India

Aug 13 2024, 10:51

बांग्लादेश के राजनीतिक संकट के पीछे नहीं अमेरिका का हाथ”, शेख हसीना के आरोपों पर पहली बार बोला अमेरिका*
#us_denies_involvement_in_bangladeshs_political_crisis *
पिछले हफ्ते बांग्लादेश में तख्तापलट हो गया। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री रहीं शेख हसीना को ना केवल अपना पीएम पद बल्कि देश छोड़कर भी भागना पड़ा। फिलहाल शेख हसीना ने भारत में शरण ली है। उधर, बांग्लादेश को मोहम्मद यूनुस का नेतृत्व मिल गया है। मगर ये सवाल अब भी बरकरार है कि क्या इन सबके पीछे अमेरिका का हाथ था? इन आरोपों पर पहली बार अमेरिका ने प्रतिक्रिया दी है। व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरिन जीन पियरे ने बांग्लादेश संकट से जुड़ी सभी रिपोर्टों और अफवाहों का खंडन किया और कहा, “हमारी इसमें कोई संलिप्तता नहीं है। ऐसी कोई भी रिपोर्ट या अफवाह कि अमेरिका की सरकार इन घटनाओं में शामिल थी, सरासर झूठ है और बिलकुल भी सच नहीं है। जीन पियरे ने यह भी कहा कि बांग्लादेशी नागरिकों को अपने देश की सरकार का भविष्य तय करना चाहिए। उन्होंने कहा, यह बांग्लादेशी नागरिकों के लिए और उनके द्वारा चुना गया विकल्प है। हमारा मानना है कि बांग्लादेशी लोगों को बांग्लादेशी सरकार का भविष्य तय करना चाहिए और हम भी इसी पर कायम हैं। निश्चित रूप से हम किसी भी आरोप पर बोलते रहेंगे और मैंने यहां जो कहा है वह झूठ है।” जीन पियरे मीडिया में आई उन खबरों पर प्रतिक्रिया दे रही थीं, जिनमें शेख हसीना के कथित दावे के हवाले से कहा गया है कि अगर उन्होंने (शेख हसीना) सेंट मार्टिन द्वीप का आधिपत्य त्याग दिया होता और अमेरिका को बंगाल की खाड़ी पर प्रभुत्व स्थापित करने की अनुमति दी होती, तो वह सत्ता में बनी रहतीं। बता दें कि बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने हाल में अमेरिका पर अपनी सरकार गिराने का आरोप लगाया था। शेख हसीना का आरोप था कि अमेरिका ने सेंट मार्टिन आइलैंड मांगा था। अगर वह दे देती तो शायद आज मेरी सरकार बनी रहती। मगर ऐसा न करना भारी पड़ गया। हसीना का आरोप है कि इस आइलैंड के सहारे अमेरिका बंगाल की खाड़ी में अपना वर्चस्व बढ़ाना चाहता है। हालांकि, शेख हसीना के बेटे सजीब वाजेद ने इस बात से इनकार किया है कि उनकी मां ने ऐसा कोई बयान दिया है। शेख हसीना के बेटे वाजेद ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘हाल ही में एक अखबार में प्रकाशित मेरी मां का इस्तीफे से संबंधित बयान पूरी तरह से झूठा और मनगढ़ंत है। उन्होंने मुझसे बातचीत में पुष्टि की है कि उन्होंने ढाका छोड़ने से पहले या बाद में कोई बयान नहीं दिया।

India

Aug 13 2024, 10:08

उबर ड्राइवर ने पाकिस्तानी पैसेंजर को कैब से किया बाहर, भारत विरोधी टिप्पणी करने पर भड़का गुस्सा

#uber_driver_kicks_pakistani_passengers_off_car_over_anti_india_comments

भारत में मेहमान को भगवान माना जाता है, लेकिन यही मेहमान अपने देश को गाली देने लगे तो गुस्सा जाहिर है। ऐसा ही एक मामला सामने आया है देश की राजधानी दिल्ली से। एक वीडियो इंटरनेट पर छाया हुआ है, जिसमें एक पाकिस्तानी कपल को कैब से धक्के मारकर कैब से उतार दिया है। दिल्ली में एक कैब ड्राइवर ने कथित तौर पर भारत की बुराई को लेकर एक पाकिस्तानी नागरिक और उसकी गर्लफ्रेंड को आधी रात बीच सड़क पर उतार दिया।

यह घटना कथित तौर पर 9 अगस्त की आधी रात को हुई थी। घटना का एक वीडियो, जिसे यात्रियों में से एक ने रिकॉर्ड किया था, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर वायरल हो गया है। वायरल हो रहे वीडियो में ड्राइवर को कैब में बैठे पाकिस्तानी शख्स और उसकी गर्लफ्रेंड से यह कहते हुए सुना जा सकता है कि वो दिल्ली वालों के बारे में कुछ भी बुरा सुनना बर्दाश्त नहीं करेगा। वहीं मोबाइल पर वीडियो रिकॉर्ड करते हुए लड़की कहती है कि उसने (पाकिस्तानी) ऐसा कुछ भी नहीं कहा। उसने बस इतना कहा कि दिल्ली वाले मतलबपरस्त होते हैं। इसके बाद लड़की कहती है, अगर मुंबई वाले ऐसा कह दें तो वो चल जाएगा, लेकिन पाकिस्तानी कहे तो, फिर कैब ड्राइवर पर भड़कते हुए कहती है कि उसे न बताए कि वो ब्राह्मण है कि क्या है।

वीडियो में देखा जा सकता है कि ड्राइवर कपल को दोबारा समझाने की कोशिश करता है, लेकिन बात बढ़ जाती है और फिर ड्राइवर दोनों को अपनी कार से उतारकर वहां से जाने लगता है। इस दौरान लड़की गुस्से से चीखती है- देख लो ये मोदीजी का भारत है। रात के साढ़े 12 बजे ये हमें सड़क पर उतार रहा है। इस पर ड्राइवर भी उन्हें अपशब्द बोलता है।

वीडियो माइक्रो ब्लॉगिंग साइट एक्स पर Algebra ने शेयर किया। जिसको लाखों व्यूज मिल चुके हैं। वहीं, हजारों में लाइक्स हैं और खबर लिखे जाने तक 11 हजार रीपोस्ट किए जा चुके हैं।

India

Aug 12 2024, 19:58

“सभ्य समाज में धर्म के आधार पर हिंसा अस्वीकार्य”, बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के साथ हो रही हिंसा पर बोलीं प्रियंका
#priyanka_gandhi_speaks_on_attacks_on_hindus_in_bangladesh

बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद से हिंदुओं पर हिंसा हो रही है।बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर लगातार हो रहे हमलों पर कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने चिंता जताई है। उन्होंने कहा, किसी भी सभ्य समाज में धर्म, जाति, भाषा या पहचान के आधार पर भेदभाव, हिंसा और हमले अस्वीकार्य हैं। हमें उम्मीद है कि बांग्लादेश में जल्द हालात सामान्य होंगे।

बांग्लादेश में हिंसा का दौर खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। हिन्दुओं और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है। उन पर हमला लगातार जारी है। कई जगहों से दिल दहलाने वाली खबरें सामने आ रही है। पड़ोसी देश में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों के बीच कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी की पहली प्रतिक्रिया आई है।

प्रियंका गांधी ने अपने सोशल मीडिया ‘एक्स’ पर लिखा कि पड़ोसी देश बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर लगातार हमलों की खबरें विचलित करने वाली हैं। किसी भी सभ्य समाज में धर्म, जाति, भाषा या पहचान के आधार पर भेदभाव, हिंसा और हमले अस्वीकार्य हैं। हमें उम्मीद है कि बांग्लादेश में जल्द हालात सामान्य होंगे।

प्रियंका गांधी ने वहां की नवनिर्वाचित सरकार से लोगों के लिए सुरक्षा की मांग की है। उन्होंने लिखा कि वहां की नवनिर्वाचित सरकार हिंदू, ईसाई और बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगों के लिए सुरक्षा व सम्मान सुनिश्चित करेगी।

India

Aug 12 2024, 19:30

इजरायल पर बड़े हमले की तैयारी कर रहा ईरान! अमेरिका ने भी कसी कमर
#iran_attack_israel_america_issue_warning इजराइल पर ईरान बहुत जल्द एक बड़ा हमला करने जा रहा है।ईरान किसी भी समय इजरायल पर हमला कर सकता है। यह हमला तेहरान में हमास सरगना इस्माइल हानिया की हत्या का बदला होगा।इजरायल के रक्षा मंत्री योआव गैलेंट ने रविवार को अमेरिकी रक्षा सचिव लॉयड ऑस्टिन को बताया कि ईरान इजरायल पर बड़े पैमाने पर सैन्य हमले की तैयारी कर रहा है।

एक्सियोस ने अपनी एक रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से यह जानकारी साझा की।एक्सियोस के मुताबिक इजरायल की खुफिया एजेंसी का मानना है कि ईरान इजरायल पर सीधे हमले को तैयार है। इजरायल की खुफिया एजेंसी का मानना है कि अपने शीर्ष कमांडर का बदला लेने की खातिर हिजबुल्लाह पहले हमला कर सकता है। इसके बाद ईरान भी हमले में शामिल हो सकता है। कहा जा रहा है कि गुरुवार को प्रस्तावित गाजा बंधक और युद्धविराम समझौते की वार्ता से पहले हमला हो सकता है। हालांकि हमास ने वार्ता में शामिल होने से इंकार कर दिया है।

*अप्रैल से भी बड़ा हमला कर सकता ईरान*
सूत्रों के मुताबिक इस बार ईरान 13 अप्रैल से भी बड़ा हमला कर सकता है। हिजबुल्लाह और ईरान मध्य इजरायल में सैन्य ठिकानों पर मिसाइलों और ड्रोनों से हमला कर सकते हैं। उधर, अमेरिका ने कूटनीतिक दांव चलना शुरू कर दिया है। इजरायली रक्षा मंत्री योआव गैलेंट ने कहा कि ईरान और हिजबुल्लाह ने हमें भारी नुकसान पहुंचाने की चेतावनी दी। मगर उम्मीद है कि वे पुनर्विचार करेंगे और युद्ध को नहीं बढ़ाएंगे। हम ऐसा नहीं चाहते हैं।

*युद्ध की आहट के बीच अमेरिका ने कसी कमर*
इजरायल और ईरान में युद्ध की आहट के बीच अमेरिका ने भी कमर कस ली है। अमेरिका मिडिल ईस्ट में तेजी से हथियार भेज रहा है।अमेरिका ने एक गाइडेड मिसाइल पनडुब्बी मिडिल ईस्ट भेजी है। एक विमानवाहक पोत स्ट्राइक ग्रुप की तैनाती तेज कर रहा है। पेंटागन ने रविवार देर रात पुष्टि की कि रक्षा सचिव लॉयड ऑस्टिन ने यूएसएस जॉर्जिया गाइडेड मिसाइल पनडुब्बी को क्षेत्र में भेजने का आदेश दिया है। उन्होंने यूएसएस अब्राहम लिंकन कैरियर स्ट्राइक ग्रुप, जो एफ-35C लड़ाकू जेट से सुसज्जित है, को क्षेत्र में तेजी से पहुंचने का आदेश दिया।

*यूएस ने दिया हर संभव मदद का भरोसा*
पेंटागन से एक रिपोर्ट के अनुसार ऑस्टिन ने अपने इजरायली समकक्ष योव गैलंट के साथ एक कॉल में वाशिंगटन की अपने सहयोगी की रक्षा के लिए हर संभव कदम उठाने की प्रतिबद्धता की पुनः पुष्टि की। इस बातचीत में गैलंट ने ईरान और उसके क्षेत्रीय समर्थकों से उत्पन्न खतरों के सामने आईडीएफ की तत्परता और क्षमताओं का विस्तृत विवरण दिया। क्षेत्र में तैनात अमेरिकी सैन्य क्षमताओं की व्यापक रेंज के साथ संयुक्त संचालन पर चर्चा की।

*हमास के नेता की हत्या का बदला लेने के लिए ईरान बेताब*
शुक्रवार को ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के डिप्टी कमांडर ने कहा था कि ईरान 31 जुलाई को तेहरान में फिलिस्तीनी आतंकवादी समूह हमास के नेता की हत्या के लिए इजरायल को "कठोर दंड" देने के लिए सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई के आदेश का पालन करने के लिए तैयार है। इससे पहले खामेनेई ने भी कहा था कि वह इजरायल को ऐसा कठोर दंड देंगे कि उसकी पीढ़ियां याद रखेंगी। ऐसी भी रिपोर्ट्स है कि ईरान के नव नियुक्त राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन इजरायल पर हमला करने के खिलाफ हैं, लेकिन ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड्स उनके नियंत्रण से बाहर है। रिवोल्यूशनरी गार्ड्स सीधे खामेनेई को रिपोर्ट करता है।

India

Aug 12 2024, 18:48

बांग्लादेश में भारत-पाक युद्ध से जुड़ी ऐतिहासिक मूर्तियों को तोड़ा गया, किसे नागवार गुजरी पाकिस्तान के सरेंडर दर्शाती प्रतिमा
#iconic_statue_of_pakistan_armys_surrender_vandalised_in_bangladesh


बांग्लादेश में हिंसा और अराजकता जारी है। देश मे जारी हिंसा के बीच बांग्लादेश की नई अंतरिम सरकार ने शपथ ग्रहण कर लिया है। अंतरिम सरकार ने देश के माहौल को काबू करने का प्रयास किया है। हालांकि अब तक सरकार को इसमें खास कामयाबी नहीं मिली है। इस बीच अल्पसंख्यकों निशाना बना रहे प्रदर्शनकारियों ने बांग्लादेश के बनने की सबसे अहम घटनाओं में से एक पाकिस्तान की सेना के भारतीय फौज के सामने सरेंडर को दिखाने वाली एक मूर्ति को भी प्रदर्शनकारियों ने निशाना बनाते हुए तोड़ डाला है।

1971 शहीद मेमोरियल कॉम्प्लेक्स में एक मूर्तिकला को तोड़ दिया गया है। इसमें 1971 युद्ध के उस मोमेंट को मूर्तियों की शक्ल दी गई थी जब हजारों पाकिस्तानी सैनिकों ने एक साथ भारतीय सेना के आगे सरेंडर किया था। कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने इस घटना पर कड़ा विरोध करते हुए प्रदर्शनकारियों को ‘भारत विरोधी’ बताया है।उन्होंने टूटी हुई मूर्ति की एक तस्वीर भी साझा की।

शशि थरूर ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर तस्वीर साझा करते हुए पोस्ट भी लिखा। उन्होंने कहा, "1971 के शहीद स्मारक परिसर, मुजीबनगर में भारत विरोधी उपद्रवियों द्वारा नष्ट की गई मूर्तियों की ऐसी तस्वीरें देखकर दुख हुआ। उन्होंने आगे कहा, यह कई स्थानों पर भारतीय सांस्कृतिक केंद्र, मंदिर और हिंदुओं के घरों पर हमलों के बाद हुआ है। इसके साथ ही मुस्लिम नागरिकों द्वारा अन्य अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों और उनके पूजा स्थलों को बचाने की भी खबरें सामने आईं।"

बता दें कि 1971 के युद्ध में न केवल बांग्लादेश को आजादी मिली थी, बल्कि पाकिस्तान को भी इस दौरान करारा झटका मिला था। इस प्रतिमा में पाकिस्तानी सेना के लेफ्टिनेंट-जनरल आमीर अब्दुल्ला खान नियाजी को भारतीय सेना और बांग्लादेश की मुक्ति वाहिनी के समक्ष 'समर्पण पत्र' पर हस्ताक्षर करते हुए दर्शाया गया था। लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी ने अपने 93000 सैनिकों के साथ भारत की पूर्वी कमान के तत्कालीन जनरल ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने समर्पण किया था।

India

Aug 12 2024, 16:53

भारत में भी पैदा हो सकते हैं बांग्लादेश जैसे हालात” कांग्रेस का ये दुःस्वप्न या देशद्रोह?

#canconditionslikebangladeshhappeninindia

पिछले हफ्ते बांग्लादेश के हालात की पूरी दुनिया में चर्चा रही। 5 अगस्त 2024 बांग्लादेश के इतिहास में एक काला अध्याय बन कर रह गया। तीन बार की प्रधानमंत्री रहीं शेख हसीना अपनी सरकार ही नहीं बल्कि अपना देश छोड़कर भागने पर मजबूर हो गईं। शेख हसीना के पद और देश छोड़ने के बाद भी हालत बदले नहीं हैं। छात्र आंदोलन के नाम पर बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है। पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश में जो हालात हैं, उससे देश में भी कुछ लोगों की बांछें खिल गईं। राजनीति में मर्यादा के घटते स्तर की बानगी देखिए कि विपक्ष के नेताओं ने यहां तक कह दिया कि बांग्लादेश में जिस तरह की परिस्थितियां पैदा हुईं हैं, वैसा ही दृश्य भारत में भी देखा जा सकता है। अब इसे केवल दुःस्वप्न कहा जाए ये देश को गर्त में देखने का सपना देखने वालों का देशद्रोह?

दरअसल, पड़ोसी देश बांग्लादेश में तख्तापलट हुआ तो विपक्ष के नेताओं की ओर से कुछ बयान दिए गए हैं कि बांग्लादेश जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति भारत में हो सकती है। कांग्रेस के नेताओं ने कहा कि बांग्लादेश के जौसे हालात भारत में भी पैदा हो सकते हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद ने कहा कि भारत में भले ऊपर-ऊपर सबकुछ सामान्य दिख रहा हो, लेकिन अंदर से कुछ सुलग रहा है। 

दूसरी तरफ, कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने कहा कि बांग्लादेश जैसी परिस्थितियां कुछ-कुछ भारत में भी बननी शुरू हो गई हैं और लोगों के मन में चुनावों की निष्पक्षता को लेकर शक पैदा होने लगा है, इसलिए हमें पड़ोसी देश से सीख लेते हुए सावधान रहने की जरूरत है। अय्यर ने न्‍यूज एजेंसी आईएएनएस के साथ एक विशेष साक्षात्कार में कहा कि भारत में भी आर्थिक विकास के बावजूद बेरोजगारी बहुत बढ़ चुकी है। उन्होंने कहा, "वहां की परिस्थिति और हमारी परिस्थिति में काफी तुलना की जा सकती है। उनके लोकतंत्र में कमियां महसूस होने लगीं। जो उनके चुनाव हुए - पहले और इस बार भी - तो विपक्ष की पार्टियों ने भाग ही नहीं लिया, क्योंकि उनको लगा कि स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव नहीं होंगे।

सलमान खुर्शीद और मणिशंकर अय्यर के अलावा मध्य प्रदेश कांग्रेस के नेता सज्जन सिंह वर्मा ने धमकी भरे अंदाज में कहा कि एक दिन भारत के प्रधानमंत्री आवास पर भी लोग धावा बोल देंगे, ठीक उसी तरह जैसे बांग्लादेश में हुआ है। उन्होंने कहा कि पहले श्रीलंका में हुआ था, अब बांग्लादेश में हुआ, अबकी भारत की बारी है। 

कांग्रेस नेताओं के इस बयान के बाद हैरानी होती है, ये उसी पार्टी नेता हैं, जिसने देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी। आजादी के सात दशक बाद भारत में अराजकता का ख्वाब उस कांग्रेस पार्टी के नेता देख रहे हैं जिसने आजादी की लड़ाई का नेतृत्व किया था। ये बयान केवल हमारे लोकतंत्र को कमजोर करते हैं और किसी भी तरह से राष्ट्र निर्माण को मजबूत नहीं करते हैं। ऐसे में सवाल है कि क्या भारत में भी ऐसा हो सकता है?

इस सवाल को अगर सिरे से खारिज कर दिया जाए तो हैरानी नहीं होनी चाहिए। क्योंकि, 1947 में जब भारत ने अंग्रेजों से आजादी पाई थी, तब भी यही भविष्यवाणी की गई कि भारत कुछ ही वर्षों में बिखर जाएगा। तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लिमेंट एटली, पूर्व प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल समेत कई अंग्रेज अधिकारियों और प्रशासकों ने कहा था कि भारत जातीयता, धर्म, संस्कृति समेत अन्य कई पहलुओं से इतना भिन्न है कि इसका साथ रहना नामुमकिन है। वो सब गलत साबित हुए।

भारत में सेना ताकतवर जरूर रही है, लेकिन सरकार के अधीन

वैसे भी जिन भी देशों में लोकतंत्र ज्यादा मजबूत रहता है, वहां पर सेना के पास असीमित शक्तियां नहीं रहती हैं, उन देशों में सेना सरकार के अनुसार ही काम करती दिखती है। ऐसे में तख्तापलट जैसे हालात उन देशों में पैदा नहीं होते। अब भारत की सेना का जैसा इतिहास रहा है, वहां पर अनुशासन ही सर्वोपरि है। यहां पर सेना ताकतवर जरूर रही है, लेकिन सरकार के अधीन भी। इसका एक प्रमाण तो आपातकाल के दौरान भी दिख गया था। उस समय इंदिरा गांधी के खिलाप तीनों सेना प्रमुख को एक हो जाना चाहिए था, तब की पीएम से स्थिति को लेकर बात करनी चाहिए थी। लेकिन क्योंकि भारत में लोकतंत्र रहा और सेना ने खुद को राजनीति से अलग रखने का फैसला लिया, ऐसे में उस दौर में भी सेना ज्यादा ताकतवर दिखाई नहीं दी। माना जाता है कि तख्तापलट वही पर होता है जहां पर अस्थिरता बन जाती है।

इस्लीमिक देशों में लोकतंत्र से ज्यादा शरीया पर विश्वास

दूसरी और अहम बात, बांग्लादेश हो या कोई अन्य मुस्लिम बहुल देश, वहां की सबसे बड़ी समस्या लोकतांत्रिक भावनाओं के सम्मान की भारी कमी का होना है। मुस्लिम देशों में बहुत बड़ा वर्ग वैसे नागरिकों का है जिनका लोकतांत्रिक संस्थाओं में जरा भी यकीन नहीं होता। वो लोकतंत्र को इस्लाम के खिलाफ मानते हैं और दिनरात शरियत का सपना देखते हैं। उनका यकीन इस्लामी धार्मिक कानून शरिया पर होता है। इसलिए वो लोकतंत्र को कभी दिल से स्वीकार नहीं कर पाते। इसके उलट भारत की व्यापक आबादी लोकतंत्र में यकीन रखती है। यहां लोकतांत्रिक संस्थाओं, उसके क्रियाकलापों से लोगों को अनगिनत शिकायतें हो सकती हैं, बावजूद इसके लोगों का इन पर गहरा विश्वास है। बहुसंख्यक भारतीय मानते हैं कि देश का भविष्य तय करने वाले किसी भी मुद्दे का समाधान लोकतांत्रिक प्रक्रिया से ही होना चाहिए।

राजनीतिक अस्थिरता के दौर में भी सेना ने नहीं लांघी मर्यादा

लोकतंत्र की सबसे महत्वपूर्ण परीक्षा हर चुनाव के बाद सत्ता का शांतिपूर्ण हस्तांतरण है। यह केवल भारत में है कि 1951-1952 में पहले आम चुनाव से लेकर 2024 में आखिरी आम चुनाव तक सत्ता का ऐसा शांतिपूर्ण हस्तांतरण हुआ है। हालांकि, यहां भी राजनीतिक अस्थिरता का लंबा दौर रहा। देश ने गठबंधन राजनीति का दौर देखा। सरकारें आती-जाती रहीं। देवगौड़ा और गुजराल जैसी कमजोर सरकारे आईं, अटल सरकार सिर्फ 13 दिन में धराशायी हो गई, लेकिन सेना ने कभी सरकार की तरफ आंख उठाकर नहीं देखा।

वहीं, अगर आम जनता की बात करें तो उन्हें भी पता है कि उसकी समस्याओं का समाधान सरकार के पास है। लोगों को अपनी बात शांतिपूर्ण ढंग से कहने का अधिकार है। उदाहरण के लिए,सीएए के खिलाफ राजधानी दिल्ली के शाहीन बाग इलाके में करीब सालभर तक धरना-प्रदर्शन चला। किसी सरकार ने उसे दबाने की कोशिश नहीं की, कोई लाठी-डंडे नहीं चले। यहां तक कि आंदोलनकारी किसान लाल किले तक पहुंच गए, फिर भी उन पर जोर-जबर्दस्ती नहीं हुई। कुल मिलाकर कहें तो यहां नाराजगी जाहिर करने के जनता के अधिकार का सरकारें सम्मान करती हैं तो बदले में जनता भी सरकारों को सुधार करने का मौका देती है।

इसके बावजूद अगर देश की प्रमुख विपक्षी दल के वरिष्ठ नेता इस तरह का बयान देते हैं, तो इससे उनकी मंशा साफ जाहिर होती है।

India

Aug 12 2024, 16:52

“भारत में भी पैदा हो सकते हैं बांग्लादेश जैसे हालात” कांग्रेस का ये दुःस्वप्न या देशद्रोह?
#can_conditions_like_bangladesh_happen_in_india

पिछले हफ्ते बांग्लादेश के हालात की पूरी दुनिया में चर्चा रही। 5 अगस्त 2024 बांग्लादेश के इतिहास में एक काला अध्याय बन कर रह गया। तीन बार की प्रधानमंत्री रहीं शेख हसीना अपनी सरकार ही नहीं बल्कि अपना देश छोड़कर भागने पर मजबूर हो गईं। शेख हसीना के पद और देश छोड़ने के बाद भी हालत बदले नहीं हैं। छात्र आंदोलन के नाम पर बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है। पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश में जो हालात हैं, उससे देश में भी कुछ लोगों की बांछें खिल गईं। राजनीति में मर्यादा के घटते स्तर की बानगी देखिए कि विपक्ष के नेताओं ने यहां तक कह दिया कि बांग्लादेश में जिस तरह की परिस्थितियां पैदा हुईं हैं, वैसा ही दृश्य भारत में भी देखा जा सकता है। अब इसे केवल दुःस्वप्न कहा जाए ये देश को गर्त में देखने का सपना देखने वालों का देशद्रोह?

दरअसल, पड़ोसी देश बांग्लादेश में तख्तापलट हुआ तो विपक्ष के नेताओं की ओर से कुछ बयान दिए गए हैं कि बांग्लादेश जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति भारत में हो सकती है। कांग्रेस के नेताओं ने कहा कि बांग्लादेश के जौसे हालात भारत में भी पैदा हो सकते हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद ने कहा कि भारत में भले ऊपर-ऊपर सबकुछ सामान्य दिख रहा हो, लेकिन अंदर से कुछ सुलग रहा है।

दूसरी तरफ, कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने कहा कि बांग्लादेश जैसी परिस्थितियां कुछ-कुछ भारत में भी बननी शुरू हो गई हैं और लोगों के मन में चुनावों की निष्पक्षता को लेकर शक पैदा होने लगा है, इसलिए हमें पड़ोसी देश से सीख लेते हुए सावधान रहने की जरूरत है। अय्यर ने न्‍यूज एजेंसी आईएएनएस के साथ एक विशेष साक्षात्कार में कहा कि भारत में भी आर्थिक विकास के बावजूद बेरोजगारी बहुत बढ़ चुकी है। उन्होंने कहा, "वहां की परिस्थिति और हमारी परिस्थिति में काफी तुलना की जा सकती है। उनके लोकतंत्र में कमियां महसूस होने लगीं। जो उनके चुनाव हुए - पहले और इस बार भी - तो विपक्ष की पार्टियों ने भाग ही नहीं लिया, क्योंकि उनको लगा कि स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव नहीं होंगे।

सलमान खुर्शीद और मणिशंकर अय्यर के अलावा मध्य प्रदेश कांग्रेस के नेता सज्जन सिंह वर्मा ने धमकी भरे अंदाज में कहा कि एक दिन भारत के प्रधानमंत्री आवास पर भी लोग धावा बोल देंगे, ठीक उसी तरह जैसे बांग्लादेश में हुआ है। उन्होंने कहा कि पहले श्रीलंका में हुआ था, अब बांग्लादेश में हुआ, अबकी भारत की बारी है।

कांग्रेस नेताओं के इस बयान के बाद हैरानी होती है, ये उसी पार्टी नेता हैं, जिसने देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी। आजादी के सात दशक बाद भारत में अराजकता का ख्वाब उस कांग्रेस पार्टी के नेता देख रहे हैं जिसने आजादी की लड़ाई का नेतृत्व किया था। ये बयान केवल हमारे लोकतंत्र को कमजोर करते हैं और किसी भी तरह से राष्ट्र निर्माण को मजबूत नहीं करते हैं। ऐसे में सवाल है कि क्या भारत में भी ऐसा हो सकता है?

इस सवाल को अगर सिरे से खारिज कर दिया जाए तो हैरानी नहीं होनी चाहिए। क्योंकि, 1947 में जब भारत ने अंग्रेजों से आजादी पाई थी, तब भी यही भविष्यवाणी की गई कि भारत कुछ ही वर्षों में बिखर जाएगा। तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लिमेंट एटली, पूर्व प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल समेत कई अंग्रेज अधिकारियों और प्रशासकों ने कहा था कि भारत जातीयता, धर्म, संस्कृति समेत अन्य कई पहलुओं से इतना भिन्न है कि इसका साथ रहना नामुमकिन है। वो सब गलत साबित हुए।

*भारत में सेना ताकतवर जरूर रही है, लेकिन सरकार के अधीन*
वैसे भी जिन भी देशों में लोकतंत्र ज्यादा मजबूत रहता है, वहां पर सेना के पास असीमित शक्तियां नहीं रहती हैं, उन देशों में सेना सरकार के अनुसार ही काम करती दिखती है। ऐसे में तख्तापलट जैसे हालात उन देशों में पैदा नहीं होते। अब भारत की सेना का जैसा इतिहास रहा है, वहां पर अनुशासन ही सर्वोपरि है। यहां पर सेना ताकतवर जरूर रही है, लेकिन सरकार के अधीन भी। इसका एक प्रमाण तो आपातकाल के दौरान भी दिख गया था। उस समय इंदिरा गांधी के खिलाप तीनों सेना प्रमुख को एक हो जाना चाहिए था, तब की पीएम से स्थिति को लेकर बात करनी चाहिए थी। लेकिन क्योंकि भारत में लोकतंत्र रहा और सेना ने खुद को राजनीति से अलग रखने का फैसला लिया, ऐसे में उस दौर में भी सेना ज्यादा ताकतवर दिखाई नहीं दी। माना जाता है कि तख्तापलट वही पर होता है जहां पर अस्थिरता बन जाती है।

*इस्लीमिक देशों में लोकतंत्र से ज्यादा शरीया पर विश्वास*
दूसरी और अहम बात, बांग्लादेश हो या कोई अन्य मुस्लिम बहुल देश, वहां की सबसे बड़ी समस्या लोकतांत्रिक भावनाओं के सम्मान की भारी कमी का होना है। मुस्लिम देशों में बहुत बड़ा वर्ग वैसे नागरिकों का है जिनका लोकतांत्रिक संस्थाओं में जरा भी यकीन नहीं होता। वो लोकतंत्र को इस्लाम के खिलाफ मानते हैं और दिनरात शरियत का सपना देखते हैं। उनका यकीन इस्लामी धार्मिक कानून शरिया पर होता है। इसलिए वो लोकतंत्र को कभी दिल से स्वीकार नहीं कर पाते। इसके उलट भारत की व्यापक आबादी लोकतंत्र में यकीन रखती है। यहां लोकतांत्रिक संस्थाओं, उसके क्रियाकलापों से लोगों को अनगिनत शिकायतें हो सकती हैं, बावजूद इसके लोगों का इन पर गहरा विश्वास है। बहुसंख्यक भारतीय मानते हैं कि देश का भविष्य तय करने वाले किसी भी मुद्दे का समाधान लोकतांत्रिक प्रक्रिया से ही होना चाहिए।

*राजनीतिक अस्थिरता के दौर में भी सेना ने नहीं लांघी मर्यादा*
लोकतंत्र की सबसे महत्वपूर्ण परीक्षा हर चुनाव के बाद सत्ता का शांतिपूर्ण हस्तांतरण है। यह केवल भारत में है कि 1951-1952 में पहले आम चुनाव से लेकर 2024 में आखिरी आम चुनाव तक सत्ता का ऐसा शांतिपूर्ण हस्तांतरण हुआ है। हालांकि, यहां भी राजनीतिक अस्थिरता का लंबा दौर रहा। देश ने गठबंधन राजनीति का दौर देखा। सरकारें आती-जाती रहीं। देवगौड़ा और गुजराल जैसी कमजोर सरकारे आईं, अटल सरकार सिर्फ 13 दिन में धराशायी हो गई, लेकिन सेना ने कभी सरकार की तरफ आंख उठाकर नहीं देखा।

वहीं, अगर आम जनता की बात करें तो उन्हें भी पता है कि उसकी समस्याओं का समाधान सरकार के पास है। लोगों को अपनी बात शांतिपूर्ण ढंग से कहने का अधिकार है। उदाहरण के लिए,सीएए के खिलाफ राजधानी दिल्ली के शाहीन बाग इलाके में करीब सालभर तक धरना-प्रदर्शन चला। किसी सरकार ने उसे दबाने की कोशिश नहीं की, कोई लाठी-डंडे नहीं चले। यहां तक कि आंदोलनकारी किसान लाल किले तक पहुंच गए, फिर भी उन पर जोर-जबर्दस्ती नहीं हुई। कुल मिलाकर कहें तो यहां नाराजगी जाहिर करने के जनता के अधिकार का सरकारें सम्मान करती हैं तो बदले में जनता भी सरकारों को सुधार करने का मौका देती है।

इसके बावजूद अगर देश की प्रमुख विपक्षी दल के वरिष्ठ नेता इस तरह का बयान देते हैं, तो इससे उनकी मंशा साफ जाहिर होती है।

India

Aug 12 2024, 15:46

अपनी ही जीत की निशानी मिटा रहे बांग्लादेशी ! तोड़ डाली 1971 में पाकिस्तानी सरेंडर की मूर्तियां, भड़के कांग्रेस सांसद शशि थरूर



बांग्लादेश में राजनीतिक उथल-पुथल और सत्ता परिवर्तन के बाद देश के विभिन्न हिस्सों में हिंसा और अराजकता की घटनाएं सामने आ रही हैं। इसमें सैकड़ों लोगों की जान गई है और उपद्रवियों ने राष्ट्रीय स्मारकों को भी नुकसान पहुंचाया है। ताजा घटना में मुजीबनगर में स्थित 1971 शहीद मेमोरियल स्थल पर बनी मूर्तियों को तोड़ा गया है।

कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने इस घटना पर गहरी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार से आग्रह किया है कि वह कानून और व्यवस्था को बहाल करने के लिए तत्काल कदम उठाए। अपने सोशल मीडिया पोस्ट में थरूर ने कहा कि 1971 के मुजीबनगर शहीद स्मारक में स्थित मूर्तियों को भारत विरोधी तत्वों द्वारा नष्ट किया जाना बेहद दुखद है। यह घटना उन अपमानजनक हमलों के बाद हुई है, जिनमें भारतीय सांस्कृतिक केंद्र, मंदिरों और हिंदू घरों को निशाना बनाया गया था।


थरूर ने बताया कि कुछ आंदोलनकारियों का उद्देश्य स्पष्ट है, और यह महत्वपूर्ण है कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार देश में सभी समुदायों की सुरक्षा सुनिश्चित करे। उन्होंने कहा कि भारत इस कठिन समय में बांग्लादेश के लोगों के साथ खड़ा है, लेकिन ऐसी अराजकता को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। उल्लेखनीय है कि मुजीबनगर कॉम्प्लेक्स में बनी मूर्तियां 1971 की जंग के बाद पाकिस्तान के आत्मसमर्पण की प्रतीक हैं। इन्ही पाकिस्तानियों को हराने के बाद भारतीय सेना ने बांग्लादेशियों को अलग देश दिलाया था, अब वही बांग्लादेशी अपनी ही जीत के प्रतीकों को तोड़ रहे हैं। इसका संकेत स्पष्ट है कि, बांग्लादेश में इस्लामी कट्टरपंथ हावी हो चुका है और अब बांग्लादेशी झुकाव पाकिस्तान की तरफ होने लगा है। आने वाले दिनों में बांग्लादेश, अगर अफगानिस्तान और सीरिया जैसे देशों की राह पर चल पड़ता है, तो हैरानी नहीं होगी। गौर करने वाली बात ये भी है कि, लगभग 50 साल पहले बांग्लादेशी इसी कट्टरपंथ के खिलाफ लड़े थे, लेकिन अब शायद उन्हें समझा दिया गया है कि, वे वही हैं, जिनके खिलाफ वो लड़े थे।       


इन मूर्तियों में पाकिस्तानी सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल आमिर अब्दुल्ला खान नियाजी को भारतीय और बांग्लादेशी सेना के अधिकारियों की उपस्थिति में आत्मसमर्पण करते हुए दिखाया गया है। यह घटना 16 दिसंबर 1971 को हुई थी, जिसे भारत में भी विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस बीच, बांग्लादेश में हिंदुओं पर लगातार हो रहे हमलों के कारण हजारों लोग भारत की ओर भागने की कोशिश कर रहे हैं। भारत-बांग्लादेश सीमा पर भारी संख्या में बीएसएफ तैनात की गई है, और लोगों को भारत में प्रवेश करने से रोका जा रहा है।

India

Aug 12 2024, 15:43

भारी बारिश के कारण बीच में ही अस्थाई रूप से रोकी गई अमरनाथ यात्रा, रास्ते की कराई जाएगी मरम्मत




भारी वर्षा के कारण अमरनाथ यात्रा अस्‍थायी रूप से निलंबित कर दी गई है. दरअसल, बारिश की वजह से यात्रा मार्ग पर मरम्मत की आवश्यकता है, इसकी वजह से सोमवार 12 अगस्त को यात्रा निलंबित की गई है. निर्माण के पश्चात् यात्रा फिर से आरम्भ कर दी जाएगी. अफसरों ने इस बात की जानकारी दी है. अमरनाथ यात्रा के बालटाल एवं पहलगाम मार्गों पर शनिवार को हुई भारी वर्षा की वजह से यात्रा मार्ग पर मरम्मत एवं रखरखाव कार्य आवश्यक हो गए हैं. इस स्थिति के मद्देनजर, सुरक्षा कारणों से बालटाल मार्ग से 12 अगस्त को कोई भी यात्रा नहीं होगी.


कश्मीर के संभागीय आयुक्त विजय कुमार बिधूड़ी ने कहा, "आज हुई भारी बारिश की वजह से श्रीअमरनाथजी यात्रा के बालटाल मार्ग पर तत्काल मरम्मत तथा रखरखाव कार्य किए जाने की जरुरत है. यात्रियों की सुरक्षा के हित में, कल बालटाल मार्ग से कोई यात्रा नहीं होगी. आगे के अपडेट वक़्त-वक़्त पर जारी किए जाएंगे." पहलगाम मार्ग पर भी आवश्यक मरम्मत एवं रखरखाव के कार्य पहले से ही चल रहे हैं. अफसरों ने यात्रियों से संयम बरतने एवं अगले निर्देशों का पालन करने की अपील की है.

बता दें कि शनिवार को भी आधार शिविर से कोई जत्था नहीं भेजा गया. अंतिम पड़ाव में चल रही यात्रा में भक्त सीधे ही बालटाल रूट के लिए पहुंच रहे हैं. शनिवार को इस बीच 1608 भक्तों ने पवित्र गुफा में दर्शन किए थे. इसके साथ यह आंकड़ा 510570 तक पहुंच चुका है.

India

Aug 12 2024, 15:37

'इन आतंकियों को देखते ही सूचित करें..', जम्मू कश्मीर में जारी किए गए आतंकवादियों के स्केच, सूचना देने वाले को 5 लाख इनाम




जम्मू-कश्मीर पुलिस ने चार आतंकवादियों के स्केच जारी किए हैं, जिन्हें आखिरी बार कठुआ जिले के मल्हार, बानी और सियोजधार के ढोक में देखा गया था। कठुआ पुलिस अधिकारियों ने ये स्केच जारी किए हैं, जो बढ़ते खतरे से निपटने के लिए सक्रिय रूप से जनता की सहायता मांग रहे हैं। पुलिस ने घोषणा की है कि कठुआ में आतंकवादियों के बारे में सूचना साझा करने वाले को 5 लाख रुपये का इनाम दिया जाएगा।


पुलिस ने बताया है कि, "कठुआ पुलिस ने चार आतंकवादियों के स्केच जारी किए हैं, जिन्हें आखिरी बार मल्हार, बानी और सोजधार के धोकों में देखा गया था। प्रत्येक आतंकवादी को कार्रवाई योग्य जानकारी के लिए 05 लाख का इनाम दिया गया था। आतंकवादियों के बारे में विश्वसनीय जानकारी देने वाले को भी उचित इनाम दिया जाएगा।" इस बीच, हाल के दिनों में, जम्मू क्षेत्र में 2024 लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद कई आतंकवादी हमले हुए हैं, क्योंकि पाकिस्तान और आतंकी NDA सरकार की वापसी से बौखलाए हुए हैं और देश में अराजकता फैलाने की कोशिश कर रहे हैं।

जम्मू के पहाड़ी इलाकों में आतंकी गतिविधियों में हाल ही में हुई बढ़ोतरी, जिसकी शुरुआत 11 अक्टूबर, 2021 को पुंछ जिले में हुई दुखद मुठभेड़ से हुई थी, ने चिंताजनक रूप से वृद्धि देखी है। इस घटना में एक जूनियर कमीशन अधिकारी सहित पांच सैन्यकर्मियों ने अपने प्राणों की आहुति दी, जिसने क्षेत्र में हिंसा के निरंतर अभियान की शुरुआत को चिह्नित किया। सूत्रों से पता चलता है कि जम्मू क्षेत्र के ऊपरी इलाकों में करीब 40 से 50 आतंकवादी सक्रिय हैं, जो छोटे-छोटे समूहों में घूम रहे हैं। ये आतंकवादी सुरक्षा बलों, उनके काफिलों और, चिंताजनक रूप से, नागरिकों और गैर-लड़ाकों पर सुनियोजित हमले कर रहे हैं।