही है. इस बीच दिल्ली सचिवालय को सील कर दिया गया है. सरकार के जनरल एडमिनिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट ने एक नोटिस जारी कर कहा है कि जीएडी की परमिशन के बिना कोई भी फाइल, कंप्यूटर हार्डवेयर आदि सचिवालय परिसर से बाहर न जाए.

जीएडी ने कहा, यह आदेश सचिवालय ऑफिस और मंत्रिपरिषद के ऑफिस पर भी लागू होगा. दोनों कार्यालयों के प्रभारियों को भी इस आदेश का पालन करना होगा. इस आदेश पर दिल्ली में सियासी हलचल भी तेज हो गई है. बीजेपी का दावा है कि ये कदम सरकारी फाइल की सुरक्षा के लिए उठाया गया है. जबकि आम आदमी पार्टी के नेताओं का आरोप है कि सरकार बदलते ही बीजेपी सचिवालय से फाइल जब्त करने की कोशिश कर रही है.

प्रधानमंत्री ने देश को सुशासन का मॉडल दिया

दिल्ली में बीजेपी की जीत पर केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा, प्रधानमंत्री मोदी ने देश को सुशासन का एक मॉडल दिया है. दिल्ली के लोगों ने पिछले 10 साल में भ्रष्टाचार और अराजकता को देखा है. लोगों ने प्रधानमंत्री को जीत दिलाई है. अब दिल्ली के लोग विकास चाहते हैं, सुशासन चाहते हैं. डबल इंजन सरकार अहम भूमिका निभाएगी. आम आदमी पार्टी के सभी नेताओं, अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया ने दिल्ली की जनता के साथ जो धोखा किया था, उसका जवाब जनता ने दे दिया है.

वहीं, दिल्ली की राजौरी गार्डन सीट से भाजपा उम्मीदवार मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा, 27 सालों का बहुत बड़ा वनवास काटकर भाजपा दिल्ली में आई है. सब पार्टी तय करती है. पार्टी जिसे जो जिम्मेदारी देती है वह निभाता है. गांधीनगर सीट से भाजपा उम्मीदवार अरविंदर सिंह लवली ने कहा, यह जीत उस झूठ के खिलाफ है जो आम आदमी पार्टी दिल्ली के लोगों को परोस रही थी.

आप-दा से मुक्त हुई दिल्ली… BJP की जीत पर अमित शाह ने किया AAP पर तंज

दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की पराजय हुई और भाजपा की बड़ी जीत मिली है. दिल्ली में जीत के बाद भाजपा समर्थकों ने जश्न मनाना शुरू कर दिया है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दिल्ली में भाजपा की जीत पर पार्टी समर्थकों को बधाई दी है. उन्होंने एक्स पर ट्वीट कर लिखा कि दिल्ली के दिल में मोदी हैं.

उन्होंने कहा कि दिल्ली की जनता ने झूठ, धोखे और भ्रष्टाचार के शीशमहल को नेस्तनाबूत कर दिल्ली को आप-दा मुक्त करने का काम किया है.

उन्होंने कहा कि दिल्ली ने वादाखिलाफी करने वालों को ऐसा सबक सिखाया है, जो देशभर में जनता के साथ झूठे वादे करने वालों के लिए मिसाल बनेगा. यह दिल्ली में विकास और विश्वास के एक नए युग का आरंभ है.

दिल्ली में झूठ के शासन का अंत हुआ: अमित शाह

अमित शाह ने लिखा कि दिल्ली में झूठ के शासन का अंत हुआ है.यह अहंकार और अराजकता की हार है. यह मोदी की गारंटी और मोदी जी के विकास के विजन पर दिल्लीवासियों के विश्वास की जीत है.

उन्होंने कहा कि इस प्रचंड जनादेश के लिए दिल्ली की जनता का दिल से आभार। मोदी जी के नेतृत्व में भाजपा अपने सभी वादे पूरे कर दिल्ली को विश्व की नंबर 1 राजधानी बनाने के लिए संकल्पित है.