Swarup

Aug 16 2024, 13:13

अगर आप भी खून की कमी यानी एनीमिया की शिकायत से हैं पीड़ित  तो दवाओं व खानपान के जरिए इस रोग का इलाज करने के साथ योग का ले सहारा

एनीमिया एक ऐसी स्थिति है जिसमें शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं (RBC) या हीमोग्लोबिन की कमी हो जाती है। एनीमिया के कारण शरीर के ऊतकों और अंगों को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती, जिससे कमजोरी और थकान जैसी समस्याएं हो सकती हैं। एनीमिया आयरन की कमी, विटामिन बी12 और फोलिक एसिड की कमी, अत्यधिक रक्तस्त्राव, क्रॉनिक डिजीज जैसे, कैंसर और अल्प उत्पादन के कारण हो सकती है।

योग शरीर और मस्तिष्क को स्वस्थ रखने का एक अच्छा जरिया है। योग के माध्यम से कई रोगों से बचाव किया जा सकता है, तो वहीं किसी बीमारियों के जड़ से इलाज में भी योग क्रियाएं असरदार है। अगर आप भी खून की कमी यानी एनीमिया की शिकायत से पीड़ित हैं तो दवाओं व खानपान के जरिए इस रोग का इलाज करने के साथ ही जड़ से एनीमिया को खत्म करने के लिए योग का सहारा ले सकते हैं। यहां कुछ ऐसे योगासनों के बारे में बताया जा रहा है, जो एनीमिया के रोगियों के लिए फायदेमंद हैं।

कपालभाति
कपालभाति के पेट की चर्बी तेजी से कम करने में असरदार योग क्रिया है। इस आसन से मोटापा कम हो सकता है। इसके अलावा रक्त की समस्याएं भी तेजी से दूर हो सकती हैं। एनीमिया रोगियों के लिए कपालभाति का नियमित अभ्यास लाभकारी है।

सर्वांगासन
सर्वांगासन योग शरीर के हर हिस्से के लिए फायदेमंद होता है। इस आसन के नियमित अभ्यास से रक्त शरीर के निचले हिस्से और निचले हिस्से का रक्त शरीर के ऊपरी हिस्से में आसानी से पहुंचता है। सर्वांगासन ब्लड सर्कुलेशन के लिए फायदेमंद है।

प्राणायाम
खून की कमी को दूर करने के लिए प्राणायाम का अभ्यास कर सकते हैं। इसमें सूर्यभेद प्राणायाम, अनुलोम-विलोम प्राणायाम का अभ्यास असरदार है। ये प्राणायाम शरीर में रक्त के विकार तेजी से दूर करते हैं।

नोट: हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।

Swarup

Aug 14 2024, 12:28

अंगदान को यूं ही नहीं कहते जीवनदान,लेकिन भारत में अंगदान को लेकर कई सारी चुनौतियां

अंगदान को महादान कहा जाता है, जिसकी मदद से दुनियाभर में हर साल लाखों लोगों की जान बचाई जा सकती है। हालांकि भारत में दुर्भाग्यवश अंगों की जरूरत और अंगदान के बीच बड़ी खाई बनी हुई है। विशेषज्ञ कहते हैं, लोगों में अंगदान को लेकर जागरूकता की कमी और इससे जुड़ी मिथकों के कारण चुनौतियां लगातार बढ़ती जा रही हैं।

अंगदान के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने और इससे जुड़ी मिथकों को दूर करने के लिए हर साल 13 अगस्त को विश्व अंगदान दिवस मनाया जाता है।

रिपोर्ट्स से पता चलता है, भारत में अंगदान की दर काफी कम है। यहां पर शव से अंगदान का आंकड़ा प्रति दस लाख लोगों में एक से भी कम है। इसके विपरीत, पश्चिमी देशों में 70-80 प्रतिशत अंगदान मृतकों के शरीर से प्राप्त हो रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है अंगदान की कमी के साथ-साथ देश में अंगों की बर्बादी भी बड़ी चुनौती बनी हुई है जो निश्चित ही चिंता बढ़ाने वाली समस्या है। अंगदान को लेकर चुनौतियां

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मिथकों और लोगों में सही जानकारी की कमी के कारण हर साल लगभग बड़ी संख्या में किडनी और अन्य महत्वपूर्ण अंग नष्ट हो जाते हैं। अस्पतालों में ब्रेन डेड लोगों की समय पर पहचान नहीं हो पाती है, जिसकी वजह से संभावित दाताओं की उपलब्धता के बावजूद देश में अंग दान की दर में उल्लेखनीय कमी देखी जा रही है।

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, भारत जैसे घनी आबादी वाले देश में ये बड़ी विडंबना है कि हर साल हजारों जीवन रक्षक अंग या तो बर्बाद हो जाते हैं या फिर समय रहते उन्हें प्राप्त नहीं किया जाता है।

क्या कहते हैं स्वास्थ्य विशेषज्ञ?

अमर उजाला से बातचीत में पुणे स्थित एक अस्पताल में हेमेटोलॉजिस्ट और सर्जन डॉ एन. आर पाठक बताते हैं, देश में उपलब्ध अंगों और जरूरतमंद मरीजों की संख्या के बीच का अंतर बहुत बड़ा है। लॉजिस्टिक और सिस्टमिक चुनौतियों के कारण अंगों की बर्बादी भी एक गंभीर मुद्दा है, जिसमें सुधार की आवश्यकता है।

जिन राज्यों में इस दिशा में काम किया गया है वहां के परिणाम काफी अच्छे रहे हैं। गुजरात में अंगदान के आंकड़े काफी बेहतर रहे हैं जिससे दूसरे राज्यों को भी सीख लेने की जरूरत है। अंगदान को लेकर दाताओं को प्रोत्साहित करना इस दिशा में काफी मददगार साबित हो सकता है।

गुजरात में बढ़ा अंगदान का आंकड़ा

स्टेट ऑर्गन एंड टिशू ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइजेशन गुजरात के आंकड़ों के अनुसार कोविड-पूर्व समय की तुलना में 2023 में राज्य में अंगदान में 275% की प्रभावशाली वृद्धि हुई है। इसके अलावा, चालू वर्ष (2024) में अंगदान पछले वर्ष के कुल अंगदान का लगभग 50% तक पहुंच चुका है। डेटा से पता चलता है कि 2019 में 170 अंगदान हुए थे, जो 2023 में बढ़कर 469 हो गए। इसके अलावा, 2024 में अब तक 231 अंगदान हो चुके हैं।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि अन्य राज्यों को भी इन आंकड़ों से प्रेरणा लेकर अंगदान को बढ़ावा देने के तरीकों के बारे में विचार करना चाहिए। स्वास्थ्य मंत्रालय ने जारी की एसओपी

अंगदान को बढ़ावा देने और अंगों के बेहतर रखरखाव को लेकर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने हाल ही में यात्रा के विभिन्न साधनों के माध्यम से मानव अंगों के परिवहन के लिए पहली एसओपी जारी की है। इसके तहत अंगों को ले जाने वाली एयरलाइनों को प्राथमिकता के आधार पर उड़ान भरने और उतरने के लिए की व्यवस्था करने की अनुमति होगी।

केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव अपूर्व चंद्रा ने कहा, अंगों के परिवहन प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करके, हम बहुमूल्य अंगों के उपयोग को बढ़ाने और इसके खराब होने की दिशा में बेहतर सुधार कर सकते हैं।

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Aug 14 2024, 12:16

सावधान !आपका एक शौक बना सकता है हमेशा के लिए बहरा,कुछ सालों में बहरे हो जाएंगे 100 करोड़ युवा! आप भी हो सकते हैं शामिल?

कम सुनाई देने या बहरेपन का खतरा वैश्विक स्तर पर बढ़ता हुआ देखा जा रहा है। उम्र बढ़ने के साथ कानों की बीमारियां होना सामान्य माना जाता है पर हालिया रिपोर्ट्स के मुताबिक आश्चर्यजनक रूप से पिछले कुछ वर्षों में कम आयु के लोगों में भी ये खतरा बढ़ता जा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने एक हालिया रिपोर्ट में चिंता जताते हुए कहा, इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स, खास तौर पर ईयरबड्स और हेडफोन के बढ़ते उपयोग के कारण कम सुनाई देने और बहरेपन के मामले अब काफी ज्यादा हो गए हैं। डब्ल्यूएचओ ने अपनी रिपोर्ट में सावधान करते हुए कहा, 12 से 35 वर्ष की आयु के एक बिलियन (100 करोड़) से अधिक लोगों में सुनने की क्षमता कम होना या बहरेपन का जोखिम हो सकता है। इसके लिए मुख्यरूप से लंबे समय तक ईयरबड्स से तेज आवाज में संगीत सुनने और शोरगुल वाली जगहों पर रहना एक बड़ा कारण माना जा रहा है।

तेज आवाज वाले ये उपकरण आंतरिक कान को क्षति पहुंचाते हैं। सभी लोगों को इन उपकरणों का इस्तेमाल बड़ी सावधानी से करना चाहिए।

तेज आवाज से कानों को हो रहा है नुकसान रिपोर्ट के मुताबिक ईयरबड्स या हेडफोन के साथ पर्सनल म्यूजिक प्लेयर का इस्तेमाल करने वाले लगभग 65 प्रतिशत लोग लगातार 85 (डेसिबल) से ज्यादा आवाज में इसे प्रयोग में लाते हैं। इतनी तीव्रता वाली आवाज को कानों के आंतरिक हिस्से के लिए काफी हानिकारक पाया गया है।

शरीर के अन्य भागों में होने वाली क्षति के विपरीत, आंतरिक कान की क्षति के ठीक होने की संभावना भी कम होती है। तेज आवाज के संपर्क के कारण समय के साथ कोशिकाएं क्षतिग्रस्त होती जाती हैं। इससे सुनने की क्षमता और भी खराब होती जाती है। वैश्विक स्तर पर आने वाले दशकों में करोड़ों लोगों में इस तरह की समस्या होने की आशंका है।

विशेषज्ञों ने जताई चिंता? कोलोराडो विश्वविद्यालय में ईएनटी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ डैनियल फिंक कहते हैं, मुझे लगता है कि व्यापक स्तर पर, चिकित्सा और ऑडियोलॉजी समुदाय को इस गंभीर खतरे को लेकर ध्यान देने की आवश्यकता है। युवा आबादी में  ईयरबड्स जैसे उपकरणों का बढ़ता इस्तेमाल 40 की उम्र तक सुनने की क्षमता को कम कमजोर करने वाली स्थिति हो सकती है। डिमेंशिया का भी बढ़ जाता है जोखिम

साल 2011 के एक अध्ययन के अनुसार सुनने की क्षमता में कमी को सिर्फ कानों का समस्याओं तक ही सीमित नहीं किया जाना चाहिए। ऐसे लोगों में मस्तिष्क से संबंधित बीमारियों जैसे डिमेंशिया का जोखिम भी काफी बढ़ जाता है। सुनने की क्षमता में कमी वाले लोगों में डिमेंशिया रोग होने का जोखिम दो गुना अधिक देखा गया। वहीं जिन लोगों को बिल्कुल नहीं सुनाई देता था या जो लोग बहरेपन के शिकार थे उनमें डिमेंशिया के खतरे को पांच गुना अधिक पाया गया।

डॉ डैनियल कहते हैं, कुछ आशाजनक अध्ययनों से पता चलता है सुनने की समस्याओं का इलाज करने से संज्ञानात्मक गिरावट और मनोभ्रंश का जोखिमों को कम किया जा सकता है।

कम रखें ध्वनि
स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, ध्वनि को डेसिबल नामक इकाई में मापा जाता है। 60-70 डेसिबल या उससे कम की ध्वनि को आमतौर पर सुरक्षित माना जाता है। हालांकि, 85 या उससे अधिक की ध्वनि के लंबे समय तक या बार-बार संपर्क में रहने से सुनने की क्षमता कम हो सकती है। ईयरबड्स और हेडफोन्स जैसे उपकरणों की ध्वनि 100 से अधिक हो सकती है, जिसका अगर कुछ घंटे ही इस्तेमाल कर लिया जाए तो कानों की कोशिकाओं को क्षति पहुंचने और सुनने की समस्या बढ़ने का जोखिम हो सकता है।

नोट: हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।

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Aug 14 2024, 11:35

बाजार में बिक रहे नमक और चीनी में माइक्रोप्लास्टिक, कैंसर का बन रहा कारण

नमक और चीनी के सेवन को संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए कई प्रकार से हानिकारक माना जाता रहा है। इसके अधिक सेवन से डायबिटीज, शरीर में इंफ्लामेशन से लेकर ब्लड प्रेशर और हार्ट की बीमारियों का खतरा हो सकता है। हालांकि नमक-चीनी से सेहत को होने वाले नुकसान यहीं तक सीमित नहीं हैं, इससे कैंसर होने का खतरा भी काफी बढ़ सकता है।

असल में एक हालिया अध्ययन में पता चला है कि भारतीय ब्रांड वाले नमक और चीनी में माइक्रोप्लास्टिक्स हो सकते हैं। नमक और चीनी चाहे पैक्ड हों या अनपैक्ड लगभग सभी में माइक्रोप्लास्टिक्स पाए गए हैं। गौरतलब है कि माइक्रोप्लास्टिक्स को कैंसर के प्रमुख कारकों में से एक माना जाता है। पर्यावरण अनुसंधान संगठन टॉक्सिक्स लिंक ने इस अध्ययन को 'माइक्रोप्लास्टिक्स इन सॉल्ट एंड शुगर' नाम से प्रकाशित किया है। शोधकर्ताओं ने कहा माइक्रोप्लास्टिक्स वाली चीजें कई प्रकार के कैंसर के साथ मस्तिष्क और तंत्रिकाओं से संबधित विकारों को भी बढ़ाने वाली हो सकती हैं। सभी लोगों को ऐसी चीजों को लेकर विशेष सावधानी और सतर्कता बरतते रहने की आवश्यकता है।

नमक और चीनी में माइक्रोप्लास्टिक

इस अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने भारत में बिकने वाले टेबल सॉल्ट, सेंधा नमक, समुद्री नमक और स्थानीय कच्चा नमक जैसे 10 प्रकार के नमकों पर अध्ययन किया। इसके साथ ऑनलाइन और स्थानीय बाजारों से खरीदी गई पांच प्रकार की चीनी का भी परीक्षण किया गया। अध्ययन में सभी नमक और चीनी के सैंपल में फाइबर और छोटे टुकड़ों सहित विभिन्न रूपों में माइक्रोप्लास्टिक्स की उपस्थिति का पता चला। इन माइक्रोप्लास्टिक्स का आकार 0.1 मिमी से 5 मिमी तक था। आयोडीन युक्त नमक में माइक्रोप्लास्टिक्स की उच्चतम मात्रा पाई गई।इस आकार के माइक्रोप्लास्टिक्स गंभीर रूप से सेहत को नुकसान पहुंचाने वाले हो सकते हैं।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

टॉक्सिक्स लिंक के संस्थापक-निदेशक रवि अग्रवाल ने बताया, हमारे अध्ययन का उद्देश्य माइक्रोप्लास्टिक पर मौजूदा वैज्ञानिक डेटाबेस में योगदान देना था। माइक्रोप्लास्टिक और इसके कारण होने वाले स्वास्थ्य जोखिम बड़ी चिंता का कारण रहे हैं।

अध्ययन में सभी नमक और चीनी के सैंपल में माइक्रोप्लास्टिक पाया जाना चिंताजनक है। मानव स्वास्थ्य पर माइक्रोप्लास्टिक के दीर्घकालिक दुष्प्रभावों पर तत्काल, व्यापक शोध की आवश्यकता है। नमक के सैंपलों में माइक्रोप्लास्टिक की सांद्रता प्रति किलोग्राम सूखे वजन में 6.71 से 89.15 टुकड़े तक थी। ये मात्रा हमारी सेहत को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाने के लिए काफी है।


चीनी में भी पाई गई मात्रा

चीनी के सैंपलों में माइक्रोप्लास्टिक की सांद्रता 11.85 से 68.25 टुकड़े प्रति किलोग्राम तक थी, जिसमें सबसे अधिक सांद्रता नॉन-ऑर्गेनिक चीनी में पाई गई। चूंकि हमारे घरों में नमक और चीनी दोनों का रोजाना सेवन किया जाता रहा है इसलिए जोखिमों को लेकर अलर्ट रहना बहुत जरूरी है।

अध्ययनों में पाया गया था कि औसत भारतीय हर दिन 10.98 ग्राम नमक और लगभग 10 चम्मच चीनी खाता है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन की अनुशंसित सीमा से बहुत अधिक है। इसमें माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी और भी चिंता बढ़ाने वाली मानी जा रही है।
हाल ही में किए गए शोध में फेफड़े, हृदय जैसे मानव अंगों और यहां तक कि स्तन के दूध और अजन्मे शिशुओं में भी माइक्रोप्लास्टिक पाया गया है।

शोधकर्ताओं ने कहा अगर आप भी प्लास्टिक की बोतल में पानी पीते हैं तो भी सावधान हो जाइए। प्लास्टिक की बोतल में प्रत्येक लीटर पानी में प्लास्टिक के 100,000 से अधिक सूक्ष्म टुकड़े हो सकते हैं।  केवल एक बोतल पानी पीने से हम 10 गुना अधिक मात्रा में प्लास्टिक को शरीर में प्रवेश की अनुमति दे रहे होते हैं। प्लास्टिक के छोटे-छोटे टुकड़े जो बोतलों की परतों से निकालते हैं उन्हें माइक्रोप्लास्टिक्स और नैनोप्लास्टिक्स कहा जाता है। ये समय के साथ शरीर में कई बीमारियों का कारक हो सकते हैं।

Swarup

Aug 12 2024, 11:29

मस्तिष्क की इस बीमारी का अभी तक कोई विशिष्ट उपचार नहीं है,दुनियाभर में 5 करोड़ से अधिक लोगों को मस्तिष्क की ये बीमारी

मस्तिष्क और तंत्रिका से संबंधित समस्याएं वैश्विक स्तर पर तेजी से बढ़ती हुई रिपोर्ट की जा रही हैं। अल्जाइमर-डिमेंशिया जैसी बीमारियां बड़ी संख्या में लोगों को परेशान कर रही हैं। अल्जाइमर रोग के कारण याददाश्त की समस्या होने, बातचीत करने में परेशानी होने लगती है। समय पर अगर इसपर ध्यान न दिया जाए तो गंभीर स्थितियों में ये डिमेंशिया का कारण बन सकती है।

मनोभ्रंश (डिमेंशिया) के कारण स्मृति, भाषा, समस्याओं का समाधान करने और सोचने की क्षमता कम होने जैसी दिक्कतें होने लगती हैं। एक आंकडे़ के अनुसार वैश्विक स्तर पर 55 मिलियन (5.5 करोड़) से अधिक लोग डिमेंशिया के शिकार हो सकते हैं। उम्र बढ़ने के साथ इस तरह की दिक्कतों का होना सामान्य है, विशेषतौर पर 60 साल की आयु के बाद इसका खतरा और भी बढ़ जाता है। अध्ययनकर्ताओं ने बताया हमारी दिनचर्या की कई गड़बड़ आदतें इस बीमारी के लिए जिम्मेदार हो सकती हैं, जिसके बारे में सभी लोगों को जानना और बचाव के लिए कम उम्र से ही प्रयास करते रहना आवश्यक है।

अल्जाइमर और डिमेंशिया का खतरा

अल्जाइमर और डिमेंशिया के बढ़ते जोखिमों को लेकर हाल में किए गए अध्ययनों में पाया गया है कि 55 की उम्र में भी कई लोगों में मस्तिष्क की ये समस्या देखा जा रही है। डिमेंशिया के 40 प्रतिशत मामलों के लिए 12 जोखिम कारकों को प्रमुख माना गया है।

इन कारकों में निम्न स्तर की शिक्षा, सुनने की समस्या, हाई ब्लड प्रेशर, धूम्रपान, मोटापा, अवसाद, शारीरिक निष्क्रियता, मधुमेह, अत्यधिक शराब पीना, मस्तिष्क की गंभीर चोट, वायु प्रदूषण और सोशल आइसोलेशन प्रमुख पाए गए हैं। ऐसी समस्या से परेशान लोगों को मस्तिष्क की इस बीमारी को लेकर और भी अलर्ट रहने की आवश्यकता है।

नया अपडेट में डिमेंशिया के लिए दो और जोखिम कारकों को जोड़ा गया हैं- दृष्टि हानि और उच्च कोलेस्ट्रॉल। अध्ययन में कहा गया है, इन 14 जोखिम कारकों में अगर सुधार के प्रयास कर लिए जाएं तो दुनियाभर में लगभग आधे डिमेंशिया के मामलों को रोका जा सकता है। चूंकि मस्तिष्क की इस बीमारी का अभी तक कोई विशिष्ट उपचार नहीं है इसलिए कम उम्र से ही बचाव के तरीकों को प्रयोग में लाते रहना बहुत जरूरी है।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

लंदन की क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी की न्यूरोलॉजिस्ट चार्ल्स मार्शल कहती हैं, यह स्पष्ट नहीं है कि हम इनमें से किसी भी जोखिम कारक को पूरी तरह से खत्म कर पाएंगे या नहीं। धूम्रपान और उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) को कम करने के लिए वैश्विक स्तर पर पहले से कई अभियान चलाए जा रहे हैं, हालांकि ये अभियान से ज्यादा स्वजागरूकता का विषय है।

एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी की न्यूरोसाइंटिस्ट तारा स्पायर्स-जोन्स कहती है कि यह महत्वपूर्ण है कि हम डिमेंशिया से पीड़ित लोगों को उनके मस्तिष्क रोग के लिए दोषी न ठहराएं। ये समस्या किसी की भी हो सकती है, जिसके पीछे कई तरह के कारक जिम्मेदार माने जाते हैं। उपचार के तरीकों का परीक्षण

डिमेंशिया के लिए अभी तक कोई विशिष्ट इलाज या प्रभावी दवा नहीं मिल पाई है। लेकिन पिछले साल की शुरुआत से संयुक्त राज्य अमेरिका में अल्जाइमर के दो उपचारों को मंजूरी दी गई है-बायोजेन का लेकेनेमैब और एली लिली का डोनानेमैब। ये दवाएं दो प्रोटीन (टाऊ और एमिलॉयड बीटा) के निर्माण को लक्षित करती हैं, जिन्हें बीमारी के बढ़ने के मुख्य कारणों में से एक माना जाता है। हालांकि ये कितनी प्रभावी हैं इसे जानने के लिए अभी भी शोध जारी है।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने बताया कि वयस्कावस्था से ही इस समस्या को नियंत्रित करने के उपाय कर लिए जाएं तो बुढ़ापे में होने वाली इस बीमारी से बचाव किया जा सकता है।



Note: स्ट्रीट बज द्वारा दी गई जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है। उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित बीमारी के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।

Swarup

Aug 10 2024, 12:23

आईए जानते हैं बच्चे को कब, किस उम्र में स्वास्थ्य से जुड़ी कौन सी परेशानियां हो सकती हैं
माता-पिता अक्सर अपने बच्चों को स्वास्थ रखने के लिए  क्या कुछ नहीं करते लेकिन कई बार जानकारी का आभाव,  उनके बच्चे के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है। ऐसे में अगर हम शुरुआत से ही ये जानें कि बच्चे को कब, किस उम्र में स्वास्थ्य से जुड़ी कौन सी परेशानियां हो सकती हैं, तो हम उन्हें हमेशा मानसिक और शारीरिक रूप से फिट रख सकते हैं। इसके लिए हम बच्चों को आमतौर पर हम 5 एज ग्रुप कैटेगरी में बांट सकते हैं और उसी के अनुसार उनके स्वास्थ्य का ख्याल रख सकते हैं।

1. टॉडलर  - 1 से 3 वर्ष की उम्र के बच्चे

इस उम्र के बच्चों को सबसे ज्यादा मां की देखभाल की जरूरत होती है। ऐसा इसलिए क्यों इस उम्र में ही बच्चा चलना, बोलना और खाना सीखता है। इस दौरान बच्चे की शारीरिक और मानसिक विकास पर ध्यान देना बेहद जरूरी है। साथ ही इसी दौरान मां-पिता को बच्चे को कई बीमारियों से बचाने के लिए उन्हें हर तरह का जरूरी टीके लगवा देने चाहिए। जैसे कि:जन्म के 1 साल के दौरान बच्चे को बीसीजी (BCG), ओरल पोलियो वैक्‍सीन (OPV 0), हिपेटाइटिस बी (Hep – B1), Typhoid Conjugate Vaccine (TCV#), Measles, Mumps, and Rubella (MMR – 1) आदि ये सभी टीके लगवा दें।
12 महीने की उम्र में Hepatitis A (Hep – A1), Influenza का टीका हर साल लगवा लें।
16 से 18 महीने की उम्र में Diphtheria, Pertussis, and Tetanus (DTP B1)का टीका लगवा दें।

2. प्रीस्कूलर (preschool age)- 3 से 5 वर्ष की उम्र के बच्चे

इस उम्र के बच्चों में उनके आहार और पोषण को खास ध्यान देने की जरूरत होती है। जैसे कि इस उम्र में बच्चों को:

फल और सब्जियों से अवगत करवाएं।
दलिया और खिचड़ी खिलाएं।
बाहरी चीजों को कम ही अवगत करवाएं
इसके अलावा इस दौरान बच्चों को थोड़ा-थोड़ा व्यवहार और अनुशासन भी सीखाएं।

3. बड़े बच्चों - 5 से 8 वर्ष की उम्र के बच्चे

इस दौरान बच्चों में हमें काफी सारी चीजों का ध्यान रखना होता है। जैसे कि:

बच्चों का शारीरिक विकास कैसा हो रहा है।
उनका व्यवहार और अनुशासन कैसा है।
आहार और पोषण का ध्यान रखें।
हाइट और वेट के संतुलन का ध्यान रखें।
खेल गतिविधियों और पढ़ाई-लिखाई का ध्यान रखें।
इसी दौरान उसमें मेमोरी और कंसंट्रेशन पावर बढ़ाने की कोशिश करें।

4. 9 से 12 वर्ष की उम्र के बच्चे

इस उम्र में बच्चों के शरीर में बड़ी तेजी से बदलाव आता है। जैसे कि:

वजन बढ़ाना
मांसपेशियों की वृद्धि
परिपक्वता के साथ विकास में तेजी से अनुभव करना
लड़कियों में पिट्यूटरी ग्लैंड में टेस्टोस्टेरोन का उत्पादन से हार्मोन उत्पन्न होना जैसे कि एस्ट्रोजन / प्रोजेस्टेरोन। यह आमतौर पर लड़कियों में  9 से 12 की उम्र में शुरू हो जाता है।
लड़कों में 11 से 14 वर्ष की आयु में होर्मेनल हेल्थ में विकास आता है।




5. टीनएजर्स –13 से लेकर 19 तक के बड़े बच्चे

त्वचा ऑयली हो जाती है और मुंहासे व दाने होने लगते हैं।
पसीना बढ़ता है और युवाओं को शरीर से दुर्गंध आती है।
प्यूबिस हेयर का ग्रोथ होता है और लड़कों में दाढ़ी आने लगती है।
शारीरिक अनुपात बदल जाता है जैसे कि लड़कियों में कूल्हे चौड़े और लड़कों में  कंधे चौड़े हो जाते हैं।
तेजी से बढ़ने के कारण जोड़ों में दर्द हो सकता है।
लड़कों में आवाज बदलने लगती है और मूड स्विंग्स होते हैं।
लड़कियों में स्तन विकसित होते हैं और ओव्यूलेशन और पीरियड्स शुरू हो जाते हैं।
इस दौरान बच्चे की मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना बहुत जरूरी हो जाता है।

बच्चों की स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या-

गले में खराश बच्चों में आम है और दर्दनाक हो सकता है, जो कि उम्र बदलने के साथ बढ़ता और घटता रहता है।
बच्चों में कान का दर्द होना
दांत में दर्द  क्योंकि इस दौरान नए दांतों का आना और पुराने दांतों का टूटना चलता रहता है।
मूत्र पथ के संक्रमण या यूटीआई इंफेक्शन
बच्चों में त्वचा से जुड़ी समस्याएं, जैसे रैशेज, खुजली, इंफेक्शन और एक्ने आदि।
बच्चों में ब्रोंकाइटिस और अस्थमा की परेशानी
बच्चों में सर्दी जुकाम
बैक्टीरियल साइनसिसिस या साइनस की परेशानी
बच्चों में कफ की समस्या
बच्चों में मोटापा
बच्चों में डायबिटीज
बच्चों में हार्मोनल परिवर्तन
बच्चों में मानसिक रोग जैसे ADHD, एंग्जायटी और डिप्रेशन
बच्चों में तनाव

नोट: हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।

Swarup

Aug 08 2024, 15:37

कुछ योगासन के अभ्यास से भी पीठ व कमर दर्द की परेशानी को कम किया जा सकता है
अक्सर जीवनशैली में गड़बड़ी, खानपान में पौष्टिकता की कमी और गलत पोस्चर के कारण शरीर में दर्द की समस्या हो सकती है। पहले बड़े-बुजुर्गों को शरीर दर्द की शिकायत हुआ करती है लेकिन अब कम उम्र में भी लोगों को शरीर दर्द की शिकायत बढ़ रही है।

अधिकतर महिलाओं को उठने-बैठने और झुकने में पीठ व कमर में दर्द की परेशानी रहती है। समस्या से निजात के लिए डॉक्टर से सलाह जरूर लेनी चाहिए। इसके अलावा कुछ योगासन के अभ्यास से भी पीठ व कमर दर्द की परेशानी को कम किया जा सकता है और पोस्चर में सुधार लाया जा सकता है।

भुजंगासन
कमर दर्द से राहत पाने के लिए भुजंगासन का अभ्यास फायदेमंद है। इस आसन को करने के लिए जमीन पर पेट के बल लेटकर पैरों को आपस में मिलाएं और हथेलियों को सीने के पास कंधों की सीध पर रखें। माथे को जमीन पर रखकर शरीर को सहज करें। अब गहरी सांस लेते हुए शरीर के आगे के हिस्से को ऊपर की तरफ उठाएं। दोनों हाथों को सीधा उठाते हुए 15-20 सेकेंड इसी मुद्रा में रहें। फिर सांस छोड़ते हुए सामान्य मुद्रा में लौट आएं।

शलभासन
पोस्चर में सुधार और पीठ दर्द से राहत पाने के लिए शभलासन का अभ्यास कर सकते हैं। इस आसन को करने के लिए पेट के बल लेटकर दोनों हथेलियों को जांघों के नीचे रखें। दोनों पैरों की एड़ियों को आपस में जोड़कर पैर के पंजे को सीधा रखें। धीरे-धीरे पैरों को ऊपर उठाने की कोशिश करें। दोनों पैरों को ऊपर की ओर ले जाते समय गहरी सांस लें और इस अवस्था में कुछ देर रहने के बाद पैरों को नीचे की ओर लाएं।

उष्ट्रासन
उष्ट्रासन करने के लिए घुटनों के बल बैठकर दोनों घुटनों की चौड़ाई कंधों के बराबर रखें। तलवे आसमान की तरफ उठाएं और रीढ़ की हड्डी को पीछे की तरफ झुकाते हुए दोनों हाथों से एड़ियों को छूने का प्रयास करें। ध्यान दें कि इस स्थिति में रहते समय गर्दन पर अधिक दबाव न पड़े और कमर से लेकर घुटनों तक का हिस्सा सीधा रहे। इस अवस्था में रहकर गहरी सांस लें। कुछ देर बाद अपनी सामान्य अवस्था में लौट आए।



नोट: हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।

Swarup

Aug 08 2024, 12:42

आधार कार्ड में जन्मतिथि और नाम बदलवाना अब आसान नहीं,UIDAI ने बदले नियम
अब बिना जन्म प्रमाणपत्र के आधार कार्ड में जन्मतिथि और नाम में बदलाव नहीं सकेंगे। जन्म प्रमाण पत्र के साथ मार्कशीट जरूरी कर दी गई है। अभी प्रधान, विधायक या किसी पीसीएस अधिकारी से प्रमाणित पत्र के माध्यम से बदलाव हो जाता था। यूआईडीएआई के बदले नियमों से आवेदक परेशान हो रहे हैं।

अब आधार कार्ड में जन्मतिथि और नाम बदलवाना आसान नहीं रहा। यूनीक आईडेंटिटीफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया (यूआईडीएआई) के बदले नियमों से आवेदक परेशान हैं। जन्मतिथि में संशोधन के लिए जन्म प्रमाणपत्र और हाईस्कूल की मार्कशीट को आवश्यक कर दिया गया है।

वहीं, पूरा नाम बदलने पर भारत सरकार की गजट प्रक्रिया से गुजरना पड़ रहा है। 60 फीसदी संशोधन इन्हीं के हैं। अभी तक प्रधान, विधायक या किसी पीसीएस अधिकारी से प्रमाणित किए हुए पत्र के माध्यम से बदलाव हो जाता था।

इसके साथ ही जन्मतिथि में संशोधन के लिए एक व नाम के संशोधन में महज दो अवसर दिए जा रहे हैं। भारत सरकार ने निजी कंपनियों ने आधार कार्ड बनाने वालों ने नाम की स्पेलिंग, पता और जन्मतिथि की फीडिंग गलत कर दी।

कई ग्रामीणों के पते ही बदल दिए। जब आधार एक पहचान बना तो सरकार ने सरकारी योजनाओं से लेकर बैंक खाता, मोबाइल, पैन कार्ड इत्यादि को लिंक करा दिया। इसके बाद गड़बड़ी का पता चला। लोग आधार सेवा केंद्र में नाम और जन्मतिथि में संशोधन कराने पहुंचने लगे।

कानपुर जिले के आधार सेवा केंद्र के आपरेशन मैनेजर अजय कुमार बताते हैं कि 18 वर्ष से कम उम्र की जन्मतिथि में जन्म प्रमाण पत्र और उससे ऊपर के पुरुष और महिला की जन्मतिथि बदलने के लिए हाईस्कूल की फोटो वाली मार्कशीट से संशोधन होगा।

सरकारी सेवा के लोग अपने पहचान पत्र का उपयोग कर सकते हैं। लेकिन, हाईस्कूल पास न करने वाली महिलाएं व पुरुषों के संशोधन में दिक्कत है। इनके लिए जन्म प्रमाण पत्र जरूरी है। अगर जन्म प्रमाण पत्र बनवाने में दिक्कत हो रही है तो फिर ये प्रधान के लेटर पैड के साथ पड़ोसियों से पूछताछ होगी।

एक हलफनामा बनवाकर देना होगा, साथ में माता-पिता का आधार कार्ड लगाना होगा। यही नहीं किसी एमबीबीएस डॉक्टर के पर्चे में उम्र की प्रमाणिकता भी कराना जरूरी है, उसको आधार कार्यालय में जमा करते हैं तो जन्म तिथि में बदलाव हो जाएगा।

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Swarup

Aug 08 2024, 12:08

गेंदबाजों के शानदार प्रदर्शन के दम पर श्रीलंका ने भारत को तीसरे वनडे मुकाबले में 2-0 से हराकर अपने नाम कर ली सीरीज
बल्लेबाजों के उम्दा प्रदर्शन के बाद दुनिथ वेलालागे की अगुआई में गेंदबाजों के शानदार प्रदर्शन के दम पर श्रीलंका ने भारत को तीसरे वनडे मुकाबले में 2-0 से हराकर सीरीज अपने नाम कर ली। 1997 के बाद पहली बार है जब भारत को श्रीलंका के खिलाफ वनडे सीरीज में हार मिली है। श्रीलंका ने इससे पहले अंतिम बार 1997 में अर्जुन राणातुंगा की कप्तानी में भारत को 3-0 से हराया था। तब से लगातार 11 बार भारत ने वनडे सीरीज अपने नाम की थी, लेकिन रोहित शर्मा की अगुआई वाली टीम इस रिकॉर्ड को बरकरार नहीं रख सकी और उसे 27 साल बाद श्रीलंका से वनडे सीरीज गंवानी पड़ी। इसी के साथ भारत का श्रीलंका दौरा समाप्त हो गया है। भारत ने इस दौरे पर 3-0 से टी20 सीरीज जीती थी, लेकिन वनडे सीरीज में भारतीय टीम इस लय को जारी नहीं रख सकी। श्रीलंका ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करते हुए 50 ओवर में सात विकेट पर 248 रन बनाए थे। जवाब में भारत की पूरी टीम 26.1 ओवर में 138 रन पर ऑलआउट हो गई। श्रीलंका के लिए अविष्का फर्नांडो ने 102 गेंदों पर नौ चौकों और दो छक्कों की मदद से 96 रन बनाए थे, जबकि कुसल मेंडिस ने 59 रनों की पारी खेली थी। गेंदबाजी में स्पिनर दुनिथ वेलालागे ने कमाल का प्रदर्शन किया और 5.1 ओवर में 27 रन देकर पांच विकेट झटके। वहीं, महेश तीक्ष्णा और जेफ्री वांडरसे को दो-दो विकेट मिले। भारत के लिए कप्तान रोहित शर्मा ने सर्वाधिक 35 रन बनाए, जबकि वाशिंगटन सुंदर 30 और विराट कोहली 20 रन बनाकर आउट हुए।

Swarup

Aug 08 2024, 11:49

योगाभ्यास के दौरान अधिकतर लोग जाने-अनजाने कुछ  गलतियां करते हैं, जो हो सकती है नुकसानदायक

योग से शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। शारीरिक क्षमता को बढ़ाने और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार लाने के लिए नियमित योगाभ्यास करना चाहिए। योग मानसिक तनाव को कम करने में मदद करता है। योग रोग प्रतिरोध में मदद करता है और शरीर को विभिन्न बीमारियों से बचाता है। बशर्ते योगाभ्यास का सही तरीका अपनाया जाए। नियमित तौर पर सही समय और सही तरीके से किया गया योग ही सकारात्मक असर डालता है, अन्यथा योगाभ्यास के दौरान गलतियां शरीर को नुकसान भी पहुंचा सकती हैं। अधिकतर लोग जाने-अनजाने योगाभ्यास के दौरान कुछ सामान्य गलतियां करते हैं, जो नुकसानदायक हो सकती है।

योग और भोजन अक्सर लोगों को लगता है कि आसन सामान्यत: बैठ कर की जाने वाली क्रिया है, जिसमें शारीरिक श्रम अधिक नहीं होता। इसलिए योग करने से पहले भोजन किया जा सकता है। लोग खाने पीने के बाद योग क्रिया करते हैं। लेकिन भरे पेट योगाभ्यास करने से फायदे मिलने की जगह नुकसान होने की संभावना बढ़ जाती है। पेट में बहुत अधिक भोजन या पानी रखना दोनों सेहत के लिए ठीक नहीं है।

सही तरीका- सबसे बेहतर उपाय है कि योग करने से एक या दो घंटे पहले कुछ हल्का नाश्ता कर लिया जाए। भोजन और योग के बीच एक घंटे की अवधि हो ताकि योगासनों के अभ्यास के समय समस्या महसूस न हो।

फोन और योग व्यस्त जीवनशैली के कारण दो काम एक साथ करना सामान्य हो गया है। योग करते समय मोबाइल फोन का इस्तेमाल, जैसे फोन पर बात करना, बीच-बीच में टेक्स्ट करना आदि, सामान्य है। लेकिन योग ध्यान क्रिया है, जिसमें फोन का उपयोग योगी के ध्यान को भटकाता है।

सही तरीका- बेहद जरूरी है कि योग करते समय फोन को कम से कम एक घंटे के लिए फोन साइलेंट कर लिया जाए। मोबाइल को एक घंटे के लिए ही सही खुद से दूर कर दें ताकि दिमागी तनाव कम किया जा सके और मन भ्रमित या ध्यान भटकने से रोका जा सके।

श्वास पर ध्यान न देना योग क्रिया श्वास पर आधारित होती है। योग करते समय सांसों के पैटर्न को नियंत्रित करना बहुत जरूरी है। लेकिन योगी कई बार योग क्रिया के अनुसार सांसों की गति को अनदेखा कर देते हैं। वह श्वास रोककर योगाभ्यास करते हैं या सांस अंदर या बाहर लेने-छोड़ने का तरीका गलत अपनाते हैं।

सही तरीका- योग के दौरान अक्सर धीमी और गहरी सांसें लेने की सलाह दी जाती है। कई योगासनों को सांसों के आने-जाने के हिसाब से करना होता है। लगातार अभ्यास से इसे आसान बनाया जा सकता है।

योग और पानी योग के बीच में या योगाभ्यास के तुरंत बाद पानी नहीं पीना चाहिए। योग के बाद पानी पीने से गले में कफ की समस्या हो जाती है।

सही तरीका- योग क्रिया के दौरान पानी बिल्कुल न पीएं। योग करने के बाद कुछ देर इंतजार करने के बाद ही पानी पीएं।

योग और स्नान

योग करने से शरीर की बहुत सारी ऊर्जा खर्च हो जाती है। योगाभ्यास के बाद शरीर का तापमान बढ़ जाता है। ऐसे में योगाभ्यास के तुरंत बाद नहाना नहीं चाहिए, इससे सर्दी जुकाम जैसी बीमारियां हो सकती हैं।

सही तरीका- योगाभ्यास के एक घंटे की अवधि के बाद ही स्नान करें। योग क्रिया के कारण शरीर का बढ़ा हुआ तापमान सामान्य होने के बाद ही स्नान करना चाहिए।


नोट: हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।