*यूपी का दूसरा प्रयाग, जहां माघ में गंगा की गोद में 29 साल से बस रही है तम्बुओं की नगरी*
नितेश श्रीवास्तव
भदोही काशी-प्रयाग के मध्य स्थित भदोही जिले के सेमराध में कल्पवास मेले का शुभारंभ हो गया है। मकर माघ कल्पवास मेले का यह 29वां वर्ष है। 01 जनवरी 2024 को मां गंगा व बाबा सेमराधनाथ के पूजन व धर्म ध्वजारोहण, भूमिपूजन के साथ सेमराध में मां गंगा की गोद में रेती पर तैयारियां शुरू हुईं थीं। 14 जनवरी से कल्पवासियों का मेले में आना शुरू हो गया है। मेला समिति के अध्यक्ष महंथ करुणा शंकर दास ने बताया कि 25 जनवरी से मेले की भव्यता बढ़ेगी, कल्पवासियों की संख्या में भी वृद्धि हो जाएगी।
अध्यात्म और सनातन धर्म का प्रतीक यह 'कल्पवास' 24 फरवरी तक चलेगा। गंगा की रेती में तम्बुओं की नगरी बस चुकी है। कल्पवासियों का आना यहां शुरू है। 15 जनवरी मकर संक्रांति के अवसर पर हजारों श्रद्धालुओं ने सेमराध के पवित्र घाट पर गंगा में आस्था की डुबकी लगाई और घाट पर बसे बाबा सेमराध नाथ के दरबार में मत्था टेका। प्रशासन व मेला समिति के ओर से कल्पवास परिक्षेत्र में आवश्यक व्यवस्थाएं सुनिश्चित की गईं हैं। कल्पवास मेले में बिजली, पानी, टॉयलेट आदि की उपलब्धता कराई गई है। जाने आने हेतु रास्ते बनाएं गए हैं एवं रेती में चकरप्लेट बिछाई गई है। आग जलाने हेतु लकड़ियां आदि भी मंगाईं गईं हैं।
पूरे कल्पवास मेले के दौरान भंडारा भी संचालित होगा। खास बात यह है कि कल्पवासियों के लिए रहने के लिए लगाई जाने वाली छावनी (तंबू) का फिलहाल कोई शुल्क नही है। मेला अध्यक्ष बताते हैं कि बेहद कम पैसे में यहां कल्पवास का पुण्य कमाया जा सकता है। मेले में लगातार अखंड हरिकीर्तन चलेगा, साथ ही विद्वतजनों द्वारा प्रवचन व राम कथा भी की जाएगी। बसंत पंचमी से नौ दिनी शतचंडी महायज्ञ भी होगा। धार्मिक अनुष्ठानों से समूचा इलाका भक्ति भाव से सराबोर रहेगा। 22 जनवरी को अयोध्या में होने वाले श्रीराम की प्राण-प्रतिष्ठा के दिन भी कल्पवास क्षेत्र में विशेष पूजा-पाठ के कार्यक्रम होंगें।
स्वप्न प्रेरणा (संदेश) के बाद हुई थी कल्पवास की शुरुआत
महंथ करुणा शंकर दास ने बताया कि मेरे गुरु ब्रह्मलीन स्वामी रामशंकर दास महाराज, जो मिथिला के मधुबनी से सेमराध साल 1990 में आए। उन्हें दिसंबर 1995 में स्वप्नवत संदेश मिला, कि सेमराध नाथ धाम महातीर्थ है। सेमराध नाथ धाम पंचवटी धाम नगरदह गांव से उत्तर वाहिनी इब्राहिमपुर घाट तक लगभग 5 किलोमीटर लंबा और 2 किलोमीटर चौड़ा क्षेत्र है। स्वप्नवत आदेश हुआ कि तुम प्रयाग नही सेमराध में कल्पवास शुरू करो। उसके बाद 14 जनवरी 1996 में महाराज ने 15 से 20 लोगों के साथ सेमराध गंगा घाट पर कल्पवास की शुरुआत की। पूरे माह तक अखंड दीप वहां जला। मेले की समाप्ति के बाद दीप खुली आसमान और ओस के नीचे पूरी रात जलता रहा, तो लोग आश्चर्यचकित हुए। फिर महाराज ने दीप को लाकर सेमराध नाथ धाम के गर्भ गृह में रखवा दिया जो अब भी अखंड रूप से जल रहा है। 02 साल तक मेला वैसे ही चला फिर धीरे-धीरे प्रशासनिक सहयोग व हस्तक्षेप बढ़ता गया।
सेमराध कल्पवास करने का विशेष पुण्य और महत्व
करुणा दास महाराज ने कहा कि यहां कल्पवास करने पर भगवान श्री हरि विष्णु के साथ-साथ भगवान शिव की भी कृपा भक्त पर बनती है। अवगत हो कि हरिद्वार, नासिक, उज्जैन और प्रयागराज के बाद सेमराध ही ऐसा पवित्र स्थल हैं, जहां कल्पवास का मेला लगता है।
सेमराध को लेकर क्या बताए थे ब्रह्मलीन प्रयाग पीठाधीश्वर
ब्रह्मलीन प्रयाग पीठाधीश्वर रंग रामानुजाचार्य दंडी स्वामी ने कथा सुनाते हुए कहा था कि द्वापर युग की एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्री कृष्ण और पौंड्रक में युद्ध हुआ। पौंड्रक एक ऐसा राजा था जो भगवान श्री कृष्ण की नकल करता था और स्वयं को वासुदेव कृष्ण कहता था। युद्ध में पौंड्रक मारा गया। काशीराज जो कि पौंड्रक के मित्र थे। उसकी तरफ से युद्ध लड़ने आए, वह भी मारा गया। बाद में काशीराज के पुत्र ने कृत्या नाम की एक राक्षसी को यज्ञ द्वारा पैदा किया, वह भगवान श्री कृष्ण से युद्ध लड़ी। भगवान श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र को उसके वध हेतु छोड़ा। सुदर्शन चक्र ने कृत्या का वध किया साथ में ही पूरे काशी को नष्ट कर दिया जला दिया।
इस पूरी घटना से भगवान शिव श्री कृष्ण से नाराज हुए और उनसे कहा कि मेरा काशी संपूर्ण रूप से नष्ट हो गया है, अब मैं कहां रहूं। तो भगवान श्री कृष्ण ने उनसे कहा कि आप अपना त्रिशूल काशी से छोड़े और मैं अपना सुदर्शन छोड़ता हूं। जहां इन दोनों का मिलन होगा, आप काशी का पुनः निर्माण होने तक वहीं विराजमान हो जाए। जहां पर त्रिशूल और सुदर्शन का मिलन हुआ, उस जगह को समर-अधि कहा गया। जिसे अब अपभ्रंश से सेमराध कहा जाने लगा है।
Jan 18 2024, 19:32