*देव‌उठनी एकादशी को योग निद्रा से जागेंगे श्रीहरि, 12 नवंबर के बाद शुरू होंगे रूके हुए मांगलिक कार्य*

रिपोर्ट -नितेश श्रीवास्तव

भदोही- आगामी 12 नवंबर को देव‌उठनी एकादशी का महापर्व है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार माह बाद योग निद्रा से उठते हैं। जिससे बाद मांगलिक कार्यों का दौर शुरू होता है। 12 नवंबर के बाद सहालग सीजन भी शुरू हो जाएगा। इस साल नवंबर और दिसंबर के दो महीने में शादी विवाह के कुल 18 शुभ मुहूर्त है। भगवान विष्णु के योगनिद्रा से जागने के बाद आगामी 12 नवंबर से शुभ दिनों की शुरुआत हो जाएगी। देव‌उठनी एकादशी के अवसर पर लोग गन्ने के मंडप में भगवान विष्णु की आराधना और आरती के बाद दिन भर गंगा - यमुना के तटों, मठों - मंदिरों से लेकर घरों तक तुलसी विवाह का आयोजन होगा।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देव‌उठनी एकादशी को करीब चार महीने के बाद भगवान विष्णु नींद से उठते हैं। इस के साथ ही मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो जाती है। आने वाले सहालग सीजन को देखते हुए जिन - जिन घरों में शादियों की तैयारियां चल रही है। वहां शादी विवाह को लेकर वर और वधु पक्ष तैयारी में जुट गए हैं। इसके लिए मैरिज लॉन ,ब्यूटी पार्लर,हलवाई, कैटरर्स माली आदि की बुकिंग हो चुकी है। लोग विद्वान आचार्यों की सलाह पर शुभ मुहूर्त भी पता कर रहे हैं। वहीं खरीददारी भी शुरू हो चुकी है।

आचार्यों के अनुसार देव‌उठनी एकादशी पर तुलसी - शालिग्राम विवाह के साथ मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है। चार महीने तक भगवान विष्णु के विश्राम के कारण मांगलिक कार्य विवाह आदि वर्जित रहते हैं। 12 नवंबर से मुहूर्तों की शुरुआत होगी। फिर 16 दिसंबर से 15 जनवरी 2025 तक खरमास चलेगा। खरमास के समय मांगलिक कार्यों पर विराम लग जाता है। खरमास के बाद फिर से मांगलिक कार्य शुरू होंगे।

16 दिसंबर से शुरू होगा खरमास

आचार्यों के अनुसार देव‌उठनी एकादशी का पर्व 12 नवंबर है‌। इस दिन घरों में देव यानी भगवान उठाए जाते हैं। 16 दिसंबर से सूर्य के धनु राशि में प्रवेश के साथ ही खरमास की शुरुआत हो जाएगी, जो 15 जनवरी 2025 मकर संक्रांति तक रहेगा। इस दौरान मांगलिक कार्य बंद रहते हैं। 15 जनवरी को सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के साथ ही खरमास समाप्त होगा और फिर से लग्न मुहूर्त की शुरुआत हो जाएगी।

नवंबर - दिसंबर में विवाह के मुहुर्त

नवंबर- 16,17,18,22,23,24,25,26,27

दिसंबर - 2,3,4,5,9,10,13,14,15,

भदोही में क्रॉप कटिंग को लेकर डीएम-सीडीओ ने परखी धान की पैदावार

नितेश श्रीवास्तव

भदोही। भदोही में खरीफ की प्रमुख फसल धान की पैदावार परखने के लिए शुक्रवार को डीएम विशाल सिंह ने उसकी कटाई कर उत्पादन को परखा। औसत उत्पादन पर्याप्त मिलने पर डीएम ने किसानों को इसी हिसाब से पैदावार करने की सलाह दी। सुबह करीब 10 बजे डीएम ज्ञानपुर के बडवापुर उर्फ तिवारीपुर गांव पहुंचे। जहां धान के फसल की क्राप कटिंग स्वंय कराई। किसान सुनील तिवारी के गाटा संख्या 371 खेत में 43.3 वर्ग मीटर में क्राप कटिंग कराकर वजन को परखा गया। जिसमें कुल 22.720 किलोग्राम उत्पादन मिला। उसके हिसाब से एक हेक्टेयर में 52.450 क्विंटल का अनुमानित लक्ष्य प्राप्त हुआ।

इस मौके पर एसडीएम अरूण गिरी, अपर सांख्यिकी अधिकारी रवि प्रकाश, फसल बीमा प्रतिनिधि धर्मेंद्र कुमार, ग्राम प्रधान रमाशंकर आदि रहे। इस तरह मुख्य विकास अधिकारी डॉ. शिवाकांत द्विवेदी ने औराई तहसील के खेमईपुर में धान के फसल की क्राप कटिंग कराई। यहां पर 43.3 वर्ग मीटर में करीब 60.89 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन प्राप्त हुआ। इस मौके पर अपर सांख्यिकी अधिकारी हीना संग लेखपाल, कानूनगो आदि मौजूद रहे।

भदोही में छठ पूजा का समापन, महिलाओं ने सूर्यदेव को अर्घ्य देकर समृद्धि की कामनी की , पारण कर तोड़ा व्रत

रिपोर्ट -नितेश श्रीवास्तव

भदोही। आज यानी 08 नवंबर को छठ पूजा का आखिरी दिन था । चौथा दिन यानी सप्तमी तिथि छठ महापर्व का अंतिम दिन होता है। इस दिन प्रातः काल उगते सूर्य को जल दिया जाता है। इसी के साथ छठ पर्व का समापन होता है। छठ महापर्व की शुरुआत नहाय-खाय से होती है। इसके बाद दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन संध्या अर्घ्य और चौथे दिन को ऊषा अर्घ्य के नाम से जाना जाता है। छठ का पर्व बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। छठ का व्रत संतान की लंबी उम्र और उनके खुशहाल जीवन के लिए रखा जाता है।



इसके बाद ही 36 घंटे का व्रत समाप्त हो जाएगा। अर्घ्य देने के बाद व्रती प्रसाद का सेवन करके व्रत का पारण करती हैं।चार दिवसीय छठ पूजा का समापन उषा अर्घ्य होता है। इस दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद छठ के व्रत का पारण किया जाता है। इस दिन व्रत रखने वाले लोग सूर्योदय से पहले नदी के घाट पर पहुंचकर उदित होते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इसके बाद सूर्य देव और छठ माता से संतान के सुखी जीवन और परिवार की सुख-शांति की कामना करते हैं।शुक्रवार को उदीयमान सूर्य को अर्घ्‍य देने के साथ ही चार दिवसीय छठ पूजा (डाला छठ) का समापन हुआ। भोर से ही व्रती महिलाएं परिवार के सदस्‍यों के साथ नदी घाटों पर पहुंचीं। नदी के जल में खड़े होकर उगते सूर्य को अर्घ्‍य दिया और विधिवत पूजन-अर्चन किया। इसी के साथ ही 36 घंटे के निर्जला व्रत का समापन हुआ। इस दौरान जनपद के विभिन्न गंगा घाटों व पवित्र जलाशयों  के घाटों पर हजारों की संख्‍या में भीड़ जुटी। त्याग, विश्वास, सुख व समृद्धि के महापर्व डाला छठ पर नदियों के तट पर शुक्रवार की भोर में श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ा।


कार्तिक शुक्ल पक्ष की सप्‍तमी तिथि पर गंगा-यमुना व संगम तट पर निर्जला व्रत रखने वाली हजारों महिलाएं परिवार के सदस्यों के साथ पहुंचीं। घाट पर स्वयं के चिह्नित स्थान पर गन्ने के मंडप बनाकर विधि-विधान से पूजन किया। सुहागिन महिलाओं ने एक-दूसरे को सौभाग्य के प्रतीक सिंदूर लगाया। व्रती महिलाओं ने पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य दिया और पुत्र, परिवार और कुल की कुशलता के लिए कामना की। छठ महापर्व के तीसरे दिन गुरुवार को संध्या अर्घ्य के साथ पूजा अर्चना की गई। श्रद्धालुओं ने गंगा घाटों व सरोवरों के किनारों  पर पहुंचकर श्रद्धा के साथ भगवान सूर्य देव को अर्घ्य समर्पित किए और छठ मैया की विधि विधान से पूजा अर्चना की गई। बच्चों में त्येाहार को लेकर उत्साह था। युवा और पुरुष भी त्योहार की खुशियों में सराबोर थे।


रविवार को छठ पूर्व के तीसरे दिन श्रद्धालु़ और व्रती महिलाएं परिवार के साथ सूर्यास्त से पहले गंगा व जलाशयों  के तट पर पहुंचे। रास्ते में महिलाएं छठ मैया के गीत गाते हुए यमुना नदी पर पहुंची। व्रती महिलाओं ने सूर्य देव की ओर मुख करके डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर पांच बार परिक्रमा की छठ मइया के गीतों से गंगा व पवित्र सरोवरों तट गूंज उठे। हाथ में गन्ना और प्रसाद की थाली थी। जबकि पुरुष सिर पर बांस की टोकरी में सूप, फल, सब्जी व पूजन की अन्य सामग्री लेकर साथ चल रहे थे। घाट पहुंचने पर व्रती महिलाएं स्वयं की बनाई वेदी के पास बैठकर उसके चारों ओर गन्ने का मंडप तैयार किया। मंडप के अंदर बैठकर छठ मइया का विधिवत पूजन किया।  घाट पर ढोल-नगाड़े की थाप पर युवाओं के साथ बुजुर्ग भी थिरके। बच्चों ने पटाखे जलाकर खुशी मनाई। शुक्रवार को नहाय-खाय से छठ पर्व का आरंभ हुआ था। खरना पर बुधवार को डाला छठ का 36 घंटे के निर्जला व्रत शुरू हुआ था। कार्तिक शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि पर शुक्रवार की सुबह डाला छठ व्रत का व्रती महिलाओं ने पारण ठेकुआ खाकर किया
भदोही में अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देकर की मंगल कामना

नितेश श्रीवास्तव 

भदोही। छठ महापर्व का आज तीसरा दिन है। आज डूबते सूर्य को सायंकालीन अर्घ्य दिया जा रहा। छठ पर्व की शुरुआत कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन नहाय खाय से होती है। पंचमी को खरना, षष्ठी को डूबते सूर्य को अर्घ्य और उगते सूर्य सप्तमी को अर्घ्य देकर व्रत समाप्त होता है।

 इस चार दिवसीय त्योहार में सूर्य और छठी मैया की पूजा की जाती है। इस दिन व्रत करना बहुत कठिन माना जाता है क्योंकि इस व्रत को कठोर नियमों के अनुसार 36 घंटे तक रखा जाता है।छठ पूजा महोत्सव 05 नवंबर, 2024 को शुरू हुआ और 08 नवंबर को समाप्त होगा। यह त्योहार विशेष रूप से बिहार में बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह व्रत संतान के सुखी जीवन की कामना के लिए किया जाता है। छठ पर्व की शुरुआत षष्ठी तिथि से दो दिन पहले यानी की चतुर्थी तिथि से होती है। 

छठ पर्व में मुख्यतः सूर्य देव को अर्घ्य देने का सबसे ज्यादा महत्व माना गया है। मन में श्रद्धा और भक्ति का उल्लास और छठी मइया से परिवार के सुख-समृद्धि की कामना को लेकर व्रती महिलाओं ने बृहस्पतिवार को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया। महिलाओं की अगाध श्रद्धा और कठोर तप वाले पर्व पर घाटों पर आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा। निराजल व्रत रखने वाली महिलाओं ने घुटने भर पानी में खड़े होकर अस्त होते भगवान भास्कर को जल अर्पित किया तो पूरा परिसर छठी मइया के जयकारे से गूंज उठा। 

लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा को लेकर बृहस्पतिवार की दोपहर बाद से ही लोग गाजे-बाजे के साथ नदी और तालाबों पर पहुंचने लगे। दिव्य प्रकाश और छठी मइया के गीतों ने पूरे वातावरण को भक्तिमय बना दिया। छठी मइया के पारंपरिक और नए लोक गीतों को गाती-गुनगुनाती महिलाए हाथों में दीप लिए घाटों पर पहुंची। पीछे-पीछे सिर पर दउरा और कांधे पर ईख लेकर चल रहे पुरुष भी छठी मइया की भक्ति में तल्लीन दिखे। तेजस्वी पुत्र और परिवार की सुख समृद्धि की कामना को लेकर नगर से लेकर गांव-देहात तक महिलाओं ने निराजल व्रत रखा था।जिले के रामपुर, सीतामढ़ी, धनतुलसी घाट, कलिजरा, भोगांव, पारीपुर, फुलौरी, इटहरा, बेरवा पहाड़पुर, पुरवां, जगन्नाथपुर सहित ज्ञानसरोवर और अन्य ताल तलैया पर चार बजे के बाद से ही व्रती महिलाओं की भीड़ जुटने लगी। शाम होते-होते घाटों पर पैर रखने की जगह नहीं बची। अपनी-अपनी वेदियों के सामने पूजन सामग्री रख व्रती महिलाएं नदी में पश्चिम मुख किए खड़ी थी, तो साथ के लोग घाट पर थे। अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने का समय आया, तो सभी के हाथ आगे बढ़ते गए। व्रती महिलाओं के साथ परिवार के अन्य सदस्यों ने अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया। वेदियों पर पूजन-अर्चन के बाद दीप जलाए गए। दीप जलते नदी के घाट जगमगा उठे। विद्युत झालरों से सजे घाट दुधिया रोशनी से नहा उठे। इस दौरान घाटों पर भीड़ पर नजर रखने के लिए पुलिस के पुख्ता इंतजाम किए गए थे।

बिना पंजीयन पांच कोचिंग सेंटर कराएं बंद,15 दिन में पूरी होती है रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया

नितेश श्रीवास्तव

भदोही। बिना पंजीयन कराए कोचिंग संचालन करने वालों के खिलाफ माध्यमिक शिक्षा परिषद की सख्ती बढ़ती जा रही है। जिला विद्यालय निरीक्षक अंशुमान के नेतृत्व में अवैध ढंग से चल रहे पांच कोचिंग सेंटर को बंद करा दिया गया है।

बिना पंजीयन के संचालित हो रहे कोचिंग सेंटर की जांच को विभागीय स्तर से टीम बना दी गई है। शिकायत मिलने पर स्थलीय जांच कर उचित कार्रवाई की जा रही है। जिला विद्यालय निरीक्षक अंशुमान ने बताया कि पूर्व में पांच कोचिंग सेंटर संचालकों को पंजीयन के लिए नोटिस जारी हुआ था। लेकिन इन संचालकों द्वारा पंजीयन को आवेदन नहीं किया गया था। ऐसे में मामले को गंभीरता से लेते हुए पांचों कोचिंग को बंद करा दिया गया।

बताए कि जिले में कुल 12 कोचिंग सेंटर पंजीकृत हैं। जहां भी बिन पंजीयन के कोचिंग चल रहे हैं। वहां जांच की जा रही है। बिना पंजीयन कराए कोचिंग का संचालन कदापि नहीं होने दिया जाएगा। बिन पंजीयन कोचिंग की शिकायत मिलने पर स्थलीय जांच कर उचित कार्रवाई की जा रही है दो पालिका परिषद, पांच नगर पंचायत एवं छह ब्लॉक क्षेत्रों में संचालित होने वाले संचालित होने वाले कोचिंग सेंटरों पर निगरानी को टीम का गठन हुआ है। कही भी बिना पंजीयन कराए कोचिंग संचालन की शिकायत मिली तो जांच कर उचित कार्रवाई की जाएगी।

जिला विद्यालय निरीक्षक अंशुमान ने बताया कि पूर्व में कोचिंग संचालकों को बकायदे नोटिस जारी करके पंजीयन कराने के लिए निर्देश दिए गए थे। चेताया गया है कि बिना पंजीयन के किसी भी प्रकार की कोचिंग संचालन नहीं होगी। जिला विद्यालय निरीक्षक अंशुमान ने बताया कि कोचिंग सेंटर संचालित कराने के लिए पंजीयन प्रकिया पंद्रह दिन में पूर्ण हो जाती है। कोचिंग संचालक को आनलाइन पजीयन के लिए आवेदन करना होगा। आवेदन के बाद निर्धारित चालान जमा करना होता है। कोचिंग संचालक करने पूर्ण होने के बाद संचालन की अनुमति दे दी जाती है। बिना पंजीयन कोचिंग सेंटर का संचालन करना हर स्तर से गलत है।

21 स्थानों पर होगी सूर्य उपासना चार मजिस्ट्रेट करेंगे निगरानी

नितेश श्रीवास्तव

भदोही। सूर्य की उपासना के महापर्व डाला छठ का चार दिवसीय त्यौहार मंगलवार को नहाय खाय से शुरू हो गया है। इस बीच जिले के तमाम घाटों पर साफ - सफाई के अन्य तैयारियां जोर पकड़ी रही है।

अगले तीन दिनों तक व्रती महिलाएं छठ मैया और भगवान सूर्य की उपासना करेगी। शुक्रवार को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही महिलाएं व्रत का पारण करेंगी। छठ पूजा को लेकर जिले में चार मजिस्ट्रेटों की तैनाती कर दी गई है। कुल 21 स्थानों पर सूर्य उपासना की जाएगी। नगर के प्रमुख घाटों सहित अन्य स्थानों पर डाला छठ पर्व की तैयारियां अंतिम दौर में चल रही है।

मंगलवार से छठ पूजा का नहाय खाय के साथ शुभारंभ हो गया। व्रतियों ने पहला दिन नहाय खाय के रुप में मनाया। इस दिन भोजन के रुप में कद्दू, चने की दाल और चावल ग्रहण किया। अब आज खरना होगा। आज व्रती महिलाएं गुड़ की खीर का प्रसाद बनाती है। कार्तिक शुक्ल पंचमी को व्रती महिलाएं दिनभर उपवास रखने के बाद शाम भोजन करती है। प्रसाद के रुप में गन्ने के रस से बनी चावल खीर के साथ दूध, चावल का पिट्ठा और भी लगी रोटी बनाई जाती है। तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को दिन में छठा का प्रसाद बनाया जाता है।

व्रती महिलाएं डूबते हुए सूर्य को जल और दूध का अर्घ्य देती है। चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी को सुबह सप्तमी को सुबह उदीयमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।

नहाय खाय के साथ आज से छठ महापर्व शुरू, जानें पर्व की महिमा

नितेश श्रीवास्तव

भदोही। आज से नहाय खाय के साथ छठ महापर्व शुरू हो चुका है। हर साल छठ पर्व और भी हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। पंचांग के अनुसार छठ का महापर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से शुरू होता है। इस खास मौके पर छठी मैया की विधि-विधान से पूजा की जाती है।

छठ पूजा के दौरान चार दिनों तक सूर्य देव की विशेष पूजा करने की परंपरा है। सेवा के दौरान साफ-सफाई और पवित्रता पर विशेष ध्यान दिया जाता है।पंचांग के अनुसार, छठ पूजा के पर्व की शुरुआत कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से होती है। वहीं, इस त्योहार का समापन सप्तमी तिथि पर होता है। ऐसे में छठ महापर्व 05 नवंबर से लेकर 08 नवंबर तक मनाया जाएगा।

छठ पूजा की शुरुआत दिवाली के बाद कार्तिक माह की चतुर्थी तिथि से होती है।

यह सूर्य देव को समर्पित विशेष पर्व है। इस दौरान श्रद्धालु अपने प्रियजनों की सुख, समृद्धि और लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करते हैं। छठ पूजा के शुभ अवसर पर सूर्य देव और उनकी पत्नी उषा, प्रत्युषा की विधिपूर्वक उपासना करने का विधान है। मान्यता है कि पूजा करने से जातक को छठी मैया की कृपा प्राप्त होती है। सनातन शास्त्रों छठी मैया को संतानों की रक्षा करने वाली देवी माना जाता है। इसलिए छठ पूजा के दिन छठी मैया की पूजा का विशेष महत्व है।सुन ल अरजिया हमार, हे छठी मैया...के गीत गाकर मंगलवार से सूर्योपासना का महापर्व कार्तिक छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान नहाय-खाय से शुरू होगा। पहले दिन छठ व्रती महिलाएं गंगा में स्नान करेंगी। इसके बाद लोहंडा खरना पर पूरे दिन उपवास कर शाम में सूर्य देव की पूजा कर प्रसाद ग्रहण करेंगी। बृहस्पतिवार की शाम डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। वहीं शुक्रवार को उगते सूर्य को अर्घ्य देकर आयु-आरोग्यता, यश, संपदा का आशीष लेते हुए पर्व का समापन होगा। खरना कार्तिक शुक्ल पंचमी तिथि बुधवार को सर्वार्थ सिद्ध योग में होगा। व्रत का समापन धनिष्ठा नक्षत्र में होगा।धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, छठ पर्व में सूर्योपासना से छठी माता प्रसन्न होती हैं। परिवार में सुख, शांति और धन-धान्य से परिपूर्ण करती हैं। सूर्य देव के प्रिय तिथि पर पूजा, अनुष्ठान से अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। इनकी उपासना से रोग, कष्ट, शत्रु का नाश, सौभाग्य की प्राप्ति होती है। आचार्य शरद पांडेय ने बताया कि धृति योग, जयद योग और रवि योग में व्रती नहाय-खाय करेंगे। इस दिन गंगा में स्नान कर पवित्रता से तैयार प्रसाद स्वरूप अरवा चावल, चना दाल, कद्दू की सब्जी, आंवले की चटनी ग्रहण कर अनुष्ठान आरंभ करेंगे। इस दिन गेहूं को गंगाजल से धोने के बाद सूखाया जाएगा। गेहूं में कोई पक्षी, कीड़े का स्पर्श न हो, इसके लिए व्रती व स्वजन पारंपरिक गीत गाते हुए रखवाली करेंगे।

75 फीसदी चालान बिना हेलमेट, सभी युवा

नितेश श्रीवास्तव

भदोही। यातायात माह को शुरू हुए चार दिन बीत चुके हैं। एक नवंबर को यातायात विभाग की तरफ से सिर्फ जागरूकता अभियान चलाया गया।

दो, तीन और चार नवंबर यानि तीन दिनों में यातायात विभाग एवं अन्य थानों की तरफ से 2000 वाहनों का चालान किया गया। यातायात विभाग के आंकड़ो पर गौर करें तो दो हजार चालान में 75 फीसदी बिना हेलमेट के रहे। इसमें सभी युवा ही शामिल रहे।

यातायात विभाग की तरफ से अभियान चलाया जा रहा है। बाइक, चार पहिया वाहन चालकों को नियमों के लिए जागरूक किया जा रहा है। नियम तोड़ने वालों का चालान हो रहा है। तीन दिनों में 2000 चालान हुए। इसमें 75 फीसदी बिना हेलमेट के शामिल रहे।

अनिल कुमार सिंह, यातायात प्रभारी।

भदोही के केएनपीजी में मनाया गया विभूति नारायण सिंह का जन्मदिन

नितेश श्रीवास्तव

भदोही। काशी नरेश राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय ज्ञानपुर में महाराजा विभूति नारायण सिंह का जन्मदिन मनाया गया। इस दौरान केएनपीजी कॉलेज में स्थित उनके प्रतिमा पर अध्यापकों ने माल्यार्पण कर श्रद्धा सुमन अर्पित किया। अध्यापकों ने उनके द्वारा किए गए कार्यों को छात्रों को बीच में रखा।

अध्यापकों ने कहा कि ऐसे महान विभूति के ही पदचिन्ह पर चलकर देश व समाज का विकास किया जा सकता है।केएनपीजी कॉलेज में आज प्राचार्य डॉ रमेश यादव के नेतृत्व में महाराज विभूति सिंह का जन्मदिन मनाया गया। उनके चित्र पर माल्यार्पण कर श्रद्धा सुमन अर्पित किया गया। इस अवसर पर प्राचार्य ने कहा कि 5 नवंबर 1927 को महाराज विभूति नारायण सिंह का वाराणसी में जन्म हुआ।

महाराजा विभूति नारायण सिंह व उनके परिवार महादानी के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने कहा कि आज काशी नरेश महाविद्यालय महाराजा विभूत नारायण सिंह के परिवार की देन है। उन्होंने कहा कि महाराज विभूति नारायण सिंह ने महाविद्यालयों को 64 एकड़ जमीन दान में दिया। आज यह केएनपीजी कॉलेज उत्तर प्रदेश का सबसे प्राचीन महाविद्यालय है। इस महाविद्यालय के बच्चे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का प्रतिनिधित्व कर रहे। ऐसे महान विभूति के पदचिन्ह पर चलकर ही देश व समाज का विकास किया जा सकता है। कार्यक्रम में अध्यापकों ने अपने-अपने विचार रखें। इस अवसर पर महाविद्यालय के अध्यापक एवं छात्र-छात्राएं मौजूद रहे।

सबसे खास क्यों लोक आस्था का महापर्व, मखमली कालीन नगरी में भी बहती है भक्ति की बयान

नितेश श्रीवास्तव

भदोही। लोक आस्था के महापर्व छठ की शुरूआत आम तौर पर दिवाली के छह दिन बाद होती है। लोग बेसब्री से इस महापर्व का इंतजार करते हैं। हिन्दू धर्म में इसका का बड़ा महत्व है। मुख्यतौर पर छठ पूजा बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है। लेकिन, अब बड़े पैमाने पर देशभर के कई राज्यों और विदेशों में भी मनाया जाता है। छठ पूजा में सूर्य देव और छठी मैया की पूजा का विधान है। वैसे तो यह महापर्व वर्ष में दो बार होता है। एक चैत माह में और दूसरा कार्तिक माह में। इनमें कार्तिक मास के छठ का विशेष महत्व है।

महिलाएं यह व्रत अपने संतान की सुख शांति और लंबी उम्र के लिए करती हैं।पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, त्रेता युग में माता सीता ने सबसे पहले छठ किया था। भगवान श्रीराम ने भगवान सूर्य नारायण की आराधना की थी। द्वापर में दानवीर कर्ण और द्रौपदी ने सूर्य की उपासना की थी। इसके अलावा छठी मैया की पूजा से जुड़ी एक कथा राजा प्रियंवद की भी है, जिन्होंने सबसे पहले छठी मैया की पूजा की थी। मान्यता है कि छठ महापर्व पर माताएं अपनी संतान की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और भविष्य के लिए सूर्य देव और छठी मैया की पूजा-अर्चना करती है। इस दौरान महिलाएं 36 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं।

यही वजह है कि इस व्रत को सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है।पौराणिक कथाओं के अनुसार, लंकापति रावण का वध करने के बाद भगवान श्रीराम अयोध्या लौटे। लेकिन भगवान राम पर रावण के वध का पाप था, जिससे मुक्त होने के लिए ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूय यज्ञ कराया गया। तब ऋषि मुग्दल ने श्रीराम और माता सीता को यज्ञ के लिए अपने आश्रम में बुलाया। मुग्दल ऋषि के कहे अनुसार, माता सीता ने कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना की और व्रत भी रखा। इस दौरान राम जी और सीता माता ने पूरे छह दिनों तक मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर पूजा-पाठ किया। इस तरह छठ पर्व का इतिहास रामायण काल से जुड़ा है।पंचांग के अनुसार, हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से छठ पूजा का आरंभ हो जाता है। यह महापर्व पूरे चार दिनों तक चलता है। दीपावली खत्म होते ही छठ गीतों से इसका माहौल बनने लगता है।

छठ पूजा का मुख्य व्रत कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को रखा जाता है। पहले दिन नहाय-खाय के साथ छठ पूजा की शुरूआत होती है। दूसरे दिन खरना होता है। वहीं तीसरे दिन संध्या अर्घ्य और चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के साथ व्रत का पारण किया जाता है और इसी के साथ इस पर्व का समापन हो जाता है। नहाय-खाय से छठ पूजा की शुरूआत होती है। इस बार पांच नवंबर को यानी कल नहाय खाय है। नहाय खाय जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट होता है कि इस दिन स्नान करके भोजन करने का विधान है। नहाय खाय के दिन व्रत करने वाली महिलाएं नदी या तालाब में स्नान करती हैं। यहि नदी में नहाना संभव न हो ते घर पर भी नहा सकते हैं। इसके बाद व्रती महिलाएं भात, चना दाल और लौकी का प्रसाद बनाकर ग्रहण करती हैं।

छठ पूजा के दूसरे दिन को खरना कहा जाता है। इस बार खरना छह नवंबर यानी बुधवार को है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को खरना का प्रसाद बनाया जाता है। इस दिन माताएं दिनभर व्रत रखती हैं और पूजा के बाद खरना का प्रसाद खाकर 36 घंटे के निर्जला व्रत का आरंभ करती है। इस दिन मिट्टी के चूल्हे में आम की लकड़ी से आग जलाकर प्रसाद बनया जाता है।छठ पूजा के तीसरे दिन शाम के समय नदी या तालाब में खड़े होकर अस्त होते सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है। इस बार सात नवंबर यानी गुरुवार को पहला अर्घ्य दिया जाएगा। इसमें बांस के सूप में फल, गन्ना, चावल के लड्डू, ठेकुआ सहित अन्य सामग्री रखकर पानी में खड़े होकर पूजा की जाती है। छठ पूजा के चौथे और आखिरी दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस बार आठ नवंबर यानी शुक्रवार को दूसरा अर्घ्य दिया जाएगा। इस दिन व्रती अपने व्रत का पारण करते हैं। साथ ही अपनी संतान की लंबी उम्र और अच्छे भविष्य की कामना करते हैं।