बांग्लादेश में भारत-पाक युद्ध से जुड़ी ऐतिहासिक मूर्तियों को तोड़ा गया, किसे नागवार गुजरी पाकिस्तान के सरेंडर दर्शाती प्रतिमा
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बांग्लादेश में हिंसा और अराजकता जारी है। देश मे जारी हिंसा के बीच बांग्लादेश की नई अंतरिम सरकार ने शपथ ग्रहण कर लिया है। अंतरिम सरकार ने देश के माहौल को काबू करने का प्रयास किया है। हालांकि अब तक सरकार को इसमें खास कामयाबी नहीं मिली है। इस बीच अल्पसंख्यकों निशाना बना रहे प्रदर्शनकारियों ने बांग्लादेश के बनने की सबसे अहम घटनाओं में से एक पाकिस्तान की सेना के भारतीय फौज के सामने सरेंडर को दिखाने वाली एक मूर्ति को भी प्रदर्शनकारियों ने निशाना बनाते हुए तोड़ डाला है।

1971 शहीद मेमोरियल कॉम्प्लेक्स में एक मूर्तिकला को तोड़ दिया गया है। इसमें 1971 युद्ध के उस मोमेंट को मूर्तियों की शक्ल दी गई थी जब हजारों पाकिस्तानी सैनिकों ने एक साथ भारतीय सेना के आगे सरेंडर किया था। कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने इस घटना पर कड़ा विरोध करते हुए प्रदर्शनकारियों को ‘भारत विरोधी’ बताया है।उन्होंने टूटी हुई मूर्ति की एक तस्वीर भी साझा की।

शशि थरूर ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर तस्वीर साझा करते हुए पोस्ट भी लिखा। उन्होंने कहा, "1971 के शहीद स्मारक परिसर, मुजीबनगर में भारत विरोधी उपद्रवियों द्वारा नष्ट की गई मूर्तियों की ऐसी तस्वीरें देखकर दुख हुआ। उन्होंने आगे कहा, यह कई स्थानों पर भारतीय सांस्कृतिक केंद्र, मंदिर और हिंदुओं के घरों पर हमलों के बाद हुआ है। इसके साथ ही मुस्लिम नागरिकों द्वारा अन्य अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों और उनके पूजा स्थलों को बचाने की भी खबरें सामने आईं।"

बता दें कि 1971 के युद्ध में न केवल बांग्लादेश को आजादी मिली थी, बल्कि पाकिस्तान को भी इस दौरान करारा झटका मिला था। इस प्रतिमा में पाकिस्तानी सेना के लेफ्टिनेंट-जनरल आमीर अब्दुल्ला खान नियाजी को भारतीय सेना और बांग्लादेश की मुक्ति वाहिनी के समक्ष 'समर्पण पत्र' पर हस्ताक्षर करते हुए दर्शाया गया था। लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी ने अपने 93000 सैनिकों के साथ भारत की पूर्वी कमान के तत्कालीन जनरल ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने समर्पण किया था।
भारत में भी पैदा हो सकते हैं बांग्लादेश जैसे हालात” कांग्रेस का ये दुःस्वप्न या देशद्रोह?

#canconditionslikebangladeshhappeninindia

पिछले हफ्ते बांग्लादेश के हालात की पूरी दुनिया में चर्चा रही। 5 अगस्त 2024 बांग्लादेश के इतिहास में एक काला अध्याय बन कर रह गया। तीन बार की प्रधानमंत्री रहीं शेख हसीना अपनी सरकार ही नहीं बल्कि अपना देश छोड़कर भागने पर मजबूर हो गईं। शेख हसीना के पद और देश छोड़ने के बाद भी हालत बदले नहीं हैं। छात्र आंदोलन के नाम पर बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है। पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश में जो हालात हैं, उससे देश में भी कुछ लोगों की बांछें खिल गईं। राजनीति में मर्यादा के घटते स्तर की बानगी देखिए कि विपक्ष के नेताओं ने यहां तक कह दिया कि बांग्लादेश में जिस तरह की परिस्थितियां पैदा हुईं हैं, वैसा ही दृश्य भारत में भी देखा जा सकता है। अब इसे केवल दुःस्वप्न कहा जाए ये देश को गर्त में देखने का सपना देखने वालों का देशद्रोह?

दरअसल, पड़ोसी देश बांग्लादेश में तख्तापलट हुआ तो विपक्ष के नेताओं की ओर से कुछ बयान दिए गए हैं कि बांग्लादेश जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति भारत में हो सकती है। कांग्रेस के नेताओं ने कहा कि बांग्लादेश के जौसे हालात भारत में भी पैदा हो सकते हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद ने कहा कि भारत में भले ऊपर-ऊपर सबकुछ सामान्य दिख रहा हो, लेकिन अंदर से कुछ सुलग रहा है। 

दूसरी तरफ, कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने कहा कि बांग्लादेश जैसी परिस्थितियां कुछ-कुछ भारत में भी बननी शुरू हो गई हैं और लोगों के मन में चुनावों की निष्पक्षता को लेकर शक पैदा होने लगा है, इसलिए हमें पड़ोसी देश से सीख लेते हुए सावधान रहने की जरूरत है। अय्यर ने न्‍यूज एजेंसी आईएएनएस के साथ एक विशेष साक्षात्कार में कहा कि भारत में भी आर्थिक विकास के बावजूद बेरोजगारी बहुत बढ़ चुकी है। उन्होंने कहा, "वहां की परिस्थिति और हमारी परिस्थिति में काफी तुलना की जा सकती है। उनके लोकतंत्र में कमियां महसूस होने लगीं। जो उनके चुनाव हुए - पहले और इस बार भी - तो विपक्ष की पार्टियों ने भाग ही नहीं लिया, क्योंकि उनको लगा कि स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव नहीं होंगे।

सलमान खुर्शीद और मणिशंकर अय्यर के अलावा मध्य प्रदेश कांग्रेस के नेता सज्जन सिंह वर्मा ने धमकी भरे अंदाज में कहा कि एक दिन भारत के प्रधानमंत्री आवास पर भी लोग धावा बोल देंगे, ठीक उसी तरह जैसे बांग्लादेश में हुआ है। उन्होंने कहा कि पहले श्रीलंका में हुआ था, अब बांग्लादेश में हुआ, अबकी भारत की बारी है। 

कांग्रेस नेताओं के इस बयान के बाद हैरानी होती है, ये उसी पार्टी नेता हैं, जिसने देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी। आजादी के सात दशक बाद भारत में अराजकता का ख्वाब उस कांग्रेस पार्टी के नेता देख रहे हैं जिसने आजादी की लड़ाई का नेतृत्व किया था। ये बयान केवल हमारे लोकतंत्र को कमजोर करते हैं और किसी भी तरह से राष्ट्र निर्माण को मजबूत नहीं करते हैं। ऐसे में सवाल है कि क्या भारत में भी ऐसा हो सकता है?

इस सवाल को अगर सिरे से खारिज कर दिया जाए तो हैरानी नहीं होनी चाहिए। क्योंकि, 1947 में जब भारत ने अंग्रेजों से आजादी पाई थी, तब भी यही भविष्यवाणी की गई कि भारत कुछ ही वर्षों में बिखर जाएगा। तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लिमेंट एटली, पूर्व प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल समेत कई अंग्रेज अधिकारियों और प्रशासकों ने कहा था कि भारत जातीयता, धर्म, संस्कृति समेत अन्य कई पहलुओं से इतना भिन्न है कि इसका साथ रहना नामुमकिन है। वो सब गलत साबित हुए।

भारत में सेना ताकतवर जरूर रही है, लेकिन सरकार के अधीन

वैसे भी जिन भी देशों में लोकतंत्र ज्यादा मजबूत रहता है, वहां पर सेना के पास असीमित शक्तियां नहीं रहती हैं, उन देशों में सेना सरकार के अनुसार ही काम करती दिखती है। ऐसे में तख्तापलट जैसे हालात उन देशों में पैदा नहीं होते। अब भारत की सेना का जैसा इतिहास रहा है, वहां पर अनुशासन ही सर्वोपरि है। यहां पर सेना ताकतवर जरूर रही है, लेकिन सरकार के अधीन भी। इसका एक प्रमाण तो आपातकाल के दौरान भी दिख गया था। उस समय इंदिरा गांधी के खिलाप तीनों सेना प्रमुख को एक हो जाना चाहिए था, तब की पीएम से स्थिति को लेकर बात करनी चाहिए थी। लेकिन क्योंकि भारत में लोकतंत्र रहा और सेना ने खुद को राजनीति से अलग रखने का फैसला लिया, ऐसे में उस दौर में भी सेना ज्यादा ताकतवर दिखाई नहीं दी। माना जाता है कि तख्तापलट वही पर होता है जहां पर अस्थिरता बन जाती है।

इस्लीमिक देशों में लोकतंत्र से ज्यादा शरीया पर विश्वास

दूसरी और अहम बात, बांग्लादेश हो या कोई अन्य मुस्लिम बहुल देश, वहां की सबसे बड़ी समस्या लोकतांत्रिक भावनाओं के सम्मान की भारी कमी का होना है। मुस्लिम देशों में बहुत बड़ा वर्ग वैसे नागरिकों का है जिनका लोकतांत्रिक संस्थाओं में जरा भी यकीन नहीं होता। वो लोकतंत्र को इस्लाम के खिलाफ मानते हैं और दिनरात शरियत का सपना देखते हैं। उनका यकीन इस्लामी धार्मिक कानून शरिया पर होता है। इसलिए वो लोकतंत्र को कभी दिल से स्वीकार नहीं कर पाते। इसके उलट भारत की व्यापक आबादी लोकतंत्र में यकीन रखती है। यहां लोकतांत्रिक संस्थाओं, उसके क्रियाकलापों से लोगों को अनगिनत शिकायतें हो सकती हैं, बावजूद इसके लोगों का इन पर गहरा विश्वास है। बहुसंख्यक भारतीय मानते हैं कि देश का भविष्य तय करने वाले किसी भी मुद्दे का समाधान लोकतांत्रिक प्रक्रिया से ही होना चाहिए।

राजनीतिक अस्थिरता के दौर में भी सेना ने नहीं लांघी मर्यादा

लोकतंत्र की सबसे महत्वपूर्ण परीक्षा हर चुनाव के बाद सत्ता का शांतिपूर्ण हस्तांतरण है। यह केवल भारत में है कि 1951-1952 में पहले आम चुनाव से लेकर 2024 में आखिरी आम चुनाव तक सत्ता का ऐसा शांतिपूर्ण हस्तांतरण हुआ है। हालांकि, यहां भी राजनीतिक अस्थिरता का लंबा दौर रहा। देश ने गठबंधन राजनीति का दौर देखा। सरकारें आती-जाती रहीं। देवगौड़ा और गुजराल जैसी कमजोर सरकारे आईं, अटल सरकार सिर्फ 13 दिन में धराशायी हो गई, लेकिन सेना ने कभी सरकार की तरफ आंख उठाकर नहीं देखा।

वहीं, अगर आम जनता की बात करें तो उन्हें भी पता है कि उसकी समस्याओं का समाधान सरकार के पास है। लोगों को अपनी बात शांतिपूर्ण ढंग से कहने का अधिकार है। उदाहरण के लिए,सीएए के खिलाफ राजधानी दिल्ली के शाहीन बाग इलाके में करीब सालभर तक धरना-प्रदर्शन चला। किसी सरकार ने उसे दबाने की कोशिश नहीं की, कोई लाठी-डंडे नहीं चले। यहां तक कि आंदोलनकारी किसान लाल किले तक पहुंच गए, फिर भी उन पर जोर-जबर्दस्ती नहीं हुई। कुल मिलाकर कहें तो यहां नाराजगी जाहिर करने के जनता के अधिकार का सरकारें सम्मान करती हैं तो बदले में जनता भी सरकारों को सुधार करने का मौका देती है।

इसके बावजूद अगर देश की प्रमुख विपक्षी दल के वरिष्ठ नेता इस तरह का बयान देते हैं, तो इससे उनकी मंशा साफ जाहिर होती है।

“भारत में भी पैदा हो सकते हैं बांग्लादेश जैसे हालात” कांग्रेस का ये दुःस्वप्न या देशद्रोह?
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पिछले हफ्ते बांग्लादेश के हालात की पूरी दुनिया में चर्चा रही। 5 अगस्त 2024 बांग्लादेश के इतिहास में एक काला अध्याय बन कर रह गया। तीन बार की प्रधानमंत्री रहीं शेख हसीना अपनी सरकार ही नहीं बल्कि अपना देश छोड़कर भागने पर मजबूर हो गईं। शेख हसीना के पद और देश छोड़ने के बाद भी हालत बदले नहीं हैं। छात्र आंदोलन के नाम पर बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है। पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश में जो हालात हैं, उससे देश में भी कुछ लोगों की बांछें खिल गईं। राजनीति में मर्यादा के घटते स्तर की बानगी देखिए कि विपक्ष के नेताओं ने यहां तक कह दिया कि बांग्लादेश में जिस तरह की परिस्थितियां पैदा हुईं हैं, वैसा ही दृश्य भारत में भी देखा जा सकता है। अब इसे केवल दुःस्वप्न कहा जाए ये देश को गर्त में देखने का सपना देखने वालों का देशद्रोह?

दरअसल, पड़ोसी देश बांग्लादेश में तख्तापलट हुआ तो विपक्ष के नेताओं की ओर से कुछ बयान दिए गए हैं कि बांग्लादेश जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति भारत में हो सकती है। कांग्रेस के नेताओं ने कहा कि बांग्लादेश के जौसे हालात भारत में भी पैदा हो सकते हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद ने कहा कि भारत में भले ऊपर-ऊपर सबकुछ सामान्य दिख रहा हो, लेकिन अंदर से कुछ सुलग रहा है।

दूसरी तरफ, कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने कहा कि बांग्लादेश जैसी परिस्थितियां कुछ-कुछ भारत में भी बननी शुरू हो गई हैं और लोगों के मन में चुनावों की निष्पक्षता को लेकर शक पैदा होने लगा है, इसलिए हमें पड़ोसी देश से सीख लेते हुए सावधान रहने की जरूरत है। अय्यर ने न्‍यूज एजेंसी आईएएनएस के साथ एक विशेष साक्षात्कार में कहा कि भारत में भी आर्थिक विकास के बावजूद बेरोजगारी बहुत बढ़ चुकी है। उन्होंने कहा, "वहां की परिस्थिति और हमारी परिस्थिति में काफी तुलना की जा सकती है। उनके लोकतंत्र में कमियां महसूस होने लगीं। जो उनके चुनाव हुए - पहले और इस बार भी - तो विपक्ष की पार्टियों ने भाग ही नहीं लिया, क्योंकि उनको लगा कि स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव नहीं होंगे।

सलमान खुर्शीद और मणिशंकर अय्यर के अलावा मध्य प्रदेश कांग्रेस के नेता सज्जन सिंह वर्मा ने धमकी भरे अंदाज में कहा कि एक दिन भारत के प्रधानमंत्री आवास पर भी लोग धावा बोल देंगे, ठीक उसी तरह जैसे बांग्लादेश में हुआ है। उन्होंने कहा कि पहले श्रीलंका में हुआ था, अब बांग्लादेश में हुआ, अबकी भारत की बारी है।

कांग्रेस नेताओं के इस बयान के बाद हैरानी होती है, ये उसी पार्टी नेता हैं, जिसने देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी। आजादी के सात दशक बाद भारत में अराजकता का ख्वाब उस कांग्रेस पार्टी के नेता देख रहे हैं जिसने आजादी की लड़ाई का नेतृत्व किया था। ये बयान केवल हमारे लोकतंत्र को कमजोर करते हैं और किसी भी तरह से राष्ट्र निर्माण को मजबूत नहीं करते हैं। ऐसे में सवाल है कि क्या भारत में भी ऐसा हो सकता है?

इस सवाल को अगर सिरे से खारिज कर दिया जाए तो हैरानी नहीं होनी चाहिए। क्योंकि, 1947 में जब भारत ने अंग्रेजों से आजादी पाई थी, तब भी यही भविष्यवाणी की गई कि भारत कुछ ही वर्षों में बिखर जाएगा। तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लिमेंट एटली, पूर्व प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल समेत कई अंग्रेज अधिकारियों और प्रशासकों ने कहा था कि भारत जातीयता, धर्म, संस्कृति समेत अन्य कई पहलुओं से इतना भिन्न है कि इसका साथ रहना नामुमकिन है। वो सब गलत साबित हुए।

*भारत में सेना ताकतवर जरूर रही है, लेकिन सरकार के अधीन*
वैसे भी जिन भी देशों में लोकतंत्र ज्यादा मजबूत रहता है, वहां पर सेना के पास असीमित शक्तियां नहीं रहती हैं, उन देशों में सेना सरकार के अनुसार ही काम करती दिखती है। ऐसे में तख्तापलट जैसे हालात उन देशों में पैदा नहीं होते। अब भारत की सेना का जैसा इतिहास रहा है, वहां पर अनुशासन ही सर्वोपरि है। यहां पर सेना ताकतवर जरूर रही है, लेकिन सरकार के अधीन भी। इसका एक प्रमाण तो आपातकाल के दौरान भी दिख गया था। उस समय इंदिरा गांधी के खिलाप तीनों सेना प्रमुख को एक हो जाना चाहिए था, तब की पीएम से स्थिति को लेकर बात करनी चाहिए थी। लेकिन क्योंकि भारत में लोकतंत्र रहा और सेना ने खुद को राजनीति से अलग रखने का फैसला लिया, ऐसे में उस दौर में भी सेना ज्यादा ताकतवर दिखाई नहीं दी। माना जाता है कि तख्तापलट वही पर होता है जहां पर अस्थिरता बन जाती है।

*इस्लीमिक देशों में लोकतंत्र से ज्यादा शरीया पर विश्वास*
दूसरी और अहम बात, बांग्लादेश हो या कोई अन्य मुस्लिम बहुल देश, वहां की सबसे बड़ी समस्या लोकतांत्रिक भावनाओं के सम्मान की भारी कमी का होना है। मुस्लिम देशों में बहुत बड़ा वर्ग वैसे नागरिकों का है जिनका लोकतांत्रिक संस्थाओं में जरा भी यकीन नहीं होता। वो लोकतंत्र को इस्लाम के खिलाफ मानते हैं और दिनरात शरियत का सपना देखते हैं। उनका यकीन इस्लामी धार्मिक कानून शरिया पर होता है। इसलिए वो लोकतंत्र को कभी दिल से स्वीकार नहीं कर पाते। इसके उलट भारत की व्यापक आबादी लोकतंत्र में यकीन रखती है। यहां लोकतांत्रिक संस्थाओं, उसके क्रियाकलापों से लोगों को अनगिनत शिकायतें हो सकती हैं, बावजूद इसके लोगों का इन पर गहरा विश्वास है। बहुसंख्यक भारतीय मानते हैं कि देश का भविष्य तय करने वाले किसी भी मुद्दे का समाधान लोकतांत्रिक प्रक्रिया से ही होना चाहिए।

*राजनीतिक अस्थिरता के दौर में भी सेना ने नहीं लांघी मर्यादा*
लोकतंत्र की सबसे महत्वपूर्ण परीक्षा हर चुनाव के बाद सत्ता का शांतिपूर्ण हस्तांतरण है। यह केवल भारत में है कि 1951-1952 में पहले आम चुनाव से लेकर 2024 में आखिरी आम चुनाव तक सत्ता का ऐसा शांतिपूर्ण हस्तांतरण हुआ है। हालांकि, यहां भी राजनीतिक अस्थिरता का लंबा दौर रहा। देश ने गठबंधन राजनीति का दौर देखा। सरकारें आती-जाती रहीं। देवगौड़ा और गुजराल जैसी कमजोर सरकारे आईं, अटल सरकार सिर्फ 13 दिन में धराशायी हो गई, लेकिन सेना ने कभी सरकार की तरफ आंख उठाकर नहीं देखा।

वहीं, अगर आम जनता की बात करें तो उन्हें भी पता है कि उसकी समस्याओं का समाधान सरकार के पास है। लोगों को अपनी बात शांतिपूर्ण ढंग से कहने का अधिकार है। उदाहरण के लिए,सीएए के खिलाफ राजधानी दिल्ली के शाहीन बाग इलाके में करीब सालभर तक धरना-प्रदर्शन चला। किसी सरकार ने उसे दबाने की कोशिश नहीं की, कोई लाठी-डंडे नहीं चले। यहां तक कि आंदोलनकारी किसान लाल किले तक पहुंच गए, फिर भी उन पर जोर-जबर्दस्ती नहीं हुई। कुल मिलाकर कहें तो यहां नाराजगी जाहिर करने के जनता के अधिकार का सरकारें सम्मान करती हैं तो बदले में जनता भी सरकारों को सुधार करने का मौका देती है।

इसके बावजूद अगर देश की प्रमुख विपक्षी दल के वरिष्ठ नेता इस तरह का बयान देते हैं, तो इससे उनकी मंशा साफ जाहिर होती है।
अपनी ही जीत की निशानी मिटा रहे बांग्लादेशी ! तोड़ डाली 1971 में पाकिस्तानी सरेंडर की मूर्तियां, भड़के कांग्रेस सांसद शशि थरूर



बांग्लादेश में राजनीतिक उथल-पुथल और सत्ता परिवर्तन के बाद देश के विभिन्न हिस्सों में हिंसा और अराजकता की घटनाएं सामने आ रही हैं। इसमें सैकड़ों लोगों की जान गई है और उपद्रवियों ने राष्ट्रीय स्मारकों को भी नुकसान पहुंचाया है। ताजा घटना में मुजीबनगर में स्थित 1971 शहीद मेमोरियल स्थल पर बनी मूर्तियों को तोड़ा गया है।

कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने इस घटना पर गहरी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार से आग्रह किया है कि वह कानून और व्यवस्था को बहाल करने के लिए तत्काल कदम उठाए। अपने सोशल मीडिया पोस्ट में थरूर ने कहा कि 1971 के मुजीबनगर शहीद स्मारक में स्थित मूर्तियों को भारत विरोधी तत्वों द्वारा नष्ट किया जाना बेहद दुखद है। यह घटना उन अपमानजनक हमलों के बाद हुई है, जिनमें भारतीय सांस्कृतिक केंद्र, मंदिरों और हिंदू घरों को निशाना बनाया गया था।


थरूर ने बताया कि कुछ आंदोलनकारियों का उद्देश्य स्पष्ट है, और यह महत्वपूर्ण है कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार देश में सभी समुदायों की सुरक्षा सुनिश्चित करे। उन्होंने कहा कि भारत इस कठिन समय में बांग्लादेश के लोगों के साथ खड़ा है, लेकिन ऐसी अराजकता को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। उल्लेखनीय है कि मुजीबनगर कॉम्प्लेक्स में बनी मूर्तियां 1971 की जंग के बाद पाकिस्तान के आत्मसमर्पण की प्रतीक हैं। इन्ही पाकिस्तानियों को हराने के बाद भारतीय सेना ने बांग्लादेशियों को अलग देश दिलाया था, अब वही बांग्लादेशी अपनी ही जीत के प्रतीकों को तोड़ रहे हैं। इसका संकेत स्पष्ट है कि, बांग्लादेश में इस्लामी कट्टरपंथ हावी हो चुका है और अब बांग्लादेशी झुकाव पाकिस्तान की तरफ होने लगा है। आने वाले दिनों में बांग्लादेश, अगर अफगानिस्तान और सीरिया जैसे देशों की राह पर चल पड़ता है, तो हैरानी नहीं होगी। गौर करने वाली बात ये भी है कि, लगभग 50 साल पहले बांग्लादेशी इसी कट्टरपंथ के खिलाफ लड़े थे, लेकिन अब शायद उन्हें समझा दिया गया है कि, वे वही हैं, जिनके खिलाफ वो लड़े थे।       


इन मूर्तियों में पाकिस्तानी सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल आमिर अब्दुल्ला खान नियाजी को भारतीय और बांग्लादेशी सेना के अधिकारियों की उपस्थिति में आत्मसमर्पण करते हुए दिखाया गया है। यह घटना 16 दिसंबर 1971 को हुई थी, जिसे भारत में भी विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस बीच, बांग्लादेश में हिंदुओं पर लगातार हो रहे हमलों के कारण हजारों लोग भारत की ओर भागने की कोशिश कर रहे हैं। भारत-बांग्लादेश सीमा पर भारी संख्या में बीएसएफ तैनात की गई है, और लोगों को भारत में प्रवेश करने से रोका जा रहा है।
भारी बारिश के कारण बीच में ही अस्थाई रूप से रोकी गई अमरनाथ यात्रा, रास्ते की कराई जाएगी मरम्मत




भारी वर्षा के कारण अमरनाथ यात्रा अस्‍थायी रूप से निलंबित कर दी गई है. दरअसल, बारिश की वजह से यात्रा मार्ग पर मरम्मत की आवश्यकता है, इसकी वजह से सोमवार 12 अगस्त को यात्रा निलंबित की गई है. निर्माण के पश्चात् यात्रा फिर से आरम्भ कर दी जाएगी. अफसरों ने इस बात की जानकारी दी है. अमरनाथ यात्रा के बालटाल एवं पहलगाम मार्गों पर शनिवार को हुई भारी वर्षा की वजह से यात्रा मार्ग पर मरम्मत एवं रखरखाव कार्य आवश्यक हो गए हैं. इस स्थिति के मद्देनजर, सुरक्षा कारणों से बालटाल मार्ग से 12 अगस्त को कोई भी यात्रा नहीं होगी.


कश्मीर के संभागीय आयुक्त विजय कुमार बिधूड़ी ने कहा, "आज हुई भारी बारिश की वजह से श्रीअमरनाथजी यात्रा के बालटाल मार्ग पर तत्काल मरम्मत तथा रखरखाव कार्य किए जाने की जरुरत है. यात्रियों की सुरक्षा के हित में, कल बालटाल मार्ग से कोई यात्रा नहीं होगी. आगे के अपडेट वक़्त-वक़्त पर जारी किए जाएंगे." पहलगाम मार्ग पर भी आवश्यक मरम्मत एवं रखरखाव के कार्य पहले से ही चल रहे हैं. अफसरों ने यात्रियों से संयम बरतने एवं अगले निर्देशों का पालन करने की अपील की है.

बता दें कि शनिवार को भी आधार शिविर से कोई जत्था नहीं भेजा गया. अंतिम पड़ाव में चल रही यात्रा में भक्त सीधे ही बालटाल रूट के लिए पहुंच रहे हैं. शनिवार को इस बीच 1608 भक्तों ने पवित्र गुफा में दर्शन किए थे. इसके साथ यह आंकड़ा 510570 तक पहुंच चुका है.
'इन आतंकियों को देखते ही सूचित करें..', जम्मू कश्मीर में जारी किए गए आतंकवादियों के स्केच, सूचना देने वाले को 5 लाख इनाम




जम्मू-कश्मीर पुलिस ने चार आतंकवादियों के स्केच जारी किए हैं, जिन्हें आखिरी बार कठुआ जिले के मल्हार, बानी और सियोजधार के ढोक में देखा गया था। कठुआ पुलिस अधिकारियों ने ये स्केच जारी किए हैं, जो बढ़ते खतरे से निपटने के लिए सक्रिय रूप से जनता की सहायता मांग रहे हैं। पुलिस ने घोषणा की है कि कठुआ में आतंकवादियों के बारे में सूचना साझा करने वाले को 5 लाख रुपये का इनाम दिया जाएगा।


पुलिस ने बताया है कि, "कठुआ पुलिस ने चार आतंकवादियों के स्केच जारी किए हैं, जिन्हें आखिरी बार मल्हार, बानी और सोजधार के धोकों में देखा गया था। प्रत्येक आतंकवादी को कार्रवाई योग्य जानकारी के लिए 05 लाख का इनाम दिया गया था। आतंकवादियों के बारे में विश्वसनीय जानकारी देने वाले को भी उचित इनाम दिया जाएगा।" इस बीच, हाल के दिनों में, जम्मू क्षेत्र में 2024 लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद कई आतंकवादी हमले हुए हैं, क्योंकि पाकिस्तान और आतंकी NDA सरकार की वापसी से बौखलाए हुए हैं और देश में अराजकता फैलाने की कोशिश कर रहे हैं।

जम्मू के पहाड़ी इलाकों में आतंकी गतिविधियों में हाल ही में हुई बढ़ोतरी, जिसकी शुरुआत 11 अक्टूबर, 2021 को पुंछ जिले में हुई दुखद मुठभेड़ से हुई थी, ने चिंताजनक रूप से वृद्धि देखी है। इस घटना में एक जूनियर कमीशन अधिकारी सहित पांच सैन्यकर्मियों ने अपने प्राणों की आहुति दी, जिसने क्षेत्र में हिंसा के निरंतर अभियान की शुरुआत को चिह्नित किया। सूत्रों से पता चलता है कि जम्मू क्षेत्र के ऊपरी इलाकों में करीब 40 से 50 आतंकवादी सक्रिय हैं, जो छोटे-छोटे समूहों में घूम रहे हैं। ये आतंकवादी सुरक्षा बलों, उनके काफिलों और, चिंताजनक रूप से, नागरिकों और गैर-लड़ाकों पर सुनियोजित हमले कर रहे हैं।
हिंडनबर्ग रिपोर्ट पर राहुल गांधी का सवाल, पूछा-सेबी चीफ ने इस्तीफा क्यों नहीं दिया, निवेशकों की जिम्मेदारी किसकी
#rahul_gandhi_after_hindenburg_report
अमेरिकी शॉर्ट-सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट के बाद एक बार फिर से देश में सियासत तेज हो गई है। हिंडनबर्ग रिसर्च की नई रिपोर्ट आने के बाद सवालों के घेरे में आईं भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) को लेकर कांग्रेस सांसद राहुल ने बड़ा हमला बोला है। नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने सरकार से 3 सवाल पूछे हैं। राहुल ने एक्स पर लिखा कि सेबी प्रमुख ने इस्तीफा क्यों नहीं दिया? निवेशकों ने पैसा गंवाया तो यह किसकी जिम्मेदारी बनती है? क्या सुप्रीम कोर्ट इसका स्वत:संज्ञान लेगा?

राहुल गांधी ने रविवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर अपने एक वीडियो पोस्ट पर कहा कि आरोपों से सेबी की प्रतिष्ठा धूमिल हुई है। उन्होंने कहा, “छोटे खुदरा निवेशकों की संपत्ति की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार प्रतिभूति नियामक सेबी की प्रतिष्ठा को इसके प्रमुख के खिलाफ लगे आरोपों से गंभीर रूप से खतरा पहुंचा है।”

उन्होंने आगे कहा, “देशभर के ईमानदार निवेशकों के पास सरकार के लिए कई अहम सवाल हैं- सेबी की प्रमुख माधबी पुरी बुच ने अभी तक इस्तीफा क्यों नहीं दिया है? अगर निवेशक अपनी मेहनत की कमाई खो देते हैं, तो कौन जिम्मेदार होगा- पीएम मोदी, सेबी प्रमुख या गौतम अडानी?”

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने आगे कहा कि सामने आए नए और बहुत गंभीर आरोपों के मद्देनजर, क्या सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर फिर से स्वतः संज्ञान लेगा? उन्होंने कहा, “अब यह पूरी तरह से साफ हो चुका है कि पीएम नरेंद्र मोदी संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी जांच से इतना क्यों डरते हैं और इससे क्या पता चल सकता है।”

बता दें कि अमेरिकी कंपनी हिंडनबर्ग रिसर्च ने शनिवार रात एक रिपोर्ट जारी की। इसमें दावा किया गया है कि सेबी चीफ माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच की अडाणी ग्रुप से जुड़ी ऑफशोर कंपनी में हिस्सेदारी है। व्हिसलब्लोअर दस्तावेजों के आधार पर हिंडनबर्ग ने दावा किया कि बुच और उनके पति की मॉरीशस की ऑफशोर कंपनी ‘ग्लोबल डायनामिक अपॉर्च्युनिटी फंड’ में हिस्सेदारी है। हिंडनबर्ग ने आरोप लगाया है कि ‘ग्लोबल डायनामिक अपॉर्च्युनिटी फंड’ में कथित तौर पर अडाणी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अडाणी के भाई विनोद अडाणी ने अरबों डॉलर निवेश किए हैं। इस पैसे का इस्तेमाल अडाणी ग्रुप के शेयरों के दामों में तेजी लाने के लिए किया गया था।
सावन के चौथे सोमवार पर उज्जैन में बाबा महाकाल का हुआ विशेष शृंगार, दर्शन को उमड़ी भक्तों की भीड़

सावन की चौथी सोमवारी पर देशभर के शिव मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ी हुई है। मध्य प्रदेश के उज्जैन स्थित श्री महाकालेश्वर मंदिर में आज बाबा महाकाल ने आधा घंटा पहले पूजा की शुरुआत की। रात 2:30 बजे मंदिर के द्वार खोल दिए गए, तथा पूरा मंदिर परिसर बाबा महाकाल के जयकारों से गूंज उठा। भस्म आरती आमतौर पर प्रातः 3 बजे आरम्भ होती है, किन्तु आज श्रावण मास की चौथी सोमवारी के विशेष अवसर पर बाबा महाकाल ने भक्तों को दर्शन देने के लिए आधा घंटा पहले उठाया। हजारों भक्तों ने इस भस्म आरती में भाग लिया। महाकालेश्वर मंदिर के पुजारी पंडित आशीष गुरू ने बताया कि भगवान वीरभद्र से अनुमति लेकर मंदिर का चांदी का द्वार खोला गया। तत्पश्चात, भगवान का पूजन एवं अर्चन किया गया। महाकाल को पंचामृत से स्नान कराया गया, और उन पर केसर जल अर्पित किया गया। चंदन और भांग से बाबा महाकाल का विशेष शृंगार भी किया गया। सुबह के विशेष शृंगार के बाद भगवान को महानिर्वाणी अखाड़े की ओर से भस्म अर्पित की गई। आज चौथी सोमवारी पर बाबा महाकाल की सवारी नगर में निकलेगी। इस के चलते भगवान श्री महाकालेश्वर बैलगाड़ी पर नंदी पर विराजमान होंगे, जबकि पालकी में भगवान श्री चन्द्रमोलेश्वर स्वरूप में रहेंगे। हाथी पर श्री मनमहेश, नंदी पर उमा महेश, और गरूड रथ पर श्री शिव तांडव की प्रतिमा नगर भ्रमण पर निकलेगी। बाबा महाकाल की सवारी के मौके पर घासी जनजातीय समुदाय के लोग नृत्य प्रस्तुत करेंगे, तथा पालकी के आगे भजन मंडली भी प्रस्तुति देगी। मुंबई के सायन से आए अनंत प्रदीप जोशी ने श्री महाकालेश्वर भगवान को 2046.500 ग्राम वज़न का रजत मुकुट अर्पित किया। यह मुकुट श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंधन समिति के सहायक प्रशासक मूलचंद जूनवाल द्वारा प्राप्त किया गया। श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंधन समिति के कोठारी मनीष पांचाल ने इस दान की खबर दी।
'मंदिर नहीं, मस्जिद है', बोलकर बीजामंडल में हिंदुओं को पूजा करने से रोका, नागपंचमी की पूजा के दौरान मचा हंगामा






मध्य प्रदेश के विदिशा जिला प्रशासन ने 11वीं सदी के बीजामंडल (विजय मंदिर) को खोलने से मना कर दिया है. नागपंचमी पर हिंदुओं ने पूजा-करने के लिए बीजामंडल को खोलने की मांग की थी. दरअसल, हिंदुओं के एक समूह ने कलेक्टर बुद्धेश कुमार वैद्य को ज्ञापन सौंपकर नागपंचमी के मौके पर शहर के बीचों-बीच स्थित इस स्थल को खोलने की अपील की थी.


जिलाधिकारी ने उनकी याचिका भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी ASI को भेज दी. जिसने 2 अगस्त को 1951 के गजट अधिसूचना का हवाला देते हुए कहा कि बीजामंडल मंदिर नहीं, बल्कि मस्जिद थी. जिलाधिकारी वैद्य ने बताया कि ASI इस ढांचे का संरक्षक है, इसलिए उन्होंने फैसले लेने के लिए ज्ञापन भेजा था. ज्ञापन सौंपने वाले हिंदू समूह के नेता शुभम वर्मा ने निराशा जताते हुए कहा, हम बीते 30 सालों से नागपंचमी पर वहां (ढांचे के बाहर) पूजा करते आ रहे हैं, मगर किसी ने यह नहीं कहा कि यह मंदिर नहीं, बल्कि मस्जिद है."

शुभम वर्मा ने कलेक्टर के पत्र एवं ASI के गजट नोटिफिकेशन को दिखाते हुए कहा कि ASI द्वारा इसे मस्जिद बताए जाने से हिंदुओं की भावनाएं आहत हुई हैं. हिंदू संगठनों का दावा है कि 1682 में मुगल शासक औरंगजेब ने विजय मंदिर को मस्जिद में बदल दिया था. हालांकि, अब धार्मिक स्थल के बाहर ही नाग पंचमी पर शाम के वक़्त लगभग 50 पुलिस कर्मियों के पहरे में पूजा-अर्चना होगी. इसके लिए पुलिस प्रशासन ने इंतजामात कर लिए हैं.
कोलकाता रेप-मर्डर केस में ममता बनर्जी का अल्टीमेटम, बोलीं- पुलिस मामला नहीं सुलझा सकी तो होगी सीबीआई जांच
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बंगाल में महिला डॉक्टर की रेप के बाद हत्या का मामला अब तूल पकड़ता जा रहा है। मृत डॉक्टर को न्याय दिलाने के लिए देशभर के डॉक्टर सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं। वहीं, मामले में अब सीएम ममता बनर्जी भी एक्शन मोड में आ गई हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बंगाल पुलिस को अल्टीमेटम दिया है। उन्होंने कहा है कि अगर रविवार तक पुलिस मामले को नहीं सुलझा पाती है तो हम केस को सीबीआई को सौंप देंगे।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आज आरजी कर अस्पताल की डॉक्टर के घर जाकर उसके माता-पिता और परिवार के सदस्यों से बात की। परिजनों से मिलने के बाद उन्होंने मीडिया से बात की।सीएम ममता बनर्जी ने कहा, जिस दिन यह घटना हुई मैं राज्य में नहीं थी मैं झारघाम में थी, उन्होंने कहा जब कोलकाता पुलिस कमिश्नर ने मुझे इस अपराध की जानकारी दी तो मुझे बहुत दुख हुआ, मैंने उन से कहा यह बहुत दुखद घटना है और इसके पीछे जो भी है उसको तुरंत गिरफ्तार किया जाना चाहिए।उन्होंने आगे कहा कि अगर इस केस को हम सॉल्व नहीं कर पाते हैं तो हम यह केस सीबीआई को सौंप देंगे।

सीएम ने आगे कहा, हम चाहते है कि यह मामला फास्ट ट्रेक कोर्ट में जाए, हम फांसी की सजा की भी मांग करेंगे। सीएम बनर्जी ने कहा, कुछ लोग शायद भूल गए हैं कि समाज में कैसा व्यवहार करना चाहिए, महिलाओं के खिलाफ इस तरह का अपराध करना एक जघन्य अपराध है।

बता दें कि आरजी कर मेडिकल कॉलेज-अस्पताल में जूनियर डॉक्टर के साथ दरिंदगी की घटना गुरुवार-शुक्रवार की दरमियानी रात की है। मृतक मेडिकल कॉलेज में चेस्ट मेडिसिन विभाग की स्नातकोत्तर द्वितीय वर्ष की छात्रा और प्रशिक्षु डॉक्टर थीं। गुरुवार को अपनी ड्यूटी पूरी करने के बाद रात के 12 बजे उसने अपने दोस्तों के साथ डिनर किया। इसके बाद से महिला डॉक्टर का कोई पता नहीं चला। शुक्रवार सुबह उस वक्त मेडिकल कॉलेज में हड़कंप मच गया जब चौथी मंजिल के सेमिनार हॉल से अर्ध नग्न अवस्था में डॉक्टर का शव बरामद हुआ।