आज का इतिहास:1949 में 14 सितंबर को ही संविधान सभा ने हिंदी को भारत की आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया था

नयी दिल्ली : 14 सितंबर का इतिहास काफी महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि 2001 में 14 सितंबर के दिन ही ओसामा बिन लादेन को पकड़ने के लिए अमेरिका में 40 अरब डॉलर मंजूर किए थे। 

2000 में आज ही के दिन भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अमेरिकी सीनेट के दोनों सदनों की सुयंक्त बैठक को संबोधित किया था।

2000 में 14 सितंबर को ही माइक्रोसॉफ्ट ने विंडोज एम.ई. की लांचिंग की थी।

2016 में आज के दिन तक ही पैरा ओलंपिक में भारत के अब तक 4 पदक जीत लिए थे। 

2009 में 14 सितंबर के दिन ही भारत ने श्रीलंका को 46 रनों से हराकर त्रिकोणीय सीरीज का कॉम्पैक कप जीता था। 

2006 में आज ही के दिन परमाणु ऊर्जा में सहयोग बढ़ाने पर इब्सा में सहमति बनी थी। 

2003 में 14 सितंबर को ही एस्टोनिया यूरोपीय संघ में शामिल हुआ था।

2003 में आज ही के दिन गुयाना-बिसाउ में सेना ने राष्ट्रपति कुंबा माला सरकार का तख्ता पलट कर दिया था।

2001 में 14 सितंबर के दिन ही ओसामा बिन लादेन को पकड़ने के लिए अमेरिका में 40 अरब डॉलर मंजूर किए थे।

2000 में आज ही के दिन भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अमेरिकी सीनेट के दोनों सदनों की सुयंक्त बैठक को संबोधित किया था।

2000 में 14 सितंबर को ही माइक्रोसॉफ्ट ने विंडोज एम.ई. की लांचिंग की थी।

1999 में आज ही के दिन किरीबाती, नाउरू और टोंगा संयुक्त राष्ट्र में शामिल हुए थे।

1960 में 14 सितंबर को ही ऑर्गेनाइजेशन ऑफ द पेट्रोलियम एक्‍सपोर्टिंग कंट्रीज का गठन किया था।

1960 में आज ही के दिन खनिज तेल उत्पादक देशों ने मिलकर ओपेक की स्थापना की थी।

1949 में 14 सितंबर को ही संविधान सभा ने हिंदी को भारत की आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया था।

1917 में आज ही के दिन रूस आधिकारिक तौर पर एक गणतंत्र घोषित हुआ था।

1911 में 14 सितंबर के दिन ही पीटर स्टॉलिपिन रूसी क्रांतिकारी शहीद हुए थे।

1833 में आज ही के दिन विलियम वेंटिक, भारत में पहला गवर्नर जनरल बनकर आया था।

1814 में 14 सितंबर को ही फ्रैंसिस कॉटकी द्वारा अमेरिका के राष्ट्रगान स्टार स्पैंगिल्ड बैनर लिखा गया था।

1770 में आज ही के दिन डेनमार्क में प्रेस की स्वतंत्रता को मान्यता मिली थी।

14 सितंबर को जन्में प्रसिद्ध व्यक्ति

1963 में आज ही के दिन भारतीय क्रिकेटर रॉबिन सिंह का जन्म हुआ था।

1932 में 14 सितंबर को ही प्रसिद्ध भारतीय स्वाधीनता सेनानी और क्रांतिकारी दुर्गा भाभी का जन्म हुआ था।

1930 में आज ही के दिन फ़िल्मों के निर्माता राजकुमार कोहली का जन्म हुआ था।

1921 में 14 सितंबर को ही कथाकर मोहन थपलियाल का जन्म हुआ था।

14 सितंबर को हुए निधन

2008 में आज ही के दिन मिर्ज़ा ग़ालिब के विशेषज्ञ और उर्दू के विद्वान राल्फ रसेल का निधन हुआ था।

1992 में 14 सितंबर को ही आधुनिक राजस्थान के सर्वाधिक प्रसिद्ध प्रकृति प्रेमी कवि चंद्रसिंह बिरकाली का निधन हुआ था।

1985 में आज ही के दिन हिंदी सिनेमा के संगीतकार रामकृष्ण शिंदे का निधन हुआ था।

1971 में 14 सितंबर को ही ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित प्रसिद्ध बांग्ला साहित्यकार ताराशंकर बंद्योपाध्याय का निधन हुआ था।

14 सितंबर को प्रमुख उत्सव

हिंदी दिवस

हिंदी दिवस: 75 साल पहले हिन्दी राजभाषा बनी, 1953 से हर साल 14 सितंबर को मनाया जाता है हिन्दी दिवस


नयी दिल्ली : आज हिन्दी दिवस है। आज ही के दिन 1949 में हिन्दी को भारत की राजभाषा का दर्जा दिया गया था। दरअसल, साल 1947 में जब भारत आजाद हुआ तो आजाद भारत के सामने कई बड़ी समस्याएं थीं। जिसमें से एक समस्या भाषा को लेकर भी थी। 

भारत में सैकड़ों भाषाएं और बोलियां बोली जाती थीं। ऐसे में राजभाषा क्या होगी ये तय करना एक बड़ी चुनौती थी। हालांकि, हिन्दी भारत में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। यही वजह है कि राष्‍ट्रपिता महात्‍मा गांधी ने हिंदी को जनमानस की भाषा कहा था।

संविधान सभा ने लंबी चर्चा के बाद 14 सितंबर को ये फैसला लिया कि हिन्दी ही भारत की राजभाषा होगी।

संविधान के अनुच्छेद 343 (1) में इसका उल्लेख है। इसके अनुसार भारत की राजभाषा ‘हिन्दी’ और लिपि ‘देवनागरी’ है। साल 1953 से हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए हर साल 14 सितंबर को हिन्दी दिवस मनाने की शुरुआत हुई।

हालांकि हिन्दी को आधिकारिक भाषा चुनने के बाद ही गैर-हिन्दी भाषी राज्यों का विरोध शुरू हो गया। सबसे ज्यादा विरोध दक्षिण भारत के राज्यों से हो रहा था। विरोध को देखते हुए संविधान लागू होने के अगले 15 वर्षों तक अंग्रेजी को भी भारत की राजभाषा बनाने का फैसला लिया गया, लेकिन जैसे ही ये तारीख नजदीक आने लगी दक्षिण भारतीय राज्यों का अंग्रेजी को लेकर आंदोलन फिर से जोर पकड़ने लगा। इसलिए सरकार को 1963 में राजभाषा अधिनियम लाना पड़ा। इसमें अंग्रेजी को 1965 के बाद भी कामकाज की भाषा बनाए रखना शामिल था। 

राज्यों को भी अधिकार दिए गए कि वे अपनी मर्जी के मुताबिक किसी भी भाषा में सरकारी कामकाज कर सकते हैं। फिलहाल देश में 22 भाषाओं को आधिकारिक भाषा का दर्जा मिला हुआ है।

आज, हिन्दी दुनिया की तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। हमारे देश में 77 प्रतिशत लोग हिन्दी बोलते, समझते और पढ़ते हैं।

जानते है झारखंड के प्रमुख ऐतिहासिक धरोहर के बारे में...

झारखंड, भारत का एक पूर्वी राज्य, न केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां के ऐतिहासिक धरोहरों का भी एक महत्वपूर्ण स्थान है। झारखंड की ऐतिहासिक धरोहरें यहां की समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत को दर्शाती हैं। आइए, झारखंड के कुछ प्रमुख ऐतिहासिक धरोहरों के बारे में जानते हैं:

1. पालामऊ किला

पालामऊ किला, जिसे "रोहतास किला" के नाम से भी जाना जाता है, पलामू जिले में स्थित है। यह किला एक ऊँची पहाड़ी पर स्थित है और इसे पाल वंश के राजाओं ने बनवाया था। इस किले का निर्माण 16वीं शताब्दी में हुआ था और यह उस समय के स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है। किले के अवशेष आज भी यहां की गौरवशाली इतिहास की कहानी बयां करते हैं।

2. मालूटी मंदिर

मालूटी, दुमका जिले में स्थित एक छोटा सा गांव है, जो अपने 72 प्राचीन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। इन मंदिरों का निर्माण 17वीं और 18वीं शताब्दी के बीच हुआ था। इन मंदिरों में टेराकोटा कला का अद्भुत प्रयोग किया गया है, जो बंगाल की वास्तुकला को दर्शाता है। यह मंदिर समूह भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के संरक्षण में है और इसे देखने के लिए देश-विदेश से पर्यटक आते हैं।

3. बैद्यनाथ धाम (देवघर)

बैद्यनाथ धाम, जिसे बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है, देवघर में स्थित है और यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह स्थल हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यधिक पवित्र माना जाता है। यहाँ की मान्यता है कि भगवान शिव ने अपने भक्त रावण को यहाँ दर्शन दिए थे। यहां का मंदिर वास्तुकला का अद्भुत नमूना है और इसकी पौराणिक कथा इसे और भी महत्वपूर्ण बनाती है।

4. नागफेनी मंदिर

नागफेनी मंदिर एक प्राचीन शिव मंदिर है, जो बोकारो जिले में स्थित है। यह मंदिर मुख्य रूप से नागवंशीय संस्कृति से जुड़ा हुआ है और इसे नाग देवता के लिए समर्पित माना जाता है। यहां पर प्रत्येक वर्ष नाग पंचमी के दिन एक विशाल मेला लगता है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं।

5. राजमहल की पहाड़ियाँ

राजमहल की पहाड़ियाँ सैंथाल परगना क्षेत्र में स्थित हैं और यह क्षेत्र पुरापाषाण काल से संबंधित है। यहां के अवशेषों से पता चलता है कि यह क्षेत्र प्रागैतिहासिक काल में बसा हुआ था। यहां पर कई प्राचीन शिलालेख और चित्र भी पाए गए हैं, जो उस समय की सभ्यता और संस्कृति के बारे में जानकारी देते हैं।

निष्कर्ष:

झारखंड की ऐतिहासिक धरोहरें राज्य की समृद्ध और विविध सांस्कृतिक विरासत को दर्शाती हैं। ये धरोहरें न केवल भारतीय इतिहास के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि ये झारखंड की पहचान और गर्व का भी हिस्सा हैं। इन्हें संरक्षित करने और अगली पीढ़ी तक पहुंचाने की जिम्मेदारी हम सबकी है।

अगर आप झारखंड की यात्रा करते हैं, तो इन ऐतिहासिक स्थलों को देखने का मौका न चूकें। ये धरोहरें न केवल आपको अतीत की झलक देंगी, बल्कि आपको भारत की विविधता और समृद्धि का एहसास भी कराएंगी।

राजा नाहर सिंह का महल: ऐतिहासिक धरोहर, वास्तुकला की सुंदरता और बॉलीवुड का चहेता स्थल


राजा नाहर सिंह का महल, जिसे बल्ली बाग़ पैलेस भी कहा जाता है, हरियाणा के बल्लभगढ़ में स्थित एक ऐतिहासिक धरोहर है। यह महल अपनी खूबसूरती, वास्तुकला और इतिहास के लिए प्रसिद्ध है, और इसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान योद्धा राजा नाहर सिंह की याद में बनाया गया था। महल का निर्माण 18वीं शताब्दी में हुआ था और इसे ऐतिहासिक धरोहर के रूप में संरक्षित किया गया है।

महल की ऐतिहासिक महत्ता

राजा नाहर सिंह ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनके नेतृत्व में बल्लभगढ़ के लोगों ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया था। यह महल उस समय की राजनीतिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र था। महल में कई कक्ष, दरबार हॉल, और आंगन हैं, जो उस युग की भव्यता को दर्शाते हैं। यहाँ के दरबार हॉल की सजावट और आंतरिक वास्तुकला तत्कालीन राजसी जीवनशैली का प्रतीक है।

महल की वास्तुकला

राजा नाहर सिंह के महल की वास्तुकला में मुगल और राजपूत शैली का मिश्रण देखने को मिलता है। महल की भव्यता, खूबसूरत जालीदार खिड़कियाँ, और नक्काशीदार दरवाजे इसे एक अनूठी पहचान देते हैं। महल के आंगन और बगीचे भी अत्यंत आकर्षक हैं, जो इसे एक पर्यटन स्थल के रूप में लोकप्रिय बनाते हैं।

बॉलीवुड में महल की लोकप्रियता

राजा नाहर सिंह का महल सिर्फ एक ऐतिहासिक स्थल ही नहीं है, बल्कि यह बॉलीवुड फिल्मों का भी एक लोकप्रिय शूटिंग स्थान है। इस महल की शाही खूबसूरती और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि ने इसे फिल्मों के लिए एक परफेक्ट लोकेशन बना दिया है। कई फिल्म निर्माताओं ने यहाँ पर अपने फिल्मों के दृश्य शूट किए हैं, जिससे इस महल की लोकप्रियता और भी बढ़ गई है। यहाँ के शांत और सुरम्य वातावरण में फिल्मों की शूटिंग करने का अनुभव अद्वितीय होता है।

पर्यटन और आयोजन स्थल

महल को अब एक हेरिटेज होटल के रूप में भी विकसित किया गया है, जहाँ लोग शादी, रिसेप्शन, और अन्य महत्वपूर्ण आयोजनों के लिए बुकिंग कर सकते हैं। यहाँ आकर पर्यटक इतिहास, संस्कृति और शाही जीवनशैली का अनुभव कर सकते हैं। महल का दौरा करने के लिए यह एक आदर्श स्थान है, खासकर उनके लिए जो ऐतिहासिक स्थलों और भारतीय संस्कृति में रुचि रखते हैं।

निष्कर्ष

राजा नाहर सिंह का महल अपने ऐतिहासिक महत्व, वास्तुकला, और बॉलीवुड में लोकप्रियता के कारण विशेष है। यह महल न केवल एक धरोहर है बल्कि इतिहास प्रेमियों और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र भी है। अगर आप एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक यात्रा की योजना बना रहे हैं, तो यह महल आपकी सूची में अवश्य होना चाहिए।

रिश्तों में 'Ghosting': एक अनदेखा दर्द जो बना सकता है डिप्रेशन का शिकार।


रिलेशनशिप के संदर्भ में 'Ghosting' एक ऐसा व्यवहार है, जिसमें एक व्यक्ति बिना किसी पूर्व सूचना के अचानक से अपने साथी के साथ हर तरह का संपर्क तोड़ देता है। इसका मतलब है कि वह व्यक्ति कॉल्स, मैसेजेज, सोशल मीडिया, और यहां तक कि व्यक्तिगत रूप से भी मिलना बंद कर देता है, बिना कोई स्पष्टीकरण दिए या कारण बताए। यह व्यवहार आज के डिजिटल युग में बहुत आम हो गया है, खासकर डेटिंग ऐप्स और सोशल मीडिया के माध्यम से बने रिश्तों में।

Ghosting का प्रभाव

जब कोई व्यक्ति Ghosting का शिकार होता है, तो यह उसके मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डाल सकता है। अचानक और बिना किसी वजह के संपर्क टूटने से व्यक्ति के मन में असुरक्षा, निराशा और उदासी की भावना उत्पन्न हो सकती है। यह भावनात्मक दर्द इतना गहरा हो सकता है कि व्यक्ति डिप्रेशन का शिकार हो सकता है।

Ghosting का शिकार हुए व्यक्ति को ऐसा लगता है कि उसे समझने या उसकी भावनाओं की कद्र नहीं की गई। वह अपने आप को दोषी मानने लगता है और सोचता है कि उसने ऐसा क्या गलत किया जिसकी वजह से सामने वाला व्यक्ति उसे छोड़ गया। इस तरह की सोच आत्मविश्वास को तोड़ देती है और व्यक्ति आत्म-संदेह में घिर जाता है।

Ghosting के कारण

Ghosting के कई कारण हो सकते हैं:

संवाद का अभाव: कई लोग मुश्किल या असहज बातचीत से बचने के लिए Ghosting का सहारा लेते हैं। उन्हें नहीं पता होता कि रिश्ते को खत्म करने के लिए कैसे बात की जाए।

भावनात्मक दूरी: जब किसी व्यक्ति को यह महसूस होता है कि रिश्ता उसके लिए सही नहीं है, तो वह बिना बताये दूरी बनाने की कोशिश कर सकता है।

डिजिटल प्लेटफॉर्म्स का प्रभाव: ऑनलाइन डेटिंग और सोशल मीडिया पर रिश्ते आसानी से बनते हैं और टूटते भी हैं। लोग तुरंत संपर्क बना सकते हैं और उतनी ही आसानी से संपर्क तोड़ भी सकते हैं।

Ghosting से निपटने के उपाय

खुद को दोष न दें: यह समझना महत्वपूर्ण है कि Ghosting करने वाले व्यक्ति का व्यवहार आपके नियंत्रण में नहीं है। खुद को दोष देना आपके मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है।

दोस्तों और परिवार से बात करें: अपने दोस्तों या परिवार के साथ इस अनुभव को साझा करें। उनके समर्थन से आपको भावनात्मक राहत मिल सकती है।

आत्म-देखभाल: योग, मेडिटेशन, और अन्य मानसिक स्वास्थ्य प्रथाओं का पालन करें जो आपको आराम और शांति दे सकें।

पेशेवर मदद लें: अगर आपको लगता है कि Ghosting का अनुभव आपके मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डाल रहा है, तो किसी मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से संपर्क करना सही होगा।

निष्कर्ष

Ghosting एक दर्दनाक अनुभव हो सकता है जो व्यक्ति को मानसिक और भावनात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है। यह जरूरी है कि हम इस मुद्दे को समझें और अपने और दूसरों के मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखें। रिश्तों में ईमानदारी और स्पष्टता बनाए रखने से हम इस तरह के नकारात्मक अनुभवों से बच सकते हैं।

जयंती विशेष: "हिंदी साहित्य के नक्षत्र: भगवतीचरण वर्मा का जीवन और योगदान"


भगवतीचरण वर्मा हिंदी साहित्य के प्रमुख साहित्यकारों में से एक थे, जिनका जन्म 30 अगस्त 1903 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के शफीपुर गांव में हुआ था। उन्होंने हिंदी साहित्य को अपने विशिष्ट लेखन शैली और विषयवस्तु से समृद्ध किया। उनका जीवन और कार्य हिंदी साहित्य के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

भगवतीचरण वर्मा का जन्म एक सामान्य परिवार में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा गांव में ही हुई। उच्च शिक्षा के लिए वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय गए, जहां से उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। इसी विश्वविद्यालय से उन्होंने विधि की पढ़ाई भी पूरी की।

साहित्यिक करियर

भगवतीचरण वर्मा का साहित्यिक करियर बहुत ही व्यापक और विविधतापूर्ण था। वे एक कवि, उपन्यासकार, नाटककार, और पत्रकार के रूप में जाने जाते थे। उनकी लेखनी में सामाजिक मुद्दों की गहरी समझ और उनकी अभिव्यक्ति की अनूठी शैली झलकती है। वर्मा जी ने अपने समय के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य पर अपनी कलम से गहरा प्रभाव डाला।

प्रमुख कृतियाँ

भगवतीचरण वर्मा की सबसे प्रसिद्ध कृति है "चित्रलेखा", जो 1934 में प्रकाशित हुई थी। यह उपन्यास उनके साहित्यिक जीवन का मील का पत्थर साबित हुआ। "चित्रलेखा" में उन्होंने नैतिकता और आध्यात्मिकता के प्रश्नों को बहुत ही गहनता से उठाया है। इसके अलावा उनके अन्य प्रमुख उपन्यासों में "भूमि पुत्र", "टूटे हुए खंडहर", "स्मृति की रेखाएँ" और "रंगभूमि" शामिल हैं।

कविताएँ और नाटक

भगवतीचरण वर्मा ने कविताएँ और नाटक भी लिखे। उनकी कविताओं में प्रेम, प्रकृति और समाज की झलक मिलती है। उनकी नाट्यकृतियों में भी उनके समय के सामाजिक और नैतिक प्रश्नों को बहुत ही प्रभावी तरीके से प्रस्तुत किया गया है।

पुरस्कार और सम्मान

भगवतीचरण वर्मा को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार और पद्म भूषण जैसे प्रतिष्ठित सम्मानों से नवाजा गया। उनके साहित्यिक कार्यों ने हिंदी साहित्य को समृद्ध किया और नई पीढ़ियों को प्रेरित किया।

अंतिम समय

भगवतीचरण वर्मा ने 5 अक्टूबर 1981 को

नेतरहाट: झारखंड का छिपा हुआ रत्न,जहां प्रकृति की गोद में मिलती है शांति


भारत के झारखंड राज्य में स्थित, नेतरहाट एक ऐसा हिल स्टेशन है जिसे "छोटा नागपुर का रानी" भी कहा जाता है। यह हिल स्टेशन अपनी प्राकृतिक सुंदरता, शांति, और आकर्षक वातावरण के लिए प्रसिद्ध है। अगर आप भीड़-भाड़ से दूर, शांति और सुकून की तलाश में हैं, तो नेतरहाट आपके लिए एक परफेक्ट गंतव्य हो सकता है। 

नेतरहाट को झारखंड का दिल कहा जाता है जहाँ हर तरफ अपार खूबसूरती है। जहाँ आप प्रकृति के बीच चिड़ियों का चहचहाना सुन सकते हैं। ये हिल स्टेशन सनराइज और सनसेट के लिए भी फेमस है। अगर आप सुकून और शांति चाहते हैं तो नेतरहाच हिल स्टेशन उसके लिए परफेक्ट है। यकीन मानिए झारखंड का नेतरहाट आपको किसी भी तरह से निराश नहीं करेगा। हर घुमक्कड़ को एक बार झारखंड के इस हिल स्टेशन की यात्रा जरूर करनी चाहिए।

नेतरहाट को झारखंड का मसूरी भी कहा जाता है। नेतरहाट झारखंड के लातेहार जिले में स्थित है जो रांची से 144 किमी. की दूरी पर है। पहाड़ों और जंगलों से घिरी इस जगह पर आदिवासी बहुत रहते हैं। यहाँ बिरहोर, उरांव और बिरजिया जनजाति के लोग रहते हैं। इसे छोटा नागपुर रानी भी कहते हैं। पहले यहाँ बांस का बहुत बड़ा जंगल था जिसे नेतरहातु कहा जाता था। बांस को स्थानीय भाषा में नेतुर कहते हैं। उसी के नाम पर इस जगह का नाम नेतरहाट पड़ा। नेतर यानी कि बांस और हातु मतलब हाट। समुद्र तल से 3,622 फीट की ऊँचाई पर स्थित इस हिल स्टेशन पर वाटरफाॅल से लेकर कई खूबसूरत झीलें हैं जो आपके सफर को यादगार बना देंगी।

कैसे पहुंचे?

फ्लाइट सेः

अगर आप फ्लाइट से नेतरहाट जाना चाहते हैं तो सबसे नजदीकी एयरपोर्ट रांची है। आपको देश के बड़े-बड़े शहरों से रांची के लिए फ्लाइट मिल जाएगी। रांची एयरपोर्ट से नेतरहाट की दूरी लगभग 156 किमी. है। आप वहाँ से टैक्सी बुक करके नेतरहाट जा सकते हैं या फिर रांची से बस भी नेतरहाट के लिए चलती है।

ट्रेन सेः

अगर आप ट्रेन से नेतरहाट जाने का मन बना रहे हैं तब भी आपको रांची आना पड़ेगा। नेतरहाट से सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन रांची है। रांची से आप टैक्सी से नेतरहाट पहुँच सकते हैं।

वाया रोड:

अगर आप वाया रोड नेतरहाट जाना चाहते हैं तो इसके दो तरीके हैं। पहला तो आप खुद की गाड़ी से नेतरहाट जा सकते हैं। दूसरा, आप रांची से बस या टैक्सी से नेतरहाट जा सकते हैं। रांची से नेतरहाट के लिए रोजाना बस चलती है।

क्या देखें?

झारखंड के इस खूबसूरत हिल स्टेशन में देखने को बहुत कुछ है। यहाँ के लिए आप एक अच्छी रोड ट्रिप प्लान कर सकते हैं। वाटरफाॅल्स, पहाड़ और सनसेट प्वाइंट को देख सकते हैं। कुल मिलाकर इस जगह पर वो सब है जो इसे खूबसूरत हिल स्टेशन बनाता है।

1- मंगोलिया प्वाइंट

नेतरहाट से लगभग 10 किमी. की दूरी पर एक खूबसूरत जगह है जो पहाड़ों को निहारने और डूबते सूरज के लिए लिए जाना जाता है। इस मंगोलिया प्वाइंट और मैगनोलिया प्वाइंट भी कहते हैं। इस जगह के बारे में एक किवदंती है। कहा जाता है कि अंग्रेजों के शासनकाल में एक ब्रिटिश लड़की आई थी, मैगनोलिया। उसे यहाँ एक स्थानीय लड़के स प्यार हो गया लेकिन समाज ने उसके प्यार को स्वीकार करने से मना कर दिया। तब उसने इसी पहाड़ी से कूदकर सुसाइड कर ली थी। उसके बाद से इस जगह का नाम मैगनोलिया प्वाइंट पड़ गया। नेतरहाट जाएं तो यहाँ का सनसेट आपको जरूर देखना चाहिए।

2- लोध वाटरफाॅल

नेतरहाट से 68 किमी. की दूर लोध वाटरफाॅल इस हिल स्टेशन की खूबसूरती में चार चाँद लगा देता है। लगभग 468 फीट ऊँचा ये झरना झारखंड का सबसे ऊँचा झरना है। जब आप यहाँ आएंगे तो इस जगह की खूबसूरत देखकर पागल हो जाएंगे। ये जगह आपको बेहद सुकून देगी। ऊँचाई से गिरते पानी का नजारा आपका मन मोह लेगा। ये जगह झारखंड की सबसे खूबसरत जगहों में से एक मानी जाती है। आदिवासियों की परंपरा को भी आप इस जगह पर देख पाएंगे। अगर आप लोध वाटरफाॅल जाएंगे तो इसकी खूबसूरती का अंदाजा लगा पाएंगे।

3- घाघरी वाटरफाॅल

नेतरहाट में लोध वाटरफाॅल के अलावा भी कई झरने हैं। जिनमें से घाघरी वाटरफाॅल्स भी है। घाघरी वाटरफाॅल असल में दो झरने हैं, निचला घाघरी वाटरफाॅल और ऊपरी घाघरी वाटरफाॅल। दोनों ही झरने बेहद खूबसूरते हैं। निचला घाघरी झरना नेतरहाट से 10 किमी. की दूरी पर है और ऊपरी घाघरा झरना 4 किमी. की दूरी पर है। निचला घाघरी वाटरफाॅल में 32 से फीट की ऊँचाई से जब पानी गिरता है तो इसकी खूबसूरती देखते ही बनती है।

वाटरफाॅल के आसपास इतने घने जंगल हैं कि सूरज की किरणें भी जमीन तक नहीं पहुँच पाती हैं। लोध वाटरफाॅल की तरह यहाँ ज्यादा भीड़ नहीं मिलेगी जो इस जगह को और भी शानदार बना देता है। निचले घाघरी वाटरफाॅल की तरह, ऊपरी घाघरी वाटरफाॅल भी बेहद खूबसूरत है। इसके आसपास घने जंगल नहीं है। ये जगह पिकनिक के लिए परफेक्ट है। अगर आप अपने फैमिली और दोस्तों के साथ नेतरहाट आते हैं तो आपको यहाँ जरूर आना चाहिए। घाघरी झरनों को देखे बिना नेतरहाट की सैर अधूरी रहेगी।

4- जंगल में ट्रेक करें

जहाँ पहाड़ हों और ट्रेक न हो सके, ऐसा हो ही नहीं सकता। नेतरहाट का पहाड़ चीड़ के जंगलों से घिरा हुआ है। अगर आप नेतरहाट में कुदरत की खूबसूरती और ऐडवेंचर करना चाहते हैं तो आपको यहाँ ट्रेक करना चाहिए। नेतरहाट, ट्रेक के लिए अच्छी जगह है। यहाँ के जंगल आपको बेहद खूबसूरत लगेंगे। वैसे भी प्रकृति की तो हर एक चीज खूबसूरत है। जब आप पहाड़ की ऊँचाई से नेतरहाट की खूबसूरती देखेंगे तो यकीन मानिए आपको झारखंड से प्यार हो जाएग

5- बदका बांध

नेतरहाट की एक और छिपी हुई जगह जिसके बारे में कम लोगों को ही पता है। इस जगह के बारे में सिर्फ स्थानीय लोगों ही पता है। जब आप सनसेट प्वाइंट पर जाते हैं तो रास्ते में खूबसूरत झील मिलती है। ये झील बेहद खूबसूरत है, जहाँ आपको कोई टूरिस्ट नहीं दिखाई देगा। कभी-कभी कोई नजारा देखकर थोड़ी देर ठहरने का मन करता है न? वैसी ही सुकून वाली खूबसूरत जगह है, बदका बांध। ये जगह जितनी खूबसूरत है, उतनी ही खतरनाक भी कह सकते हैं। यहाँ झील किनारे बहुत सारे जहरीले सांप भी दिखाई देते हैं। इसलिए यहाँ जाएं तो थोड़ा संभलकर चलें।

नाशपति गाॅर्डन

नेतरहाट में एक खूबसूरत गाॅर्डन है, नाशपति गाॅर्डन। यहाँ आप नेतरहाट की एक अलग खूबसूरती से रूबरू होंगे। इस गाॅर्डन में चारों तरफ फूल ही फूल दिखाई देंगे। जिनकी खूबसूरती को देखकर आप मन खुश हो उठेगा। यहाँ से जाने के बाद भी नाशपति का ये खूबसूरत गाॅर्डन आपके जेहन में बना रहेगा। अक्सर लोग नेतरहाट आते हैं लेकिन इस जगह पर जाना भूल जाते हैं। अगर आप नेतरहाट आते हैं तो इस जगह को अपनी बकेट लिस्ट में जरूर रखना चाहिए।

बेतला नेशनल पार्क

झारखंड के नेतरहाट में एक नेशनल पार्क भी है, बेतला नेशनल पार्क। अगर आप प्रकृति के करीब से देखना चाहते हैं तो आपको इस नेशनल पार्क को देखने जरूर आना चाहिए। इसके अलावा ये पार्क हाथियों के लिए भी जाना जाता है। आप यहाँ हाथियों को देखने भी आ सकते हैं। ये नेशनल पार्क अपनी खूबसूरती से आपका मन मोह लेगा। बेतला नेशनल पार्क 970 वर्ग किमी. में फैला हुआ है। आप यहाँ बाघ, हाथी, हिरण और बाइसन जैसे जानवरों को देख सकते हैं। इन नेशनल पार्क में कई वाटरफाॅल भी हैं। अगर आप नेतरहाट आते हैं तो यहाँ जरूर आएं।

आईए जानते है 6 ऐसे जानवर के बारे में जो बच्चे को जन्म देने के बाद मौत नींद सो जाती है।


कुछ ऐसे जानवर होते हैं जो बच्चे को जन्म देने के बाद मर जाते हैं। इसके पीछे कई बार उनके शारीरिक तंत्र, जैविक जरूरतें या प्रकृति का संतुलन बनाए रखने का कारण होता है। यहां 6 ऐसे जानवरों के बारे में बताया गया है:

1. समुद्री कछुआ: मादा समुद्री कछुआ जब अपने अंडों को रेत में देती है, तो वो उसके बाद अक्सर कमजोर हो जाती है और कुछ ही समय में मर जाती है।

2. ब्लैक विडो मकड़ी: यह मकड़ी अपने बच्चों को जन्म देने के बाद कमजोर हो जाती है और अक्सर अपने साथी द्वारा ही खा ली जाती है।

3. प्रेइंग मेंटिस: मादा मेंटिस बच्चे देने के बाद इतनी कमजोर हो जाती है कि नर मेंटिस उसे खा लेता है, और वह मर जाती है।

4. समुद्री मेंढक (एंफीऑक्सस): समुद्री मेंढक बच्चे को जन्म देने के बाद मर जाते हैं क्योंकि वे अपनी ऊर्जा को पूरी तरह बच्चे को जन्म देने में खर्च कर देते हैं।

5. सैमोनेला मछली: यह मछली नदी के ऊपर जाकर अंडे देती है, और इसके बाद उसकी मृत्यु हो जाती है।

6. ऑक्टोपस: मादा ऑक्टोपस अपने अंडों की रक्षा करने के लिए खुद को खाने से रोक लेती है और भूख के कारण मर जाती है।

ये जानवर इस बात के उदाहरण हैं कि प्रकृति में जीवन और मृत्यु का चक्र कैसे काम करता है।

गूगल पर भूल कर भी सर्च न करे ये 6 चीजे वरना हो सकती हैं जेल


Google एक पावरफुल और दुनियाभर में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला सर्च इंजन है. गूगल सर्च की मदद से हमें हर तरह की जानकारी मिल जाती है. लेकिन, गूगल का इस्तेमाल कुछ ऐसी चीजों को खोजने के लिए भी किया जा सकता है जो गैरकानूनी या हानिकारक हैं।

गूगल पर कुछ भी सर्च करने से पहले सतर्क रहने की आवश्यकता है। कुछ सर्च करने से आपको परेशानी हो सकती है और यहां तक कि जेल भी हो सकती है। यहां कुछ ऐसी चीजें हैं जिन्हें गूगल पर सर्च करने से बचना चाहिए:

1. पास्को एक्ट 2012 से संबंधित टॉपिक्स: भारत सरकार इस टॉपिक को लेकर काफी सख्त है। अगर आपने गूगल पर यह टॉपिक सर्च किया है तो आपको 5 साल से लेकर 7 साल तक की सजा हो सकती है।

2. किसी पीड़िता का नाम और फोटो शेयर करना: किसी ऐसी पीड़िता की फोटो या नाम को शेयर करना जिसके साथ छेड़छाड़ या दुर्व्यवहार हुआ, गैरकानूनी है। ऐसा करने पर आपको जेल जाना पड़ सकता है।

3. फिल्म पाइरेसी: अगर आप फिल्म पाइरेसी में लिप्त हैं तो आपको सिनेमेटोग्राफी एक्ट 1952 के तहत न्यूनतम 3 साल की सजा हो सकती है और 10 लाख रुपये का जुर्माना देना पड़ सकता है।

4. गर्भपात: अगर आप गूगल पर यह सर्च करते हैं कि गर्भपात कैसे करना है तो यह गैरकानूनी होता है। ऐसा करने से आपको जेल जाना पड़ सकता है।

5. प्राइवेट फोटो और वीडियो: सिर्फ गूगल ही नहीं बल्कि किसी की भी फोटो या वीडियो बिना किसी के परमीशन के शेयर करना अपराध है। इससे आपको जेल जाना पड़ सकता है।

6. बम का प्रोसेस: अगर आप गूगल पर यह सर्च कर रहे हैं कि बम कैसे बनाया जाता है तो आपको जेल जाना पड़ सकता है। ऐसा करने पर आपके कंप्यूटर या लैपटॉप का आईपी एड्रेस सीधा सुरक्षा एजेंसियों तक पहुंच जाता है।

जानिए क्यों मनाई जाती है कृष्ण जन्माष्टमी, आईए जानते हैं इसका पौराणिक इतिहास और महत्व


नयी दिल्ली : भगवान विष्णु ने धरती पर पाप और अधर्म का नाश करने के लिए हर युग में अवतार लिया। विष्णु जी के एक अवतार भगवान श्रीकृष्ण हैं, जिनका जन्म मथुरा की राजकुमारी देवकी और वासुदेव की आठवीं संतान के रूप में हुआ था। राजा कंश की जेल में जन्में कान्हा का बचपन गोकुल में माता यशोदा और नंद बाबा की गोद में बीता। राजा कंस से बचाने के लिए वासुदेव ने कान्हा के जन्म के बाद ही अपने चचेरे भाई नंदबाबा और यशोदा को दे दिया था।

श्रीकृष्ण ने अपने जन्म से लेकर जीवन के हर पड़ाव पर चमत्कार दिखाए।

श्रीकृष्ण के जीवन से जुड़े कई किस्से हैं, जो मानव समाज को सीख देते हैं। अधर्म और पाप के खिलाफ सही मार्गदर्शन करते हैं। उनके जन्मदिवस को उत्सव की तरह हर साल भक्त मनाते हैं। इस मौके पर जानिए कृष्ण जन्माष्टमी का इतिहास और महत्व।

कब है कृष्ण जन्माष्टमी 2024

कृष्ण जन्माष्टमी हर साल भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की आष्टमी तिथि को मनाई जाएगी। इस बार कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व 28 अगस्त, 2024 को मनाया जा रहा है।

कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व 

पुराणों के मुताबिक, श्रीकृष्ण त्रिदेवों में से एक भगवान विष्णु के अवतार हैं। कृष्ण के आशीर्वाद और कृपा को पाने के लिए हर साल लोग इस दिन व्रत रखते हैं, मध्य रात्रि में विधि विधान से पूजा अर्चना करते हैं। भजन कीर्तन करते हैं और जन्मोत्सव मनाते हैं। इस दिन के लिए मंदिरों को विशेष तौर पर सजाया जाता है। कुछ स्थानों पर जन्माष्टमी पर दही-हांडी का भी उत्सव होता है। 

कैसे मनाते हैं कृष्ण जन्माष्टमी?

जन्माष्टमी पर भक्त श्रद्धानुसार उपवास रखते हैं। भगवान श्रीकृष्ण की विशेष पूजा अर्चना की जाती हैं।

बाल गोपाल की जन्म मध्य रात्रि में हुआ था। इसलिए जन्माष्टमी की तिथि की मध्यरात्रि को घर में मौजूद लड्डू गोपाल की प्रतिमा का जन्म कराया जाता है। फिर उन्हें स्नान कराकर सुंदर वस्त्र धारण कराए जाते हैं। फूल अर्पित कर धूप-दीप से वंदन किया जाता है। कान्हा को भोग अर्पित किया जाता है। उन्हें दूध-दही, मक्खन विशेष पसंद हैं। इसलिए भगवान को भोग लगाकर सबको प्रसाद वितरित किया जाता है।

 

क्यों और कैसे मनाते हैं दही हांडी?

कुछ जगहों पर जन्माष्टमी के दिन दही हांडी का आयोजन होता है। गुजरात और महाराष्ट्र में दही हांडी का विशेष महत्व है। दही हांडी का इतिहास बहुत दिलचस्प है। बालपन में कान्हा बहुत नटखट थे। वह पूरे गांव में अपनी शरारतों के लिए प्रसिद्ध थे। कन्हैया को माखन, दही और दूध बहुत प्रिय था। उन्हें माखन इतना प्रिय था कि वह अपने सखा संग मिलकर गांव के लोगों के घर का माखन चोरी करके खा जाते थे।

कान्हा से माखन बचाने के लिए महिलाएं माखन की मटकी को ऊंचाई पर लटका दिया करती, लेकिन बाल गोपाल अपने मित्रों के साथ मिलकर एक पिरामिड बनाकर उसके जरिए ऊंचाई पर लटकी मटकी से माखन चोरी कर लेते।

कृष्ण के इन्ही शरारतों को याद करने के लिए जन्माष्टमी में माखन की मटकी को ऊंचाई पर टांग दिया जाता है। लड़के नाचते गाते पिरामिड बनाते हुए मटकी तक पहुंचकर उसे फोड़ देते हैं। इसे दही हांडी कहते हैं, जो लड़का ऊपर तक जाता है, उसे गोविंदा कहा जाता है।