नागरिकता संशोधन अधिनियम का प्रवर्तन स्वागतयोग्य : प्रो० अशोक राय
अयोध्या।संविधान विशेषज्ञ प्रो.एके का मानना है कि नागरिकता का अधिकार राज्य व उसके सदस्यों के मध्य एक संबंध को प्रतिबिंबित करता है । ऐब्बट के विधि शब्दकोश के अनुसार नागरिक वह व्यक्ति है जो किसी राज्य अथवा राष्ट्र का सदस्य है और उस राष्ट्र के प्रति निष्ठा रखता है ।संविधान के भाग 2 में नागरिकता संबंधी प्रावधान किए गए हैं।
अनुच्छेद 6 में पाकिस्तान से भारत को प्रवास करने वाले व्यक्तियों के नागरिकता संबंधी अधिकारों का वर्णन किया गया है। अनुच्छेद 8 के अंतर्गत भारत के बाहर रहने वाले भारतीय उद्भव के कुछ व्यक्तियों को नागरिकता देने की बात कही गई है ।अनुच्छेद 11 के अंतर्गत संसद को यह शक्ति दी गई है कि वह नागरिकता के अर्जन और समाप्ति के लिए विधि बनाए।इसी अनुक्रम में भारतीय नागरिकता अधिनियम 1955 बनाया गया है।
वर्ष 2019 में केंद्र सरकार ने इस कानून में संशोधन किया जिसे 11 मार्च 2024 को लागू कर दिया गया है। इसके अनुसार 31 दिसंबर 2014 से पूर्व अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से भारत में आने एवं रहने वाले हिंदू, ईसाई ,सिख ,जैन ,बौद्ध और पारसी लोगों को भारत की नागरिकता देने का अधिकार केंद्र सरकार के द्वारा दिए जाने का प्रावधान किया गया है।
वर्तमान में इसके लिए एक विशेष पोर्टल भी बनाया गया है। पात्र विस्थापितों को संबंधित पोर्टल पर ऑनलाइन आवेदन करना होगा। गृह मंत्रालय के जांच के उपरांत इन्हें नागरिकता संबंधी अधिकार प्रदान किया जाएगा । केंद्र सरकार का यह निर्णय अत्यंत स्वागत योग्य है क्योंकि पड़ोसी मुल्कों में रह रहे अल्पसंख्यकों की दयनीय दशा किसी से छिपी नहीं है। उन्हें भारत में भी यदि शरण नहीं दिया गया तो यह उनके लिए अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण होगा ।भारत की महनीय परंपरा प्राचीन काल से शरणागत वत्सल की रही है ।
यहां रह रहे लोगों को उनकी निष्ठा के आधार पर नागरिकता का अधिकार मिले, यह अत्यंत सराहनीय है।इससे सरकार की संवेदनशीलता प्रकट होती है। इस संशोधन से भारत में रह रहे किसी भी भारतीय नागरिक के नागरिकता पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा ,अतः इसके विरोध का कोई औचित्य नहीं है।
Mar 12 2024, 17:16