ज्ञानवापी केस में मस्जिद पक्ष को लगा तगड़ा झटका, जारी रहेगी पूजा, सुप्रीम कोर्ट ने दिया बड़ा फैसला

ज्ञानवापी मामले में मुस्लिम पक्ष को बड़ा झटका लगा है. शीर्ष अदालत ने कहा है कि व्यास जी तहखाने में पूजा जारी रहेगी. सुप्रीम कोर्ट ने व्यास तहखाने में पूजा करने के वाराणसी कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है. इसके साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू पक्ष को नोटिस भी जारी किया है. कोर्ट ने यथा स्थिति को लेकर आदेश जारी करते हुए मस्जिद का गूगल अर्थ इमेज पेश करने को कहा है.

आज हुई सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष की तरफ से वकील हुजैफा अहमदी ने कहा कि व्यास तहखाने के मामले में कब्जा देने के आदेश में 7 दिन का समय दिया गया। हाईकोर्ट ने राहत नहीं दी. वहां पूजा हो रही है. अहमदी ने कहा कि पिछले 30 साल से पूजा नहीं हुआ थी. ऐसे में यह अदालत निचली अदालत के आदेश पर रोक लगाए. यह मस्जिद के परिसर में है और इसको इजाजत देना उचित नहीं.

अहमदी ने कहा कि राज्य सरकार के आदेश पर 1993 से कब्जा हमारे पास था. पिछले 30 साल से पूजा नहीं हो रही थी. इस पर रोक लगाई जानी चाहिए. जिस पर सीजेआई ने कहा कि हाईकोर्ट ने यह पाया है कि पहले कब्जा व्यास परिवार के पास था. जिसके बाद अहमदी ने कहा कि यह उनका दावा है. कोई साक्ष्य नहीं है. यह मस्जिद की जगह है. मैं इतिहास में नहीं जाना चाहता. ऐसा आदेश सिविल कोर्ट कैसे दे सकती है.

अहमदी ने सुप्रीम कोर्ट के सामने दलील देते हुए कहा कि मामले में वाराणसी कोर्ट ने सिविल दावे से आगे जाकर आदेश दिया है. अहमदी ने कहा कि 1993 से 2023 तक कोई पूजा नहीं होती थी और 2023 में दावा किया गया और उस पर अदालत ने आदेश कर दिया और पूजा स्थल कानून को ध्यान में रखते हुए दिया गया.

अहमदी ने सुप्रीम कोर्ट के सामने दलील देते हुए कहा कि मामले में वाराणसी कोर्ट ने सिविल दावे से आगे जाकर आदेश दिया है. अहमदी ने कहा कि 1993 से 2023 तक कोई पूजा नहीं होती थी और 2023 में दावा किया गया और उस पर अदालत ने आदेश कर दिया और पूजा स्थल कानून को ध्यान में रखते हुए दिया गया.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी के पीएम मोदी सरकार पर ईवीएम फिक्सिंग के आरोप पर भाजपा ने चुनाव आयोग से की शिकायत

दिल्ली के रामलीला मैदान में रविवार को हुई INDIA गठबंधन की रैली में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ईवीएम फिक्सिंग के आरोप लगाते हुए मोदी सरकार को घेरा था. राहुल के इस बयान के खिलाफ बीजेपी ने अब चुनाव आयोग में शिकायत दी है.

दरअसल, राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी पर लोकसभा चुनावों में मैच फिक्सिंग करने की कोशिश करने का आरोप लगाते हुए कहा कि अगर भाजपा अपने प्रयासों में सफल हो गई, तो देश का संविधान बदल दिया जाएगा और लोगों के अधिकार छीन लिये जाएंगे. राहुल ने लोगों से अपील की थी कि वे इस मैच फिक्सिंग को रोकने के लिए पूरी ताकत से मतदान करें, क्योंकि यह संविधान और लोकतंत्र को बचाने का चुनाव है.

राहुल गांधी ने विपक्ष की रैली को संबोधित करते हुए कहा था, नरेन्द्र मोदी जी इस चुनाव में मैच फिक्सिंग करने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने कहा था, ये बिना मैच फिक्सिंग, बिना ईवीएम (छेड़छाड़) एवं सोशल मीडिया और प्रेस पर दबाव डाले बिना 180 पार नहीं होने जा रहे हैं.

राहुल गांधी ने कहा था, कांग्रेस सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है. चुनाव के बीच में ही सबसे बड़े विपक्षी दल के खाते फ्रीज कर दिए. उन्होंने दावा किया, धमकाया जाता है, सरकारों को गिराया जाता है, नेताओं को जेल में डाल दिया जाता है…यह मैच फिक्सिंग नरेन्द्र मोदी और तीन-चार सबसे बड़े अरबपति मिलकर कर रहे हैं.

बीजेपी ने राहुल के आरोपों पर निशाना साधते हुए कहा कि अतीत में कांग्रेस सरकार ने पार्टी के प्रथम परिवार को लाभ पहुंचाने के लिये पड़ोसी देश श्रीलंका के साथ एक सौदा करके कच्चातिवु द्वीप उसे सौंप दिया था. बीजेपी प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने कहा कि विभाजनकारी राजनीतिक कांग्रेस के ‘डीएनए’ में है. पूनावाला ने कहा, कांग्रेस ने 1947 में धर्म के आधार पर देश का विभाजन और जम्मू-कश्मीर के एक हिस्से को पाकिस्तान के कब्जे में छोड़ने भी संकोच नहीं किया।

तोशाखाना केस में इमरान खान और बुशरा बीबी को राहत, इस्लामाबाद HC ने निलंबित की 14 साल की सजा

डेस्क: पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को बड़ी रात मिली है। इस्लामाबाद हाईकोर्ट ने तोशाखाना भ्रष्टाचार मामले में पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान और उनकी पत्नी बुशरा बीबी को दी गई 14 साल की सजा सोमवार को निलंबित कर दी। आम चुनाव से कुछ दिन पहले 31 जनवरी को इस्लामाबाद जवाबदेही अदालत ने इस मामले में दोनों को सजा सुनाई थी। इस्लामाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश आमेर फारूक ने कहा कि सजा के खिलाफ अपील की सुनवाई ईद की छुट्टियों के बाद तय की जाएगी। 

ये है आरोप 

तोशाखाना भ्रष्टाचार मामले में, 71 वर्षीय खान पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के तौर पर अपने कार्यकाल के दौरान मिले महंगे सरकारी उपहारों को अपने पास रखने का आरोप है। तोशाखाना संबंधी नियमों के तहत सरकारी अधिकारी कीमत चुकाकर उपहार रख सकते हैं लेकिन पहले उपहार जमा किया जाना चाहिए। खान और उनकी पत्नी या तो उपहार जमा करने में विफल रहे या कथित तौर पर अपने अधिकार का उपयोग करके इसे कम कीमत पर हासिल किया। 

यह मामला देश के अन्य तोशाखाना मामलों से अलग है। इमरान खान ने 2018 में सत्ता संभाली थी और इसके बाद उन्हें आधिकारिक यात्राओं के दौरान करीब 14 करोड़ रुपये के 58 उपहार मिले थे। इन महंगे उपहारों को तोशाखाना में जमा कराया गया, लेकिन बाद में इमरान खान ने इन्हें तोशाखाने से सस्ते दाम पर खरीदकर अपने पास रख लिया। बाद में इन्हीं उपहारों को महंगे दाम पर बाजार में बेच दिया। इस पूरी प्रक्रिया के लिए उन्होंने कानून में बदलाव भी किए। 

जेल में हैं इमरान 

फिलहाल, इमरान खान अडियाला जेल में हैं, जबकि बुशरा बीबी को इमरान के बनीगाला वाले घर में रखा गया है। इस घर के एक हिस्से को जेल में तब्दील कर दिया गया है। यहां बुशरा सख्त निगरानी में रहती हैं। यहां ये भी बता दें कि, मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इमरान ने 2.15 करोड़ रुपये में इन गिफ्ट्स को तोशखाने से खरीदा था, बाद में इन्हें बेचकर 5.8 करोड़ रुपये का मुनाफा कमा लिया।

 इन उपहारों में कई कीमती सामान थे। इमरान खान को पाकिस्तान के चुनाव आयोग ने अयोग्य घोषित कर दिया था। बाद में उन्हें राज्य के उपहारों की बिक्री से प्राप्त आय छिपाने के लिए दोषी ठहराया गया था। इमरान की अयोग्यता को बाद में इस्लामाबाद उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया था।

बंगाल में चक्रवाती तूफान ने मचाई तबाही, उखड़कर गिर गए पेड़, कई घर तबाह, 4 लोगों की मौत, 100 से ज्यादा घायल, CM ने जताया दुःख

 पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी में चक्रवात तूफान ने बड़ी तबाही मचाई है. इलाके में आंधी, बारिश और ओले गिरने से जान-माल का नुकसान हुआ है. बड़ी संख्या में पेड़ उखड़कर गिर गए. कई मकानों में नुकसान हुआ है. जलपाईगुड़ी एसपी ने हादसे में चार लोगों की मौत की पुष्टि की है. 100 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं. नुकसान का आकलन किया जा रहा है.

साइक्लोन से हुई मौतों पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दुःख जताया है. उन्होंने मृतकों को मुआवजा दिए जाने की घोषणा की है. साथ ही पीड़ितों को हर संभव मदद दिए जाने के लिए जिला प्रशासन को निर्देश दिए हैं. तूफान के बाद कई घर गिर गए हैं. राहत और बचाव कार्य किया चल रहा है. रविवार को जलपाईगुड़ी में तूफान ने जमकर तबाही मचाई. तेज हवाओं से पेड़ उखड़ गए. मकानों को भी भारी नुकसान हुआ. ओले गिरने से फसलें तबाह हो गई. 

विद्युत पोल गिरने से बिजली गुल हो गई. तूफान थमने के बाद हर ओर तबाही के निशान मौजूद थे. लोग अपने घरों के टूटे फूटे सामान को इकट्ठा करने में जुट गए. स्थानीय लोगों की मदद से घायलों को इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया. जलपाईगुड़ी एसपी ने साइक्लोन से चार लोगों की मौत की पुष्टि की है.

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चक्रवात के बाद हुई इस तबाही पर दुख जताया है. उन्होंने कहा है कि मृतकों के निकट परिजनों और घायलों को उचित मुआवजा दिया जाएगा. उन्होंने कहा है कि जिला प्रशासन मृतक के परिजनों और घायलों को नियमानुसार और एमसीसी का पालन करते हुए मुआवजा प्रदान करेगा. जलपाईगुड़ी सरकारी मेडिकल कॉलेज के मेडिकल सुपरिंटेंडेंट और वाइस प्रिंसिपल का कहना है कि चक्रवात तूफान के बाद अस्पताल की इमरजेंसी में 170 से ज्यादा मरीज आए हैं. इनमें गंभीर हालत में 49 मरीजों को भर्ती किया गया है. सभी का इलाज किया जा रहा है.

चुनावी बांड मुद्दे पर पीएम मोदी ने कहा की कोई भी प्रणाली पूरी तरह परफेक्ट नहीं, पढ़िए, विपक्ष पर उन्होंने क्यों कहा 'पछताना पड़ेगा'

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को इस सुझाव को खारिज कर दिया कि चुनावी बांड मुद्दे से उनकी सरकार को झटका लगा है, उन्होंने कहा कि कोई भी प्रणाली पूरी तरह परफेक्ट नहीं है और किसी भी कमी को सुधारा जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि जो लोग इस मामले पर 'नाच' कर रहे हैं, उन्हें पछताना पड़ेगा। एक इंटरव्यू में जब उनसे पूछा गया कि क्या उन्होंने चुनावी बांड विवरण से सत्तारूढ़ भाजपा को झटका लगा है।

प्रधान मंत्री ने कहा कि यह उनकी सरकार द्वारा शुरू की गई चुनावी बांड प्रणाली के कारण, धन के स्रोत और उसके लाभार्थियों का पता लगाया जा सकता है। यदि आज कोई निशान उपलब्ध है, तो यह बांड की उपस्थिति के कारण है। पीएम मोदी ने पूछा, क्या कोई एजेंसी 2014 से पहले के चुनावों के लिए धन के स्रोतों और उनके लाभार्थियों के बारे में बता सकती है, जिस वर्ष वह सत्ता में आए थे। उन्होंने कहा, "कोई भी प्रणाली परफेक्ट नहीं है। इसमें कमियां हो सकती हैं जिन्हें सुधारा जा सकता है।"

विपक्षी दलों ने सरकार पर हमला करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद हुए खुलासों का हवाला दिया है, जिसमें गुमनाम फंडिंग प्रथा को असंवैधानिक करार देते हुए चुनावी बांड से संबंधित सभी जानकारी सार्वजनिक डोमेन में ला दी गई है। आपराधिक जांच का सामना कर रही कई कंपनियां इन बांडों की बड़ी खरीदार बन गई हैं।

साक्षात्कार में, पीएम मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि किसी को भी उनके हर काम में राजनीति नहीं देखनी चाहिए, उन्होंने कहा कि वह देश के लिए काम करते हैं और तमिलनाडु इसकी बड़ी ताकत है। अगर वोट उनकी मुख्य चिंता होती, तो उन्होंने पूर्वोत्तर के लिए इतना कुछ नहीं किया होता। पीएम मोदी ने कहा, उनकी सरकार के मंत्रियों ने 150 से अधिक बार इस क्षेत्र का दौरा किया है और वह खुद अन्य सभी प्रधानमंत्रियों की तुलना में अधिक बार वहां गए हैं।

उन्होंने कहा, "सिर्फ इसलिए कि मैं एक राजनेता हूं इसका मतलब यह नहीं है कि मैं केवल चुनाव जीतने के लिए काम करता हूं। तमिलनाडु में बहुत बड़ी क्षमता है जिसे बर्बाद नहीं किया जाना चाहिए।" उन्होंने कहा कि भाजपा के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) समाज के विभिन्न वर्गों को जोड़ता है और लोगों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करता है। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु में इसे मिलने वाले वोट द्रमुक विरोधी नहीं बल्कि भाजपा समर्थक होंगे।

उन्होंने कहा, "हमने पिछले 10 साल में जो काम किया है, उसे लोगों ने देखा है। तमिलनाडु ने तय कर लिया है कि इस बार बीजेपी-एनडीए होगी।" उन्होंने कहा कि भाजपा ने तमिलनाडु के लिए तब भी काम किया जब उसके पास वहां एक भी नगरपालिका उम्मीदवार नहीं था। पीएम मोदी ने तमिलनाडु भाजपा अध्यक्ष के अन्नामलाई की भी प्रशंसा की और कहा कि वह युवाओं को आकर्षित कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने कहा, उन्हें लगता है कि अगर पैसा और भ्रष्टाचार उनकी प्रेरणा होती तो वह द्रमुक में शामिल हो सकते थे।

उन्होंने कहा, "विक्सित भारत का मतलब है कि देश के हर कोने को विकास का लाभ मिलना चाहिए। मेरा मानना है कि तमिलनाडु में हमारे विकसित भारत के सपने के पीछे प्रेरक शक्ति बनने की क्षमता है।" पीएम मोदी ने तमिल भाषा के राजनीतिकरण पर खेद व्यक्त किया, विपक्षी दलों पर कटाक्ष किया, जो अक्सर भाजपा पर क्षेत्रीय भाषाओं को कमजोर करने का आरोप लगाते रहे हैं, और कहा कि जैसे राज्य के व्यंजनों का वैश्विककरण हो गया है, वैसे ही इसकी बोली को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, "तमिल भाषा का राजनीतिकरण न केवल तमिलनाडु बल्कि देश के लिए भी हानिकारक है।"

कांग्रेस को बड़ी राहत, आयकर विभाग डिमांड नोटिस पर लोकसभा चुनाव तक नहीं करेगा कोई कार्रवाई

#income_tax_department_gives_relief_to_congress 

कांग्रेस को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। कांग्रेस के खिलाफ इनकम टैक्स नोटिस के मामले में इनकम टैक्स विभाग कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं करेगा। आयकर विभाग ने सुप्रीम कोर्ट में बयान दिया है कि वह लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस पार्टी से करोड़ों रुपये की वसूली के लिए कोई कठोर कदम नहीं उठाएगा। इनकम टैक्स विभाग के खिलाफ कांग्रेस पार्टी की ओर से दाखिल याचिका पर सोमवार को सुनवाई हुई। इस दौरान सभी पक्षों के वकीलों ने अपनी-अपनी दलीलें पेश कीं। सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद शीर्ष अदालत ने इनकम टैक्स विभाग को जून के महीने में अपना जवाब दाखिल करने के लिए कहा है। 24 जुलाई को मामले की अगली सुनवाई होगी।

आयकर विभाग के नोटिस के खिलाफ कांग्रेस पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इस याचिका पर सुनवाई के दौरान जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ के सामने आयकर विभाग की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए। सुनवाई के दौरान इनकम टैक्स ने कहा हमने 1700 करोड़ का नोटिस भेजा है। इनकम टैक्स ने कोर्ट को भरोसा दिया की अभी चुनाव का समय चल रहा है। लिहाजा हम इन पैसों की रिकवरी को लेकर कोई कार्रवाई नहीं करेंगे। वहीं, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा की मामले की सुनवाई जून महीने में की जाए। तब तक कोई करवाई नहीं होगी।

आयकर विभाग ने रविवार को कांग्रेस पार्टी को नया नोटिस भेजा था, जिसमें 1745 करोड़ रुपये के टैक्स के भुगतान की मांग की गई थी। इसके साथ ही आयकर विभाग कांग्रेस पार्टी को कुल 3567 करोड़ रुपये की रिकवरी का नोटिस भेज चुका है। ताजा नोटिस 2014-15 (663 करोड़ रुपये) और 2015-16 (करीब 664 करोड़ रुपये), 2016-17 (करीब 417 करोड़ रुपये) से संबंधित है। कांग्रेस का आरोप है कि अधिकारियों ने राजनीतिक दलों को मिलने वाली कर छूट खत्म कर दी है और पार्टी पर टैक्स लगा दिया है। कांग्रेस नेताओं से जब्त की गई डायरियों में जो तीसरे पक्ष की एंट्रियां हैं, उनके लिए भी कांग्रेस पर टैक्स लगा दिया गया है। कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि कर अधिकारियों ने पिछले वर्षों से संबंधित टैक्स डिमांड के लिए पार्टी के खातों से 135 करोड़ रुपये पहले ही निकाल लिए हैं। इसे लेकर कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है।

मालदीव की तरह बांग्लादेश में भी 'इंडिया आउट' कैंपेन, जानें कौन है इसके पीछे

#bangladesh_opposition_behind_india_out_campaign

मालदीव के ठीक बाद अब बांग्लादेश में भी ‘इंडिया आउट’ कैंपेन जोर पकड़ने लगा है। बांग्लादेश में इस साल जनवरी में हुए आम चुनाव में शेख हसीना की जीत के बाद पिछले कई दिनों से सोशल मीडिया पर ‘इंडिया आउट’ अभियान देखने को मिल रहा है। कुछ विपक्षी दलों की सक्रियता के कारण शुरू होने वाले कथित 'इंडिया आउट' या भारतीय उत्पादों के बायकाट के अभियान तो तेजी मिली है। खासकर इस मुद्दे पर सत्तारूढ़ अवामी लीग और विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के नेताओं के बीच राजनीतिक बहस चल रही है।बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने आरोप लगाया है कि इस अभियान को विपक्षी पार्टी बीएनपी हवा दे रही है और भारत के खिलाफ देश में माहौल बनाने की कोशिश हो रही है।बीएनपी ने भारत पर चुनावों में हस्तक्षेप का आरोप लगाते हुए चुनावों का बहिष्कार किया था। इसके बाद से ये मुद्दा गरम हुआ और धीरे-धीरे इसने इंडिया आउट कैंपेन की शक्ल ले ली। ये कुछ उसी तरह है जैसा मालदीव में कुछ समय पहले हुआ था। 

बांग्लादेश में भले ही भारत के प्रति दोस्ताना व्यवहार रखने वाली सरकार है लेकिन वहां का विपक्ष भारत विरोधी मुहिम चलाने में जोर-शोर से जुटा हुआ है। इंडिया आउट अभियान में भारत और बांग्लादेश की दोस्ती को टारगेट किया जा रहा है। अभियान में बांग्लादेश के लोगों को भारत के खिलाफ भड़काने के लिए प्रोपेगेंडा फैलाया जा रहा है। इस कैंपेन के तहत बांग्लादेश में भारत के प्रभाव को पूरी तरह से खत्म करने की मुहिम चलाई जा रही है और भारतीय सामान के बहिष्कार की भी अपील की जा रही है। कहा जा रहा है कि चीन समर्थन में नेरेटिव बनाने के लिए संगठित ग्रुप में काम हो रहा है। 

बीएनपी हाल में हुए बारहवें आम चुनाव के पहले से ही भारत की भूमिका पर नाराज़गी जताती रही थी। उसके नेताओं का मानना है कि अमेरिका समेत पश्चिमी देशों में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए अवामी लीग सरकार पर जो दबाव बनाया था वह भारत के अड़ियल रवैये के कारण बेअसर हो गया। इसके बाद ही इंडिया आउट या भारतीय उत्पादों के बायकाट का आंदोलन शुरू हुआ। बीती 21 मार्च को बीएनपी के प्रवक्ता और वरिष्ठ संयुक्त सचिव रुहुल कबीर रिज़वी ने ख़ुद भी इस आंदोलन के प्रति एकजुटता जताई थी।

बांग्लादेश की विपक्षी पार्टी बीएनपी की राजनीति में भारत विरोध का इतिहास नया नहीं है, लेकिन बीते 10-15 साल के दौरान पार्टी के एक गुट ने भारत के संबंधों की बेहतरी की दिशा में भी प्रयास किया है। इसी तरह कभी पार्टी में भारत विरोधी गुट ने अपनी ताक़त के ज़ोर पर इस प्रयास का विरोध भी किया। कई लोग साल 2013 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के ढाका दौरे के समय विपक्ष की तत्कालीन नेता और बीएनपी अध्यक्ष ख़ालिदा ज़िया के साथ मुलाकात को रद्द करने के फैसले को इसी का ज्वलंत उदाहरण मानते हैं। हालांकि बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ढाका दौरे के दौरान खालिदा जिया ने होटल में जाकर उनसे मुलाक़ात की थी। 

साल 2014 में बीएनपी ने बांग्लादेश के आम चुनाव का बाय़काट किया था, लेकिन उस चुनाव से पहले भारतीय राजनयिकों की सक्रियता के बावजूद पार्टी ने इस पर कोई ख़ास टिप्पणी नहीं की थी। लेकिन साल 2018 के चुनाव के बाद बीएनपी भारत के मुद्दे पर सक्रिय होती नज़र आई। साल 2019 में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना के भारत दौरे के दौरान दोनों देशों के बीच हुए समझौते के खिलाफ भी वह सड़क पर उतरी थी। विश्लेषकों की राय में बांग्लादेश की आज़ादी की स्वर्ण जयंती के मौके पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ढाका दौरे के ख़िलाफ़ बांग्लादेश में होने वाले हिंसक विरोध ने भी बीएनपी समेत तमाम राजनीतिक दलों की दिल्ली से दूरी बढ़ा दी है। 

मुस्लिम बहुल बांग्लादेश में भले ही भारत के साथ अच्छे रिश्ते रखने वाली सरकार की बार-बार जीत हो रही है लेकिन वहां भारत विरोधी भावनाएं तेजी से बढ़ रही है। पिछले साल 19 नवंबर को हुए क्रिकेट वर्ल्ड कप 2023 में इसका एक उदाहरण देखने को मिला जब ऑस्ट्रेलियाई टीम ने भारत को हरा दिया। भारत की हार को बांग्लादेश में किसी उत्सव की तरह मनाया गया। हजारों लोग ढाका विश्वविद्यालय कैंपस में जमा हो गए और उन्होंने भारतीय टीम के खिलाफ नारेबाजी की। भारत के खिलाफ विरोध की यह भावना केवल क्रिकेट तक ही सीमित नहीं है बल्कि विश्लेषकों का कहना है कि हाल के वर्षों में बांग्लादेश के लोगों में भारत विरोधी भावनाएं बढ़ी हैं।

मालदीव की तरह बांग्लादेश में भी 'इंडिया आउट' कैंपेन, जानें कौन है इसके पीछे

#bangladesh_opposition_behind_india_out_campaign

मालदीव के ठीक बाद अब बांग्लादेश में भी ‘इंडिया आउट’ कैंपेन जोर पकड़ने लगा है। बांग्लादेश में इस साल जनवरी में हुए आम चुनाव में शेख हसीना की जीत के बाद पिछले कई दिनों से सोशल मीडिया पर ‘इंडिया आउट’ अभियान देखने को मिल रहा है। कुछ विपक्षी दलों की सक्रियता के कारण शुरू होने वाले कथित 'इंडिया आउट' या भारतीय उत्पादों के बायकाट के अभियान तो तेजी मिली है। खासकर इस मुद्दे पर सत्तारूढ़ अवामी लीग और विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के नेताओं के बीच राजनीतिक बहस चल रही है।बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने आरोप लगाया है कि इस अभियान को विपक्षी पार्टी बीएनपी हवा दे रही है और भारत के खिलाफ देश में माहौल बनाने की कोशिश हो रही है।बीएनपी ने भारत पर चुनावों में हस्तक्षेप का आरोप लगाते हुए चुनावों का बहिष्कार किया था। इसके बाद से ये मुद्दा गरम हुआ और धीरे-धीरे इसने इंडिया आउट कैंपेन की शक्ल ले ली। ये कुछ उसी तरह है जैसा मालदीव में कुछ समय पहले हुआ था।

बांग्लादेश में भले ही भारत के प्रति दोस्ताना व्यवहार रखने वाली सरकार है लेकिन वहां का विपक्ष भारत विरोधी मुहिम चलाने में जोर-शोर से जुटा हुआ है। इंडिया आउट अभियान में भारत और बांग्लादेश की दोस्ती को टारगेट किया जा रहा है। अभियान में बांग्लादेश के लोगों को भारत के खिलाफ भड़काने के लिए प्रोपेगेंडा फैलाया जा रहा है। इस कैंपेन के तहत बांग्लादेश में भारत के प्रभाव को पूरी तरह से खत्म करने की मुहिम चलाई जा रही है और भारतीय सामान के बहिष्कार की भी अपील की जा रही है। कहा जा रहा है कि चीन समर्थन में नेरेटिव बनाने के लिए संगठित ग्रुप में काम हो रहा है।

बीएनपी हाल में हुए बारहवें आम चुनाव के पहले से ही भारत की भूमिका पर नाराज़गी जताती रही थी। उसके नेताओं का मानना है कि अमेरिका समेत पश्चिमी देशों में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए अवामी लीग सरकार पर जो दबाव बनाया था वह भारत के अड़ियल रवैये के कारण बेअसर हो गया। इसके बाद ही इंडिया आउट या भारतीय उत्पादों के बायकाट का आंदोलन शुरू हुआ। बीती 21 मार्च को बीएनपी के प्रवक्ता और वरिष्ठ संयुक्त सचिव रुहुल कबीर रिज़वी ने ख़ुद भी इस आंदोलन के प्रति एकजुटता जताई थी।

बांग्लादेश की विपक्षी पार्टी बीएनपी की राजनीति में भारत विरोध का इतिहास नया नहीं है, लेकिन बीते 10-15 साल के दौरान पार्टी के एक गुट ने भारत के संबंधों की बेहतरी की दिशा में भी प्रयास किया है। इसी तरह कभी पार्टी में भारत विरोधी गुट ने अपनी ताक़त के ज़ोर पर इस प्रयास का विरोध भी किया। कई लोग साल 2013 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के ढाका दौरे के समय विपक्ष की तत्कालीन नेता और बीएनपी अध्यक्ष ख़ालिदा ज़िया के साथ मुलाकात को रद्द करने के फैसले को इसी का ज्वलंत उदाहरण मानते हैं। हालांकि बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ढाका दौरे के दौरान खालिदा जिया ने होटल में जाकर उनसे मुलाक़ात की थी।

साल 2014 में बीएनपी ने बांग्लादेश के आम चुनाव का बाय़काट किया था, लेकिन उस चुनाव से पहले भारतीय राजनयिकों की सक्रियता के बावजूद पार्टी ने इस पर कोई ख़ास टिप्पणी नहीं की थी। लेकिन साल 2018 के चुनाव के बाद बीएनपी भारत के मुद्दे पर सक्रिय होती नज़र आई। साल 2019 में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना के भारत दौरे के दौरान दोनों देशों के बीच हुए समझौते के खिलाफ भी वह सड़क पर उतरी थी। विश्लेषकों की राय में बांग्लादेश की आज़ादी की स्वर्ण जयंती के मौके पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ढाका दौरे के ख़िलाफ़ बांग्लादेश में होने वाले हिंसक विरोध ने भी बीएनपी समेत तमाम राजनीतिक दलों की दिल्ली से दूरी बढ़ा दी है।

मुस्लिम बहुल बांग्लादेश में भले ही भारत के साथ अच्छे रिश्ते रखने वाली सरकार की बार-बार जीत हो रही है लेकिन वहां भारत विरोधी भावनाएं तेजी से बढ़ रही है। पिछले साल 19 नवंबर को हुए क्रिकेट वर्ल्ड कप 2023 में इसका एक उदाहरण देखने को मिला जब ऑस्ट्रेलियाई टीम ने भारत को हरा दिया। भारत की हार को बांग्लादेश में किसी उत्सव की तरह मनाया गया। हजारों लोग ढाका विश्वविद्यालय कैंपस में जमा हो गए और उन्होंने भारतीय टीम के खिलाफ नारेबाजी की। भारत के खिलाफ विरोध की यह भावना केवल क्रिकेट तक ही सीमित नहीं है बल्कि विश्लेषकों का कहना है कि हाल के वर्षों में बांग्लादेश के लोगों में भारत विरोधी भावनाएं बढ़ी हैं।

लोकसभा चुनाव 2024: क्या इस बार अपना गढ़ बचा पाएंगे ज्योतिरादित्य सिंधिया?

#lok_sabha_election_2024_guna_seat_Will_Jyotiraditya_be able_to_save

एमपी की सबसे हाई प्रोफाइल सीट

सिंधिया राजपरिवार का है गढ़

17 में से 13 चुनावों में सिंधिया परिवार का परचम

गुना से अब तक 9 बार कांग्रेस जीती

5 बार कमल खिला

2002 से 2014 तक ज्योतिरादित्या सिंधिया रहे सांसद

2019 में हारे अपनी पाँचवीं चुनावी लड़ाई

क्या इस बार बचा सकेंगे अपना गढ़

मध्यप्रदेश की सबसे हाईप्रोफाइल गुना लोकसभा सीट को सिंधिया राजपरिवार का गढ़ माना जाता रहा है।यहां अब तक हुए चुनावों में बीजेपी इस सीट पर तभी जीती जब विजयाराजे सिंधिया खुद पार्टी के टिकट पर मैदान में उतरीं। गुना से अब तक 9 बार कांग्रेस, 5 बार बीजेपी, एक बार जनसंघ, एक बार स्वतंत्र पार्टी चुनाव भले ही जीती हो पर दिलचस्प यह है कि अब तक हुए 17 लोकसभा चुनावों में चार चुनावों को छोड़ दिया जाए तो 13 बार जीत का परचम लहराने वाला कोई सिंधिया ही था।

गुना लोकसभा सीट मध्य प्रदेश की राजनीति की उन धुरियों मे से एक हैं जहां से पूरे प्रदेश की राजनीति निर्धारित होती रही है। ग्वालियर राजघराने से संबंध रखने वाली ये लोकसभा सीट बेहद महत्वपूर्ण है। यहां से सिंधिया परिवार की तीन पीढ़िया चुनाव लड़ते आ रही हैं। यहां से राजमाता विजय राजे सिंधिया चुनाव लड़ी हैं फिर इस सत्ता को माधवराज सिंधिया ने संभाला इसके बाद अब राजघराने की तीसरी पीढ़ी यानी ज्योतिरादित्या सिंधिया का इस सीट पर दबदबा है।

माधवराव सिंधिया की आकस्मिक मौत के बाद इस सीट से ज्योतिरादित्य सिंधिया ने चुनाव लड़ा था और अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी। 2002 के बाद से 2014 तक सिंधिया यहां से सांसद रहे हैं। वहीं 2019 के चुनाव में सिंधिया से बीजेपी ने इस सीट को छीन लिया था। 2002 से 2014 तक लगातार चार बार गुना लोकसभा सीट से जीतते आ रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया अपनी पाँचवीं चुनावी लड़ाई भारतीय जनता पार्टी के कृष्णपाल सिंह यादव से भारी अंतर से हर गए।

पिछली बार लोकसभा के लिए बीजेपी ने इस सीट से ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी रहे केपी यादव को टिकट दिया था। उन्होंने सिंधिया के किले को मोदी लहर में ध्वस्त कर दिया था। 2014 का चुनाव 1 लाख 20 हजार 792 वोटों से जीतने वाले कांग्रेस प्रत्याशी ज्योतिरादित्य सिंधिया को 2019 में बीजेपी प्रत्याशी डॉ. केपी यादव ने 1 लाख 25 हजार 549 वोटों से हरा दिया था। 14 बार लगातार अजेय रहने वाले सिंधिया राजपरिवार के किसी प्रत्याशी की गुना-शिवपुरी संसदीय क्षेत्र में यह पहली हार थी। हैरानी की बात यह थी कि बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीतने वाले केपी यादव पहले कांग्रेस में ही थे और सिंधिया के खास लोगों में शुमार थे।

वहीं, कांग्रेस से नाराज सिंधिया भी बीजेपी में आ गए है। कांग्रेस में रहते हुए भी ज्योतिरादित्य सिंधिया गुना लोकसभा सीट से ही लगातार चुनाव लड़े हैं। अब सिंधिया बीजेपी से प्रत्याशी हैं। ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि क्या ज्योतिरादित्य सिंधिया इस बार अपना गढ़ बचा पाएंगे?

चीन ने फिर की हिमाकत, पहाड़ और झील समेत अरुणाचल प्रदेश की 30 जगहों के बदले नाम

डेस्क : चीन अपनी चालबाजियों से बाज आता हुआ नहीं दिख रहा है। अरुणाचल प्रदेश पर चीन बाद-बार बयान दे रहा है। भारत ने जब खरी-खरी सुनाई तो अब 'ड्रैगन' तिलमिलाया हुआ नजर आ रहा है। तिलमिलाया चीन अरुणाचल प्रदेश की कई जगहों का नाम कागजों पर बदलने में लगा है। ताजा हुए घटनाक्रम में बीजिंग ने अरुणचाल प्रदेश के अंदर 30 जगहों के नाम बदल दिए हैं। चीन के नागरिक मामलों के मंत्रालय ने इसे लेकर सूची भी जारी की है। चीन अरुणाचल प्रदेश को जांगनान कहता है और इसे तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र का हिस्सा बताता है।

चीन की पुरानी चाल 

गौरतलब है कि, पिछले 7 सालों में ऐसा चौथी बार हुआ है जब चीन ने अरुणाचल की जगहों का नाम बदला हो। चीन ने अप्रैल 2023 में अपने नक्शे में अरुणाचल प्रदेश की 11 जगहों के नाम बदल दिए थे। चीन ने पिछले 5 साल में तीसरी बार ऐसा किया था। इसके पहले 2021 में चीन ने 15 जगहों और 2017 में 6 जगहों के नाम बदले थे।

पहाड़ और झील का बदला नाम

साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के मुताबिक, चीनी नागरिक मंत्रालय की तरफ से कहा गया है , "भौगोलिक नामों के प्रबंधन पर स्टेट काउंसिल (चीनी कैबिनेट) के प्रासंगिग प्रावधानों के अनुसार, हमने संबंधित विभागों के साथ मिलकर चीन के जांगनान (अरुणाचल प्रदेश) में कुछ भौगोलिक नामों को मानकीकृत किया है।" रिपोर्ट के अनुसार, जिन जगहों के नाम बदले गए हैं, उनमें अरुणाचल प्रदेश में मौजूद 11 जिले, 12 पहाड़, एक झील, एक पहाड़ी दर्रा और जमीन का एक हिस्सा शामिल है। इन सभी जगहों को तिब्बती स्क्रिप्ट में चीनी अक्षरों के जरिए दिखाया गया है।

पीएम मोदी का अरुणाचल दौरा 

अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा जताने के लिए चीन के हालिया बयानों की शुरुआत पीएम नरेंद्र मोदी के अरुणाचल दौरे के बाद शुरू हुई है। पीएम मोदी ने कुछ महीनों पहले अरुणाचल प्रदेश में 13,000 फीट की ऊंचाई पर बनी सेला सुरंग को राष्ट्र को समर्पित किया था। यह सुरंग रणनीतिक रूप से स्थित तवांग को हर मौसम में कनेक्टिविटी प्रदान करेगी। माना जा रहा है कि इससे सीमा वाले क्षेत्रों में भारतीय सैनिकों की बेहतर आवाजाही भी सुनिश्चित होगी।

भारत की दो टूक 

अरुणाचल प्रदेश को लेकर चीन की ये हरकत पहली बार नहीं है। इसके पहले बीते मार्च में बीजिंग ने अरुणाचल प्रदेश को लेकर दावा किया था, जिसे नई दिल्ली ने बेतुका और आधारहीन बताते हुए खारिज कर दिया था। भारत के रुख को दोहराते हुए भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा था कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग है। यह एक ऐसा तथ्य है जो चीन के लगातार दावे के बावजूद अपरिवर्तनीय है। जायसवाल ने कहा था कि "अरुणाचल प्रदेश पर हमने बार-बार हमारी स्थिति स्पष्ट की है। चीन अपने बेबुनियाद दावों को जितनी बार चाहे दोहरा सकता है। उससे भारत की स्थिति बदलने वाली नहीं है। अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग है और रहेगा।" 

चीन का 'बेतुका' दावा

भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी चीन के दावे को बेतुका बताते हुए कहा था कि अरुणाचल प्रदेश स्वाभाविक रूप से भारत का हिस्सा है। सिंगापुर में जयशंकर ने कहा था, "यह कोई नया मुद्दा नहीं है। मेरा मतलब है कि चीन ने दावा किया है, वह अपने दावे को दोहरा रहा है। ये दावे शुरू से ही हास्यास्पद हैं और आज भी हास्यास्पद बने हुए हैं। मुझे लगता है कि हम इस पर बहुत स्पष्ट, बहुत सुसंगत रहे हैं।"