सेकुलर शब्द धर्महीनता का घोतक-मनीष पांडेय
अयोध्या । हिंदू महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता अधिवक्ता मनीष पांडेय ने संविधान दिवस के अवसर पर कहा कि आज संविधान दिवस है, 26 नवंबर 1949 को बनकर तैयार हुआ संविधान को 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया, सवाल यह उठता है कि इस संविधान के लागू होने की तिथि के 71 वर्ष बीत जाने के बाद भी क्या संविधान अपने सिद्धांतों पर खरा उतरा? क्या वह भारत की आत्मा को आत्मसात कर पाया? और क्या कहीं ऐसा तो नहीं है कि संविधान दिवस एक षड्यंत्र कारी राजनैतिक इच्छाओं का शिकार हो गया।
कहीं ईंट कहीं का रोड़ा भानुमति ने कुनबा जोड़ा यह कहावत संविधान पर पूरी तरह से चरितार्थ होती है और इसी का फायदा उठाकर ना सिर्फ और राजनैतिक दलों ने बल्कि न्यायपालिका ने भी समय-समय पर इसे अपने अनुसार तोड़ मरोड़ कर भरपूर इस्तेमाल किया विशेषकर राजनीतिक दलों द्वारा चीन के दबाव में कहीं ना कहीं न्यायपालिका ने भी संविधान को ताक पर रखते हुए अपने निर्णय इस देश की जनता पर थोपे, यह कैसी विडंबना है यह कैसा संविधान है जो आज तक इस देश को मकड़जाल की तरह लपेट चुके भ्रष्टाचार जातिवाद भाषावाद प्रांतवाद, और सामाजिक विखंडिताओ को समाप्त नहीं कर पाया, अधिवक्ता मनीष पांडेय ने संविधान दिवस पर अपने विचार रखते हुए आगे कहा कि इतिहास गवाह रहा है कि ना जाने कितने सैकड़ों मौकों पर राजनीतिक दलों द्वारा इसी संविधान का सहारा लेकर उसे तोड़ मरोड़ कर अपने अनुसार अपनी व्याख्या के अनुसार निर्णय अपने पक्ष में किए गए हैं संविधान पर ही चर्चा चल पड़ी है तो ऐसे में हमें बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के संविधान को नहीं भूलना चाहिए।
जिसमें संस्कृत धर्म विज्ञान संकाय में पढ़ाने एवं कर्मकांड कराने हेतु किसी हिंदू को ही रखनी की संस्तुति की गई है पर दुर्भाग्य से अपनी स्वार्थ पर राजनीति एवं वोट बैंक के चलते पंडित महामना मदन मोहन मालवीय की आत्मा को घायल करते हुए उनके द्वारा प्रदत्त संविधान कि एक तरह से होली ही जला दी गई अगर अपनी राष्ट्रीय संविधान की बात की जाए तो उसका उपयोग भी राजनीतिक दलों ने समय-समय पर अपने अपने अनुसार किया है, इसका प्रयोग किस तरह हुआ इसे समझने की आवश्यकता है डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी ने संविधान का लेखक माना जाता है वास्तव में वे प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे राजनीतिक दलों ने डॉक्टर अंबेडकर की आड़ लेकर और दलित वोट बैंक को साधने की फिराक में उन्हें संविधान का रचयिता बना दिया, और संविधान की मूल लेखक प्रेम बिहारी नारायण रायजादा को नेपथ्य में ढकेल दिया गया आज संविधान दलित आरक्षण की तो बात करता है किंतु सवर्ण आरक्षण पर मौन था? मौन है और शायद इस देश के स्वार्थी राजनीतिज्ञों की चलती रही तो हमेशा मौन ही रहेगा, जिस संविधान ने 10 वर्ष के अंदर से आरक्षण को समाप्त करने की बात कही थी उसे हमारे स्वार्थी राजनेताओं ने हर 10 वर्ष बढ़ाकर उसे जैसे स्थाई कर दिया है, 2 वर्ष 11 महीना 18 दिन में बने संविधान में विदेशी आत्मा का प्रभाव तो पूरे संविधान में दिखलाई पड़ता है पर भारतीय आत्मा का दर्शन इसमें कहीं नहीं होता है स्पष्ट कहूं तो पूरे संविधान पर विदेशी प्रभाव ज्यादा दिखाई देता है जबकि भारतीय प्रभाव इसमें पूरी तरह से नगण्य है, संविधान अपने आप में पूर्ण नहीं था।
इसका सबसे अच्छा उदाहरण यही है कि संविधान में अब तक 103 संशोधन होने के बावजूद भी इसे पूरी तरह से शुद्ध नहीं किया जा सका है बल्कि अपने स्वार्थ की वजह से इसे निरंतर अशुद्ध किया जाता रहा 1976 मैं 42 वें संविधान संशोधन मैं इसमें समाजवाद पंथनिरपेक्ष और अखंडता शब्द को जोड़ा गया था जिसमें सेकुलर शब्द अर्थात पंथनिरपेक्षता को लेकर आज तक विवाद है और जिसका समाधान किए जाने की परम आवश्यकता है, श्री पांडेय ने यह भी कहा है कि पंथनिरपेक्षता का अर्थ होता है पंथ से निरपेक्ष अर्थात पंथ से विरक्त अगर इसे अंग्रेजी में कहें तो सेकुलर कहा जाता है अंग्रेजी डिक्शनरी आॅक्सफोर्ड के अनुसार सेकुलर शब्द का अर्थ धर्म हीनता है क्या संविधान के माध्यम से भारत को एक धर्म हीन राष्ट्र के रूप में प्रतिपादित करने का यह षड्यंत्र मात्र तो नहीं है सवाल यह है कि क्या हमें एक ऐसे संविधान की आवश्यकता है जो हमें धर्म से विहीन या पंथ से निरपेक्ष दिखलाता हो, अधिवक्ता मनीष पांडेय ने यह भी कहा है कि सवाल यह भी उठता है कि क्या हमें आज एक ऐसे वैदिक सनातनी संविधान की आवश्यकता है जो भारतीय आत्मा, भारतीय संस्कृति, और सभ्यता के अनुरूप हो जो अंग्रेजों द्वारा प्रदत संविधान ना हो बल्कि पूर्ण रूप से भारतीय आत्मा में रचा बसा एक ऐसे संविधान, जिस पर पूर्ण रूप से गर्व कहते हुए हम यह कह सकें कि हां यही है हमारा असली संविधान ।
Nov 27 2024, 19:21