मंगला गौरी स्थित मां मंगला शक्तिपीठ मंदिर में चैत्र नवरात्र के पहले दिन श्रद्धालुओं की उमड़ी भीड़
गया : शहर के मंगला गौरी स्थित मां मंगला शक्तिपीठ मंदिर में चैत्र नवरात्र के पहले दिन सुबह से ही श्रद्धालुओं की दर्शन करने के लिए भीड़ उमड़ी है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु मां मंगला शक्तिपीठ मंदिर में दर्शन के लिए कतार में खड़े हैं।
मान्यता है कि यहां मां सती का वक्ष स्थल गिरा था, जिस कारण यहा शक्तिपीठ पालनहार पीठ के रूप में प्रसिद्ध है। इसलिए नवरात्र के पहले दिन यहां श्रद्धालुओं की बड़ी भीड़ जुटी है। मान्यता है कि इस मंदिर में आकर जो भी सच्चे मन से मां की पूजा व अर्चना करते हैं, मां खुश होकर उसकी मनोकामना को पूर्ण करती है।
मान्यता यह है कि, यहां पूजा करने वाले किसी भी श्रद्धालु को मां मंगला शक्तिपीठ खाली हाथ नहीं भेजतीं। इस मंदिर में साल भर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। यहां गर्भगृह में ऐसे तो काफी अंधेरा रहता है।परंतु यहां वर्षों से एक दीप प्रज्वलित हो रहा है।कहा जाता है कि यह दीपक कभी बुझता नहीं है। मां मंगला गौरी का इतिहास हजारों साल पुराना है।कहा जाता है माता सती का अंग विभिन्न पर्वतों पर गिरा था। उस 108 अंग में से एक अंग गया के भस्मकूट पर्वत पर गिरा था, जो पालन पीठ के रूप में विराजमान है।इसलिए कहा जाता है कि यहां माता अपने भक्तों का पालन करती है।
नवरात्र के मौके पर देवी स्थानों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ इकट्ठा हो रही है। ऐसे में गया शहर से कुछ ही दूरी पर भस्मकूट पर्वत पर स्थित मां मंगला गौरी शक्ति पीठ मंदिर में पर सुबह से ही भक्तों का तांता लग जाता है। मान्यता है कि यहां मां सती का वक्ष स्थल गिरा था। जिस कारण यह शक्तिपीठ पालनहार पीठ के रूप में प्रसिद्ध है।
पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक, भगवान भोले शंकर जब अपनी पत्नी सती का जला हुआ, शरीर लेकर तीनों लोकों में उद्विग्न होकर घूम रहे थे, तो सृष्टि को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने मां सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से काटा था. इसी क्रम में मां सती के शरीर के टुकड़े देश के विभिन्न स्थानों पर गिरे थे, जिसे बाद में शक्तिपीठ के रूप में जाना गया।इन्हीं स्थानों पर गिरे हुए टुकड़े में स्तन का एक टुकड़ा गया के भस्मकूट पर्वत पर गिरा था।
मंगलागौरी शक्तिपीठ के पुजारी अमरनाथ गिरी बताते हैं कि इस मंदिर का उल्लेख, पद्म पुराण, वायु पुराण, अग्नि पुराण और अन्य लेखों में मिलता है. हिंदू संप्रदाय में इस मंदिर में शक्ति का वास माना जाता है।इस मंदिर में उपा शक्ति पीठ भी है, जिसे भगवान शिव के शरीर का हिस्सा माना जाता है।शक्ति पोषण के प्रतीक को एक स्तन के रूप में पूजा जाता है।इस पर्वत को भस्मकूट पर्वत कहते हैं। इस शक्तिपीठ को असम के कामरूप स्थित मां कमाख्या देवी शक्तिपीठ के समान माना जाता है।
कालिका पुराण के अनुसार, गया में सती का स्तन मंडल भस्मकूट पर्वत के ऊपर गिरकर दो पत्थर बन गए थे।इसी प्रस्तरमयी स्तन मंडल में मंगला गौरी मां नित्य निवास करती हैं।जो मनुष्य शिला का स्पर्श करते हैं, वे अमरत्व को प्राप्त कर ब्रह्मलोक में निवास करते हैं।इस शक्तिपीठ की विशेषता यह है कि मनुष्य अपने जीवन काल में ही अपना श्राद्ध कर्म यहां संपादित कर सकता है।
दूर दराज से आते हैं माता के भक्त
मंदिर के गर्भगृह में देवी की प्रतिमा है।यहां भव्य नक्काशी बनी हुई है. मंदिर के सामने वाले भाग में एक मंडप बना हुआ है। मंदिर परिसर में भगवान शिव और महिषासुर की प्रतिमा, मर्दिनी की मूर्ति, देवी दुर्गा की मूर्ति और दक्षिणा काली की मूर्ति भी विराजमान है। यहां कई और भी मंदिर है।यहां नवरात्रि में प्रतिदिन भक्तों की भीड़ जुटती है, परंतु महाष्टमी व्रत के दिन यहां बड़ी संख्या में भक्त पहुंचते हैं। बनारस से आई श्रद्धालु ज्योति सिंह बताती हैं कि मंगला गौरी बहुत शक्तिशाली मंदिर है और जो भी यहां आते हैं उनकी मन्नतें पूरी होती हैं।अभी नवरात्रि चल रहे हैं और यहां काफी भीड़ है और मां के दर्शन के लिए सुबह से ही लाइन में लगी हुई है।
गया से मनीष कुमार
Apr 11 2024, 18:48