ह‍िन्‍दुओं की सुरक्षा करे बांग्‍लादेश की सरकार”, हिंदुओं पर हो रहे हमलों पर विदेश मंत्री एस जयशंकर की दो टूक

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बांग्लादेश में हिंदू संत चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी के बाद से हालात तनावपूर्ण हैं। अल्पसंख्यक हिंदू आबादी को पांच अगस्त को शेख हसीना की अवामी लीग सरकार के पतन के बाद से देश के 50 से अधिक जिलों में 200 से अधिक हमलों का सामना करना पड़ा है। इस हफ्ते हालात तब और खराब हो गए जब हिंदू आध्यात्मिक नेता चिन्मय कृष्ण दास को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया। बाद में उन्हें एक अदालत ने जमानत देने से इनकार कर दिया है, जिसके बाद राजधानी ढाका और बंदरगाह शहर चटगांव सहित कई जगहों पर समुदाय के सदस्यों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। भारत सरकार भी बांग्लादेश में हिंदुओं के हालात पर चिंता जाहिर कर चुकी है। अब बांग्‍लादेश में ह‍िन्‍दुओं के ख‍िलाफ ह‍िंंसा पर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने लोकसभा में जवाब द‍िया।

अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की जिम्मेदारी बांग्लादेश सरकार की-जयशंकर

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शुक्रवार को लोकसभा में बताया कि अगस्त 2024 में शेख हसीना के देश छोड़ने के बाद से हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों पर कई हमले हुए हैं। दुर्गा पूजा के दौरान भी मंदिरों और पूजा पंडालों पर हमले की खबरें आईं। भारत सरकार ने इन घटनाओं पर बांग्लादेश सरकार से चिंता जताई है। जयशंकर ने कहा कि बांग्लादेश के सभी अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की जिम्मेदारी बांग्लादेश सरकार की है।

बांग्लादेश के हालात पर भारत सरकार की चिंता

उधर, विदेश मंत्रालय ने भी इस बारे में भारत सरकार की चिंता बताई। विदेश मंत्रालय के प्रवक्‍त रणधीर जायसवाल ने कहा, भारत ने बांग्लादेश सरकार के साथ ह‍िन्‍दुओं और अन्य अल्पसंख्यकों पर खतरों और लक्षित हमलों को लगातार और दृढ़ता से उठाया है। इस मामले पर हमारी स्थिति स्पष्ट है। अंतरिम सरकार को सभी अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए।

बांग्लादेश के हालात पर भारत में उठ रहे सवाल

बता दें कि भारत में कई राजनेताओं ने, जिनमें विपक्षी नेता भी शामिल हैं, चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी और हिंदुओं के साथ हो रही हिंसा पर चिंता जताई है। उन्होंने नरेंद्र मोदी सरकार से इस मामले में हस्तक्षेप करने की अपील की है। बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भी गिरफ्तार हिंदू साधु का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि उन्हें गलत तरीके से गिरफ्तार किया गया है और उन्हें तुरंत रिहा किया जाना चाहिए।

सउदी अरब के साथ मिलकर क्या प्लानिंग कर रहा भारत? दोनों देशों के विदेश मंत्री के बीच हुई मुलाकात

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सऊदी अरब के विदेश मंत्री प्रिंस फैसल बिन फरहान अल-सऊद अपने दो दिवसीय आधिकारिक दौरे पर भारत पहुंचे हैं। जहां उन्होंने हैदराबाद हाउस में विदेश मंत्री एस जयशंकर से मुलाकात की। सऊदी अरब के विदेश मंत्री प्रिंस फैसल बिन फरहान अल सऊद से मुलाकात में एस जयशंकर ने कहा कि भारत गाजा में शीघ्र युद्धविराम का समर्थन करता है और वह लगातार दो स्टेट सॉल्यूशन के माध्यम से फिलिस्तीनी मुद्दे के समाधान के लिए खड़ा है। जयशंकर ने कहा कि पश्चिम एशिया की स्थिति खासकर गाजा में स्थिति गहरी चिंता का विषय है। विदेश मंत्री ने सऊदी अरब को क्षेत्र में स्थिरता के लिए एक महत्वपूर्ण ताकत बताया।

दिल्ली के हैदराबाद हाउस में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने प्रिंस फैसल बिन फरहान अल सऊद से मुलाकात की। एस जयशंकर और प्रिंस फैसल बिन फरहान अल सऊद के बीच बैठक के बाद भारतीय विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी किया। एस जयशंकर ने कहा कि हमने क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों, विशेष रूप से पश्चिम एशिया में चल रहे संघर्ष और विभिन्न बहुपक्षीय मंचों पर हमारे संयुक्त प्रयासों पर भी विचारों का आदान-प्रदान किया। जयशंकर ने कहा कि भारत दो-राज्य समाधान के माध्यम से फिलिस्तीनी मुद्दे के समाधान के लिए खड़ा है। फिलिस्तीनी संस्थाओं के निर्माण में योगदान दिया है।

इन मुद्दों पर हुई दोनों नेताओं की बात

जारी बयान में कहा गया है कि एस जयशंकर और प्रिंस फैसल बिन फरहान अल सऊद ने व्यापार, रक्षा, निवेश, ऊर्जा, सुरक्षा और कांसुलर मुद्दों पर भारत और सऊदी अरब के बीच रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने के तरीकों पर चर्चा की। एस जयशंकर और प्रिंस फैसल बिन फरहान अल सऊद भारत-सऊदी रणनीतिक साझेदारी परिषद (एसपीसी) की राजनीतिक, सुरक्षा, सामाजिक और सांस्कृतिक (पीएसएससी) समिति की सह-अध्यक्षता करते हैं। इस दौरान दोनों ने सितंबर 2023 में सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की भारत यात्रा के बाद दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों में हुई प्रगति की समीक्षा की।

हम शीघ्र युद्धविराम का समर्थन करते हैं’

एस जयशंकर ने कहा कि पश्चिम एशिया की स्थिति गहरी चिंता का विषय है। विशेषकर गाजा में संघर्ष. इस संबंध में भारत की स्थिति सैद्धांतिक और सुसंगत रही है। उन्होंने कहा, हालांकि हम आतंकवाद और बंधक बनाने के कृत्यों की निंदा करते हैं। हम निर्दोष नागरिकों की मौत से बहुत दुखी हैं। हम शीघ्र युद्धविराम का समर्थन करते हैं।

सऊदी के साथ भारत की पार्टनरशिप

जयशंकर ने कहा कि सऊदी अरब का 'विजन 2030' और भारत का विकसित भारत 2047 दोनों देशों के उद्योगों के लिए नई पार्टनरशिप करने के लिए पूरक हैं। उन्होंने कहा कि व्यापार और निवेश हमारी साझेदारी के महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। हम प्रौद्योगिकी, ऊर्जा, हरित हाइड्रोजन सहित नवीकरणीय ऊर्जा, कनेक्टिविटी, स्वास्थ्य और शिक्षा सहित नए क्षेत्रों में अपने सहयोग को मजबूत कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सऊदी अरब में भारतीय समुदाय की संख्या 26 लाख है।

ट्रूडो के मंत्री ने माना अमित शाह के बारे में अमेरिकी अखबार में प्लांट की खबर, क्या भारत-कनाडा के बीच तल्खी और बढ़ेगी?

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कनाडा ने भारत पर आरोप लगाए थे कि वहां होने वाली हिंसा में भारत की संलिप्तता रही है। अब कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के दो सीनियर अधिकारियों ने स्वीकार किया है कि उन्होंने भारत के बारे में 'खुफिया जानकारी' अमेरिकी मीडिया को लीक कर दी थी। राष्ट्रीय सुरक्षा और खुफिया सलाहकार नैथली ड्रोइन और विदेश मामलों के उप मंत्री डेविड मॉरिसन ने इस मामले में संवेदनशील जानकारी लीक करने की बात स्वीकार की है।

रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, कनाडा के विदेश उप-मंत्री डेविड मॉरिसन ने मंगलवार को एक संसदीय पैनल में यह बयान दिया। मॉरिसन ने संसदीय पैनल में कहा कि उन्होंने अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट को बताया था कि इस मामले में भारत के गृह मंत्री शामिल हैं। मॉरिसन ने कहा कि अमेरिकी अखबार को भारत-कनाडा मीटिंग से जुड़ी जानकारी उन्होंने ही दी थी। हालांकि, इस दौरान मॉरिसन यह नहीं बता पाए कि उन्हें अमित शाह को लेकर ये जानकारी कैसे मिली। यह पहली बार है, जब कनाडाई अधिकारी ने खुलकर भारत सरकार के किसी मंत्री का नाम लिया है।

नैथली ड्रोइन और विदेश मामलों के उप मंत्री डेविड मॉरिसन द्वारा लीक की गई जानकारी में भारत के गृह मंत्री अमित शाह पर नई दिल्ली से ऐसी कार्रवाइयों को निर्देशित करने का आरोप लगाया गया है। कॉमन्स पब्लिक सेफ्टी कमेटी के सामने गवाही देते हुए, ड्रोइन ने कहा कि उन्हें जानकारी लीक करने के लिए ट्रूडो की मंजूरी की आवश्यकता नहीं थी। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वाशिंगटन पोस्ट के साथ कोई वर्गीकृत खुफिया जानकारी साझा नहीं की गई थी। इसका उद्देश्य कनाडा के लोगों के खिलाफ भारतीय एजेंटों द्वारा कथित अवैध गतिविधियों के बारे में कनाडा की चिंताओं को साझा करना था, जिसमें कनाडाई लोगों के जीवन को खतरा भी शामिल है।

क्या था अमेरिकी अखबार की रिपोर्ट में?

वॉशिंगटन पोस्ट ने अपनी पहले की एक रिपोर्ट में दावा किया था कि कनाडाई सुरक्षा एजेंसियों ने सबूत जुटाए हैं कि भारत में एक वरिष्ठ अधिकारी ने कनाडा में 'खुफिया जानकारी जुटाने वाले मिशन और सिख अलगाववादियों पर हमले को अधिकृत किया था। रिपोर्ट में आगे कहा गया था कि एक कनाडाई स्रोत ने भारतीय अधिकारी की पहचान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के रूप में की है।

डेविड मॉरिसन ने अधिक जानकारी या सबूत दिए बिना कहा कि पत्रकार ने मुझे फोन किया और पूछा कि यह वही व्यक्ति हैं। मैंने पुष्टि की कि यह वही व्यक्ति हैं।

वॉशिंगटन पोस्ट की खबर पर भारत ने क्या कहा?

जब पहली बार वॉशिंगटन पोस्ट में निज्जर के मर्डर पर ख़बर छपी थी तब भारतीय विदेश मंत्रालय ने अपनी प्रतिक्रिया दी थी। विदेश मंत्रालय ने अख़बार की रिपोर्ट पर बयान जारी कर कहा था, “रिपोर्ट एक गंभीर मामले पर अनुचित और निराधार आरोप लगा रही है। बयान में कहा गया, संगठित अपराधियों, आतंकवादियों के नेटवर्क पर अमेरिकी सरकार की ओर से साझा की गई सुरक्षा चिंताओं के बाद भारत सरकार ने उच्च स्तरीय समिति का गठन किया है जो मामले की जांच कर रही है। इसे लेकर अटकलें लगाना और गैर ज़िम्मेदाराना बयान देना मददगार साबित नहीं होगा।

भारत-कनाडा संबंध और होंगे खराब ?

कनाडा के मंत्री के इस बयान के बाद भारत-कनाडा संबध और और ख़राब होने की आशंका जताई जा रही है। कनाडा में ख़ालिस्तान समर्थकों की ओर से भारत विरोधी प्रदर्शनों और खालिस्तान समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद दोनों देशों के रिश्तों में तनाव लगातार बढ़ा है। कनाडा का आरोप है कि खालिस्तान समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत का हाथ है, जबकि भारत इससे इनकार करता रहा है। पिछले दिनों इस मामले में दोनों देशों के बीच तल्ख़ी इतनी बढ़ी कि पिछले दिनों दोनों देशों ने एक दूसरे के कई राजनयिकों को निकाल दिया है। एक-दूसरे के राजनयिकों को निकालने का फ़ैसला तब सामने आया है जब निज्जर हत्या मामले में कनाडा ने भारतीय राजनयिकों और उच्चायोग के दूसरे अधिकारियों को ‘पर्सन्स ऑफ़ इंटरेस्ट’ बताया। इसमें कनाडा में भारत के उच्चायुक्त रहे संजय कुमार वर्मा प्रमुख रूप से शामिल थे।

ट्रूडो के मंत्री ने माना अमित शाह के बारे में अमेरिकी अखबार में प्लांट की खबर, क्या भारत-कनाडा के बीच तल्खी और बढ़ेगी?*
#canada_deputy_foreign_minister_says_he_gave_information_about_amit_shah_to_american_media कनाडा ने भारत पर आरोप लगाए थे कि वहां होने वाली हिंसा में भारत की संलिप्तता रही है। अब कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के दो सीनियर अधिकारियों ने स्वीकार किया है कि उन्होंने भारत के बारे में 'खुफिया जानकारी' अमेरिकी मीडिया को लीक कर दी थी। राष्ट्रीय सुरक्षा और खुफिया सलाहकार नैथली ड्रोइन और विदेश मामलों के उप मंत्री डेविड मॉरिसन ने इस मामले में संवेदनशील जानकारी लीक करने की बात स्वीकार की है। रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, कनाडा के विदेश उप-मंत्री डेविड मॉरिसन ने मंगलवार को एक संसदीय पैनल में यह बयान दिया। मॉरिसन ने संसदीय पैनल में कहा कि उन्होंने अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट को बताया था कि इस मामले में भारत के गृह मंत्री शामिल हैं। मॉरिसन ने कहा कि अमेरिकी अखबार को भारत-कनाडा मीटिंग से जुड़ी जानकारी उन्होंने ही दी थी। हालांकि, इस दौरान मॉरिसन यह नहीं बता पाए कि उन्हें अमित शाह को लेकर ये जानकारी कैसे मिली। यह पहली बार है, जब कनाडाई अधिकारी ने खुलकर भारत सरकार के किसी मंत्री का नाम लिया है। नैथली ड्रोइन और विदेश मामलों के उप मंत्री डेविड मॉरिसन द्वारा लीक की गई जानकारी में भारत के गृह मंत्री अमित शाह पर नई दिल्ली से ऐसी कार्रवाइयों को निर्देशित करने का आरोप लगाया गया है। कॉमन्स पब्लिक सेफ्टी कमेटी के सामने गवाही देते हुए, ड्रोइन ने कहा कि उन्हें जानकारी लीक करने के लिए ट्रूडो की मंजूरी की आवश्यकता नहीं थी। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वाशिंगटन पोस्ट के साथ कोई वर्गीकृत खुफिया जानकारी साझा नहीं की गई थी। इसका उद्देश्य कनाडा के लोगों के खिलाफ भारतीय एजेंटों द्वारा कथित अवैध गतिविधियों के बारे में कनाडा की चिंताओं को साझा करना था, जिसमें कनाडाई लोगों के जीवन को खतरा भी शामिल है। *क्या था अमेरिकी अखबार की रिपोर्ट में?* वॉशिंगटन पोस्ट ने अपनी पहले की एक रिपोर्ट में दावा किया था कि कनाडाई सुरक्षा एजेंसियों ने सबूत जुटाए हैं कि भारत में एक वरिष्ठ अधिकारी ने कनाडा में 'खुफिया जानकारी जुटाने वाले मिशन और सिख अलगाववादियों पर हमले को अधिकृत किया था। रिपोर्ट में आगे कहा गया था कि एक कनाडाई स्रोत ने भारतीय अधिकारी की पहचान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के रूप में की है। डेविड मॉरिसन ने अधिक जानकारी या सबूत दिए बिना कहा कि पत्रकार ने मुझे फोन किया और पूछा कि यह वही व्यक्ति हैं। मैंने पुष्टि की कि यह वही व्यक्ति हैं। *वॉशिंगटन पोस्ट की खबर पर भारत ने क्या कहा?* जब पहली बार वॉशिंगटन पोस्ट में निज्जर के मर्डर पर ख़बर छपी थी तब भारतीय विदेश मंत्रालय ने अपनी प्रतिक्रिया दी थी। विदेश मंत्रालय ने अख़बार की रिपोर्ट पर बयान जारी कर कहा था, “रिपोर्ट एक गंभीर मामले पर अनुचित और निराधार आरोप लगा रही है। बयान में कहा गया, संगठित अपराधियों, आतंकवादियों के नेटवर्क पर अमेरिकी सरकार की ओर से साझा की गई सुरक्षा चिंताओं के बाद भारत सरकार ने उच्च स्तरीय समिति का गठन किया है जो मामले की जांच कर रही है। इसे लेकर अटकलें लगाना और गैर ज़िम्मेदाराना बयान देना मददगार साबित नहीं होगा। *भारत-कनाडा संबंध और होंगे खराब ?* कनाडा के मंत्री के इस बयान के बाद भारत-कनाडा संबध और और ख़राब होने की आशंका जताई जा रही है। कनाडा में ख़ालिस्तान समर्थकों की ओर से भारत विरोधी प्रदर्शनों और खालिस्तान समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद दोनों देशों के रिश्तों में तनाव लगातार बढ़ा है। कनाडा का आरोप है कि खालिस्तान समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत का हाथ है, जबकि भारत इससे इनकार करता रहा है। पिछले दिनों इस मामले में दोनों देशों के बीच तल्ख़ी इतनी बढ़ी कि पिछले दिनों दोनों देशों ने एक दूसरे के कई राजनयिकों को निकाल दिया है। एक-दूसरे के राजनयिकों को निकालने का फ़ैसला तब सामने आया है जब निज्जर हत्या मामले में कनाडा ने भारतीय राजनयिकों और उच्चायोग के दूसरे अधिकारियों को ‘पर्सन्स ऑफ़ इंटरेस्ट’ बताया। इसमें कनाडा में भारत के उच्चायुक्त रहे संजय कुमार वर्मा प्रमुख रूप से शामिल थे।
नेतन्याहू की बढ़ेगी टेंशन! ईरानी विदेश मंत्री ने सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस से की मुलाकात

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इजराइल 1 अक्टूबर को हुए ईरानी हमले के पलटवार की तैयारी कर रहा है। ईरान पर किस तरह का हमला हो, ये तय करने के लिए नेतन्याहू की कैबिनेट में वोटिंग होगी। इससे पहले इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने बुधवार शाम अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और उपराष्ट्रपति कमला हैरिस से फोन पर बातचीत की। ईरान पर इजराइली हमले की आशंका के बीच ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अराक्ची ने सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से मुलाकात की। ये मुलाकात बुधवार को सऊदी अरब की राजधानी रियाद में हुई।

ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराघची इजराइल के खिलाफ नया मोर्चा बनाने में जुटे हैं।इसके लिए वह इन दिनों क्षेत्र के खाड़ी अरब देशों के दौरे पर हैं। सऊदी अरब को इजराइल का दोस्त माना जाता है। लेकिन हाल ही में सऊदी के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने गाजा के मसले पर इजराइल को दो टूक कह दिया था कि आजाद फिलिस्तीन के बिना वो इजराइल को मान्यता नहीं देंगे। सऊदी अरब के इस रुख से ईरान की उम्मीदें बढ़ गईं हैं। लिहाजा वह अब इजराइल के खिलाफ सऊदी अरब को साधने की कोशिश में जुटा है।

इसी क्रम में ईरानी विदेश मंत्री अराघची सऊदी अरब पहुंचे और प्रिंस से मुलाकात की। सऊदी अरब के स्टेट मीडिया के मुताबिक इस बैठक के दौरान दोनों ने मिडिल-ईस्ट में बने हालातों पर चर्चा की है। ईरानी विदेश मंत्री ने सऊदी अरब में क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के अलावा अपने समकक्ष प्रिंस फैजल बिन फरहान से भी मुलाकात की है। बुधवार को हुई इस मुलाकात में द्विपक्षीय संबंधों और कई क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ाने पर चर्चा हुई है।

सऊदी प्रेस एजेंसी के मुताबिक दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच क्षेत्र के ताजा हालात पर भी चर्चा हुई है। ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता इस्माइल बाघेई ने बुधवार को सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म पर पोस्ट कर लिखा है कि, ‘विदेश मंत्री के दौरे का मकसद क्षेत्र में यहूदी प्रशासन के नरसंहार और आक्रामकता को रोकना, साथ ही गाजा और लेबनान में हमाई भाइयों और बहनों के दर्द और पीड़ा को खत्म करना है।

बता दें कि एक अक्टूबर को ईरान ने इजराइल पर करीब 200 बैलिस्टिक मिसाइलों से हमला किया था, ईरान का कहना है कि उसने इस्माइल हानिया, हसन नसरल्लाह और आईआरजीसी के कमांडर निलफोरूशन की मौत का बदला लेने के लिए ये हमला किया था। वहीं अब इजराइल भी ईरान के खिलाफ जवाबी कार्रवाई की तैयारी कर रहा है। इस हालात में ईरान-इजराइल के बीच युद्ध होता है तो क्षेत्र में मौजूद तमाम मुस्लिम देशों की भूमिका बेहद अहम होगी। हालांकि सऊदी अरब, जॉर्डन और इजिप्ट जैसे देश अब तक इस तनाव में तटस्थ नजर आए हैं।

बांग्लादेश सरकार का बड़ा फैसला, भारत सहित इन 5 देशों से वापस बुलाए अपने राजदूत, जानें क्या है वजह

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बांग्लादेश में शेख हसीने के तख्तापलट के बाद भारत के साथ संबंध काफी प्रभावित हुए हैं। इस बीच बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने क और बड़ा फैसला लिया है। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने भारत सहित पांच देशों से अपने राजदूत वापस बुला लिए हैं। भारत के अलावा ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, पुर्तगाल और संयुक्त राष्ट्र से बांग्लादेश के राजदूत वापस बुलाए गए हैं।

जिन्हें बुलाया गया है उनमे भारत में उच्चायुक्त मुस्तफ़िज़ुर रहमान के अलावा न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र के स्थायी प्रतिनिधि और ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम और पुर्तगाल में राजदूत शामिल हैं। रहमान सहित वापस बुलाए गए कुछ राजनयिक आने वाले महीनों में सेवानिवृत्त होने वाले थे।राजनयिक रहमान को जुलाई 2022 में भारत में उच्चायुक्त नियुक्त किया गया था। इससे पहले वह जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र में बांग्लादेश के स्थायी प्रतिनिधि और स्विट्जरलैंड और सिंगापुर में दूत के रूप में काम कर चुके थे। उन्होंने विकास सहयोग को आगे बढ़ाने और दोनों पक्षों के बीच बेहतर संबंध बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय से जुड़े लोगों का मानना है कि प्रशासनिक प्रभाग के आदेश देश की विदेश नीति को लेकर अच्छे नहीं रहे हैं। इन लोगों का कहना है कि भारत में उच्चायुक्त सहित जिन राजदूतों को वापस बुलाया गया है, उनमें से कई राजनीतिक नियुक्तियां नहीं थीं।

बता दें कि बांग्लादेश में छात्र संगठनों के नेतृत्व में लगातार विरोध प्रदर्शन हुए। इसके कारण अगस्त की शुरुआत में शेख हसीना की सरकार गिर गई और उन्हें देश छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था। हसीना ने बांग्लादेश छोड़ने के बाद भारत में शरण ली। इस घटना के बाद से भारत-बांग्लादेश संबंध खराब स्थिति में हैं। नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व में कार्यवाहक प्रशासन ने हसीना के पद छोड़ने के कुछ दिनों बाद ही कार्यभार संभाल लिया।

इजराइल पर ईरान के हमले के बाद मिडिल ईस्ट में चरम पर तनाव, जंग के बीच भारत ने दिया शांति का संदेश
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* ईरान ने मंगलवार को इजरायल पर 200 से ज्यादा बैलिस्टिक मिसाइलों से भीषण हमला किया। ईरानी सेना ने बैलिस्टिक मिसाइलों की बौछार कर मुख्‍य रूप से सैन्य और सुरक्षा प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया गया। इजरायल की वायु रक्षा प्रणाली हमले को लेकर सक्रिय थी। इसी के चलते आसमान में ही कई मिसाइलों को नष्ट कर दिया गया, लेकिन इसके बावजूद कुछ मिसाइल जमीन पर गिरे और इजरायल को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा। इस हमले के बाद इजराइल भी हिल गया है। अब इजराइल में अंजाम भुगतने की चेतावनी दे डाली है।नेतन्याहू की तरफ से दी गई धमकी ने पश्चिम एशिया में बड़े युद्ध की दस्तक दे दी है। वहीं, मौजूदा हालात पर पहली बार भारत ने भी प्रतिक्रिया दी है। पश्चिम एशिया के हालात पर भारतीय विदेश मंत्रालय ने बातचीत और कूटनीति से मुद्दों को हल करने की अपील की है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी करते हुए कहा, हम पश्चिम एशिया में सुरक्षा स्थिति के बिगड़ने से बहुत चिंतित हैं और सभी संबंधित पक्षों से संयम बरतने और नागरिकों की सुरक्षा का आह्वान दोहराते हैं। विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में आगे कहा है कि यह महत्वपूर्ण है कि संघर्ष व्यापक क्षेत्रीय आयाम न ले ले और हम आग्रह करते हैं कि सभी मुद्दों को बातचीत और कूटनीति के माध्यम से हल किया जाना चाहिए। बता दें की भारत का हमेशा से यह मानना रहा है कि संघर्ष का समाधान केवल बातचीत से हो सकता है युद्ध से नहीं। हालांकि, पीएम मोदी ने हाल ही में इजराइल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू से बात की थी। वहीं, ईरान के जरिए इजरायल के खिलाफ मिसाइलों की बौछार शुरू करने से कुछ घंटे पहले वाशिंगटन में एक थिंक टैंक के साथ बातचीत के दौरान भारतीय विदेश मंत्री मंत्री ने कहा, हम संघर्ष के व्यापक होने की संभावना से चिंतित हैं, न केवल लेबनान में जो हुआ, बल्कि हौथियों और लाल सागर में भी, तथा ईरान और इजरायल के बीच जो कुछ भी घटित होगा, उससे भी। एक तरफ भारत युद्ध के हालात में शांति की बात कर रहा है, वहीं इजराइल पर हमले के बाद अमेरिका ने ईरान को चेतावनी दी है। इजराइल के समर्थन में अमेरिका खुलकर उतर गया है। अमेरिका ने ईरान को इजराइल पर हमले तुरंत बंद करने को कहा है नहीं तो उसे गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। बताया जा रहा है कि अमेरिकन इंटेलिजेंस ने इजराइल को पहले ही आगाह कर दिया था कि ईरान उस हमला करने वाला है।
Buoyant Chennaiyin FC lock horns with upbeat Odisha FC in a challenging away trip

Sports News

KKNB: Odisha FC will kick-start their Indian Super League (ISL) 2024-25 campaign at home against former champions Chennaiyin FC at the Kalinga Stadium in Bhubaneswar on Saturday, September 14, at 5:00 pm.

Odisha FC have a superb record against Chennaiyin FC at home in the ISL, winning all of their three home meetings against the Marina Machans. Contrastingly, Chennaiyin FC had a middling start to the campaign last year, winning twice and losing thrice in their first five games and would want to get on a strong footing right from the onset in the current campaign.

Sergio Lobera has been an ISL veteran, ever since coming to India in 2017. He joined Odisha FC last season and made an instant impact. Under the Spanish tactician’s leadership, they reached the ISL semi-finals for the first time, whilst also reaching the Super Cup final.

“This is my sixth season in India and with every season the difficulty keeps on rising. Every year the teams are getting stronger, the league is improving, more foreign players are coming and the level of Indian players is also improving a lot. I feel this will be another amazing season with many strong teams and we hope to compete very well against them,” Lobera told ISL.

Odisha FC goalkeeper Amrinder Singh opened up on the team’s approach towards the season, saying, “Our focus will be on our style of play, on how we want to go about our offensive and defensive game-plans. It’s football, eventually one team will play better than the other, but we are an attacking side and we will like to maintain that game-plan.”

Pic Courtesy by: ISL

चीन से क्यों भाग रहे विदेशी निवेशक? जून तिमाही में रिकॉर्ड पैसे निकाले

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चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकॉनमी वाले देश है। चीन की तेज़ी से होती आर्थिक तरक्की के पीछे एक बड़ा कारण यहां होने वाला विदेशी निवेश था। साल 1976 में माओ ज़ेडांग की मौत के बाद से चीन ने अपनी नीति में थोड़ा बदलाव किया और आर्थिक तरक्की का नया रास्ता अपनाया। उसने देश के दरवाज़े विदेशी निवेश के लिए खोले। जिसके बाद निवेश में बढ़ोतरी हुई और चीन की जीडीपी औसतन नौ फीसदी की दर से बढ़ने लगी। लेकिन सालों तक चला ये ट्रेंड अब पलटता दिख रहा है। 

विदेशी निवेशकों ने पिछली तिमाही में चीन से रिकॉर्ड मात्रा में पैसा निकाला, जो संभवतः दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के बारे में गहरे निराशावाद को दर्शाता है। शुक्रवार को जारी स्टेट एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ फॉरेन एक्सचेंज के आंकड़ों के अनुसार, भुगतान संतुलन में चीन की प्रत्यक्ष निवेश देनदारियां अप्रैल-जून की अवधि में लगभग 15 बिलियन डॉलर कम हो गईं, यह दूसरी बार है जब यह आंकड़ा नकारात्मक हो गया है। पहले छह महीनों में इसमें लगभग 5 बिलियन डॉलर की गिरावट आई थी।

अगर यह गिरावट इस साल जारी रही तो 1990 के बाद पहली बार ऐसा होगा जब चीन का आयात उसके निर्यात से कम हो जाए और वह नेट आउटफ्लो वाला देश बन जाए। 2021 में चीन में रिकॉर्ड 344 अरब डॉलर का फॉरेन इन्वेस्टमेंट आया था। इसके बाद से वहां विदेशी निवेश में गिरावट दिख रही है।लाख कोशिशों के बाद भी चीन की सरकार विदेशी कंपनियों और निवेशकों का भरोसा जीतने में नाकाम रही है। विदेशी निवेशक तेजी से चीन से पैसा निकालने में लगे हैं। यही वजह है कि 25 साल में पहली बार देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी एफडीआई गेज माइनस में चला गया है। 

माना जा रहा है कि चीन की इकॉनमी को कई मोर्चों पर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। साथ ही चीन और अमेरिका के बीच लंबे समय से तनातनी चल रही है। इससे विदेशी निवेशक और कंपनियां बुरी तरह घबराई हुई हैं और वहां से अपना पैसा निकाल रही हैं

चीन की जीडीपी की वार्षिक वृद्धि 2020 महामारी से पहले के पांच वर्षों में 6 से 7% थी, जब अर्थव्यवस्था ने चार दशकों में अपनी सबसे कमजोर वृद्धि दर्ज की थी। निर्यात ने 2021 में चीन की जीडीपी वृद्धि को 8% तक बढ़ाया, लेकिन फिर 2022 में यह 3% और 2023 में 5.2% तक गिर गई क्योंकि संपत्ति क्षेत्र, रोजगार और आय में गिरावट आई। विश्व बैंक ने 2024 में 4.8%, 2025 में 4.1% और 2026 में 4% की वृद्धि का अनुमान लगाया है।

ईरान-इजराइल के बीच युद्ध की आशंकाः दो दुश्मनों को ऐसे साध रहा भारत
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ईरान और इजरायल दोनों के बीच इन दिनों तकरार अपने चरम पर है। ईरान और इजराइल के बीच बढ़ती तनातनी के मध्य पूर्व में जंग के से हालात हैं। इंटरनेशनल मीडिया रिपोर्ट्स कहती है ईरान हमास चीफ इस्माइल हानिया की मौत के बाद इजरायल को सबक सिखाने के लिए पूरी तरह तैयार है। दूसरी तरफ ये चर्चा चल रही है कि अगर इन दोनों देशों में युद्ध छिड़ा तो विश्व में शांति का संदेश देने वाला भारत का स्टैंड क्या होगा? युद्ध में भारत आखिर किसका साथ देगा? इसे समझने के लिए ईरान और इजरायल के साथ भारत के रिश्ते को समझना पड़ेगा।

ईरान और इजरायल दोनों के साथ ही भारत के मैत्री संबंध हैं। दोनों देशों से भारत व्यापार करता है जो भारत की अर्थव्यवस्था के लिए भी अहम हैं। दोनों ही देशों से भारत पहले ही ड‍िप्‍लोमेसी का रास्‍ता अपनाने की बात कह चुका है। वह ब‍िल्‍कुल नहीं चाहता क‍ि उसके दो दोस्‍त आपस में भ‍िड़ जाएं। ऐसे में जानकारों का मानना है कि भारत के लिए ये स्थिति और परेशानी वाली हो सकती है क्योंकि ईरान और इजराइल दोनों से उसके अच्छे संबंध हैं। तो जानते हैं भारत के इन दोनों देशों के साथ कैसे कारोबारी रिश्‍ते हैं?

*पांच साल में भारत-इजरायल व्यापार दोगुना हुआ*
इजराइल के साथ भारत के राजनयिक संबंधों का इतिहास बहुत लंबा नहीं है। इजराइल 1948 में एक देश के तौर पर अस्तित्व में आया। जिसके बाद भारत ने 1992 में उसके साथ राजनयिक संबंध स्थापित किए। हालांकि, इसके बाद से भारत के इजराइल के साथ संबंध दिनोंदिन मज़बूत होते चले गए। अब इजराइल भारत को हथियार और तकनीकी निर्यात करने वाले शीर्ष देशों में से एक है।
पिछले पांच साल में भारत-इजरायल व्यापार दोगुना हो गया है। भारत ने 1992 में इजरायल के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किए थे। तब से दोनों देशों के बीच ट्रेड काफी बढ़ा है। यह 1992 में लगभग 20 करोड़ डॉलर (मुख्य रूप से डायमंड) से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2022-23 में 10.7 अरब डॉलर (रक्षा को छोड़कर) हो गया है। पिछले चार सालों में यह बढ़ोतरी तेज हुई है। इस दौरान व्यापार दोगुना हो गया। 2018-19 में 5.56 अरब डॉलर से 2022-23 में यह बढ़कर 10.7 अरब डॉलर पर पहुंच गया। 2021-22 और 2022-23 के बीच व्यापार में 36.90 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। यह 7.87 अरब डॉलर से 10.77 अरब डॉलर तक पहुंच गया।

*भारत और इजरायल में गहरा रक्षा संबंध*
भारत और इजरायल विभिन्न रक्षा और सुरक्षा क्षेत्रों में महत्वपूर्ण साझेदारी साझा करते हैं। इजरायल भारत के शीर्ष हथियार आपूर्तिकर्ताओं में से एक है। इजरायल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज (आईएआई) की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, भारत इस प्रसिद्ध इजरायली रक्षा दिग्गज और हथियार निर्माता के लिए प्राथमिक विदेशी ग्राहक है। हाल की कई रिपोर्टें इजरायल-गाजा संघर्ष के दौरान इजरायल की गोला-बारूद की मांग में उल्लेखनीय वृद्धि का संकेत देती हैं। भारत ने इस संकट के दौरान इजरायल को गोला-बारूद उपलब्ध कराकर उसका समर्थन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

*ईरान के साथ भारत के पुराने रिश्ते*
इजराइल से उलट ईरान के साथ भारत के पुराने रिश्ते हैं। भारत और ईरान के बीच के संबंध का काफी पुराना इतिहास है। दोनों देशों के बीच उच्च-स्तरीय आदान-प्रदान, व्यापारिक और कनेक्टिविटी सहयोग, सांस्कृतिक संबंध हैं। 15 मार्च 1950 को भारत और ईरान ने मैत्री संधि पर हस्ताक्षर किए थे। ईरान भारत को तेल आपूर्ति करने वाले शीर्ष देशों में से एक था। ईरान पर उसके परमाणु कार्यक्रम की वजह से लगे अंतराष्ट्रीय प्रतिबंधों से पहले भारत को तेल निर्यात करने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश ईरान था।

*पिछले पांच साल में भारत-ईरान व्यापार का मूल्य कम हुआ*
पिछले पांच साल में भारत-ईरान व्यापार का मूल्य कम हो गया है। वित्‍त वर्ष 2022-23 में ईरान भारत का 59वां सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार था। उसके साथ द्विपक्षीय व्यापार 2.33 अरब डॉलर तक पहुंच गया था। वित्त वर्ष 2022-23 में बढ़ोतरी से पहले ईरान के साथ भारत के व्यापार में कॉन्‍ट्रैक्‍शन देखा गया है। इसमें 2021-22 में 21.77 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी। यह 1.94 अरब डॉलर से बढ़कर 2022-23 में 2.33 अरब डॉलर हो गया था। हालांकि, इसके पिछले तीन वर्षों (2019-20, 2020-21 और 2021-22) में ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों के मद्देनजर साल-दर-साल 9.10 फीसदी से 72 फीसदी तक कॉन्‍ट्रैक्‍शन देखने को मिला। ईरान के साथ व्यापार भी 2018-19 में 17 अरब डॉलर के ऊंचे स्तर से घटकर 2019-20 में 4.77 अरब डॉलर और 2020-21 में 2.11 अरब डॉलर रह गया।

*ईरान के मुकाबले इजराइल से ज्यादा मजबूत संबंध*
इजरायल के साथ भारत के संबंध ईरान के मुकाबले काफी मजबूत हैं। अगर दोनों की तुलना करें तो इजरायल के साथ भारत कई मोर्चों पर डटा हुआ है। चाहे वो दोनों देशों के बीच राजनैतिक संबंध हों, चाहे वो कृषि हो, शिक्षा हो, स्वास्थ्य हो, डिफेंस सेक्टर हो या पानी को लेकर संधि हो, इजरायल और भारत लगभग हर मोर्चे पर एक-दूसरे के साथ हैं।

*दो कट्टर दुश्मनों को ऐसे साध रहा*
हालांकि, इजरायल और ईरान दोनों एक दूसरे के कट्टर दुश्मन हैं। इसके बावजूद भारत ने मध्य पूर्व के इन दोनों महत्वपूर्ण देशों का साधते हुए अपनी कूटनीति के दम पर विजय पाई है। भारत ने ईरान और इज़राइल में हितों को संतुलित करने का प्रयास किया है। एक तरफ भारत, ईरान समर्थित हमास के साथ इजराइल के संघर्ष में युद्ध सामग्री के रणनीतिक आपूर्तिकर्ता के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका स्थापित की है। इस बीच, एक महत्वपूर्ण कदम में, मई 2024 में भारत ने इजरायल के प्रतिद्वंद्वी ईरान के साथ चाबहार के रणनीतिक बंदरगाह को संचालित करने के लिए 10 साल के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए।
ह‍िन्‍दुओं की सुरक्षा करे बांग्‍लादेश की सरकार”, हिंदुओं पर हो रहे हमलों पर विदेश मंत्री एस जयशंकर की दो टूक

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बांग्लादेश में हिंदू संत चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी के बाद से हालात तनावपूर्ण हैं। अल्पसंख्यक हिंदू आबादी को पांच अगस्त को शेख हसीना की अवामी लीग सरकार के पतन के बाद से देश के 50 से अधिक जिलों में 200 से अधिक हमलों का सामना करना पड़ा है। इस हफ्ते हालात तब और खराब हो गए जब हिंदू आध्यात्मिक नेता चिन्मय कृष्ण दास को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया। बाद में उन्हें एक अदालत ने जमानत देने से इनकार कर दिया है, जिसके बाद राजधानी ढाका और बंदरगाह शहर चटगांव सहित कई जगहों पर समुदाय के सदस्यों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। भारत सरकार भी बांग्लादेश में हिंदुओं के हालात पर चिंता जाहिर कर चुकी है। अब बांग्‍लादेश में ह‍िन्‍दुओं के ख‍िलाफ ह‍िंंसा पर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने लोकसभा में जवाब द‍िया।

अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की जिम्मेदारी बांग्लादेश सरकार की-जयशंकर

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शुक्रवार को लोकसभा में बताया कि अगस्त 2024 में शेख हसीना के देश छोड़ने के बाद से हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों पर कई हमले हुए हैं। दुर्गा पूजा के दौरान भी मंदिरों और पूजा पंडालों पर हमले की खबरें आईं। भारत सरकार ने इन घटनाओं पर बांग्लादेश सरकार से चिंता जताई है। जयशंकर ने कहा कि बांग्लादेश के सभी अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की जिम्मेदारी बांग्लादेश सरकार की है।

बांग्लादेश के हालात पर भारत सरकार की चिंता

उधर, विदेश मंत्रालय ने भी इस बारे में भारत सरकार की चिंता बताई। विदेश मंत्रालय के प्रवक्‍त रणधीर जायसवाल ने कहा, भारत ने बांग्लादेश सरकार के साथ ह‍िन्‍दुओं और अन्य अल्पसंख्यकों पर खतरों और लक्षित हमलों को लगातार और दृढ़ता से उठाया है। इस मामले पर हमारी स्थिति स्पष्ट है। अंतरिम सरकार को सभी अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए।

बांग्लादेश के हालात पर भारत में उठ रहे सवाल

बता दें कि भारत में कई राजनेताओं ने, जिनमें विपक्षी नेता भी शामिल हैं, चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी और हिंदुओं के साथ हो रही हिंसा पर चिंता जताई है। उन्होंने नरेंद्र मोदी सरकार से इस मामले में हस्तक्षेप करने की अपील की है। बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भी गिरफ्तार हिंदू साधु का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि उन्हें गलत तरीके से गिरफ्तार किया गया है और उन्हें तुरंत रिहा किया जाना चाहिए।