जब मानव रूहानियत से दूर हो जाता है तो वह शरियत का कैदी होकर बाहरमुखी बन जाता है और कर्मकाण्डों में उलझ जाता है:पंकज जी महाराज
वी कुमार यदुवंशी,आजमगढ़: जयगुरुदेव आश्रम खानपुर के वार्षिक सत्संग के समापन अवसर पर लाखों की उपस्थिति हुई। सर्वप्रथम कार्यक्रम के संयोजक सतीश चन्द महाराज , रामचरन यादव , डा.जे.पी.यादव, सकलदीप पाल, किंसराज, सत्यशील बन्धु आदि ने पुष्पहार भेंट कर पंकज जी महाराज का स्वागत किया। उन्होंने अपनेे प्रवचन में कहा ‘सत्संग जल जो कोई पावे, मैलाई सब कटि-कटि जावे।’ यह अमोलक तन प्रभु की भक्ति के लिये मिला था इसके लिये सत्संग माध्यम है। लेकिन लोग इसे शराबों-कबाबों दुनिया की ख्वाहिशों में बर्बाद कर देते हैं। हमारे गुरु महाराज ने आवाज लगाई ‘‘ऐ इन्सानों! तुम अपने दीन-ईमान पर वापस आ जाओ। इस मनुष्य मन्दिर में बैठ कर भगवान की सच्ची पूजा करो। इस जिस्मानी मस्जिद में बैठकर खुदा की सच्ची इबादत करो ताकि आप की यह आत्मा/रूह नर्कों, दोजखों में जाने से बच जाय।’’
उन्होंने मानव तन, गुरु और सत्संग की महिमा तथा अच्छे समाज के निर्माण के लिये संस्कार और चरित्र पर विशेष रूप से प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि युग बदलता है तो नियम कानून बदल जाते हैं। सतयुग, त्रेता और द्वापर युगों की साधना कलयुग में सम्भव नहीं है। जब वह परमात्मा दुनियाँ को रोशनी देना चाहता है तो वह किसी सन्त के जरिये अपना भेद जाहिर करता है। गीता, रामायण, कुरान धर्म पुस्तकें भी यही बात कहती हंै। सन्त भवसागर से पार निकालने के लिए जीवों को नामदान रूपी टिकट देते हैं। सन्तों ने दो प्रकार का नाम बताया पहला वर्णनात्मक, दूसरा ध्वन्यात्मक। सन्त, फकीर ध्वन्यात्मक नाम का सुमिरन करना बताते हैं, श्वांस-श्वांस पर सतगुरू का सुमिरन और ध्यान करना चाहिए।
उन्होंने कहा मनुष्य शरीर में दोनों भौहों के बीच में जीवात्मा बैठी हुई है। यहीं से इसका प्रकाश शरीर के नौ दरवाजों तक फैला हुआ है। दुनियाँ के सम्बन्ध हमारे शरीर के कारण हैं। जितने समय तक शरीर में जीवात्मा रहती है, इसको पवित्र माना जाता है और इसका सम्बन्ध अन्य लोगों से होता है। व्यक्ति को हमेशा उस समय का ख्याल रखना चाहिये, जब शरीर बूढ़ा हो जाता है, व्यक्ति चलने, फिरने में असमर्थ हो जाता है, इन्द्रियाँ ठीक से काम नहीं करती है। जिस शरीर को सुख का साधन समझ रहे थे, वही शरीर दुःख का कारण बन जाता है। लेकिन जवानी में धन, दौलत, रूप, रंग, परिवार आदि के घमण्ड में वह आगे आने वाले वक्त के बारे में विचार ही नहीं करता है। यदि जवानी में संतों के सत्संग वचनों को सुनकर शरीर में बैठी हुई जीवात्मा को जगाने का अभ्यास करते तो गुरु की दया से यह बोध हो जाता कि हम शरीर में बंद किये गये हैं, हम शरीर नहीं हैं। संसार में फैले हुये अपने ख्याल को गुरु के स्वरूप में लगाने का अभ्यास करने से आनन्द प्राप्त होने लगता है। ‘जयगुरुदेव’ अनामी महाप्रभु का नाम है। कलयुग में इसी नाम से जीवों का कल्याण होगा। तकलीफ परेशानी में यह नाम आपकी मदद करेगा।
बाबा पंकज जी महाराज ने आगे कहा कि हिन्दू-मुस्लिम, सिख-इसाई सब धर्मों में रूहानियत एक है। रूहानियत और शरियत का सम्बन्ध तलवार और उसके म्यान की तरह है। जब मानव रूहानियत से दूर हो जाता है तो वह शरियत का कैदी होकर बाहरमुखी बन जाता है और कर्मकाण्डों में उलझ जाता है। आज अण्डा, मांस, शराब का सेवन करने वाले अपने को सनातनी कहते हैं। भगवान राम ने कभी नही कहा कि आप मांस खाओ और भगवान कृष्ण ने कभी नही कहा आप शराब पियो। महापुरूषों ने ‘अहिंसा परमो धर्मः’ का उपदेश दिया। शाकाहार-सदाचार अपनाये बिना रामराज्य आने वाला नहीं है।
आगामी 19 से 23 जुलाई तक जयगुरुदेव आश्रम मथुरा में गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जायेगा। महाराज जी ने लोगों से अपने बाल-बच्चों के साथ कार्यक्रम में पधारने की अपील किया। यह हमारे गुरु महाराज बाबा जयगुरुदेव जी की कर्मस्थली है। अपने गुरु दरबार में बराबर हाजिरी देते रहना चाहिये। इस अवसर पर संयोजक सतीश चन्द्र, जिलाध्यक्ष रामचरन यादव, डा.जे.पी.यादव, सकलदीप पाल, कमला प्रसाद मौर्या, बलवन्त यादव, लालचन्द यादव, मिठाई लाल चैहान, गिरीश चन्द यादव आदि सहित भारी संख्या में लोग उपस्थित रहे।
Jun 08 2024, 20:50
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