चुनावी बांड मुद्दे पर पीएम मोदी ने कहा की कोई भी प्रणाली पूरी तरह परफेक्ट नहीं, पढ़िए, विपक्ष पर उन्होंने क्यों कहा 'पछताना पड़ेगा'

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को इस सुझाव को खारिज कर दिया कि चुनावी बांड मुद्दे से उनकी सरकार को झटका लगा है, उन्होंने कहा कि कोई भी प्रणाली पूरी तरह परफेक्ट नहीं है और किसी भी कमी को सुधारा जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि जो लोग इस मामले पर 'नाच' कर रहे हैं, उन्हें पछताना पड़ेगा। एक इंटरव्यू में जब उनसे पूछा गया कि क्या उन्होंने चुनावी बांड विवरण से सत्तारूढ़ भाजपा को झटका लगा है।

प्रधान मंत्री ने कहा कि यह उनकी सरकार द्वारा शुरू की गई चुनावी बांड प्रणाली के कारण, धन के स्रोत और उसके लाभार्थियों का पता लगाया जा सकता है। यदि आज कोई निशान उपलब्ध है, तो यह बांड की उपस्थिति के कारण है। पीएम मोदी ने पूछा, क्या कोई एजेंसी 2014 से पहले के चुनावों के लिए धन के स्रोतों और उनके लाभार्थियों के बारे में बता सकती है, जिस वर्ष वह सत्ता में आए थे। उन्होंने कहा, "कोई भी प्रणाली परफेक्ट नहीं है। इसमें कमियां हो सकती हैं जिन्हें सुधारा जा सकता है।"

विपक्षी दलों ने सरकार पर हमला करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद हुए खुलासों का हवाला दिया है, जिसमें गुमनाम फंडिंग प्रथा को असंवैधानिक करार देते हुए चुनावी बांड से संबंधित सभी जानकारी सार्वजनिक डोमेन में ला दी गई है। आपराधिक जांच का सामना कर रही कई कंपनियां इन बांडों की बड़ी खरीदार बन गई हैं।

साक्षात्कार में, पीएम मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि किसी को भी उनके हर काम में राजनीति नहीं देखनी चाहिए, उन्होंने कहा कि वह देश के लिए काम करते हैं और तमिलनाडु इसकी बड़ी ताकत है। अगर वोट उनकी मुख्य चिंता होती, तो उन्होंने पूर्वोत्तर के लिए इतना कुछ नहीं किया होता। पीएम मोदी ने कहा, उनकी सरकार के मंत्रियों ने 150 से अधिक बार इस क्षेत्र का दौरा किया है और वह खुद अन्य सभी प्रधानमंत्रियों की तुलना में अधिक बार वहां गए हैं।

उन्होंने कहा, "सिर्फ इसलिए कि मैं एक राजनेता हूं इसका मतलब यह नहीं है कि मैं केवल चुनाव जीतने के लिए काम करता हूं। तमिलनाडु में बहुत बड़ी क्षमता है जिसे बर्बाद नहीं किया जाना चाहिए।" उन्होंने कहा कि भाजपा के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) समाज के विभिन्न वर्गों को जोड़ता है और लोगों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करता है। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु में इसे मिलने वाले वोट द्रमुक विरोधी नहीं बल्कि भाजपा समर्थक होंगे।

उन्होंने कहा, "हमने पिछले 10 साल में जो काम किया है, उसे लोगों ने देखा है। तमिलनाडु ने तय कर लिया है कि इस बार बीजेपी-एनडीए होगी।" उन्होंने कहा कि भाजपा ने तमिलनाडु के लिए तब भी काम किया जब उसके पास वहां एक भी नगरपालिका उम्मीदवार नहीं था। पीएम मोदी ने तमिलनाडु भाजपा अध्यक्ष के अन्नामलाई की भी प्रशंसा की और कहा कि वह युवाओं को आकर्षित कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने कहा, उन्हें लगता है कि अगर पैसा और भ्रष्टाचार उनकी प्रेरणा होती तो वह द्रमुक में शामिल हो सकते थे।

उन्होंने कहा, "विक्सित भारत का मतलब है कि देश के हर कोने को विकास का लाभ मिलना चाहिए। मेरा मानना है कि तमिलनाडु में हमारे विकसित भारत के सपने के पीछे प्रेरक शक्ति बनने की क्षमता है।" पीएम मोदी ने तमिल भाषा के राजनीतिकरण पर खेद व्यक्त किया, विपक्षी दलों पर कटाक्ष किया, जो अक्सर भाजपा पर क्षेत्रीय भाषाओं को कमजोर करने का आरोप लगाते रहे हैं, और कहा कि जैसे राज्य के व्यंजनों का वैश्विककरण हो गया है, वैसे ही इसकी बोली को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, "तमिल भाषा का राजनीतिकरण न केवल तमिलनाडु बल्कि देश के लिए भी हानिकारक है।"

कांग्रेस को बड़ी राहत, आयकर विभाग डिमांड नोटिस पर लोकसभा चुनाव तक नहीं करेगा कोई कार्रवाई

#income_tax_department_gives_relief_to_congress 

कांग्रेस को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। कांग्रेस के खिलाफ इनकम टैक्स नोटिस के मामले में इनकम टैक्स विभाग कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं करेगा। आयकर विभाग ने सुप्रीम कोर्ट में बयान दिया है कि वह लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस पार्टी से करोड़ों रुपये की वसूली के लिए कोई कठोर कदम नहीं उठाएगा। इनकम टैक्स विभाग के खिलाफ कांग्रेस पार्टी की ओर से दाखिल याचिका पर सोमवार को सुनवाई हुई। इस दौरान सभी पक्षों के वकीलों ने अपनी-अपनी दलीलें पेश कीं। सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद शीर्ष अदालत ने इनकम टैक्स विभाग को जून के महीने में अपना जवाब दाखिल करने के लिए कहा है। 24 जुलाई को मामले की अगली सुनवाई होगी।

आयकर विभाग के नोटिस के खिलाफ कांग्रेस पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इस याचिका पर सुनवाई के दौरान जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ के सामने आयकर विभाग की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए। सुनवाई के दौरान इनकम टैक्स ने कहा हमने 1700 करोड़ का नोटिस भेजा है। इनकम टैक्स ने कोर्ट को भरोसा दिया की अभी चुनाव का समय चल रहा है। लिहाजा हम इन पैसों की रिकवरी को लेकर कोई कार्रवाई नहीं करेंगे। वहीं, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा की मामले की सुनवाई जून महीने में की जाए। तब तक कोई करवाई नहीं होगी।

आयकर विभाग ने रविवार को कांग्रेस पार्टी को नया नोटिस भेजा था, जिसमें 1745 करोड़ रुपये के टैक्स के भुगतान की मांग की गई थी। इसके साथ ही आयकर विभाग कांग्रेस पार्टी को कुल 3567 करोड़ रुपये की रिकवरी का नोटिस भेज चुका है। ताजा नोटिस 2014-15 (663 करोड़ रुपये) और 2015-16 (करीब 664 करोड़ रुपये), 2016-17 (करीब 417 करोड़ रुपये) से संबंधित है। कांग्रेस का आरोप है कि अधिकारियों ने राजनीतिक दलों को मिलने वाली कर छूट खत्म कर दी है और पार्टी पर टैक्स लगा दिया है। कांग्रेस नेताओं से जब्त की गई डायरियों में जो तीसरे पक्ष की एंट्रियां हैं, उनके लिए भी कांग्रेस पर टैक्स लगा दिया गया है। कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि कर अधिकारियों ने पिछले वर्षों से संबंधित टैक्स डिमांड के लिए पार्टी के खातों से 135 करोड़ रुपये पहले ही निकाल लिए हैं। इसे लेकर कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है।

मालदीव की तरह बांग्लादेश में भी 'इंडिया आउट' कैंपेन, जानें कौन है इसके पीछे

#bangladesh_opposition_behind_india_out_campaign

मालदीव के ठीक बाद अब बांग्लादेश में भी ‘इंडिया आउट’ कैंपेन जोर पकड़ने लगा है। बांग्लादेश में इस साल जनवरी में हुए आम चुनाव में शेख हसीना की जीत के बाद पिछले कई दिनों से सोशल मीडिया पर ‘इंडिया आउट’ अभियान देखने को मिल रहा है। कुछ विपक्षी दलों की सक्रियता के कारण शुरू होने वाले कथित 'इंडिया आउट' या भारतीय उत्पादों के बायकाट के अभियान तो तेजी मिली है। खासकर इस मुद्दे पर सत्तारूढ़ अवामी लीग और विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के नेताओं के बीच राजनीतिक बहस चल रही है।बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने आरोप लगाया है कि इस अभियान को विपक्षी पार्टी बीएनपी हवा दे रही है और भारत के खिलाफ देश में माहौल बनाने की कोशिश हो रही है।बीएनपी ने भारत पर चुनावों में हस्तक्षेप का आरोप लगाते हुए चुनावों का बहिष्कार किया था। इसके बाद से ये मुद्दा गरम हुआ और धीरे-धीरे इसने इंडिया आउट कैंपेन की शक्ल ले ली। ये कुछ उसी तरह है जैसा मालदीव में कुछ समय पहले हुआ था। 

बांग्लादेश में भले ही भारत के प्रति दोस्ताना व्यवहार रखने वाली सरकार है लेकिन वहां का विपक्ष भारत विरोधी मुहिम चलाने में जोर-शोर से जुटा हुआ है। इंडिया आउट अभियान में भारत और बांग्लादेश की दोस्ती को टारगेट किया जा रहा है। अभियान में बांग्लादेश के लोगों को भारत के खिलाफ भड़काने के लिए प्रोपेगेंडा फैलाया जा रहा है। इस कैंपेन के तहत बांग्लादेश में भारत के प्रभाव को पूरी तरह से खत्म करने की मुहिम चलाई जा रही है और भारतीय सामान के बहिष्कार की भी अपील की जा रही है। कहा जा रहा है कि चीन समर्थन में नेरेटिव बनाने के लिए संगठित ग्रुप में काम हो रहा है। 

बीएनपी हाल में हुए बारहवें आम चुनाव के पहले से ही भारत की भूमिका पर नाराज़गी जताती रही थी। उसके नेताओं का मानना है कि अमेरिका समेत पश्चिमी देशों में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए अवामी लीग सरकार पर जो दबाव बनाया था वह भारत के अड़ियल रवैये के कारण बेअसर हो गया। इसके बाद ही इंडिया आउट या भारतीय उत्पादों के बायकाट का आंदोलन शुरू हुआ। बीती 21 मार्च को बीएनपी के प्रवक्ता और वरिष्ठ संयुक्त सचिव रुहुल कबीर रिज़वी ने ख़ुद भी इस आंदोलन के प्रति एकजुटता जताई थी।

बांग्लादेश की विपक्षी पार्टी बीएनपी की राजनीति में भारत विरोध का इतिहास नया नहीं है, लेकिन बीते 10-15 साल के दौरान पार्टी के एक गुट ने भारत के संबंधों की बेहतरी की दिशा में भी प्रयास किया है। इसी तरह कभी पार्टी में भारत विरोधी गुट ने अपनी ताक़त के ज़ोर पर इस प्रयास का विरोध भी किया। कई लोग साल 2013 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के ढाका दौरे के समय विपक्ष की तत्कालीन नेता और बीएनपी अध्यक्ष ख़ालिदा ज़िया के साथ मुलाकात को रद्द करने के फैसले को इसी का ज्वलंत उदाहरण मानते हैं। हालांकि बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ढाका दौरे के दौरान खालिदा जिया ने होटल में जाकर उनसे मुलाक़ात की थी। 

साल 2014 में बीएनपी ने बांग्लादेश के आम चुनाव का बाय़काट किया था, लेकिन उस चुनाव से पहले भारतीय राजनयिकों की सक्रियता के बावजूद पार्टी ने इस पर कोई ख़ास टिप्पणी नहीं की थी। लेकिन साल 2018 के चुनाव के बाद बीएनपी भारत के मुद्दे पर सक्रिय होती नज़र आई। साल 2019 में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना के भारत दौरे के दौरान दोनों देशों के बीच हुए समझौते के खिलाफ भी वह सड़क पर उतरी थी। विश्लेषकों की राय में बांग्लादेश की आज़ादी की स्वर्ण जयंती के मौके पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ढाका दौरे के ख़िलाफ़ बांग्लादेश में होने वाले हिंसक विरोध ने भी बीएनपी समेत तमाम राजनीतिक दलों की दिल्ली से दूरी बढ़ा दी है। 

मुस्लिम बहुल बांग्लादेश में भले ही भारत के साथ अच्छे रिश्ते रखने वाली सरकार की बार-बार जीत हो रही है लेकिन वहां भारत विरोधी भावनाएं तेजी से बढ़ रही है। पिछले साल 19 नवंबर को हुए क्रिकेट वर्ल्ड कप 2023 में इसका एक उदाहरण देखने को मिला जब ऑस्ट्रेलियाई टीम ने भारत को हरा दिया। भारत की हार को बांग्लादेश में किसी उत्सव की तरह मनाया गया। हजारों लोग ढाका विश्वविद्यालय कैंपस में जमा हो गए और उन्होंने भारतीय टीम के खिलाफ नारेबाजी की। भारत के खिलाफ विरोध की यह भावना केवल क्रिकेट तक ही सीमित नहीं है बल्कि विश्लेषकों का कहना है कि हाल के वर्षों में बांग्लादेश के लोगों में भारत विरोधी भावनाएं बढ़ी हैं।

मालदीव की तरह बांग्लादेश में भी 'इंडिया आउट' कैंपेन, जानें कौन है इसके पीछे

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मालदीव के ठीक बाद अब बांग्लादेश में भी ‘इंडिया आउट’ कैंपेन जोर पकड़ने लगा है। बांग्लादेश में इस साल जनवरी में हुए आम चुनाव में शेख हसीना की जीत के बाद पिछले कई दिनों से सोशल मीडिया पर ‘इंडिया आउट’ अभियान देखने को मिल रहा है। कुछ विपक्षी दलों की सक्रियता के कारण शुरू होने वाले कथित 'इंडिया आउट' या भारतीय उत्पादों के बायकाट के अभियान तो तेजी मिली है। खासकर इस मुद्दे पर सत्तारूढ़ अवामी लीग और विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के नेताओं के बीच राजनीतिक बहस चल रही है।बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने आरोप लगाया है कि इस अभियान को विपक्षी पार्टी बीएनपी हवा दे रही है और भारत के खिलाफ देश में माहौल बनाने की कोशिश हो रही है।बीएनपी ने भारत पर चुनावों में हस्तक्षेप का आरोप लगाते हुए चुनावों का बहिष्कार किया था। इसके बाद से ये मुद्दा गरम हुआ और धीरे-धीरे इसने इंडिया आउट कैंपेन की शक्ल ले ली। ये कुछ उसी तरह है जैसा मालदीव में कुछ समय पहले हुआ था।

बांग्लादेश में भले ही भारत के प्रति दोस्ताना व्यवहार रखने वाली सरकार है लेकिन वहां का विपक्ष भारत विरोधी मुहिम चलाने में जोर-शोर से जुटा हुआ है। इंडिया आउट अभियान में भारत और बांग्लादेश की दोस्ती को टारगेट किया जा रहा है। अभियान में बांग्लादेश के लोगों को भारत के खिलाफ भड़काने के लिए प्रोपेगेंडा फैलाया जा रहा है। इस कैंपेन के तहत बांग्लादेश में भारत के प्रभाव को पूरी तरह से खत्म करने की मुहिम चलाई जा रही है और भारतीय सामान के बहिष्कार की भी अपील की जा रही है। कहा जा रहा है कि चीन समर्थन में नेरेटिव बनाने के लिए संगठित ग्रुप में काम हो रहा है।

बीएनपी हाल में हुए बारहवें आम चुनाव के पहले से ही भारत की भूमिका पर नाराज़गी जताती रही थी। उसके नेताओं का मानना है कि अमेरिका समेत पश्चिमी देशों में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए अवामी लीग सरकार पर जो दबाव बनाया था वह भारत के अड़ियल रवैये के कारण बेअसर हो गया। इसके बाद ही इंडिया आउट या भारतीय उत्पादों के बायकाट का आंदोलन शुरू हुआ। बीती 21 मार्च को बीएनपी के प्रवक्ता और वरिष्ठ संयुक्त सचिव रुहुल कबीर रिज़वी ने ख़ुद भी इस आंदोलन के प्रति एकजुटता जताई थी।

बांग्लादेश की विपक्षी पार्टी बीएनपी की राजनीति में भारत विरोध का इतिहास नया नहीं है, लेकिन बीते 10-15 साल के दौरान पार्टी के एक गुट ने भारत के संबंधों की बेहतरी की दिशा में भी प्रयास किया है। इसी तरह कभी पार्टी में भारत विरोधी गुट ने अपनी ताक़त के ज़ोर पर इस प्रयास का विरोध भी किया। कई लोग साल 2013 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के ढाका दौरे के समय विपक्ष की तत्कालीन नेता और बीएनपी अध्यक्ष ख़ालिदा ज़िया के साथ मुलाकात को रद्द करने के फैसले को इसी का ज्वलंत उदाहरण मानते हैं। हालांकि बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ढाका दौरे के दौरान खालिदा जिया ने होटल में जाकर उनसे मुलाक़ात की थी।

साल 2014 में बीएनपी ने बांग्लादेश के आम चुनाव का बाय़काट किया था, लेकिन उस चुनाव से पहले भारतीय राजनयिकों की सक्रियता के बावजूद पार्टी ने इस पर कोई ख़ास टिप्पणी नहीं की थी। लेकिन साल 2018 के चुनाव के बाद बीएनपी भारत के मुद्दे पर सक्रिय होती नज़र आई। साल 2019 में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना के भारत दौरे के दौरान दोनों देशों के बीच हुए समझौते के खिलाफ भी वह सड़क पर उतरी थी। विश्लेषकों की राय में बांग्लादेश की आज़ादी की स्वर्ण जयंती के मौके पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ढाका दौरे के ख़िलाफ़ बांग्लादेश में होने वाले हिंसक विरोध ने भी बीएनपी समेत तमाम राजनीतिक दलों की दिल्ली से दूरी बढ़ा दी है।

मुस्लिम बहुल बांग्लादेश में भले ही भारत के साथ अच्छे रिश्ते रखने वाली सरकार की बार-बार जीत हो रही है लेकिन वहां भारत विरोधी भावनाएं तेजी से बढ़ रही है। पिछले साल 19 नवंबर को हुए क्रिकेट वर्ल्ड कप 2023 में इसका एक उदाहरण देखने को मिला जब ऑस्ट्रेलियाई टीम ने भारत को हरा दिया। भारत की हार को बांग्लादेश में किसी उत्सव की तरह मनाया गया। हजारों लोग ढाका विश्वविद्यालय कैंपस में जमा हो गए और उन्होंने भारतीय टीम के खिलाफ नारेबाजी की। भारत के खिलाफ विरोध की यह भावना केवल क्रिकेट तक ही सीमित नहीं है बल्कि विश्लेषकों का कहना है कि हाल के वर्षों में बांग्लादेश के लोगों में भारत विरोधी भावनाएं बढ़ी हैं।

लोकसभा चुनाव 2024: क्या इस बार अपना गढ़ बचा पाएंगे ज्योतिरादित्य सिंधिया?

#lok_sabha_election_2024_guna_seat_Will_Jyotiraditya_be able_to_save

एमपी की सबसे हाई प्रोफाइल सीट

सिंधिया राजपरिवार का है गढ़

17 में से 13 चुनावों में सिंधिया परिवार का परचम

गुना से अब तक 9 बार कांग्रेस जीती

5 बार कमल खिला

2002 से 2014 तक ज्योतिरादित्या सिंधिया रहे सांसद

2019 में हारे अपनी पाँचवीं चुनावी लड़ाई

क्या इस बार बचा सकेंगे अपना गढ़

मध्यप्रदेश की सबसे हाईप्रोफाइल गुना लोकसभा सीट को सिंधिया राजपरिवार का गढ़ माना जाता रहा है।यहां अब तक हुए चुनावों में बीजेपी इस सीट पर तभी जीती जब विजयाराजे सिंधिया खुद पार्टी के टिकट पर मैदान में उतरीं। गुना से अब तक 9 बार कांग्रेस, 5 बार बीजेपी, एक बार जनसंघ, एक बार स्वतंत्र पार्टी चुनाव भले ही जीती हो पर दिलचस्प यह है कि अब तक हुए 17 लोकसभा चुनावों में चार चुनावों को छोड़ दिया जाए तो 13 बार जीत का परचम लहराने वाला कोई सिंधिया ही था।

गुना लोकसभा सीट मध्य प्रदेश की राजनीति की उन धुरियों मे से एक हैं जहां से पूरे प्रदेश की राजनीति निर्धारित होती रही है। ग्वालियर राजघराने से संबंध रखने वाली ये लोकसभा सीट बेहद महत्वपूर्ण है। यहां से सिंधिया परिवार की तीन पीढ़िया चुनाव लड़ते आ रही हैं। यहां से राजमाता विजय राजे सिंधिया चुनाव लड़ी हैं फिर इस सत्ता को माधवराज सिंधिया ने संभाला इसके बाद अब राजघराने की तीसरी पीढ़ी यानी ज्योतिरादित्या सिंधिया का इस सीट पर दबदबा है।

माधवराव सिंधिया की आकस्मिक मौत के बाद इस सीट से ज्योतिरादित्य सिंधिया ने चुनाव लड़ा था और अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी। 2002 के बाद से 2014 तक सिंधिया यहां से सांसद रहे हैं। वहीं 2019 के चुनाव में सिंधिया से बीजेपी ने इस सीट को छीन लिया था। 2002 से 2014 तक लगातार चार बार गुना लोकसभा सीट से जीतते आ रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया अपनी पाँचवीं चुनावी लड़ाई भारतीय जनता पार्टी के कृष्णपाल सिंह यादव से भारी अंतर से हर गए।

पिछली बार लोकसभा के लिए बीजेपी ने इस सीट से ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी रहे केपी यादव को टिकट दिया था। उन्होंने सिंधिया के किले को मोदी लहर में ध्वस्त कर दिया था। 2014 का चुनाव 1 लाख 20 हजार 792 वोटों से जीतने वाले कांग्रेस प्रत्याशी ज्योतिरादित्य सिंधिया को 2019 में बीजेपी प्रत्याशी डॉ. केपी यादव ने 1 लाख 25 हजार 549 वोटों से हरा दिया था। 14 बार लगातार अजेय रहने वाले सिंधिया राजपरिवार के किसी प्रत्याशी की गुना-शिवपुरी संसदीय क्षेत्र में यह पहली हार थी। हैरानी की बात यह थी कि बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीतने वाले केपी यादव पहले कांग्रेस में ही थे और सिंधिया के खास लोगों में शुमार थे।

वहीं, कांग्रेस से नाराज सिंधिया भी बीजेपी में आ गए है। कांग्रेस में रहते हुए भी ज्योतिरादित्य सिंधिया गुना लोकसभा सीट से ही लगातार चुनाव लड़े हैं। अब सिंधिया बीजेपी से प्रत्याशी हैं। ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि क्या ज्योतिरादित्य सिंधिया इस बार अपना गढ़ बचा पाएंगे?

चीन ने फिर की हिमाकत, पहाड़ और झील समेत अरुणाचल प्रदेश की 30 जगहों के बदले नाम

डेस्क : चीन अपनी चालबाजियों से बाज आता हुआ नहीं दिख रहा है। अरुणाचल प्रदेश पर चीन बाद-बार बयान दे रहा है। भारत ने जब खरी-खरी सुनाई तो अब 'ड्रैगन' तिलमिलाया हुआ नजर आ रहा है। तिलमिलाया चीन अरुणाचल प्रदेश की कई जगहों का नाम कागजों पर बदलने में लगा है। ताजा हुए घटनाक्रम में बीजिंग ने अरुणचाल प्रदेश के अंदर 30 जगहों के नाम बदल दिए हैं। चीन के नागरिक मामलों के मंत्रालय ने इसे लेकर सूची भी जारी की है। चीन अरुणाचल प्रदेश को जांगनान कहता है और इसे तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र का हिस्सा बताता है।

चीन की पुरानी चाल 

गौरतलब है कि, पिछले 7 सालों में ऐसा चौथी बार हुआ है जब चीन ने अरुणाचल की जगहों का नाम बदला हो। चीन ने अप्रैल 2023 में अपने नक्शे में अरुणाचल प्रदेश की 11 जगहों के नाम बदल दिए थे। चीन ने पिछले 5 साल में तीसरी बार ऐसा किया था। इसके पहले 2021 में चीन ने 15 जगहों और 2017 में 6 जगहों के नाम बदले थे।

पहाड़ और झील का बदला नाम

साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के मुताबिक, चीनी नागरिक मंत्रालय की तरफ से कहा गया है , "भौगोलिक नामों के प्रबंधन पर स्टेट काउंसिल (चीनी कैबिनेट) के प्रासंगिग प्रावधानों के अनुसार, हमने संबंधित विभागों के साथ मिलकर चीन के जांगनान (अरुणाचल प्रदेश) में कुछ भौगोलिक नामों को मानकीकृत किया है।" रिपोर्ट के अनुसार, जिन जगहों के नाम बदले गए हैं, उनमें अरुणाचल प्रदेश में मौजूद 11 जिले, 12 पहाड़, एक झील, एक पहाड़ी दर्रा और जमीन का एक हिस्सा शामिल है। इन सभी जगहों को तिब्बती स्क्रिप्ट में चीनी अक्षरों के जरिए दिखाया गया है।

पीएम मोदी का अरुणाचल दौरा 

अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा जताने के लिए चीन के हालिया बयानों की शुरुआत पीएम नरेंद्र मोदी के अरुणाचल दौरे के बाद शुरू हुई है। पीएम मोदी ने कुछ महीनों पहले अरुणाचल प्रदेश में 13,000 फीट की ऊंचाई पर बनी सेला सुरंग को राष्ट्र को समर्पित किया था। यह सुरंग रणनीतिक रूप से स्थित तवांग को हर मौसम में कनेक्टिविटी प्रदान करेगी। माना जा रहा है कि इससे सीमा वाले क्षेत्रों में भारतीय सैनिकों की बेहतर आवाजाही भी सुनिश्चित होगी।

भारत की दो टूक 

अरुणाचल प्रदेश को लेकर चीन की ये हरकत पहली बार नहीं है। इसके पहले बीते मार्च में बीजिंग ने अरुणाचल प्रदेश को लेकर दावा किया था, जिसे नई दिल्ली ने बेतुका और आधारहीन बताते हुए खारिज कर दिया था। भारत के रुख को दोहराते हुए भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा था कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग है। यह एक ऐसा तथ्य है जो चीन के लगातार दावे के बावजूद अपरिवर्तनीय है। जायसवाल ने कहा था कि "अरुणाचल प्रदेश पर हमने बार-बार हमारी स्थिति स्पष्ट की है। चीन अपने बेबुनियाद दावों को जितनी बार चाहे दोहरा सकता है। उससे भारत की स्थिति बदलने वाली नहीं है। अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग है और रहेगा।" 

चीन का 'बेतुका' दावा

भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी चीन के दावे को बेतुका बताते हुए कहा था कि अरुणाचल प्रदेश स्वाभाविक रूप से भारत का हिस्सा है। सिंगापुर में जयशंकर ने कहा था, "यह कोई नया मुद्दा नहीं है। मेरा मतलब है कि चीन ने दावा किया है, वह अपने दावे को दोहरा रहा है। ये दावे शुरू से ही हास्यास्पद हैं और आज भी हास्यास्पद बने हुए हैं। मुझे लगता है कि हम इस पर बहुत स्पष्ट, बहुत सुसंगत रहे हैं।"

केजरीवाल को नहीं मिली राहत, 15 अप्रैल तक न्यायिक हिरासत में, कोर्ट से पहली बार आया आतिशी और सौरभ भारद्वाज का नाम

#arvindkejriwalsenttojudicial_custody

शराब घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को आज 15 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। दिल्ली शराब घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में प्रवर्तन निदेशालय ने सोमवार को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को राउज एवेन्यू कोर्ट में पेश किया। जहां से उन्हें अब न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है। बता दें कि बीती 28 मार्च को अरविंद केजरीवाल को कोर्ट ने राहत नहीं दी थी और एक अप्रैल तक के लिए ईडी की रिमांड पर भेज दिया था। 

केजरीवाल जांच में सहयोग नहीं कर रहे

दरअसल अरविंद केजरीवाल की रिमांड सोमवार को खत्म हो रही थी। ऐसे में ईडी ने उन्हें राउज एवेन्यू कोर्ट में पेश किया। ईडी ने कोर्ट से सीएम केजरीवाल की रिमांड न बढ़ाकर उन्हें न्यायिक हिरासत में भेजने की मांग की। ईडी ने कोर्ट से कहा कि ज़रूरत होगी तो बाद में फिर रिमांड लेंगे। इस मामले में ईडी की तरफ से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एसवी राजू ने कोर्ट से कहा केजरीवाल ने डिजिटल डिवाइस के पासवर्ड नहीं दिए। पूछताछ में केजरीवाल गोल मोल जवाब दे रहे हैं। ज्यादातर सवालों का जवाब नहीं दे रहे हैं।

अब आया आतिशी और सौरभ भारद्वाज का नाम

वहीं, इस केस में आतिशी और सौरभ भारद्वाज का नाम भी सामने आया है। ईडी ने ये भी बताया कि पूछताछ में केजरीवाल आतिशी और सौरभ भारद्वाज के नामों का भी जिक्र किया। केजरीवाल ने कहा कि विजय नायर उन्हें रिपोर्ट नहीं करता था वो आतिशी और सौरभ भारद्वाज को करता था। आबकारी मामले में आतिशी और सौरभ का नाम पहली बार कोर्ट में लिया गया। हालांकि जब आबकारी नीति लाई गई तब दोनों भी मंत्री नहीं थे। केवल विधायक और प्रवक्ता थे।

ईडी ने 21 मार्च को केजरीवाल को उनके आवास से गिरफ्तार किया था। प्रवर्तन निदेशालय ने पिछली सुनवाई में केजरीवाल की सात दिन की हिरासत का अनुरोध किया था, लेकिन कोर्ट ने उन्हें 1 अप्रैल को पेश होने का आदेश दिया था।

कच्चातिवु द्वीप को लेकर गरमाई देश की सियासत, क्या समझौते में श्रीलंका को दे दिया गया था द्वीप, जानें पूरा मामला

#katchatheevu_issue_foreign_minister_jaishankar_blames_congress_giving_to_sri_lanka

लोकसभा चुनाव को लेकर देश का पारा चढ़ा हुआ है। पार्टियां एक दूसरे पर वार करने का कोई मौका गंवाना नहीं चाहती। हर पार्टी को चुनाव में नए मुद्दे की तलाश है। इस बीच भारतीय जनता पार्टी ने कच्चातिवु द्वीप का मुद्दा उछाल दिया है। दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्री मोदी ने रविवार को कच्चातिवु द्वीप को लेकर कांग्रेस पर हमला बोला था। इसके बाद से इस द्वीप को लेकर सियासत तेज हो गई है। वहीं, आज यानी सोमवार को विदेश मंत्री एस जयशंकर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इस दौरान उन्होंने कहा कि जनता को जानने का हक है कि कच्छतीवु को लेकर आखिर क्या हुआ था?

सबसे पहले जानते हैं प्रधानमंत्री नरेंद्री मोदी ने रविवार को कच्चातिवु द्वीप को लेकर क्या कुछ कहा।पीएम मोदी ने रविवार (31 मार्च) को अपने ऑफिशियल एक्स हैंडल पर इसके बारे में लिखा और कहा कि नए तथ्यों से पता चलता है कि कितनी बेरहमी से कांग्रेस ने कच्चातिवु को श्रीलंका को दे दिया। पीएम मोदी ने भी कच्चातिवु पर बोलते हुए कांग्रेस और डीएमके पर हमला बोला। पीएम मोदी ने कहा कि बयानबाजी के अलावा, द्रमुक ने तमिलनाडु के हितों की रक्षा के लिए कुछ नहीं किया है। कच्चातिवु पर उभरते नए विवरणों ने डीएमके के दोहरे मानकों को पूरी तरह से खारिज कर दिया है। कांग्रेस और डीएमके पारिवारिक इकाइयां हैं। वे केवल इस बात की परवाह करते हैं कि उनके अपने बेटे और बेटियां बढ़ें। उन्हें किसी और की परवाह नहीं है। कच्चातीवु पर उनकी कठोरता ने हमारे गरीब मछुआरों और विशेष रूप से मछुआरों के हितों को नुकसान पहुंचाया है।

पीएम मोदी के बाद आज विदेश मंत्री जयशंकर ने भी प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस मुद्दे को उठाया। जयशंकर ने 1974 में हुए उस समझौते की बात दोहराते हुए कहा कि उस साल भारत और श्रीलंका के बीच एक समझौता हुआ था। दोनों देशों ने उसपर हस्ताक्षर किए थे। उसके बाद कांग्रेस की तब की सरकार ने एक समुद्री सीमा खींची और समुद्री सीमा खींचने में कच्चातिवु को सीमा के श्रीलंकाई पक्ष पर रखा गया। जयशंकर ने आगे कहा कि हम जानते हैं कि यह किसने किया, यह नहीं पता कि इसे किसने छुपाया। हमारा मानना है कि जनता को यह जानने का अधिकार है कि यह स्थिति कैसे उत्पन्न हुई।

जयशंकर ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि पिछले 20 वर्षों में, 6184 भारतीय मछुआरों को श्रीलंका द्वारा हिरासत में लिया गया है और इसी समयकाल में 1175 भारतीय मछली पकड़ने वाली नौकाओं को श्रीलंका ने जब्त किया। पिछले पांच वर्षों में कच्चातिवु मुद्दा और मछुआरे का मुद्दा संसद में विभिन्न दलों द्वारा बार-बार उठाया गया है। यह संसद के सवालों, बहसों और सलाहकार समिति में सामने आया है। तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने मुझे कई बार पत्र लिखा है और मेरा रिकॉर्ड बताता है कि मौजूदा मुख्यमंत्री को मैं इस मुद्दे पर 21 बार जवाब दे चुका हूं। यह एक जीवंत मुद्दा है जिस पर संसद और तमिलनाडु हलकों में बहुत बहस हुई है। यह केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच पत्राचार का विषय रहा है।

क्या है कच्चातिवु द्वीप का इतिहास

कच्चातिवू द्वीप का निर्माण 14वीं शताब्दी में ज्वालामुखी विस्फोट के कारण हुआ था। यह कभी 17वीं शताब्दी में मदुरई के राजा रामानद के अधीन था। ब्रिटिश शासनकाल में यह द्वीप मद्रास प्रेसीडेंसी के पास आया। 1921 में श्रीलंका और भारत दोनों ने मछली पकड़ने के लिए भूमि पर दावा किया और विवाद अनसुलझा रहा। आजादी के बाद इसे भारत का हिस्सा माना गया।

साल 1974 में 26 जून को कोलंबो और 28 जून को दिल्ली में दोनों देशों के बीच इस द्वीप के बारे में बातचीत हुई। इन्हीं दो बैठकों में कुछ शर्तों के साथ इस द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया गया। तब शर्त यह रखी गई कि भारतीय मछुआरे अपना जाल सुखाने के लिए इस द्वीप का इस्तेमाल कर सकेंगे और द्वीप में बने चर्च में भारत के लोगों को बिना वीजा के जाने की अनुमति होगी। समझौतों ने भारत और श्रीलंका की अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा चिह्नित कर दी। हालांकि इस समझौते का तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम करुणानिधि ने तीखा विरोध किया था।

साल 1974 में 26 जून को कोलंबो और 28 जून को दिल्ली में दोनों देशों के बीच इस द्वीप के बारे में बातचीत हुई। इन्हीं दो बैठकों में कुछ शर्तों के साथ इस द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया गया। तब शर्त यह रखी गई कि भारतीय मछुआरे अपना जाल सुखाने के लिए इस द्वीप का इस्तेमाल कर सकेंगे और द्वीप में बने चर्च में भारत के लोगों को बिना वीजा के जाने की अनुमति होगी। समझौतों ने भारत और श्रीलंका की अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा चिह्नित कर दी। 

मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा

साल 2008 में तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की जिसमें उन्होंने कच्चातिवु द्वीप को लेकर हुए समझौते को अमान्य घोषित करने की मांग की। याचिका में कहा गया कि इस द्वीप को गिफ्ट में श्रीलंका को दे देना असंवैधानिक है। इसे लेकर तमिलनाडु की सियासत हमेशा से गर्म रही है। इसी मुद्दे को लेकर लोकसभा चुनाव 2024 से पहले पीएम मोदी ने फिर से कांग्रेस को निशाने पर लिया है।

क्या मालदीव में भारत की जगह ले रहा चीन? द्वीप देश को पेयजल संकट से बचाने के लिए ड्रैगन ने भेजा 1500 टन पानी

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भारत से दुश्मनी मोल लेना मालदीव के लिए महंगा पड़ रहा है। मालदीव जलकंट से जूझ रहा है। रेत के मैदानों से समृद्ध इस द्वीप राष्ट्र मालदीव को लगातार पानी की कमी का सामना करना पड़ता है। अतीत में, देश अपनी जल आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अपने निकटतम पड़ोसी भारत पर निर्भर रहा है। 2014 में, भारत ने मालदीव में 2,700 टन से अधिक पीने का पानी भेजने के लिए ऑपरेशन नीर लॉन्च किया था, जब राजधानी में एक जल शोधन परिसर में आग लग गई थी। 

हालांकि, मोहम्मद मुइज्जू के राष्ट्रपति पद संभालने के बाद से ही मालदीव का झुकाव चीन की ओर रहा है। यही वजह है कि भारत की जगह चीन मालदीप के लिए संकटमोटक बन कर उभरा है।

चारों से पानी से घिरा होने के बावजूद मालदीव एक-एक बूंद पेयजल के लिए तरस रहा है। भारत से संबंध बिगाड़ चुके मोइज्जू को जब इस संकट से पार पाने का काई रास्ता नहीं सूझा तो उन्होंने चीन के आगे गिड़गिड़ाकर वहां से 1500 टन ड्रिंकिंग वाटर अपने देश में मंगवाया है।मालदीव की सरकार ने घोषणा की है कि चीन ने माले को 1,500 टन पीने का पानी भेजा है। विदेश मंत्रालय ने कहा कि मालदीव को पीने का पानी उपलब्ध कराने का निर्णय चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र के अध्यक्ष यान जिनहाई की मालदीव की आधिकारिक यात्रा के दौरान किया गया, जहां उन्होंने पिछले नवंबर में राष्ट्रपति डॉ मोहम्मद मुइज्जू से मुलाकात की थी।

हालांकि, राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू के इस कदम को लेकर उनके ही देश में सवाल उठ रहे हैं। देश के लोग पूछ रहे हैं कि करीब 4 हजार किमी दूर चीन से पानी मंगाने के बजाय उन्होंने परंपरागत मित्र रहे भारत से मदद क्यों नहीं मांगी, जिसकी मालदीव से दूरी केवल 300 किमी है।

दरअसल इसके पीछे चीन की पूरी सोची समझी साजिश है। दरअसल, चीन साउथ एशिया को भारत से दूर करना चाहता है।

पहले भी चीन ने की है मालदीव की मदद

मालदीव को चीन की ओर से मदद का यह पहला मामला नहीं है। इसी महीने मोइज्जू ने घोषणा की थी कि मालदीव ने चीन के साथ एक समझौता किया है, जिसके तह उसे चीनी सेना से गैर- घातक सैन्य उपकरणों के साथ ही मिलिट्री ट्रेनिंग भी हासिल होगी। यह समझौता चीन के अंतर्राष्ट्रीय सैन्य सहयोग कार्यालय के उप निदेशक मेजर जनरल झांग बाओकुन और चीन के निर्यात-आयात बैंक के अध्यक्ष रेन शेंगजुन के साथ राष्ट्रपति मोइज्जू की बैठकों के बाद हुआ।

इसके अलावा चीन के शोध जहाज शियांग यांग हॉन्ग-3 को लेकर भी एक समझौता हुआ है।यह जहाज हाल ही में मालदीव पहुंचा था. इसे चीन का जासूसी जहाज भी कहा गया।दोनों देशों के बीच हुए इस समझौते से भारतीय सागर क्षेत्र में समुद्री अनुसंधान प्रभावित हो सकता है।वहीं, भारत के मालदीव बायकॉट के बाद मुइज्जू ने देश के पर्यटन क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए चीन से मदद की गुहार भी लगाई थी।

मुइज़्ज़ू ने चीन से की मालदीव में पर्यटन को बढ़ावा देने की अपील

अपने चीन दौरे के समय मुइज़्ज़ू ने चीन के लोगों से ये भी अपील की थी कि वो पर्यटन के लिए मालदीव अधिक से अधिक संख्या में आएं। बीते साल पर्यटन के लिहाज से मालदीव के लिए भारत सबसे बड़ा देश था। लेकिन इस साल जनवरी में मालदीव के जूनियर मंत्रियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर विवादित टिप्पणी की थी जिसके बाद भारत में ‘बायकॉट मालदीव’ का ट्रेंड चलाया गया था। तब से भारत मालदीव के लिए पर्यटन के मामले में छठे नंबर पर आ चुका है।

मालदीव आखिर चीन और भारत के लिए क्यों हुआ जरूरी?

मालदीव, 5 लाख लोगों की आबादी वाला एक छोटा सा देश है, जिसकी अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से पर्यटन पर निर्भर है. लेकिन दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाले देश भारत और चीन के लिए ये देश काफ़ी मायने रखता है। दक्षिण एशिया में अपना दबदबा बढ़ाने के लिए दोनों देश मालदीव में हो रहे छोटे-छोटे डिवेलपमेंट पर भी पैनी नज़र बनाए रहते हैं। भारत लंबे समय से मालदीव का सबसे बड़ा आर्थिक और सैन्य सहयोगी देश रहा है। मोहम्मद सोलिह की सरकार की भारत से क़रीबी जगजाहिर रही है।

हालांकि चीन ने भी बीते सालों में अपने बड़े वित्तीय संसाधनों के साथ इस इलाक़े में महत्वपूर्ण प्रगति की है, बुनियादी ढांचे को लेकर सौदे किए हैं और भारत के आसपास के देशों में पोर्ट भी लीज़ पर लिया है। कोविड के दौरान जब ज़्यादातर देशों ने मालदीव के पर्यटन उद्योग में अपना काम बंद कर दिया था तब भी चीनी कंपनियां यहाँ पैसा लगा रही थीं। लेकिन चीनी कंपनियों का ये पैसा बाज़ार से इकट्ठा नहीं किया गया था। ये पैसा चीन के सरकारी बैंकों का था। यानी ये सीधे तौर पर चीन की सरकार का पैसा था। 

इससे पहले सोलिह सरकार में भारत ने मालदीव में 45 से अधिक इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास योजनाओं में भागीदारी की। अगस्त 2021 में भारत और मालदीव के बीच ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट पर हस्ताक्षर हुए जिसके तहत भारत को उसे 50 करोड़ डॉलर की मदद देना था। मार्च 2022 में भारत ने मालदीव में दस कोस्टल रडार सिस्टम स्थापित किए। मालदीव के द्वीप अद्दु में पुलिस अकादमी की शुरुआत करने में भी भारत ने उसकी मदद की। जब से मुइज़्ज़ू राष्ट्रपति बने हैं चीन के साथ मालदीव की क़रीबी भी बढ़ी है। मुइज्ज़ू ने राष्ट्रपति बनने के बाद अपना पहला राजकीय दौरा चीन का किया था।

चुनावी बॉन्ड पर पीएम मोदी का विपक्ष पर जोरदार हमला, बोले- आज जो इसे लेकर नाच रहे हैं, वो जल्द पछताएंगे

#pm_modi_attack_on_opponents_electoral_bonds

लोकसभा चुनाव के ऐलान के साथ ही चुनावी बॉन्ड को लेकर भी सियासत तेज है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने चुनाव आयोग को पूरी जानकारी उपलब्ध करा दी थी, जिसके बाद डाटा को सार्वजनिक भी कर दिया गया। चुनाव बॉन्ड के जरिए राजनीतिक पार्टियों को मिले चंदे पर कई विपक्षी पार्टियों ने सवाल भी उठाया है। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनावी बॉन्ड के मुद्दे पर विपक्ष पर जोरदार हमला बोला है। उन्होंने कहा है कि इस विषय पर हंगामा करने वाले लोगों को पछतावा होगा।

तमिल टेलीविजन चैनल ‘थंथी’ टीवी को दिए इंटरव्यू के दौरान पीएम मोदी ने बॉन्ड योजना के खारिज होने को अपनी सरकार के लिए झटका मानने से इनकार कर दिया। पीएम ने कहा-2014 से पहले चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों को मिले पैसे का कोई हिसाब नहीं मिलता था। मुझे बताइये ऐसा क्या हुआ है जिससे यह माना जाए कि यह मेरी सरकार के लिए झटका है। मैं पक्का मानता हूं कि जो लोग इसे लेकर आज नाच रहे हैं वो पछताने वाले हैं।

पीएम ने कहा, मैं पूछना चाहता उन सभी विद्वानों से कि 2014 से पहले जितने भी चुनाव हुए, उनमें पैसा तो खर्च हुआ ही होगा, तो कौन सी ऐसी एजेंसी है जो बता पाए कि पैसा कहां से आया, कहां गया? मोदी ने चुनावी बॉन्ड बनाया, इसके कारण आज आप ढूंढ पा रहे हो कि बॉन्ड किसने लिया, किसे दिया। इसके कारण पैसे का ट्रेल पता चल रहा है। कोई व्यवस्था पूर्ण नहीं होती, कमियां हो सकती हैं लेकिन उन्हें सुधारा जा सकता है।

वहीं, ईडी की ओर से विपक्षी नेताओं के खिलाफ एक्शन के सवाल पर पीएम मोदी ने कहा कि हमने ईडी की स्थापना नहीं की, न ही यह हमारी सरकार थी जिसने पीएमएलए कानून पेश किया। ईडी एक संस्था है जो स्वतंत्र रूप से काम करती है। हम इसके काम में हस्तक्षेप नहीं करते। कांग्रेस के 10 साल के शासनकाल में ईडी ने सिर्फ 35 लाख रुपये जब्त किये थे। अब ईडी ने 2200 करोड़ रुपए का कालाधन जब्त किया।इसका मतलब है कि एजेंसियों का ऑपरेशन लीक नहीं हो रहा है। इसीलिए ये सब पकड़ में आ रहा है।