हेल्थ टिप्स:औषधियो गुणों का खजाना है मुलेठी जानिए इसके सेवन करने से होने वाले फायदे


मुलेठी, जिसे अंग्रेज़ी में "Licorice" कहा जाता है, एक प्रसिद्ध औषधीय पौधा है जिसका उपयोग प्राचीन समय से चिकित्सा और स्वास्थ्य लाभों के लिए किया जा रहा है। यह अपने मीठे स्वाद और औषधीय गुणों के कारण आयुर्वेद, यूनानी और पारंपरिक चीनी चिकित्सा में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। आइए जानते हैं मुलेठी के सेवन से होने वाले कुछ प्रमुख फायदे:

1. गले और श्वसन तंत्र के लिए फायदेमंद

मुलेठी का उपयोग गले के संक्रमण, खांसी और जुकाम के इलाज में किया जाता है। इसके एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटी-माइक्रोबियल गुण गले की सूजन को कम करने और श्वसन तंत्र को साफ करने में मदद करते हैं।

2. पाचन तंत्र के लिए लाभकारी

मुलेठी में पाए जाने वाले तत्व पेट के अल्सर, एसिडिटी और कब्ज जैसी समस्याओं को कम करने में सहायक होते हैं। यह पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है और पेट के रोगों से राहत प्रदान करता है।

3. रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मददगार

मुलेठी में एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं। यह शरीर को फ्री रेडिकल्स से बचाता है और संक्रमणों से लड़ने की क्षमता को बढ़ाता है।

4. त्वचा के लिए लाभदायक

मुलेठी का उपयोग त्वचा की विभिन्न समस्याओं जैसे एक्जिमा, सोरायसिस और अन्य एलर्जी के इलाज में किया जाता है। यह त्वचा को स्वस्थ और चमकदार बनाने में मदद करता है।

5. मानसिक स्वास्थ्य के लिए सहायक

मुलेठी में पाए जाने वाले प्राकृतिक तत्व तनाव और चिंता को कम करने में मदद करते हैं। यह मानसिक शांति प्रदान करता है और मस्तिष्क की कार्यक्षमता को बढ़ाता है।

6. हार्मोनल संतुलन में सहायक

मुलेठी महिलाओं में हार्मोनल असंतुलन को दूर करने में भी सहायक है। यह मासिक धर्म की अनियमितता और रजोनिवृत्ति के लक्षणों को कम करने में मदद करता है।

सेवन के तरीके

मुलेठी का सेवन चाय, पाउडर, या कैप्सूल के रूप में किया जा सकता है। इसे किसी भी रूप में सेवन करने से पहले डॉक्टर की सलाह लेना उचित है, खासकर यदि आप गर्भवती हैं या किसी अन्य गंभीर स्वास्थ्य समस्या से पीड़ित हैं।

निष्कर्ष

मुलेठी एक प्राकृतिक औषधि है जिसके अनेक स्वास्थ्य लाभ हैं। नियमित और संतुलित सेवन से यह विभिन्न शारीरिक और मानसिक समस्याओं से राहत दिलाने में सहायक हो सकता है। हमेशा ध्यान रखें कि किसी भी औषधीय पौधे का सेवन चिकित्सक की सलाह से ही करना चाहिए।

बच्चों में डर और तनाव का संकेत दे सकते हैं ये लक्षण, जानें बचने के उपाय
माता-पिता बच्चे की कई आदतों को लिए जिम्मेदार होते हैं। बचपन में माता-पिता अपने बच्चे को गर्म चीजों और सड़क में दौड़ती गाड़ियों से बचाने के लिए डरा देते हैं। यह छोटी-छोटी आदतें कुछ वर्षों के बाद बच्चों के लिए बड़ी समस्या का कारण बन जाती हैं। बड़े होने के बाद ये आदतें बच्चे के मन में डर का कारण बन सकती हैं। इस वजह से होने एंग्जाइटी बच्चों की लाइफस्टाइल को प्रभावित कर सकती है।

ऐसे बच्चों में अंधेरे व भूत का डर देखने को मिलता है। इन बच्चों में चोरी और हिंसा की आदत पनप सकती है। अक्सर बच्चे के डर को माता-पिता और बड़े भाई बहन अनदेखा कर देते हैं और इसे समय के साथ अपने आप ठीक होने वाली आदत मान लेते हैं। लेकिन, हर बच्चा इस डर से समय के साथ बाहर नहीं निकल पाता है। इसलिए इस डर को बच्चे की छोटी आयु में ही दूर करने की आवश्यकता होती है। 

बच्चे के मन में नकारात्मक विचार आना
बच्चे को एंग्जाइटी और डर होने पर उनके मन में नकारात्मक विचार आने लगते है। बच्चा किसी भी काम को करने से पहले डरने लगता है। साथ ही, वह नए कामों को करने से टालने लगता है। यह एंग्जाइटी के प्रभाव के कारण हो सकता है।

नींद में कठिनाई बच्चों को सोने में कठिनाई हो सकती है। डर या एंग्जाइटी होने पर बच्चा सोते समय बार-बार उठ सकता है। साथ ही, बच्चे को थकान और कमजोरी महसूस होने लगती है। नींद की कमी की वजह से बच्चा एक एक्टिव हो जाता है।

बच्चे को सिरदर्द होना

बच्चे को एंग्जाइटी और डर लगने के कारण अक्सर सिरदर्द की समस्या देखने को मिल सकती है। इस दौरान बच्चे को पेट दर्द और मांसपेशियों में दर्द की समस्या हो सकती है। साथ ही, बच्चा बार-बार बीमार पड़ सकता है।

सामाजिक गतिविधियों से बचाव.

इस दौरान बच्चा दोस्तों के साथ खेलने और सामाजिक गतिविधियों से बचना शुरु कर देता है। कुछ बच्चे एंग्जाइटी में स्कूल जाने से करताने लगते हैं। जबकि, कुछ बच्चों के व्यवहार में बदलाव देखने को मिलता है, मन में किसी तरह के डर की वजह से बच्चा चुपचाप रहने लगता है, वहीं कुछ बच्चे गुस्सैल प्रवृत्ति के हो जाते है।

अकेला रहने में डरना

एंग्जाइटी या डर की वजह से बच्चा अकेला रहने से बचने लगता है। रात में भी बच्चा अकेला सोने से डरता है। इसके अलावा, वह ज्यादातर समय मां या घर के अन्य सदस्यों के साथ समय बिताने में खुद को सुरक्षित महसूस करता है।

बच्चों को एंग्जाइटी और डर से बचाव के उपाय

बच्चों को डर की वजह से कोई बदलाव महसूस होने पर माता-पिता को उनके मन की भावनाओं को समझना चाहिए।

अभिभावकों को बच्चे के साथ खुलकर बात करनी चाहिए।

बच्चे को सोने से पहले बहादुरी की कहानियां सुनाएं।

यदि, संभव हो तो अभिभावकों को बच्चे के साथ ही सोना चाहिए।

बच्चे के मन से डर को दूर करने के लिए उसके कारणों को समझने का प्रयास करना चाहिए।
नोट: हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।
आईए जानते हैं मानसून के दिनों में पाचन को ठीक रखने के लिए कौन-कौन से ड्रिंक लाभकारी माना जाता है
मानसून का मौसम और रिमझिम बारिश का अपना ही आनंद है, हालांकि बरसात के दिनों में आपको सेहत को लेकर विशेषतौर पर सावधान रहने की आवश्यकता होती है। मानसून के समय में वैसे तो मच्छरों के काटने से होने वाली बीमारियों का खतरा रहता ही है, साथ ही ये मौसम पाचन के लिए भी दिक्कतें बढ़ा देता है। बढ़ी हुई नमी हानिकारक बैक्टीरिया और वायरस को बढ़ाने वाली हो सकती है जिसके कारण गैस्ट्रिक समस्याओं का होना आम है।

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, बरसात के दिनों में खान-पान को लेकर विशेष सावधानी बरतते रहने की आवश्यकता होती है। भोजन-जल की अशुद्धता के कारण कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती है। गैस्ट्रिक समस्याओं को कम करने और पेट को ठीक रखने में कुछ पेय आपके लिए फायदेमंद माने जाते हैं, आइए इस बारे में जानते हैं।

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, मानसून के दौरान गैस्ट्रिक समस्याओं से सुरक्षित रहने के लिए स्वच्छता का ध्यान रखना सबसे महत्वपूर्ण है। खाने से पहले अपने हाथों को साबुन और पानी से अच्छी तरह से धोना जरूरी है। यह आदत बैक्टीरिया और वायरस के संक्रमण को रोक सकती है। इसके अलावा फलों-सब्जियों को खाने से पहले भी इसे अच्छी तरह से धो लें। अस्वच्छ पानी के कारण होने वाली पाचन संबंधित समस्याओं को कम करने के लिए पानी को उबालकर और छानकर ही पीना चाहिए।

हर्बल टी का करिए सेवन हम में से ज्यादातर लोग दिन की शुरुआत चाय-कॉफी के साथ करते हैं, इसका अधिक सेवन आपके पाचन के लिए नुकसानदायक हो सकता है। हालांकि इसकी जगह पर हर्बल का सेवन करना अच्छा विकल्प माना जाता है। जैसे अदरक की चाय पीना पाचन स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है। अदरक शरीर में पाचन एंजाइम और गैस्ट्रिक जूस के उत्पादन को उत्तेजित करने में मदद करता है। इससे पेट फूलने जैसे पाचन संबंधी लक्षणों को कम कर सकते हैं। नींबू पानी पीना भी पाचन के लिए फायदेमंद है।

छाछ और दही आंतों के लिए फायदेमंद छाछ और दही आदि को प्रोबायोटिक्स से भरपूर माना जाता है जो आंत में गुड बैक्टीरिया को बढ़ावा देने और पाचन को ठीक रखने में मददगार है। छाछ लोकप्रिय भारतीय पेय है जो भोजन के पाचन को ठीक रखने और पेट की समस्याओं को कम करने में आपके लिए लाभकारी है। यह पेय आपके शरीर को पोषण देने और हाइड्रेट रखने में भी बहुत फायदेमंद माना जाता है। इसके नियमित सेवन से कई प्रकार के स्वास्थ्य लाभ हो सकते हैं।

हल्दी-पुदीने का पानी एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर हल्दी में पाए जाने वाला करक्यूमिन आपकी सेहत के लिए कई प्रकार से लाभप्रद है। इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता तो बढ़ती ही है साथ ही ये मल त्याग, पेट दर्द और दस्त को कम करके आंतों की समस्याओं को कम करने में भी फायदेमंद है। इसी तरह से पुदीने के रस को पानी में मिलाकर पीने से भी पाचन संबंधित समस्याओं के जोखिमों को कम किया जा सकता है।


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हेल्थ टिप्स:बारिश में अगर पेट से संबंधित इन समस्या से है परेशान तो,खाना शुरू कर दे ये फूड


बरसात के मौसम का सभी लोगों को काफी इंतजार रहता है. शरीर के झुलसा देने वाले गर्मियों के बाद जब मानसून का सीजन आता है तो इंसान ही नहीं बल्कि हरेक जीव-जंतु खिलखिला उठता है. इस मानसून में जहां प्रकृति खिली हुई दिखती है. वहीं इस मौसम में कई तरह की परेशानियां भी आ खड़ी होती हैं.बारिश का मौसम आते ही कई तरह की बीमारियों का खतरा मंडराने लगता है। कीटो के काटने से लेकर एलर्जी, बुखार, और इंफेक्शन के मामले बढ़ने लग जाते हैं।

यह मौसम सबसे ज्यादा आपके पाचन को प्रभावित करता है। दरअसल, पानी और वातावरण में नमी बैक्टीरिया, फंगस-वायरस के लिए अनुकूल स्थिति बनाते हैं। जिससे थोड़ी सी भी गंदगी और खान-पान में छोटी सी गलती आपके पेट को खराब करने का काम कर सकती है।

बार-बार पेट खराब होने के कारण? अपच को पेट खराब होना भी कहते हैं। इसमें पेट दर्द, पेट में गैस, ऐंठन, दस्त, कब्ज और उल्टी आती है। यह बहुत तेजी से खाने या कुछ विशेष खाद्य पदार्थों को खाने, बहुत अधिक शराब या कैफीन का सेवन या तनाव के कारण हो सकता है। कभी-कभी, अपच एक अंतर्निहित गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल स्थिति का संकेत होता है, जैसे कि एसिड रिफ्लक्स।

पेट खराब होने पर क्या खाएं-

कच्चा केला

केला पाचन से संबंधित बीमारियों के लक्षणों को दूर करने में मदद कर सकता है। कच्चे केले पेक्टिन में भी समृद्ध होते हैं। यह एक प्रकार का घुलनशील फाइबर जो दस्त से लड़ने में मदद करता है। साथ ही पेट की खराबी को शांत करने का काम करता है। साथ ही यह शरीर में इलेक्ट्रोलाइट संतुलन को बनाने में भी मददगार होता है, जो अक्सर उल्टी और दस्त के दौरान खो जाता है। इसलिए, यदि आप पेट खराब से पीड़ित हैं, तो टैबलेट के बजाय कच्चे केले के कुछ स्लाइस को थोड़ा सा शहद या अदरक के साथ खाने का प्रयास करें।

हल्दी से पेट की परेशानी में मिलता है आराम

मानसून के मौसम में दूषित भोजन और पानी से पेट खराब होने का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में हल्दी का सेवन पेट खराब होने के लक्षणों को कम करने और बेचैनी से राहत दिला सकता है। हल्दी का उपयोग लंबे समय से पेट की ख़राबी के लिए एक प्राकृतिक उपचार के रूप में किया जाता रहा है। हल्दी, करक्यूमिन में सक्रिय तत्व, एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटी-बैक्टीरियल गुणों के लिए जाना जाता है। हल्दी का सेवन कई तरह से किया जा सकता है, जिसमें सप्लीमेंट लेना, चाय पीना या भोजन में शामिल करना शामिल है।

जीरा का पानी है अपच का घरेलू उपचार


जीरा का पानी पेट की गड़बड़ी में फायदेमंद साबित हो सकता है। दरअसल, इसमें गैस्ट्रोप्रोटेक्टिव गुण पाया जाता है। जो पेट और आंत से जुड़ी समस्याएं जैसे अपच, पेट में दर्द, जलन, गैस, पेट फूलना, उल्टी और मतली से आराम पाने में मदद कर सकता है।

पेट खराब होने पर खाएं दही

पानी और खाद्य जनित संक्रमणों के बढ़ते जोखिम के कारण मानसून का मौसम पेट के लिए कठिन हो सकता है। हर दिन दही का सेवन पेट को फ्लू के जोखिम से निपटने में मदद कर सकता है। दही में पेट को हेल्दी रखने वाले गुड बैक्टीरिया मौजूद होता है जो पाचन में सुधार करने और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल संक्रमण की घटनाओं को कम करने में मदद कर सकती हैं। यह कैल्शियम और प्रोटीन का भी अच्छा स्रोत है, दोनों ही आंत के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण हैं।

पेट खराब में पुदीना खाएं


पुदीना पेट खराब के लक्षणों को कम करने का काम करता है। पुराने समय से इसका उपयोग अपच की समस्या और उसके लक्षणों जैसे गैस, एसिडिटी व मतली से आराम पाने में किया जाता रहा है। वहीं, जर्नल ऑफ फार्मास्यूटिकल एंड रिसर्च के शोध में यह भी पाया गया है कि इसमें एंटी स्पास्मोडिक गुण पाए जाते हैं, जो पेट दर्द को कम करने में मदद कर सकते हैं।

अदरक करता है अपच की समस्या को खत्म

अदरक गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल डिसऑर्डर को सुधारने में मदद कर सकता है। एक्सपर्ट भी पेट फ्लू या फूड पॉयजनिंग में अदरक खाने की सलाह देते हैं। इसका सेवन आप कच्चा या पानी में उबालकर भी कर सकते हैं।

पेट की गड़बड़ी को कैसे ठीक करें- नारियल पानी पिएं

नारियल पानी इलेक्ट्रोलाइट्स और खनिजों में समृद्ध होते हैं। यह हाइड्रेशन स्तर को बहाल करने और पेट को व्यवस्थित करने में मदद कर सकते हैं। इसके अलावा, यह वसा और कैलोरी में कम है, जो इसे उन लोगों के लिए एक आदर्श पेय बनाता है जो मिचली या फूला हुआ महसूस कर रहे हैं। अगली बार जब आप बारिश के मौसम में थोड़ा सा भी ऐसा महसूस करे तो एक गिलास ताजा नारियल पानी पी लें।

कुछ ऐसे योगासन है जिसके नियमित अभ्यास से हृदय स्वास्थ्य में सुधार और कोलेस्ट्रॉल,रक्तचाप नियंत्रित रहता है, जानिए

भारत समेत दुनियाभर में हृदय रोग की समस्या बहुत तेजी से बढ़ रही है। कोविड काल के बाद हृदय रोग का जोखिम भारतीयों में काफी बढ़ा है। उच्च रक्तचाप, हाई कोलेस्ट्रॉल, धूम्रपान, मोटापा और अस्वस्थ जीवनशैली के कारण हृदयाघात और स्ट्रोक समेत हृदय संबंधी कई समस्याएं हो सकती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक , हृदय रोग भारत में मृत्यु के प्रमुख कारणों में से एक है।

हृदय रोग से बचाव के लिए स्वस्थ जीवनशैली, पौष्टिक खानपान के साथ ही योग और व्यायाम करना अच्छा हो सकता है। यहां कुछ ऐसे योगासनों के बारे में बताया जा रहा है, जिनके नियमित अभ्यास से हृदय स्वास्थ्य में सुधार होता है और कोलेस्ट्रॉल और रक्तचाप नियंत्रित रहता है।

वृक्षासन
वृक्षासन से तनाव कम होता है, मस्तिष्क शांत रहता है और हृदय रोग की समस्या से बचाव होता है। इस आसन को करने के लिए बाएं पैर को सीधा रखते हुए संतुलन बनाए रखें। गहरी सांस लेते हुए हाथों को सिर के ऊपर ले जाएं और नमस्कार की मुद्रा बनाएं। रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए बाएं तलवे को दाहिनी जांघ पर रखें। इसी प्रक्रिया को दोहराएं।

वीरभद्रासन योग विशेषज्ञों के मुताबिक किसी भी योगासन से अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए उसका सही तरीके से अभ्यास किया जाना आवश्यक माना जाता है। वीरभद्रासन योग की कई मुद्राएं हैं, ऐसे में किसी विशेषज्ञ से बेहतर प्रशिक्षण के बाद ही इस अभ्यास की शुरुआत करें। इस योग के लिए सबसे पहले सीधी मुद्रा में खड़े हो जाएं। अब अपनी बाहों को फर्श के समानांतर उठाते हुए  सिर को बाईं ओर मोड़ें। बाएं पैर को भी 90 डिग्री बाईं ओर मोड़ें। कुछ देर तक इस अवस्था में बने रहें। इसी तरह से दूसरी तरफ का भी अभ्यास करें।

त्रिकोणासन
इस आसन के अभ्यास से फेफड़े मजबूत होते है। पाचन क्रिया को दुरुस्त करता है और मांसपेशियों को मजबूत बनाता है। हृदय रोग की समस्या से निजात पाने के लिए त्रिकोणासन का अभ्यास कर सकते हैं। इस आसन को करने के लिए सीधे खड़े होकर पैरों के बीच करीब दो फीट की दूरी रखें। गहरी सांस लेते हुए शरीर को दाईं ओर झुकाएं और बाएं हाथ को ऊपर की तरफ ले जाएं। नजरें भी बाएं हाथ की उंगलियों पर टिकाकर कुछ देर इसी स्थिति में रहें। पुरानी अवस्था में दोबारा आ जाएं।

सेतुबंधासन
सेतुबंधासन योग शारीरिक निष्क्रियता की समस्या को दूर करता है और मांसपेशियों व हड्डियों को स्वस्थ रखने और रक्त का संचार बढ़ाने में काफी कारगर अभ्यास माना जाता है। इस योग का नियमित अभ्यास शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की सेहत को ठीक रखने में विशेष लाभप्रद हो सकता है। सेंडेंटरी लाइफस्टाइल के शिकार लोगों को दिनचर्या में इस योग को जरूर शामिल करना चाहिए।


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मच्छरों की प्रजातियों में तीन सबसे घातक मच्छरों से होती हैं गंभीर बीमारियां, आईए जानते हैं लक्षण और बचाव

अगस्त के महीने में विश्व मच्छर दिवस मनाया जाता है। 1897 में हुई एक खोज में पता चला कि मादा मच्छर मनुष्य में रोग फैलाते हैं। ये दुनिया के सबसे घातक कीड़े में से एक है, क्योंकि बीमारियां फैलाने की उनकी क्षमता हर साल लाखों लोगों की मौत का कारण बनती हैं। मानसून में कई प्रकार के मच्छर जनित बीमारियों का जोखिम बढ़ जाता है। दरअसल भारी बारिश, जलभराव और बाढ़ की स्थिति मच्छरों के प्रजनन के लिए सबसे अनुकूल होती है, जो कई बीमारियों के खतरे को बढ़ा सकती है।


कई मच्छर अलग अलग बीमारियां फैलाते हैं। रोग फैलाने में वाले मच्छरों की प्रजातियों में तीन सबसे घातक हो सकते हैं। इसमें एडीज, एनोफिलीज मच्छर और क्यूलेक्स मच्छर का नाम शामिल है।

एडीज

एडीज मच्छर दिन में निकलते हैं। भारत में एडीज मच्छरों का प्रभाव देखने को मिलता है। एडीज मच्छरों के कारण चिकनगुनिया, डेंगू बुखार हो सकता है। इसके अलावा लसीका फाइलेरिया, रिफ्ट वैली बुखार, येलो फीवर और जीका वायरस भी एडीज के कारण होने की संभावना रहती है। एनाफिलीज मच्छर

एनोफिलीज मच्छर रात में निकलते हैं। इनके काटने से मलेरिया, लसीका आफलेरिया जैसी बीमारी हो सकती हैं। मलेरिया के कई मामले हर साल भारत में सामने आते हैं। वहीं लसीका फाइलेरिया बुखार के मामले अधिकतर अफ्रीका में सुनने को मिलते हैं।

क्यूलेक्स मच्छर

पश्चिम नील बुखार और जापानी एन्सेफलाइटिस जैसी बीमारी क्यूलेक्स मच्छर के कारण फैलती है।

एडीज मच्छर के काटने के लक्षण

एडीज मच्छर के काटने से डेंगू और चिकनगुनिया हो सकता है, जिसके लक्षण कुछ हद तक समान होते हैं। एडीज मच्छर के कारण तेज बुखार, आंखों के निचले हिस्से में दर्द, जी मिचलाना और उल्टी आना, जोड़ों में दर्द और मांसपेशियों में ऐंठन, त्वचा पर चकत्ते पड़ना, गर्दन और पीठ में दर्द व अकड़न, साथ ही कमजोरी और थकान महसूस हो सकती है। एनाफिलीज मच्छर के काटने के लक्षण

एनोफिलीज मच्छर उप सहारा अफ्रीका में पाया जाता है, जो कि एक वायरस फैलाता है जिससे मलेरिया जैसे रोग हो सकते हैं। मलेरिया में तेज बुखार, सिरदर्द, उल्टी शामिल है। मलेरिया जानलेवा भी हो सकता है। इसमें कपकंपी औऱ ठंडक महसूस होती है। मलेरिया के कारण फेफड़ों में तरल पदार्थ जमा हो सकता है जिससे सांस लेना मुश्किल हो जाता है। कुछ स्थितियों में यह रोग किडनी-लिवर को भी नुकसान पहुंचा सकती है। दवाइयों से मलेरिया को ठीक किया जा सकता है।

नोट: हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।
बाल झरने की समस्या से परेशान है तो नीम के पत्ते को नारियल तेल में पकाकर लगाएं सिर पर बालों को फिर से बढ़ाने में रामबाण साबित होते हैं नीम पत्ते


नीम के पत्ते और नारियल तेल का उपयोग बालों की देखभाल में लंबे समय से किया जा रहा है। बालों का झड़ना रोकने और बालों को फिर से बढ़ाने के लिए ये दोनों सामग्री बहुत ही प्रभावी मानी जाती हैं। आइए जानें कैसे:

नीम के पत्ते

नीम के पत्तों में एंटी-फंगल, एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं, जो स्कैल्प की समस्याओं को दूर करने में सहायक होते हैं। नीम के पत्तों का नियमित उपयोग डैंड्रफ और खुजली को कम करता है, जिससे बालों की जड़ों को मजबूती मिलती है और बालों का झड़ना रुकता है।

नारियल तेल

नारियल तेल बालों के लिए प्राकृतिक कंडीशनर का काम करता है। इसमें लॉरिक एसिड होता है, जो बालों की जड़ों को गहराई से पोषण प्रदान करता है और उन्हें मजबूत बनाता है। नारियल तेल बालों की नमी को बनाए रखने में मदद करता है, जिससे बाल स्वस्थ और चमकदार दिखते हैं।

उपयोग का तरीका

नीम के पत्तों को तैयार करना:

कुछ नीम के पत्तों को अच्छी तरह धो लें और उन्हें सूखा लें।

इन पत्तों को पीसकर पेस्ट बना लें या सुखाकर पाउडर बना लें।

नीम और नारियल तेल का मिश्रण:

एक कप नारियल तेल लें और उसे हल्का गर्म करें।

इसमें नीम के पत्तों का पेस्ट या पाउडर मिलाएं।

इस मिश्रण को 10-15 मिनट तक धीमी आंच पर पकाएं, जब तक तेल का रंग हरा न हो जाए।

इसे ठंडा होने दें और फिर छानकर एक बोतल में रख लें।

उपयोग:

इस तेल को हल्का गर्म करें और अपनी उंगलियों की मदद से स्कैल्प पर मालिश करें।

तेल को पूरे बालों में अच्छी तरह लगाएं और कम से कम एक घंटे के लिए छोड़ दें। बेहतर परिणाम के लिए इसे रातभर भी छोड़ सकते हैं।

इसके बाद किसी माइल्ड शैम्पू से बाल धो लें।

लाभ

नियमित रूप से नीम और नारियल तेल का उपयोग करने से बालों का झड़ना कम होता है।

बालों की जड़ों को पोषण मिलता है और बाल घने और मजबूत होते हैं।

डैंड्रफ और खुजली से छुटकारा मिलता है।

बालों में प्राकृतिक चमक आती है और वे मुलायम बनते हैं।

इस प्राकृतिक उपचार का नियमित उपयोग आपके बालों को स्वस्थ और मजबूत बनाने में मदद करेगा।

अक्सर होने वाले सिरदर्द को न करें नज़रअंदाज़ ,अगर आपको भी इस तरह की दिक्कत रहती है तो डॉक्टर की सलाह जरूर ले
मस्तिष्क हमारे पूरे शरीर को नियंत्रित करने वाला अंग है, यही कारण है कि इसके विशेष देखभाल की भी आवश्यकता होती है। लाइफस्टाइल और आहार में गड़बड़ी के साथ कई तरह की पर्यावरणीय स्थितियों के कारण इस अंग से संबंधित दिक्कतें बढ़ती देखी जा रही हैं। यहां तक कि कम उम्र के लोग भी मस्तिष्क रोगों के शिकार पाए जा रहे हैं। मस्तिष्क में ट्यूमर वैश्विक स्तर पर तेजी से बढ़ती ऐसी ही एक समस्या है।

ब्रेन ट्यूमर, मस्तिष्क में या उसके आस-पास की कोशिकाओं में अनियंत्रित वृद्धि के कारण होता है। ये कैंसर कारक भी हो सकता है। अध्ययनों से पता चलता है कि मस्तिष्क में 120 से अधिक विभिन्न प्रकार के ट्यूमर विकसित हो सकते हैं। यदि परिवार में किसी को ब्रेन ट्यूमर हुआ हो तो अन्य लोगों को भी सावधान रहने की सलाह दी जाती है।इसके अलावा प्लास्टिक और रसायन उद्योग में काम करने वाले लोगों में भी इसका खतरा हो सकता है। ब्रेन ट्यूमर और इसके कारण

जॉन्स हॉप्किंस के विशेषज्ञ कहते हैं, बहुत से मामलों में ब्रेन ट्यूमर के कारण अज्ञात होते हैं। कई बार आनुवांशिकता और पर्यावरणीय जोखिम कारक इसके लिए जिम्मेदार माने जाते हैं। कमजोर इम्यून सिस्टम वाले लोगों में ब्रेन ट्यूमर का जोखिम अधिक देखा जाता रहा है। ब्रेन ट्यूमर के सभी मामले कैंसर वाले हों ये जरूरी नहीं है। समय पर इलाज से इसके गंभीर रूप लेने का खतरा कम किया जा सकता है।

डॉक्टर बताते हैं कुछ बहुत सामान्य से लक्षण भी ट्यूमर की तरफ संकेत देते हैं जिनपर गंभीरता से ध्यान दिया जाना चाहिए। रांची रिम्स में न्यूरोसर्जन डॉ विकास कुमार बताते हैं, ब्रेन ट्यूमर के लक्षण ट्यूमर के आकार और स्थान पर निर्भर करते हैं। कई मामलों में लक्षण इस बात पर भी निर्भर करते हैं कि ब्रेन ट्यूमर कितनी तेजी से बढ़ रहा है? सिरदर्द होना इसका प्रारंभिक संकेत माना जाता है। अक्सर होने वाले सिरदर्द को अनदेखा न करें।

सिर में दर्द या दबाव जो सुबह के समय ज्यादा बढ़ जाता है या अक्सर बने रहने वाला सिरदर्द कई मामलों में ब्रेन ट्यूमर का संकेत हो सकता है। अगर आपको भी इस तरह की दिक्कत रहती है तो डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें।

ब्रेन ट्यूमर के अन्य लक्षण लगातार या तेज सिरदर्द की समस्या के अलावा बिना स्पष्ट कारण के उल्टी और मतली की दिक्कत होते रहना भी ट्यूमर का संकेत हो सकता है। ट्यूमर की समस्या वाले कई लोगों में धुंधला दिखने, दृष्टि में परिवर्तन या दोहरी दृष्टि जैसी दिक्कत भी देखी जाती रही है।

ब्रेन ट्यूमर की स्थिति शारीरिक संतुलन और समन्वय की समस्याएं जैसे चलने या बैठने में कठिनाई भी पैदा कर सकता है। इसके कारण बोलने में समस्या, शब्दों को याद रखने में कठिनाई होना, व्यक्तित्व या व्यवहार में परिवर्तन भी देखा जाता रहा है। सुस्ती या अत्यधिक नींद आना भी इस गंभीर समस्या की तरफ इशारा माना जाता है।

इन सभी लक्षणों पर ध्यान देते रहें। अगर आपको इनमें से दो-तीन दिक्कतें कुछ समय से बनी हुई हैं तो इस बारे में डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें।

ब्रेन ट्यूमर में लक्षण नजर आना जरूरी नहीं

डॉक्टर बताते हैं, ब्रेन ट्यूमर में हर बार लक्षण नजर आएं ऐसा भी जरूरी नहीं है। कई मामलों में, विशेषकर वयस्कों में ट्यूमर अक्सर इतनी धीमी गति से बढ़ता है कि इस पर ध्यान नहीं जाता। कुछ स्थितियों में ट्यूमर तब तक लक्षण पैदा नहीं करते हैं जब तक कि इससे मस्तिष्क के अंदर स्वस्थ ऊतक या हिस्से बाधित न होने लग जाएं। यही वजह है कि शरीर में होने वाले छोटे-छोटे परिवर्तनों को अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए। समय पर निदान से गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं के खतरे से बचा जा सकता है।

Note: स्ट्रीट बज द्वारा दी गई जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है। उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित बीमारी के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।
क्या आप जानते हैं जंक, बंद डब्बा और बोतल फूड्स हमारे मस्तिष्क की सेहत के लिए हानिकारक माना जाता है
मस्तिष्क हमारे पूरे शरीर का मास्टरमाइंड माना जाता है। शरीर में होने वाले सभी कार्यों का संचालन इसी अंग द्वारा किया जाता है, यही कारण है कि मस्तिष्क का स्वस्थ और फिट रहना बहुत जरूरी है। ये अंग लगातार काम करता रहता है, यहां तक कि जब आप रात को बिस्तर पर आराम से सो रहे होते हैं, तब भी आपका मस्तिष्क काम करता है और शरीर को आने वाले दिन के लिए तैयार कर रहा होता है। अब चूंकि ये अंग काफी मेहनत करता है ऐसे में इसी हिसाब को मस्तिष्क को पोषण की भी आवश्यकता होती है।

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, मस्तिष्क को स्वस्थ रखने के लिए जरूरी है कि आप पौष्टिक चीजों का सेवन करें। ओमेगा-3 फैटी एसिड, प्रोटीन और विटामिन्स से भरपूर चीजें मस्तिष्क को स्वस्थ रखने में सहायक मानी जाती हैं।
पर क्या आप जानते हैं कि आहार में गड़बड़ी से इस अंग की दिक्कत भी बढ़ जाती है? विशेषतौर पर जंक और प्रोसेस्ड फूड्स को मस्तिष्क की सेहत के लिए नुकसानदायक माना जाता है।

जंक फूड्स और इसका असर

अध्ययनों से पता चलता है कि हमारा मस्तिष्क सबसे बेहतर तरीके से तब काम करता है जब आप फैटी एसिड, पोषक तत्वों और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर उच्च गुणवत्ता वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करते हैं। वहीं अत्यधिक प्रोसेस्ड, मीठे, जंक फूड्स मस्तिष्क में सूजन पैदा करते हैं और न्यूरोडीजेनेरेटिव सहित कई प्रकार की क्रोनिक बीमारियों का जोखिम भी बढ़ा सकते हैं।

अध्ययनों में पैक्ड स्नैक फूड, पेस्ट्री जैसे अत्यधिक प्रोसेस्ड और चाउमीन-पास्ता जैसे जंक फूड्स को उन हार्मोन्स के उत्पादन में बाधा डालने वाला पाया गया है जो हमें खुश महसूस कराते हैं। खाद्य पदार्थों में गड़बड़ी के कारण बढ़े इंफ्लामेशन की समस्या अवसाद के जोखिमों को भी बढ़ा देती है।


सीखने और याददाश्त की समस्या

जंक फूड में सैचुरेटेड फैट और शुगर-नमक की मात्रा अधिक होती है, जो सीखने और याददाश्त की समस्या पैदा कर सकती है। बच्चों में देखा गया है, जो सॉफ्ट ड्रिंक और नूडल्स जैसे खाद्य पदार्थों का सेवन अधिक करते हैं उनमें याददाश्त पर नकारात्मक असर हो सकता है। शोध से यह भी पता चला है कि युवावस्था में बहुत ज्यादा मीठे पेय या जंक फूड्स के सेवन से मस्तिष्क का विकास प्रभावित हो सकता है।

बढ़ सकती है अधीरता की भावना

कनाडाई शोधकर्ताओं ने पाया है कि फास्ट फूड के कारण अक्सर लोगों में अधीर महसूस होने की समस्या हो सकती है। अध्ययनकर्ताओं में से एक जूलियन हाउस कहते हैं, फास्ट फूड लोगों को जल्दी से अपना पेट भरने और दूसरी चीजों पर ध्यान केंद्रित करने की अनुमति देता है। ये आपमें अधीरता को बढ़ा देती है। समय के साथ ऐसे लोगों में चिड़चिड़ापन और एक समय पर ज्यादा देर तक मन न लगने की समस्या हो सकती है।

अल्जाइमर रोग-डिमेंशिया का जोखिम

इसी तरह ब्राउन यूनिवर्सिटी द्वारा किए गए अध्ययन में पाया गया कि फास्ट फूड्स हों या सॉफ्ट ड्रिंक्स इसके अधिक सेवन से अल्जाइमर रोग होने का खतरा बढ़ जाता है। ये खाद्य पदार्थ फैट से भरपूर होते हैं, जो हमारे शरीर में इंसुलिन के उत्पादन को प्रभावित कर सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप टाइप-2 डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है। इंसुलिन प्रतिरोध के कारण मस्तिष्क में नई यादों के निर्माण की समस्या होने लगती है। जंक फूड्स की आदत डिमेंशिया रोग का जोखिम भी बढ़ा देती है।

हरी मिर्च खाने में भले ही तीखे लगते है पर इसे खाने से मिलते कई बीमारियों से छुटकारा आइए जानते है इससे मिलने वाले फायदे के बारे में


 दिल्ली:- बीमारियां किसी भी प्रकार की हो और उसे कंट्रोल करने के लिए आप किसी भी प्रकार की दवा ले रहे हों, डॉक्टर आपको डाइट सुधारने की सलाह जरूर देते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि शरीर की हर बीमारी से निपटने के लिए सही डाइट का होना बहुत जरूरी होता है। एक हेल्दी डाइट में बहुत सी ऐसी चीजें होती हैं, जो हमें अलग-अलग प्रकार के पोषक तत्व प्रदान करती हैं। अच्छी डाइट में हरी सब्जियों का अच्छा रोल माना जाता है, लेकिन बहुत ही कम लोग जानते हैं कि हरी पत्तेदार सब्जियों की तरह हरी मिर्च का सेवन करना भी सेहत के लिए बेहद फायदेमंद है। 

हाई कोलेस्ट्रॉ़ल से लेकर डायबिटीज जैसी बीमारियों से निपटने के लिए भी हरी मिर्च का सेवन करना काफी फायदेमंद रहता है। चलिए जानते हैं किन बीमारियों को कंट्रोल करने में हरी मिर्च का सेवन करना ज्यादा फायदेमंद रहता है।

1. डायबिटीज के लिए फायदेमंद

डायबिटीज के मरीजों के लिए हरी मिर्च का सेवन करना काफी फायदेमंद रहता है और वे अपनी हेल्दी डाइट में हरी मिर्च को भी शामिल कर सकते हैं। हरी मिर्च में खूब मात्रा में ऐसे तत्व पाए जाते हैं, जो हाई ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल करने में मदद करते हैं। साथ ही जिन लोगों को डायबिटीज होने का खतरा है, उनके लिए भी हरी मिर्च काफी अच्छा ऑप्शन है, जो इसके होने के खतरे को कम करता है। 

2. हाई कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल करे 

हरी मिर्च का हार्ट के लिए बेहद फायदेमंद माना जाता है, क्योंकि इसमें हाई कोलेस्ट्रॉल, हाई ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियां कंट्रोल करने के गुण पाए जाते हैं। हरी मिर्च में कई ऐसे खास तत्व पाए जाते हैं, जो शरीर से बैड कोलेस्ट्रॉल यानी एलडीएल और ट्राइग्लिसराइड को कम करने में मदद करते हैं।

3. त्वचा रोगों को होने से रोके 

स्किन प्रॉब्लम के लिए भी हरी मिर्च के बेहद फायदेमंद माना गया है। हरी मिर्च में कई स्किन हेल्दी पोषक तत्व होने के साथ-साथ इसमें एंटी-बैक्टीरियल गुण भी पाए जाते हैं, जो स्किन से जुड़ी बीमारियों को दूर करने में मदद करते हैं। जिन लोगों को स्किन से जुड़ी किसी प्रकार की बीमारी है या एलर्जी है, तो हरी मिर्च का सेवन करना सही हो सकता है। 

4. मानसिक रोगों से छुटकारा 

मानसिक बीमारियों को दूर करने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है, जिनमें से एक है डाइट का ध्यान रखना। अच्छी मेंटल हेल्थ के लिए डाइट में हरी मिर्च को शामिल जरूर करें। साथ ही हरी मिर्च में मौजूद कैप्सेसिन नाम का खास तत्व ब्रेन के हाइपोथैल्मस हिस्सो को शांत करने में मदद करता है।

5. आंख के रोगों का इलाज 

आंखों से जुड़ी बीमारियों को दूर करने के लिए हरी मिर्च का सेवन आयुर्वेद में भी सदियों किया जा रहा है और मॉडर्न मेडिसिन सिस्टम ने भी हरी मिर्च को इसके लिए अच्छा बताया है। साथ ही हरी मिर्च में मौजूद विटामिन सी आंखों को स्वस्थ रखता है और कई प्रकार की बीमारियां होने के खतरे को कम करता है।