कृषि विश्वविद्यालय में जारी रही वैज्ञानिकों की बैठक
कुमारगंज अयोध्या ।आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय में अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (एक्रिप) अंतर्गत सब्जी फसलों पर 42वीं वार्षिक समूह की बैठक दूसरे दिन भी जारी रही। इस दौरान दूर-दराज से पहुंचे वैज्ञा एफसीनिकों ने सब्जी फसलों मटर, टमाटर, बैंगन, करेला, तरोई, खीरा, मिर्चा आदि किस्मों पर चर्चा की गई। इसी क्रम में सब्जी फसल को लेकर विभिन्न तकनीकियों, जैविक खेती, रोगरोधी क्षमता, बंजर जमीन को सब्जी फसल युक्त बनाने, किसानों की दोगुनी आय आदि बातों को लेकर वैज्ञानिकों से बातचीत की गई तो वैज्ञानिकों ने भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की।
श्री कोण्डा लक्ष्मण तेलंगाना स्टेट हार्टिकल्चर यूनिवर्सिटी की कुलपति डा. नीरजा प्रभाकर ने बताया कि किसानों को अच्छी हाईब्रिड प्रजातियां उपलब्ध कराने के लिए पूरे भारत देश में सब्जियों पर प्रयोग किया जा रहा है।
आई.आई.वी.आर वाराणसी किसानों के हित में अच्छा कार्य कर रहा है। उन्होंने बताया कि जलवायु परिवर्तन आज के समय में प्रमुख मुद्दा है इस पर वैज्ञानिकों को प्रमुखता के साथ कार्य करना चाहिए। खेतों को रासायनिक उर्वरकों से बचाने की जरूरत है इससे सब्जीयो में रसायन की मात्रा न के बराबर होगी। जो मानव स्वास्थ्य के लिए अनुकूल होगा। आज के समय में प्राकृतिक एवं जैविक खेती करने की जरूरत है। इससे मनुष्य की सेहत के साथ-साथ मिट्टी को उपजाऊ बनाने में भी मदद मिलेगी। किसानों को फसलों के साथ-साथ सब्जी की खेती करनी चाहिए इससे उनको अधिक आर्थिक लाभ पहुंचेगा।
डा. नीरजा प्रभाकर, कुलपति, श्रीकोंडा लक्ष्मण तेलंगाना स्टेट हॉर्टिकल्चर यूनिवर्सिटी, तेलंगाना, हैदराबाद
भारतीय कृषि वैज्ञानिक चयन मंडल नई दिल्ली के सदस्य डा. मेजर सिंह का कहना है कि ग्लोबल स्तर पर सब्जियों की खेती एवं मार्केटिंग में हमारा देश अच्छी स्थिति में है। कुछ सब्जियों जैसे प्याज, टमाटर, भिंडी का अधिक निर्यात हो रहा है और कभी-कभी निर्यात पर रोक भी लगानी पड़ती है। लेकिन अभी भी इसमें बहुत सुधार की आवश्यकता है। अपनी पैदावार को दूसरे देशों में निर्यात के लिए खास तौर पर यूरोपीय देशों में भेजने के लिए नई कृषि पद्धतियों को अपनाने की जरूरत है। जबतक नई कृषि पद्धतियों को नहीं अपनाया जाएगा तबतक हम अच्छे देशों को अपनी पैदावार निर्यात नहीं कर पाएंगे। सब्जियों में निर्यात का दायरा बहुत अधिक है लेकिन इसके लिए किसानों को जागरूक करने की जरूरत है।
डा. मेजर सिंह, सदस्य, भारतीय कृषि वैज्ञानिक चयन मंडल, नई दिल्ली
आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के कुलपति डा. बिजेंद्र सिंह ने बताया कि सब्जियों में रोगों के लिए ऐसी प्रजातियों का विकास हुआ है जो रोगरोधी है। रसायन से बचाव के लिए रोगरोधी एवं प्रतिरोधक क्षमता वाली प्रजातियों का प्रयोग करना होगा। सभी फसलों में अलग-अलग बीमारियां होती हैं। बीमारियों से बचाने के लिए कल्चरल प्रेक्टिसेस का भी प्रयोग कर सकते हैं। टमाटर को छेदक या बीमारी से बचाने के लिए उसके चारों तरफ गेंदे के फूल लगा सकते हैं और स्प्रे का छिड़काव कर पौधों को बचा सकते हैं। फूलगोभी और पत्तागोभी में लगने वाले कीट बहुत खतरनाक होते हैं। इन कीट से पौधों को बचाने के लिए किनारे-किनारे सरसों या चीनी पत्ता गोभी लगा देने से कीट दूसरी तरफ आकर्षित हो जाते हैं और मुख्य फसल को बचा सकते हैं। बंजर जमीनों को प्रयोग में लाने के लिए पालक, बथुए की खेती की जा सकती है। ऐसे जमीन में जिप्सम, कच्ची गोबर डालकर पानी भर दें और दलहनी फसलों का लगाएं। कार्बन या जीवांश की मात्रा बढ़ने पर बंजर भूमि उपजाऊ हो जाएगी।
डा. बिजेंद्र सिंह, कुलपति, आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, अयोध्या
शेरे कश्मीर कृषि विवि, श्रीनगर के कुलपति डा. नजीर अहमद ने बताया कि जिन किसानों के पास कम जमीनें हैं वे संरक्षित खेती द्वारा किसी भी मौसम में पॉली हाउस में खेती कर सकते हैं। इससे किसानों की उपज अधिक होगी और उनकी पैदावार में भी बढ़ोतरी होगी। बागीचों के नीचे खाली जमीनों पर किसान एकीकृत खेती कर जमीन को सदुपयोग में ला सकते हैं। अदरक, घास की वेरायटी, पोल्ट्री, डेयरी, सब्जी की नर्सरी, फल वाले पौधे तथा औषधीय एवं सुगंधित पौधों का प्रयोग कर अपनी आमदनी को बढ़ा सकते हैं। खाली जमीनों का उपयोग करने के लिए किसान दलहनी फसलों में लोबिया, भिंडी आदि सब्जियों को लगा सकते हैं जिससे कि बागीचे पर प्रतिकूल प्रभाव भी न पड़े।
डा. नजीर अहमद, कुलपति, शेरे कश्मीर कृषि विश्वविद्यालय, श्रीनगर, कश्मीर


Feb 24 2024, 18:29
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