चुनावी चकल्लस:हुजूर यह पब्लिक है! सब जानती ही नहीं समझती भी है,मतदाताओं के सवाल 'मोहतरमा' कहां थी साढ़े चार साल?
संतोष देव गिरि ,मीरजापुर। चुनाव सिर पर होते ही सौगातों की बरसात, 'विकासवाद' की बात शिलान्यास-उद्घाटनों का दौर आखिरकार यह तेजी आज क्यों इसके पहले क्यों नहीं? यह सवाल असहज कर देने वाले हैं। जिनके शाय़द ही जवाब देते हुए बने। 2024 के लोकसभा चुनाव का आगाज हो चुका है, बस चंद दिन ही शेष बचे हुए हैं जिसके बाद इसकी अधिकारिक तौर पर घोषणा भी कर दी जाएगी। इस बीच जिले में विकासवाद का ढिढ़ोरा खूब बज रहा है। नित्य नई योजनाओं की सौगात देने की बात खूब हो रही है। सुबह से प्रारंभ हुआ कार्यक्रमों का दौर रात तक निपटायां जा रहा है। शिलान्यास-उद्घाटनों का दौर ऐसा चल रहा है मानों जैसे 'अंताक्षरी' हो रही है कि कहीं कोई और बाजी ना मारने पाएं।
उद्घाटन और शिलान्यास के दौर को इस कदर प्रस्तुति दी जा रही है, जैसे कि इसके पहले जिले में कोई विकास करने वाला था ही नहीं, अब भला 'मोहतरमा' को कौन बताए कि इसके पहले भी जिले में अनेकों विकास पुरुष रहे हैं, जिनका नाता, जुड़ाव आज भी जिले के लोगों से बना हुआ है। जो नहीं भी हैं, लेकिन उनके द्वारा किए गए कार्यों की आज भी तारीफ करना यहां के लोग नहीं भूलते। उसके पीछे एक बड़ा कारण यह भी है कि उन्होंने कुछ भी करने से पहले 'ढिंढोरा' नहीं पीटा है, करके दिखलाया है। वह अपने कार्यों के बल पर पहचान बनाने में कामयाब रहे हैं, ना कि शासन सत्ता की योजनाओं का श्रेय अपने माथे मढ़ कर शिलान्यास, उद्घाटन वाले नेता बने थे। इन दिनों जनपद के विकास और उत्थान की बात तेजी पर है, लेकिन इससे इतर हट कर देखें तो नगर की सड़कों की बदहाली से लेकर विभिन्न ग्रामीण इलाकों में ग्रामीण सड़कों का बुरा हाल है जो 'विकासवादी' बातों की हवा निकालने के लिए काफी हैं।
जिस हर घर नल जल योजना का बखान करते हुए 'मोहतरमा' थकतीं नहीं, कभी उनके लिए खोदे गए मार्ग पर पैदल चलकर लोगों तक पहुंचती तो अंदाजा लगता, खैर वह ऐसा क्यों करें, उन्हें क्या पड़ी है? वह तो खुद ही लग्जरी वाहनों के काफिले सुरक्षा घेरे में चलती हैं, जिन्हें और सुरक्षा घेरा उपलब्ध करा दी गई है। शायद सुरक्षा घेरा जो पहले मिला था उससे 'जी' नहीं भर पा रहा था, सो सरकार ने कृपा बरसा दी और बढ़ा दी गई सुरक्षा चुनाव भी है, अंदरखाने में विरोध भी है। सो सुरक्षा व्यवस्था मजबूत होना तो मांगता ही है। वैसे भी 'मोहतरमा' की ख़्वाहिशें अंतहीन हैं उन्हें सुरक्षा मिला तो क्या मिला।
केंद्र और प्रदेश में भी उनकी अपनी सरकार है। कुनबे के तौर पर पति-पत्नी दोनों ही सरकार के अभिन्न अंग हैं। पार्टी की कमान भी अपने हाथों में हैं। उन्हें कोई टस से मस नहीं कर सकता यानि दल-संगठन की कमान अपनी मुठ्ठी में है। ऐसे में भला सुरक्षा ही बढ़ी तो क्या बढ़ी? इसपर बात भी नहीं होनी चाहिए। इस पर बात करे भी तो कौन और किससे? जब पूरी मंडली (कुछेक को छोड़) ही मोहतरमा के आगे-पीछे चल पड़ी है।
श्रेय लेने की हड़बड़ी क्यों?
'मोहतरमा' के विकासवाद वाले ढ़ोल पर मतदाताओं की तीखी प्रतिक्रिया भी सुनने में आ रही है। .... इतने दिनों कहां रहीं... क्या किया। जो आज हो रहा है, वह इसके पहले क्यों नहीं हुआ? दरअसल, इस बार जागरूक मतदाता योगी-मोदी के विकास और योजनाओं के सहारे मतदाताओं को लुभाते रहे जनप्रतिनिधियों से सवाल भी दागने को आतुर है कि सरकार की संचालित योजनाओं का श्रेय आखिरकार आप कब तक लेते रहोगे? ।
गौरतलब हो कि जिले में पिछले कुछ महीने से जिस गति से शिलान्यास और उद्घाटन का दौर चला है उसे देखकर हर कोई अचंभित ही नहीं सवाल भी करता नजर आ रहा है कि आखिरकार इतनी तेजी अब क्यों? सरकार की तमाम योजनाओं के बाद भी जिले में स्वास्थ्य, शिक्षा, पेयजल, विद्युत, सड़क मार्गो की दशा बदहाल बनी हुई है। इनमें सिंचाई से जुड़ी हुई समस्या भी सबसे जटिल और प्रमुख है जिससे जिले का अन्नदाता किसान कराह रहा है समय-समय पर उसे धरना-प्रदर्शन करने के लिए भी विवश होना पड़ता है। बावजूद इसके किसानों की समस्याएं कम नहीं हुई हैं। बेरोजगारी की मार, जिले में कुटीर धंधों की बदहाली किसी से छुपी हुई नहीं है। जिन योजनाओं के नाम का शिलान्यास कर जनता को सौगात देने की बात कही जा रही है वह कब पूरी होगी यह तो समय के गर्भ में है, तो उस पर श्रेय लेने की हड़बड़ी क्यों?
(आगे भी जारी)
Mar 14 2024, 17:28