क्या आप जानते हैं जंक, बंद डब्बा और बोतल फूड्स हमारे मस्तिष्क की सेहत के लिए हानिकारक माना जाता है
मस्तिष्क हमारे पूरे शरीर का मास्टरमाइंड माना जाता है। शरीर में होने वाले सभी कार्यों का संचालन इसी अंग द्वारा किया जाता है, यही कारण है कि मस्तिष्क का स्वस्थ और फिट रहना बहुत जरूरी है। ये अंग लगातार काम करता रहता है, यहां तक कि जब आप रात को बिस्तर पर आराम से सो रहे होते हैं, तब भी आपका मस्तिष्क काम करता है और शरीर को आने वाले दिन के लिए तैयार कर रहा होता है। अब चूंकि ये अंग काफी मेहनत करता है ऐसे में इसी हिसाब को मस्तिष्क को पोषण की भी आवश्यकता होती है।

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, मस्तिष्क को स्वस्थ रखने के लिए जरूरी है कि आप पौष्टिक चीजों का सेवन करें। ओमेगा-3 फैटी एसिड, प्रोटीन और विटामिन्स से भरपूर चीजें मस्तिष्क को स्वस्थ रखने में सहायक मानी जाती हैं।
पर क्या आप जानते हैं कि आहार में गड़बड़ी से इस अंग की दिक्कत भी बढ़ जाती है? विशेषतौर पर जंक और प्रोसेस्ड फूड्स को मस्तिष्क की सेहत के लिए नुकसानदायक माना जाता है।

जंक फूड्स और इसका असर

अध्ययनों से पता चलता है कि हमारा मस्तिष्क सबसे बेहतर तरीके से तब काम करता है जब आप फैटी एसिड, पोषक तत्वों और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर उच्च गुणवत्ता वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करते हैं। वहीं अत्यधिक प्रोसेस्ड, मीठे, जंक फूड्स मस्तिष्क में सूजन पैदा करते हैं और न्यूरोडीजेनेरेटिव सहित कई प्रकार की क्रोनिक बीमारियों का जोखिम भी बढ़ा सकते हैं।

अध्ययनों में पैक्ड स्नैक फूड, पेस्ट्री जैसे अत्यधिक प्रोसेस्ड और चाउमीन-पास्ता जैसे जंक फूड्स को उन हार्मोन्स के उत्पादन में बाधा डालने वाला पाया गया है जो हमें खुश महसूस कराते हैं। खाद्य पदार्थों में गड़बड़ी के कारण बढ़े इंफ्लामेशन की समस्या अवसाद के जोखिमों को भी बढ़ा देती है।


सीखने और याददाश्त की समस्या

जंक फूड में सैचुरेटेड फैट और शुगर-नमक की मात्रा अधिक होती है, जो सीखने और याददाश्त की समस्या पैदा कर सकती है। बच्चों में देखा गया है, जो सॉफ्ट ड्रिंक और नूडल्स जैसे खाद्य पदार्थों का सेवन अधिक करते हैं उनमें याददाश्त पर नकारात्मक असर हो सकता है। शोध से यह भी पता चला है कि युवावस्था में बहुत ज्यादा मीठे पेय या जंक फूड्स के सेवन से मस्तिष्क का विकास प्रभावित हो सकता है।

बढ़ सकती है अधीरता की भावना

कनाडाई शोधकर्ताओं ने पाया है कि फास्ट फूड के कारण अक्सर लोगों में अधीर महसूस होने की समस्या हो सकती है। अध्ययनकर्ताओं में से एक जूलियन हाउस कहते हैं, फास्ट फूड लोगों को जल्दी से अपना पेट भरने और दूसरी चीजों पर ध्यान केंद्रित करने की अनुमति देता है। ये आपमें अधीरता को बढ़ा देती है। समय के साथ ऐसे लोगों में चिड़चिड़ापन और एक समय पर ज्यादा देर तक मन न लगने की समस्या हो सकती है।

अल्जाइमर रोग-डिमेंशिया का जोखिम

इसी तरह ब्राउन यूनिवर्सिटी द्वारा किए गए अध्ययन में पाया गया कि फास्ट फूड्स हों या सॉफ्ट ड्रिंक्स इसके अधिक सेवन से अल्जाइमर रोग होने का खतरा बढ़ जाता है। ये खाद्य पदार्थ फैट से भरपूर होते हैं, जो हमारे शरीर में इंसुलिन के उत्पादन को प्रभावित कर सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप टाइप-2 डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है। इंसुलिन प्रतिरोध के कारण मस्तिष्क में नई यादों के निर्माण की समस्या होने लगती है। जंक फूड्स की आदत डिमेंशिया रोग का जोखिम भी बढ़ा देती है।

हरी मिर्च खाने में भले ही तीखे लगते है पर इसे खाने से मिलते कई बीमारियों से छुटकारा आइए जानते है इससे मिलने वाले फायदे के बारे में


 दिल्ली:- बीमारियां किसी भी प्रकार की हो और उसे कंट्रोल करने के लिए आप किसी भी प्रकार की दवा ले रहे हों, डॉक्टर आपको डाइट सुधारने की सलाह जरूर देते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि शरीर की हर बीमारी से निपटने के लिए सही डाइट का होना बहुत जरूरी होता है। एक हेल्दी डाइट में बहुत सी ऐसी चीजें होती हैं, जो हमें अलग-अलग प्रकार के पोषक तत्व प्रदान करती हैं। अच्छी डाइट में हरी सब्जियों का अच्छा रोल माना जाता है, लेकिन बहुत ही कम लोग जानते हैं कि हरी पत्तेदार सब्जियों की तरह हरी मिर्च का सेवन करना भी सेहत के लिए बेहद फायदेमंद है। 

हाई कोलेस्ट्रॉ़ल से लेकर डायबिटीज जैसी बीमारियों से निपटने के लिए भी हरी मिर्च का सेवन करना काफी फायदेमंद रहता है। चलिए जानते हैं किन बीमारियों को कंट्रोल करने में हरी मिर्च का सेवन करना ज्यादा फायदेमंद रहता है।

1. डायबिटीज के लिए फायदेमंद

डायबिटीज के मरीजों के लिए हरी मिर्च का सेवन करना काफी फायदेमंद रहता है और वे अपनी हेल्दी डाइट में हरी मिर्च को भी शामिल कर सकते हैं। हरी मिर्च में खूब मात्रा में ऐसे तत्व पाए जाते हैं, जो हाई ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल करने में मदद करते हैं। साथ ही जिन लोगों को डायबिटीज होने का खतरा है, उनके लिए भी हरी मिर्च काफी अच्छा ऑप्शन है, जो इसके होने के खतरे को कम करता है। 

2. हाई कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल करे 

हरी मिर्च का हार्ट के लिए बेहद फायदेमंद माना जाता है, क्योंकि इसमें हाई कोलेस्ट्रॉल, हाई ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियां कंट्रोल करने के गुण पाए जाते हैं। हरी मिर्च में कई ऐसे खास तत्व पाए जाते हैं, जो शरीर से बैड कोलेस्ट्रॉल यानी एलडीएल और ट्राइग्लिसराइड को कम करने में मदद करते हैं।

3. त्वचा रोगों को होने से रोके 

स्किन प्रॉब्लम के लिए भी हरी मिर्च के बेहद फायदेमंद माना गया है। हरी मिर्च में कई स्किन हेल्दी पोषक तत्व होने के साथ-साथ इसमें एंटी-बैक्टीरियल गुण भी पाए जाते हैं, जो स्किन से जुड़ी बीमारियों को दूर करने में मदद करते हैं। जिन लोगों को स्किन से जुड़ी किसी प्रकार की बीमारी है या एलर्जी है, तो हरी मिर्च का सेवन करना सही हो सकता है। 

4. मानसिक रोगों से छुटकारा 

मानसिक बीमारियों को दूर करने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है, जिनमें से एक है डाइट का ध्यान रखना। अच्छी मेंटल हेल्थ के लिए डाइट में हरी मिर्च को शामिल जरूर करें। साथ ही हरी मिर्च में मौजूद कैप्सेसिन नाम का खास तत्व ब्रेन के हाइपोथैल्मस हिस्सो को शांत करने में मदद करता है।

5. आंख के रोगों का इलाज 

आंखों से जुड़ी बीमारियों को दूर करने के लिए हरी मिर्च का सेवन आयुर्वेद में भी सदियों किया जा रहा है और मॉडर्न मेडिसिन सिस्टम ने भी हरी मिर्च को इसके लिए अच्छा बताया है। साथ ही हरी मिर्च में मौजूद विटामिन सी आंखों को स्वस्थ रखता है और कई प्रकार की बीमारियां होने के खतरे को कम करता है।

आज हम आपको अपराजिता फूल के बारे में बताएंगे जिसका नाम एक काम अनेक
नीले रंग का अपराजिता का फूल भगवान शिव को प्रिय है। मान्यता है कि इस फूल को शिवलिंग पर चढ़ाने से आर्थिक दिक्कतें दूर होती है। अपराजिता के फूल से बनी चाय को ब्लू टी के नाम से लोग जानते हैं। जिसका इस्तेमाल अनिद्रा, माइग्रेन और शरीर में होने वाले दर्द के लिए किया जाता, अपराजिता एक लता अथवा बेल वाला पौधा है, जिसे आप अमूमन हर घरों में आसानी से देख सकते हैं। इसे वैज्ञानिक भाषा में Clitoria ternatea कहते हैं और अंग्रेजी में इसे Butterfly pea के नाम जाना जाता है। इसके अलावा विष्णुकांता, गोकर्णी, गिरिकर्णिका, विष्णुप्रिया, गोकर्ण, कृष्णकांता, योनिपुष्पा आदि अपराजिता के अन्य कई खुबसूरत नाम विविध क्षेत्रों में प्रचलित हैं।

तनाव से राहत- अपराजिता चाय दिमाग को शांत करने और तनाव कम करने के लिए जानी जाती है। मस्तिष्क स्वास्थ्य- यह स्मृति, संज्ञानात्मक कार्य और फोकस सुधार कर सकता है।

सूजन रोधी- अपराजिता में सूजन रोधी गुण होते हैं, जो जोड़ों के दर्द और गठिया के लिए फायदेमंद है।

एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर- इसमें एंटीऑक्सीडेंट होते हैं, जो शरीर को फ्री रेडिकल्स और ऑक्सीडेटिव तनाव से बचाते हैं।

नींद में सहायता- अपराजिता चाय अनिद्रा में मदद कर सकती है और विश्राम को बढ़ावा दे सकती है।

त्वचा और बालों के लिए लाभ- ऐसा माना जाता है कि यह त्वचा के रंग में सुधार करता है और बालों के विकास को बढ़ावा देता है।

पाचन स्वास्थ्य- अपराजिता पाचन में सहायता कर सकती है और कब्ज से राहत दिला सकती है।

मासिक धर्म से राहत- इसका उपयोग मासिक धर्म में ऐंठन, सूजन और मूड में बदलाव को कम करने के लिए किया जाता है।

प्रतिरक्षा प्रणाली का समर्थन- माना जाता है कि अपराजिता प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देती है।

आयुर्वेदिक चिकित्सा- इसका उपयोग आयुर्वेदिक पद्धतियों में विभिन्न बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है।

गांव हो या शहर, मंदिर हो या आश्रम, बागवानी हो या पार्क हर जगह अपराजिता के पुष्प आपको अपना प्राकृतिक सौंदर्य बिखरते मिल जायेंगे।वैसे तो यह एक खरपतवार पौधा है । लेकिन इसके विभिन्न रंगों के पुष्पों की मनमोहक खुबसूरती की वजह से इसे कई सालों से दुनियाभर के विभिन्न देशों में सजावटी पौधे के रूप में प्रयोग किया जा रहा है। प्रायः हर घरों की बागवानी में अपराजिता की मौजूदगी है। नीले, सफेद, बैंगनी, गुलाबी, आसमानी आदि अनेकों रंगों में पाये जाने वाले इसके पुष्प बेहद ही मनोरम एवं आकर्षक होतें हैं।

हमारे देश में बागवानी एवं सजावटी पौधे के साथ-साथ अपराजिता के फूलों का धार्मिक महत्व भी है। अपराजिता के पुष्प भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय होने के कारण ही इसे विष्णुप्रिया और विष्णुकांता के नाम से प्रसिद्धी मिली है। धार्मिक अनुष्ठानों एवं सजावटी हेतु भारी मांग के चलते कई जगहों पर इसके फूलों की व्यापारिक खेती की जाती है अतः इसका आर्थिक दृष्टि से भी बहुत महत्व है। औषधीय एवं आयुर्वेदिक चिकित्सा में भी इस पौधे की बेहद उपयोगिता है। पराजिता प्रकृति की दिव्य एवं अनुपम कृति है। यह वनस्पति भी प्राकृतिक जैवविविधता का महत्वपूर्ण हिस्सा है।यह वनस्पति भी प्राकृतिक जैवविविधता का महत्वपूर्ण हिस्सा है। हमें वनस्पतियों एवं पेड़-पौधों के संरक्षण हेतु सदैव समर्पित रहना चाहिए।


नोट: हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।
रोजाना 1 गिलास चुकंदर का जूस पीने से स्वास्थ्य को मिल सकते है गजब के फायदे
चुकंदर पोषक तत्वों का भंडार होता है और इसका सेवन करना सेहत के लिए बेहद लाभकारी माना जाता है चुकंदर को अधिकतर लोग सलाद के तौर पर खाते हैं, लेकिन इसका जूस शरीर में नई जान फूंक सकता है। रोजाना 1 गिलास चुकंदर का जूस पीने से स्वास्थ्य को गजब के फायदे मिल सकते हैं। चुकंदर में कैलोरी की मात्रा कम होती है और यह भरपूर फाइबर प्रदान करता है, जिससे वजन घटाने में मदद मिलती है। चुकंदर में नेचुरल शुगर और नाइट्रेट्स होते हैं, जो शरीर को नई एनर्जी प्रदान करते हैं। यह जूस थकान से भी छुटकारा दिला सकता है।

चुकंदर आयरन और फोलिक एसिड से भरपूर होता है, जो एनीमिया या खून की कमी को दूर करने में मदद करता है। चुकंदर में नाइट्रेट्स होते हैं जो ब्लड प्रेशर को कम करने और हार्ट हेल्थ को बेहतर बनाने में सहायक होते हैं।चुकंदर के सेवन से यूरिनरी और किडनी की फंक्शनिंग को इंप्रूव करने में मदद मिल सकती है। चुकंदर का जूस यूरिन में मौजूद टॉक्सिक एलीमेंट्स को बाहर निकालने में मदद करता है। चुकंदर में विटामिन C, विटामिन B6, और मिनरल्स जैसे पोटेशियम, मैग्नीशियम व फास्फोरस जैसे तमाम मिनरल्स होते हैं, जो शरीर को लाभ पहुंचाते हैं।

चुकंदर का जूस पीने के 5 बड़े फायदे चुकंदर के जूस में नाइट्रेट्स होते हैं, जो ब्लड वेसल्स को रिलैक्स करने में मदद करते हैं और ब्लड फ्लो को बेहतर करते हैं। हाई ब्लड प्रेशर के मरीजों के लिए भी यह जूस बेहद लाभकारी हो सकता है, क्योंकि चुकंदर का जूस ब्लड प्रेशर को कम करने में असरदार हो सकता है


चुकंदर के जूस में फाइबर की अच्छी मात्रा होती है, जो पाचन तंत्र को स्वस्थ रखने और कब्ज को दूर करने में मदद करता है। फाइबर पाचन प्रक्रिया को सुचारू बनाता है और आंतरिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने में मदद करता है।
चुकंदर में एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं, जो शरीर को उम्र से संबंधित बीमारियों और सूजन से बचाने में सहायक होते हैं। चुकंदर में मौजूद नाइट्रेट्स ब्रेन में ब्लड फ्लो बढ़ाने में मदद करते हैं, जिससे ब्रेन की पावर बढ़ती है और याददाश्त में सुधार हो जाता है।

शरीर में एनर्जी बढ़ाने के लिए चुकंदर के जूस का नियमित सेवन किया जा सकता है। इस जूस में नेचुरल शुगर और विटामिन्स होते हैं, जो शरीर को ताजगी और ऊर्जा प्रदान करते हैं। यह थकान कम कर सकता है और खेलकूद के प्रदर्शन में सुधार कर सकता है। बीट जूस में एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं जो त्वचा को सेहतमंद बनाने में मदद करते हैं। यह त्वचा के दाग-धब्बों को कम कर सकता है। चुकंदर का जूस लिवर को डिटॉक्स करने में मदद करता है। यह शरीर से टॉक्सिक पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है।


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घर में प्रयोग में लाए जाने वाले मसालों में कई ऐसे औषधीय गुण होते हैं जो कोलेस्ट्रॉल-हाई ब्लड प्रेशर की समस्या से पा सकते हैं लाभ

हम सभी रोजाना कई ऐसी औषधियों और मसालों का सेवन करते हैं, जिन्हें सेहत के लिए कई प्रकार से लाभकारी माना जाता है। हालांकि ज्यादातर लोग इससे होने वाले फायदों से अनजान रहते हैं। आयुर्वेद विशेषज्ञ बताते हैं, हर घर में प्रयोग में लाए जाने वाले मसालों में कई ऐसे औषधीय गुण होते हैं जो मौजूदा समय में तेजी से बढ़ती हृदय रोगों की समस्या को भी कंट्रोल करने में मदद कर सकते हैं।

कुछ शोध बताते हैं कि लहसुन का सेवन करना आपके लिए अत्यंत फायदेमंद हो सकता है। विशेषकर यह हृदय रोगों का कारण बनने वाली समस्याओं जैसे कोलेस्ट्रॉल-हाई ब्लड प्रेशर को कंट्रोल रखने में विशेष लाभकारी है।

आयुर्वेद के अलावा मेडिकल साइंस ने भी लहसुन से होने वाले फायदों के बारे में बताया है। लहसुन में कई ऐसे यौगिक और पोषक तत्व पाए जाते हैं जो शरीर को कई प्रकार के लाभ दे सकते हैं। लहसुन में पाया जाने वाला सल्फर यौगिक, पाचन तंत्र को ठीक रखने में काफी लाभकारी हो सकता है। विशेषज्ञ कहते हैं खाली पेट लहसुन की तीन-चार कलियों का सेवन करना कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने में आपको लाभ दे सकती है। आइए जानते हैं कि लहसुन किस प्रकार के शरीर के लिए लाभकारी हो सकता है?

हृदय रोगों के जोखिम को कम करता है लहसुन अध्ययनों में पाया गया है कि लहसुन में कई ऐसे औषधीय गुण होते हैं जो हृदय को स्वस्थ रखने और गंभीर हृदय रोगों के जोखिम को कम करने में आपके लिए सहायक है। इंसानों पर किए गए अध्ययन में पाया गया है कि लहसुन, रक्तचाप को कम करने में महत्वपूर्ण औषधि हो सकती है। शोधकर्ताओं ने पाया कि लहसुन का अर्क 24 सप्ताह की अवधि में रक्तचाप को कम करने में, ब्लड प्रेशर की दवा के समान ही प्रभावी है।

लहसुन से कोलेस्ट्रॉल रहता है कंट्रोल अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि लहसुन के सेवन की आदत, विशेषरूप से सुबह खाली पेट इसका सेवन करना बैड कोलेस्ट्रॉल की समस्या को कम करने में सहायक है। हाई कोलेस्ट्रॉल को हृदय रोगों के प्रमुख कारक के तौर पर जाना जाता है। लहसुन का सेवन बैड कोलेस्ट्रॉल को कम करके रक्त वाहिकाओं को स्वस्थ रखने में सहायक है। लहसुन का गुड कोलेस्ट्रॉल पर किसी प्रकार का असर होता है फिलहाल अध्ययनों में यह स्पष्ट नहीं है।

बढ़ती है रोग प्रतिरोधक क्षमता विशेषज्ञों ने पाया है कि लहुसन का सेवन करने से इम्युनिटी को बढ़ाने में मदद मिल सकती है। सर्दी और फ्लू जैसे वायरस के कारण होने वाली बीमारियों से सुरक्षा देने और खांसी, बुखार, सर्दी के लक्षणों को कम करने में लहसुन के सेवन के लाभ देखे गए हैं। रोजाना लहसुन की दो कलियां खाना सेहत को लाभ दे सकता है। विशेषकर बच्चों में बंद नाक और गले के संक्रमण को कम करने में इस औषधि को लंबे समय से घरेलू उपाय के तौर पर प्रयोग में लाया जाता रहा है।


Note: इस खबर में दी गई दवा/औषधि और स्वास्थ्य से जुड़ी सलाह, यह सामान्य जानकारी है, व्यक्तिगत सलाह नहीं। इसलिए डॉक्टर्स से परामर्श के बाद ही कोई चीज उपयोग करें।स्ट्रीट बज न्यूज चैनल किसी भी उपयोग से होने वाले नुकसान के लिए जिम्मेदार नहीं होगा
बरसात के दिनों में की जाने वाली कुछ कुछ गलतियों के कारण आप हो सकते हैं गंभीर रूप से बीमार

मानसून का ये समय गर्मी से राहत दिलाने वाला जरूर होता है पर अपने साथ कई तरह की बीमारियां भी लेकर आता है। मौसम में नमी और तापमान में बदलाव के कारण  बैक्टीरिया, वायरस और अन्य रोगाणुओं का विकास तेजी से होने लगता है जो कई तरह की संक्रामक बीमारियां बढ़ा देते हैं। इसके अलावा दूषित पानी और खाने से डायरिया और पाचन से संबंधित दिक्कतें हो सकती हैं।

ये मौसम मच्छरों के प्रजनन के भी अनुकूल होता है यही कारण है कि इन दिनों में डेंगू-मलेरिया जैसी बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है।

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं मानसून के दिनों में सेहत को लेकर सावधानी बरतना बहुत जरूरी है। साफ और शुद्ध पानी पिएं और खाने की स्वच्छता का ध्यान रखें। बरसात के दिनों में की जाने वाली कुछ गलतियां आपको गंभीर रूप से बीमार कर सकती हैं।


खान-पान को लेकर असावधानी बारिश के मौसम में खान-पान को लेकर बहुत सावधानी बरतने की जरूरत होती है। मानसून में खाद्य पदार्थों में बैक्टीरिया और विषाणुओं का विकास तेजी से होता है। बाहर का खाना खाने से पेट की बीमारियां, जैसे फूड पॉइजनिंग, गैस्ट्रोएंटेराइटिस आदि का खतरा बढ़ सकता है। इसी तरह से इस मौसम में पानी के दूषित होने का भी खतरा अधिक होता है जिससे टाइफाइड, हेपेटाइटिस, और दस्त की समस्या हो सकती है। इन समस्याओं से बचे रहने के लिए बाहर का खाना खाने से बचें और केवल उबला या फिल्टर किया हुआ पानी पीना चाहिए।

मानसून में मच्छर जनित रोगों जैसे डेंगू-मलेरिया और चिकनगुनिया का खतरा अधिक रहता है। असल में बरसात के कारण पानी का जमाव मच्छरों के पनपने के लिए सबसे अनुकूल हो जाता है। हालिया रिपोर्ट्स से पता चलता है कि महाराष्ट्र, कर्नाटक सहित देश के कई राज्यों में डेंगू के मामले बढ़ रहे हैं। मच्छरों से बचाव के तरीके न अपनाना आपकी सेहत के लिए समस्याओं का कारण बन सकता है। डेंगू जैसी बीमारियां जानलेवा भी हो सकती हैं, इसको लेकर सावधानी बरतना जरूरी है।  मच्छरदानी, मच्छर भगाने वाली दवाओं का छिड़काव और पूरी बाजू के कपड़े पहनकर मच्छरों से बचाव करें।

स्वच्छता की अनदेखी कई प्रकार के संक्रामक रोग हमारे हाथों के माध्यम से फैलते हैं। हाथों की स्वच्छता का ध्यान रखकर फ्लू, कंजंक्टिवाइटिस जैसी बीमारियों से बचाव किया जा सकता है। खाने से पहले और बाद में, शौच के बाद हाथों को अच्छी तरह से साफ करें। हाथों की साफ-सफाई का ध्यान रखकर भी आप संक्रामक बीमारियों के जोखिमों को कम कर सकते हैं। बारिश में भीगे कपड़े पहने रहने से बचना चाहिए।

गीले कपड़े बढ़ा सकते हैं त्वचा की दिक्कत बारिश में भीगे कपड़े पहने रहने से बचना चाहिए। गीले कपड़े त्वचा की समस्याएं जैसे रैशेज, फंगल इंफेक्शन आदि पैदा कर सकते हैं। गीले कपड़ों के कारण दाद और खुजली जैसी समस्याओं का भी खतरा रहता है। इसके अलावा बारिश के मौसम में ज्यादा भीगने से सर्दी-खांसी और साइनस जैसी समस्याएं हो सकती हैं। सुनिश्चित करें कि आप सूखे और साफ कपड़े ही पहनें।

Note: स्ट्रीट बज द्वारा दी गई जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है। उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित बीमारी के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।
हेल्थ टिप्स:अगर आप मोमोज खाने के शौकीन है तो हो जाइए सावधान क्योंकि एक प्लेट मोमोज के साथ आपको मिल सकती है ये गंभीर बीमारी


आज कल बच्चे हो या बड़े सभी को मोमोज बहुत पसंद हर कोई मोमोज ,फ्रेंच फ्राई, चाउमीन कई तरह के स्ट्रीट फूड खाने के शौकीन है और मोमोज तो आजकल ज्यादा ही ट्रेंड में है। गली कूचे में आपको ये मोमोज का स्टॉल दिखाई दे ही जाएगा और हर स्टॉल पर आपको भीड़ लगी दिख ही जाएगी, लेकिन क्या आपको पता है यहीं स्वादिष्ट मोमोज आपकी जान के दुश्मन हो सकते हैं. ये मोमोज कई बड़ी बीमारियों को जन्म दे सकते हैं।

मोमोज खाने से बढ़ता है इन बीमारियों का खतरा

डायबिटीज-

डायबिटीज एक खतरनाक बीमारी है. इस परेशानी से कई सारे लोग आज के समय में ग्रस्त हैं. यूएस डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर में प्रकाशित हुई एक रिपोर्ट के मुताबिक ये शरीर में ब्लड शुगर लेवल को बढ़ाता है. दरअसल में ये मैदे से बना होता है, जिसके चलते ऐसा होता है. मोमोज को सॉफ्ट बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले पदार्थ पैंक्रियाज के लिए काफी हानिकारक होते हैं. ऐसे में पैंक्रियाज को नुकसान होने पर इंसुलिन हार्मोन का सिक्रेशन सही तरीके से नहीं हो पाता, जिससे डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है.

ये हर किसी को पता है कि हमारे शरीर के लिए मैदा अच्छा नहीं होता है. इसे रिफाइंड आटा भी कहते हैं, इसे बनाने के लिए गेहूं से प्रोटीन और फाइबर को अलग कर दिया जाता है, जिसके चलते जब आप मोमोज के रूप में इसे खाते हैं तो ये मैदा शरीर में जाकर हड्डियों के कैल्शिम को सोखने लगता है, जिससे हड्डियां कमजोर हो जाती हैं.

कैंसर –

कई लोग मोमोज को बनाने में मोनोसोडियम ग्लूटामाइन (MSG) का प्रयोग करते हैं. इससे मोमोज और टेस्टी हो जाते हैं, लेकिन ये हमारे शरीर के लिए अच्छा नहीं होता है. इसे कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है.

दिल से जुड़ी परेशानियां-

मोमोज के साथ मिलने वाली तीखी चटनी में सोडियम की मात्रा अधिक होती है, जिससे ब्लड प्रेशर बढ़ता है. ऐसे में बीपी के बढ़ने पर दिल से जुड़ी परेशानियां जन्म ले सकती हैं. इनमें हार्ट स्ट्रोक, हार्ट अटैक का खतरा शामिल है.

मोटापे की समस्या-

मोमोज को बनाने के लिए मैदे का यूज किया जाता है. मैदे में स्टार्च होता है जो मोटापे के बढ़ने का कारण बनता है. साथ ही मैदा कोलेस्‍ट्रॉल और ब्‍लड में ट्राइग्‍लीसराइड बढ़ाने का भी काम करता है।

हेपेटाइटिस का खतरा मानसून में बढ़ जाता है,इससे बचाव के क्या उपाय है जानते हैं

हेपेटाइटिस, लिवर को गंभीर रूप से प्रभावित करने वाली संक्रामक बीमारियों में से एक है। मानसून के दिनों में इसका खतरा और भी बढ़ जाता है। बारिश के मौसम में दूषित पानी और भोजन के सेवन के कारण बड़ी संख्या में हेपेटाइटिस संक्रमण के मामलों का निदान किया जाता रहा है। हेपेटाइटिस की समस्या लिवर में सूजन का कारण बनती है। संक्रमितों में लिवर डेमैज, लिवर फेलियर, सिरोसिस, लिवर कैंसर या मृत्यु का भी खतरा हो सकता है।

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, इस गंभीर संक्रामक रोग से बचाव के लिए सभी लोगों को निरंतर प्रयास करते रहने की आवश्यकता है। स्वच्छता में कमी और खान-पान को लेकर बरती गई असावधानी के कारण इसका जोखिम बढ़ जाता है। मानसून का समय पाचन से संबंधित कई तरह की बीमारियों के जोखिमों को बढ़ा देता है।  हेपेटाइटिस संक्रमण का खतरा भी इसमें काफी बढ़ जाता है। वैसे तो टीकाकरण अभियान के चलते अब इसमें कमी आई है पर अब भी हर साल बड़ी संख्या में लोगों में इस संक्रामक रोग का निदान किया जाता रहा है।

हेपेटाइटिस का मतलब है लिवर की सूजन, इसपर अगर समय रहते ध्यान न दिया जाए तो कई तरह की गंभीर समस्याओं का भी जोखिम हो सकता है। इसके अलावा बरसात के मौसम में पेट में संक्रमण होना भी आम है। इसके कारण पेचिश और दस्त के साथ पेट दर्द और मतली की दिक्कत हो सकती है।

इन समस्याओं से बचाव के लिए तीन बातों पर गंभीरता से ध्यान दिया जाना चाहिए।

साफ पानी का ही करें सेवन मानसून के दौरान पानी का दूषित होना एक आम समस्या है, विशेषतौर पर जिन इलाकों में बाढ़ आ जाती है वहां इसका खतरा और भी बढ़ जाता है, जिससे हेपेटाइटिस हो सकता है। हमेशा उबला हुआ या फिल्टर किया हुआ पानी पिएं। घर में वॉटर प्यूरीफायर का इस्तेमाल करें। यात्रा करते समय अपनी खुद की पानी की बोतल साथ रखें।

साफ पानी के साथ स्वच्छ और अच्छे से पका खाना ही खाएं। स्ट्रीट फूड्स से बचें। कच्चे सलाद का सेवन तभी करें जब फल और सब्जियां ठीक से धुली हुई और छीली हुई हों।

स्वच्छता का ध्यान रखना जरूरी हेपेटाइटिस ए और ई जैसे संक्रमण का मुख्य कारण अस्वच्छता को माना जाता है। बरसात हो या कोई भी मौसम हाथ की स्वच्छता बहुत जरूरी है। खाने से पहले, शौचालय का इस्तेमाल करने के बाद और संभावित रूप से दूषित सतहों को छूने के बाद अपने हाथों को साबुन और पानी से अच्छी तरह धोएं। बार-बार मुंह को छूने से बचें। हाथों की स्वच्छता का ध्यान रखकर हेपेटाइटिस के खतरे को काफी कम किया जा सकता है।

हेपेटाइटिस से बचाव के लिए टीकाकरण

कुछ प्रकार के टीके इस संक्रामक रोग के खिलाफ अत्यधिक प्रभावी साबित हुए हैं। हेपेटाइटिस ए और बी के लिए टीका लगवाने के बारे में अपने डॉक्टर से सलाह लें। स्वास्थ्य विशेषज्ञ सभी नवजात शिशुओं को हेपेटाइटिस बी के टीके लगाने की सलाह देते हैं। आमतौर पर बचपन के पहले 6 महीनों में तीन टीके लगाए जाते हैं। हेपेटाइटिस बी के खिलाफ टीकाकरण हेपेटाइटिस डी को भी रोक सकता है।

वैक्सीनेशन से संक्रमण को रोकने और संक्रमण की स्थिति में गंभीर रोग के खतरे को काफी कम किया जा सकता है।

Note: स्ट्रीट बज लेख में प्रदत्त जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है। उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित बीमारी के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।
मानसून का मौसम जिसमें सबसे ज्यादा खतरा मच्छर जनित रोगों का होता है,जिससे लोगों को सावधानी बरतने की आवश्यकता है

मानसून का ये मौसम अपने साथ कई तरह की बीमारियां लेकर आता है, इसमें सबसे ज्यादा खतरा मच्छर जनित रोगों का होता है। डेंगू-मलेरिया और चिकनगुनिया जैसे रोगों के कारण हर साल बड़ी संख्या में लोगों को अस्पतालों में भर्ती होना पड़ता है। हालिया रिपोर्ट्स से पता चलता है कि महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल सहित कई राज्यों में डेंगू का खतरा बढ़ रहा है

राजधानी दिल्ली-एनसीआर में भी इसको लेकर लोगों को सावधान किया गया है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, डेंगू के साथ इन दिनों टाइफाइड का जोखिम भी अधिक देखा जा रहा है, जिसको लेकर भी सभी लोगों को सावधानी बरतने की आवश्यकता है।

मानसून की शुरुआत के साथ ही देश में टाइफाइड के मामले भी बढ़ने लगे हैं। तेलंगाना के कई शहरों में डॉक्टरों को अस्पताल में रोजाना 5 से 6 मामले देखने को मिल रहे हैं। राजधानी दिल्ली-एनसीआर में भी मौसमी बीमारियों के कारण बुखार की शिकायत के साथ रोजाना ओपीडी में 700-800 मरीज आ रहे हैं। डेंगू के साथ-साथ टाइफाइड से भी बचाव को लेकर लोगों को जागरूक किया जा रहा है। टाइफाइड बुखार को एंटरिक बुखार भी कहा जाता है, ये साल्मोनेला बैक्टीरिया के कारण होता है। यहां जानना जरूरी है कि टाइफाइड मच्छरों के काटने से नहीं फैलता है।

टाइफाइड संक्रमण के बारे में जानिए

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, टाइफाइड बुखार साल्मोनेला बैक्टीरिया से दूषित भोजन और पानी के सेवन के कारण होता है। कई मामलों में संक्रमित व्यक्ति के निकट संपर्क से भी टाइफाइड का खतरा हो सकता है। वैसे तो टाइफाइड बुखार से पीड़ित अधिकांश लोग एंटीबायोटिक्स उपचार से लगभग एक सप्ताह में ठीक हो जाते हैं हालांकि अगर इसका समय पर उचित इलाज न हो पाए तो इसके कारण गंभीर जटिलताओं और मृत्यु का खतरा भी हो सकता है।

टाइफाइड के लक्षण

टाइफाइड संक्रमण के लक्षण बैक्टीरिया के संपर्क में आने के 1 से 3 सप्ताह बाद दिखाई देते हैं। इसमें हल्के से लेकर तेज बुखार (104 डिग्री फारेनहाइट), ठंड लगने, सिरदर्द, कमजोरी और थकान, मांसपेशियों और पेट में दर्द के साथ दस्त या कब्ज की दिक्कत हो सकती है। कुछ लोगों को त्वचा पर चकत्ते होने, भूख न लगने और पसीना आने की भी समस्या होती है। इलाज न होने पर ये बीमारी कुछ सप्ताह बाद आंतों में भी दिक्कतें पैदा कर सकती है। इसके कारण पेट में सूजन, पूरे शरीर में फैलने वाले आंत के बैक्टीरिया के कारण संक्रमण (जिसे सेप्सिस कहा जाता है) और भ्रम की दिक्कत भी हो सकती है। टाइफाइड बुखार के कारण आंतों में क्षति और रक्तस्राव का भी जोखिम रहता है।

टाइफाइड का इलाज और बचाव

टाइफाइड बुखार के लिए एंटीबायोटिक दवाएं ही एकमात्र प्रभावी उपचार है। टाइफाइड से बचाव के लिए टीके उपलब्ध हैं जो इस संक्रमण के खतरे को कम कर सकते हैं। दैनिक जीवन में कुछ उपायों की मदद से टाइफाइड से बचाव किया जा सकता है।

संक्रमण को नियंत्रित करने का सबसे अच्छा तरीका हाथों की स्वच्छता का ध्यान रखना है। बार-बार हाथ धोना आपको संक्रमण से बचा सकता है।

दूषित पानी से ये संक्रमण फैलता है इसलिए केवल उबाल कर या फिर फिल्टर किया हुआ पानी ही पीना चाहिए।

कच्चे फल और सब्जियां खाने से बचें। कच्चे उत्पाद दूषित पानी में धुले हो सकते हैं, इसलिए इनके उपयोग से पहले इसे अच्छे से साफ करें।

भोजन को अच्छे से पकाकर ही खाएं। बासी भोजन से बचना चाहिए।

अगर आपको 2-3 दिनों से बुखार है और ये सामान्य दवाओं से नहीं ठीक हो रहा है तो डॉक्टर की सलाह पर खून की जांच जरूर कराएं

Note: स्ट्रीट बज लेख में प्रदत्त जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है। उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित बीमारी के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।

मानसून का मौसम जिसमें सबसे ज्यादा खतरा मच्छर जनित रोगों का होता है,जिससे लोगों को सावधानी बरतने की आवश्यकता है
मानसून का ये मौसम अपने साथ कई तरह की बीमारियां लेकर आता है, इसमें सबसे ज्यादा खतरा मच्छर जनित रोगों का होता है। डेंगू-मलेरिया और चिकनगुनिया जैसे रोगों के कारण हर साल बड़ी संख्या में लोगों को अस्पतालों में भर्ती होना पड़ता है। हालिया रिपोर्ट्स से पता चलता है कि महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल सहित कई राज्यों में डेंगू का खतरा बढ़ रहा है

राजधानी दिल्ली-एनसीआर में भी इसको लेकर लोगों को सावधान किया गया है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, डेंगू के साथ इन दिनों टाइफाइड का जोखिम भी अधिक देखा जा रहा है, जिसको लेकर भी सभी लोगों को सावधानी बरतने की आवश्यकता है।

मानसून की शुरुआत के साथ ही देश में टाइफाइड के मामले भी बढ़ने लगे हैं। तेलंगाना के कई शहरों में डॉक्टरों को अस्पताल में रोजाना 5 से 6 मामले देखने को मिल रहे हैं। राजधानी दिल्ली-एनसीआर में भी मौसमी बीमारियों के कारण बुखार की शिकायत के साथ रोजाना ओपीडी में 700-800 मरीज आ रहे हैं। डेंगू के साथ-साथ टाइफाइड से भी बचाव को लेकर लोगों को जागरूक किया जा रहा है। टाइफाइड बुखार को एंटरिक बुखार भी कहा जाता है, ये साल्मोनेला बैक्टीरिया के कारण होता है। यहां जानना जरूरी है कि टाइफाइड मच्छरों के काटने से नहीं फैलता है।

टाइफाइड संक्रमण के बारे में जानिए

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, टाइफाइड बुखार साल्मोनेला बैक्टीरिया से दूषित भोजन और पानी के सेवन के कारण होता है। कई मामलों में संक्रमित व्यक्ति के निकट संपर्क से भी टाइफाइड का खतरा हो सकता है। वैसे तो टाइफाइड बुखार से पीड़ित अधिकांश लोग एंटीबायोटिक्स उपचार से लगभग एक सप्ताह में ठीक हो जाते हैं हालांकि अगर इसका समय पर उचित इलाज न हो पाए तो इसके कारण गंभीर जटिलताओं और मृत्यु का खतरा भी हो सकता है।

टाइफाइड के लक्षण

टाइफाइड संक्रमण के लक्षण बैक्टीरिया के संपर्क में आने के 1 से 3 सप्ताह बाद दिखाई देते हैं। इसमें हल्के से लेकर तेज बुखार (104 डिग्री फारेनहाइट), ठंड लगने, सिरदर्द, कमजोरी और थकान, मांसपेशियों और पेट में दर्द के साथ दस्त या कब्ज की दिक्कत हो सकती है। कुछ लोगों को त्वचा पर चकत्ते होने, भूख न लगने और पसीना आने की भी समस्या होती है। इलाज न होने पर ये बीमारी कुछ सप्ताह बाद आंतों में भी दिक्कतें पैदा कर सकती है। इसके कारण पेट में सूजन, पूरे शरीर में फैलने वाले आंत के बैक्टीरिया के कारण संक्रमण (जिसे सेप्सिस कहा जाता है) और भ्रम की दिक्कत भी हो सकती है। टाइफाइड बुखार के कारण आंतों में क्षति और रक्तस्राव का भी जोखिम रहता है।

टाइफाइड का इलाज और बचाव

टाइफाइड बुखार के लिए एंटीबायोटिक दवाएं ही एकमात्र प्रभावी उपचार है। टाइफाइड से बचाव के लिए टीके उपलब्ध हैं जो इस संक्रमण के खतरे को कम कर सकते हैं।  दैनिक जीवन में कुछ उपायों की मदद से टाइफाइड से बचाव किया जा सकता है।

संक्रमण को नियंत्रित करने का सबसे अच्छा तरीका हाथों की स्वच्छता का ध्यान रखना है। बार-बार हाथ धोना आपको संक्रमण से बचा सकता है।
दूषित पानी से ये संक्रमण फैलता है इसलिए केवल उबाल कर या फिर फिल्टर किया हुआ पानी ही पीना चाहिए।

कच्चे फल और सब्जियां खाने से बचें। कच्चे उत्पाद दूषित पानी में धुले हो सकते हैं, इसलिए इनके उपयोग से पहले इसे अच्छे से साफ करें।
भोजन को अच्छे से पकाकर ही खाएं। बासी भोजन से बचना चाहिए।

अगर आपको 2-3 दिनों से बुखार है और ये सामान्य दवाओं से नहीं ठीक हो रहा है तो डॉक्टर की सलाह पर खून की जांच जरूर कराएं