सम्पादकीय : रतन टाटा नहीं रहे लेकिन उन्होंने सफल उधमी के रूप में अपने सामजिक सरोकार के लिए युग युग तक याद किये जायेंगें
विनोद आनंद
मौत शास्वत सत्य है! जिसे कोई टाल नहीं सकता!इस नश्वर शरीर का भौतिक स्वरूप का नष्ट होना एक स्वभाविक प्रक्रिया है, लेकिन अगर इस शरीर और स्वरूप द्वारा कुछ अच्छा कर्म किया गया हो तो ऐसे लोगों का भौतिक शरीर भले हीं नष्ट हो जाए लेकिन उसका बजूद कभी समाप्त नहीं होता.
रतन टाटा एक ऐसे हीं व्यक्तित्व थे.कल बुधवार को देर शाम को उन्होंने अपने नश्वर शरीर का त्याग कर इस दुनिया को अलविदा कह दिया यह दुःखद और मार्मिक क्षण है लेकिन रतन टाटा जैसे लोग कभी मरते नहीं. ये युग युग तक जिन्दा रहते हैं.
रतन टाटा एक प्रभावशाली उद्योग पति थे. वे 30 से अधिक कंपनियों को नियंत्रित कर रहे थे. छ महाद्वीप के 100 से अधिक देशों में इनके कंपनी संचालित हैं. लेकिन इन्होने कभी अपने जीवन में आडम्बर नहीं किया. कोई भी ऐसा काम या आयोजन नहीं किया जिसमे अरबो रूपये पानी के तरह बहाये गए हो. बिलकुल साधारण जीवन जिया. शालीनता और ईमानदारी से एक संत के तरह अपने जीवन के हर पल को विताया.
लेकिन अपने कर्मचारी को उसके परिश्रम के अनुरूप वेतन, सामाजिक कार्यों में बढ़ चढ़कर हिस्सा और मानव कल्याण के लिए दिल खोल कर दान किया.इसी लिए इन्हे पंथ निरपेक्ष संत के रूप में भी लोग देखने लगे. वे विनम्र और दयालू थे. असाधारण इंसान थे. हमेशा परोपकार में लगे रहे.
रतन टाटा के नेतृत्व में ना मात्र औधोगिक विस्तार हुआ बल्कि विकास के कई अध्याय की शुरुआत भी हुई जिसमे शिक्षा, चिकित्सा मानव कल्याण समेत कई परियोजनाए है.जिसकी एक लम्बी सूची है जिसे उन्होंने शुरू किया या अनुदान देकर उसे बढ़ावाया.
रतन टाटा ने भारत में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. उन्होंने मातृ स्वास्थ्य, बच्चे के स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य और कैंसर, मलेरिया और क्षयरोग जैसी बीमारियों के डायग्नोसिस और इलाज के लिए भी सहयोग किया है.
उन्होंने अल्ज़ाइमर रोग पर अनुसंधान के लिए इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस में न्यूरोसाइंस केंद्र को ₹750 मिलियन का अनुदान भी प्रदान किया.
रतन टाटा की कैरियर की बात करें तो 1990 से 2012 तक वे टाटा ग्रुप के अध्यक्ष रहे और अक्टूबर 2016 से फरवरी 2017 तक अंतरिम अध्यक्ष.
वे अपने करियर की शुरुआत से ही दूर दृष्टि रखने वाला व्यक्ति थे अपने असाधारण कौशल से उन्होंने विश्व भर की पीढ़ियों को प्रेरित किया .
रतन टाटा ने कहा था कि -“जिन मूल्यों और नीतियों से मैंने जीने का प्रयास किया है, उनके अलावा, जो विरासत मैं छोड़ना चाहूंगा, वह एक बहुत आसान है - मैंने हमेशा उसके लिए खड़ा रखा है जिसे मैं सही बात समझता हूं, और मैंने जैसा भी हो सकता हूं, उतना ही निष्पक्ष और न्यायपूर्ण होने की कोशिश की है."
उन्होंने उन्होंने वास्तुकला में स्नातक की डिग्री के साथ कॉर्नेल विश्वविद्यालय कालेज ऑफ आर्किटेक्चर से स्नातक किया. वह 1961 में टाटा में शामिल हुए जहां उन्होंने टाटा स्टील के दुकान के फर्श पर काम किया. बाद में उन्होंने वर्ष 1991 में टाटा सन्स के चेयरमैन के रूप में सफलता हासिल की.
रतन टाटा का जीवन यात्रा विश्व में सकारात्मक प्रभाव डालने वाला रहा.उनका पूरा जीवन दर्शन पुरे दुनिया को मूल्यवान सबक प्रदान करता है. उत्कृष्टता, नवान्वेषण और अनुकूलता पर उनका ध्यान हमेशा रहा.
टाटा समूह की सफलता तथा नैतिक नेतृत्व तथा कारपोरेट के सामाजिक उत्तरदायित्व के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और योगदान ने पूरी दुनिया को एक नया सन्देश दिया. इसके अतिरिक्त उनकी टीमवर्क और सततता पर उनका जोर एक ऐसा उदहारण है जो हर नेतृत्व करने वालों के लिए आने वाले समय में मार्गदर्शन करता रहेगा.
उनमे एक सफल प्रबंधकीय गुण के साथ करुणा और इच्छा, सभी के लिए एक मॉडल के रूप में कार्य करेगा. ये सबक न केवल बिज़नेस लीडर के लिए प्रासंगिक हैं, बल्कि ऐसे किसी भी व्यक्ति के लिए जो दुनिया में सकारात्मक प्रभाव डालना चाहता है.
आज रतन टाटा चले गए लेकिन उन्होंने एक उधमी और सफल व्यक्ति के रूप में जो रास्ता बनाया उस पर चलकर युग युगन्तर तक आने वाले पीढ़ी को मार्ग दर्शन करते रहेगा.
Nov 23 2024, 19:01