श्रीभगवान से स्वामी श्री आश्रम हुए पंडित जी श्रीभगवान शर्मा ने गृहस्थ जीवन से लिया सन्यास
अशीष कुमार ,मुजफ्फरनगर की राजनीतिक गलियारों में उस समय माहौल बदल गया जब ग्राम प्रधान से जिला पंचायत सदस्य के रूप में जनता की सेवा करने वाले भाजपा नेता पंडित श्री भगवान शर्मा, स्वामी श्रीभगवान आश्रम हो गए। अपने जन्मदिन के अवसर पर नए रूप में सामने आए स्वामी श्रीभगवान को देख अब उनके परिजन भी आश्चर्य चकित हैं साथ ही राजनीतिक गलियारों में भी इसको लेकर खूब चर्चाएँ की जा रही हैं। कि पंडित श्रीभगवान शर्मा आख़िर क्यों स्वामी श्रीभगवान आश्रम हो गए...?
भाजपा नेता व ग्राम प्रधान से जिला पंचायत सदस्य तक का सफ़र तय करने वाले पंडित श्रीभगवान शर्मा अब स्वामी श्रीभगवान आश्रम के नाम से पहचाने जाएंगे। जिस हाँ सही सुना आपने, मुज़फ्फरनगर की राजनीती में अचानक से आए इस परिवर्तन से जहाँ सभी अचंभित हैं तो खुद अपने जन्मदिन के अवसर पर इतना बड़ा कदम उठाने वाले स्वामी श्रीभगवान आश्रम का परिवार भी सदमे में हैं। कि ऐसे कैसे उन्होंने अपने पति,बेटे, बेटी पोते नाती भाई बहन आदि सभी गृहस्थ जीवन से सन्यास लेकर अध्यात्म से नाता जोड़ लिया। परिजनों की माने तो उनके परिवार के लिए ये एक बहुत बड़ा झटका हैं। जो शायद ही भूले से भुलाया जा सकेगा।
11 मई 1967 में मुज़फ्फरनगर के गांव किन्नौनी में जन्मे श्रीभगवान शर्मा ने बताया कि जीवन के चार पड़ाव होते हैं जिनमे ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास आश्रम हैं जिनमे से वो अपने सभी तीन आश्रमों को सम्पूर्ण कर अपनी स्वयं की इच्छा से ख़ुश रहते हुए सांसारिक जीवन से विदा लेकर सन्यास आश्रम के लिए खुद को समर्पित कर रहे हैं। स्वामी श्री ने बताया कि, अब अध्यात्म, धर्म और ज्ञान के साथ वो जनता के बीच उनकी सेवा करने का काम करेंगे। जिससे वो ज्ञान का प्रकाश फैलाने का अपने बचे हुए पूर्ण जीवन भरपूर प्रयास करते रहेंगे।
चलिए हम आपको बताते है की आख़िर क्या हैं ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास आश्रम, वैदिक जीवन चार आश्रम और चार वर्णों पर केन्द्रित एक व्यवस्था व प्रणाली है। जिनको ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास आश्रम कहा गया हैं और शूद्र, वैश्य, क्षत्रिय और ब्राह्मण यह चार वर्ण कहलाते हैं। जन्म के समय सभी बच्चे शूद्र पैदा होते हैं। गुरूकुल व विद्यालय में अध्ययन कर उनके जैसे गुण-कर्म-स्वभाव व योग्यता होती है उसके अनुसार ही उन्हें वैश्य, क्षत्रिय या ब्राह्मण वर्ण आचार्यों व शासन व्यवस्था द्वारा दिये जाने का विधान वैदिक काल में रहा हैं।
गृहस्थ आश्रम में रहते हुए सभी स्त्री पुरुषों को सबसे प्रीतिपूर्वक, धर्मानुसार, यथायोग्य व्यवहार करने के साथ देश व समाज सेवा के श्रेष्ठ कार्यों यथा वेद विद्या के अध्ययन-अध्यापन, यज्ञ व परोपकार आदि कार्यों में यथाशक्ति दान व सहयोग भी करना होता है। 50 वर्ष की आयु तक गृहस्थ जीवन में रहकर जब पुत्र पुत्रियों के विवाह हो जाये और सिर के बाल श्वेत होने लगे तब गृहस्थ जीवन का त्याग कर वन में जाकर स्वाध्याय व शास्त्रों का अध्ययन करते हुए ईश्वर प्राप्ति की साधना में समय व्यतीत करना ही सन्यासी जीवन व्यतीत करना होता हैं।
फ़िलहाल श्रीभगवान शर्मा को अब उनके नए नाम स्वामी श्रीभगवान आश्रम के नाम से पुकारा जाएंगा। जो ज्ञान,धर्म और अध्यात्म को लेकर स्वामी श्री अब जनता की सेवा में लीन दिखाई देंगे, जो इनके चाहने वालों के लिए बिलकुल एक नई और ऊर्जावान तस्वीर होगी।
May 23 2024, 17:26