आजमगढ़:- कैफी आजमी की पुण्यतिथि पर विशेष, कर चले हम फिदा जान वो तन साथियों, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों पद्मश्री के साथ ही फिल्मफेयर अवार्ड से
वी कुमार यदुवंशी,फूलपुर(आजमगढ़): भारत सरकार द्वारा पद्मश्री, फिल्मफेयर अवार्ड सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित मेजवा, फूलपुर और आजमगढ़ को विश्वपटल पर पहचान दिलाने वाले मशहूर शायर, पटकथा लेखक, फिल्मी गीतकार और राजनेता कैफी आजमी को बचपन से ही शेरों शायरी का शौक रहा। मात्र 11 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपनी पहली शायरी इतना तो जिंदगी में किसी की खलल पड़े... पढ़ी थी। मुंबई की चकाचौंध में रहने के बावजूद कैफी आजमी का दिल हमेशा मेजवा के लिए ही धड़कता था। ऐसी ही शख्सियत की पुण्यतिथि उनके पैतृक आवास मेजवा के फतेह मंजिल पर 10 मई को सादगी के साथ मनाई जाएगी।
कैफी आजमी का असली नाम अख्तर हुसैन रिजवी था। आजमगढ़ जनपद के फूलपुर तहसील के मेजवा गांव में 14 जनवरी 1919 को हुआ था। गांव में ही कविताएं पढ़ने का शौक लगा। परिवार के प्रोत्साहन पर खुद भी लिखने लगे। मात्र 11 साल की उम्र में अपनी पहली कविता
इतना तो जिंदगी में किसी की खलल पड़े
हंसने से हो सुकून, न रोने से कल पड़े
जिस तरह हंस रहा हूं, मैं पी-पी के अश्क-ए-ग़म, यूं दूसरा हंसे तो कलेजा निकल पड़े, पढ़ी थी।
1932 में बारह साल की उम्र में जब अतहर हुसैन रिज़्वी को लखनऊ में शियाओं के सबसे बड़े मदरसे ‘सुल्तानुल मदारिस’ में दाखिल कराया गया तो किसी को गुमान भी नहीं होगा कि आगे चलकर अतहर हुसैन कम्युनिस्ट पार्टी का लीडर, ट्रेड यूनियन का नेता, मशहूर शायर-गीतकार, थिएटर एक्टिविस्ट बनेंगे। मदरसे के गेट पर वो रोज एक नज़्म पढ़ते थे। यहीं जब वो एकदिन नज़्म पढ़ रहे थे तो उनपर अली अब्बास हुसैनी की नज़र पड़ी। अली अब्बास हुसैनी ने कैफ़ी की मुलाकात उस वक्त ‘सरफ़राज़’ के संपादक रहे एहतेशाम हुसैन से करायी थी।
कैफी आज़मी उर्दू के महान शायरों में से एक शायर थे। आपने हिंदी फिल्म में कई गीत लिख कर भी फिल्म जगत में अपना नाम बनाया।
रचनाओं के लिए भारत सरकार ने कई तरह के साहित्यिक पुरस्कार से सम्मानित भी किया। इसके अलावा फिल्म हीर-रांझा के संवाद के लिए फिल्मफेयर अवार्ड के साथ ही 1974 में साहित्य और शिक्षा में योगदान के लिए भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया। फिल्मों में मौका 1951 में फिल्म बुजदिल से मिला। बाद में केवल गीत ही नहीं पटकथाकार के रूप में भी स्थापित हो गए। हीर-रांझा कैफी आजमी की सिनेमाई कविता कही जाती है।
1964 में आई फिल्म हकीकत को कैफी आजमी द्वारा लिखे गीत कर चले हम फ़िदा जान-ओ-तन साथियों अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों की वजह से हिट रही। आज भी जब यह गीत बजता है तो देशवासियों का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। हकीकत, कागज के फूल, शमा, शोला और शबनम , हीर-रांझा, अनुपमा, इत्यादि फिल्मों के गाने बहुत मशहूर हुए।
आपकी रचनाओं में गांव की गरीबी की पीड़ा झलकती है। वो मेरा गांव वो मेरे गांव के चूल्हे, कि जिनमें शोले तो शोले धुंआ नहीं मिलता में झलकती है। उर्दू जर्नल मजदूर मोहल्ला का संपादन किया। 1947 में शौकत के साथ शादी के बंधन में बंध गए। शाबान आजमी और बाबा आजमी का जन्म हुआ। अपने गांव मेजवा में स्कूल, सड़क, पोस्टआफिस आदि बनवाने में सहयोग किया। रचनाओं में अवारा सजदे, इंकार एवं आखिरे-शब प्रमुख हैं।
ये गाते हुए कि कर चले हम फिदा जानो-तन साथियों, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों कैफी आजमी 10 मई 2002 को इस दुनिया को अलविदा कह गए।
6 दिसंबर 1992 में की घटना के बाद एक नज़्म लिखी दूसरा बनवास। जब भगवान राम 14 साल बनवास काटकर वापस अयोध्या आये थे। पांव सरयू में अभी राम ने धोये भी न थे कि नजर आए वहां खून के गहरे धब्बे, पांव धोये बिना सरयू के किनारे से उठे, राम ये कहते हुए अपने दुआरे से उठे।
May 09 2024, 18:46